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सफ़ीना हुसैन TED2019 में

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    आज की दुनिया में बहुत सी समस्याएँ हैं।
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    यह सारी एक दूसरे से सम्बंधित
    पेचीदा और मुश्किल हैं।
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    लेकिन हम कुछ कर सकते हैं।
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    मुझे लगता है
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    कि लड़कियों की शिक्षा
    उस चाँदी के गोली के करीब है
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    जो दुनिया की सबसे मुश्किल समस्याएँ
    हल कर सकता है।
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    लेकिन आपको मुझपर यकीन करने की ज़रूरत नहीं।
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    दी वर्ल्ड बैंक के अनुसार
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    लड़कियों की शिक्षा
    एक देश के सबसे बेहतरीन इन्वेस्टमेंट
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    में से एक है।
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    वह 17 में से 9 सतत विकास के लक्ष्यों को
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    सकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है।
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    सबमें, स्वास्थ्य से लेके
    पोषण, रोज़गार --
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    इन सब पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है
    जब लड़कियाँ शिक्षित होती हैं।
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    उसके साथ, जलवायु वैज्ञानिकों ने
    ग्लोबल वार्मिंग को उल्टा करने के
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    80 क्रियाओं में से लड़कियों की शिक्षा को
    छटा स्तर दिया है।
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    छटे नंबर पर, उसका स्तर सोलर पैनल
    और इलेक्ट्रिक गाड़ियों से भी ऊँचा है।
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    और यह इसलिए है क्योंकि
    जब लड़कियाँ शिक्षित होंगी,
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    उनके परिवार छोटे होंगे,
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    और आबादी में कमी होगी
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    जो कार्बन के उत्सर्जन बहुत कम कर देगा।
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    लेकिन उससे ज़्यादा, यह एक ऐसी समस्या है
    जो हमें एक बार हल करनी है।
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    क्योंकि एक शिक्षित माँ का
    अपने बच्चों को शिक्षा करने की
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    संभावना दुगनी है।
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    मतलब एक बार करके,
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    हम लैंगिक और साक्षरता का अंतर
    हमेशा के लिए ख़त्म कर देंगे।
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    मैं भारत में काम करती हूँ,
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    जिसने सबके लिए प्राथमिक शिक्षा लाने में
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    बहुत प्रगति की है।
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    लेकिन, हमारे पास अब भी
    चालीस लाख लड़कियाँ स्कूल के बाहर हैं,
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    दुनिया में सबसे अधिक में से एक।
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    और लड़कियाँ स्कूल के बाहर
    गरीबी, सामाजिक और
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    सांस्कृतिक पहलूओं के कारण हैं।
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    लेकिन एक मानसिकता का भी पहलू है।
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    मैं एक लड़की से मिली थी
    जिसका नाम था नाराज़ नाथ।
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    नाराज़ मतलब गुस्सा होना।
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    जब मैंने उससे पूछा,
    "तुम्हारा नाम 'नाराज़' क्यों है?
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    उसने कहा, "क्योंकि सब बहुत नाराज़ थे
    जब एक लड़की का जन्म हुआ था।"
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    दूसरी लड़की जिसका नाम था अंतिम बाला
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    मतलब आखरी लड़की।
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    क्योंकि सबकी उम्मीद थी
    कि वह आखरी पैदा होने वाली लड़की हो।
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    एक लड़की जिसका नाम था आचुकी।
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    मतलब कोई जो आ गई।
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    उसका आना कोई न चाहता, पर आ गई।
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    और यही मानसिकता है
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    जो लड़कियों को पढ़ाई करने से रोकती है
    जिससे वे स्कूल नहीं आती।
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    यह मान्यता है कि एक बकरी संपत्ति है
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    और एक लड़की बोझ।
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    मेरा संसथान "एड्यूकेट गर्ल्स"
    इसे बदलने के लिए काम करता है।
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    और हम कुछ बहुत मुश्किल,
    ग्रामीण, दूरस्थ
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    और आदिवासी गाँवों में काम करते हैं।
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    कैसे?
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    सबसे पहले हम उन्ही गाँवों में से
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    जवान, उत्साही, और पड़े लिखे
    युवाओं को ढूँढते हैं।
  • 3:02 - 3:04
    लड़के और लड़कियाँ, दोनों।
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    हम उनको टीम बालिका बुलाते हैं,
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    बालिका मतलब बेटी,
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    तो यह टीम हम बेटी के लिए बना रहे हैं।
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    और जब हम इन सामुदायिक स्वयंसेवकों को
    काम पर रखते हैं,
  • 3:14 - 3:18
    हम उनको तैयार करते हैं, सिखाते हैं,
    उन्हें एक एक चीज़ बताते हैं।
  • 3:18 - 3:20
    तब हमारा काम शुरू होता है।
  • 3:20 - 3:24
    सबसे पहले हम
    हर उस लड़की को ढूँढते हैं
  • 3:24 - 3:27
    जो स्कूल नहीं जाती।
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    लेकिन जिस तरह से हम करते हैं
    वह थोड़ा अलग और हाई-टेक है,
  • 3:30 - 3:32
    कम से कम मेरे हिसाब से।
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    हमारे सारे कार्यकर्ताओं के पास
    एक स्मार्टफ़ोन है।
  • 3:35 - 3:38
    उन सबमें एड्यूकेट गर्ल्स एप है।
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    और इस एप में हमारी टीम के लिए सब कुछ है।
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    वे जहाँ पर भी सर्वेक्षण लेने जाएँगे,
    उन सब जगहों के डिजिटल नक़्शे हैं,
  • 3:46 - 3:49
    उसमें वे सर्वेक्षण हैं,
    सारे सवाल,
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    और कैसे अच्छे सर्वेक्षण लेने हैं,
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    ताकि हमारे पास डाटा उसी समय पर आए
    और उसकी गुणता अच्छी हो।
  • 3:57 - 3:58
    इनके साथ साथ,
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    हमारी टीम और स्वयंसेवक
    घर घर जाते हैं
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    हर घर हर उस लड़की को ढूँढने
  • 4:05 - 4:08
    जो स्कूल में कभी दाखिल ही न हो
    या जिसने स्कूल छोड़ दिया हो।
  • 4:08 - 4:12
    और चूँकि हमारे पास यह डाटा
    और टेक्नोलॉजी है,
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    हम जल्द ही पता लगा सकते हैं
    कि यह लड़कियाँ कौन हैं और कहाँ हैं।
  • 4:16 - 4:18
    क्योंकि हमारे सारे गाँव
    जीयोटैग्ड हैं
  • 4:18 - 4:20
    और हम उस जानकारी का
  • 4:20 - 4:22
    बहुत जल्दी पता लगवा सकते हैं।
  • 4:23 - 4:25
    और जब हमें पता चलता है लड़कियाँ कहाँ हैं,
  • 4:25 - 4:29
    हम उन्हें स्कूल वापस लाने की
    प्रक्रिया फिर से शुरू करते हैं।
  • 4:29 - 4:32
    और यह हमारे समुदाय को
    साथ लाने की भी प्रक्रिया है,
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    पहले यह गाँवों की सभा बनाकर शुरू होती है,
    नगरों की सभा,
  • 4:35 - 4:39
    और फिर माता-पिताओं और परिवारों
    के साथ व्यक्तित्व रूप से बातचीत,
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    ताकि हम लड़कियों को
    वापस स्कूल ले आ पाएँ,
  • 4:42 - 4:47
    और यह थोड़े हफ़्तों से लेकर
    महीने लगा सकती है।
  • 4:48 - 4:50
    एक बार हम लड़कियों को
    स्कूल की व्यवस्था में ले आएँ,
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    हम स्कूल के साथ भी काम करते हैं
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    यह देखने के लिए कि स्कूल में
    ज़रूरी सुविधाएँ हो
  • 4:55 - 4:57
    ताकि लड़कियाँ तह पाएँ।
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    और उनमें लड़कियों के लिए
    अलग शौचालय होने चाहिए,
  • 5:00 - 5:02
    पीने का पानी,
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    ऐसी सुविधाएँ जिनसे वे वहाँ रहें।
  • 5:05 - 5:09
    लेकिन यह सब बेकार होगा
    अगर हमारे बच्चे सीख न रहे हो।
  • 5:09 - 5:12
    तो हम एक सीखने का योजना रखते हैं।
  • 5:12 - 5:14
    और यह एक अनुपूरक योजना है,
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    और यह बहुत, बहुत ज़रूरी है,
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    क्योंकि हमारे बच्चे यहाँ
    पहली पढ़ने वाली पीढ़ी हैं।
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    जिसका मतलब है कि घर पर
    गृहकार्य में मदद करने के लिए कोई नहीं,
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    कोई नहीं जो उनकी शिक्षा का
    समर्थन कर पाए।
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    उनके माँ-बाप पढ़ नहीं सकते।
  • 5:27 - 5:28
    तो यह बहुत ज़रूरी है
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    कि हम कक्षा में उनके सीखने की
    प्रक्रिया का समर्थन करें।
  • 5:33 - 5:35
    तो यह हमारा मॉडल है,
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    लड़कियों को ढूँढने
    और उनको लाने के बारे में,
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    ताकि वह स्कूल में रहें और पढ़ें।
  • 5:40 - 5:42
    और हमें पता है कि हमारा मॉडल काम करता है।
  • 5:42 - 5:44
    और हमें यह पता है क्योंकि
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    हाल ही में इसकी प्रभावकारिता
    साबित करने के लिए
  • 5:47 - 5:49
    एक नियंत्रित मूल्यांकन हुआ था।
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    हमारे मूल्यांकनकरता ने पाया
    कि तीन साल के दौर में
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    एड्यूकेट गर्ल्स 92% स्कूल के बाहर
    वाली लड़कियों को
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    वापस स्कूल ले आया था।
  • 6:01 - 6:08
    (तालियाँ)
  • 6:08 - 6:09
    और सीखने की मामले में,
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    हमारे बच्चों की सीख
    नियंत्रित स्कूलों से
  • 6:12 - 6:14
    काफ़ी ज़्यादा बढ़ गई।
  • 6:14 - 6:18
    इतनी, की जैसे किसी
    औसत छात्र के लिए
  • 6:18 - 6:20
    यह स्कूल का एक और साल था।
  • 6:20 - 6:21
    और यह बड़ी बात है,
  • 6:21 - 6:25
    जब आप एक आदिवासी बच्चे के बारे में सोचें
    जो पहली बार स्कूली व्यवस्था
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    में जा रहा हो।
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    तो यहाँ हमारे पास एक मॉडल है
    जो काम करता है;
  • 6:29 - 6:31
    हमें पता है यह बड़ा हो सकता है,
  • 6:31 - 6:35
    क्योंकि हम पहले से ही
    13,000 गाँवों में काम कर रहे हैं।
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    हमें पता है यह स्मार्ट है,
  • 6:36 - 6:39
    क्योंकि इसमें डाटा और टेक्नोलॉजी
    का उपयोग किया गया है।
  • 6:39 - 6:42
    हमें पता है यह सतत और व्यवस्थित है,
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    क्योंकि हम समुदाय के साथ
    साझेदारी से काम करते हैं,
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    इसे समुदाय ही चलता है।
  • 6:47 - 6:50
    हम सरकार से साथ साझेदारी में काम करते हैं,
  • 6:50 - 6:52
    तो यहाँ कोई और व्यवस्था की
    रचना नहीं हुई है।
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    और क्योंकि हमारे पास
    समुदाय और सरकार के साथ
  • 6:57 - 7:01
    के साथ यह नवीन साझेदारी है,
    यह स्मार्ट मॉडल,
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    हमारे पास यह बड़ा, बुलंद ख्वाब है।
  • 7:05 - 7:09
    और वह है कि हम भारत में
    स्कूल के बाहरवाली लड़कियों की
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    अगले पाँच सालों में पूरी 40 प्रतिशत
    समस्या हल करें।
  • 7:13 - 7:19
    (तालियाँ)
  • 7:19 - 7:22
    और आप सोच रहे होंगे, कि यह थोड़ा...
  • 7:22 - 7:25
    कि मैं यह करने का
    सोच भी कैसे रही हूँ,
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    क्योंकि भारत कोई छोटी सी जगह नहीं हैं,
    एक बड़ा देश है।
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    10 करोड़ से भी ज़्यादा लोगों का देश है।
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    हमारे यहाँ 650,000 गाँव हैं।
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    ऐसा कैसे है कि मैं यहाँ खड़ी हूँ,
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    यह कहते हुए कि एक छोटा संस्थान
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    पूरी 40% समस्या हल करेगा?
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    यह इसलिए है क्योंकि हमारे पास
    एक विचार है।
  • 7:47 - 7:48
    और वह है,
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    कि हमारे पूरे तरीके की वजह से,
    जो डाटा और टेक्नोलॉजी के साथ है,
  • 7:53 - 7:55
    कि भारत के पांच प्रतिशत गाँवों में
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    40 प्रतिशत सकूल के बाहरवाली लडकियाँ हैं।
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    और यह एक पहेली का
    बड़ा हिस्सा है।
  • 8:01 - 8:04
    जिसका मतलब है, कि मुझे
    पूरे देश में काम करने की ज़रूरत नहीं।
  • 8:04 - 8:07
    मुझे उन पांच प्रतिशत गाँवों में
    काम करना है,
  • 8:07 - 8:10
    लगभग 35,000 गाँव,
  • 8:10 - 8:13
    ताकि मैं उस समस्या का
    बड़ा हिस्सा हल कर पाऊँ।
  • 8:14 - 8:15
    और यह ही वह चीज़ है,
  • 8:15 - 8:18
    क्योंकि इन्हीं गाँवों में,
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    स्कूल के बाहरवाली लड़कियों
    का बोझ ही नहीं,
  • 8:21 - 8:24
    लेकिन बहुत से दूसरे सूचक भी हैं,
  • 8:24 - 8:29
    जैसे कुपोषण, धीमी गति से बढ़ना,
    गरीबी, शिशु मृत्यु-दर,
  • 8:29 - 8:31
    बाल विवाह।
  • 8:31 - 8:33
    तो यहाँ पर काम करने और ध्यान करने से,
  • 8:33 - 8:35
    आप इन सब सूचकों में
    एक बड़ा गुणक का
  • 8:35 - 8:38
    प्रभाव बना सकते हो।
  • 8:38 - 8:39
    और उसका मतलब होगा
  • 8:39 - 8:43
    कि हम 16 लाख लड़कियों को
    वापस स्कूल में ला सकते हैं।
  • 8:45 - 8:51
    (तालियाँ)
  • 8:52 - 8:55
    मैं कहना चाहूँगी,
    मैं एक दशक से ज़्यादा से काम कर रही हूँ,
  • 8:55 - 9:00
    और मैं कभी किसी लड़की से नहीं मिली,
    जिसने कहा हो,
  • 9:00 - 9:02
    "मैं घर पर रहना चाहती हूँ,"
  • 9:02 - 9:03
    "मैं पशुओं को घास चराना चाहती हूँ,"
  • 9:03 - 9:05
    "मैं अपने भाई-बहन की
    देखबाल करना चाहती हूँ,"
  • 9:06 - 9:08
    "मैं बालिका वधू बनना चाहती हूँ।"
  • 9:08 - 9:12
    मैं जिस लड़की से मिलती हूँ
    वह स्कूल जाना चाहती है।
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    और हम वही करना चाहते हैं।
  • 9:15 - 9:19
    हम 1.6 मिलियन सपने
    पूरे करना चाहते हैं।
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    और इसमें ज़्यादा नहीं लगता।
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    हमारे मॉडल से एक लड़की को
    ढूँढकर दाखिल कराने में 20 डॉलर लगते हैं।
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    और यह देखना कि वह सीख रही है
    और उसे अच्छा पढ़ाई की योजना दिलाना,
  • 9:29 - 9:31
    में और 40 डॉलर हैं।
  • 9:31 - 9:34
    लेकिन आज समय है इसे करने का।
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    क्योंकि वह वाकई हमारी
    सबसे बड़ी संपत्ति है।
  • 9:38 - 9:41
    मैं सफ़ीना हुसैन हूँ,
    और मैं लड़कियों को शिक्षा देती हूँ।
  • 9:41 - 9:42
    धन्यवाद।
  • 9:42 - 9:46
    (तालियाँ)
Title:
सफ़ीना हुसैन TED2019 में
Speaker:
सफ़ीना हुसैन
Description:

सफ़ीना हुसैन TED2019 में

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English
Team:
closed TED
Project:
TEDTalks
Duration:
09:59

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