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चलिये आपको एक दूसरी ही दुनिया में ले चलूँ।
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और आपको सुनाऊँ एक
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४५ साल पुरानी प्रेम-कथा
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गरीब लोगों से प्रेम की कथा,
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जो कि प्रतिदिन एक डॉलर से भी कम कमाते हैं।
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मैं एक बेहद संभ्रांत, खडूस,
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महँगे कॉलेज में पढा, भारत में,
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और उसने मुझे लगभग पूर्णतः बरबाद कर ही दिया था।
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सब फ़िक्स था -
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मैं डिप्लोमेट, शिक्षक, या डॉक्टर बनता --
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सब जैसे प्लेट में परोसा पडा था।
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साथ ही, मुझे देख कर ऐसा नहीं लगेगा, मैं स्क्वैश के खेल में भारत का राष्ट्रीय चैंपियन था
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तीन साल तक लगातार।
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(हँसी)
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सारी दुनिया के अवसर मेरे सामने थे।
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सब जैसे मेरे कदमों में पडा हो।
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मैं कुछ गडबड कर ही नहीं सकता था।
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और तब, यूँही, जिज्ञासावश मैने सोचा कि
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मैं गाँव जाकर, रहना और काम करना चाहता था
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बस समझने के लिये कि गाँव कैसा होता है।
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इसलिये १९६५ में,
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मैं बिहार गया - वहाँ अब तक का सबसे भीषण अकाल पडा था,
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और मैनें भूख और मौत का नंगा नाच देखा,
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पहली बार ठीक मेरे सामने लोग भूख से मर रहे थे।
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उस अनुभव ने मेरा जीवन बदल डाला।
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मैं वापस आया,
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और मैने अपनी माँ से कहा,
-
"मैं एक गाँव में रहना और काम करना चाहता हूँ।"
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माँ कोमा में चली गयी।
-
(हँसी)
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"ये क्या कह रहा है?
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सारी दुनिया के अवसर तेरे सामने हैं, और भरी थाली में लात मार कर तू
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एक गाँव में रहना और काम करना चाहता है?
-
मुझे समझ नहीं आ रहा है कि आखिर तुझे हुआ क्या है?"
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मैनें कहा, "नहीं, मुझे सर्वश्रेष्ठ शिक्षा मिली है।
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उसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया है।
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और मैं कुछ वापस देना चाहता हूँ
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अपने ही तरीके से।"
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"पर तू आखिर एक गाँव में करेगा क्या?
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न रोजगार है, न पैसा है,
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न सुरक्षा, न ही कोई भविष्य।"
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मैने कहा, "मै गाँव में रह कर
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पाँच साल तक कुँए खोदना चाहता हूँ।"
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"पाँच साल तक कुँए खोदेगा?
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तू भारत के सबसे महँगे स्कूल और कॉलेज में पढा है,
-
और अब पाँच साल तक कुँए खोदना चाहता है?"
-
उन्होंने मुझसे बहुत लम्बे समय तक बात तक नही की,
-
क्योंकि उन्हें लगा कि मैंने अपने खानदान की नाक कटवा दी है।
-
लेकिन इसके साथ ही,
-
मुझे सीखने को मिला दुनिया के सबसे बेहतरीन ज्ञान और कौशल
-
जो बहुत गरीब लोगों के पास होते हैं,
-
मगर कभी भी हमारे सामने नहीं लाये जाते --
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जो परिचय और सम्मान तक को मोहताज़ रहते हैं,
-
और जिन्हें कभी बडे रूप में इस्तेमाल ही नहीं किया जाता।
-
और मैनें सोचा कि मैं बेयरफ़ुट कॉलेज की शुरुवात करूँगा --
-
एक कॉलेज केवल गरीबों के लिये।
-
गरीब लोग क्या सोचते है, ये मुख्य मसला था,
-
यही इस कॉलेज की नीव भी थी।
-
इस गाँव में यह मेरा पहला दिन था।
-
बडे-बूढे मेरे पास आये
-
और पूछा, "क्या पुलिस से भाग कर छुपे हो?"
-
मैने कहा, "नहीं।"
-
(हँसी)
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"परीक्षा में फ़ेल हो गये हो?"
-
मैने कहा, "नहीं।"
-
"तो सरकारी नौकरी नहीं मिल पायी होगी?" मैनें कहा, "वो भी नहीं।"
-
"तब यहाँ क्या कर रहे हो?
-
यहाँ क्यों आये हो?
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भारत की शिक्षा व्यवस्था
-
तो आपको पेरिस और नई-दिल्ली और ज़ुरिख़ के ख़्वाब दिखाती है;
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तुम इस गाँव में क्या कर रहे हो?
-
तुम कुछ तो ज़रूर छिपा रहे हो हमसे?"
-
मैने कहा, "नहीं, मैं तो एक कॉलेज खोलने आया हूँ,
-
केवल गरीबों के लिये।
-
गरीब लोगों को जो ज़रूरी लगता है, वही इस कॉलेज में होगा।"
-
तो बुज़ुर्गों नें मुझे बहुत नेक और सार्थक सलाह दी।
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उन्होंने कहा, "कृपा करके,
-
किसी भी डिग्री-होल्डर या मान्यता-प्राप्त प्रशिक्षित व्यक्ति को
-
अपने कॉलेज में मत लाना।"
-
लिहाज़ा, ये भारत का इकलौता कॉलेज है
-
जहाँ, यदि आप पी.एच.डी. या मास्टर हैं,
-
तो आपको नाकारा माना जायेगा।
-
आपको या तो पढाई-छोड, या भगोडा, या निलंबित होना होगा
-
हमारे कॉलेज में आने के लिये।
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आपको अपने हाथों से काम करना होगा।
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आप को मेहनत की इज़्जत सीखनी होगी।
-
आपको ये दिखाना होगा कि आपके पास ऐसा हुनर है जिस से कि लोगों का भला हो सकता है
-
और आप समाज को कोई सेवा प्रदान कर सकते हैं।
-
तो हमने बेयरफ़ुट कॉलेज की स्थापना की,
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और हमने पेशेवर होने की नई परिभाषा गढी।
-
आख़िर पेशेवर किसको कहा जाये?
-
एक पेशेवर व्यक्ति वो है
-
जिसके पास हुनर हो,
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आत्म-विश्वास हो, और भरोसा हो।
-
ज़मीन-तले पानी का पता लगाने वाला पेशेवर है।
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एक पारंपरिक दाई
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एक पेशेवर है।
-
एक कढाई गढने वाला पेशेवर है।
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सारी दुनिया में ऐसे पेशेवर भरे पडे हैं।
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ये आपको दुनिया के किसी भी दूर-दराज़ गाँव में मिल जायेंगे।
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और हमें लगा कि इन लोगों को मुख्यधारा में आना चाहिये
-
और दिखाना चाहिये कि इनका ज्ञान और इनकी दक्षता
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विश्व-स्तर की है।
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इसका इस्तेमाल किया जाना ज़रूरी है,
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और इसे बाहरी दुनिया के सामने लाना ज़रूरी है --
-
कि ये ज्ञान और कारीगरी
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आज भी काम की है।
-
तो कॉलेज में
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महात्मा गाँधी की जीवन-शैली और काम के तरीके का पालन होता है।
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आप ज़मीन पर खाते हैं, ज़मीन पर सोते हैं, ज़मीन पर ही चलते हैं।
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कोई समझौता, लिखित दस्तावेज़ नहीं है।
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आप मेरे साथ २० साल रह सकते है, और कल जा भी सकते हैं।
-
और किसी को भी $१०० महीने से ज्यादा नहीं मिलता है।
-
यदि आप पैसा चाहते हैं, आप बेयरफ़ुट कॉलेज मत आइये।
-
आप काम और चुनौती के लिये आना चाहते हैं,
-
आप बेयरफ़ुट आ सकते हैं।
-
यहाँ हम चाहते हैं कि आप आयें और अपने आइडिया पर काम करें।
-
चाहे जो भी आपका आइडिया हो, आ कर उस पर काम कीजिये।
-
कोई फ़र्क नहीं पडता यदि आप फ़ेल हो गये तो।
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गिर कर, चोट खा कर, आप फ़िर शुरुवात कीजिये।
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ये शायद अकेला ऐसा कॉलेज हैं जहाँ गुरु शिष्य है
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और शिष्य गुरु है।
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और अकेला ऐसा कॉलेज जहाँ हम सर्टिफ़िकेट नहीं देते हैं।
-
जिस समुदाय की आप सेवा करते हैं, वो ही आपको मान्यता देता है।
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आपको दीवार पर काग़ज़ का टुकडा लटकाने की ज़रूरत नहीं है,
-
ये दिखाने के लिये कि आप इंजीनियर हैं।
-
तो जब मैंने ये सब कहा,
-
तो उन्होंने पूछा, "ठीक है, बताओ क्या संभव है. तुम क्या कर रहे हो?
-
ये सिर्फ़ बतकही है जब तक तुम कुछ कर के नहीं दिखाते।"
-
तो हमने पहला बेयरफ़ुट कॉलेज बनाया
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सन १९८६ में।
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इसे १२ बेयरफ़ुट आर्किटेक्टों ने बनाया था,
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जो कि अनपढ थे,
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$1.5 प्रति वर्ग फ़ुट की कीमत में।
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१५० लोग यहाँ रहते थे, और काम करते थे।
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उन्हें २००२ में आर्किटेक्चर का आगा ख़ान पुरस्कार मिला।
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पर उन्हें लगता था, कि इस के पीछे किसे मान्यता प्राप्त आर्किटेक्ट का हाथ ज़रूर होगा।
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मैने कहा, "हाँ, उन्होंने नक्शे बनाये थे,
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मगर बेयरफ़ुट आर्किटेक्टों ने असल में कॉलेज का निर्माण किया।"
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शायद हम ही ऐसे लोग होंगे जिन्होंने $50,000 का पुरस्कार लौटा दिया,
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क्योंकि उन्हें हम पर विश्वास नहीं हुआ,
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और हमें लगा जैसे वो लोग कलंक लगा रहे हैं,
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तिलोनिया के बेयरफ़ुट आर्किटेक्टों के नाम पर।
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मैनें एक जंगल-अफ़सर से पूछा --
-
मान्यता प्राप्त, पढे-लिखे अफ़सर से --
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मैने कहा, "इस जगह पर क्या बनाया जा सकता है?
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उसने मिट्टी पर एक नज़र डाली और कहा, "यहाँ कुछ नहीं हो सकता।
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जगह इस लायक नहीं है।
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न पानी है, मिट्टी पथरीली है।"
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मैं कठिन परिस्थिति में था।
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और मैने कहा, "ठीक है, मैं गाँव के बूढे के पास जा कर
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पूछूँगा कि, 'यहाँ क्या उगाना चाहिये?'"
-
उसने मेरी ओर देखा और कहा,
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"तुम ये बनाओ, वो बनाओ, ये लगाओ, और काम हो जायेगा।"
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और वो जगह आज ऐसी दिखती है।
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मैं छत पर गया,
-
और सारी औरतों ने कहा, "यहाँ से जाओ।
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आदमी नहीं चाहिये क्योंकि हम इस तरकीब को आदमियों को नहीं बताना चाहते।
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ये छत को वाटरप्रूफ़ करने की तकनीक है।"
-
(हँसी)
-
इसमें थोडा गुड है, थोडी पेशाब है
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और ऐसी कई चीजें जो मुझे नहीं पता है।
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लेकिन इसमें पानी नहीं चूता है।
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१९८६ से आज तक, पानी नहीं चुआ है।
-
इस तकनीक को, औरतें मर्दों को नहीं बताती हैं।
-
(हँसी)
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ये अकेला ऐसा कॉलेज है
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जो पूर्णतः सौर-ऊर्जा पर चलता है।
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सूरज से ही सारी बिजली आती है।
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छत पर ४५ किलोवाट के पैनल लगे हैं।
-
और सब कुछ अगले २५ सालों तक सिर्फ़ सौर-ऊर्जा से चल सकता है।
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तो जब तक दुनिया में सूरज है,
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हमें बिजली की कोई समस्या नहीं होगी।
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मगर सबसे बढिया बात ये है कि
-
इसे स्थापित किया था
-
एक पुजारी ने, एक हिंदु पुजारी ने,
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जो सिर्फ़ आठवीं कक्षा तक पढे हैं --
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कभी स्कूल नहीं गये, कभी कॉलेज नहीं गये।
-
इन्हें सौर-तकनीकों के बारे में ज्यादा जानकारी है
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विश्व के किसी भी और व्यक्ति के मुकाबले, ये मेरी गारंटी है।
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भोजन, यदि आप बेयरफ़ुट कॉलेज में आयेंगे,
-
आपको सौर-ऊर्जा से बना मिलेगा।
-
मगर जिन लोगों ने उस सौर-चूल्हे को बनाया है,
-
वो स्त्रियाँ हैं,
-
अनपढ स्त्रियाँ,
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जो अपने हाथ से
-
अत्यंत जटिल सौर-चूल्हा बनाती हैं।
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ये परवलय (पैराबोला) आकारा का बिना रसोइये का चूल्हा है।
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दुर्भाग्य से, ये आधी जरमन हैं,
-
वो इतनी सूक्ष्मता से नाप-झोक करती हैं।
-
(हँसी)
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आपको भारतीय महिलायें इतनी सूक्ष्म नाप-तोल करती नहीं मिलेंगी।
-
बिलकुल आखिरी इंच तक,
-
वो उस चूल्हे को बना सकती हैं।
-
और यहाँ साठ व्यक्ति दिन में दो बार
-
सौर-चूल्हे का खाना खाते हैं।
-
हमारे यहाँ एक दंत-चिकित्सक हैं --
-
वो दादी-माँ है, अनपढ है, और दाँतों की डाक्टर हैं।
-
वो दाँतों की देखभाल करती हैं
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करीब ७००० बच्चों के।
-
बेयरफ़ुट टेक्नॉलाजी:
-
ये १९८६ है - किसी इंजीनियर, या आर्किटेक्ट इस बारें में नहीं सोचा --
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मगर हम बारिश के पानी को छत से इकट्ठा कर रहे थे।
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बहुत ही कम पानी बर्बाद होता है।
-
सारी छतों को ज़मीन के नीचे बने
-
४००,००० लीटर के टैंक से जोडा हुआ है।
-
और पानी बर्बाद नहीं होता।
-
यदि हमें चार साल लगातार भी सूखे का सामना करना पडे, तो भी हमारे पास पानी होगा,
-
क्योंकि हम बारिश के पानी को इकट्ठा करते हैं।
-
६० % बच्चे स्कूल इसलिये नहीं जा पाते,
-
क्योंकि उन्हें जानवरों की देखभाल करनी होती है --
-
भेड, बकरी --
-
घर के काम।
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तो हमने सोचा कि एक स्कूल खोला जाये
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रात में, बच्चो को पढाने के लिये।
-
क्योंकि तिलोनिया के रात के स्कूलों में
-
७५,००० बच्चों से ज्यादा रात को पढ चुके है,
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क्योंकि ये बच्चों की सहूलियत के लिये है;
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ये शिक्षकों की सहूलियत के लिये नही है।
-
और हम यहाँ क्या पढाते हैं?
-
प्रजातंत्र, नागरिकता,
-
अपनी ज़मीनों की नाप कैसे करें,
-
अगर आपको पुलिस पकड ले, तो क्या करें,
-
यदि आपका जानवर बीमार हो जाये, तो क्या करें।
-
यही हम रात के स्कूलों में पढाते हैं।
-
क्योंकि सारे स्कूल मे सौर-ऊर्जा है।
-
हर पाँच साल में,
-
हम चुनाव करते हैं।
-
६ से ले कर १४ साल तक के बच्चे
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इस प्रजातांत्रिक प्रणाली में हिस्सा लेते हैं,
-
और वो एक प्रधानमंत्री चुनते हैं।
-
प्रधानमंत्री की उम्र है १२ वर्ष।
-
वो सुबह २० बकरियों की देखभाल करती है,
-
मगर शाम को वो प्रधानमंत्री हो जाती है।
-
उसका अपना मंत्रिमंडल है,
-
शिक्षा मंत्री, बिजली मंत्री, स्वास्थ-मंत्री।
-
और वो असल में देखभाल करते है
-
करीब १५० स्कूलों के ७००० बच्चों की।
-
पाँच साल पहले उसे विश्व बालक पुरस्कार से नवाजा गया था,
-
और वो स्वीडन गयी थी।
-
पहली बार गाँव से बाहर निकली थी।
-
कभी स्वीडन देखा नहीं।
-
लेकिन आसपास की चीज़ों से ज़रा भी प्रभावित नहीं।
-
और स्वीडन की रानी, जो वहीं थीं,
-
मेरी ओर मुडी, और कहा, "क्या आप इस बच्ची से पूछेंगे कि इतना आत्म-विश्वास कहाँ से आता है?
-
ये केवल १२ साल की है,
-
और किसी से प्रभावित नहीं होती।"
-
और वो लडकी, जो उनके बायें ओर है,
-
मेरी ओर मुडी, और रानी की आँखों में आँखे डाल कर
-
बोली, "कृप्या इन्हें बता दीजिये कि मैं प्रधानमंत्री हूँ।"
-
(हँसी)
-
(अभिवादन)
-
जहाँ साक्षरता बहुत कम है,
-
हम कठपुतलियों का इस्तेमाल करते हैं।
-
कठपुतिलियों के सहारे हम अपनी बात रखते हैं।
-
हमारे पास जोखिम चाचा है,
-
जो करीब ३०० साल के हैं।
-
ये मेरे मनोवैज्ञानिक हैं। ये ही मेरे शिक्षक हैं।
-
यही मेरे चिकित्सक हैं। यही मेरे वकील हैं।
-
यही मुझे दान देते हैं।
-
यही धन भी जुटाते हैं,
-
मेरे झगडे भी सुलझाते हैं।
-
ये मेरे गाँव की समस्या का समाधान करते हैं।
-
यदि गाँव में तनाव हो,
-
या फ़िर स्कूलों में हाज़िरी कम हो रही हो
-
और अध्यापकों और अभिभावकों के बीच मनमुटाव हो,
-
तो ये कठपुतली अध्यापकों और अभिभावकों को सारे गाँव के सामने बुलाती है
-
और कहती है, "हाथ मिलाइये।
-
हाज़िरी कम नहीं होनी चाहिये।"
-
ये कठपुतलियाँ
-
विश्व-बैंक की बेकार पडी रिपोर्टों से बनी हैं।
-
(हँसी)
-
(अभिवादन)
-
तो इस विकेंद्रित, और पारदर्शी तरीके से,
-
गाँवों को सौर-ऊर्जा देने के तरीके से,
-
हमने सारे भारत में काम किया है
-
लद्दाख से ले कर भूटान तक --
-
सब जगहों पर सौर-ऊर्जा
-
उन लोगों द्वारा लायी जिन्हें प्रशिक्षण दिया गया।
-
और हम लद्दाख गये,
-
और हमने एक महिला से पूछा --
-
कि आप, -४० डिग्री सेंटिग्रेट पर, छत से बाहर आयी हैं,
-
क्योंकि बर्फ़ से आजू-बाजू के रास्ते बंद है --
-
और हमने इस से पूछा,
-
"आपको क्या लाभ हुआ
-
सौर ऊर्जा से?"
-
और एक मिनट तक सोचने के बाद, उसने कहा,
-
"ये पहली बार है कि मैं सर्दियों में अपने पति का चेहरा देख पायी।"
-
(हँसी)
-
हम अफ़्गानिस्तान गये।
-
भारत में हमेने एक बात ये सीखी कि
-
मर्दों को आप कुछ नही सिखा सकते।
-
(हँसी)
-
आदमी उछ्छंखल होते हैं,
-
आदमी महत्वाकांक्षी होते हैं,
-
वो एक जगह टिक कर बैठना नहीं पाते,
-
और उन सबको एक प्रमाण-पत्र चाहिये होता है।
-
(हँसी)
-
दुनिया भर में, यही चाहत है
-
आदमियों की, एक प्रमाण-पत्र चाहिये।
-
क्यों? क्योंकि वो गाँव छोडना चाहते हैं,
-
और शहर जाना चाहते हैं, नौकरी करने के लिये।
-
तो हमने इस का एक बेहतरीन तरीका निकाला"
-
बूढी दादियों को प्रशिक्षण देने का।
-
अपनी बात दूर दूर तक फ़ैलाने का
-
आज की दुनिया में क्या तरीका है?
-
टेलीविजन? नहीं।
-
टेलीग्राफ़? नहीं।
-
टेलीफ़ोन? नहीं।
-
एक स्त्री को बता दीजिये बस!
-
(हँसी)
-
(अभिवादन)
-
तो हम पहली बार अफ़्गानिस्तान गयी,
-
और हमने तीन स्त्रियों को चुना
-
और कहा, "हम इन्हें भारत ले जाना चाहते हैं।"
-
उन्होंने कहा, "असंभव। ये तो अपने कमरे तक से बाहर नही निकलती हैं,
-
और तुम भारत ले जाने की बात करते हो।"
-
मैने कहा, "मैं एक छूट दे सकता हूँ। मैं उनके पतियों को भी साथ ले जाऊँगा।"
-
तो मैं उनके पतियों को भी ली आया।
-
ज़ाहिर है, औरतें आदमियों से कहीं ज्यादा बुद्धिमान होती हैं।
-
छः महीने के भीतर,
-
हम इन औरतों को कैसे बदल दें?
-
इशारों की भाषा से।
-
तब आपक लिखित चीज़ों पर भरोसा नहीं करते।
-
बोलचाल की भाषा से भी काम नहीं बनता।
-
आप इशारों की भाषा इस्तेमाल करते हैं।
-
और छः महीनों में,
-
वो सौर-इंजीनियर बन गयीं।
-
वो वापस जा कर अपने गाँव में सौर-बिजली ले आयीं।
-
इस स्त्री ने वापस जा कर,
-
पहली बार किसी गाँव में सौर-बिजली लगायी,
-
एक कारखाना लगाया --
-
अफ़्गानिस्तान का पहला गाँव जहाँ सौर-बिजली आयी
-
तीन औरतों द्वारा किया गया था।
-
ये स्त्री
-
एक महान दादी माँ है।
-
५५ साल की उम्र में इसने अफ़गानिस्तान में २०० घरों को सौर-बिजली दी है।
-
और ये खराब भी नहीं हुई है।
-
ये असल में अफ़्गानिस्तान के इंजीनियरिंग विभाग गयी,
-
और वहाँ के मुख्य-अधिकारी को बता कर आयी
-
कि ए.सी. और डी.सी. में फ़र्क क्या होता है।
-
उसे नहीं पता था।
-
इन तीन औरतो ने २७ और औरतों को प्रशिक्षण दिया है,
-
और अफ़्गानिस्तान के १०० गाँवों में सौर-बिजली लगवा दी है।
-
हम अफ़्रीका गये,
-
और हमने यहे किया।
-
ये सारी औरतें जो एक मेज पर बैठी हैं, अलग अलग आठ देशों की हैं,
-
सब बतिया रही हैं, मगर बिना एक भी शब्द समझे,
-
क्योंकि वो सब अलग अलग भाषा बोल रही हैं।
-
मगर इनकी भाव-भंगिमायें गजब की हैं।
-
ये एक दूसरे से बतिया भी रही है,
-
और सौर-इंजीनियर बन रही हैं।
-
मैं सियरा ल्योन ग्याअ,
-
और वहाँ एक मंत्री से मिला जो रात के घनघोर अँधेरे में ड्राइविंग कर रहे थे --
-
एक गाँव पहुँचा।
-
वापस आया, गाँव पहुँचा, और कहा, "इस की क्या कहानी है?"
-
उन्होंने कहा, "इन दो दादी-मांओं ने..."
-
"दादियों ने?" मंत्री साहब को भरोसा ही नहीं हुआ।
-
"वो कहाँ गयी थी?" " भारत से लौट कर आयी हैं।"
-
वो सीखे राष्ट्रपति के पास गया।
-
उसने कहा, "आपको पता है कि सियरा ल्योन में एक सौर-बिजली युक्त गाँव है?"
-
जवाब मिला, "नहीं।" अगले दिन आधे से ज्यादा मंत्रिमंडल इन औरतों से मिलने आ गया।
-
"कहानी क्या है?"
-
तो उन्होंने मुझे बुलाया और कहा, "क्या आप मेरे लिये १५० दादियों को प्रशिक्षण दे सकते हैं?"
-
मैने कहा, "जी नहीं, महामहिम।
-
मगर ये दे सकती हैं। ये दादियाँ।"
-
तो उन्होंने सियरा ल्योन में मेरे लिये पहला बेयरफ़ुट ट्रेनिंग सेंटर बनवाया।
-
और १५० दादियं को सियरा ल्योन में प्रशिक्षण मिल चुका है।
-
गाम्बिया:
-
हम गाम्बिया में एक दादी माँ को चुनने के लिये गये।
-
एक गाँव में पहुँचे।
-
मुझे पता था कि मैं किस स्त्री को चुनना चाहता हूँ।
-
सब लोग साथ जुटे और उन्होंने कहा, " इन दो स्त्रियों को ले जायें।"
-
मैने कहा, "नहीं, मैं तो उसे ले जाना चाहता हूँ।"
-
उन्होंने कहा, "क्यों? उसे तो भाषा भी नहीं आती। आप उसे जानते नहीं हैं।"
-
मैने कहा, "मुझे उसकी भाव-भंगिमायें और बात करने का तरीका अच्छा लगता है।"
-
"उसका पति नहीं मानेगा: नहीं होगा।"
-
तो पति को बुलाया गया, वो आया,
-
अकड से चलता हुआ, नेताओं की तरह, मोबाइल लहराता हुआ। "नही होगा।"
-
"क्यों नहीं? "उसे देखो, वो कितनी सुंदर है।"
-
मैने कहा, "हाँ, बहुत सुंदर है।"
-
"अगर किसी भारतीय आदमी के साथ भाग गयी तो?"
-
ये उसका सबसे बडा डर था।
-
मैने कहा, "वो खुश रहेगी, और तुम्हें मोबाइल पर कॉल करेगी।"
-
वो दादी माँ की तरह गयी
-
और एक शेरनी बन कर वापस लौटी।
-
वो हवाई-जहाज से बाहर निकली और
-
प्रेस से ऐसे बतियाने लगी जैसे सदा से यही करती रही हो।
-
उसने राष्ट्रीय प्रेस को सम्हाला,
-
और वो प्रसिद्ध हो गयी।
-
और जब मैं छः महीने बाद उस से मिला, मैने कहा, "तुम्हारा पति कहाँ है?"
-
"अरे, कहीं होगा, उस से क्या फ़र्क पडता है।"
-
(हँसी)
-
सफ़लता की कहानी।
-
(हँसी)
-
(अभिवादन)
-
मैं अपनी बात ये कह कर ख्त्म करना चाहूँगा
-
कि मुझे लगता है कि समाधान आपके अंदर ही होता है।
-
समस्या का हल अपने अंदर ढूँढिये।
-
और उन लोगों की बात सुनिये जो आप से पहले समाधान कर चुके हैं
-
सारी दुनिया में ऐसे लोग मौजूद हैं।
-
चिंता ही मत करिये।
-
विश्व बैंक की बात सुनने से बेहतर है कि आप ज़मीनी लोगों की बातें सुनें।
-
उनके पास दुनिया भर के हल हैं।
-
मैं अंत में महात्मा गाँधी की कही बात दोहराना चाहता हूँ।
-
"पहली वो आपको अनसुना कर देते हैं,
-
फ़िर वो आप पर हँसते हैं,
-
फ़िर वो आपसे लडते हैं,
-
और फ़िर आप जीते जाते हैं।"
-
धन्यवाद।
-
(अभिवादन)