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Inner Worlds, Outer Worlds - Part 2 - The Spiral

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    पाइथागोरियन दार्शनिक प्लेटो ने रहस्यमय ढंग से संकेत
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    दिया कि एक ऐसी स्वर्ण कुंजी है जिससे ब्रह्माण्ड
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    के सभी रहस्य खोजे जा सकते हैं ।
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    यह वही स्वर्ण कुंजी है जिसके पास हम अपने
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    अन्वेषण के दौरान बारंबार लौट आएँगे।
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    स्वर्ण कुंजी `लोगो़` की बुद्धिमत्ता है,
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    प्रारंभिक ओम् के स्रोत को पहचानना ।
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    कोई कह सकता है कि यह ईश्वर का स्मरण है ।
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    अपनी सीमित चेतनाओं से हम केवल आत्म-अनुरूपता की
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    प्रच्छन्न प्रक्रिया के बाहरी प्रकटीकरण को देख रहे हैं ।
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    इस दिव्य प्रतिसाम्य का स्रोत हमारे अस्तित्व का महानतम रहस्य है ।
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    पाइथागोरस, केपलर, लियोनार्डो द विंसी तथा आईंस्टाइन जैसे इतिहास के कई
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    अत्यंत महत्वपूर्ण चिंतक रहस्य की इस दहलीज तक पहुँचे।
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    आईंस्टाइन ने कहा कि "अत्यधिक सुंदर वस्तु जिसे हम अनुभव कर सकते हैं वह रहस्यपूर्ण है ।
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    यह सभी सत्य कला एवं विज्ञान का स्रोत है ।
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    वह जिसके लिए यह भावना अपरिचित है,
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    जो आश्चर्यचकित होकर ठहर नहीं जाता और विस्मय में सम्मोहित
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    नहीं हो जाता है, वह मृतक समान है । उसके नेत्र बंद हैं ।"
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    हमारी स्थिति उस छोटे बच्चे की है जो अनेक भाषाओं की
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    पुस्तकों के बड़े पुस्तकालय में प्रवेश कर रहा है ।
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    बच्चा जानता है कि किसी ने इन पुस्तकों को लिखा होगा
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    वह यह नहीं जानता कि कैसे ।
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    वह उन भाषाओं को भी नहीं जानता जिसमें इन्हें लिखा गया है ।
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    बच्चा पुस्तकों की व्यवस्था के रहस्यपूर्ण
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    क्रम पर थोड़ा आशंकित होता है लेकिन जानता नहीं कि यह सब है क्या
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    मुझे लगता है कि यही प्रवृति अत्यधिक बुद्धिमान
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    मनुष्य को ईश्वर की ओर ले जाती है ।
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    हम देखते हैं कि यह ब्रह्माण्ड आश्चर्यजनक रूप से व्यवस्थित है और कुछेक नियमों का पालन कर रहा है ।
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    हमारे सीमित मस्तिष्क उस रहस्यपूर्ण शक्ति को समझ नहीं सकते, जो नक्षत्रों को संचालित करता है ।
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    प्रत्येक वैज्ञानिक जो गहराई से ब्रह्माण्ड को देखता है
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    और प्रत्येक रहस्यवादी जो गहराई से स्वयं के भीतर झांकता है,
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    अंततोगत्वा एक ही चीज के समक्ष आ खड़ा हो जाता है।
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    आदिम सर्पिल गति ।
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    पाषाण युग में प्राचीन वेधशला के सृजन के हजारों वर्ष पूर्व
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    सर्पिल पृथ्वी पर प्रमुख प्रतीक था ।
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    प्राचीन सर्पिल विश्व के सभी भागों में पाए जा सकते हैं ।
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    इस प्रकार के हजारों प्राचीन सर्पिल यूरोप, उत्तरी अमरीका,
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    न्यू मैक्सिको, ऊटा, आस्ट्रेलिया, चीन, रूस में पाए जा सकते हैं ।
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    वास्तविक रूप में पृथ्वी पर प्रत्येक देशी संस्कृति में ।
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    प्राचीन सर्पिल सूर्य तथा स्वर्ग में सम्मिलित विकास, विस्तार तथा
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    अंतरिक्षीय ऊर्जा का प्रतीक है ।
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    सर्पिल रूप खुले ब्रह्माण्ड के विश्व का प्रतिरूप प्रस्तुत कर रहे हैं ।
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    देशीय परंपराओं में, सर्पिल ऊर्जाशील स्रोत आदिम जननी थी ।
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    न्यूग्रेंगे, आयरलैंड में पांच हजार वर्ष पीछे नियोलिथिक सर्पिल ।
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    वे गिज़ा में बड़े पिरामिड से पांच सौ वर्ष पुराने हैं और
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    वे आधुनिक प्रेक्षकों की तरह पेचीदा हैं ।
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    सर्पिल इतिहास में उस समय से हैं जब मानव, पृथ्वी से -
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    चक्रों व प्रकृति के सर्पिल से अधिक संबद्ध था ।
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    ऐसा समय जब मानव विचारों से कम परिचित था ।
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    सर्पिल जैसा कि हम समझते हैं, ब्रह्माण्ड के गुंथे हुए रुपहले तारों की कंठी है ।
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    प्राण या सृजनात्मक शक्ति आकाश को ठोस रूपों के सातत्य में घुमाती है ।
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    सर्पिल तारामंडल से मौसम प्रणालियों तक ब्रह्माण्ड और लघु ब्रह्माण्ड
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    के बीच सभी स्तरों पर
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    उपलब्ध आपके स्नानागार
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    में जल तक,
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    आपके डीएनए तक,
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    आपकी अपनी ऊर्जा के प्रत्यक्ष अनुभव तक जाता है ।
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    आदिम सर्पिल एक विचार नहीं,
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    बल्कि वह जो सभी संभव स्थितियों व विचारों का निर्माण करता है ।
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    विभिन्न प्रकार के सर्पिल और सर्पिलज समग्र प्राकृतिक संसार में पाए जाते हैं ।
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    घोंघें,
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    समुद्री मुंगे,
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    मकड़ी के जाले,
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    जीवाश्म ।
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    समुद्री घोड़े की पूंछ
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    और शंख ।
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    प्रकृति में दिखाई देने वाले अनेक सर्पिल लघु गणकीय सर्पिल या वृद्धिशील सर्पिल के
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    रूप में प्रेक्षणीय हैं ।
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    जैसे ही आप केन्द्र से बाहर आते हैं, सर्पिल खंड घातीय रूप से बड़ा हो जाता है ।
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    इन्द्र के रत्नजाल की तरह लघु
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    गणकीय सर्पिल स्वयं के समान या स्वलिखित हो जाते हैं,
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    जिससे प्रत्येक भाग की विशेषताएं संपूर्णता में प्रतिबिंबित होने लगती हैं ।
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    प्राचीन ग्रीस में 2400 वर्ष पूर्व, प्लेटो ने सतत ज्यामितिक
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    समानुपात को अत्यधिक दो दुर्बोध ब्रह्मांडीय बंध होने पर विचार किया ।
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    स्वर्ण अनुपात या दिव्य समानुपात प्रकृति का महानतम रहस्य था ।
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    स्वर्ण अनुपात को ए+बी से ए के अनुपात के रूप में अभिव्यक्त किया जा सकता है,
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    जो ए से बी के अनुपात के समान है ।
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    प्लेटो के अनुसार विश्व की आत्मा एक अनुकूल प्रतिध्वनि में एक साथ बांधी जा सकती है ।
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    इसी प्रकार की पंचभुजीय पद्धति जो तारामीन या भिंडी के भाग में है,
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    उसे आठ वर्ष की अवधि में रात्रि आकाश में शुक्रग्रह
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    के मार्ग में देखा जा सकता है ।
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    ऊपर ज्यामितिक अनुरूपता के इस सिद्धांत के माध्यम से रूपों का बोधगम्य
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    संसार और नीचे भौतिक वस्तुओं का दृश्यात्मक संसार है ।
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    रोमेनेस्को फूलगोभी के स्व-अनुरूप सर्पिल पद्धतियों से लेकर
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    तारामंडल तक लघुगणितीय सर्पिल सर्वव्यापी
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    और आद्यरूप पद्धतियां हैं ।
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    हमारी अपनी आकाशगंगा तारामंडल की कई सर्पिल हैं जो
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    लगभग 12 डिग्रियों के पिच वाली लघु गणितीय सर्पिल है ।
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    सर्पिल की पिच जितनी अधिक है, घुमाव उतना ही कड़ा है ।
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    जब आप समय-अंतराल वीडियो में बढ़ते पौधों को देखते हैं तो
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    आप जीवंत सर्पिल नृत्य को देखते हैं ।
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    स्वर्णिम सर्पिल एक लघु गणितीय सर्पिल है जो स्वर्ण
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    अनुपात के घटक से बाहरी ओर बढ़ता है ।
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    स्वर्ण अनुपात एक विशेष गणितीय संबंध है जो
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    प्रकृति में अत्यधिक महत्वपूर्ण है ।
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    इस पद्धति को फाइबोनेक्की शृंखला या फाइबोनेक्की
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    अनुक्रम कहा जाता है ।
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    फाइबोनेक्की शृंखला इस तरह खुलती है कि प्रत्येक संख्या पूर्ववर्ती दो संख्याओं का जोड़ होती है ।
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    जर्मन गणितज्ञ और खगोलज्ञ केपलर ने खोजा कि स्व-अनुरुप सर्पिल पद्धतियां उसी तरह प्रेक्षणीय हैं जैसे
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    जर्मन गणितज्ञ और खगोलज्ञ केपलर ने खोजा कि स्व-अनुरुप सर्पिल पद्धतियां उसी तरह प्रेक्षणीय
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    हैं जैसे पत्तों को पौधों के तनों पर व्यवस्थित किया गया है या फूलों की पुष्पक और पंखुड़ी व्यवस्थाओं में है ।
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    लियोनार्डो द विंसी ने पाया कि पत्तों का अंतराल
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    प्राय: सर्पिल पद्धतियों में है ।
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    इन पद्धतियों को `पर्ण विन्यास` पद्धतियां
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    या पत्ता व्यवस्था पद्धतियां कहा जाता है ।
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    पूर्ण विन्यास व्यवस्थाएं स्व संगठित
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    डीएनए न्यूक्लोटाइड्स
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    में देखी जा सकती हैं और संतानोत्पत्ति करने वाले
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    नागफनी से लेकर
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    हिमकण तक और
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    डॉयटम जैसे सामान्य
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    जीवों में देखे जा सकते हैं ।
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    डॉयटम अति सामान्य प्रकार के फाईटोपलेंक्टन,
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    एक कोशीय जीवों में से एक है जो संपूर्ण खाद्य
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    प्रणाली से अगणित जीवों को भोजन उपलब्ध करवाते हैं ।
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    सूर्यमुखी या मधुमक्खी बनने के लिए आपको गणित की कितनी ज़रूरत होगी?
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    प्रकृति फूलगोभी उगाने के लिए भौतिक विभाग से परामर्श नहीं करती ।
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    प्रकृति में संरचना स्वत: घटित होती है ।
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    नैनोतकनीक के क्षेत्र में वैज्ञानिक डीएनए के निर्माण
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    के आरंभिक षड्भुजाकार चरण जैसी जटिलताओं को वर्णित करने
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    के लिए स्व-संयोजन शब्द का प्रयोग करते हैं ।
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    नैनोतकनीक इंजीनियरिंग में कार्बन नैनोटयूब एकसमान
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    व्यवस्था में समाविष्ट किया जाता है ।
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    प्रकृति इस प्रकार की ज्यामिती को बारंबार, सहजता से करती है।
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    स्वचालित रूप से। बिना संगणक के।
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    प्रकृति सूक्ष्म और अत्यंत कुशल है ।
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    प्रसिद्ध वास्तुकार एवं लेखक बकमिंस्टर फुलर के अनुसार
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    ये पद्धतियां समय अंतराल के कार्यकलाप हैं ।
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    बुलबुले के गोल होने का जो कारण है, वही कारण डीएनए और मधुमक्खी के छत्ते की आकृति से जुड़ा है ।
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    अपेक्षाकृत कम ऊर्जा वाली यह अत्यंत कुशल आकृति है ।
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    अंतरिक्ष का अपना आकार है और पदार्थ के लिए केवल कुछेक संरूपण की अनुमति
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    है और हमेशा व्यतिक्रम से केवल सर्वाधिक कुशल ही उपलब्ध कराती है ।
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    ये प्रतिकृतियां अल्पांतरीय गुंबद जैसी वास्तु शिल्पीय
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    ढांचों के निर्माण के लिए सुदृढ़ एवं कुशल पद्धति है ।
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    लघुगणकीय सर्पिल प्रतिकृतियां परागण हेतु पौधों को कीटों
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    के प्रति अधिकतम अनावरण, सूर्य की रोशनी एवं वर्षा की अधिकतम
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    पहुंच अनुमत करती हैं तथा उनकी जड़ों के लिए कुशल रूप से सर्पिल जल उपलब्ध होता है ।
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    शिकारी पक्षी अपने अगले भोजन का लुकछिप कर शिकार करने के लिए लघुगणितीय सर्पिल पद्धति अपनाते हैं ।
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    सर्पिल रूप में उड़ना शिकार का सबसे कुशल तरीका है ।
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    भौतिक रूप में सर्पिल जीवन आकाश को नृत्य करते हुए देखने की किसी की क्षमता प्रकृति में सुन्दरता
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    एवं समनुरूपता को देखने की क्षमता से संबद्ध है ।
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    कवि विलियम ब्लेक ने कहा है, "वानस्पतिक ब्रह्माण्ड" पृथ्वी के केन्द्र
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    से फूल की तरह खुलता है जिसमें शाश्वतत्व है ।
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    यह सितारों से ऐहिक सीप तक विस्तृत होता है और दोबारा
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    भीतर और बाहर, दोनों जगह शाश्वतत्व से जा मिलता है ।
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    प्रकृति में प्रतिकृतियों का अध्ययन कुछ ऐसा नहीं है जिससे पश्चिम अधिक परिचित हो,
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    लेकिन प्राचीन चीन में, यह विज्ञान `ली` के रूप में जाना जाता था ।
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    `ली` प्रकृति में गत्यात्मक क्रम एवं प्रतिकृति को प्रतिबिंबित करती है ।
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    लेकिन यह पच्चीकारी की तरह स्थिर,
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    अवरुद्ध या अपरिवर्तित प्रतिकृति नहीं है ।
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    यह सभी जीवित वस्तुओं में निहित गतिशील प्रतिकृति है ।
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    पत्तों की धमनियां, कछुए के निशान तथा
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    चट्टानों की धारीदार प्रतिकृतियां सभी प्रकृति की
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    रहस्यमयी भाषा तथा कला की अभिव्यक्तियां हैं ।
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    आंतरकर्ण कई `ली` प्रतिकृतियों में एक है ।
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    यह मोरेल जैसे कुकुरमुत्ते,
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    गोभी जैसे मूंगी ढांचे तथा
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    मानव मस्तिष्क
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    में पाया जाता है ।
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    कोशिकीय प्रतिकृति प्रकृति में मौजूद एक और सामान्य प्रतिकृति है ।
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    ऐसे असंख्य विभिन्न कोशिकीय ढांचे हैं लेकिन प्रयोजन एवं
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    कार्य द्वारा परिभाषित उनका एकसमान व्यवस्था क्रम है ।
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    उनके स्वरूपों की सतत भूमिका से सम्मोहित होना आसान
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    है लेकिन अधिक दिलचस्प यह है कि कुछेक
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    प्रकृति की आदिम बनावट से बुने प्रतीत होते हैं ।
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    शाखन प्रतिकृति एक और `ली` प्रतिकृति या आदिम प्रतिकृति है जिसे सभी
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    स्तरों एवं सभी अंशिक प्रतिमानों पर देखा जा सकता है ।
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    उदाहरण के लिए, “मिलेनियम रन” के रूप में अभिज्ञात सुपरकंप्यूटर अनुरूपण,
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    वह अविश्वसनीय छवि है जो स्थानीय ब्रह्माण्ड
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    में निष्क्रिय पदार्थ का वितरण दर्शाती है ।
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    इसका सृजन जर्मनी में मेक्स प्लेंक सोसायटी द्वारा किया गया था ।
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    निष्क्रिय पदार्थ वह है जिस पर पहले हमने रिक्त अंतरिक्ष के रूप में विचार किया था।
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    यह अदृश्य तंत्रिका तंत्र की तरह है जो पूरे ब्रह्माण्ड में प्रसरित है ।
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    ब्रह्माण्ड शाब्दिक रूप में महामस्तिष्क की तरह है ।
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    यह निष्क्रिय या छिपी ऊर्जा का प्रयोग करते हुए लगातार सोच-
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    विचार करता है जिसे विज्ञान अभी समझने की शुरुआत कर रहा है ।
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    इस असीम संजाल के माध्यम से, ब्रह्माण्ड के विस्तार एवं विकास
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    को गति प्रदान करने के लिए अगाध ऊर्जा संचालित होती है ।
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    जब हम उचित परिस्थितियाँ निर्धारित करते हैं, प्रकृति स्वत: शाखन प्रतिकृतियों का सृजन करती है ।
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    प्रकृति कला प्रोद्भवन मशीन या सौंदर्य सृजनकारी इंजिन है ।
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    यहां, बिजली रजत स्फटिक शाखाओं के विकास के लिए प्रयुक्त की जा रही है ।
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    फुटमान व्यपगत समय है चूंकि यह कई घंटों में बढ़ता है ।
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    आयन के रूप में एल्यूमिनियम कैथोड पर स्फटिक आकार
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    को सिल्वर नाइट्रेट घोल से विद्युत निक्षेप किया जाता है ।
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    निर्माण स्व-व्यस्थित है,
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    आप प्रकृति द्वारा प्रोद्भूत कलात्मक कार्य देख रहे हैं ।
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    जोहान वुल्फगेंग वान गेटे ने कहा है
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    "सौंदर्य गुप्त प्राकृतिक नियमों का प्रकटीकरण
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    है जो अन्यथा हमसे हमेशा छिपा रहता है।"
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    इस अर्थ में: प्रकृति में सब कुछ जीवित है, आत्म व्यवस्थित है ।
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    जब उच्च विद्युतीय संचालन शक्ति का प्रयोग किया जाता है तो स्वभावत: अंश यानी फ्रैक्टल शाखन और अधिक स्पष्ट हो जाता है ।
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    यह यथार्थ समय में घटित हो रहा है ।
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    मानव शरीर में, वृक्ष जैसी संरचनाएं तथा प्रतिकृतियां संपूर्ण रूप में पाई जाती हैं ।
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    निस्संदेह ऐसे तंत्रिका तंत्र हैं,
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    जिनके बारे में पश्चिमी औषध जानते हैं ।
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    लेकिन चीनी, आयुर्वेदिक तथा तिब्बती औषधि में,
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    ऊर्जा सर्वोतम अनिवार्य संघटक है जिससे शरीर के कार्यों को समझा जाता है ।
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    `नाड़ी` या ऊर्जा पराकाष्ठा वृक्ष जैसी संरचनाएँ रचती हैं ।
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    पोस्टमार्टम परीक्षण से चक्रों या `नाड़ी` का पता नहीं चलेगा,
  • 19:51 - 19:55
    लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि उनका अस्तित्व नहीं है ।
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    आपको अपने औजार परिष्कृत करने की आवश्यकता है, ताकि आप इन्हें ठीक से देख सकें ।
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    सबसे पहले आपको अपना मन शांत करना सीखना होगा ।
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    केवल तभी आप ये चीज़ें अपने भीतर देख पाओगे ।
  • 20:08 - 20:12
    विद्युतीय सिद्धांत में, तार में प्रतिरोध जितना कम होगा,
  • 20:12 - 20:15
    वह उतनी आसानी से ऊर्जा संचारित करेगी ।
  • 20:15 - 20:18
    जब आप ध्यान के माध्यम से समत्व ग्रहण करते हैं,
  • 20:18 - 20:22
    तब आपके शरीर में अप्रतिरोधी दशा उत्पन्न होती है ।
  • 20:22 - 20:29
    प्राण या ची या आंतरिक ऊर्जा साधारण रूप में आपकी जीवंतता है ।
  • 20:29 - 20:33
    आप जो अपने शरीर में चेतना का संचार होने पर अनुभव करते हैं ।
  • 20:33 - 20:38
    आपके शरीर में वे सूक्ष्म तारें जो प्राण, नाड़ियों को वहन करती हैं, वे चक्रों के माध्यम
  • 20:38 - 20:43
    से अधिकाधिक प्राणिक ऊर्जा ग्रहण करने में सक्षम हो जाती हैं ।
  • 20:43 - 20:51
    आप तारों का जितना अधिक प्रयोग करेंगे, जितनी ऊर्जा प्रवहित होने देंगे, वे उतनी अधिक ताकतवर होंगी ।
  • 20:51 - 20:56
    जहाँ कहीं चेतना हो, ची या ऊर्जा प्रवहित होने लगती
  • 20:56 - 21:00
    है और शारीरिक संवेग ऊर्जावान हो जाता है ।
  • 21:00 - 21:03
    मस्तिष्क तथा तंत्रिका तंत्र के भीतर, पुनरावृति द्वारा शारीरिक
  • 21:03 - 21:09
    तार प्रणालियां स्थापित हो जाती हैं ।
  • 21:09 - 21:12
    अपना ध्यान सतत रूप से भीतर उतारने तथा संवेदनाओं
  • 21:12 - 21:15
    के प्रतिरोध को कम करते हुए आप अपनी ऊर्जा
  • 21:15 - 21:34
    क्षमता के विकास का अनुभव कर सकते हैं ।
  • 21:34 - 21:38
    ताओज्म में, यिन येंग प्रतीक प्रकृति की सर्पिल
  • 21:38 - 21:41
    शक्तियों का अंतर्भेदन दर्शाता है ।
  • 21:41 - 21:46
    यिन यांग, दो नहीं हैं और एक भी नहीं ।
  • 21:46 - 21:49
    `हर` की प्राचीन अवधारणा यिन यांग
  • 21:49 - 21:52
    या सर्पिल चक्कर से दर्शाई जाती है ।
  • 21:52 - 21:57
    यह नाभि के नीचे उदर के अंदर स्थित शक्ति केन्द्र है ।
  • 21:57 - 22:02
    `हर` का शाब्दिक अर्थ है ऊर्जा का समुद्र या महासागर ।
  • 22:02 - 22:05
    चीन में, `हर` को निम्न डेंटियन कहा जाता है ।
  • 22:05 - 22:08
    एशियन मार्शल आर्ट के कई रूपों में,
  • 22:08 - 22:16
    सुदृढ़ `हर` वाले योद्धा को अबाधित कहा जाता है ।
  • 22:16 - 22:20
    समुराई परंपरा में विधि के अनुसार आत्महत्या या सेप्पुकु
  • 22:20 - 22:26
    का एक रूप `हरा` किरी था, जो प्राय: `हेरी केरी` के रूप में गलत उच्चारित किया गया ।
  • 22:26 - 22:31
    इसका अर्थ है एक `हर` को छेदना जिससे व्यक्ति की ची या
  • 22:31 - 22:38
    ऊर्जा चैनल को खत्म किया जा सके।
  • 22:38 - 22:41
    इस केन्द्र से चलकर कई जमीनी गरिमापूर्ण संचालन सृजित हुए,
  • 22:41 - 22:52
    जिन्हें आप न केवल सामरिक
  • 22:52 - 22:57
    कला में देखते हैं बल्कि इन्हें महान गोल्फरों,
  • 22:57 - 23:08
    बैले नर्तकों और
  • 23:08 - 23:10
    घुमावदार दरवेशियों में भी देखा जा सकता है ।
  • 23:10 - 23:13
    यह एकल केन्द्र अनुशासित सचेतनता का परिष्कार है
  • 23:13 - 23:17
    जो प्रभंजन के नेत्रों में `हर`
  • 23:17 - 23:31
    स्थिरता का सार तत्व है ।
  • 23:31 - 23:49
    यह किसी व्यक्ति की ऊर्जा स्रोत से संबंधित मूल चेतना है ।
  • 23:49 - 23:55
    अच्छे `हर` से युक्त व्यक्ति, पृथ्वी से तथा अंतदर्शी बुद्धिमता
  • 23:55 - 24:04
    से जुड़ जाता है और ये उसे सभी प्राणियों से जोड़ती है ।
  • 24:04 - 24:08
    अपनी तोंद से सोचना “हर दे कंगनसई”
  • 24:08 - 24:16
    से अभिप्राय है अपनी आंतरिक बुद्धिमता से जुड़ना ।
  • 24:16 - 24:20
    प्राचीन आस्ट्रेलियन आदिवासी जाति विशेषज्ञों ने नाभि के ठीक नीचे उसी
  • 24:20 - 24:25
    स्थान पर ध्यान संकेन्द्रित किया जहां इंद्रधनुष की रज्जु सर्पगति से कुंडलित होती है ।
  • 24:25 - 24:33
    दोबारा, मनुष्य में विकासात्मक ऊर्जा का प्रतिबिंबन होता है ।
  • 24:33 - 24:44
    यह आकस्मिक नहीं कि `हर` में नया जीवन आरंभ होता है ।
  • 24:44 - 24:54
    आभ्यांतरिक तंत्रिका तंत्र,
  • 24:54 - 24:59
    जो कभी कभार `गट ब्रेन` के रूप में संदर्भित होता है,
  • 24:59 - 25:03
    अपनी तंत्रिका कोशिकाओं एवं न्यूरो ट्रांसमीटर्स से सिर में मस्तिष्क के समान
  • 25:03 - 25:08
    संपर्कों के जटिल मेट्रिक्स को बनाए रखने में सक्षम हो जाता है ।
  • 25:08 - 25:13
    यह स्वायत्त रूप से, यानी अपनी बुद्धिमत्ता से काम कर सकता है ।
  • 25:13 - 25:17
    आप कह सकते हैं कि `गट ब्रेन` सिर मस्तिष्क का अंश रूप है या
  • 25:17 - 25:22
    कदाचित सिर मस्तिष्क `गट ब्रेन` का अंश रूप है ।
  • 25:22 - 25:28
    तंदरुस्त भालू का ताकतवर `हर` होता है ।
  • 25:28 - 25:31
    जब भालू जानता है कि कहां चारा खोजना है तो
  • 25:31 - 25:35
    वह `हर` में या उदर में संकेंद्रित अपनी चेतनाओं के माध्यम से
  • 25:35 - 25:37
    चि के संचालन का अनुसरण करता है।
  • 25:37 - 25:42
    यह भालू का स्वप्न मांद से संबंध है, देशी परंपराओं में वह स्थल,
  • 25:42 - 25:51
    जहां सारी जानकारी जीवन की सर्पिल गति से आती है ।
  • 25:51 - 25:56
    लेकिन प्राचीन लोग सर्पिल के बारे में कैसे जान पाए,
  • 25:56 - 26:00
    जबकि आधुनिक विज्ञान ने इसके महत्व को अभी जानना आरंभ किया है ?
  • 26:00 - 26:10
    मधुमक्खी से पूछो, क्योंकि वे प्रेम करना नहीं भूलीं ।
  • 26:10 - 26:12
    मधुमक्खियों के प्रतीकात्मक तंत्र के भाग के रूप में स्रोत से विशेष संबंध
  • 26:12 - 26:19
    है जो सुंदरता एवं वैविध्य में इसकी सहायता करता है ।
  • 26:19 - 26:23
    वे ब्रह्माण्ड एवं लघु ब्रह्माण्ड के मध्य पुल हैं ।
  • 26:23 - 26:29
    एक ही हृदय है जो सभी को जोड़ता है, संग्रह करने वाला मस्तिष्क ।
  • 26:29 - 26:33
    खुले मस्तिष्क की तरह, संग्रह करने, अभिव्यक्त होने के लिए
  • 26:33 - 26:47
    संसार को स्वप्न भेजता है ।
  • 26:47 - 26:52
    प्रकृति में कई जीव-जंतु जानते हैं कि किस प्रकार मैत्रीभाव रखना है,
  • 26:52 - 27:43
    सम भावना के साथ एक दिशा में गतिशील होना है।
  • 27:43 - 27:46
    लेकिन सभी अपने आस-पास के अन्य जीवों से लाभ नहीं उठाते हैं ।
  • 27:46 - 27:51
    उदाहरण के लिए टिड्डी अपने रास्ते में प्रत्येक वस्तु खा जाएगी ।
  • 27:51 - 27:55
    टिड्डी के पास इसके सिवाय कोई विकल्प नहीं कि वह टिड्डी की भांति कार्य करे ।
  • 27:55 - 28:00
    वह पौधों से शहद या पराग उस तरीके से नहीं निकाल सकती, जिस प्रकार मधुमक्खी
    इस कार्य को करती है ।
  • 28:00 - 28:04
    टिड्डी का व्यवहार कठोर है लेकिन मनुष्य विशिष्ट है और हम मधुमक्खी
  • 28:04 - 28:09
    की तरह कार्य कर सकते हैं या हम टिड्डी की तरह कार्य कर सकते हैं ।
  • 28:09 - 28:12
    हम सांसारिक व्यवहार के पैटर्न को
  • 28:12 - 28:15
    बदलने के लिए स्वतंत्र हैं ।
  • 28:15 - 28:17
    हम सहजीवी या परजीवी के
  • 28:17 - 28:35
    रूप में रह सकते हैं ।
  • 28:35 - 28:40
    आज मनुष्य सर्पिल को तर्कसंगत मस्तिष्क से समझने का प्रयत्न करते हैं,
  • 28:40 - 28:50
    लेकिन इस बारे में कभी नहीं सोचा जिसने हमें इस सर्पिल जीवन से जोड़ा ।
  • 28:50 - 28:58
    हम हमेशा इससे संबद्ध रहे हैं ।
  • 28:58 - 29:01
    सोच ही एक ऐसी चीज़ रही है कि जो हमारे अपने अस्तित्व
  • 29:01 - 29:03
    में हमें अलगाव के संभ्रम में रखती है ।
  • 29:03 - 29:07
    सोचना अलगाववाद का सृजन है ।
  • 29:07 - 29:10
    परिसीमा का अनुभव ।
  • 29:10 - 29:18
    जितना हम विचार करते हैं, उतना स्रोत से परे हो जाते हैं ।
  • 29:18 - 29:22
    प्राचीन संस्कृतियां कम विचार उन्मुख थी और उन्होंने स्वयं को आज की अपेक्षा अधिक प्रत्यक्ष
  • 29:22 - 29:27
    एवं व्यक्तिगत तरीके से सर्पिल गति में सम्मिलित किया था ।
  • 29:27 - 29:31
    प्राचीन भारत में, कुंडलिनी व्यक्ति की आंतरिक ऊर्जा का प्रतिनिधित्व
  • 29:31 - 29:39
    करती थी जो सांप की तरह या घोंघे की तरह रीढ़ में ऊपर उठती है ।
  • 29:39 - 29:43
    भारत की प्राचीन यौगिक परंपराओं में, तत्कालीन लोगों का
  • 29:43 - 29:48
    आंतरिक संसार `हर` केन्द्रित संस्कृतियों से तुलनीय था ।
  • 29:48 - 29:51
    आपकी प्रत्यक्षदर्शी सचेतनता के साथ सर्पिल की शक्त्िा के संतुलन
  • 29:51 - 29:57
    के लिए आपकी पूर्ण विकासात्मक संभावना को समनुरूप करना है।
  • 29:57 - 30:03
    आपको उस अनन्य विशिष्ट बहु आयामी रूप में विकसित होना है, जिसके लिए आपको बनाया गया है ।
  • 30:03 - 30:10
    `इड़ा़` स्त्री सुलभ या चंद्रमा माध्यम दाएं मस्तिष्क से संबद्ध है और `पिंगला`
  • 30:10 - 30:18
    पुरुषोचित या सूर्य माध्यम बाएं मस्तिष्क से संबद्ध है ।
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    जब ये दो माध्यम संतुलन में हों तो ऊर्जा तीसरे माध्यम सुषुम्ना
  • 30:23 - 30:28
    में प्रवाहित होती है जो रीढ़ के केन्द्र में होती है और चक्रों को ऊर्जस्वित करती
  • 30:28 - 30:33
    है एवं व्यक्ति की पूर्ण विकासात्मक संभावना खोलती है ।
  • 30:33 - 30:42
    `चक्र` प्राचीन संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ ऊर्जा चक्र है ।
  • 30:42 - 30:46
    कुंडलिनी आदिम सर्पिल से कम नहीं है जो आपके
  • 30:46 - 30:48
    मानव जीवन का नर्तन अस्तित्व में लाती है ।
  • 30:48 - 30:53
    यह ऊर्जा का अलग क्रम है, जिसे हम सामान्यतया समझते हैं ।
  • 30:53 - 30:57
    एकल पदार्थ से अत्यधिक सूक्ष्म ऊर्जाओं में पुल की तरह ।
  • 30:57 - 31:01
    आप वह पुल हैं ।
  • 31:01 - 31:05
    कुण्डलिनी वह ऊर्जा नहीं जिसे इच्छा, प्रयास और घर्षण से शक्ति प्रदान की जा सके ।
  • 31:05 - 31:07
    यह पुष्प की तरह खिलती है ।
  • 31:07 - 31:14
    एक अच्छे माली की तरह मिट्टी और उचित स्थितियों से हम आधार बना सकते
  • 31:14 - 31:21
    हैं और फिर प्रकृति अपना कार्य करती है ।
  • 31:21 - 31:25
    यदि आप पुष्प को समय से पूर्व बलपूर्वक खिलाने का प्रयास करेंगे तो आप इसे नष्ट कर देंगे ।
  • 31:25 - 31:32
    यह अपनी बुद्धिमत्ता अपनी आत्म संयोजित दिशा से खिलता है ।
  • 31:32 - 31:35
    अहंशील मन जो बाहरी संसार को निर्धारित करता है वह आपकी
  • 31:35 - 31:40
    आंतरिक प्रकृति के उत्तेजित अनुभव से दूर करता है ।
  • 31:40 - 31:45
    जब संचेतनता आपके भीतर प्रत्यावर्तित होती है तो यह सूर्य की किरणों के फूटने तथा
  • 31:45 - 31:52
    कमल के खिलने की तरह आपके भीतर उतर जाती है ।
  • 31:52 - 31:56
    जैसे ही कुण्डलिनी किसी व्यक्ति के भीतर जागृत होती है,
  • 31:56 - 32:00
    त्यों ही वह सभी वस्तुओं में सर्पिल के स्वरूप को देखना आरंभ कर देता है ।
  • 32:00 - 32:03
    सभी आंतरिक प्रतिकृतियों सहित व उसके बिना ।
  • 32:03 -
    Tसर्पिल हमारे आंतरिक संसार व हमारे बाहरी संसार के बीच संपर्क सूत्र है ।
Title:
Inner Worlds, Outer Worlds - Part 2 - The Spiral
Description:

All 4 parts of the film can be found at www.innerworldsmovie.com.

The Pythagorian philosopher Plato hinted enigmatically that there was a golden key that unified all of the mysteries of the universe. The golden key is the intelligence of the logos, the source of the primordial om. One could say that it is the mind of God. The source of this divine symmetry is the greatest mystery of our existence. Many of history's monumental thinkers such as Pythagoras, Keppler, Leonardo da Vinci, Tesla and Einstein have come to the threshold the mystery. Every scientist who looks deeply into the universe and every mystic who looks deeply within the self, eventually comes face to face with the same thing: The Primordial Spiral.

Frequently asked questions about the film:

1) Where can I get a particular song or the soundtrack?

A: Much of the music is available for purchase at www.spiritlegend.com on various CD's. We will be coming out with a special Inner Worlds compilation in the Summer of 2013. The track "Om Shreen Hreem" is found under "Yoga" in a CD called "Universal Mother".

2) Can I download the film and upload it to my own Youtube Channel?

A: We whole-heartedly encourage everyone to share the existing Youtube links with their friends, embed on their website, or to create screenings for their community. I'm afraid we cannot allow you to re-upload the film to your own channel for the following reasons:

a) The content itself is copyrighted and is owned by REM Publishing Ltd. Some of the video clips in the film are licensed under certain agreements and cannot be distributed or controlled by third parties.

b) Several individuals have already tried to re-upload the film and to monetize their channel and/or make a profit from selling the film without our permission, or simply to try to build subscribers for their own channel. We don't always know what people's true motivation is (and sometimes neither do they).

c) Our channel contains closed captions in many languages and we don't want versions of the film floating around without these professional translations.

d) When users subscribe to the AwakenTheWorldFilm channel we can provide people future films as we release them. This is just the first of many films and our second is already in the works.

e) Our channel also provides links to our website and Facebook page and the opportunity for people to donate to the Awaken the World initiative. Money/ support is needed to make these films, and while we make them available for free, we really appreciate when people donate, offer translation skills or other support.

If you add the existing Youtube links to a playlist you can still share the film with your friends and viewers and still have it as part of your channel, just do not upload your own version. We greatly appreciate people who feel so strongly about the content that they want to share and spread the film, and hope that you will continue to do so.

3) Where can I find a screening/ workshop/ meditation retreat etc.

A: Current information is available on the Inner Worlds Facebook page: www.facebook.com/innerworldsmovie

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Video Language:
Bulgarian
Duration:
32:45
Amara Bot edited Hindi subtitles for Inner Worlds, Outer Worlds - Part 2 - The Spiral
Amara Bot added a translation

Hindi subtitles

Revisions