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बिना अपराध की सजा काटकर मैंने क्या सीखा

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    जब मैंने उन दरवाज़ों के
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    ज़ोर से बंद होने की आवाज़ सुनी,
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    मुझे एहसास हुआ कि वह वास्तविक था।
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    मुझे उलझन महसूस हुई ।
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    मुझे लगा मेरे साथ धोखा हुआ।
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    मैं परेशान थी।
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    मुझे लगा किसीने मेरी आवाज़ छीन ली थी।
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    ऐसा क्या हुआ था अभी?
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    वे मुझे यहाँ कैसे भेज सकते थे?
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    यह जगह मेरे लायक नहीं।
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    अपने किए पर बिना किसी प्रतिघात के
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    वे इतनी बड़ी गलती कैसे कर सकते थे?
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    मैं बहुत सी औरतें के समूह देखती हूँ
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    जो फटी वर्दियाँ पहने हैं
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    ऊँची दीवारों और द्वारों से घिरी हुईं,
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    लोहे के कांटेदार तारों से घिरीं,
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    और मुझे एक भयानक बदबू का एहसास होता है,
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    और मैं खुद से पूछती हूँ,
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    मैं सम्मानित वित्तीय बैंकिंग सैक्टर में
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    काम करते-करते यहाँ कैसे पहुँच गई,
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    स्कूल में इतनी मेहनत करने के बाद,
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    अब केन्या की महिलाओं के लिए
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    सबसे बड़ी जेल में
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    बंद कैसे हो गई?
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    लेंगाटा महिला अधिकतम सुरक्षा जेल में
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    मेरी पहली रात
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    सबसे कठिन थी।
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    जनवरी, 2009 में,
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    मुझे सूचित किया गया था
    कि जिस बैंक में मैं काम करती थी
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    वहाँ मैंने अनजाने में
    एक झूठा लेनदेन किया था।
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    मैं चौंक गई थी, डरी और घबराई हुई थी।
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    मैं अपना कैरियर खो दूँगी
    जिसे मैं इतना चाहती थी।
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    पर वह सबसे बदतर नहीं था।
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    यह उससे भी बदतर हो गया
    जिसकी मैं कल्पना भी नहीं कर सकती थी।
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    मुझे गिरफ्तार कर लिया गया,
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    द्वेषपूर्ण अभियोग लगाया गया
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    और मुकदमा चलाया गया।
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    इसमें सबसे निरर्थक बात यह थी
    कि गिरफ्तार करने वाले अधिकारी ने
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    मुझसे मुकदमा खारिज करने के लिए
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    १०,००० डॉलर माँगे।
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    मैंने इनकार कर दिया।
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    ढाई साल बाद,
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    अपनी बेगुनाबी साबित करने के लिए
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    अदालतों के चक्कर काटने के बाद।
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    मीडिया में सब जगह,
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    अखबारों, टीवी, रेडियो में आ चुका था।
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    वे फिर से मुझे मिलने आए।
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    इस बार मुझे कहा,
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    "अगर तुम हमें ५०,००० अमरीकी डॉलर दोगी,
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    निर्णय तुम्हारे पक्ष में होगा,"
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    इस तथ्य के बावजूद कि कोई भी सबूत नहीं था
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    कि मैंने कोई अवैध कार्य किया था
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    जिसके कारण मुझपर आरोप लगा था।
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    छह साल पहले
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    मुझे अपराधी ठहराए जाने की
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    वे घटनाएँ मुझे याद हैं
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    जैसे कि कल की ही बात हो।
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    जज का वह निर्मम, कठोर चेहरा
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    जब उसने बृहस्पतिवार की एक शीत सुबह को
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    मेरी सज़ा सुनाई
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    उस अपराध के लिए जो मैंने नहीं किया था।
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    मुझे याद है गोद में
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    अपनी प्यारी तीन-महीने की बेटी को पकड़ना
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    जिसका नाम मेंने तभी ओमा रखा था,
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    जिसका मेरी बोली में अर्थ है,
    "सत्य और न्याय,"
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    क्योंकि मुझे इतने समय से बस
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    उसीकी चाह थी।
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    मैंने उसे उसकी पसंदीदा जामुनी पोशाक पहनाई,
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    और वह, मेरे साथ सलाखों के पीछे
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    इस एक साल की सज़ा काटने के लिए
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    तैयार थी।
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    पहरेदार इस आघात के प्रति संवेदनशील नहीं थे
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    जो इस अनुभव से मुझे महसूस हो रहा था।
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    दाखिल होने के प्रक्रिया के साथ ही
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    मेरा सम्मान और मानवता भी चल दिए.
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    उसमें नशे के लिए मेरी तलाशी ली गई,
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    मेरे साधारण कपड़ों के बजाय
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    मुझे जेल की वर्दी दे दी गई,
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    ज़मीन पर चौंकड़ी मारकर
    बैठने को मजबूर किया गया,
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    एक आसन जो मुझे जल्द पता चल गया
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    हज़ारों तलाशियों,
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    गिनतियों
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    की दिनचर्या बन जाएगा,
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    जो आगे होने वाले थे।
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    औरतों ने मुझे बताया,
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    "तुम्हें इस जगह की आदत पड़ जाएगी।
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    तुम यहाँ की बन जाओगी।"
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    मुझे अब टेरेसा जोरोगे
    कहकर नहीं बुलाया जाता था।
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    नम्बर ४१५ बटा ११ मेरी नई पहचान थी,
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    और मुझे जल्द यह भी पता चल गया
    कि जिन औरतों के साथ मैं रह रही थी
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    उनके साथ भी ऐसा ही हुआ था।
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    और मैंने जेल के भीतर की
    ज़िंदगी को अपना लिया:
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    जेल का खाना,
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    जेल की भाषा,
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    जेल का जीवन।
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    बेशक जेल कोई परियों का देश नहीं होता।
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    मुझे दिखाई नहीं दिया
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    जिन औरतों और बच्चों के साथ
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    हम एक ही जगह में साथ समय बिता रहे थे,
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    जिन औरतों को प्रशासन की गलतियों के कारण
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    गिरफ्तार किया गया था,
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    जिस भ्रष्टाचार को कोई चाहिए होता है,
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    एक बली का बकरा बनाने के लिए,
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    ताकि जो कसूरवार है
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    वह बच जाए,
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    एक भंग प्रणाली जो नियमित रूप से
    कमज़ोर पर इल्ज़ाम लगाती है,
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    हममें से सबसे गरीबों पर,
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    वे लोग जो अपनी ज़मानत भी नहीं दे सकते
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    ना ही रिश्वतें।
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    और हम ऐसे ही चलते रहे।
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    जेल के उस एक साल के दौरान,
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    मैं इन ७०० के करीब औरतों में से
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    हर किसी की कहानी सुनती रही,
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    मुझे शीघ्र एहसास हुआ
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    कि इनमें से अधिकतर औरतें अपराध की वजह से
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    जेल में नहीं थीं,
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    उससे कहीं अधिक था।
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    यह शिक्षा प्रणाली से शुरू हुआ था,
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    जिसकी पूर्ति और गुणवत्ता
    सबके लिए समान नहीं है;
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    आर्थिक अवसरों की कमी
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    जो इन औरतों को तु्च्छ अस्तित्व अपराध की ओर
    धकेल देती हैं;
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    यह स्वास्थ्य प्रणाली,
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    सामाजिक न्याय व्यवस्था,
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    आपराधिक न्याय व्यवस्था।
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    अगर इनमें से कोई औरत
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    जो अधिकतर गरीब घरों से थीं,
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    वे पहले से ही भंग व्यवस्था की
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    दरारों में गिर गईं,
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    उस खाई में सबसे नीचे एक जेल है,
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    बस।
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    जब मैंने लेंगाटा महिला अधिकतम जेल में
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    एक साल की सज़ा पूरी की,
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    मुझमें उस परिवर्तन का हिस्सा बनने की
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    एक भड़कती हुई चाह थी
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    जो उन अन्यायों को सुलझाए
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    जो मैंने देखे थे
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    उन औरतों और लड़कियों के साथ होते हुए
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    जो गरीबी के कारण
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    कभी जेल से बाहर और कभी अंदर की
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    इस कशमकश में फंसी पड़ी थीं।
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    मेरी रिहाई के बाद,
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    मैंने क्लीन स्टार्ट शुरू किया।
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    क्लीन स्टार्ट एक सामाजिक उद्यम है
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    जो इन औरतों और लड़कियों को
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    एक दूसरा मौका देना चाहता है।
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    हम इनके लिए रास्ता बनाते हैं।
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    हम जेल में जाकर इनका प्रशिक्षण करते हैं,
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    इन्हें कौशल, उपकरण और सहायता देते हैं
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    ताकि ये अपनी सोच, अपने व्यवहार
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    और दृष्टिकोण बदल सकें।
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    हम निगमित क्षेत्र से जेल की ओर
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    रास्ते भी बनाते हैं...
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    वे व्यक्ति, संगठन
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    जो क्लीन स्टार्ट के साझेदार बनकर
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    इन महिलाओं, लड़कियों, पुरुषों और लड़कों को
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    समाज में वापिस आने पर
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    रोज़गार, घर जैसी जगह,
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    नौकरियाँ,
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    व्यावसायिक प्रशिक्षण
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    देने में सक्षम बनाएँगे।
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    मैंने कभी सोचा भी नहीं
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    कि एक दिन
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    मैं अपराधिक न्याय प्रणाली में हो रहे
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    आम अन्यायों के बारे में
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    कहानियाँ सुनाऊँगी,
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    पर मैं यहाँ हूँ।
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    हर बार जब मैं जेल वापिस जाती हूँ,
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    मुझे घर सा महसूस होता है,
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    पर उस सपने को साकार करने की चुनौति
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    मुझे रातों को जगाए रखती है,
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    लुइसियाना तक पहुँचना,
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    जो संसार में जेलों की
    राजधानी मानी जाती है,
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    अपने साथ उन हज़ारों महिलाओं की
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    कहानियाँ साथ लिए हुए
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    जिन्हें मैं जेल में मिली हूँ,
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    जिनमें से कुछ दूसरा मौका अपना रही हैं।
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    और अन्य जो अभी भी
    जीवन की राह के उस पुल पर खड़ी हैं।
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    मैं महान माया एंजलू की
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    एक पंक्ति को सिद्ध करती हूँ,
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    "मैं अकेली हूँ,
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    पर मैं १०,००० के जैसी हूँ।"
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    (तालियाँ)
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    क्योंकि मेरी कहानी तो सिर्फ़ मेरी है,
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    पर मेरे साथ
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    आज की जेलों के
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    लाखों लोगों की कल्पना करें
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    जो आज़ादी के लिए तरस रहे हैं।
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    मुझे सज़ा मिलने के तीन साल बाद
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    और मेरी रिहाई के दो साल बाद,
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    अपील की अदालत ने मुझे
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    बेकसूर ठहराया।
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    (तालियाँ)
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    इसी दौरान,
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    मेरे बेटे का जन्म हुआ,
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    जिसका नाम मैंने उहुरू रखा,
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    जिसका मेरी बोली में अर्थ है "आज़ादी।"
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    (तालियाँ)
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    क्योंकि आखिरकार मुझे वह आज़ादी हासिल हुई
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    जिसकी मुझे इतने समय से कामना थी।
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    मैं अकेली हूँ,
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    पर मै १०,००० जैसी हूँ,
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    वास्तविकता और सुदृढ़ उम्मीदों से प्रेरित
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    हम हज़ारों की संख्या में
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    न्याय प्रणाली में सुधार
    और बदलाव लाने के लिए संगठित हुए,
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    इस आश्वासन के साथ कि हम अपना कर्म,
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    सही तरीके से, जैसा होना चाहिए,
    वैसे कर पा रहे हैं |
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    और हमें बिना किसी शर्म और संकोच के
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    ऐसे ही करते रहना चाहिए।
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    धन्यवाद।
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Title:
बिना अपराध की सजा काटकर मैंने क्या सीखा
Speaker:
टेरेसा नजोरोगे
Description:

२०११ में टेरेसा नजोरोगे को एक ऐसे वित्तीय अपराध के लिए दंडित किया गया जो उन्होंने नहीं किया था - झूठे आरोपों की एक लंबी कतार, बढ़ते हुए रिश्वत के प्रयासों और केन्या में अपने घर में भ्रष्ट न्याय प्रणाली के परिणामस्वरूप। जब उन्हें कैद हो गई, उन्होंने पाया कि ज़्यादातर महिलाएँ और लड़कियाँ जो उनके साथ बंद थीं, वे भी उसी भंग व्यवस्था का शिकार थीं, शिक्षा की अपूर्णता और आर्थिक अवसरों की कमी के कारण जेल से बाहर निकलने और अंदर आने में ही उनका जीवन फंस कर रह गया था। अब अपील की अदालत द्वारा बाइज़्ज़त रिहा कर दिए जाने के बाद, नजोरोगे बताती हैं कि वह कैसे जेल में महिलाओं को कौशल, उपकरण और समर्थन दे रही है ताकि वे गरीबी और अपराध के चक्र को तोड़कर एक बेहतर ज़िंदगी बना पाएँ।

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Video Language:
English
Team:
closed TED
Project:
TEDTalks
Duration:
12:23

Hindi subtitles

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