अहम् ब्रह्मास्मि!
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0:19 - 0:33रविवार सत्संग
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0:33 - 0:39अहम् ब्रह्मास्मि!
19 जून, 2016 -
0:39 - 0:42तुम जवाब के लिए बाहर देख रहे हो ,
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0:42 - 0:47और मैं जवाब के तौर पर तुम्हें देख रहा हूँ।
[हँसी] -
0:47 - 0:49तुम जवाब के लिए बाहर देख रहे हो।
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0:49 - 0:53'हाँ', तुम कहते हो,
'लेकिन कभी कभी दृष्टि धुंधली हो जाती है'। -
0:53 - 0:58मुझे पता है, जो भी तुम देखना चाहते हो
और जो धुंधला हो जाता है, वो वह नहीं है। -
0:58 - 1:04तुम, जो धुंधलेपन और साफ़ का साक्षी है,
तुम वह हो। -
1:04 - 1:06यही बात है!
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1:06 - 1:11यही चैतन्य का मोड़ है
जिसे अनुभव करना हर किसी के लिए ज़रूरी है । -
1:11 - 1:13हम बहुत वक़्त ज़ाया कर रहे हैं
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1:13 - 1:16क्योंकि कुछ जानने का परम्परागत तरीक़ा है
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1:16 - 1:19कि एक चीज़ दूसरी चीज़ को जान रही है।
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1:19 - 1:21और मैं तुम्हें कह रहा हूँ,
नहीं ,नहीं, नहीं! -
1:21 - 1:28ये दो चीज़ें नहीं हैं।
यह एक चीज़ भी नहीं है। -
1:28 - 1:33[म:] क्या तुम इस से उलझन में पड़ गए?
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1:33 - 1:35[म:] क्या तुम?
[प्र:] नहीं। -
1:35 - 1:45[म:] हाँ, तुम पड़ गए हो।
[हँसी] -
1:45 - 1:50[म:] अब मैं कह सकता हूँ, सब कुछ छोड़ दो,
क्योंकि यह ठीक समय है । -
1:50 - 1:59मैं कहता हूँ ये सभी विचार छोड़ दो,
छोड़ो, छोड़ो, छोड़ो! -
1:59 - 2:04हम कभी अनुभव के तौर पर एक नहीं होंगे
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2:04 - 2:08जब तक तुम खुद को व्यक्ति मानते रहोगे
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2:08 - 2:10क्योंकि हर व्यक्ति अनुकूलित है ।
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2:10 - 2:12हर व्यक्ति किसी पार्टी का होता है,
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2:12 - 2:18किसी धर्म का, किसी फ़लसफ़े का,
किसी राजनीतिक संगठन का, -
2:18 - 2:23किसी तरह की सामाजिक संस्था का ;
कुछ न कुछ पहचान तुमने ओढ़ी हुई है । -
2:23 - 2:29और हर पहचान अपना नज़रिया
बनाये रखने के लिए लड़ती है। ठीक है? -
2:29 - 2:33हम कभी भी, कभी भी सहमत नहीं होंगे,
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2:33 - 2:35जब तक तुम व्यक्ति-भाव में हो!
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2:35 - 2:37यह मौलिक बात है।
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2:37 - 2:41मैं तुम्हें रमन महर्षि का सन्देश
ला कर दूंगा, -
2:41 - 2:44मैं तुम्हें शंकर का सन्देश दूंगा,
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2:44 - 2:46जो सिर्फ सन्देश नहीं है,
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2:46 - 2:52मैं ही उनका सन्देश हूँ, इसी क्षण में।
और मैं यह कहने से डरता नहीं हूँ। -
2:52 - 2:55यह अभिमान नहीं है,
मैं इसे अभिमान से नहीं कहता। -
2:55 - 2:58पर किसी में तो यह कहने का साहस होना चाहिए।
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2:58 - 3:02क्योंकि किसी ने मुझसे पूछा,
'आपके गुरु का सर्वोच्च उपदेश क्या है?' -
3:02 - 3:04मैंने कहा,
मैं अपने गुरु का सर्वोच्च उपदेश हूँ। -
3:04 - 3:07मुझे यह कहना पड़ेगा !
यह अक्खड़पन लगता है, -
3:07 - 3:11लेकिन यह अक्खड़पन नहीं है, क्योंकि
मुझमें साहस है यह कहने का कि मैं क्या हूँ। -
3:11 - 3:16[म:] तो मुझे तुम्हारी ओर से यह कहना पड़ेगा।
[संघ] जी! -
3:16 - 3:18[म:] क्योंकि तुम यह कहने से डरते हो।
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3:18 - 3:22और यह इसलिए नहीं क्योंकि
तुम कहते हो कि तुम वह हो। -
3:22 - 3:24ऐसा नहीं है। इसे अनुभव करना पड़ेगा।
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3:24 - 3:30और मैं बहुत देर तुम्हारा इंतज़ार करता हूँ।
तुम बहुत धीमे हो। तुम इतने शर्मिंदा हो। -
3:30 - 3:36तो इसलिए कभी कभी मुझे कहना पड़ता है:
मैं वह हूँ! /अहम् ब्रह्मास्मि! -
3:36 - 3:38तुम्हारी तरफ़ से
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3:38 - 3:43तुम्हें यह कहने का साहस देने के लिए,
कि हर बात मानने का एक उचित समय होता है... -
3:43 - 3:48यह ईश्वर निन्दा नहीं है
और यह कहना उद्दंडता नहीं है। -
3:48 - 3:50[प्र:] धन्यवाद।
[म:] तुम समझे? -
3:50 - 3:56हम एक मानवता के तौर पर
इस तक नहीं पहुँच पाएंगे -
3:56 - 4:02जब तक हम यह मानते रहेंगे कि
और तुम अपने गुट के लिए वफ़ादार रहोगे! -
4:02 - 4:05क्योंकि यह तुम्हें सिखाएगा,
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4:05 - 4:09'तुम मुसलमान हो, तुम ईसाई हो, तुम
हिन्दू हो - हम कभी नहीं मिल सकते!' -
4:09 - 4:14किसी गुट में जो सबसे उदार विचार के
भी होते हैं वे भी नहीं मिल पाते -
4:14 - 4:18मैं कई बार कुछ गुटों को मिला हूँ
और गुट के सबसे उदार लोग भी -
4:18 - 4:21उस गुट का ही थोड़ा कमज़ोर रूप होते हैं।
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4:21 - 4:23यह एक जीवित सत्य होना चाहिए!
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4:23 - 4:27और सिर्फ़ एक रास्ता जिससे तुम
इस जीवंत सत्य तक पहुँच सकते हो -
4:27 - 4:31तुम्हें उस गाय की तरह होना पड़ेगा
जो चाँद को पार कर गयी थी। -
4:31 - 4:34और यह चाँद तुम्हारा अपना दिमाग है !
तुम्हें इसे पार करना होगा। -
4:34 - 4:37जब तक तुम इस व्यक्ति के तौर पर रहोगे ,
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4:37 - 4:41तुम व्यक्ति की तरह बहस करोगे,
व्यक्ति की तरह बचाव करोगे। -
4:41 - 4:43और मैं तुम्हें सबसे
सुन्दर मार्ग दिखा रहा हूँ। -
4:43 - 4:47सबसे सुन्दर मार्ग है होने का मार्ग।
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4:47 - 4:51तुम्हें उसमें से बाहर आना होगा।
मैं दिखाता हूँ, मैं दिखाता हूँ। -
4:51 - 4:54मैं ये नहीं कहता, जाओ! मैं कहता हूँ,
आओ, मेरे साथ देखो। -
4:54 - 4:58और मेरे साथ प्रमाण दो
अपने असली स्वरुप का । -
4:58 - 5:02यह कल्पना नहीं है, यह कोई आध्यात्मिक
कल्पना नहीं है। -
5:02 - 5:05यह पलायनवाद नहीं है, यह सबसे सच्चा है।
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5:05 - 5:07और सब कुछ इस धरती पर से गायब हो जायेगा
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5:07 - 5:11सिवाय इसके जो मैं तुमसे कह रहा हूँ,
उसके सत्य के सिवा। -
5:11 - 5:13और मैं तुम्हें सिर्फ यह बताने की
कोशिश कर रहा हूँ -
5:13 - 5:17कि तुम्हें इसका इलाज करवाना होगा
इस गलती का जो तुम कर रहे हो -
5:17 - 5:21इस पहचान को पकड़े रहने की
कि तुम सिर्फ हाड़ मांस का पुतला हो। -
5:21 - 5:25तुम वह भी हो,
पर अधिकतर तुम वैसे नहीं रहते। -
5:25 - 5:29अब समय है बड़े होने का,
सिर्फ़ बूढ़े होने का नहीं। -
5:29 - 5:32बड़े हो जाओ! और उन आँखों से देखो
जिनसे मैं देख रहा हूँ। -
5:32 - 5:34जब मैं तुम्हें देखता हूँ, तो मैं
ब्रह्म: देखता हूँ; -
5:34 - 5:37जब तुम बोलते हो,
तुम ब्रह्म: के रूप में नहीं बोलते। -
5:37 - 5:40तुम किसी ऐसी चीज़ के रूप में बोलते हो
जो काल से पैदा हुआ है, -
5:40 - 5:46जो कुछ मौसमों के बाद यहाँ नहीं होगा।
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5:46 - 5:48तो हिम्मत करो।
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5:48 - 5:52और जो मैं कहता हूँ उसे दिल से सुनो,
मेरे संकेत का अनुसरण करो। -
5:52 - 5:57जो इस समय मैं इतने विश्वास के साथ
कह रहा हूँ, तुम खुद कह पाओगे -
5:57 - 6:00अपने खुद के अनुभव के आधार पर।
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6:00 - 6:02मैं तुम्हें यकीन करने को नहीं कह रहा हूँ।
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6:02 - 6:07विश्वास, आस्था- ये सब ठीक हैं।
लेकिन यह साबित होना चाहिए! -
6:07 - 6:12मैं बता रहा हूँ, मैं यहाँ इसे साबित करने
आया हूँ। और तुम्हारे तौर पे साबित करने! -
6:12 - 6:15[संघ:] जी!
[म:] और तुम तंग दिल हुए बैठे हो, -
6:15 - 6:19जब तुम कहते हो कि तुम दुनिया कि सबसे
महत्वपूर्ण चीज़ महसूस करना चाहते हो, -
6:19 - 6:22लेकिन तुम खुद को इतना कम प्रस्तुत करते हो।
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6:22 - 6:24तुममें साहस होना चाहिए खड़े हो कर कहने का
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6:24 - 6:28मूजी मैं इसके लिए पूरी तरह से यहाँ हूं।'
[संघ:] जी हाँ! -
6:28 - 6:30'[प्र:] मैं यहाँ हूं। धन्यवाद।
[म:] धन्यवाद। -
6:30 - 6:33[म:] धन्यवाद्। ऐसे। देखा तुमने?
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6:33 - 6:36क्यूंकि पूरी दुनिया तुम्हें देख रही है,
और कह रही है, -
6:36 - 6:40'अगर वे वहां हो सकते हैं
उनके सामने, उन्हें सुनते हुए, -
6:40 - 6:43और वे पीछे पीछे हट रहे हैं,
डरे हुए बच्चों की तरह....' -
6:43 - 6:46और मैं कह रहा हूं, देखो, पीछे चलो और देखो।
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6:46 - 6:49मैं कोई जादुई मसाला नहीं फेंक रहा
तुम्हारे चेहरे पर, -
6:49 - 6:52मैं तुमसे बहुत सीधी सादी
भाषा में बात कर रहा हूं। -
6:52 - 6:55और फिर भी मुझे कोई प्रतिक्रिया
नहीं मिल रही। कि मुझे लगे -
6:55 - 6:59तुम्हें तो इतना खुश होना चाहिए,
कि इस ज़माने में -
6:59 - 7:04तुम्हारे पास यह अवसर है
इस सब बकवास से सच में मुक्त होने का ! -
7:04 - 7:08[हंसी]
[संघ] हाँ! जी हाँ! -
7:08 - 7:17[म:] ठीक है! तो हम फिर बैठ सकते,
और चलते हैं। [हंसी] -
7:17 - 7:21धन्यवाद्।
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7:21 - 7:27यह बहुत अद्भुत बात है, क्योंकि हमारे समय
में यह उपदेश अभी भी जीवंत है। -
7:27 - 7:30यह कभी भी पुराना नहीं होगा।
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7:30 - 7:36और कई पीढ़ियों बाद, जब हम
शारीरिक रूप से यहाँ से चले गए होंगे -
7:36 - 7:38वे प्राणी जो अभी अजन्मे हैं, वे आएंगे
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7:38 - 7:44और इस से सीखेंगे जो मैं आज कह रहा हूं।
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7:44 - 7:48येसु मसीह के कुछ सबसे बड़े अनुयायी
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7:48 - 7:52ज़रूरी नहीं कि उन बारह अनुयायियों
में से थे जो उनके साथ चले थे। -
7:52 - 7:58शायद उनके सबसे बड़े अनुयायी अभी अजन्मे थे।
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7:58 - 8:01तुम्हें शारीरिक रूप से वहां होना ज़रूरी नहीं,
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8:01 - 8:05लेकिन तुम्हारे पास ऐसा दिल होना चाहिए
जिसमें प्रेम और विश्वास की शक्ति हो , -
8:05 - 8:13और इन शब्दों का अनुसरण करो !
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8:13 - 8:15ऐसे ही।
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8:15 - 8:18तुम्हें मुक्ति के कोई 17 चरण
नहीं दिए जा रहे। -
8:18 - 8:21यह आसान है, मैं आसान सा इशारा कर रहा हूं,
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8:21 - 8:24लेकिन अगर तुम अपने व्यक्ति के तौर पर
बहस करते रहोगे, -
8:24 - 8:27तो तुम छोटे छोटे कदम लोगे।
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8:27 - 8:30ये छोटे कदम, ये ठीक हैं।
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8:30 - 8:35पर तुम ऐसे व्यवहार करते हो जैसे तुम्हारे
पास यह करने के लिए करोड़ों जन्म पड़े हैं । -
8:35 - 8:40मैंने कहा, आज तुम यहां से कुछ देख सकते हो।
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8:40 - 8:43चैतन्य की नज़रों से देखो।
तुम पहले ही वह हो। -
8:43 - 8:47तुम्हें कहीं बाहर जा कर इसके लिए
कोई साधन नहीं ढूंढने हैं। -
8:47 - 8:49तुम पहले ही यहाँ हो, ना?
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8:49 - 8:55यह समय धन्य है, और इस वक़्त
हमारी दुनिया में ऎसी स्थिति है -
8:55 - 9:01कि मुझे लगता है, कि हम मजबूर हों,
अपने बच्चों के लिए भी, -
9:01 - 9:05पर पहले अपने लिए भी,
कि हमें उसे पाना ही है । -
9:05 - 9:09कभी कभी जब हम हवाई जहाज़ में जाते हैं
तो मैं देखता हूं -
9:09 - 9:12कि वे आपको बताते हैं,
विधि दिखाते हैं -
9:12 - 9:16कि आपातकालीन स्थिति में
क्या करना चाहिए। -
9:16 - 9:21वे कहते हैं अगर हवा का दबाव कम हो रहा हो,
तो वे ये मास्क नीचे उतारते हैं। -
9:21 - 9:23क्या कहा उन्होंने?
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9:23 - 9:30उन्होंने कहा, 'पहले अपना पहनो!
और फिर अपने बच्चों को पहनाओ।' -
9:30 - 9:31'पहले ख़ुद पहनो।'
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9:31 - 9:36क्योंकि यदि तुमने ख़ुद पहनने का
मौका गवां दिया, तो वे गए! -
9:36 - 9:44पहले ख़ुद पहनो। पहले अपनी ज़िन्दगी बचाओ।
यह स्वार्थ नहीं है। -
9:44 - 9:50यदि तुम लोगों को संसार सागर में
डूबते हुए देखो, -
9:50 - 9:54तुम्हें करुणा महसूस हो, तुम उन्हें
बचाना चाहते हो,और तुम भाग रहे हो, -
9:54 - 10:00'आओ आओ, मेरे पास आ जाओ!'
पर तुम ख़ुद तैर नहीं सकते। -
10:00 - 10:06तो तुम्हें वह सत्य पाना होगा
जो तुम्हारे सामने ख़ुद पेश हो रहा है। -
10:06 - 10:09यह सरल सा संकेत है।
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10:09 - 10:14कई लोग आये और उन्होंने ये बातें कीं,
अलग अलग बातें, -
10:14 - 10:17पर अब यह इतना स्पष्ट दिख रहा है,
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10:17 - 10:21कि जैसे यह हमें उपहार स्वरूप मिला है,
मनुष्यों को, -
10:21 - 10:23इस तरह आसानी से देखने का।
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10:23 - 10:27ब्रह्माण्ड की नज़रों से देखने का।
ब्रह्माण्ड की नज़रों से कौन देख सकता है? -
10:27 - 10:32तुम्हें अपने अनुकूलन से मुक्त होने की
ज़रूरत नहीं,लेकिन तुम उसके पार जा सकते हो। -
10:32 - 10:36मैं कहता हूँ, पार जाओ।
उस पार नहीं, इस पार। -
10:36 - 10:39उस मूल में वापस आ जाओ जहाँ से देखना
-
10:39 - 10:43और दृष्टि का होना,
ख़ुद भी देखा जा सकता है। -
10:43 - 10:50और तुम सब जानते हो। तुम यह जानते हो।
इस जगह पर खड़े हो, वहां पर एक हो जाओ। -
10:50 - 10:53कुछ भी बनाओ नहीं, कोई नए विचार मत उठाओ।
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10:53 - 10:59खड़े हो कर पुष्टि करो कि तुम यहाँ हो।
तुम ही इस जगह की दृष्टि हो। -
10:59 - 11:04कितना सुन्दर, हमें कितना
कृतज्ञ होना चाहिए, इंसानी तौर पर -
11:04 - 11:08कि इतने वर्षों तक जो शिक्षा बहुत ऊँची
और बहुत मुश्क़िल मानी गयी, -
11:08 - 11:12कि जिसे प्राप्त करने में
जन्मों लग जायेंगे, -
11:12 - 11:16वह तुम्हें बच्चों के खाने की तरह
दी जा रही है। -
11:16 - 11:19क्योंकि जैसे जैसे वक़्त निकलता गया,
-
11:19 - 11:24हम अब वे लोग नहीं रहे
जिनमें ज़्यादा ध्यान देने की क्षमता हो। -
11:24 - 11:32जगत के परमात्मा ने
एक नया, सरल तरीका प्रस्तुत किया है, -
11:32 - 11:36'ऐसे देखो'।
और यह सबसे सुन्दर तरीका भी है। -
11:36 - 11:39क्योंकि जब तुम सत्य के प्रति जागृत हुए हो,
-
11:39 - 11:44तुम सिर्फ ईसाई या मुसलमान या हिन्दू
के तौर पर जागृत नहीं हुए। -
11:44 - 11:49तुम अस्तित्व के तौर पर जागृत हुए हो,
जो सर्वव्यापी है। -
11:49 - 11:54ये है जो मैं कहना चाह रहा हूँ।
-
11:54 - 11:58इस वक़्त दूसरे देशों में और लोग हैं
जो अलग अलग गुटों में देख रहे हैं। -
11:58 - 12:02वे इसके साथ शायद इसमें
तुमसे भी ज़्यादा मौजूद हैं। -
12:02 - 12:09क्योंकि वे इसे जानते हैं।
वे इसके लिए तरसते हैं। -
12:09 - 12:12इसीलिए मैंने यह तुम्हारे
सामने ऐसे प्रस्तुत किया, -
12:12 - 12:15क्योंकि मैं तुम्हारे भ्रमों को
बढ़ावा नहीं दे सकता। -
12:15 - 12:18लेकिन देखना, क्योंकि तुममें वह शक्ति है!
-
12:18 - 12:23किसी को तुम्हें यह बताने न दो कि
तुममें सर्वोच्च को जानने की ताकत नहीं है। -
12:23 - 12:27छोटी चीज़ें करने की ताकत शायद तुममें न हो,
-
12:27 - 12:29क्योंकि शायद वे तुम्हारी नहीं हैं।
-
12:29 - 12:31लेकिन सभी के लिए, वे ब्रह्म हैं।
-
12:31 - 12:36किसी न किसी पड़ाव पर यह
तुम्हारी आकांक्षा जगायेगा इसे ढूंढने के लिए। -
12:36 - 12:39तुम आये हो। मैं नहीं जानता तुममें से
बहुत से लोग कहाँ कहाँ से आये हैं , -
12:39 - 12:43पर मैं जानता हूँ कि पूरी दुनिया से लोग
इस कमरे में हैं। -
12:43 - 12:52क्योंकि यह सर्वयापी आवाज़ है
जो तुम्हें बुलाती है। -
12:52 - 12:56मैं तुम्हें केवल यह याद दिला रहा हूँ कि
तुममें क्षमता है, ताकत है, -
12:56 - 12:58जो कुछ भी तुम्हें चाहिए पार जाने के लिए,
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12:58 - 13:05उस जीवन को छोड़ने के लिए जो इतना अस्थिर
है, जो केवल दिमाग के द्वारा जिया जाता है, -
13:05 - 13:08केवल परंपरा और आदत के द्वारा।
-
13:08 - 13:14और उस जीवन में वापस आने की
जो गहरे अंतर्ज्ञान और नयेपन से भरा हुआ है। -
13:14 - 13:19मैं तुम्हें सिर्फ़ यही संकेत देना चाहता हूँ।
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13:19 - 13:21देखा?
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13:21 - 13:24[प्र:] धन्यवाद!
[म:] मैं और तुम कहते हो, ' धन्यवाद', -
13:24 - 13:27और मैं कहता हूँ, जगत के परमात्मा को
धन्यवाद, -
13:27 - 13:39और श्री शंकर को,
और श्री रमन महर्षि,और श्री पूंजाजी , -
13:39 - 13:44श्री निसर्गदत्ता महाराज,
श्री योगी रामसुरतकुमार, श्री आनंदमयी माँ, -
13:44 - 13:49और ये सभी प्राणी जो आये,
और जो हमारे समय में आये -
13:49 - 13:54यह याद दिलाने के लिए.....
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13:54 - 13:58शायद यह कभी बहुत धार्मिक मायने नहीं लेगा,
मुझे नहीं पता। -
13:58 - 14:02यह बहुत ही क्रन्तिकारी रूप से सरल है।
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14:02 - 14:07सत्य सरल है,
लेकिन सत्य को खोजने वाले जटिल हैं, -
14:07 - 14:12और हम हमेशा अपनी जटिलताओं से
आसक्त रहते हैं। -
14:12 - 14:14हम हर समय ख़ुद से ही लड़खड़ाते रहते हैं
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14:14 - 14:17क्योंकि हम इतने स्थिर नहीं हैं
की हम देख सकें -
14:17 - 14:20हमें कुछ ज़्यादा नहीं करना है,
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14:20 - 14:26बस चुप रहना है और देखना है,
जो निर्देश तुम्हें दिया गया है उसके साथ, -
14:26 - 14:32वह सत्य पाने के लिए जिसके लिए
तुम्हारा दिल इतना तरसता है। -
14:32 - 14:36मैं तुमसे कोई कविता नहीं कह रहा हूँ।
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14:36 - 14:38[प्र:] आपको प्यार!
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14:38 - 14:41[म:] तुम्हें भी प्यार।
[प्र:] प्यार, प्यार। -
14:41 - 14:43[म:] बहुत अच्छा।
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14:43 - 14:51कॉपीराइट © 2017 मूजी मीडिया
लिमिटेड सर्वाधिकार आरक्षित -
14:51 - 14:56इस रिकॉर्डिंग का कोई भाग मूजी मीडिया लि की
सहमति बिना पुन:प्रस्तुत नहीं किया जा सकता
- Title:
- अहम् ब्रह्मास्मि!
- Description:
-
मैं तुम्हें रमन महर्षि का सन्देश ला कर दूंगा,मैं तुम्हें शंकर का सन्देश ला कर दूंगा,जो सिर्फ सन्देश नहीं है| मैं ही उनका सन्देश हूँ, इसी क्षण। और मैं यह कहने से डरता नहीं हूँ।
यह अभिमान नहीं है| मैं इसे अभिमान से नहीं कहता। पर किसी में तो यह कहने का सहस होना चाहिए। मुझमें साहस है यह कहने का कि मैं क्या हूँ।
तो मुझे तुम्हारी ओर से यह कहना पड़ेगा। क्योंकि तुम यह कहने से डरते हो।मुझे कहना पड़ता है: मैं वह हूँ! /अहम् ब्रह्मास्मि! तुम्हारी तरफ़ से| यह ईश्वर निन्दा नहीं है|
हिम्मत करो। और जो मैं कहता हूँ उसे दिल से सुनो,
मेरे संकेत का अनुसरण करो।जो इस समय मैं इतने विश्वास के साथ कह रहा हूँ, तुम खुद कह पाओगे|अपने खुद के अनुभव के आधार पर।देखो, पीछे चलो और देखो।
यह पूरा वीडियो आप देख सकते है मूजी टीवी पर
http://mooji.tv/freemedia/i-am-here-to-declare-i-am-that-on-behalf-of-you/
रेकॉर्ड किया गया,19 जून 2016 मोंटे सहज़ा पोर्चुगल में|
यह और एसे अन्या वीडियो आप देख सकते है mooji.tv पर
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- Video Language:
- English
- Duration:
- 14:57
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