नाकाबिल लोग ख़ुद को इतना क़ाबिल क्यों मानते हैं - डेविड डनिंग
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0:07 - 0:10क्या आप सच में उतने
कुशल हैं जितना आप सोचते हैं? -
0:10 - 0:14रुपए पैसे के मामले में आप कितने अच्छे हैं?
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0:14 - 0:17दूसरों की भावनाओं को समझने में?
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0:17 - 0:20औरों के मुक़ाबले
आपका स्वास्थ कितना अच्छा है? -
0:20 - 0:23क्या आपका व्याकरण आम लोगों से बेहतर है?
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0:23 - 0:25अपनी कुशलता के बारे में जानना
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0:25 - 0:28और दूसरों के मुक़ाबले ख़ुद को आँकना
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0:28 - 0:30सिर्फ़ स्वाभिमान या ईगो की बात नहीं है।
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0:30 - 0:35ये जानने से हमें अपने भविष्य के
फ़ैसले लेने में आसानी होती है -
0:35 - 0:39और हमें समझ आता है की
कब हमें दूसरों के सलाह चाहिए। -
0:39 - 0:43मगर मनोवैज्ञानिक शोध
कहता है कि हम बहुत अच्छे नहीं हैं -
0:43 - 0:46अपने क़ाबलियत को आँकने में
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0:46 - 0:50बल्कि, हम अक्सर अपने को
वास्तविकता से बेहतर गिनते हैं। -
0:50 - 0:52रिसर्च के लोगों ने
इस बात को एक नाम दिया है, -
0:52 - 0:56डनिंग-क्रूगर एफेक्ट।
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0:56 - 0:58ये एफेक्ट समझाता है की क्यों
सौ से अधिक प्रयोगों में -
0:58 - 1:02लोगों ने अपनी क़ाबलियत को
बढ़ा-चढ़ा के बताया। -
1:02 - 1:05हम ख़ुद को दूसरों से इतना बेहतर मानते हैं
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1:05 - 1:08जितना की गणित के हिसाब
से हम हो ही नहीं सकते हैं। -
1:08 - 1:13जब दो कंपनियो के सॉफ़्टवेयर इंजिनियरो
से ख़ुद को मापने के लिए कहा गया, -
1:13 - 1:18तो एक कम्पनी के 32%
और दूसरी के 42% इंजीनियरों ने -
1:18 - 1:21ख़ुद को 5% बेहतरीन इंजिनयरों में गिना।
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1:21 - 1:25दूसरे प्रयोग में, 88% अमेरिकन ड्राइवरों ने
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1:25 - 1:29ख़ुद की ड़्राईवरी को औसत से बेहतर बताया।
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1:29 - 1:32और ये हर जगह देखा गया है।
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1:32 - 1:35आमतौर पर, लोग ख़ुद को दूसरों से
बेहतर समझते हैं -
1:35 - 1:42चाहे स्वास्थ हो, या नेत्रत्व के क्षमता,
या मौलिकता या कुछ और। -
1:42 - 1:46मज़े की बात ये है की जो लोग
सबसे काम क़ाबिल होते हैं -
1:46 - 1:51वो अपने को सबसे ज़्यादा
क़ाबिल मानते हैं। -
1:51 - 1:53वो लोग जो हल्के जानकार होते हैं तर्क के,
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1:53 - 1:54व्याकरण के,
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1:54 - 1:55वाणिज्य के,
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1:55 - 1:56गणित के,
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1:56 - 1:57भावनाओं के,
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1:57 - 1:59प्रयोगशालाओं ने काम करने के,
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1:59 - 2:01शतरंज के,
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2:01 - 2:08वे सब अपने को निपुण लोगों
जितना ही क़ाबिल बताते हैं। -
2:08 - 2:11तो ऐसा सबसे ज़्यादा किसके साथ होता है?
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2:11 - 2:16दुर्भाग्यवश, हममेसे कई समूह है जो
अक्षम है -
2:16 - 2:19और इस बात को स्वीकार नहीं करते हैं।
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2:19 - 2:20मगर ऐसा क्यों?
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2:20 - 2:25जब मनोवैज्ञानिक डनिंग और क्रूगर ने
इस एफेक्ट का पता लगाया 1999 में, -
2:25 - 2:29तो उन्होंने तर्क दिया कि जिन्हें
किसी क्षेत्र की जानकारी या कुशलता नहीं है, -
2:29 - 2:31वो दोहरी मार खाते हैं।
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2:31 - 2:35पहले तो वो ग़लत फ़ैसले लेते हैं
और ग़लतियाँ करते हैं। -
2:35 - 2:41और दूसरा, वो अपने कम जानकारी की वजह से
अपनी ग़लतियाँ पकड़ भी नहीं पाते हैं। -
2:41 - 2:44दूसरे शब्दों में, कम जानने वाले को
वो ज्ञान ही नहीं होता जिस से -
2:44 - 2:47वो ये पता लगा सके की वो कितना काम जानता है
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2:47 - 2:49मिसाल के तौर पर, एक प्रयोग में
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2:49 - 2:52कॉलेज की डिबेट टीमों में
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2:52 - 2:56सब से कमज़ोर प्रदर्शन करने वाली 25% टीमों ने
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2:56 - 3:00लगभग 5 में से 4 मैच हारे
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3:00 - 3:03मगर उन्हें लग रहा था कि
वो लगभग 60% जीत रहे हैं। -
3:03 - 3:06डिबेट के नियमो की पक्की
पकड़ के बग़ैर -
3:06 - 3:10उन्हें ये पता ही नहीं चलता था
की वो कब और कितनी बार -
3:10 - 3:12अपने तर्क में गड़बड़ कर रहे थे।
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3:12 - 3:17डनिंग-क्रूगर एफेक्ट ये नहीं कहता है की
अपने घमंड में अपनी कमियाँ नहीं देखते हैं। -
3:17 - 3:22अक्सर लोग अपने ग़लतियाँ मान लेते हैं
जब वो उन्हें देखते हैं -
3:22 - 3:26एक प्रयोग में, स्टूडेंट जिन्होंने तर्क
की परीक्षा में ख़राब प्रदर्शन किया था, -
3:26 - 3:28उन्हें जब तर्क सिखाया गया,
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3:28 - 3:34तो उन्होंने अपने पिछली प्रदर्शन को
बुरा कहा। -
3:34 - 3:38हो सकता है इसीलिए
औसत से ज़्यादा ज्ञानी लोगों -
3:38 - 3:41को ख़ुद की क़ाबलियत पर
उतना ज़्यादा भरोसा नहीं होता है। -
3:41 - 3:45उन्हें पता होता है की बहुत कुछ ऐसा है
जो उन्हें पता ही नहीं है -
3:45 - 3:49और साथ ही, बढ़िया जानकारो को
ये तो पता होता है कि वो ज्ञान रखते हैं -
3:49 - 3:51मगर वो अक्सर दूसरी ग़लती करते हैं।
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3:51 - 3:56वो सोचते हैं कि सबको
उनके बराबर ही ज्ञान है -
3:56 - 4:00नतीजा ये होता है की लोग,
चाहे कम या ज़्यादा जानकार हों, -
4:00 - 4:04अक्सर अपनी क़ाबलियत के बारे में
ग़लत अनुमान ही लगाते हैं। -
4:04 - 4:08जब वो काम क़ाबिल होते हैं,
तो अपनी ग़लती देख नहीं पाते, -
4:08 - 4:09और जब बहुत क़ाबिल होते हैं,
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4:09 - 4:14तो उन्हें अंदाज़ा नहीं होता है कि
उनके जैसे बहुत काम लोग हैं। -
4:14 - 4:18तो अगर हमें डनिंग-क्रूगर एफेक्ट का
पता ही नहीं चलता है, -
4:18 - 4:25तो हम कैसे समझें की हम असल में
कितने पानी में हैं? -
4:25 - 4:28पहला, दूसरों से अपने क़ाबलियत का
हिसाब लगवाएँ। -
4:28 - 4:31और उसे सुने, चाहे वो सुनने में
कितना ही ख़राब क्यों ना लगे। -
4:31 - 4:33दूसरा, और बहुत ज़रूरी, सीखते रहें।
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4:33 - 4:35जितना हम सीखेंगे ,
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4:35 - 4:40उतना ही हम अपनी कमियों
को देख सकेंगे। -
4:40 - 4:43शायद बात एक पुरानी कहावत पर
आती है: -
4:43 - 4:45वेवक़ूफ़ो से बहस करने से पहले
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4:45 - 4:49सोच लें कि दूसरा भी तो वही नहीं कर रहा है।
- Title:
- नाकाबिल लोग ख़ुद को इतना क़ाबिल क्यों मानते हैं - डेविड डनिंग
- Speaker:
- डेविड डनिंग
- Description:
-
आप रुपए पैसे के मामने में कितने तेज़ हैं? दूसरों की भावनाओं को समझने में? आपके औरों के मुक़ाबले कितने स्वस्थ हैं? अपने क़ाबलियत का अंदाजा होना बहुत काम आ सकता है मगर मनोवैज्ञानिक शोध कहता है कि हम अपने क़ाबलियत को आँकने में बहुत अच्छे नहीं हैं।बल्कि, हम अक्सर अपने को वास्तविकता से बेहतर गिनते हैं। रिसर्च के लोगों ने इस बात को एक नाम दिया है,डनिंग-क्रूगर एफेक्ट। डेविड डनिंग इस एफेक्ट तो यहाँ समझाते हैं।
- Video Language:
- English
- Team:
closed TED
- Project:
- TED-Ed
- Duration:
- 05:08
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Arvind Patil approved Hindi subtitles for Why incompetent people think they're amazing | |
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Arvind Patil accepted Hindi subtitles for Why incompetent people think they're amazing | |
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Arvind Patil edited Hindi subtitles for Why incompetent people think they're amazing | |
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Swapnil Dixit edited Hindi subtitles for Why incompetent people think they're amazing |