शम्रिंदगी की कीमत
-
0:01 - 0:06आपके सामने एक ऐसी औरत खडी है
जो सार्वजनिक तौर पर दस साल से ख़ामोश रही। -
0:07 - 0:09ज़ाहिर है, वो ख़ामोशी टूट रही है,
-
0:09 - 0:10और ये हाल में ही शुरु हुआ है।
-
0:11 - 0:13तब से कुछ महीने बीत चुके हैं
-
0:13 - 0:16जब मैने पहली बार सार्वजनिक रूप से कुछ बोला
-
0:16 - 0:18फ़ोर्ब्स थर्टी अंडर थर्टी सम्मेलन में:
-
0:18 - 0:22३० साल से कम उम्र के १५००
प्रतिभाशाली लोगों के सामने -
0:23 - 0:26अंदाज़ा लगाइये कि १९९८ में
-
0:26 - 0:29इन में से सब से बडे लोग भी
बमुश्किल 14 साल के रहे होंगे, -
0:29 - 0:32और सब से छोटे तो बस चार बरस के।
-
0:33 - 0:37मैने मज़ाक में उन से कहा कि
आप मे कुछ ने तो मेरा नाम सुना भी होगा -
0:37 - 0:39तो सिर्फ़ र्रैप गानों में।
-
0:39 - 0:42जी हाँ-मैं रैप गानों में बकायदा मौज़ूद हूँ।
-
0:42 - 0:45लगभग ४० रैप गानों में । (हँसी)
-
0:47 - 0:50पर जिस रात मैनें वो भाषण दिया,
एक अचरच भरी बात हुई। -
0:50 - 0:56४१ साल की उमर में मेरे करीब आने की कोशिश
की २७ साल के एक लडके नें । -
0:57 - 0:59बाप रे! है न?
-
1:00 - 1:03वो बहुत अच्छा था और
मैं काफ़ी खुश महसूस कर रही थी, -
1:03 - 1:05मगर मैने बात वहीं खत्म कर दी।
-
1:05 - 1:08पर पता है उसने मुझसे क्या कहा?
-
1:09 - 1:12कि वो मुझे फिर से 22 जैसा महसूस करवाएगा।
-
1:12 - 1:17(ठहाका) (अभिवादन)
-
1:19 - 1:24मैने उस रात बाद में सोचा, कि शायद
मैं ऐसी अकेली ४० साल के व्यक्ति हूँ -
1:24 - 1:27जो फिर से कभी २२ की नहीं होना चाहती।
-
1:27 - 1:29(ठहाका)
-
1:29 - 1:33(अभिवादन)
-
1:35 - 1:40२२ साल की उम्र में,
मुझे अपने बॉस से प्यार हो गया, -
1:40 - 1:43और २४ की उम्र में,
-
1:43 - 1:47मैने उसके भयानक नतीज़े झेले।
-
1:48 - 1:51क्या यहाँ बैठे लोगों में से
वो शख्स हाथ उठायेंगे -
1:51 - 1:55जिनसे २२ की उम्र में कोई गल्ती नहीं हुई
या ऐसा कुछ जिसका उन्हें पछतावा नही है? -
1:57 - 2:00बिलकुल। मैने ठीक सोचा था कि
ऐसा कोई नहीं होगा। -
2:01 - 2:06तो मेरी ही तरह, २२ साल में,
आप में कुछ लोग गलत मोडों पर मुडे होंगे -
2:06 - 2:09और गलत लोगों के प्यार में पडे होंगे,
-
2:09 - 2:11हो सकता अपने बॉस के प्यार में।
-
2:12 - 2:15लेकिन मेरी तरह शायद आपके बॉस
-
2:15 - 2:19अमरीका के राष्ट्रपति नहीं रहे होंगे।
-
2:20 - 2:24सच है कि ज़िंदगी अजूबों से भरी पडी है।
-
2:24 - 2:29एक दिन भी ऐसा नहीं जाता जब मुझे
अपनी गलती याद नहीं करायी जाती, -
2:29 - 2:31और मुझे अपनी गलती का भरपूर पश्चाताप भी है।
-
2:33 - 2:40१९९८ में पहले मैं ऐसे रोमांस के भँवर में
फ़ँसी जिसका अंत होना ही नहीं था, -
2:40 - 2:45और फिर ऐसे भयानक राजनीतिक,
कानूनी और मीडिया के भँवर में फ़ँसी -
2:45 - 2:50जैसा मैने कभी न देखा था न सोचा था।
-
2:50 - 2:52याद कीजिये, कि १९८८ से
सिर्फ़ कुछ साल पहले तक ही, -
2:52 - 2:55समाचार सिर्फ़ तीन जगहों से मिलते थी:
-
2:55 - 2:58अखबार या मैगज़ीन पढ कर,
-
2:58 - 2:59रेडियो सुन कर,
-
2:59 - 3:01या टीवी देख कर।
-
3:01 - 3:02बस।
-
3:02 - 3:06मगर मेरे भाग्य में कुछ और था।
-
3:06 - 3:10इस स्कैंडल की खबर आप तक
-
3:10 - 3:12डिजिटल क्रांति के ज़रिये आई।
-
3:13 - 3:16इसका अर्थ ये था कि हम
जानकारी पा सकते थे -
3:16 - 3:20जब हम चाहें, जहाँ हम चाहें,
-
3:20 - 3:25और जब जनवरी १९९८ में ये खबर निकली,
-
3:25 - 3:28तो वो ऑनलाइन निकली।
-
3:28 - 3:31पहली बार ऐसा हुआ कि पारंपरिक मीडिया को
-
3:31 - 3:35इंटरनेट ने पछाड दिया था
एक बडी खबर को ले कर -
3:35 - 3:40एक क्लिक जो सारी दुनिया में गूँज उठी थी।
-
3:40 - 3:44निज़ी तौर पर मेरे लिये इसका मतलब था
-
3:44 - 3:49कि रातोंरात मैं पूरी तरह से
गुमनाम व्यक्ति से -
3:49 - 3:53सारी दुनिया में बदनाम व्यक्ति में बदल गयी।
-
3:53 - 3:58मैं पहली शिकार थी; अपनी सारी प्रतिष्ठा
-
3:58 - 4:02सारे विश्व में एक क्षण में गँवा देने
की इस नयी बीमारी की। -
4:04 - 4:06फ़ैसला सुनाने की इस दौड को टेक्नॉलजी
ने और हवा दी। -
4:06 - 4:10वर्चुअल पथराव करने वालों की तो
मानो भीड इकट्ठा हो गयी थी। -
4:10 - 4:13हालांकि तब तक सोशल मीडिया
का ज़माना नहीं आया था, -
4:13 - 4:17मगर तब भी लोग ऑन्लाइन
कमेंट कर सकते थे, -
4:17 - 4:23ईमेल में जानकारी और भद्दे कमेंट
भेज सकते थे। -
4:23 - 4:26समाचार मीडिया नें मेरी तस्वीरों को
हर जगह चिपका डाला -
4:26 - 4:30अखबार और ऑनलाइन बैनर
विज्ञापन बेचने के लिये, -
4:30 - 4:32और लोगों को टीवी से चिपकाने के लिये।
-
4:34 - 4:37आपको मेरी कोई ख़ास तस्वीर याद आती है,
-
4:37 - 4:40वो बेरेट टोपी पहनी हुई?
-
4:41 - 4:44देखिये, मैं अपनी गलती मानती हूँ
-
4:44 - 4:47ख़ासकर उस टोपी को पहनने की।
-
4:48 - 4:53मगर जो छीेछालेदर मेरी की गयी,
इस खबर की नही, -
4:53 - 4:57बल्कि व्यक्तिगत तौर पर मेरी,
वो सच में ऐतिहासिक थी। -
4:57 - 5:00मेरी ब्रांडिग कर दी गयी - बदचलन,
-
5:00 - 5:07आवारा, वेश्या, स्लट, वेबकूफ़,
-
5:07 - 5:09और, ज़ाहिर है, "उस टाइप की औरत"।
-
5:10 - 5:13बहुत लोगों ने मुझे देखा,
-
5:13 - 5:17मगर बहुत कम ने मुझे जाना।
-
5:17 - 5:20और मैं समझ सकती हूँ: बहुत आसान है
ये भूलना कि -
5:20 - 5:23"उस टाइप की औरत" का एक वज़ूद था,
-
5:23 - 5:27उसकी भी अत्मा थी, और एक ज़माने में
वो ऐसी टूटी हुई बिखरी हुई नहीं थी। -
5:30 - 5:34जब १७ साल पहले मेरे साथ ये हुआ,
इस के लिये कोई नाम नहीं था। -
5:34 - 5:39अब हम इसे साइबर-बुलीइंग और
ऑन्लाइन उत्पीडन कहते हैं। -
5:40 - 5:44आज मैं आप के साथ अपने कुछ
अनुभव बाँटना चाहती हूँ, -
5:44 - 5:48और उन अनुभवो की रोशनी में अपने
कल्चर पर कुछ टिप्पणियाँ करना चाहती हूँ, -
5:48 - 5:53और बताना चाहती हूँ कि मैं कितनी आशा रखती
हूँ कि इस के ज़रिये ऐसा बदलाव आयेगा जिस से -
5:53 - 5:56कुछ और लोगों के जीवन में कुछ
परेशानी कम होगी। -
5:58 - 6:03१९९८ मे, मैने अपनी प्रतिष्ठा और
आत्म-सम्मान खो दिया। -
6:03 - 6:07मेरा लगभग सब कुछ लुट गया था
-
6:07 - 6:10और मैने अपनी जीवन भी लगभग खो ही दिया था।
-
6:13 - 6:15मैं आप के लिये एक दृश्य रचती हूँ।
-
6:17 - 6:21सितंबर १९९८ है।
-
6:21 - 6:24मैं बिना किसी खिडकी वाले
दफ़्तरनुमा कमरे में बैठी हूँ -
6:24 - 6:27इन्डिपेंडेट काउंसल के ऑफ़िस मे,
-
6:27 - 6:31बजबजाती हुई ट्यूबलाइटों की रोशनी में
-
6:31 - 6:35मैं अपनी ही आवाज़ सुन रही हूँ,
-
6:35 - 6:39उन फ़ोन कॉल से आती मेरी आवाज़
जो गुप्त रूप से टेप किये गये थे -
6:39 - 6:42मेरे एक तथाकथित दोस्त के द्वारा -
लगभग एक साल पहले। -
6:42 - 6:45मैं वो सुन रही हूँ क्योंकि
कानूनन मुझे उन्हें सुनना ही पडेगा -
6:45 - 6:51निजी रूप से २० घंटे लंबे उन टेपों की
वैधता सुनिश्चित क्ररने के लिये। -
6:53 - 6:57पिछले आठ महीनों से
इन टेपों में जमा सामग्री -
6:57 - 7:01मेरे ऊपर तलवार की तरह
उल्टी लटक रही थी। -
7:01 - 7:05मतलब, कौन याद रख सकता है
कि एक साल पहले उस ने क्या कहा था? -
7:05 - 7:09सहमी हुई और बेज्ज्त, मै सुन रही हूँ,
-
7:11 - 7:16सुन रही हूँ उस दिन की आपाधापी;
-
7:16 - 7:19सुन रही हूँ खुद को, राष्ट्रपति के प्रति
अपने प्यार का इज़हार करते हुए, -
7:19 - 7:23और फिर अपने दिल टूट्ने का जिक्र करते हुए;
-
7:23 - 7:28कभी कभी तेज-तर्रार, कभी बस नासमझी भरी
-
7:28 - 7:32कभी खराब बर्ताव करती, कभी असभ्य;
-
7:33 - 7:36सुन रही हूँ, अंदर तक, गहरे भीतर तक शर्मिंदा,
-
7:36 - 7:39अपने सबसे खराब स्वरूप का सामना करती,
-
7:39 - 7:42ऐसा रूप जिसे मैं पहचान तक नहीं पाती।
-
7:45 - 7:49कुछ दिन बाद, संसद में स्टार्र रिपोर्ट पेश होती है,
-
7:49 - 7:54और वो सारे टेप, वो चुराये गयी बातचीत,
उसमें सम्मिलित हैं । -
7:55 - 7:59ये डरावना है कि लोग उन सब बातों को
पढ सकते हैं, -
7:59 - 8:02और कुछ हफ़्तों बाद, ,
-
8:02 - 8:05वो ऑडियो टेप टीवी पर सुनाये जाते हैं,
-
8:05 - 8:09और उस में ज्यादातार हिस्सा ऑनलाइन रिलीज़ होता है।
-
8:11 - 8:15पब्लिक में होने वाला अपमान दर्दनाक था।
-
8:15 - 8:19जीवन ढोया नहीं जाता था।
-
8:21 - 8:26और १९९८ में ऐसे किस्से हरदिन नहीं होते थे,
-
8:26 - 8:32और ऐसे किस्से का अर्थ है चोरी से - लोगों
के निज़ी वार्तालाप और निज़ी क्रियाकलापो की -
8:32 - 8:34और फ़ोटो की,
-
8:34 - 8:37और फ़िर उन्हें सार्वजनिक करने से --
-
8:37 - 8:39बिना इजाज़त के सार्वजनिक करने से --
-
8:39 - 8:42बिना किसी संदर्भ के सार्वजनिक करने से --
-
8:42 - 8:45और बिना किसी संवेदना के सार्वजनिक करने से।
-
8:46 - 8:4912 साल आगे चलते है 2010 में,
-
8:49 - 8:52और एक नया सोशल मीडिया जन्म ले चुका है।
-
8:53 - 8:58दुर्भाग्य से, मेरे साथ जो हुआ, वो आम
बात हो चुकी है, -
8:58 - 9:01भले ही किसी ने कोई गल्ती की हो या नहीं,
-
9:01 - 9:07भले ही ये पब्लिक फ़िगर हो या आम आदमी।
-
9:07 - 9:12कुछ लोगो के लिये इस के नतीज़े बहुत
ही ज्यादा बुरे साबित हुए हैं। -
9:14 - 9:16मैं अपनी माँ से फ़ोन पर बात क्रर रही था
-
9:16 - 9:19सितंबर २०१० में,
-
9:19 - 9:21और हम उस ख़बर का ज़िक्र कर रहे थे
-
9:21 - 9:24रुट्गर यूनिवर्सिटी के
फ़र्स्ट इयर के युवा छात्र, -
9:24 - 9:26टाइलर क्लेमेंटी के बारे में।
-
9:27 - 9:30प्यारा, संवेदनशील और रचनात्मक टाइलर
-
9:30 - 9:32का एक ऐसा वि्डियो उसके रूम मेट ने बना लिया
-
9:32 - 9:35जिसमें वो एक और आदमी के साथ अंतरंग होता दिखता था।
-
9:37 - 9:39जब ऑनलाइन दुनिया को इस वाकये की
खबर लगी, -
9:39 - 9:42तो भद्दी बेज्जती और साइबर-बु्लींग
का विस्फ़ोट हो गया। -
9:44 - 9:46कुछ दिन बाद,
-
9:46 - 9:50टाइलर ने जार्ज वाशिंगटन पुल से
छलांग लगा कर -
9:50 - 9:51जान दे दी।
-
9:51 - 9:53वो महज़ 18 साल का था।
-
9:56 - 10:00मेरी माँ अपना आपा खो बैठी थीं
टाइलर और उसके परिवार के बारे में सोच कर। -
10:00 - 10:03और असहनीय दुःख से भर गयी थीं,
-
10:03 - 10:07और पहलेपहल मुझे ये समझ नही आया
-
10:07 - 10:09लेकिन धीरे धीर्रे मैने महसूस किया कि
-
10:09 - 10:12वो १९९८ को फिर से जी रही थीं,
-
10:12 - 10:16वो समय जब वो हर रात
मेरे सिरहाने बैठ कर बिताती थीं, -
10:19 - 10:25वो समय जब वो मुझे बाथरूम
का दरवाज़ा बंद नहीं करने देती थीं -
10:25 - 10:29और वो समय जब मेरे माता -पिता
को हरदम डर लगता था कि -
10:29 - 10:32इतनी बदनामी मेरी जान ले कर रहेगी,
-
10:32 - 10:34सचमुच।
-
10:36 - 10:39आज, बहुत सारे माता-पिता
-
10:39 - 10:43को ये मौका ही नहीं मिल पाता है कि
वो अपने बच्चों को बचा पाये। -
10:43 - 10:47बहुत लोगों को अपने बच्चों
की परेशानी का पता तब लगता है -
10:47 - 10:49जब बहुत देर हो चुकी होती है।
-
10:50 - 10:55टाइलर की दुख्द, बेमतलब मौत
मेरे लिये बहुत बडा क्षण बनी। -
10:55 - 10:59उस घटना ने मेरे अनुभवों
को एक नया संदर्भ दिया, -
10:59 - 11:03और मैने अपने आसपास फ़ैले शोषण और
ज़ोर-जबरदर्स्ती को महसूस किया, -
11:03 - 11:06और नए सिरे से देखना शुरु किया।
-
11:06 - 11:12१९९८ में हमारे पास ये जानने का
कोई तरीका नहीं था कि ये नयी तकनीक -
11:12 - 11:14जिसे हम इंटरनेट कहते थे,
हमें कहाँ ले जायेगी ? -
11:14 - 11:18तब से, इंटरनेट ने लोगों को
नये तरीकों से जोडा है, -
11:18 - 11:20बिछडे भाई-बहनों को मिलवाया है,
-
11:20 - 11:24जाने बचायी है, आंदोलन शुरु करवाये हैं,
-
11:24 - 11:29मगर जो अँधेरा, साइबर-बुलींग, और स्लट बता
की गयी शमिंदगी मैने देखी, -
11:29 - 11:32वो कई गुना बढी है।
-
11:33 - 11:38हर दिन, ऑनलाइन, खास तौर पर कम उम्र के लोग,
-
11:38 - 11:41जो कि इस से निपटने के लिये
तैयार तक नहीं हैं, -
11:41 - 11:43इतने शोषित और प्रताडित होते हैं
-
11:43 - 11:46कि वो अगले दिन तक जीना भी नहीं चाहते,
-
11:46 - 11:49और कुछ तो, सच में, जीते भी नहीं,
-
11:49 - 11:52और ये ऑन्लाइन नहीं,
असली दुनिया में होता है -
11:54 - 12:00यू.के. की एक संस्था जो कि कई तरह से
युवाओं की मदद करती है, चाइल्डलाइन -
12:00 - 12:03ने पिछले साल एक तथ्य ज़ारी किया था:
-
12:03 - 12:07२०१२ से २०१३ के बीच,
-
12:07 - 12:10८७ प्रतिशत बढत देखी गयी है
-
12:10 - 12:15साइबर-बुलींग से जुडी ईमेल और फ़ोन कॉल में।
-
12:15 - 12:17नीदरलैंड में की गयी एक जाँच में
-
12:17 - 12:19पहली बार ये पता लगा
-
12:19 - 12:24कि साइबर-बुलींग खुद्कुशी की बडी
वजह बन रहा है, -
12:24 - 12:28ऑफ़्लाइन बुलींग के मुकाबले।
-
12:28 - 12:32हालांकि इस में अचरच की बात नहीं हैं,
लेकिन मुझे ये जान कर बडा झटका लगा कि -
12:32 - 12:36एक और जाँच ने पता लगाया कि
प्रताडित किए जाने की भावना -
12:36 - 12:39को लोग ज्यादा महसूस कर रहे हैं
-
12:39 - 12:43बजाये खुशी के, और बजाय गुस्से के।
-
12:44 - 12:47दूसरों के प्रति निष्ठुरता
कोई नयी बात नहीं है, -
12:47 - 12:54मगर ऑन्लाइन, तकनीकी तरीकों से
करे जाने पर ये कई गुना बढ जाती है, -
12:54 - 12:59बेकाबू हो जाती है, और
हर समय होती रहती है। -
12:59 - 13:05पहले तो शर्मिंदगी
सिर्फ़ आस-पासपरिवार, गाँव, -
13:05 - 13:07स्कूल या नजदीकी समाज तक सीमित थी,
-
13:07 - 13:11मगर अब ये ऑनलाइन भी होती है।
-
13:11 - 13:14लाखों लोग, बिन जान-पहचान के,
-
13:14 - 13:18आपको अपने शब्दों से छलनी करते हैं,
और ये बहुत पीडादायी होता है, -
13:18 - 13:21और इसकी कोई बाउंडरी नही है कि
कितने लोग -
13:21 - 13:23आपको देख सकते हैं,
-
13:23 - 13:27और आप पर सार्वजनिक रूप से
कमेंट कर सकते हैं। -
13:28 - 13:30बहुत निजी तौर चुकानी होती है
-
13:30 - 13:32सार्वजनिक शर्मिंदगी की,
-
13:33 - 13:39और इंटरनेट के चलते चुकाई गयी
कीमत कई गुना बढ चुकी है। -
13:40 - 13:42लगभग पिछले दो दशकों से,
-
13:42 - 13:46हम धीरे धीरे शमिंदगी और सार्वजनिक बेज्जती
के बीज बोते आ रहे हैं -
13:46 - 13:52अपनी संस्कृति की ज़मीन मे
ऑन्लाइन और ऑफ़्लाइन दोनो तरह से। -
13:52 - 13:57गप्प-गॉसिप वेबसाइट, पापारात्ज़ी कैमरा,
रियलटी टीवी, राजनीति -
13:57 - 14:03समाचार मीडिया और कभी कभी हैकर भी,
इस प्रताडना का हिस्सा बनते हैं। -
14:03 - 14:07संवेदन हीनता की इज़ाजत सी मिल गयी है
ऑनलाइन दुनिया में -
14:07 - 14:14जिस से, दादागिरी, निजता के हनन, और
साइबर-बुलींग को बढावा मिल रहा है। -
14:14 - 14:17इस से कुछ ऐसा पैदा हुआ है
जिसे प्रोफ़ेसर निकोलस मिल्स -
14:17 - 14:21प्रताडना के कल्चर का नाम देते हैं।
-
14:21 - 14:26पिछले छः महीनों के कुछ बडे
उदाहरण ले कर देखिये। -
14:26 - 14:31स्नैप-चैट, एक ऑन्लाइन सर्विस
जो ज्यादातर युवा इस्तेमाल करते हैं, -
14:31 - 14:34और जो संदेशों को मिटाने का दावा करती है
-
14:34 - 14:36कुछ ही क्षणॊं में।
-
14:36 - 14:39आप समझ सकते है कि
किस तरह के संदेश वहाँ चलते होंगे। -
14:39 - 14:43एक तीसरी कंपनी जो स्नैप-चैटर के यूज़र
को मैसेज सेव करने देती थी -
14:43 - 14:46हैक की गयी
-
14:46 - 14:53और एक लाख निज़ी बातचीतें और फ़ोटो
और विडियो ऑन्लाइन लीक हो गये -
14:53 - 14:57और अब वो सदा सदा के लिये
सार्वजनिक हो गये हैं। -
14:57 - 15:01जेनिफ़र लारेंस और कई और फ़िल्म
कलाकारों का आई-क्लाउड हैक हो गया, -
15:01 - 15:05और उनके निजी, नग्न फ़ोटो
सारी इंटरनेट पर पब्लिक हो गये -
15:05 - 15:07बिना उनकी इजाजत के।
-
15:07 - 15:11एक ग्प्प-गॉसिप वेबसाइट पर
50 लाख बार हिट हुआ -
15:11 - 15:14सिर्फ़ इस एक खबर के लिये।
-
15:15 - 15:19और सोनी पिक्चर की हैकिंग?
-
15:19 - 15:22जिन दस्तावेजों को सबसे अधिक देख गया
-
15:22 - 15:28वो निजी ईमेल था जिनमे सबसे
ज्यादा शमिंदा करने की क्षमता थी। -
15:28 - 15:31मगर प्रताडना के इस कल्चर में,
-
15:31 - 15:35सार्वजनिक शमिंदगी से प्राइस-टैग भी जुडे है
-
15:36 - 15:39और ये प्राइस-टैग पीडित द्वारा चुकाई
गयी कीमत को नही नापते, -
15:39 - 15:41जो टाइलर और कई और लोगों को,
-
15:41 - 15:43खासकर, औरतो और अल्प-संख्यकोंको
चुकानी पडती है। -
15:43 - 15:47और एल.जी.बी.टी.क्यू लोगों ने चुकाई है,
-
15:47 - 15:52मगर ये प्राइस-टैग बखूबी नापता है
इस से पैदा होने वाले मुनाफ़े को। -
15:53 - 15:57दूसरों पर किया गया हमला जैसे कच्चा माल है,
-
15:57 - 16:03हमला जो क्रूर्ता और दक्षता से होता है,
और पैकेज कर के मुनाफ़े में बेचा जाता है -
16:03 - 16:09एक बाज़ार विकसित हुआ है
जहाँ सार्वजनिक शमिंदगी बिकती है -
16:09 - 16:12और प्रताडना एक इंडस्ट्री बन गयी है।
-
16:12 - 16:16और पैसा बनता कैसे है?
-
16:16 - 16:18क्लिक्स से।
-
16:18 - 16:20जितनी शर्मिंदगी, उतने क्लिक्स।
-
16:20 - 16:24जितने क्लिक्स, उतने विज्ञापनी डॉलर।
-
16:25 - 16:28हम खतरनाक भँवरजाल में हैं।
-
16:28 - 16:31जितना ही हम इस तरह की चीजों
को क्लिक करेंगे, -
16:31 - 16:34उतना हे संवेदनशील हम होंगे,
उन खबरों के पीछे छुपे इंसानों के प्रति, -
16:34 - 16:40और जितन हम संवेदना हीन हेगे,
उतना ही हम क्लिक करेंगे। -
16:40 - 16:43और पूरे समय, कोई इस से पैसा कमा रहा होगा
-
16:43 - 16:46किसी और के दुख परेशानी और
उत्पीडन के ज़रिये। -
16:47 - 16:50हर क्लिक के ज़रिये हम एक विकल्प चुनते हैं
-
16:50 - 16:53जितना ही हम अपने क्लचर को
सार्वजनिक शमिंदगी से भरेंगे, -
16:53 - 16:55उतना ही स्वीकार्य ये होती जायेगी,
-
16:55 - 16:58और उतनी ही साइबर-बुलींग हम देखेंगे,
-
16:58 - 17:01उतनी ही हैकिंग, और धमकीगर्दी।
-
17:01 - 17:04और ऑनलाइन उत्पीडन।
-
17:04 - 17:11क्यों? क्योंकि इन सबके जडोंमें शर्मिंदगी है।
-
17:11 - 17:16ये बर्ताव उस कल्चर का लक्षण है जो
हमने रचा है -
17:16 - 17:18थोडा सोच कर देखिये।
-
17:19 - 17:23बर्ताव में बदलाव शुरु होता है
बदलते मूलोंसे। -
17:23 - 17:26हमने ये होते देखा है रेसिस्म, होमोफ़ोबिया,
-
17:26 - 17:30और ऐसे ही कई और चीज़ोंमें , आज
और इतिहास में। -
17:31 - 17:34और हमारे नज़्ररियों मे बदलाव आया है -
सम-लैंगिक शादियों को ले कर। -
17:34 - 17:39ज्यादा से ज्यादा लोगों को
बराबरी मिली है। -
17:39 - 17:41जब हम निरंतरता को तवज्जो देने लगते है,
-
17:41 - 17:44ज्यादा से ज्यादा लोग कूडे को रिसाइकिल करने लगते हैं।
-
17:44 - 17:47तो जहाँ तक हमारे कल्चर के प्रताड्ना वाले
हिस्से का सवाल है, -
17:47 - 17:51हमे एक सांस्कृतिक आंदोलन की ज़रूरत है।
-
17:51 - 17:55सार्वजनिक शमिर्द्गी का ये
खूनी खेल बंद करना ही पडेगा। -
17:55 - 17:59और समय आ गया है कि इंटरनेट के
कल्चर में हस्तक्षेप करने का। -
17:59 - 18:03शुरुवात किसी छोटी चीज़ से होगी, और ये
आसान नहीं होगा। -
18:04 - 18:11हमें संवेदनशीलता और सहानुभूति की
ओर वापस जाना होगा। -
18:11 - 18:14ऑन्लाइन दुनिया में, सहानुभूति और
संवेद्ना की गहरी कमी है, -
18:14 - 18:16लगभग अकाल है।
-
18:17 - 18:21शोधकर्ता ब्रेन ब्राउन का कहना है,
-
18:21 - 18:25"प्रताड्ना संहानुभूति के सामने
नहीं ठहर सकती।" -
18:25 - 18:29प्रताडना सहानुभूति के सामने नहीं ठहर सकती।
-
18:31 - 18:34मैने अपने जीवन में कुछ बहुत खराब
अँधेरे से पटे दिन देखे हैं -
18:34 - 18:40और ये मेरे परिवार, दोस्तों और साथियों की
सहानुभूति और संवेदना ही थी, -
18:40 - 18:44और कभी कभी, अजनबियों की भी - कि मै बच सकी।
-
18:46 - 18:49एक इंसान से आती सहानुभूति भी बडा
फ़र्क ला सकती है। -
18:50 - 18:53माइनर्टी इन्फ़्लुएंस की थियरी,
-
18:53 - 18:56सामजिक मनोविज्ञानी सेर्गे मोस्कोविसी द्वारा दी गयी है,
-
18:56 - 18:59और कहती है कि बहुत कम संख्या में ही सही,
-
18:59 - 19:01जब लम्बे समय तक कुछ चले,
-
19:01 - 19:04तो बडा फ़र्क आ सकता है।
-
19:04 - 19:07ऑन्लाइन दुनिया मे, हम
इस माइनर्टी इन्फ़्लुएंस को ला सकते हैं -
19:07 - 19:09खिलाफ़त क्रर के।
-
19:09 - 19:13खिलाफ़त करने का मतलब है
चुपचाप खडे नहीं रह जाना। -
19:13 - 19:18हम किसी के लिये सकारत्मक कमेंट कर सकते है,
साइबर बुलींग होती देख कर शिकायत दर्ज़ कर सकते हैं। -
19:18 - 19:23मेरा यकीन मानिये, सकारात्मक कमेंट
से नकारात्मक्ता ख्त्म होती है। -
19:23 - 19:27हम एक खिलाफ़त का कल्चर भी ला सक्ते है
उन संस्थाओं को सहारा दे कर -
19:27 - 19:29जो इन मुद्दो पर काम कर रही हैं,
-
19:29 - 19:32जैसे कि यू.एस. की टाइलर क्लेमेंटी फ़ाउंडेशन
-
19:32 - 19:35यू. के. में एंटी-बुलींग प्रो है,
-
19:35 - 19:39आस्ट्रेलिया में, प्रोजेक्ट रोकिटहै।
-
19:40 - 19:46हम अपने फ़्रीडम ओफ़ एक्स्प्रेश्न के बारे
में अत्यधिक सचेत हो कर बात करते हैं -
19:46 - 19:48मगर हमें ये भी बात करनी होगी कि
-
19:48 - 19:52फ़्रीडम ऑफ़ एक्स्प्रेशन के प्रति हमारे
कर्त्व्य क्या हैं -
19:52 - 19:54हम सब चाहते हैं कि हमें सुना जाये
-
19:54 - 19:59मगर उद्देश्य से बोलने में और
-
19:59 - 20:02ध्यान आकर्षित करने के लिये
बोलने में फ़र्क है -
20:04 - 20:07इंटरनेट अभिव्यक्ति का सुपर हाई-वे है,
-
20:07 - 20:10मगर ऑन्लाइन, दूसरों के प्रति संवेदनशील होने से
-
20:10 - 20:16हम सबका भला होगा, और
एक बेहतर, सुरक्षित दुनिया कायम होगी। -
20:16 - 20:19हमें ऑन्लाइन बर्ताव में
सहानुभूति लानी होगी, -
20:19 - 20:22समाचारों को संवेदना के साथ
कनस्यूम करना होगा, -
20:22 - 20:24और सोच-समझ कर क्लिक करना होगा।
-
20:24 - 20:29फ़र्ज़ कीजिये कि आप किसी
और के हेड-लाइन में एक मील चल रहे हैं। -
20:31 - 20:34मै दिल की बात कह कर जाना चाहूँगी
-
20:36 - 20:38पिछले नौ महीनों मे,
-
20:38 - 20:41मुझ्से जो प्रश्न सबसे ज्यादा पूछा गया है
वो है , "क्यो?" -
20:41 - 20:45अब क्यो? अब मैं अपना सर इतने
साल के बाद क्यो उठा रही हूँ? -
20:45 - 20:48इन प्रश्नों में निहित बातों को
आप समझ सकते है। -
20:48 - 20:52और मेरे जवाब का राजनीति से
कोई लेना देना नहीं है। -
20:52 - 20:57मेरा एक ही जवाब है, और वो है
कि - अब समय आ गया है। -
20:57 - 21:00समय आ गया है कि मैं अपने अतीत
से छुप छुप कर भागना बंद करूँ: -
21:00 - 21:03अपमानित हो कर जीने का समय ख्तम हो गया है;
-
21:03 - 21:06और समय आ गया है कि मैं
अपनी कहानी पर वापस अपना अधिकार पाऊँ -
21:06 - 21:11और ये सिर्फ़ मेरे अकेले के बारे में नहीं है।
-
21:11 - 21:15कोई भी जो शर्म और सार्वजनिक
रूप से उत्पीडित है, -
21:15 - 21:17ये एक बात जान ले:
-
21:17 - 21:20कि वो उस से लड सकता है
और आगे बढ सकता है। -
21:20 - 21:23मुझे पता है कि
ये बहुत मुश्किल है। -
21:23 - 21:27बहुत दर्द भरा, आसान
बिल्कुल भी नहीं, और लम्बा सफ़र। -
21:27 - 21:31मगर आप अपनी कहानी
को एक अलग अंत दे सकते हैं। -
21:31 - 21:35अपने प्रति सहानुभूति और संवेदना रख के।
-
21:35 - 21:38हम सब संवेदना के पात्र हैं,
-
21:38 - 21:44और ऑन्लाइन और ऑफ़्लाइन,
संवेदनाशील दुनिया में रहने के हकदार हैं। -
21:44 - 21:46मेरी बात सुनने के लिये धन्यवाद।
-
21:46 - 21:57(अभिवादन और तालियाँ)
- Title:
- शम्रिंदगी की कीमत
- Speaker:
- मोनिका लेविन्स्की
- Description:
-
1998 में, मोनिका लेविन्स्की कहती हैं, "मैं पहली शिकार थी; अपनी सारी प्रतिष्ठा
सारे विश्व में एक क्षण में गँवा देने की इस नयी बीमारी की।" जो बर्ताव उनके साथ ऑनलाइन हुआ, वो आज आम बात हो चुका है, और निरंतर हो रहा है। साहस के साथ वो एक नज़र डालती हैं "शमिंदगी के कल्चर"पर, जिसमें ऑन्लाइन शर्मिदा कर के पैसा कमाया जा रहा है - और वो एक अलग तरह से जीने की माँग रखती हैं - Video Language:
- English
- Team:
- closed TED
- Project:
- TEDTalks
- Duration:
- 22:26
Abhinav Garule edited Hindi subtitles for The price of shame | ||
Abhinav Garule edited Hindi subtitles for The price of shame | ||
Abhinav Garule edited Hindi subtitles for The price of shame | ||
Abhinav Garule edited Hindi subtitles for The price of shame | ||
Abhinav Garule approved Hindi subtitles for The price of shame | ||
Abhinav Garule edited Hindi subtitles for The price of shame | ||
Abhinav Garule edited Hindi subtitles for The price of shame | ||
Vatsala Shrivastava accepted Hindi subtitles for The price of shame |