एक बड़ा प्रिय भाग गेट्स फ़ाउन्डेशन में मेरे काम का यह है कि मुझे विकासशील दुनिया में जाने का मौका मिलता है, और मैं यह अक्सर करती हूँ. और जब मैं माँओं से मिलती हूँ इतने सारे सुदूर इलाकों में, तो मुझे इस बात का एहसास होता है कि हममें कितनी समानताएं हैं. वो भी अपने बच्चों के लिए वही चाहती हैं जो हम चाहते हैं, और वह है कि उनके बच्चे कामयाब निकलें, स्वस्थ हों, और एक सफल जीवन बिताएं. पर मैं हद दर्जे की गरीबी भी देखती हूँ, और वो बहुत हिला देती है, अपने पैमाने और अपने विस्तार, दोनों से. भारत में अपनी पहली यात्रा पर, मैं एक व्यक्ति के घर में थी जहां मिट्टी का फर्श था, और बहता पानी नहीं था, बिजली भी नहीं, और यही सब मैं सारी दुनिया में देखती हूँ. मूल बात यह है, कि मैं उन सब चीज़ों से भौंचक्की रह जाती हूँ जो उनके पास नहीं हैं. पर मैं उस एक चीज़ से चकित हो जाती हूँ जो उनके पास होती है: कोका-कोला. कोक हर जगह है. बल्कि जब मैं विकासशील देशों में जाती हूँ, तब कोक सर्वव्यापी लगता है. और इसलिए जब मैं इन दौरों से वापस आती हूँ, और विकास के बारे में सोच रही होती हूँ, और घर जा रही होती हूँ, तब सोचती हूँ, "हम लोगों को निरोध पहुँचाने की कोशिश कर रहे हैं, और तरह तरह के टीके भी." आप जानते हैं न, कोक की सफलता आप को सोचने पर मजबूर करती है: ऐसा कैसे है कि वे कोक पहुंचा सकते हैं उन सब दूर-दराज़ जगहों पर? अगर वो कर सकते हैं, तो सरकारें और गैर-लाभ संस्थाएं ऐसा क्यों नहीं कर सकतीं? और यह सवाल पूछने वाली मैं पहली नहीं हूँ. पर मैं सोचती हूँ, एक समुदाय के तौर पर, हमें अभी बहुत कुछ सीखना है. अगर कोका-कोला के बारे में सोचें तो वाकई चौंका देने वाली बात है. वे १.५ बिलियन यूनिट बेचते हैं हर एक दिन. यह कुछ ऐसा हुआ जैसे दुनिया का हर आदमी, औरत और बच्चा हफ्ते में एक बार कोक की एक यूनिट पिए. तो इस बात का क्या महत्त्व है? भई, अगर हम उन्नति को और तेजी से बढ़ाना चाहते हैं और जल्दी बढ़ना चाहते हैं उन मिलेनियम डिवेलपमेंट गोल्ज़ (एम् डी जी) की तरफ जो हमने दुनिया के लिए तय किये हैं, तो हमें अग्रणी लोगों से सीखना होगा, और यह अग्रणी लोग हर एक कार्यक्षेत्र से आते हैं. मुझे लगता है कि अगर हम समझ सकें कि कोका-कोला जैसी चीज़ सर्वव्यापी कैसे बन सकती है , तो हम यह सबक जनता के भले के लिए काम में ला सकते हैं. कोक की सफलता प्रासंगिक है, क्योंकि अगर हम उसे समझ सकते हैं, उससे सीख सकते हैं, तो हम कई जीवन बचा सकते हैं. इसीलिए मैंने कोक को समझने में कुछ समय लगाया, और मुझे लगता है कि असल में तीन चीज़ें हैं जो हम कोका-कोला से सीख सकते हैं. वो समकालीन आंकडें लेते हैं और उन का तुरंत प्रयोग प्रोडक्ट बनाने में करते हैं. वो लोकल उद्यमी प्रतिभा को पकड़ते हैं, और वो असाधारण मार्केटिंग करते हैं. तो हम आंकड़ों से शुरुआत करते हैं. कोक की मुनाफेदारी बहुत स्पष्ट है. वो शेयरधारकों के एक समूह के आगे जिम्मेवार हैं. उनके लिए लाभ दिखाना ज़रूरी है. तो वो आंकड़े लेते हैं, और उन्हें वृद्धि मापने के लिए इस्तेमाल करते हैं. उनका फीडबैक का चक्र भी लगातार चलता रहता है. वो कुछ भी सीखते हैं, तो उसे वापस अपने प्रोडक्ट में इस्तेमाल करते हैं, वापस अपने बाजारों में इस्तेमाल करते हैं. उनकी एक पूरी टीम है, जिसका नाम है "ज्ञान और बोध". ऐसा कई उपभोक्ता उद्योगों में होता है. तो अगर आप कोका-कला के लिए नामीबिया चला रहे हैं , और आपकी १०७ शाखाएं हैं, तो आपको मालूम होता है कि कहाँ पर प्रत्येक कैन या बोतल बिके स्प्राइट, फैंटा, या कोक के, चाहे वो कोने की दुकान हो, या सुपरमार्केट हो या फिर हाथगाढ़ी. तो अगर बिक्री कम होने लगती है, तब वह व्यक्ति समस्या को समझ सकता है और कारण पर ध्यान दे सकता है. अब हम एक मिनिट के लिए इसकी तुलना विकास के क्षेत्र से करें. विकास में, मूल्यांकन होता है प्रोजेक्ट के बिलकुल अंत में. मैं ऐसी कई सभाओं में बैठी हूँ. और तब तक, उन आंकड़ों का इस्तेमाल करने में बहुत देर हो जाती है. एक बार एक एनजीओ के किसी व्यक्ति ने मुझसे इस की तुलना अँधेरे में बोलिंग करने के बराबर दी. उन्होनें कहा, "तुम बॉल को लुढ़काते हो, कुछ पिनों के गिरने की आवाज़ सुनाई देती है. अँधेरा है, इसलिए जब तक बत्तियां न जलें, तुम देख नहीं सकते कि कौन सी गिरी , और फिर तुम अपना असर देख सकते हो." समकालीन आंकड़े उन बत्तियों को जलाते हैं. अब वह दूसरी चीज़ क्या है जिसमें कोक आगे है? वे बहुत आगे हैं लोकल उद्यमी प्रतिभा का इस्तेमाल करने में. कोक अफ्रीका में १९२८ से है, पर ज़्यादातर वे दूर-दराज़ के बाजारों में नहीं जा पाते थे, क्योंकि उनका तरीका विकसित देशों से बहुत मिलता-जुलता था, यानि एक भरी हुई ट्रक ले कर गलियों में निकलना. और अफ्रीका के दूर-दराज़ इलाकों में, अच्छी सड़कें मिलना बहुत मुश्किल है. पर कोक ने एक बात नोट की. उन्होंने देखा कि लोकल व्यक्ति सामान खरीद रहे थे, और वो भी थोक में, और फिर वो उसे दूर-दराज़ इलाकों में जा कर दोबारा बेच रहे थे. उन्हें यह सब देखने-समझने में थोड़ा समय ज़रूर लगा. और उन्होंने १९९० में निर्णय लिया कि वो लोकल उद्यमियों को प्रशिक्षण देना शुरू करना चाहते थे, उन्हें छोटे ऋण दे कर. उन्होंने यह सब शुरू किया माइक्रो-डिस्ट्रीब्यूशन केंद्र चला कर. जिसमें वही लोकल उद्यमी सेल्समेन रखते हैं, जो फिर साइकिल, हाथगाड़ी या ठेला ले कर निकलते हैं सामान बेचने के लिए. अब अफ्रीका में करीब ३००० ऐसे केंद्र हैं जिनमें १५००० लोग काम कर रहे हैं. तंज़ानिया और युगांडा में, वे ९०% भाग सँभालते हैं कोक की बिक्री का. अब विकास के क्षेत्र की तरफ देखें. ऐसा क्या है जो सरकारें और एनजीओ कोक से सीख सकते हैं? सरकारें और एनजीओ उस स्थानीय (लोकल) प्रतिभा के कोष का अपने काम के लिए उपयोग कर सकती हैं, क्योंकि स्थानीय लोग जानते हैं कि कैसे पहुंचना है दूर-दराज़ इलाकों में, उनके पड़ोसियों तक, वो यह भी जानते हैं कि उन्हें बदलाव लाने के लिए कैसे प्रेरित करना है. मैं सोचती हूँ कि इसका एक बढ़िया उदाहरण है इथियोपिया का नया स्वास्थ्य विस्तार प्रोग्राम. इथियोपिया में सरकार ने देखा कि बहुत सारे लोग किसी भी स्वास्थ्य-केंद्र से इतने दूर थे, कि उन्हें स्वास्थ्य केंद्र पहुँचने के लिए एक दिन से भी ज्यादा सफ़र करना पड़ता. तो अगर आप आपातकालीन अवस्था में हों, या बच्चा पैदा करने के लिए बिलकुल तैयार माँ हों, तो भूल जायें, स्वास्थ्य-केंद्र पहुंचना तो मुमकिन ही नहीं. सरकार ने तय किया कि यह ठीक नहीं था, तो वे भारत गए और वहाँ के केरल प्रदेश का अध्ययन किया जहाँ ऐसा ही सिस्टम था, और उन्होनें उसे इथियोपिया के हिसाब से अपना लिया. और २००३ में इथियोपिया की सरकार ने इस नए सिस्टम को अपने देश के लिए शुरू किया. उन्होनें ३५००० स्वास्थ्य-विस्तार कर्मचारियों को ट्रेन किया ताकि वे देख-रेख सीधे लोगों तक पहुंचा सकें. सिर्फ पांच सालों में, उनका अनुपात ३०००० लोगों के लिए १ कर्मचारी से बढ़ कर २५०० लोगों के लिए १ कर्मचारी हो गया. अब ज़रा सोचिये, इससे लोगों की ज़िन्दगी कितनी बदल सकती है. स्वास्थ्य विस्तार कर्मचारी कितनी चीज़ों में मदद कर सकते हैं, चाहे वह परिवार नियोजन हो, या प्रसव से पहले की देखभाल, या फिर बच्चों के लिए टीके, या किसी औरत को यह बताना कि वह समय से केंद्र पहुँच जाए समयपूर्वक प्रसव के लिए. यह होता है असली प्रभाव इथियोपिया जैसे देश के लिए, और इसीलिए आप देख सकते हैं कि उनके शिशु-मृत्यु आंकड़े २५% नीचे आ रहे हैं २००० से २००८ के बीच में. इथियोपिया में कई सौ हज़ार बच्चे जीवित हैं इसी स्वास्थ्य विस्तार कर्मचारी प्रोग्राम के कारण. तो इथियोपिया के लिए अगला कदम क्या है? भई, वो तो अभी से उसके बारे में बात शुरू कर रहे हैं. उनकी बातें शुरू हो रही हैं, "हम कैसे पक्का करें कि स्वास्थ्य समुदाय कर्मचारी नए विचार खुद उत्पन्न करें?" हम उन्हें उस असर के आधार पर कैसे बढ़ावा दें, जो वो दिखा रहे हैं उन दूर-दराज़ गांवों में?" इसी तरह से आप स्थानीय उद्यमी प्रतिभा का उपयोग कर सकते हैं और लोगों की क्षमताओं को बढ़ा सकते हैं. कोक की सफलता का तीसरा भाग है उनकी मार्केटिंग. आखिरकार, कोक की सफलता एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण बात पर निर्भर करती है, और वह यह है कि लोग चाहते हैं एक कोका-कोला. अब वह कारण जिससे यह छोटे उद्यमी बिक्री कर सकते हैं या मुनाफा कमा सकते हैं, यह है कि उन्हें अपनी ठेलागाड़ी या हाथगाड़ी में रखी हर एक बोतल बेचनी होती है. तो वे कोका-कोला पर भरोसा करते हैं -- यानि उसकी मार्केटिंग पर. और उसकी मार्केटिंग का रहस्य क्या है? अरे,वह आकांक्षापूर्ण है. वह उस प्रोडक्ट को जोड़ती है उस तरह के जीवन के साथ जो लोग जीना चाहते हैं. तो हालांकि यह एक विश्वव्यापी कम्पनी है, पर उनका तरीका बहुत स्थानीय है. कोक के विश्वव्यापी अभियान का नारा है "उन्मुक्त आनंद". पर वो इसे स्थानीय बनाते हैं. और वो सिर्फ अनुमान नहीं लगाते कि लोग किस बात से खुश होते हैं, बल्कि वो लैटिन अमेरिका जैसी जगहों पर जाते हैं, और समझते हैं कि वहाँ पर आनंद पारिवारिक जीवन से जुड़ा हुआ है. और दक्षिणी अफ्रीका में, आनंद का ताल्लुक (अस्पष्ट) या समुदाय में इज्ज़त से है. अब यह तो हमें नज़र आया वर्ल्ड कप के अभियान में. चलिए इस गाने को सुनें जो कोक ने उसके लिए रचा, "लहराता झंडा" -- एक सोमाली रैप संगीतकार के द्वारा. (वीडिओ) के'नान 'ओह ओह ओह ओह ओह ओ-ओह' ओह ओह ओह ओह ओह ओह ओह ओह ओह ओह ओह ओह ओह ओह ओह ओ-ओह ओह ओह ओह ओह ओह ओह ओह ओह ओ-ओह तुम्हें मुक्ति दें, तुम्हें जोश दें, तुम्हें ज्ञान दें, ऊंचे ले चलें, देखो मैदान में विजेता उतर आये तुम अर्थ देते हो, गर्वित करते हो हमें गलियों में सर हमारे ऊंचे हो जाते हैं भूल जाते हैं हम प्रतिबन्ध बस आनंद ही आनंद, चारों ओर हमारे हर देश, चारों ओर हमारे मेलिंडा फ्रेंच गेट्स: मजेदार है, है न? मगर वो यहीं तक नहीं रुके. उन्होनें इसे १८ स्थानीय भाषाओँ में रूपांतरित किया. और वह लोकप्रिय चार्ट्स का एक नंबर गाना बना १७ देशों में. यह मुझे अपने बचपन के एक लोकप्रिय गाने की याद दिलाता है, "मैं दुनिया को गाना सिखाना चाहूं". वो भी लोकप्रिय चार्ट्स का नंबर एक गाना था. दोनों गानों में एक समानता है: एक जैसा आग्रह आनंद और एकता के लिए. तो स्वास्थ्य और विकास कैसे अपनी मार्केटिंग करते हैं? उनकी मार्केटिंग टाल-मटोल पर आधारित है, महत्त्वाकांक्षाओं पर नहीं. मुझे विश्वास है कि आपने इनमें से कुछ सन्देश अवश्य सुने होंगे. "निरोध इस्तेमाल करिए, एड्स से बचिए." "हाथों को धोइए, आपको दस्त नहीं होंगे." मुझे ये सब कहीं से भी "लहराता झंडा" जैसे नहीं लगते. और मुझे लगता है हम एक बुनियादी गलती करते हैं, हम पहले से ही एक धारणा बना लेते हैं, हम सोचते हैं कि अगर लोगों को किसी चीज़ की ज़रुरत है, तो हमें उनके अन्दर उस चीज़ की कामना नहीं उत्पन्न करनी चाहिए. और मुझे लगता है कि यह हमारी भूल है. और दुनिया भर में यह संकेत मिल रहे हैं कि इस में बदलाव आ रहा है. एक उदाहरण है सफाई-व्यवस्था. हमें पता है कि करीब १५ लाख बच्चे हर साल दस्त के रोग से मरते हैं, और इस का मुख्य कारण है खुले स्थान में शौच करना. और इसका समाधान है: शौचालय बनाना. पर हमें सारी दुनिया में पता चल रहा है, बार बार, कि अगर आप सिर्फ शौचालय बना कर छोड़ देते हैं, तो उसका प्रयोग नहीं होता. लोग अपने घर में उसके पत्थर का उपयोग कर लेते हैं. कभी वो उसका अनाज भरने के लिए उपयोग करते हैं. मैंने उसका मुर्गियों के दड़बे के लिए उपयोग होते भी देखा है. (हंसी) तो मार्केटिंग ऐसा क्या कर सकती है, जिससे सफाई के समाधान दस्त के रोग में अपना प्रभाव दिखा सकें? एक तो, आप समुदायों के साथ काम कर सकते हैं. आप लोगों को समझा सकते हैं कि खुले मैं शौच करना एक ऐसी चीज़ है जो गाँव में नहीं होनी चाहिए, और वो सहमत होते हैं. और फिर आप शौचालय को ले कर दिखा सकते हैं कि वो एक आधुनिक, नयी सहूलियत की चीज़ है. उत्तर भारत के एक प्रदेश में तो उन्होनें यहाँ तक किया है कि शौचालयों को शादी के लिए ज़रूरी बना दिया है. और इसका असर होता है. इन सुर्ख़ियों को देखिये. (हंसी) मैं मजाक नहीं कर रही हूँ. लड़कियाँ अब बिना शौचालय वाले आदमियों से शादी करने से इंकार कर रही हैं. शौचालय नहीं, तो शादी नहीं. (हंसी) अब यह सिर्फ मजाकिया सुर्खी नहीं है. यह नया है, मौलिक है. यह एक प्रगतिशील मार्केटिंग अभियान है. पर सबसे बढ़ कर, यह जीवन बचाता है. जरा इसे देखिये. यह कमरा कई युवा पुरुषों से भरा हुआ है, जिन के साथ हैं मेरे पति, बिल. और क्या आप अंदाज़ लगा सकते हैं कि ये युवक किसलिए इकट्ठे हुए हैं? ये सब खतने के इंतज़ार में रुके हैं. क्या आप विश्वास कर सकते हैं? हम जानते हैं कि खतने से एच आई वी संक्रमण आदमियों में करीब ६०% कम हो जाता है. और जब हमने फाउंडेशन में पहली बार इस परिणाम को सुना, तो मुझे स्वीकार करना पड़ेगा, बिल और मैं अपने सर खुजा रहे थे, और कह रहे थे, "पर कौन इस तरीके के लिए अपनी मर्ज़ी से आगे आएगा?" पर आदमी आगे आये, क्योंकि वो अपनी औरतों से सुनते हैं कि उन्हें यह चाहिए, और आदमियों को यह भी भरोसा है कि इससे उनकी यौन-क्षमता बेहतर होगी. तो अगर हम यह समझना शुरू करें कि लोग वाकई में क्या चाहते हैं स्वास्थ्य और विकास में, तो हम समुदायों को बदल सकते हैं और हम समूचे देशों को बदल सकते हैं. तो यह सब इतना महत्त्वपूर्ण क्यों है? चलिए उस समय की बात करें जब यह सब होने लगेगा, जब यह तीनों चीज़ें एक साथ जुड़ जायेंगी. और मेरे ख़याल से पोलियो इसका सबसे प्रभावशाली उदाहरण है. हमने २० सालों में पोलियो में ९९% कमी देखी है. तो अगर आप १९८८ की ओर नज़र डालें, तो पोलिओ के करीब ३,५०,००० उदाहरण उस साल विश्व में थे. २००९ में, केवल १६०० ऐसे उदाहरण हैं. तो ऐसा कैसे संभव हुआ? चलिए भारत जैसे देश को देखें. इस देश में १ अरब से अधिक लोग हैं, पर केवल ३५.००० स्थानीय डॉकटर हैं जो लकवे की रिपोर्ट करते हैं, और चिकित्सक, औषध विक्रेताओं का एक बड़ा रिपोर्टिंग-सिस्टम. उनके पास २५ लाख टीका लगाने वाले हैं. पर मैं इस कहानी को आपके लिए और साकार बनाती हूँ. मैं आपको श्रीराम की कहानी सुनाती हूँ, जो एक १८ महीने का लड़का है, भारत के एक उत्तरी भाग, बिहार से. इस साल, ८ अगस्त को, उसे लकवा मार गया, और १३ तारीख को उसके माँ-बाप उसे डॉक्टर के पास ले गए. अगस्त १४ और १५ को उसके मल की जांच हुई, और २५ अगस्त तक, यह साबित हो चुका था कि उसे टाइप १ पोलिओ है. ३० अगस्त तक, एक आनुवंशिक टेस्ट किया गया, जिससे हमें पता चला कि श्रीराम के पोलिओ की नस्ल क्या है. अब यह नस्ल दो में से एक जगह से आ सकती थी. यह थोड़े उत्तर में, सीमा के पार, नेपाल से आ सकती थी, या फिर कुछ दक्षिण में, झारखंड से भी आ सकती थी. भाग्य से, आनुवंशिक टेस्ट ने साबित किया कि असल में यह नस्ल उत्तर से ही आई थी, क्योंकि अगर यह दक्षिण से आती, तो इसके प्रसार का असर कहीं अधिक होता. कहीं ज्यादा लोग इसकी चपेट में आ जाते. तो निष्कर्ष क्या है? आखिर ४ सितम्बर को, एक बड़ा सफ़ाया-अभियान हुआ, जो पोलिओ में अक्सर किया जाता है. वो सब गए, और जहाँ श्रीराम रहता है, वहाँ २० लाख लोगों को टीका लगाया. तो एक महीने से कम समय में, तो लकवे के एक मामले से हम पहुँच गए एक उद्देश्यपूर्ण टीका-अभियान तक. और मुझे यह बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि उस इलाके में सिर्फ एक और व्यक्ति को पोलिओ हुआ. इसी तरह से आप रोक सकते हैं एक बड़े प्रकोप को फैलने से, और इससे पता चलता है कि क्या हो सकता है जब स्थानीय लोगों के हाथ में आंकड़े आते हैं; वो जानें बचा सकते हैं. तो पोलियो की सबसे बड़ी चुनौती अभी भी है -- मार्केटिंग, पर वो नहीं जो आप शायद सोच रहे होंगे. यह रोज़मर्रा की मार्केटिंग नहीं है. यह माँ-बाप को बताने वाली मार्केटिंग नहीं है -- "अगर लकवा देखें, तो अपने बच्चे को डॉक्टर के पास ले जाइए या फिर उसे टीका लगवाइये." हमारी मार्केटिंग की समस्या है पैसा देने वाले समुदाय के साथ. जी ८ देश पोलिओ के लिए हमेशा बहुत ही उदार रहे हैं पिछले २० सालों से, पर अब हमें पोलियो-से-थकान जैसी कुछ चीज़ महसूस हो रही है, और वो यह कि पैसा देने वाले देश अब पोलियो पर और पैसा लगाने के लिए तैयार नहीं हैं. इसलिए अगली गर्मियों तक, हमारे पास पोलियो के लिए पैसा नहीं रहेगा. तो अब हम ९९% इस लक्ष्य की ओर पहुँच चुके हैं, और जल्द ही हमारे पैसे कम पड़ने वाले हैं. और मैं सोचती हूँ कि अगर मार्केटिंग महत्त्वाकांक्षा पर आधारित हो, अगर हम एक समुदाय के तौर पर अपना ध्यान केन्द्रित कर सकें इस बात पर कि हम कितने आगे आ गए हैं और कितना अभूतपूर्व होगा इस बीमारी को जड़ से मिटा देना, तभी हम पोलियो-से-थकान को और पोलियो को अपने पीछे छोड़ सकेंगे. और अगर हम यह कर पाए, तो हम दुनिया भर में हरेक को टीका लगाना बंद कर देंगे, सारे देशों में, पोलियो के लिए. और यह बस वो दूसरी बीमारी बन जाएगा जिसे इस ग्रह से पूर्णतयः नष्ट कर दिया गया. और हम इसके इतने करीब हैं. और यह जीत इतनी मुमकिन है. तो अगर कोक के मार्केटिंग वाले मेरे पास आते और मुझसे ख़ुशी की परिभाषा पूछते, तो मैं कहती कि मेरे लिए ख़ुशी की झलक है वो माँ जो एक स्वस्थ बच्चे को लिए है अपनी गोद में. मेरे लिए, यही गहरी खुशी है. तो अगर हम हर क्षेत्र के पथ-प्रदर्शकों से कुछ सबक सीखना चाहते हैं, तो उस आने वाले कल में, जो हम मिल कर बना रहे हैं, वह ख़ुशी उतनी ही सर्वव्यापी हो सकती है जितना कोका-कोला. धन्यवाद. (तालियाँ)