लेज़्ली हैज़ल्टन : क़ुरान पढ़ने का अनुभव
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0:00 - 0:02आपने शायद सुना होगा कि
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0:02 - 0:04क़ुरान में स्वर्ग की कल्पना में
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0:04 - 0:0672 हूरियाँ हैं.
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0:06 - 0:09मैं वादा करती हूँ कि इस विषय पर मैं फिर चर्चा करुँगी.
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0:09 - 0:11पर यहाँ, उत्तर-पश्चिम में,
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0:11 - 0:13हम कुछ ऎसे वातावरण में रह रहे हैं
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0:13 - 0:15जो क़ुरान में वास्तव में दिए स्वर्ग की कल्पना से बहुत मेल खाता है,
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0:15 - 0:17जिसकी व्याख्या 36 बार मिलती है
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0:17 - 0:21'बहती धाराओं से सिंचित बगीचों' के रूप में.
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0:22 - 0:25चूंकि मैं लेक युनियन में जा मिलने वाली धारा में एक हाउस-बोट पर रहती हूँ,
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0:25 - 0:28इसलिए स्वर्ग के इस चित्रण से मैं पूरा इत्तेफ़ाक़ रखती हूँ.
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0:28 - 0:31पर ऎसा क्यूँ है कि अधिकांश लोग इस बारे में जानते नहीं?
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0:32 - 0:35मैं ऎसे कई नेक़नीयत अ-मुस्लीम लोगों को जानती हूँ
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0:35 - 0:37जिन्होने क़ुरान पढ़ना शुरू तो किया, पर बीच में ही छोड़ दिया,
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0:37 - 0:40उसके अलग चरित्र से परेशान होकर.
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0:40 - 0:42इतिहासकार थॉमस कारलाईल
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0:42 - 0:45मुहम्म्द को विश्व के महानतम नायकों में से मानते हैं,
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0:45 - 0:47लेकिन उनका भी क़ुरान के बारे में कहना था,
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0:47 - 0:50'मेरी पढ़ी कठिनतम क़िताब,
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0:50 - 0:53थका देने वाली, अस्पष्ट खिचड़ी.'
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0:53 - 0:55(हँसी)
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0:55 - 0:57मुझे लगता है कि समस्या का इक सिरा ये है
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0:57 - 1:00हम ये समझ लेते हैं कि क़ुरान को
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1:00 - 1:02बाकी क़िताबों की तरह पढ़ा जा सकता है --
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1:02 - 1:05बारिश की दोपहरी में सोए हुए
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1:05 - 1:07पॉपकार्न का कटोरा साथ लिए,
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1:07 - 1:09जेसे कि ईश्वर --
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1:09 - 1:12समूचा क़ुरान मुहम्म्द को बताई ईश्वर की कही बातें हैं --
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1:12 - 1:15जैसे कि ईश्वर बाकि बेस्ट-सेलिंग लेखकों जैसे ही हों!
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1:17 - 1:19मगर इतने कम लोगों का
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1:19 - 1:21सच-मुच में क़ुरान पढ़ना ही
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1:21 - 1:24वजह है जिससे इतनी आसानी से इसका हवाला दे दिया जाता है --
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1:24 - 1:27और अक़्सर ग़लत हवाला ही दिया जाता है.
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1:27 - 1:30मूल प्रसंग से उठाकर वाक्यांशों कों तोड़-मरोड़ कर
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1:30 - 1:32ध्यान आकर्षण के लिए इस्तेमाल किया जाता है,
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1:32 - 1:35ये तरीक़ा कठमुल्लों को भी बहुत सुहाता है
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1:35 - 1:38और मुस्लिम विरोधी इस्लाम से चिढ़ने वाले लोगों को भी.
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1:38 - 1:40तो पिछले बसंत,
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1:40 - 1:42जब मैं तैयार हो रही थी
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1:42 - 1:45मुहम्मद की जीवनी लिखने के लिए,
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1:45 - 1:48मुझे एहसास हुआ कि पहले मुझे क़ुरान अच्छे से पढ़ना चाहिए --
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1:48 - 1:51जितने अच्छे से मुझसे संभव हो पाता.
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1:51 - 1:53मेरा अरबी का ज्ञान अभी
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1:53 - 1:55डिक्शनरी पर आश्रित था,
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1:55 - 1:57इसलिए मैंने चार प्रसिद्ध अनुवाद लिए
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1:57 - 1:59और उन्हें साथ - साथ पढ़ने का निश्चय किया,
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1:59 - 2:01एक एक आयत
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2:01 - 2:04अरबी शब्दों के रोमन लिप्यांतरण
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2:04 - 2:07और सातवीं शताब्दी के मूल अरबी रूप सहित.
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2:08 - 2:11मेरे पास एक सुविधा थी.
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2:12 - 2:14मेरी पिछली क़िताब
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2:14 - 2:17शिया-सुन्नी विभेद की कहानी पर थी,
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2:17 - 2:20जिसके लिए मैंने प्राचीनतम इस्लामी इतिहास पर सघन काम किया था,
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2:20 - 2:22इसलिए मुझे उन घटनाओं का पता था
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2:22 - 2:24जिनका क़ुरान में बार-बार उल्लेख है,
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2:24 - 2:26और उनका परिप्रेक्ष भी.
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2:26 - 2:28मुझे उतना ज्ञान था, जिससे मैं
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2:28 - 2:31क़ुरान में एक पर्यटक की भांति विचरणा कर सकती थी --
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2:31 - 2:33एक जानकार पर्यटक,
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2:33 - 2:35थोड़ा अनुभवी भी,
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2:35 - 2:37लेकिन फिर भी बाहर का आदमी,
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2:37 - 2:39एक अविश्वासी यहूदी
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2:39 - 2:41जो किसी दूसरे का धर्म ग्रंथ पढ़ रहा था.
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2:41 - 2:43(हँसी)
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2:43 - 2:45तो मैं धीरे-धीरे पढ़ने लगी.
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2:45 - 2:49(हँसी)
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2:49 - 2:52मैंने इस प्रोजेक्ट के लिए तीन हफ्ते का समय निर्धारित किया था,
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2:52 - 2:54इसी को शायद घमण्ड कहते हैं.
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2:54 - 2:58(हँसी)
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2:58 - 3:01क्योंकि इस काम में तीन महीने लग गए.
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3:03 - 3:05मैं इस लालच से बचती रही कि अंत के
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3:05 - 3:08छोटे और स्पष्टतः अधिक रहस्यवादी अध्यायों पर सीधे पहुँच जाऊँ.
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3:08 - 3:10लेकिन जब जब मुझे लगने लगता की
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3:10 - 3:12अब मैं क़ुरान को समझने लगी हूँ --
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3:12 - 3:14लगता कि अब 'ये मेरी पकड़ में आ रहा है' --
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3:14 - 3:16तो दूसरे ही दिन ये भावना छू-मंतर हो जाती.
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3:16 - 3:18और सुबह मैं ये सवाल लिए फिर जुट जाती कि
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3:18 - 3:21क्या मैं किसी अजनबी दुनिया में भटक गई हूँ.
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3:21 - 3:24मगर ये क्षेत्र था बहुत ही जाना पहचाना.
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3:25 - 3:27क़ुरान कहता है कि वो
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3:27 - 3:29टोरा (मुसा कि पाँच क़िताबें) और गॉस्पेल (धर्मनिर्देश) में दिए संदेशों को ही दोहराता है.
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3:29 - 3:31तो उसका एक-तिहाई
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3:31 - 3:33बाईबल के पात्रों की कहानियों को ही पुनः बयान करता है
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3:33 - 3:35जैसे कि अब्राहम, मुसा,
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3:35 - 3:38जोसेफ, मेरी, इसा.
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3:38 - 3:41ईश्वर ख़ुद अपने पहले के
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3:41 - 3:44यहोवा वाले रूप से परिचित थे --
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3:44 - 3:47इस इर्ष्या में अड़े हुए कि दूसरा ईश्वर नहीं है.
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3:48 - 3:51ऊंटों, पहाड़ों का होना,
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3:51 - 3:53रेगिस्तानी कुंएँ और झरने
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3:53 - 3:55मुझे उस साल की याद दिला रहे थे जो मैंने
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3:55 - 3:57सिनाई मरूभूमि में भटकते हुए गुज़ारा.
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3:57 - 3:59और फिर वो भाषा,
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3:59 - 4:01उसकी लयबद्ध मूर्च्छना,
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4:01 - 4:04मुझे उन शामों कि याद दिला रहे थे जो मैंने बेदुविन(बद्दु) प्रौढ़ों से
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4:04 - 4:07घंटों चलने वाली काव्यों कथाओं को सुनते हुए बिताईं
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4:07 - 4:10जो उन्हें ज़बानी याद थे.
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4:10 - 4:12और तब मुझे समझ आने लगा
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4:12 - 4:15कि क्यों ये कहा जाता है कि
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4:15 - 4:18क़ुरान को क़ुरान की तरह जानने का ज़रीया
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4:18 - 4:20सिर्फ अरबी है.
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4:20 - 4:22मसलन फातिहाह को लीजिए,
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4:22 - 4:24सात आयतों का पहला अध्याय
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4:24 - 4:28जो ईश्वर की प्रार्थना के साथ साथ इस्लाम की प्रमुख प्रार्थना भी है.
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4:29 - 4:31अरबी में ये सिर्फ 29 शब्दों में है,
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4:31 - 4:35पर अनुवादों में 65 से 72 तक.
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4:35 - 4:37और जितना आप इसमें शब्द जोड़ते जाते हैं,
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4:37 - 4:40उतना ही लगता है कि कुछ छूट गया.
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4:40 - 4:43अरबी उच्चारणों में
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4:43 - 4:45मंत्रमुग्ध कर देने की क्षमता है
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4:45 - 4:48इसलिए इसका प्रभाव पढ़ने से सुनने में ज़्यादा आता है,
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4:48 - 4:51इसे समझने से ज़्यादा महसूस करने की ज़रूरत है.
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4:51 - 4:53इसे सस्वर उच्चारित करना होगा,
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4:53 - 4:56ताकि इसका संगीत कानों और ज़बान को छूँ सके.
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4:56 - 4:58तो क़ुरान अंग्रेज़ी में
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4:58 - 5:01अपनी छाया मात्र है,
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5:01 - 5:04या जैसा ऑर्थर आरबेरी ने अपने अनुवाद के बारे में कहा,
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5:04 - 5:06'एक व्याख्या'.
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5:07 - 5:10पर अनुवाद में सब कुछ खो गया ऎसा भी नहीं है.
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5:10 - 5:13जैसा कि क़ुरान वादा करता है, सब्र का फल मिलता है,
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5:13 - 5:15और कुछ ताज्जुब करने वाली बातें भी हैं --
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5:15 - 5:18जैसे थोड़ी बहुत पर्यावरण सचेतनता
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5:18 - 5:21और मनुष्य का ईश्वर की सृष्टि में निमित्त मात्र होने क एहसास,
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5:21 - 5:24जिनका पर्याय बाईबल में नहीं मिलता.
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5:24 - 5:27और जहाँ बाईबल केवल पुरूषों को ही सम्भाषित करता है,
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5:27 - 5:29पुल्लिंग द्वितीय पुरूष और तृ्तीय पुरूष के वाचन में,
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5:29 - 5:32वहीं क़ुरान महिलाओं को भी शामिल करता है --
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5:32 - 5:34जैसे क़ुरान बात करता है
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5:34 - 5:36पुरूषों पर विश्वास और स्त्रियों पर विश्वास करने पर --
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5:36 - 5:39सम्माननीय पुरुष और सम्माननीय महिलाएँ.
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5:41 - 5:43या फिर आप उस कुख्यात आयत को ही लीजिए
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5:43 - 5:45जिसमें क़ाफिरों को मारने की बात कही गई है.
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5:45 - 5:47हाँ, इसमें ज़रूर ऎसा कहा गया है,
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5:47 - 5:50लेकिन बहुत ही विशेष संदर्भ में:
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5:50 - 5:52पवित्र शहर मक़्का पर
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5:52 - 5:54चढ़ाई से पहले,
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5:54 - 5:57जहाँ सामान्यतः युद्ध की मनाही थी.
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5:57 - 6:00पर ये अनुमति भी बहुत सारी शर्तों और हिदायतों के साथ दी गई.
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6:00 - 6:03आप क़ाफ़िरों को मक़्का में नहीं मार सकते,
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6:03 - 6:06मगर इजाज़त मिले तो ऎसा कर सकते हैं,
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6:06 - 6:09पर सिर्फ तब जब रियायत का वक़्त ख़त्म हो गया हो
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6:10 - 6:13और तब तक कोई दूसरा समझौता भी ना हो पाया हो
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6:13 - 6:16और वो भी तब जब वो आपको क़ाबा जाने से रोकें,
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6:16 - 6:19और उसमें भी तब जब पहले हमला वो करें.
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6:19 - 6:22इस पर भी -- ईश्वर दयानिधान है,
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6:22 - 6:25माफ कर देना सबसे बड़ी महानता है --
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6:25 - 6:27और इसलिए, अनिवार्य रूप से,
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6:27 - 6:29बेहतर यही है कि आप ना मारें.
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6:29 - 6:32(हँसी)
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6:32 - 6:35सबसे बड़ा आश्चर्य शायद यही था --
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6:35 - 6:37कि क़ुरान कितना उदार है,
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6:37 - 6:39कम से कम उनके लिए जो
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6:39 - 6:42मूलतः रूढ़ीवादी नहीं हैं.
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6:42 - 6:45'इनमें से कुछ आयतों के अर्थ स्पष्ट हैं', ये कहता है,
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6:45 - 6:48'और कुछ के थोड़े अस्पष्ट.
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6:48 - 6:50पंकिल हृदय वाले
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6:50 - 6:52इन अस्पष्टताओं का इस्तेमाल
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6:52 - 6:54अशांति फैलाने की कवायद में करेंगे,
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6:54 - 6:57इनकी अपने स्वार्थानुसार व्याख्या करके.
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6:57 - 7:00बस ईश्वर ही है जो सच जानता है.'
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7:01 - 7:03ये जुमला, ' ईश्वर सूक्ष्म है '
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7:03 - 7:05बार बार दोहराया गया है.
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7:05 - 7:07और सचमुच में, समूचा क़ुरान हमें जितना बताया जाता है,
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7:07 - 7:09उससे काफी ज़्यादा सूक्ष्म है.
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7:09 - 7:11मसलन,
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7:11 - 7:13वो छोटा सा मुद्दा
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7:13 - 7:16हूरियों और स्वर्ग वाला.
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7:16 - 7:19यहाँ पूरब की सनातनी सोच का असर दिखता है.
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7:20 - 7:22जिस शब्द को चार बार दोहराया गया है
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7:22 - 7:24वो है 'हूरी',
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7:24 - 7:26जिनका वर्णन
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7:26 - 7:29काली आँखों वाली भारी वक्ष की कन्याओं के रूप में
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7:29 - 7:32या फिर सुंदर, भारी नितंब वाली कुमारियों के रूप में किया गया है.
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7:33 - 7:35लेकिन मूल अरबी में
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7:35 - 7:38केवल एक शब्द है: ' हूरी.'
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7:39 - 7:42कोई भारी वक्ष या नितंब नहीं.
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7:42 - 7:44(हँसी)
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7:44 - 7:46अब ये पवित्र जीवात्माओं के वर्णन का तरीक़ा हो सकता है
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7:46 - 7:48जैसे कि देवदूत
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7:48 - 7:51या फिर युनानी कौरो (पुल्लिंग) या कोरे (स्त्रिलिंग) जैसे,
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7:51 - 7:53चिरयुवा.
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7:53 - 7:56पर सच्चाई ये है कि सच क्या है कोई नहीं जानता
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7:56 - 7:58और यही ध्यान में रखने वाली बात है.
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7:58 - 8:00क्योंकि क़ुरान बहुत स्पष्ट है
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8:00 - 8:02जब वो आपसे कहता है कि आप
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8:02 - 8:05'स्वर्ग में एक नई सृ्ष्टि बनेंगे'
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8:05 - 8:07और आपका ' आपकी कल्पना के परे
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8:07 - 8:10किसी रूप में पुनर्सृ्जन होगा',
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8:10 - 8:13जो मेरे लिए कहीं ज़्यादा आकर्षणीय है
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8:13 - 8:15किसी हूरी को पाने की तुलना में.
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8:15 - 8:23(हँसी)
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8:23 - 8:26और वो 72 का आंकड़ा कहीं नहीं आता.
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8:26 - 8:28क़ुरान में कहीं भी 72 हूरियों
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8:28 - 8:30का उल्लेख नहीं है.
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8:30 - 8:33ये कल्पना 300 साल बाद की है,
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8:33 - 8:36जिसे ज़्यादातर ईस्लामी बोद्धा
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8:36 - 8:38बादलों पर बैठे पंखों वाले
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8:38 - 8:40हार्प बजाते लोगों जैसी कल्पना ही समझते हैं.
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8:41 - 8:44(क़ुरान में) स्वर्ग इसके बिलकुल विपरीत है.
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8:44 - 8:46वो कौमार्य नहीं,
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8:46 - 8:48उर्वरता है,
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8:48 - 8:50वो प्राचूर्य है,
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8:50 - 8:52उसमें बहती धाराओं से सिंचित
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8:52 - 8:55बगीचे हैं.
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8:55 - 8:57धन्यवाद.
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8:57 - 9:12(तालियाँ)
- Title:
- लेज़्ली हैज़ल्टन : क़ुरान पढ़ने का अनुभव
- Speaker:
- Lesley Hazleton
- Description:
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लेज़्ली हैज़ल्टन ने एक दिन क़ुरान पढ़ना शुरु किया. और इस्लामी पवित्र पुस्तक में एक अ-मुस्लिम स्व-घोषित 'पर्यटक' के रुप में उन्होंने जो पाया, उसकी उन्हें उम्मीद नहीं थी. टैड एक्स रेईनर के इस मिथक तोड़ने वाले संभाषण में अपने गहरे पाण्डित्य और उदाक्त रसबोध के साथ हैज़ल्टन अपने अनुभव किए सौंदर्य, उदारता और रहस्यमयता को बांटती हैं.
- Video Language:
- English
- Team:
- closed TED
- Project:
- TEDTalks
- Duration:
- 09:13