रविवार सत्संग अहम् ब्रह्मास्मि! 19 जून, 2016 तुम जवाब के लिए बाहर देख रहे हो , और मैं जवाब के तौर पर तुम्हें देख रहा हूँ। [हँसी] तुम जवाब के लिए बाहर देख रहे हो। 'हाँ', तुम कहते हो, 'लेकिन कभी कभी दृष्टि धुंधली हो जाती है'। मुझे पता है, जो भी तुम देखना चाहते हो और जो धुंधला हो जाता है, वो वह नहीं है। तुम, जो धुंधलेपन और साफ़ का साक्षी है, तुम वह हो। यही बात है! यही चैतन्य का मोड़ है जिसे अनुभव करना हर किसी के लिए ज़रूरी है । हम बहुत वक़्त ज़ाया कर रहे हैं क्योंकि कुछ जानने का परम्परागत तरीक़ा है कि एक चीज़ दूसरी चीज़ को जान रही है। और मैं तुम्हें कह रहा हूँ, नहीं ,नहीं, नहीं! ये दो चीज़ें नहीं हैं। यह एक चीज़ भी नहीं है। [म:] क्या तुम इस से उलझन में पड़ गए? [म:] क्या तुम? [प्र:] नहीं। [म:] हाँ, तुम पड़ गए हो। [हँसी] [म:] अब मैं कह सकता हूँ, सब कुछ छोड़ दो, क्योंकि यह ठीक समय है । मैं कहता हूँ ये सभी विचार छोड़ दो, छोड़ो, छोड़ो, छोड़ो! हम कभी अनुभव के तौर पर एक नहीं होंगे जब तक तुम खुद को व्यक्ति मानते रहोगे क्योंकि हर व्यक्ति अनुकूलित है । हर व्यक्ति किसी पार्टी का होता है, किसी धर्म का, किसी फ़लसफ़े का, किसी राजनीतिक संगठन का, किसी तरह की सामाजिक संस्था का ; कुछ न कुछ पहचान तुमने ओढ़ी हुई है । और हर पहचान अपना नज़रिया बनाये रखने के लिए लड़ती है। ठीक है? हम कभी भी, कभी भी सहमत नहीं होंगे, जब तक तुम व्यक्ति-भाव में हो! यह मौलिक बात है। मैं तुम्हें रमन महर्षि का सन्देश ला कर दूंगा, मैं तुम्हें शंकर का सन्देश दूंगा, जो सिर्फ सन्देश नहीं है, मैं ही उनका सन्देश हूँ, इसी क्षण में। और मैं यह कहने से डरता नहीं हूँ। यह अभिमान नहीं है, मैं इसे अभिमान से नहीं कहता। पर किसी में तो यह कहने का साहस होना चाहिए। क्योंकि किसी ने मुझसे पूछा, 'आपके गुरु का सर्वोच्च उपदेश क्या है?' मैंने कहा, मैं अपने गुरु का सर्वोच्च उपदेश हूँ। मुझे यह कहना पड़ेगा ! यह अक्खड़पन लगता है, लेकिन यह अक्खड़पन नहीं है, क्योंकि मुझमें साहस है यह कहने का कि मैं क्या हूँ। [म:] तो मुझे तुम्हारी ओर से यह कहना पड़ेगा। [संघ] जी! [म:] क्योंकि तुम यह कहने से डरते हो। और यह इसलिए नहीं क्योंकि तुम कहते हो कि तुम वह हो। ऐसा नहीं है। इसे अनुभव करना पड़ेगा। और मैं बहुत देर तुम्हारा इंतज़ार करता हूँ। तुम बहुत धीमे हो। तुम इतने शर्मिंदा हो। तो इसलिए कभी कभी मुझे कहना पड़ता है: मैं वह हूँ! /अहम् ब्रह्मास्मि! तुम्हारी तरफ़ से तुम्हें यह कहने का साहस देने के लिए, कि हर बात मानने का एक उचित समय होता है... यह ईश्वर निन्दा नहीं है और यह कहना उद्दंडता नहीं है। [प्र:] धन्यवाद। [म:] तुम समझे? हम एक मानवता के तौर पर इस तक नहीं पहुँच पाएंगे जब तक हम यह मानते रहेंगे कि और तुम अपने गुट के लिए वफ़ादार रहोगे! क्योंकि यह तुम्हें सिखाएगा, 'तुम मुसलमान हो, तुम ईसाई हो, तुम हिन्दू हो - हम कभी नहीं मिल सकते!' किसी गुट में जो सबसे उदार विचार के भी होते हैं वे भी नहीं मिल पाते मैं कई बार कुछ गुटों को मिला हूँ और गुट के सबसे उदार लोग भी उस गुट का ही थोड़ा कमज़ोर रूप होते हैं। यह एक जीवित सत्य होना चाहिए! और सिर्फ़ एक रास्ता जिससे तुम इस जीवंत सत्य तक पहुँच सकते हो तुम्हें उस गाय की तरह होना पड़ेगा जो चाँद को पार कर गयी थी। और यह चाँद तुम्हारा अपना दिमाग है ! तुम्हें इसे पार करना होगा। जब तक तुम इस व्यक्ति के तौर पर रहोगे , तुम व्यक्ति की तरह बहस करोगे, व्यक्ति की तरह बचाव करोगे। और मैं तुम्हें सबसे सुन्दर मार्ग दिखा रहा हूँ। सबसे सुन्दर मार्ग है होने का मार्ग। तुम्हें उसमें से बाहर आना होगा। मैं दिखाता हूँ, मैं दिखाता हूँ। मैं ये नहीं कहता, जाओ! मैं कहता हूँ, आओ, मेरे साथ देखो। और मेरे साथ प्रमाण दो अपने असली स्वरुप का । यह कल्पना नहीं है, यह कोई आध्यात्मिक कल्पना नहीं है। यह पलायनवाद नहीं है, यह सबसे सच्चा है। और सब कुछ इस धरती पर से गायब हो जायेगा सिवाय इसके जो मैं तुमसे कह रहा हूँ, उसके सत्य के सिवा। और मैं तुम्हें सिर्फ यह बताने की कोशिश कर रहा हूँ कि तुम्हें इसका इलाज करवाना होगा इस गलती का जो तुम कर रहे हो इस पहचान को पकड़े रहने की कि तुम सिर्फ हाड़ मांस का पुतला हो। तुम वह भी हो, पर अधिकतर तुम वैसे नहीं रहते। अब समय है बड़े होने का, सिर्फ़ बूढ़े होने का नहीं। बड़े हो जाओ! और उन आँखों से देखो जिनसे मैं देख रहा हूँ। जब मैं तुम्हें देखता हूँ, तो मैं ब्रह्म: देखता हूँ; जब तुम बोलते हो, तुम ब्रह्म: के रूप में नहीं बोलते। तुम किसी ऐसी चीज़ के रूप में बोलते हो जो काल से पैदा हुआ है, जो कुछ मौसमों के बाद यहाँ नहीं होगा। तो हिम्मत करो। और जो मैं कहता हूँ उसे दिल से सुनो, मेरे संकेत का अनुसरण करो। जो इस समय मैं इतने विश्वास के साथ कह रहा हूँ, तुम खुद कह पाओगे अपने खुद के अनुभव के आधार पर। मैं तुम्हें यकीन करने को नहीं कह रहा हूँ। विश्वास, आस्था- ये सब ठीक हैं। लेकिन यह साबित होना चाहिए! मैं बता रहा हूँ, मैं यहाँ इसे साबित करने आया हूँ। और तुम्हारे तौर पे साबित करने! [संघ:] जी! [म:] और तुम तंग दिल हुए बैठे हो, जब तुम कहते हो कि तुम दुनिया कि सबसे महत्वपूर्ण चीज़ महसूस करना चाहते हो, लेकिन तुम खुद को इतना कम प्रस्तुत करते हो। तुममें साहस होना चाहिए खड़े हो कर कहने का मूजी मैं इसके लिए पूरी तरह से यहाँ हूं।' [संघ:] जी हाँ! '[प्र:] मैं यहाँ हूं। धन्यवाद। [म:] धन्यवाद। [म:] धन्यवाद्। ऐसे। देखा तुमने? क्यूंकि पूरी दुनिया तुम्हें देख रही है, और कह रही है, 'अगर वे वहां हो सकते हैं उनके सामने, उन्हें सुनते हुए, और वे पीछे पीछे हट रहे हैं, डरे हुए बच्चों की तरह....' और मैं कह रहा हूं, देखो, पीछे चलो और देखो। मैं कोई जादुई मसाला नहीं फेंक रहा तुम्हारे चेहरे पर, मैं तुमसे बहुत सीधी सादी भाषा में बात कर रहा हूं। और फिर भी मुझे कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल रही। कि मुझे लगे तुम्हें तो इतना खुश होना चाहिए, कि इस ज़माने में तुम्हारे पास यह अवसर है इस सब बकवास से सच में मुक्त होने का ! [हंसी] [संघ] हाँ! जी हाँ! [म:] ठीक है! तो हम फिर बैठ सकते, और चलते हैं। [हंसी] धन्यवाद्। यह बहुत अद्भुत बात है, क्योंकि हमारे समय में यह उपदेश अभी भी जीवंत है। यह कभी भी पुराना नहीं होगा। और कई पीढ़ियों बाद, जब हम शारीरिक रूप से यहाँ से चले गए होंगे वे प्राणी जो अभी अजन्मे हैं, वे आएंगे और इस से सीखेंगे जो मैं आज कह रहा हूं। येसु मसीह के कुछ सबसे बड़े अनुयायी ज़रूरी नहीं कि उन बारह अनुयायियों में से थे जो उनके साथ चले थे। शायद उनके सबसे बड़े अनुयायी अभी अजन्मे थे। तुम्हें शारीरिक रूप से वहां होना ज़रूरी नहीं, लेकिन तुम्हारे पास ऐसा दिल होना चाहिए जिसमें प्रेम और विश्वास की शक्ति हो , और इन शब्दों का अनुसरण करो ! ऐसे ही। तुम्हें मुक्ति के कोई 17 चरण नहीं दिए जा रहे। यह आसान है, मैं आसान सा इशारा कर रहा हूं, लेकिन अगर तुम अपने व्यक्ति के तौर पर बहस करते रहोगे, तो तुम छोटे छोटे कदम लोगे। ये छोटे कदम, ये ठीक हैं। पर तुम ऐसे व्यवहार करते हो जैसे तुम्हारे पास यह करने के लिए करोड़ों जन्म पड़े हैं । मैंने कहा, आज तुम यहां से कुछ देख सकते हो। चैतन्य की नज़रों से देखो। तुम पहले ही वह हो। तुम्हें कहीं बाहर जा कर इसके लिए कोई साधन नहीं ढूंढने हैं। तुम पहले ही यहाँ हो, ना? यह समय धन्य है, और इस वक़्त हमारी दुनिया में ऎसी स्थिति है कि मुझे लगता है, कि हम मजबूर हों, अपने बच्चों के लिए भी, पर पहले अपने लिए भी, कि हमें उसे पाना ही है । कभी कभी जब हम हवाई जहाज़ में जाते हैं तो मैं देखता हूं कि वे आपको बताते हैं, विधि दिखाते हैं कि आपातकालीन स्थिति में क्या करना चाहिए। वे कहते हैं अगर हवा का दबाव कम हो रहा हो, तो वे ये मास्क नीचे उतारते हैं। क्या कहा उन्होंने? उन्होंने कहा, 'पहले अपना पहनो! और फिर अपने बच्चों को पहनाओ।' 'पहले ख़ुद पहनो।' क्योंकि यदि तुमने ख़ुद पहनने का मौका गवां दिया, तो वे गए! पहले ख़ुद पहनो। पहले अपनी ज़िन्दगी बचाओ। यह स्वार्थ नहीं है। यदि तुम लोगों को संसार सागर में डूबते हुए देखो, तुम्हें करुणा महसूस हो, तुम उन्हें बचाना चाहते हो,और तुम भाग रहे हो, 'आओ आओ, मेरे पास आ जाओ!' पर तुम ख़ुद तैर नहीं सकते। तो तुम्हें वह सत्य पाना होगा जो तुम्हारे सामने ख़ुद पेश हो रहा है। यह सरल सा संकेत है। कई लोग आये और उन्होंने ये बातें कीं, अलग अलग बातें, पर अब यह इतना स्पष्ट दिख रहा है, कि जैसे यह हमें उपहार स्वरूप मिला है, मनुष्यों को, इस तरह आसानी से देखने का। ब्रह्माण्ड की नज़रों से देखने का। ब्रह्माण्ड की नज़रों से कौन देख सकता है? तुम्हें अपने अनुकूलन से मुक्त होने की ज़रूरत नहीं,लेकिन तुम उसके पार जा सकते हो। मैं कहता हूँ, पार जाओ। उस पार नहीं, इस पार। उस मूल में वापस आ जाओ जहाँ से देखना और दृष्टि का होना, ख़ुद भी देखा जा सकता है। और तुम सब जानते हो। तुम यह जानते हो। इस जगह पर खड़े हो, वहां पर एक हो जाओ। कुछ भी बनाओ नहीं, कोई नए विचार मत उठाओ। खड़े हो कर पुष्टि करो कि तुम यहाँ हो। तुम ही इस जगह की दृष्टि हो। कितना सुन्दर, हमें कितना कृतज्ञ होना चाहिए, इंसानी तौर पर कि इतने वर्षों तक जो शिक्षा बहुत ऊँची और बहुत मुश्क़िल मानी गयी, कि जिसे प्राप्त करने में जन्मों लग जायेंगे, वह तुम्हें बच्चों के खाने की तरह दी जा रही है। क्योंकि जैसे जैसे वक़्त निकलता गया, हम अब वे लोग नहीं रहे जिनमें ज़्यादा ध्यान देने की क्षमता हो। जगत के परमात्मा ने एक नया, सरल तरीका प्रस्तुत किया है, 'ऐसे देखो'। और यह सबसे सुन्दर तरीका भी है। क्योंकि जब तुम सत्य के प्रति जागृत हुए हो, तुम सिर्फ ईसाई या मुसलमान या हिन्दू के तौर पर जागृत नहीं हुए। तुम अस्तित्व के तौर पर जागृत हुए हो, जो सर्वव्यापी है। ये है जो मैं कहना चाह रहा हूँ। इस वक़्त दूसरे देशों में और लोग हैं जो अलग अलग गुटों में देख रहे हैं। वे इसके साथ शायद इसमें तुमसे भी ज़्यादा मौजूद हैं। क्योंकि वे इसे जानते हैं। वे इसके लिए तरसते हैं। इसीलिए मैंने यह तुम्हारे सामने ऐसे प्रस्तुत किया, क्योंकि मैं तुम्हारे भ्रमों को बढ़ावा नहीं दे सकता। लेकिन देखना, क्योंकि तुममें वह शक्ति है! किसी को तुम्हें यह बताने न दो कि तुममें सर्वोच्च को जानने की ताकत नहीं है। छोटी चीज़ें करने की ताकत शायद तुममें न हो, क्योंकि शायद वे तुम्हारी नहीं हैं। लेकिन सभी के लिए, वे ब्रह्म हैं। किसी न किसी पड़ाव पर यह तुम्हारी आकांक्षा जगायेगा इसे ढूंढने के लिए। तुम आये हो। मैं नहीं जानता तुममें से बहुत से लोग कहाँ कहाँ से आये हैं , पर मैं जानता हूँ कि पूरी दुनिया से लोग इस कमरे में हैं। क्योंकि यह सर्वयापी आवाज़ है जो तुम्हें बुलाती है। मैं तुम्हें केवल यह याद दिला रहा हूँ कि तुममें क्षमता है, ताकत है, जो कुछ भी तुम्हें चाहिए पार जाने के लिए, उस जीवन को छोड़ने के लिए जो इतना अस्थिर है, जो केवल दिमाग के द्वारा जिया जाता है, केवल परंपरा और आदत के द्वारा। और उस जीवन में वापस आने की जो गहरे अंतर्ज्ञान और नयेपन से भरा हुआ है। मैं तुम्हें सिर्फ़ यही संकेत देना चाहता हूँ। देखा? [प्र:] धन्यवाद! [म:] मैं और तुम कहते हो, ' धन्यवाद', और मैं कहता हूँ, जगत के परमात्मा को धन्यवाद, और श्री शंकर को, और श्री रमन महर्षि,और श्री पूंजाजी , श्री निसर्गदत्ता महाराज, श्री योगी रामसुरतकुमार, श्री आनंदमयी माँ, और ये सभी प्राणी जो आये, और जो हमारे समय में आये यह याद दिलाने के लिए..... शायद यह कभी बहुत धार्मिक मायने नहीं लेगा, मुझे नहीं पता। यह बहुत ही क्रन्तिकारी रूप से सरल है। सत्य सरल है, लेकिन सत्य को खोजने वाले जटिल हैं, और हम हमेशा अपनी जटिलताओं से आसक्त रहते हैं। हम हर समय ख़ुद से ही लड़खड़ाते रहते हैं क्योंकि हम इतने स्थिर नहीं हैं की हम देख सकें हमें कुछ ज़्यादा नहीं करना है, बस चुप रहना है और देखना है, जो निर्देश तुम्हें दिया गया है उसके साथ, वह सत्य पाने के लिए जिसके लिए तुम्हारा दिल इतना तरसता है। मैं तुमसे कोई कविता नहीं कह रहा हूँ। [प्र:] आपको प्यार! [म:] तुम्हें भी प्यार। [प्र:] प्यार, प्यार। [म:] बहुत अच्छा। कॉपीराइट © 2017 मूजी मीडिया लिमिटेड सर्वाधिकार आरक्षित इस रिकॉर्डिंग का कोई भाग मूजी मीडिया लि की सहमति बिना पुन:प्रस्तुत नहीं किया जा सकता