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नंगे पैरों के आंदोलन से मिली सीख

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    चलिये आपको एक दूसरी ही दुनिया में ले चलूँ।
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    और आपको सुनाऊँ एक
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    ४५ साल पुरानी प्रेम-कथा
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    गरीब लोगों से प्रेम की कथा,
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    जो कि प्रतिदिन एक डॉलर से भी कम कमाते हैं।
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    मैं एक बेहद संभ्रांत, खडूस,
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    महँगे कॉलेज में पढा, भारत में,
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    और उसने मुझे लगभग पूर्णतः बरबाद कर ही दिया था।
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    सब फ़िक्स था -
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    मैं डिप्लोमेट, शिक्षक, या डॉक्टर बनता --
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    सब जैसे प्लेट में परोसा पडा था।
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    साथ ही, मुझे देख कर ऐसा नहीं लगेगा, मैं स्क्वैश के खेल में भारत का राष्ट्रीय चैंपियन था
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    तीन साल तक लगातार।
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    (हँसी)
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    सारी दुनिया के अवसर मेरे सामने थे।
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    सब जैसे मेरे कदमों में पडा हो।
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    मैं कुछ गडबड कर ही नहीं सकता था।
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    और तब, यूँही, जिज्ञासावश मैने सोचा कि
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    मैं गाँव जाकर, रहना और काम करना चाहता था
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    बस समझने के लिये कि गाँव कैसा होता है।
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    इसलिये १९६५ में,
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    मैं बिहार गया - वहाँ अब तक का सबसे भीषण अकाल पडा था,
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    और मैनें भूख और मौत का नंगा नाच देखा,
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    पहली बार ठीक मेरे सामने लोग भूख से मर रहे थे।
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    उस अनुभव ने मेरा जीवन बदल डाला।
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    मैं वापस आया,
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    और मैने अपनी माँ से कहा,
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    "मैं एक गाँव में रहना और काम करना चाहता हूँ।"
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    माँ कोमा में चली गयी।
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    (हँसी)
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    "ये क्या कह रहा है?
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    सारी दुनिया के अवसर तेरे सामने हैं, और भरी थाली में लात मार कर तू
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    एक गाँव में रहना और काम करना चाहता है?
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    मुझे समझ नहीं आ रहा है कि आखिर तुझे हुआ क्या है?"
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    मैनें कहा, "नहीं, मुझे सर्वश्रेष्ठ शिक्षा मिली है।
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    उसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया है।
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    और मैं कुछ वापस देना चाहता हूँ
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    अपने ही तरीके से।"
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    "पर तू आखिर एक गाँव में करेगा क्या?
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    न रोजगार है, न पैसा है,
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    न सुरक्षा, न ही कोई भविष्य।"
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    मैने कहा, "मै गाँव में रह कर
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    पाँच साल तक कुँए खोदना चाहता हूँ।"
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    "पाँच साल तक कुँए खोदेगा?
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    तू भारत के सबसे महँगे स्कूल और कॉलेज में पढा है,
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    और अब पाँच साल तक कुँए खोदना चाहता है?"
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    उन्होंने मुझसे बहुत लम्बे समय तक बात तक नही की,
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    क्योंकि उन्हें लगा कि मैंने अपने खानदान की नाक कटवा दी है।
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    लेकिन इसके साथ ही,
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    मुझे सीखने को मिला दुनिया के सबसे बेहतरीन ज्ञान और कौशल
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    जो बहुत गरीब लोगों के पास होते हैं,
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    मगर कभी भी हमारे सामने नहीं लाये जाते --
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    जो परिचय और सम्मान तक को मोहताज़ रहते हैं,
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    और जिन्हें कभी बडे रूप में इस्तेमाल ही नहीं किया जाता।
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    और मैनें सोचा कि मैं बेयरफ़ुट कॉलेज की शुरुवात करूँगा --
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    एक कॉलेज केवल गरीबों के लिये।
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    गरीब लोग क्या सोचते है, ये मुख्य मसला था,
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    यही इस कॉलेज की नीव भी थी।
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    इस गाँव में यह मेरा पहला दिन था।
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    बडे-बूढे मेरे पास आये
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    और पूछा, "क्या पुलिस से भाग कर छुपे हो?"
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    मैने कहा, "नहीं।"
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    (हँसी)
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    "परीक्षा में फ़ेल हो गये हो?"
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    मैने कहा, "नहीं।"
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    "तो सरकारी नौकरी नहीं मिल पायी होगी?" मैनें कहा, "वो भी नहीं।"
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    "तब यहाँ क्या कर रहे हो?
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    यहाँ क्यों आये हो?
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    भारत की शिक्षा व्यवस्था
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    तो आपको पेरिस और नई-दिल्ली और ज़ुरिख़ के ख़्वाब दिखाती है;
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    तुम इस गाँव में क्या कर रहे हो?
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    तुम कुछ तो ज़रूर छिपा रहे हो हमसे?"
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    मैने कहा, "नहीं, मैं तो एक कॉलेज खोलने आया हूँ,
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    केवल गरीबों के लिये।
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    गरीब लोगों को जो ज़रूरी लगता है, वही इस कॉलेज में होगा।"
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    तो बुज़ुर्गों नें मुझे बहुत नेक और सार्थक सलाह दी।
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    उन्होंने कहा, "कृपा करके,
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    किसी भी डिग्री-होल्डर या मान्यता-प्राप्त प्रशिक्षित व्यक्ति को
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    अपने कॉलेज में मत लाना।"
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    लिहाज़ा, ये भारत का इकलौता कॉलेज है
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    जहाँ, यदि आप पी.एच.डी. या मास्टर हैं,
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    तो आपको नाकारा माना जायेगा।
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    आपको या तो पढाई-छोड, या भगोडा, या निलंबित होना होगा
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    हमारे कॉलेज में आने के लिये।
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    आपको अपने हाथों से काम करना होगा।
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    आप को मेहनत की इज़्जत सीखनी होगी।
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    आपको ये दिखाना होगा कि आपके पास ऐसा हुनर है जिस से कि लोगों का भला हो सकता है
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    और आप समाज को कोई सेवा प्रदान कर सकते हैं।
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    तो हमने बेयरफ़ुट कॉलेज की स्थापना की,
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    और हमने पेशेवर होने की नई परिभाषा गढी।
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    आख़िर पेशेवर किसको कहा जाये?
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    एक पेशेवर व्यक्ति वो है
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    जिसके पास हुनर हो,
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    आत्म-विश्वास हो, और भरोसा हो।
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    ज़मीन-तले पानी का पता लगाने वाला पेशेवर है।
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    एक पारंपरिक दाई
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    एक पेशेवर है।
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    एक कढाई गढने वाला पेशेवर है।
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    सारी दुनिया में ऐसे पेशेवर भरे पडे हैं।
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    ये आपको दुनिया के किसी भी दूर-दराज़ गाँव में मिल जायेंगे।
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    और हमें लगा कि इन लोगों को मुख्यधारा में आना चाहिये
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    और दिखाना चाहिये कि इनका ज्ञान और इनकी दक्षता
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    विश्व-स्तर की है।
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    इसका इस्तेमाल किया जाना ज़रूरी है,
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    और इसे बाहरी दुनिया के सामने लाना ज़रूरी है --
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    कि ये ज्ञान और कारीगरी
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    आज भी काम की है।
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    तो कॉलेज में
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    महात्मा गाँधी की जीवन-शैली और काम के तरीके का पालन होता है।
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    आप ज़मीन पर खाते हैं, ज़मीन पर सोते हैं, ज़मीन पर ही चलते हैं।
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    कोई समझौता, लिखित दस्तावेज़ नहीं है।
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    आप मेरे साथ २० साल रह सकते है, और कल जा भी सकते हैं।
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    और किसी को भी $१०० महीने से ज्यादा नहीं मिलता है।
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    यदि आप पैसा चाहते हैं, आप बेयरफ़ुट कॉलेज मत आइये।
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    आप काम और चुनौती के लिये आना चाहते हैं,
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    आप बेयरफ़ुट आ सकते हैं।
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    यहाँ हम चाहते हैं कि आप आयें और अपने आइडिया पर काम करें।
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    चाहे जो भी आपका आइडिया हो, आ कर उस पर काम कीजिये।
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    कोई फ़र्क नहीं पडता यदि आप फ़ेल हो गये तो।
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    गिर कर, चोट खा कर, आप फ़िर शुरुवात कीजिये।
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    ये शायद अकेला ऐसा कॉलेज हैं जहाँ गुरु शिष्य है
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    और शिष्य गुरु है।
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    और अकेला ऐसा कॉलेज जहाँ हम सर्टिफ़िकेट नहीं देते हैं।
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    जिस समुदाय की आप सेवा करते हैं, वो ही आपको मान्यता देता है।
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    आपको दीवार पर काग़ज़ का टुकडा लटकाने की ज़रूरत नहीं है,
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    ये दिखाने के लिये कि आप इंजीनियर हैं।
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    तो जब मैंने ये सब कहा,
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    तो उन्होंने पूछा, "ठीक है, बताओ क्या संभव है. तुम क्या कर रहे हो?
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    ये सिर्फ़ बतकही है जब तक तुम कुछ कर के नहीं दिखाते।"
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    तो हमने पहला बेयरफ़ुट कॉलेज बनाया
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    सन १९८६ में।
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    इसे १२ बेयरफ़ुट आर्किटेक्टों ने बनाया था,
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    जो कि अनपढ थे,
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    $1.5 प्रति वर्ग फ़ुट की कीमत में।
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    १५० लोग यहाँ रहते थे, और काम करते थे।
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    उन्हें २००२ में आर्किटेक्चर का आगा ख़ान पुरस्कार मिला।
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    पर उन्हें लगता था, कि इस के पीछे किसे मान्यता प्राप्त आर्किटेक्ट का हाथ ज़रूर होगा।
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    मैने कहा, "हाँ, उन्होंने नक्शे बनाये थे,
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    मगर बेयरफ़ुट आर्किटेक्टों ने असल में कॉलेज का निर्माण किया।"
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    शायद हम ही ऐसे लोग होंगे जिन्होंने $50,000 का पुरस्कार लौटा दिया,
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    क्योंकि उन्हें हम पर विश्वास नहीं हुआ,
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    और हमें लगा जैसे वो लोग कलंक लगा रहे हैं,
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    तिलोनिया के बेयरफ़ुट आर्किटेक्टों के नाम पर।
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    मैनें एक जंगल-अफ़सर से पूछा --
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    मान्यता प्राप्त, पढे-लिखे अफ़सर से --
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    मैने कहा, "इस जगह पर क्या बनाया जा सकता है?
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    उसने मिट्टी पर एक नज़र डाली और कहा, "यहाँ कुछ नहीं हो सकता।
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    जगह इस लायक नहीं है।
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    न पानी है, मिट्टी पथरीली है।"
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    मैं कठिन परिस्थिति में था।
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    और मैने कहा, "ठीक है, मैं गाँव के बूढे के पास जा कर
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    पूछूँगा कि, 'यहाँ क्या उगाना चाहिये?'"
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    उसने मेरी ओर देखा और कहा,
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    "तुम ये बनाओ, वो बनाओ, ये लगाओ, और काम हो जायेगा।"
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    और वो जगह आज ऐसी दिखती है।
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    मैं छत पर गया,
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    और सारी औरतों ने कहा, "यहाँ से जाओ।
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    आदमी नहीं चाहिये क्योंकि हम इस तरकीब को आदमियों को नहीं बताना चाहते।
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    ये छत को वाटरप्रूफ़ करने की तकनीक है।"
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    (हँसी)
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    इसमें थोडा गुड है, थोडी पेशाब है
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    और ऐसी कई चीजें जो मुझे नहीं पता है।
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    लेकिन इसमें पानी नहीं चूता है।
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    १९८६ से आज तक, पानी नहीं चुआ है।
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    इस तकनीक को, औरतें मर्दों को नहीं बताती हैं।
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    (हँसी)
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    ये अकेला ऐसा कॉलेज है
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    जो पूर्णतः सौर-ऊर्जा पर चलता है।
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    सूरज से ही सारी बिजली आती है।
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    छत पर ४५ किलोवाट के पैनल लगे हैं।
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    और सब कुछ अगले २५ सालों तक सिर्फ़ सौर-ऊर्जा से चल सकता है।
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    तो जब तक दुनिया में सूरज है,
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    हमें बिजली की कोई समस्या नहीं होगी।
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    मगर सबसे बढिया बात ये है कि
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    इसे स्थापित किया था
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    एक पुजारी ने, एक हिंदु पुजारी ने,
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    जो सिर्फ़ आठवीं कक्षा तक पढे हैं --
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    कभी स्कूल नहीं गये, कभी कॉलेज नहीं गये।
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    इन्हें सौर-तकनीकों के बारे में ज्यादा जानकारी है
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    विश्व के किसी भी और व्यक्ति के मुकाबले, ये मेरी गारंटी है।
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    भोजन, यदि आप बेयरफ़ुट कॉलेज में आयेंगे,
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    आपको सौर-ऊर्जा से बना मिलेगा।
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    मगर जिन लोगों ने उस सौर-चूल्हे को बनाया है,
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    वो स्त्रियाँ हैं,
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    अनपढ स्त्रियाँ,
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    जो अपने हाथ से
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    अत्यंत जटिल सौर-चूल्हा बनाती हैं।
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    ये परवलय (पैराबोला) आकारा का बिना रसोइये का चूल्हा है।
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    दुर्भाग्य से, ये आधी जरमन हैं,
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    वो इतनी सूक्ष्मता से नाप-झोक करती हैं।
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    (हँसी)
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    आपको भारतीय महिलायें इतनी सूक्ष्म नाप-तोल करती नहीं मिलेंगी।
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    बिलकुल आखिरी इंच तक,
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    वो उस चूल्हे को बना सकती हैं।
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    और यहाँ साठ व्यक्ति दिन में दो बार
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    सौर-चूल्हे का खाना खाते हैं।
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    हमारे यहाँ एक दंत-चिकित्सक हैं --
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    वो दादी-माँ है, अनपढ है, और दाँतों की डाक्टर हैं।
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    वो दाँतों की देखभाल करती हैं
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    करीब ७००० बच्चों के।
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    बेयरफ़ुट टेक्नॉलाजी:
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    ये १९८६ है - किसी इंजीनियर, या आर्किटेक्ट इस बारें में नहीं सोचा --
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    मगर हम बारिश के पानी को छत से इकट्ठा कर रहे थे।
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    बहुत ही कम पानी बर्बाद होता है।
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    सारी छतों को ज़मीन के नीचे बने
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    ४००,००० लीटर के टैंक से जोडा हुआ है।
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    और पानी बर्बाद नहीं होता।
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    यदि हमें चार साल लगातार भी सूखे का सामना करना पडे, तो भी हमारे पास पानी होगा,
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    क्योंकि हम बारिश के पानी को इकट्ठा करते हैं।
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    ६० % बच्चे स्कूल इसलिये नहीं जा पाते,
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    क्योंकि उन्हें जानवरों की देखभाल करनी होती है --
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    भेड, बकरी --
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    घर के काम।
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    तो हमने सोचा कि एक स्कूल खोला जाये
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    रात में, बच्चो को पढाने के लिये।
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    क्योंकि तिलोनिया के रात के स्कूलों में
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    ७५,००० बच्चों से ज्यादा रात को पढ चुके है,
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    क्योंकि ये बच्चों की सहूलियत के लिये है;
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    ये शिक्षकों की सहूलियत के लिये नही है।
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    और हम यहाँ क्या पढाते हैं?
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    प्रजातंत्र, नागरिकता,
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    अपनी ज़मीनों की नाप कैसे करें,
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    अगर आपको पुलिस पकड ले, तो क्या करें,
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    यदि आपका जानवर बीमार हो जाये, तो क्या करें।
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    यही हम रात के स्कूलों में पढाते हैं।
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    क्योंकि सारे स्कूल मे सौर-ऊर्जा है।
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    हर पाँच साल में,
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    हम चुनाव करते हैं।
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    ६ से ले कर १४ साल तक के बच्चे
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    इस प्रजातांत्रिक प्रणाली में हिस्सा लेते हैं,
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    और वो एक प्रधानमंत्री चुनते हैं।
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    प्रधानमंत्री की उम्र है १२ वर्ष।
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    वो सुबह २० बकरियों की देखभाल करती है,
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    मगर शाम को वो प्रधानमंत्री हो जाती है।
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    उसका अपना मंत्रिमंडल है,
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    शिक्षा मंत्री, बिजली मंत्री, स्वास्थ-मंत्री।
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    और वो असल में देखभाल करते है
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    करीब १५० स्कूलों के ७००० बच्चों की।
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    पाँच साल पहले उसे विश्व बालक पुरस्कार से नवाजा गया था,
  • 10:36 - 10:38
    और वो स्वीडन गयी थी।
  • 10:38 - 10:40
    पहली बार गाँव से बाहर निकली थी।
  • 10:40 - 10:43
    कभी स्वीडन देखा नहीं।
  • 10:43 - 10:45
    लेकिन आसपास की चीज़ों से ज़रा भी प्रभावित नहीं।
  • 10:45 - 10:47
    और स्वीडन की रानी, जो वहीं थीं,
  • 10:47 - 10:50
    मेरी ओर मुडी, और कहा, "क्या आप इस बच्ची से पूछेंगे कि इतना आत्म-विश्वास कहाँ से आता है?
  • 10:50 - 10:52
    ये केवल १२ साल की है,
  • 10:52 - 10:55
    और किसी से प्रभावित नहीं होती।"
  • 10:55 - 10:58
    और वो लडकी, जो उनके बायें ओर है,
  • 10:58 - 11:01
    मेरी ओर मुडी, और रानी की आँखों में आँखे डाल कर
  • 11:01 - 11:04
    बोली, "कृप्या इन्हें बता दीजिये कि मैं प्रधानमंत्री हूँ।"
  • 11:04 - 11:06
    (हँसी)
  • 11:06 - 11:14
    (अभिवादन)
  • 11:14 - 11:18
    जहाँ साक्षरता बहुत कम है,
  • 11:18 - 11:21
    हम कठपुतलियों का इस्तेमाल करते हैं।
  • 11:21 - 11:24
    कठपुतिलियों के सहारे हम अपनी बात रखते हैं।
  • 11:30 - 11:33
    हमारे पास जोखिम चाचा है,
  • 11:33 - 11:37
    जो करीब ३०० साल के हैं।
  • 11:37 - 11:40
    ये मेरे मनोवैज्ञानिक हैं। ये ही मेरे शिक्षक हैं।
  • 11:40 - 11:42
    यही मेरे चिकित्सक हैं। यही मेरे वकील हैं।
  • 11:42 - 11:44
    यही मुझे दान देते हैं।
  • 11:44 - 11:46
    यही धन भी जुटाते हैं,
  • 11:46 - 11:49
    मेरे झगडे भी सुलझाते हैं।
  • 11:49 - 11:52
    ये मेरे गाँव की समस्या का समाधान करते हैं।
  • 11:52 - 11:54
    यदि गाँव में तनाव हो,
  • 11:54 - 11:56
    या फ़िर स्कूलों में हाज़िरी कम हो रही हो
  • 11:56 - 11:58
    और अध्यापकों और अभिभावकों के बीच मनमुटाव हो,
  • 11:58 - 12:01
    तो ये कठपुतली अध्यापकों और अभिभावकों को सारे गाँव के सामने बुलाती है
  • 12:01 - 12:03
    और कहती है, "हाथ मिलाइये।
  • 12:03 - 12:05
    हाज़िरी कम नहीं होनी चाहिये।"
  • 12:07 - 12:09
    ये कठपुतलियाँ
  • 12:09 - 12:11
    विश्व-बैंक की बेकार पडी रिपोर्टों से बनी हैं।
  • 12:11 - 12:13
    (हँसी)
  • 12:13 - 12:20
    (अभिवादन)
  • 12:20 - 12:24
    तो इस विकेंद्रित, और पारदर्शी तरीके से,
  • 12:24 - 12:26
    गाँवों को सौर-ऊर्जा देने के तरीके से,
  • 12:26 - 12:28
    हमने सारे भारत में काम किया है
  • 12:28 - 12:31
    लद्दाख से ले कर भूटान तक --
  • 12:33 - 12:35
    सब जगहों पर सौर-ऊर्जा
  • 12:35 - 12:38
    उन लोगों द्वारा लायी जिन्हें प्रशिक्षण दिया गया।
  • 12:39 - 12:41
    और हम लद्दाख गये,
  • 12:41 - 12:43
    और हमने एक महिला से पूछा --
  • 12:43 - 12:46
    कि आप, -४० डिग्री सेंटिग्रेट पर, छत से बाहर आयी हैं,
  • 12:46 - 12:49
    क्योंकि बर्फ़ से आजू-बाजू के रास्ते बंद है --
  • 12:49 - 12:51
    और हमने इस से पूछा,
  • 12:51 - 12:53
    "आपको क्या लाभ हुआ
  • 12:53 - 12:55
    सौर ऊर्जा से?"
  • 12:55 - 12:57
    और एक मिनट तक सोचने के बाद, उसने कहा,
  • 12:57 - 13:01
    "ये पहली बार है कि मैं सर्दियों में अपने पति का चेहरा देख पायी।"
  • 13:01 - 13:04
    (हँसी)
  • 13:04 - 13:06
    हम अफ़्गानिस्तान गये।
  • 13:06 - 13:11
    भारत में हमेने एक बात ये सीखी कि
  • 13:11 - 13:15
    मर्दों को आप कुछ नही सिखा सकते।
  • 13:15 - 13:19
    (हँसी)
  • 13:19 - 13:21
    आदमी उछ्छंखल होते हैं,
  • 13:21 - 13:23
    आदमी महत्वाकांक्षी होते हैं,
  • 13:23 - 13:26
    वो एक जगह टिक कर बैठना नहीं पाते,
  • 13:26 - 13:28
    और उन सबको एक प्रमाण-पत्र चाहिये होता है।
  • 13:28 - 13:30
    (हँसी)
  • 13:30 - 13:33
    दुनिया भर में, यही चाहत है
  • 13:33 - 13:35
    आदमियों की, एक प्रमाण-पत्र चाहिये।
  • 13:35 - 13:38
    क्यों? क्योंकि वो गाँव छोडना चाहते हैं,
  • 13:38 - 13:41
    और शहर जाना चाहते हैं, नौकरी करने के लिये।
  • 13:41 - 13:44
    तो हमने इस का एक बेहतरीन तरीका निकाला"
  • 13:44 - 13:46
    बूढी दादियों को प्रशिक्षण देने का।
  • 13:48 - 13:50
    अपनी बात दूर दूर तक फ़ैलाने का
  • 13:50 - 13:52
    आज की दुनिया में क्या तरीका है?
  • 13:52 - 13:54
    टेलीविजन? नहीं।
  • 13:54 - 13:56
    टेलीग्राफ़? नहीं।
  • 13:56 - 13:58
    टेलीफ़ोन? नहीं।
  • 13:58 - 14:00
    एक स्त्री को बता दीजिये बस!
  • 14:00 - 14:03
    (हँसी)
  • 14:03 - 14:07
    (अभिवादन)
  • 14:07 - 14:09
    तो हम पहली बार अफ़्गानिस्तान गयी,
  • 14:09 - 14:11
    और हमने तीन स्त्रियों को चुना
  • 14:11 - 14:13
    और कहा, "हम इन्हें भारत ले जाना चाहते हैं।"
  • 14:13 - 14:15
    उन्होंने कहा, "असंभव। ये तो अपने कमरे तक से बाहर नही निकलती हैं,
  • 14:15 - 14:17
    और तुम भारत ले जाने की बात करते हो।"
  • 14:17 - 14:19
    मैने कहा, "मैं एक छूट दे सकता हूँ। मैं उनके पतियों को भी साथ ले जाऊँगा।"
  • 14:19 - 14:21
    तो मैं उनके पतियों को भी ली आया।
  • 14:21 - 14:24
    ज़ाहिर है, औरतें आदमियों से कहीं ज्यादा बुद्धिमान होती हैं।
  • 14:24 - 14:26
    छः महीने के भीतर,
  • 14:26 - 14:29
    हम इन औरतों को कैसे बदल दें?
  • 14:29 - 14:31
    इशारों की भाषा से।
  • 14:31 - 14:34
    तब आपक लिखित चीज़ों पर भरोसा नहीं करते।
  • 14:34 - 14:36
    बोलचाल की भाषा से भी काम नहीं बनता।
  • 14:36 - 14:39
    आप इशारों की भाषा इस्तेमाल करते हैं।
  • 14:39 - 14:41
    और छः महीनों में,
  • 14:41 - 14:45
    वो सौर-इंजीनियर बन गयीं।
  • 14:45 - 14:48
    वो वापस जा कर अपने गाँव में सौर-बिजली ले आयीं।
  • 14:48 - 14:50
    इस स्त्री ने वापस जा कर,
  • 14:50 - 14:53
    पहली बार किसी गाँव में सौर-बिजली लगायी,
  • 14:53 - 14:55
    एक कारखाना लगाया --
  • 14:55 - 14:58
    अफ़्गानिस्तान का पहला गाँव जहाँ सौर-बिजली आयी
  • 14:58 - 15:01
    तीन औरतों द्वारा किया गया था।
  • 15:01 - 15:03
    ये स्त्री
  • 15:03 - 15:05
    एक महान दादी माँ है।
  • 15:05 - 15:10
    ५५ साल की उम्र में इसने अफ़गानिस्तान में २०० घरों को सौर-बिजली दी है।
  • 15:10 - 15:13
    और ये खराब भी नहीं हुई है।
  • 15:13 - 15:16
    ये असल में अफ़्गानिस्तान के इंजीनियरिंग विभाग गयी,
  • 15:16 - 15:18
    और वहाँ के मुख्य-अधिकारी को बता कर आयी
  • 15:18 - 15:20
    कि ए.सी. और डी.सी. में फ़र्क क्या होता है।
  • 15:20 - 15:22
    उसे नहीं पता था।
  • 15:22 - 15:25
    इन तीन औरतो ने २७ और औरतों को प्रशिक्षण दिया है,
  • 15:25 - 15:28
    और अफ़्गानिस्तान के १०० गाँवों में सौर-बिजली लगवा दी है।
  • 15:28 - 15:31
    हम अफ़्रीका गये,
  • 15:31 - 15:33
    और हमने यहे किया।
  • 15:33 - 15:36
    ये सारी औरतें जो एक मेज पर बैठी हैं, अलग अलग आठ देशों की हैं,
  • 15:36 - 15:39
    सब बतिया रही हैं, मगर बिना एक भी शब्द समझे,
  • 15:39 - 15:41
    क्योंकि वो सब अलग अलग भाषा बोल रही हैं।
  • 15:41 - 15:43
    मगर इनकी भाव-भंगिमायें गजब की हैं।
  • 15:43 - 15:45
    ये एक दूसरे से बतिया भी रही है,
  • 15:45 - 15:47
    और सौर-इंजीनियर बन रही हैं।
  • 15:47 - 15:50
    मैं सियरा ल्योन ग्याअ,
  • 15:50 - 15:53
    और वहाँ एक मंत्री से मिला जो रात के घनघोर अँधेरे में ड्राइविंग कर रहे थे --
  • 15:53 - 15:55
    एक गाँव पहुँचा।
  • 15:55 - 15:58
    वापस आया, गाँव पहुँचा, और कहा, "इस की क्या कहानी है?"
  • 15:58 - 16:00
    उन्होंने कहा, "इन दो दादी-मांओं ने..."
  • 16:00 - 16:03
    "दादियों ने?" मंत्री साहब को भरोसा ही नहीं हुआ।
  • 16:03 - 16:06
    "वो कहाँ गयी थी?" " भारत से लौट कर आयी हैं।"
  • 16:06 - 16:08
    वो सीखे राष्ट्रपति के पास गया।
  • 16:08 - 16:10
    उसने कहा, "आपको पता है कि सियरा ल्योन में एक सौर-बिजली युक्त गाँव है?"
  • 16:10 - 16:13
    जवाब मिला, "नहीं।" अगले दिन आधे से ज्यादा मंत्रिमंडल इन औरतों से मिलने आ गया।
  • 16:13 - 16:15
    "कहानी क्या है?"
  • 16:15 - 16:19
    तो उन्होंने मुझे बुलाया और कहा, "क्या आप मेरे लिये १५० दादियों को प्रशिक्षण दे सकते हैं?"
  • 16:19 - 16:21
    मैने कहा, "जी नहीं, महामहिम।
  • 16:21 - 16:23
    मगर ये दे सकती हैं। ये दादियाँ।"
  • 16:23 - 16:26
    तो उन्होंने सियरा ल्योन में मेरे लिये पहला बेयरफ़ुट ट्रेनिंग सेंटर बनवाया।
  • 16:26 - 16:30
    और १५० दादियं को सियरा ल्योन में प्रशिक्षण मिल चुका है।
  • 16:30 - 16:32
    गाम्बिया:
  • 16:32 - 16:35
    हम गाम्बिया में एक दादी माँ को चुनने के लिये गये।
  • 16:35 - 16:37
    एक गाँव में पहुँचे।
  • 16:37 - 16:39
    मुझे पता था कि मैं किस स्त्री को चुनना चाहता हूँ।
  • 16:39 - 16:42
    सब लोग साथ जुटे और उन्होंने कहा, " इन दो स्त्रियों को ले जायें।"
  • 16:42 - 16:44
    मैने कहा, "नहीं, मैं तो उसे ले जाना चाहता हूँ।"
  • 16:44 - 16:46
    उन्होंने कहा, "क्यों? उसे तो भाषा भी नहीं आती। आप उसे जानते नहीं हैं।"
  • 16:46 - 16:49
    मैने कहा, "मुझे उसकी भाव-भंगिमायें और बात करने का तरीका अच्छा लगता है।"
  • 16:49 - 16:51
    "उसका पति नहीं मानेगा: नहीं होगा।"
  • 16:51 - 16:53
    तो पति को बुलाया गया, वो आया,
  • 16:53 - 16:56
    अकड से चलता हुआ, नेताओं की तरह, मोबाइल लहराता हुआ। "नही होगा।"
  • 16:56 - 16:59
    "क्यों नहीं? "उसे देखो, वो कितनी सुंदर है।"
  • 16:59 - 17:01
    मैने कहा, "हाँ, बहुत सुंदर है।"
  • 17:01 - 17:03
    "अगर किसी भारतीय आदमी के साथ भाग गयी तो?"
  • 17:03 - 17:05
    ये उसका सबसे बडा डर था।
  • 17:05 - 17:08
    मैने कहा, "वो खुश रहेगी, और तुम्हें मोबाइल पर कॉल करेगी।"
  • 17:08 - 17:11
    वो दादी माँ की तरह गयी
  • 17:11 - 17:13
    और एक शेरनी बन कर वापस लौटी।
  • 17:13 - 17:15
    वो हवाई-जहाज से बाहर निकली और
  • 17:15 - 17:18
    प्रेस से ऐसे बतियाने लगी जैसे सदा से यही करती रही हो।
  • 17:18 - 17:21
    उसने राष्ट्रीय प्रेस को सम्हाला,
  • 17:21 - 17:23
    और वो प्रसिद्ध हो गयी।
  • 17:23 - 17:26
    और जब मैं छः महीने बाद उस से मिला, मैने कहा, "तुम्हारा पति कहाँ है?"
  • 17:26 - 17:28
    "अरे, कहीं होगा, उस से क्या फ़र्क पडता है।"
  • 17:28 - 17:30
    (हँसी)
  • 17:30 - 17:32
    सफ़लता की कहानी।
  • 17:32 - 17:34
    (हँसी)
  • 17:34 - 17:37
    (अभिवादन)
  • 17:37 - 17:43
    मैं अपनी बात ये कह कर ख्त्म करना चाहूँगा
  • 17:43 - 17:47
    कि मुझे लगता है कि समाधान आपके अंदर ही होता है।
  • 17:47 - 17:49
    समस्या का हल अपने अंदर ढूँढिये।
  • 17:49 - 17:52
    और उन लोगों की बात सुनिये जो आप से पहले समाधान कर चुके हैं
  • 17:52 - 17:54
    सारी दुनिया में ऐसे लोग मौजूद हैं।
  • 17:54 - 17:56
    चिंता ही मत करिये।
  • 17:56 - 17:59
    विश्व बैंक की बात सुनने से बेहतर है कि आप ज़मीनी लोगों की बातें सुनें।
  • 17:59 - 18:02
    उनके पास दुनिया भर के हल हैं।
  • 18:02 - 18:05
    मैं अंत में महात्मा गाँधी की कही बात दोहराना चाहता हूँ।
  • 18:05 - 18:07
    "पहली वो आपको अनसुना कर देते हैं,
  • 18:07 - 18:09
    फ़िर वो आप पर हँसते हैं,
  • 18:09 - 18:11
    फ़िर वो आपसे लडते हैं,
  • 18:11 - 18:13
    और फ़िर आप जीते जाते हैं।"
  • 18:13 - 18:15
    धन्यवाद।
  • 18:15 - 18:46
    (अभिवादन)
Title:
नंगे पैरों के आंदोलन से मिली सीख
Speaker:
बंकर रॉय
Description:

भारत के राजस्थान में, एक ख़ास-ओ-ख़ास विद्यालय है जो ग्रामीण महिलाओं और पुरुषों को शिक्षित करता है -- ज्यादातर अपढ लोगों को -- और उन्हे बदलता है सोलर इंजिनियरों, कलाकारों, दाँत के डॉक्टरों, मेडिकल डॉक्टरों में, और उनके ख़ुद के गाँवों में. इसे बेयरफ़ुट कॉलेज के नाम से जाना जाता है, और इसके स्थापक, बंकर रॉय, समझा रहे हैं ये कैसे काम करता है।

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Video Language:
English
Team:
closed TED
Project:
TEDTalks
Duration:
18:47
Helene Batt edited Hindi subtitles for Learning from a barefoot movement
Helene Batt edited Hindi subtitles for Learning from a barefoot movement
Mohammad Tofighi edited Hindi subtitles for Learning from a barefoot movement
Swapnil Dixit added a translation

Hindi subtitles

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