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मेलिंडा फ्रेंच गेट्स: गैर-लाभ संस्थाएं कोका-कोला से क्या सीख सकती हैं

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    एक बड़ा प्रिय भाग
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    गेट्स फ़ाउन्डेशन में मेरे काम का यह है
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    कि मुझे विकासशील दुनिया में जाने का मौका मिलता है,
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    और मैं यह अक्सर करती हूँ.
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    और जब मैं माँओं से मिलती हूँ
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    इतने सारे सुदूर इलाकों में,
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    तो मुझे इस बात का एहसास होता है
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    कि हममें कितनी समानताएं हैं.
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    वो भी अपने बच्चों के लिए वही चाहती हैं जो हम चाहते हैं,
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    और वह है कि उनके बच्चे कामयाब निकलें,
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    स्वस्थ हों, और एक सफल जीवन बिताएं.
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    पर मैं हद दर्जे की गरीबी भी देखती हूँ,
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    और वो बहुत हिला देती है,
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    अपने पैमाने और अपने विस्तार, दोनों से.
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    भारत में अपनी पहली यात्रा पर, मैं एक व्यक्ति के घर में थी
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    जहां मिट्टी का फर्श था, और बहता पानी नहीं था,
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    बिजली भी नहीं,
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    और यही सब मैं सारी दुनिया में देखती हूँ.
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    मूल बात यह है, कि मैं उन सब चीज़ों से भौंचक्की रह जाती हूँ
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    जो उनके पास नहीं हैं.
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    पर मैं उस एक चीज़ से चकित हो जाती हूँ जो उनके पास होती है:
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    कोका-कोला.
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    कोक हर जगह है.
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    बल्कि जब मैं विकासशील देशों में जाती हूँ,
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    तब कोक सर्वव्यापी लगता है.
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    और इसलिए जब मैं इन दौरों से वापस आती हूँ,
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    और विकास के बारे में सोच रही होती हूँ,
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    और घर जा रही होती हूँ, तब सोचती हूँ,
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    "हम लोगों को निरोध पहुँचाने की कोशिश कर रहे हैं, और तरह तरह के टीके भी."
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    आप जानते हैं न, कोक की सफलता आप को सोचने पर मजबूर करती है:
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    ऐसा कैसे है कि वे कोक पहुंचा सकते हैं
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    उन सब दूर-दराज़ जगहों पर?
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    अगर वो कर सकते हैं,
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    तो सरकारें और गैर-लाभ संस्थाएं ऐसा क्यों नहीं कर सकतीं?
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    और यह सवाल पूछने वाली मैं पहली नहीं हूँ.
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    पर मैं सोचती हूँ, एक समुदाय के तौर पर,
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    हमें अभी बहुत कुछ सीखना है.
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    अगर कोका-कोला के बारे में सोचें तो वाकई चौंका देने वाली बात है.
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    वे १.५ बिलियन यूनिट बेचते हैं
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    हर एक दिन.
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    यह कुछ ऐसा हुआ जैसे दुनिया का हर आदमी, औरत और बच्चा
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    हफ्ते में एक बार कोक की एक यूनिट पिए.
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    तो इस बात का क्या महत्त्व है?
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    भई, अगर हम उन्नति को और तेजी से बढ़ाना चाहते हैं
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    और जल्दी बढ़ना चाहते हैं
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    उन मिलेनियम डिवेलपमेंट गोल्ज़ (एम् डी जी) की तरफ जो हमने दुनिया के लिए तय किये हैं,
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    तो हमें अग्रणी लोगों से सीखना होगा,
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    और यह अग्रणी लोग
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    हर एक कार्यक्षेत्र से आते हैं.
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    मुझे लगता है कि अगर हम समझ सकें
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    कि कोका-कोला जैसी चीज़ सर्वव्यापी कैसे बन सकती है ,
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    तो हम यह सबक जनता के भले के लिए काम में ला सकते हैं.
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    कोक की सफलता प्रासंगिक है,
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    क्योंकि अगर हम उसे समझ सकते हैं, उससे सीख सकते हैं,
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    तो हम कई जीवन बचा सकते हैं.
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    इसीलिए मैंने कोक को समझने में कुछ समय लगाया,
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    और मुझे लगता है कि असल में तीन चीज़ें हैं
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    जो हम कोका-कोला से सीख सकते हैं.
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    वो समकालीन आंकडें लेते हैं
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    और उन का तुरंत प्रयोग प्रोडक्ट बनाने में करते हैं.
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    वो लोकल उद्यमी प्रतिभा को पकड़ते हैं,
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    और वो असाधारण मार्केटिंग करते हैं.
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    तो हम आंकड़ों से शुरुआत करते हैं.
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    कोक की मुनाफेदारी बहुत स्पष्ट है.
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    वो शेयरधारकों के एक समूह के आगे जिम्मेवार हैं. उनके लिए लाभ दिखाना ज़रूरी है.
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    तो वो आंकड़े लेते हैं,
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    और उन्हें वृद्धि मापने के लिए इस्तेमाल करते हैं.
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    उनका फीडबैक का चक्र भी लगातार चलता रहता है.
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    वो कुछ भी सीखते हैं, तो उसे वापस अपने प्रोडक्ट में इस्तेमाल करते हैं,
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    वापस अपने बाजारों में इस्तेमाल करते हैं.
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    उनकी एक पूरी टीम है, जिसका नाम है "ज्ञान और बोध".
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    ऐसा कई उपभोक्ता उद्योगों में होता है.
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    तो अगर आप कोका-कला के लिए नामीबिया चला रहे हैं ,
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    और आपकी १०७ शाखाएं हैं,
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    तो आपको मालूम होता है कि कहाँ पर प्रत्येक कैन या बोतल बिके
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    स्प्राइट, फैंटा, या कोक के,
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    चाहे वो कोने की दुकान हो,
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    या सुपरमार्केट हो या फिर हाथगाढ़ी.
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    तो अगर बिक्री कम होने लगती है,
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    तब वह व्यक्ति समस्या को समझ सकता है
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    और कारण पर ध्यान दे सकता है.
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    अब हम एक मिनिट के लिए इसकी तुलना विकास के क्षेत्र से करें.
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    विकास में, मूल्यांकन होता है
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    प्रोजेक्ट के बिलकुल अंत में.
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    मैं ऐसी कई सभाओं में बैठी हूँ.
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    और तब तक,
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    उन आंकड़ों का इस्तेमाल करने में बहुत देर हो जाती है.
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    एक बार एक एनजीओ के किसी व्यक्ति ने
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    मुझसे इस की तुलना अँधेरे में बोलिंग करने के बराबर दी.
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    उन्होनें कहा, "तुम बॉल को लुढ़काते हो, कुछ पिनों के गिरने की आवाज़ सुनाई देती है.
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    अँधेरा है, इसलिए जब तक बत्तियां न जलें, तुम देख नहीं सकते कि कौन सी गिरी ,
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    और फिर तुम अपना असर देख सकते हो."
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    समकालीन आंकड़े
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    उन बत्तियों को जलाते हैं.
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    अब वह दूसरी चीज़ क्या है जिसमें कोक आगे है?
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    वे बहुत आगे हैं
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    लोकल उद्यमी प्रतिभा का इस्तेमाल करने में.
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    कोक अफ्रीका में १९२८ से है,
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    पर ज़्यादातर वे दूर-दराज़ के बाजारों में नहीं जा पाते थे,
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    क्योंकि उनका तरीका विकसित देशों से बहुत मिलता-जुलता था,
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    यानि एक भरी हुई ट्रक ले कर गलियों में निकलना.
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    और अफ्रीका के दूर-दराज़ इलाकों में,
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    अच्छी सड़कें मिलना बहुत मुश्किल है.
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    पर कोक ने एक बात नोट की.
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    उन्होंने देखा कि लोकल व्यक्ति सामान खरीद रहे थे, और वो भी थोक में,
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    और फिर वो उसे दूर-दराज़ इलाकों में जा कर दोबारा बेच रहे थे.
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    उन्हें यह सब देखने-समझने में थोड़ा समय ज़रूर लगा.
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    और उन्होंने १९९० में निर्णय लिया
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    कि वो लोकल उद्यमियों को प्रशिक्षण देना शुरू करना चाहते थे,
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    उन्हें छोटे ऋण दे कर.
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    उन्होंने यह सब शुरू किया माइक्रो-डिस्ट्रीब्यूशन केंद्र चला कर.
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    जिसमें वही लोकल उद्यमी सेल्समेन रखते हैं,
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    जो फिर साइकिल, हाथगाड़ी या ठेला ले कर निकलते हैं
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    सामान बेचने के लिए.
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    अब अफ्रीका में करीब ३००० ऐसे केंद्र हैं
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    जिनमें १५००० लोग काम कर रहे हैं.
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    तंज़ानिया और युगांडा में,
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    वे ९०% भाग सँभालते हैं
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    कोक की बिक्री का.
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    अब विकास के क्षेत्र की तरफ देखें.
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    ऐसा क्या है जो सरकारें और एनजीओ
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    कोक से सीख सकते हैं?
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    सरकारें और एनजीओ
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    उस स्थानीय (लोकल) प्रतिभा के कोष का अपने काम के लिए उपयोग कर सकती हैं,
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    क्योंकि स्थानीय लोग जानते हैं कि कैसे पहुंचना है
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    दूर-दराज़ इलाकों में, उनके पड़ोसियों तक,
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    वो यह भी जानते हैं कि उन्हें बदलाव लाने के लिए कैसे प्रेरित करना है.
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    मैं सोचती हूँ कि इसका एक बढ़िया उदाहरण है
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    इथियोपिया का नया स्वास्थ्य विस्तार प्रोग्राम.
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    इथियोपिया में सरकार ने देखा
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    कि बहुत सारे लोग किसी भी स्वास्थ्य-केंद्र से इतने दूर थे,
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    कि उन्हें स्वास्थ्य केंद्र पहुँचने के लिए एक दिन से भी ज्यादा सफ़र करना पड़ता.
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    तो अगर आप आपातकालीन अवस्था में हों, या बच्चा पैदा करने के लिए बिलकुल तैयार माँ हों,
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    तो भूल जायें, स्वास्थ्य-केंद्र पहुंचना तो मुमकिन ही नहीं.
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    सरकार ने तय किया कि यह ठीक नहीं था,
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    तो वे भारत गए और वहाँ के केरल प्रदेश का अध्ययन किया
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    जहाँ ऐसा ही सिस्टम था,
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    और उन्होनें उसे इथियोपिया के हिसाब से अपना लिया.
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    और २००३ में इथियोपिया की सरकार ने
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    इस नए सिस्टम को अपने देश के लिए शुरू किया.
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    उन्होनें ३५००० स्वास्थ्य-विस्तार कर्मचारियों को ट्रेन किया
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    ताकि वे देख-रेख सीधे लोगों तक पहुंचा सकें.
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    सिर्फ पांच सालों में,
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    उनका अनुपात ३०००० लोगों के लिए १ कर्मचारी से बढ़ कर
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    २५०० लोगों के लिए १ कर्मचारी हो गया.
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    अब ज़रा सोचिये,
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    इससे लोगों की ज़िन्दगी कितनी बदल सकती है.
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    स्वास्थ्य विस्तार कर्मचारी कितनी चीज़ों में मदद कर सकते हैं,
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    चाहे वह परिवार नियोजन हो, या प्रसव से पहले की देखभाल,
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    या फिर बच्चों के लिए टीके,
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    या किसी औरत को यह बताना कि वह समय से केंद्र पहुँच जाए
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    समयपूर्वक प्रसव के लिए.
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    यह होता है असली प्रभाव
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    इथियोपिया जैसे देश के लिए,
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    और इसीलिए आप देख सकते हैं कि उनके शिशु-मृत्यु आंकड़े
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    २५% नीचे आ रहे हैं
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    २००० से २००८ के बीच में.
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    इथियोपिया में कई सौ हज़ार बच्चे जीवित हैं
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    इसी स्वास्थ्य विस्तार कर्मचारी प्रोग्राम के कारण.
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    तो इथियोपिया के लिए अगला कदम क्या है?
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    भई, वो तो अभी से उसके बारे में बात शुरू कर रहे हैं.
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    उनकी बातें शुरू हो रही हैं, "हम कैसे पक्का करें कि स्वास्थ्य समुदाय कर्मचारी
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    नए विचार खुद उत्पन्न करें?"
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    हम उन्हें उस असर के आधार पर कैसे बढ़ावा दें, जो वो दिखा रहे हैं
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    उन दूर-दराज़ गांवों में?"
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    इसी तरह से आप स्थानीय उद्यमी प्रतिभा का उपयोग कर सकते हैं
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    और लोगों की क्षमताओं को बढ़ा सकते हैं.
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    कोक की सफलता का तीसरा भाग है
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    उनकी मार्केटिंग.
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    आखिरकार, कोक की सफलता
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    एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण बात पर निर्भर करती है,
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    और वह यह है कि लोग चाहते हैं
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    एक कोका-कोला.
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    अब वह कारण जिससे यह छोटे उद्यमी
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    बिक्री कर सकते हैं या मुनाफा कमा सकते हैं,
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    यह है कि उन्हें अपनी ठेलागाड़ी या हाथगाड़ी में रखी हर एक बोतल बेचनी होती है.
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    तो वे कोका-कोला पर भरोसा करते हैं --
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    यानि उसकी मार्केटिंग पर.
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    और उसकी मार्केटिंग का रहस्य क्या है?
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    अरे,वह आकांक्षापूर्ण है.
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    वह उस प्रोडक्ट को जोड़ती है
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    उस तरह के जीवन के साथ जो लोग जीना चाहते हैं.
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    तो हालांकि यह एक विश्वव्यापी कम्पनी है,
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    पर उनका तरीका बहुत स्थानीय है.
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    कोक के विश्वव्यापी अभियान का नारा है
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    "उन्मुक्त आनंद".
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    पर वो इसे स्थानीय बनाते हैं.
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    और वो सिर्फ अनुमान नहीं लगाते कि लोग किस बात से खुश होते हैं,
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    बल्कि वो लैटिन अमेरिका जैसी जगहों पर जाते हैं,
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    और समझते हैं कि वहाँ पर आनंद
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    पारिवारिक जीवन से जुड़ा हुआ है.
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    और दक्षिणी अफ्रीका में,
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    आनंद का ताल्लुक
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    (अस्पष्ट) या समुदाय में इज्ज़त से है.
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    अब यह तो हमें नज़र आया वर्ल्ड कप के अभियान में.
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    चलिए इस गाने को सुनें जो कोक ने उसके लिए रचा,
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    "लहराता झंडा" -- एक सोमाली रैप संगीतकार के द्वारा.
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    (वीडिओ) के'नान 'ओह ओह ओह ओह ओह ओ-ओह'
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    ओह ओह ओह ओह ओह ओह ओह ओह ओह ओह
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    ओह ओह ओह ओह ओह ओ-ओह
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    ओह ओह ओह ओह ओह ओह ओह ओह ओ-ओह
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    तुम्हें मुक्ति दें, तुम्हें जोश दें,
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    तुम्हें ज्ञान दें, ऊंचे ले चलें,
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    देखो मैदान में विजेता उतर आये
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    तुम अर्थ देते हो, गर्वित करते हो हमें
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    गलियों में सर हमारे ऊंचे हो जाते हैं
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    भूल जाते हैं हम प्रतिबन्ध
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    बस आनंद ही आनंद, चारों ओर हमारे
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    हर देश, चारों ओर हमारे
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    मेलिंडा फ्रेंच गेट्स: मजेदार है, है न?
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    मगर वो यहीं तक नहीं रुके.
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    उन्होनें इसे १८ स्थानीय भाषाओँ में रूपांतरित किया.
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    और वह लोकप्रिय चार्ट्स का एक नंबर गाना बना
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    १७ देशों में.
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    यह मुझे अपने बचपन के एक लोकप्रिय गाने की याद दिलाता है,
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    "मैं दुनिया को गाना सिखाना चाहूं".
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    वो भी लोकप्रिय चार्ट्स का नंबर एक गाना था.
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    दोनों गानों में एक समानता है:
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    एक जैसा आग्रह
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    आनंद और एकता के लिए.
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    तो स्वास्थ्य और विकास कैसे अपनी मार्केटिंग करते हैं?
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    उनकी मार्केटिंग टाल-मटोल पर आधारित है,
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    महत्त्वाकांक्षाओं पर नहीं.
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    मुझे विश्वास है कि आपने इनमें से कुछ सन्देश अवश्य सुने होंगे.
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    "निरोध इस्तेमाल करिए, एड्स से बचिए."
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    "हाथों को धोइए, आपको दस्त नहीं होंगे."
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    मुझे ये सब कहीं से भी "लहराता झंडा" जैसे नहीं लगते.
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    और मुझे लगता है हम एक बुनियादी गलती करते हैं,
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    हम पहले से ही एक धारणा बना लेते हैं,
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    हम सोचते हैं कि अगर लोगों को किसी चीज़ की ज़रुरत है,
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    तो हमें उनके अन्दर उस चीज़ की कामना नहीं उत्पन्न करनी चाहिए.
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    और मुझे लगता है कि यह हमारी भूल है.
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    और दुनिया भर में यह संकेत मिल रहे हैं कि इस में बदलाव आ रहा है.
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    एक उदाहरण है सफाई-व्यवस्था.
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    हमें पता है कि करीब १५ लाख बच्चे
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    हर साल दस्त के रोग से मरते हैं,
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    और इस का मुख्य कारण है खुले स्थान में शौच करना.
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    और इसका समाधान है: शौचालय बनाना.
  • 10:13 - 10:16
    पर हमें सारी दुनिया में पता चल रहा है, बार बार,
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    कि अगर आप सिर्फ शौचालय बना कर छोड़ देते हैं,
  • 10:19 - 10:21
    तो उसका प्रयोग नहीं होता.
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    लोग अपने घर में उसके पत्थर का उपयोग कर लेते हैं.
  • 10:23 - 10:25
    कभी वो उसका अनाज भरने के लिए उपयोग करते हैं.
  • 10:25 - 10:27
    मैंने उसका मुर्गियों के दड़बे के लिए उपयोग होते भी देखा है.
  • 10:27 - 10:29
    (हंसी)
  • 10:29 - 10:31
    तो मार्केटिंग ऐसा क्या कर सकती है,
  • 10:31 - 10:34
    जिससे सफाई के समाधान दस्त के रोग में अपना प्रभाव दिखा सकें?
  • 10:34 - 10:36
    एक तो, आप समुदायों के साथ काम कर सकते हैं.
  • 10:36 - 10:38
    आप लोगों को समझा सकते हैं कि खुले मैं शौच करना
  • 10:38 - 10:40
    एक ऐसी चीज़ है जो गाँव में नहीं होनी चाहिए,
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    और वो सहमत होते हैं.
  • 10:42 - 10:45
    और फिर आप शौचालय को ले कर दिखा सकते हैं
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    कि वो एक आधुनिक, नयी सहूलियत की चीज़ है.
  • 10:48 - 10:50
    उत्तर भारत के एक प्रदेश में तो उन्होनें यहाँ तक किया है
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    कि शौचालयों को शादी के लिए ज़रूरी बना दिया है.
  • 10:53 - 10:56
    और इसका असर होता है. इन सुर्ख़ियों को देखिये.
  • 10:56 - 11:00
    (हंसी)
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    मैं मजाक नहीं कर रही हूँ.
  • 11:02 - 11:04
    लड़कियाँ अब बिना शौचालय वाले आदमियों से शादी करने से इंकार कर रही हैं.
  • 11:04 - 11:07
    शौचालय नहीं, तो शादी नहीं.
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    (हंसी)
  • 11:09 - 11:12
    अब यह सिर्फ मजाकिया सुर्खी नहीं है.
  • 11:12 - 11:15
    यह नया है, मौलिक है. यह एक प्रगतिशील मार्केटिंग अभियान है.
  • 11:15 - 11:17
    पर सबसे बढ़ कर,
  • 11:17 - 11:19
    यह जीवन बचाता है.
  • 11:20 - 11:22
    जरा इसे देखिये.
  • 11:22 - 11:24
    यह कमरा कई युवा पुरुषों से भरा हुआ है,
  • 11:24 - 11:26
    जिन के साथ हैं मेरे पति, बिल.
  • 11:26 - 11:29
    और क्या आप अंदाज़ लगा सकते हैं कि ये युवक किसलिए इकट्ठे हुए हैं?
  • 11:30 - 11:33
    ये सब खतने के इंतज़ार में रुके हैं.
  • 11:33 - 11:35
    क्या आप विश्वास कर सकते हैं?
  • 11:35 - 11:38
    हम जानते हैं कि खतने से एच आई वी संक्रमण
  • 11:38 - 11:40
    आदमियों में करीब ६०% कम हो जाता है.
  • 11:40 - 11:43
    और जब हमने फाउंडेशन में पहली बार इस परिणाम को सुना,
  • 11:43 - 11:45
    तो मुझे स्वीकार करना पड़ेगा, बिल और मैं अपने सर खुजा रहे थे,
  • 11:45 - 11:48
    और कह रहे थे, "पर कौन इस तरीके के लिए अपनी मर्ज़ी से आगे आएगा?"
  • 11:48 - 11:50
    पर आदमी आगे आये,
  • 11:50 - 11:52
    क्योंकि वो अपनी औरतों से सुनते हैं
  • 11:52 - 11:54
    कि उन्हें यह चाहिए,
  • 11:54 - 11:57
    और आदमियों को यह भी भरोसा है कि इससे उनकी यौन-क्षमता बेहतर होगी.
  • 11:58 - 12:01
    तो अगर हम यह समझना शुरू करें
  • 12:01 - 12:03
    कि लोग वाकई में क्या चाहते हैं
  • 12:03 - 12:05
    स्वास्थ्य और विकास में,
  • 12:05 - 12:07
    तो हम समुदायों को बदल सकते हैं
  • 12:07 - 12:10
    और हम समूचे देशों को बदल सकते हैं.
  • 12:11 - 12:14
    तो यह सब इतना महत्त्वपूर्ण क्यों है?
  • 12:14 - 12:17
    चलिए उस समय की बात करें जब यह सब होने लगेगा,
  • 12:17 - 12:19
    जब यह तीनों चीज़ें एक साथ जुड़ जायेंगी.
  • 12:19 - 12:22
    और मेरे ख़याल से पोलियो इसका सबसे प्रभावशाली उदाहरण है.
  • 12:23 - 12:27
    हमने २० सालों में पोलियो में ९९% कमी देखी है.
  • 12:27 - 12:29
    तो अगर आप १९८८ की ओर नज़र डालें,
  • 12:29 - 12:32
    तो पोलिओ के करीब ३,५०,००० उदाहरण
  • 12:32 - 12:34
    उस साल विश्व में थे.
  • 12:34 - 12:37
    २००९ में, केवल १६०० ऐसे उदाहरण हैं.
  • 12:37 - 12:40
    तो ऐसा कैसे संभव हुआ?
  • 12:40 - 12:42
    चलिए भारत जैसे देश को देखें.
  • 12:42 - 12:45
    इस देश में १ अरब से अधिक लोग हैं,
  • 12:45 - 12:48
    पर केवल ३५.००० स्थानीय डॉकटर हैं
  • 12:48 - 12:50
    जो लकवे की रिपोर्ट करते हैं,
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    और चिकित्सक, औषध विक्रेताओं का एक बड़ा रिपोर्टिंग-सिस्टम.
  • 12:53 - 12:56
    उनके पास २५ लाख टीका लगाने वाले हैं.
  • 12:57 - 12:59
    पर मैं इस कहानी को आपके लिए और साकार बनाती हूँ.
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    मैं आपको श्रीराम की कहानी सुनाती हूँ,
  • 13:01 - 13:03
    जो एक १८ महीने का लड़का है,
  • 13:03 - 13:05
    भारत के एक उत्तरी भाग, बिहार से.
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    इस साल, ८ अगस्त को, उसे लकवा मार गया,
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    और १३ तारीख को उसके माँ-बाप उसे डॉक्टर के पास ले गए.
  • 13:12 - 13:14
    अगस्त १४ और १५ को उसके मल की जांच हुई,
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    और २५ अगस्त तक,
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    यह साबित हो चुका था कि उसे टाइप १ पोलिओ है.
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    ३० अगस्त तक, एक आनुवंशिक टेस्ट किया गया,
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    जिससे हमें पता चला कि श्रीराम के पोलिओ की नस्ल क्या है.
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    अब यह नस्ल दो में से एक जगह से आ सकती थी.
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    यह थोड़े उत्तर में, सीमा के पार, नेपाल से आ सकती थी,
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    या फिर कुछ दक्षिण में, झारखंड से भी आ सकती थी.
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    भाग्य से, आनुवंशिक टेस्ट ने साबित किया
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    कि असल में यह नस्ल उत्तर से ही आई थी,
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    क्योंकि अगर यह दक्षिण से आती,
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    तो इसके प्रसार का असर कहीं अधिक होता.
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    कहीं ज्यादा लोग इसकी चपेट में आ जाते.
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    तो निष्कर्ष क्या है?
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    आखिर ४ सितम्बर को, एक बड़ा सफ़ाया-अभियान हुआ,
  • 13:49 - 13:51
    जो पोलिओ में अक्सर किया जाता है.
  • 13:51 - 13:53
    वो सब गए, और जहाँ श्रीराम रहता है,
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    वहाँ २० लाख लोगों को टीका लगाया.
  • 13:55 - 13:57
    तो एक महीने से कम समय में,
  • 13:57 - 13:59
    तो लकवे के एक मामले से हम पहुँच गए
  • 13:59 - 14:02
    एक उद्देश्यपूर्ण टीका-अभियान तक.
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    और मुझे यह बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि उस इलाके में सिर्फ एक और व्यक्ति को पोलिओ हुआ.
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    इसी तरह से आप रोक सकते हैं
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    एक बड़े प्रकोप को फैलने से,
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    और इससे पता चलता है कि क्या हो सकता है
  • 14:11 - 14:14
    जब स्थानीय लोगों के हाथ में आंकड़े आते हैं;
  • 14:14 - 14:17
    वो जानें बचा सकते हैं.
  • 14:17 - 14:20
    तो पोलियो की सबसे बड़ी चुनौती अभी भी है -- मार्केटिंग,
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    पर वो नहीं जो आप शायद सोच रहे होंगे.
  • 14:22 - 14:24
    यह रोज़मर्रा की मार्केटिंग नहीं है.
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    यह माँ-बाप को बताने वाली मार्केटिंग नहीं है --
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    "अगर लकवा देखें, तो अपने बच्चे को डॉक्टर के पास ले जाइए
  • 14:28 - 14:30
    या फिर उसे टीका लगवाइये."
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    हमारी मार्केटिंग की समस्या है पैसा देने वाले समुदाय के साथ.
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    जी ८ देश पोलिओ के लिए हमेशा बहुत ही उदार रहे हैं
  • 14:35 - 14:37
    पिछले २० सालों से,
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    पर अब हमें पोलियो-से-थकान जैसी कुछ चीज़ महसूस हो रही है,
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    और वो यह कि पैसा देने वाले देश
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    अब पोलियो पर और पैसा लगाने के लिए तैयार नहीं हैं.
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    इसलिए अगली गर्मियों तक, हमारे पास पोलियो के लिए पैसा नहीं रहेगा.
  • 14:47 - 14:50
    तो अब हम ९९%
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    इस लक्ष्य की ओर पहुँच चुके हैं,
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    और जल्द ही हमारे पैसे कम पड़ने वाले हैं.
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    और मैं सोचती हूँ कि अगर मार्केटिंग महत्त्वाकांक्षा पर आधारित हो,
  • 14:58 - 15:00
    अगर हम एक समुदाय के तौर पर अपना ध्यान केन्द्रित कर सकें
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    इस बात पर कि हम कितने आगे आ गए हैं
  • 15:02 - 15:04
    और कितना अभूतपूर्व होगा
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    इस बीमारी को जड़ से मिटा देना,
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    तभी हम पोलियो-से-थकान को
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    और पोलियो को अपने पीछे छोड़ सकेंगे.
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    और अगर हम यह कर पाए,
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    तो हम दुनिया भर में हरेक को टीका लगाना बंद कर देंगे,
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    सारे देशों में, पोलियो के लिए.
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    और यह बस वो दूसरी बीमारी बन जाएगा
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    जिसे इस ग्रह से पूर्णतयः नष्ट कर दिया गया.
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    और हम इसके इतने करीब हैं.
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    और यह जीत इतनी मुमकिन है.
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    तो अगर कोक के मार्केटिंग वाले मेरे पास आते
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    और मुझसे ख़ुशी की परिभाषा पूछते,
  • 15:35 - 15:37
    तो मैं कहती कि मेरे लिए ख़ुशी की झलक है
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    वो माँ जो एक स्वस्थ बच्चे को लिए है
  • 15:40 - 15:42
    अपनी गोद में.
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    मेरे लिए, यही गहरी खुशी है.
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    तो अगर हम हर क्षेत्र के पथ-प्रदर्शकों से कुछ सबक सीखना चाहते हैं,
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    तो उस आने वाले कल में, जो हम मिल कर बना रहे हैं,
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    वह ख़ुशी
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    उतनी ही सर्वव्यापी हो सकती है
  • 15:57 - 15:59
    जितना कोका-कोला.
  • 15:59 - 16:01
    धन्यवाद.
  • 16:01 - 16:07
    (तालियाँ)
Title:
मेलिंडा फ्रेंच गेट्स: गैर-लाभ संस्थाएं कोका-कोला से क्या सीख सकती हैं
Speaker:
Melinda Gates
Description:

टेड X चेंज (परिवर्तन) में बोलते हुए, मेलिंडा गेट्स गैर-लाभ संस्थाओं के लिए एक चुनौती भरा प्रश्न उठाती हैं कि वे कोका-कोला जैसी कंपनियों से क्या सीख सकती हैं, जिनके विक्रेताओं और वितरकों का विस्तृत, विश्व-व्यापी नेटवर्क पक्का कर देता है कि हर दूर का गाँव चाहता है -- और पा सकता है -- एक कोक. तो यही सब निरोध, सफाई व्यवस्था, और टीकों के लिए क्यों नहीं का

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English
Team:
closed TED
Project:
TEDTalks
Duration:
16:08
alka puri added a translation

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