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प्राचीन से आधुनिक काल तक दुनिया के सबसे
महानतम आध्यात्मिक गुरुओं ने विचार साझा किया है कि
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हमारे अस्तित्व की गहरी सच्चाई किसी एक विशेष
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धार्मिक या आध्यात्मिक परंपरा की सम्पत्ति नहीं है बल्कि
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प्रत्येक व्यक्ति के मन में समाई हैा
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कवि रूमी ने कहा है "ऐसा चंद्रमा कहाँ है
जो न कभी उगता है न डूबता है?
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ऐसी आत्मा कहाँ है जो हमारे साथ है भी
और नहीं भी। यह न कहो कि वह यहाँ या वहाँ है।
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सारी रचना 'वही' है, लेकिन उन आँखों के लिए
जो उसे देख सकती हैं।
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टॉवर ऑफ़ बेबल की कथा में
मानवता अनगिनत भाषाओँ ,
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विश्वास, संस्कृतियों और दिलचस्पियों में बँटी हुई है ।
बेबल का शाब्दिक अर्थ है "ईश्वर का द्वार"।
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द्वार हमारा सोचने वाली बुद्धि है - हमारी
अनुकूलित संरचनाएँ। उन लोगों के लिए
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जो अपनी असली प्रकृति, नाम और रूप से अलग
अपने अस्तित्व को समझने का प्रयास करते हैं,
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उन्हें द्वार से परे के महान रहस्य से अवगत कराया जाता है।
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एक पुरानी हाथी की नीति कथा के ज़रिए
बताया गया है कि कैसे अलग-अलग
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परंपराएँ एक ही महान सत्य की ओर
इशारा कर रही हैं। कुछ अंधे लोग
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एक हाथी के अलग-अलग अंगों को छूते हैं,
और सबकी एक अलग धारणा बनती है कि
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हाथी क्या है। हाथी के पैर के पास खड़ा व्यक्ति
हाथी को एक
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पेड़ की तरह बताता है। पूंछ की ओर खड़ा व्यक्ति
उसे रस्सी जैसा बताता है।
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हाथी के दाँत को छूने वाला व्यक्ति
उसे भाले की तरह बताता है। और कोई
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जो कान को छूता है, उसे लगता है कि
हाथी एक पंखे की तरह है।
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जो हाथी के पेट को छूता है
उसे हाथी दीवार की तरह लगता है।
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समस्या यह है कि हम हाथी के अपने अंश को छूते हैं
और हम अपने अनुभव को ही
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सच मान लेते हैं। हम न तो स्वीकार करते हैं
न ही मानते हैं कि हर व्यक्ति का अनुभव
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एक ही प्राणी के विभिन्न पहलू हैं।
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सार्वकालिक दर्शन एक समझ है कि
सभी आध्यात्मिक और धार्मिक परंपराएँ
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एक ही सार्वभौमिक सत्य का उल्लेख करती हैं।
एक रहस्यात्मक या
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परम सत्य जिसकी नींव पर
सभी आध्यात्मिक ज्ञान और उसके
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सिद्धांत विकसित हुए हैं।
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स्वामी विवेकानंद ने यह कह कर सार्वकालिक
शिक्षा का सारांश प्रस्तुत किया, "हर धर्म का
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लक्ष्य आत्मा में ईश्वर का बोध है।
यही एकमात्र वैश्विक धर्म है।"
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इस फिल्म में जब हम ईश्वर शब्द का प्रयोग करते हैं
तो वह ज्ञानातीत रूपक मात्र है
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जो सीमित अहंकारी मन से परे उस
विलक्षण रहस्य की ओर इशारा करता है।
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अपने सच्चे आत्म ज्ञान या अंतर्निहित आत्म को समझने का मतलब
अपनी दिव्य प्रकृति को जानना है।
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हर एक आत्मा में चेतना के नए उच्च स्तर की समझ,
उसे नींद से जगाने और उसके
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स्वरूप के साथ उसे पहचानने की क्षमता होती है।
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अपनी पुस्तक "ब्रेव न्यू वर्ल्ड " के लिए विख्यात
लेखक और दूरदर्शी आल्डस हक्सले ने
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"द पेरिनियल फिलॉसफी" नामक पुस्तक भी लिखी,
जिसमें उन्होंने उस शिक्षा के बारे में लिखा है
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जो इतिहास में बार बार दोहराई जाती है,
जो उस संस्कृति का रूप लेती है
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जिसमें उसे महसूस किया जाता है।
वे लिखते हैं, "द पेरिनियल फिलॉसफी
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संस्कृत सूत्र "तत् त्वम असि"; "जो तुम हो" में काफ़ी
संक्षिप्त रूप में व्यक्त किया गया है।
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आत्मा या श्रेष्ठ अविनाशी आत्म वही है
जो ब्रह्म में लीन है, यह परम सिद्धांत है
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हर अस्तित्व का, और
हरेक मानव का आखिरी अंत है
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स्वयं तथ्य की खोज करना। यह पता लगाना कि
दरअसल वह कौन है?
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हर परम्परा रत्न के फलक जैसी है
जो उसी सत्य का अलग परिप्रेक्ष्य
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दिखाती है, जबकि परस्पर वही भाव
प्रतिध्वनित और प्रकाशित करती है।
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चाहे कोई भी भाषा या वैचारिक सोच
इस्तेमाल की गयी हो, सभी धर्म जो
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शाश्वत सत्य की शिक्षा देते हैं, उनकी यही
अवधारणा होती है कि किसी परम तत्व से
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मिलन होना है, जो हमारी समझ से परे है।
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यह संभव है कि उनसे सीख और उनके साथ
स्व की भावना का भेद किए बिना
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एक या अनेक स्रोतों की शिक्षा को एकीकृत करें।
ऐसा कहा जाता है कि समस्त सच्चा
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आध्यात्मिक ज्ञान उस परम सत्य की ओर
इशारा करती हुई उंगलियाँ हैं। यदि हम
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राहत के लिए इस सीख से हठधर्मिता के साथ
चिपके रहते हैं तो यह हमारे आध्यात्मिक विकास में
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बाधक बन जाएगा। सत्य को किसी
अवधारणा से परे जानने के लिए हमें
-
सभी लगाव और मोह को छोड़ना होगा,
सभी धार्मिक अवधारणाओं को त्यागना होगा।
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अहंकार के परिप्रेक्ष्य से आपको समाधि की ओर
इशारा करने वाली उँगली सीधे पाताल की ओर
-
इशारा करती है।
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क्रॉस के सेंट जॉन ने कहा है, "अगर कोई
सत्य की राह पर चलने की इच्छा रखता है,
-
तो उसको अपनी आंखें बंद कर लेनी चाहिए
और अंधेरे में चलना चाहिए।"
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समाधि अज्ञात में एक छलांग के साथ शुरू होती है।
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प्राचीन परंपराओं में यह कहा गया है कि
समाधि प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को अंततः
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चेतना को सभी ज्ञात वस्तुओं से
दूर रखना होगा; सभी बाहरी प्रत्यक्ष
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वस्तुओं से, अनुकूलित विचारों और संवेदनाओं से,
स्वयं चेतना की दिशा में।
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आंतरिक स्रोत की ओर; अपने अस्तित्व के केंद्र
या मूल में। इस फिल्म में जब हम
-
समाधि शब्द का प्रयोग करते हैं तो
हम परम तत्व की ओर इशारा करते हैं। उच्चतम
-
समाधि की ओर, जिसे निर्विकल्प समाधि नाम दिया गया है।
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निर्विकल्प समाधि में अपनी गतिविधि बंद होती है,
-
खोजने और करने की। हम केवल उसके बारे में
बोल सकते हैं जो हमारे पास जाने पर दूर जाता है
-
और जो हमारे वापस लौटने पर फिर दिखाई देने
लगता है। न तो कोई समझ है और न ही
-
कोई नासमझी, न तो कोई "चीज़" है और न ही
"कोई चीज़ नहीं", न तो चेतना और न ही
-
अचेतन। यह पूर्ण, अतुलनीय,
और मन के लिए रहस्यपूर्ण है।
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जब आत्मा गतिविधि की ओर लौटती है तब
अज्ञानता रहती है ; एक तरह का पुनर्जन्म,
-
और सब कुछ फिर से नया हो जाता है। हमारे अंदर
दिव्य शक्ति की खुशबु रह जाती है,
-
जो तब तक रहती है जब तक मानव
इस पथ पर बढ़ते रहते हैं।
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प्राचीन परंपराओं में अनेक तरह की
समाधि का वर्णन है और
-
भाषा ने वर्षों तक काफ़ी भ्रम पैदा किया है।
हम समाधि शब्द का चयन
-
ज्ञानातीत मिलन को दर्शाने के लिए
कर रहे हैं, लेकिन हम इतनी ही
-
आसानी से किसी भी परंपरा के शब्द का प्रयोग
कर सकते थे। समाधि एक प्राचीन संस्कृत
-
शब्द है जो भारत के वैदिक, योगिक
और सांख्य परंपरा में आम है, और
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कई अन्य आध्यात्मिक परंपराओं में
मौजूद है। समाधि पतंजली योग के
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आठ अंगो में से एक, और बुद्ध के
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पावन अष्टांगिक मार्ग में आठवां है।
बुद्ध ने "निर्वाण" शब्द का प्रयोग किया
-
"वान" का समापन या आत्म गतिविधि का समापन।
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पतंजलि ने योग या समाधि को संस्कृत के
"चित्त वृत्ति निरोध" के रूप में वर्णित किया, जिसका संस्कृत
-
अर्थ है "भंवर या सर्पिल मन का समापन।" यह चेतना के
-
सम्पूर्ण विन्यास या मन के रचनात्मक
विन्यास को सुलझाना है।
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समाधि किसी अवधारणा को नहीं बताती
क्योंकि इसे प्राप्त करने के लिए आवश्यक है
-
कि हम अपने वैचारिक मन को त्याग दें।
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विभिन्न धर्मों ने दिव्य मिलन का वर्णन करने के लिए
विभिन्न शब्दों का उपयोग किया है।
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दरअसल धर्म या रिलिजन शब्द का अर्थ भी
वैसा ही कुछ है। लैटिन में "रैलिगेर"
-
का मतलब है पुनः बांधना या पुनः जुड़ना।
योग में भी इसका वही अर्थ है जिसका
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मतलब है सांसारिकता को परमात्मा से
बांधना या जोड़ना। इस्लाम में
-
प्राचीन अरबी शब्द इस्लाम का ही शाब्दिक अर्थ है
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पूर्ण समर्पण अथवा भगवान से याचना।
यह आत्मा की संपूर्ण विनम्रता या
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आत्मसमर्पण का प्रतीक है।
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ईसाई रहस्यवादी जैसे कि असीसी के
सेंट फ्रांसिस, एविला की सेंट टेरेसा और
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क्रॉस के सेंट जॉन अंतर्निहित ईश्वर के साम्राज्य,
ईश्वर से दिव्य मिलन का वर्णन करते हैं
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गॉस्पेल ऑफ़ थॉमस में, ईसा मसीह ने कहा है
"साम्राज्य यहाँ या वहाँ नहीं है।
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बल्कि पूरे संसार में परमपिता का शासन है
और लोग इसे
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देख नहीं पाते हैं। "ग्रीक दार्शनिक प्लेटो,
प्लोटिनस, परमेनाइड्स
-
और हेराक्लिटस के लेखन को सार्वकालिक
शिक्षण बिंदु के लेंस के माध्यम से देखने पर
-
इसी ज्ञान की ओर इशारा करते नज़र आते हैं।
प्लॉटिनस सिखाता है कि सबसे बड़ा मानवीय प्रयास
-
अपनी आत्मा को सर्वोच्च शक्ति की ओर ले जाने
और उसमें एकाकार होने
-
के लिए निर्देशित होना चाहिए।
-
लकोटा औषधि और पवित्रात्मा ब्लैक एल्क ने
कहा है, "पहली शांति, जो
-
सबसे महत्वपूर्ण है, वह मानव के भीतर से आती है
जब वे ब्रह्मांड और उसकी
-
शक्तियों के साथ अपना संबंध, अपनी एकता
मह्सूस करते हैं, और जब
-
वे महसूस करते हैं कि ब्रह्मांड के केंद्र में
महान आत्मा रहती है और
-
इसका केंद्र वास्तव में हर जगह है।
यह हम में से प्रत्येक के भीतर है।
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जब तक हम समाधि में ना हो जागरूकता के पथ पर
-
हमेशा दो ध्रुवीयताएँ होती हैं, दो द्वार जिनमें
आप प्रवेश कर सकते हैं। इसके दो पहलु है
-
एक शुद्ध चेतना की ओर, दूसरा असाधारण
दुनिया की ओर। ऊपरी धारा
-
परमात्मा की ओर जाती है, और
निचली धारा माया और उन सबकी ओर
-
जो प्रत्यक्ष है, देखा और अनदेखा, दोनों।
सगे सम्बन्धियों के साथ रिश्ता और
-
परमात्मा के साथ रिश्ते को श्री निसर्गदत्त महाराज के
निम्नलिखित उद्धरण से संपूर्ण रूप से समझा जा सकता है
-
कि: "ज्ञान यह जानना है कि मैं कुछ भी नहीं हूँ,
प्रेम यह जानना है कि मैं ही सब कुछ हूँ, और
-
इन दोनों के बीच मेरी ज़िन्दगी चलती है"
-
इस मिलन से जिसका जन्म होता है वह एक
नई दिव्य चेतना है। इन ध्रुवीयताओं के
-
विवाह या मिलन से कुछ उत्पन्न हुआ या
द्वैतवादी पहचान का पतन,
-
फिर भी जो पैदा हुआ वह कोई चीज़ नहीं है
और वह कभी पैदा ही नहीं हुआ था।
-
चेतना कुछ नई रचना से खिलती है,
जिसे आप कह सकते हैं
-
शाश्वत त्रिमूर्ति।
-
परमपिता परमात्मा, ज्ञानातीत, जिसे जाना नहीं
जा सकता और जो अपरिवर्तनशील है, जो
-
दिव्य शक्ति से जुड़ा है , जो पूरी तरह
परिवर्तनशील है। यह मिलन एक
-
रासायनिक परिवर्तन लाता है;
एक तरह की मृत्यु और पुनर्जन्म।
-
वैदिक शिक्षण में दो मौलिक शक्तियाँ
दिव्य मिलन का प्रतिनिधित्व करती हैं
-
शिव और शक्ति। विभिन्न देवताओं के नाम
और चेहरे पूरे इतिहास में बदल जाते हैं
-
लेकिन उनके मौलिक गुण वही रहते हैं।
इस मिलन से पैदा होती है
-
एक नई दिव्य चेतना, दुनिया में अस्तित्व का
एक नया तरीका। दो ध्रुवीयताएँ
-
अविश्वसनीय रूप से एक। एक सार्वभौमिक ऊर्जा,
केन्द्रहीन, सीमा से मुक्त।
-
यह विशुद्ध प्रेम है। इसमें पाने या खोने के लिए
कुछ भी नहीं है
-
क्योंकि यह पूरी तरह खाली है
लेकिन बिल्कुल संपूर्ण।
-
चाहे वह मेसोपोटामिया के रहस्यमय संप्रदाय हों,
या आध्यात्मिक परम्पराएँ हों
-
बेबिलोनिया और असीरिया की,
प्राचीन मिस्र के धर्म हों,
-
या प्राचीन अफ्रीका की नूबियन और
केमेटिक संस्कृतियाँ, शमनिक और मूल
-
परंपराएँ दुनिया भर की , प्राचीन ग्रीस के
रहस्यवादी, नॉस्टिकवादी
-
अद्वैतवादी बौद्ध, ताओवादी, यहूदी,
ज़रदुश्त, जैन , मुस्लिम,
-
या ईसाई हों, पर सबको जोड़ने वाली
कड़ी है उनकी सर्वोच्च आध्यात्मिक
-
अंतर्दृष्टि, जिसने अपने अनुयायियों को
समाधि हासिल करने की इजाजत दी है।
-
मूल शब्द समाधि का अर्थ सभी चीज़ों में
समानता या एकता को महसूस करना है।
-
इसका मतलब संघ है। यह अपने
सभी पहलुओं को एकजुट करना है।
-
लेकिन समाधि की वास्तविक प्राप्ति के लिए
बौद्धिक समझ को
-
भ्रमित मत करो। दरअसल आपकी स्थिरता,
आपका खालीपन ही है जो एकजुट करता है
-
सर्पिल जीवन के सभी स्तरों को।
-
समाधि के इस प्राचीन शिक्षण के माध्यम से ही
मानवता सभी धर्मों के सामान्य स्रोत को
-
समझने की शुरुआत कर सकती है
और एक बार फिर सर्पिल जीवन,
-
परमात्म, धम्म या ताओ के साथ
एक सीध में आ सकती है।
-
सर्पिलता वह पुल है जो सूक्ष्म जगत से
ब्रह्मांड तक फैलता है।
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आपके डीएनए से जो ऊर्जा आंतरिक कमल तक
चक्रों के माध्यम से, आकाशगंगा की
-
सर्पिल र्भुजाओं तक व्याप्त है।
-
आत्मा का हर स्तर सर्पिलता के माध्यम से
सदा विकसित शाखाओं के रूप में व्यक्त किया जाता है,
-
जीते हुए, अन्वेषण करते हुए। सच्ची समाधि
स्वयं के सभी स्तरों पर
-
शून्यता को प्राप्त करना है। आत्मा के सभी आवरणों में।
सर्पिलता अंतहीन खेल है
-
द्वंद्व तथा जीवन और मृत्यु के चक्र का।
-
कभी-कभी हम स्रोत से
अपना सम्बन्ध भूल जाते हैं।
-
जिस लेंस से हम देखते हैं वह बहुत छोटा है
और हम अपनी पहचान करते हैं कि
-
हम धरती पर रेंगने वाले सीमित प्राणी हैं,
ताकि एक बार फिर यात्रा पूरी कर सकें
-
वापस उस स्रोत तक;
-
केंद्र तक, जो हर जगह है।
-
चुआंग त्ज़ू ने कहा है, "जब इस और उस के बीच
कोई और अलगाव नहीं होता है, तो उसे
-
ताओ का स्थिर बिंदु कहा जाता है।
सर्पिल के केंद्र में स्थिर बिंदु पर
-
सभी में अनंत को देख सकते हैं।"
-
प्राचीन मंत्र "ओम् मणि पद्मेहम" का
एक काव्यात्मक अर्थ है। जैसे कोई जागृत या महसूस करता है
-
अपने कमल के भीतरी रत्न को। उसी तरह
आपकी सच्ची प्रकृति आत्मा के भीतर जागती है,
-
दुनिया के भीतर दुनिया के रूप में।
-
हर्मेटिक सिद्धांत "जो ऊपर है वही नीचे है,
जो नीचे है वही ऊपर है" के प्रयोग द्वारा हम समनुरूप
-
उपयोग कर सकते हैं मन और स्थिरता के बीच
संबंधों की समानता, सापेक्ष और निरपेक्ष को
-
समझने के लिए।
-
समाधि की गैर-वैचारिक प्रकृति को
समझने का एक तरीका है
-
ब्लैक होल की सादृश्यता का प्रयोग करना।
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ब्लैक होल परंपरागत रूप से
अंतरिक्ष के एक क्षेत्र के रूप में वर्णित है
-
जिसमे गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र इतना शक्तिशाली है कि
कोई प्रकाश या पदार्थ बच नहीं सकता है। नए सिद्धांत
-
यह पुष्टि करते है कि सभी वस्तुएँ
छोटे से छोटे सूक्ष्मदर्शी कण से लेकर
-
आकाशगंगा जैसी ब्रह्मांडीय संरचनाओं तक में
ब्लैक होल या रहस्यमय
-
एक केंद्र होता है । इस समानता में
हम उपयोग करने जा रहे हैं
-
ब्लैक होल की यह नई परिभाषा कि
"केंद्र जो हर जगह है"।
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ज़ेन में कई कवितायें और उपाख्यान हैं
जो हमें बिना द्वार के प्रवेश-द्वार से
-
रू-ब-रू करवाते हैं। समाधि प्राप्त करने के लिए
हमें बिन दरवाज़े के प्रवेश द्वार से गुज़रना होगा।
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किसी घटना का क्षितिज अंतरिक्षीय समय में
वह सीमा है जिसके बाद कोई भी घटना
-
किसी बाहरी व्यक्ति को प्रभावित नहीं कर सकती है '
जिसका मतलब है कि
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घटना क्षितिज आपके लिए अज्ञात है।
आप कह सकते हैं कि घटना के क्षितिज
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का ब्लैक होल एक द्वारविहीन द्वार की तरह है।
यह आत्म और अनात्म के बीच की
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सीमा है। ऐसा कोई "मैं "नहीं है
जो इस घटना के क्षितिज के पार जा सके।
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ब्लैक होल के केंद्र में एक-आयामी चीज़ है जिसमें
-
बहुत ही छोटी जगह में अरबों सूर्यों का भार है।
जिसका मतलब है
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अनंत भार। यानी कि ब्रह्मांड कुछ
इतनी छोटी जगह में
-
जो एक रेत के कण से भी छोटा हो।
एकात्मकता समय से परे है और
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अंतरिक्ष से भी। भौतिकी के अनुसार
गति असंभव है , चीज़ों का अस्तित्व
-
असंभव है। यह जो कुछ है,
वह सम्बंधित नहीं है
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किसी भी धारणा से, इसके बावजूद
इसे स्थिरता नहीं कहा जा सकता।
-
यह स्थिरता और गति से परे है।
जब आप उस केंद्र को समझ जाते हैं जो
-
हर जगह है कहीं भी नहीं है, तो द्वंद्व खंडित करता है,
आकार और खालीपन को
-
समय और अनंत को।
-
इसे हम ऐसी गतिशील स्थिरता और भरा पूरा
खालीपन कह सकते हैं जो स्थापित है
-
पूर्ण अंधेरे के केंद्र में। ताओवादी शिक्षक
लाओ त्से ने कहा है
-
"अंधेरे के भीतर अंधेरा सभी समझ का प्रवेश द्वार।"
-
लेखक और तुलनात्मक पुराणों के अध्येता
जोसेफ़ कैम्पबेल पुनरावर्ती प्रतीक का वर्णन करते है
-
जो हिस्सा है शाश्वत दर्शन का
जिसको वो एक्सिस मंडी कहते है,जिसका
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मतलब है केंद्र बिंदु या उच्चतम शिखर। एक धुरी
-
जिसके चारों ओर सब कुछ घूमता है।
वह बिंदु जहाँ स्थिरता और गति
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एक साथ होते हैं। इसके केंद्र से एक शक्तिशाली
वृक्ष फलता फूलता है। एक बोधी वृक्ष
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जो पूरे संसार को जोड़ता है। जैसे सूर्य
ब्लैक होल में चला जाता है, जब आप
-
परम ज्ञान के करीब पहुँचते है, आपका जीवन
इसके चारों ओर घूमना शुरू कर देता है और आप
-
गायब होने लगते हैं।
-
जैसे ही आप स्थिर आत्म से संपर्क करते हैं,
यह अहंकार संरचना को डरा सकता है।
-
द्वारपालक उनका परिक्षण करते है
जो अपनी यात्रा पर हैं।
-
हर किसी को अपने सबसे बड़े डर का सामना करने के लिए
तैयार रहना चाहिए और साथ ही साथ
-
अपनी अंतर्निहित शक्ति को स्वीकार करना चाहिए।
अपने अचेतन भय को और छिपी सुंदरता को
-
प्रकाशित करना चाहिए। यदि आपका मन विचलित नहीं होता है
और आप कोई आत्म प्रतिक्रिया भी नहीं करते है तो
-
अचेतन से उत्पन्न सभी घटनाएँ समाप्त हो जाती है।
-
यह आध्यात्मिक यात्रा का वह समय है जब
विश्वास की सर्वाधिक आवश्यकता होती है।
-
विश्वास से हमारा क्या मतलब है? आस्था और विश्वास
एकसमान नहीं है। विश्वास है अपने दिमागी स्तर पर
-
कुछ स्वीकार करना राहत और आश्वासन के लिए।
विश्वास है अनुभव के अंकन या
-
उसे नियंत्रित करने का दिमाग़ी तरीक़ा।
आस्था इसके ठीक विपरीत है। आस्था है
-
पूरी तरह से अज्ञानी बने रहना, हर वो चीज़
स्वीकार करना जो उत्पन्न हो
-
आपके अचेतन से। आस्था
एकात्मकता के खिंचाव के प्रति समर्पण है,
-
अपने आप का सम्मिलन या समापन
द्वारविहीन द्वार से गुज़रने के लिए।
-
आकाशगंगा का विकास और उसकी संरचना
ब्लैक होल से निकटता से बंधी हुई है
-
ठीक उसी प्रकार जैसे आपका विकास जुड़ा हुआ है
अंतर्भूत आत्म की उपस्थिति के साथ
-
एकात्म, जो आपका सच्चा स्वभाव है।
-
हम ब्लैक होल को नहीं देख सकते हैं, लेकिन
हमें इसके आस-पास गतिशील चीज़ों से इसके बारे में
-
पता चलता है, जिस प्रकार यह भौतिक वास्तविकता के साथ
परस्पर-क्रिया करता है। उसी तरह हम
-
अपनी असली प्रकृति को नहीं देख सकते हैं।
स्थिर आत्म कोई वस्तु नहीं है, लेकिन हम देख सकते हैं
-
प्रबुद्ध क्रिया। जैसा कि ज़ेन मास्टर सुजुकी ने कहा है,
"सच मानिये तो यहाँ
-
कोई प्रबुद्ध लोग नहीं है। केवल प्रबुद्ध गतिविधि है।"
-
हम इसे देख नहीं सकते जैसे कि आँख खुद को नहीं देख सकती है।
हम इसे नहीं देख सकते क्योंकि यह वो चीज़ है
-
जिसके माध्यम से देखना संभव है। ब्लैक होल की तरह समाधि भी
-
शून्यता नहीं है , और न ही यह कोई चीज़ है।
यह होने या न होने के द्वन्द्व को
-
खत्म करती है। परम सत्य में प्रवेश के लिए
कोई द्वार नहीं है,
-
लेकिन अनंत पथ हैं। धर्म का पथ
एक अंतहीन सर्पिल पथ की तरह है
-
जिसका कोई आदि और कोई अंत नहीं है। कोई भी
द्वारविहीन द्वार से गुज़र नहीं सकता। किसी की बुद्धि ने
-
अभी तक यह पता नहीं लगाया है और न कभी लगा पायेगा।
कोई भी द्वारविहीन द्वार से नहीं गुज़र सकता है,
-
तो ऐसा ही सही।
-
समाधि पथहीन मार्ग, सुनहरी कुंजी है।
यह हमारी आत्म संरचनाओं के साथ
-
पहचान का अंत है जो हमारी आंतरिक
और बाहरी दुनिया को अलग करती हैं।
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कई विकासशील नमूने हैं जो आत्म संरचना की परतों
या स्तरों का वर्णन करते हैं
-
हम एक उदाहरण का उपयोग करेंगे
जो बहुत प्राचीन है।
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उपनिषदों में, आत्मन या आत्मा को ढकने वाले आवरण को
कोष कहा जाता है। प्रत्येक कोष
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एक दर्पण की तरह है। आत्म संरचना की एक परत;
एक आवरण या माया का स्तर
-
जो हमें अपनी मूल प्रकृति को समझने से
भटकाता है अगर उससे हमारी पहचान होती है।
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अधिकांश लोग प्रतिबिंब देखते हैं
और मान लेते हैं कि वे वही हैं।
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एक दर्पण पशु परत, यानी भौतिक शरीर को दर्शाता है।
एक और दर्पण दर्शाता है
-
आपके मन, आपकी सोच, आपकी सहज वृत्तियों,
और धारणाओं को। दूसरा आपकी आंतरिक ऊर्जा
-
या प्राण को, जिसे आप अंतर्मुखी होकर
देख सकते हैं। एक और दर्पण
-
आपके काल्पनिक स्तर को दर्शाता है
जो उच्चतर मन या ज्ञान की परत है,
-
और बहुत सारी ऐसी सर्वोच्च परतें हैं
जो अतींद्रिय या अद्वैत आनंद का अनुभव कराती हैं
-
समाधि की ओर अग्रसर होने पर।
-
यहाँ संभावित रूप से अनगिनत दर्पण
या आत्मा के पहलू हैं जिसमें कोई भी
-
अंतर कर सकता है, और वे लगातार बदलते रहते हैं।
-
अधिकांश लोगों ने अभी तक प्राणिक, उच्च मन और
अद्वैत आनंद की परतों की खोज नहीं की है
-
वे उनके अस्तित्व के बारे में भी नहीं जानते हैं।
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ये परतें आपके जीवन को सूचित कर रही हैं
लेकिन आप उन्हें नहीं देख रहे हैं। छिपे दर्पण
-
दिखाई देने वालों की तुलना में हमारे
जीवन को अधिक जानकारी देते हैं।
-
वे अदृश्य हैं क्योंकि ज्यादातर लोगों के लिए वे
पूरी तरह उनकी चेतना मे प्रकाशित नहीं होते हैं
-
इंद्र के रत्न-जाल की तरह, सभी दर्पण एक दूसरे को
प्रतिबिंबित करते हैं और
-
प्रतिबिंब असीम रूप से हर दूसरे प्रतिबिंब को
प्रतिबिंबित करते हैं। एक स्तर पर कोई बदलाव
-
सभी स्तरों को एक साथ प्रभावित करता है।
-
इन दर्पणों में से कुछ छाया में छोड़े जा सकते हैं
जब तक कि हम इतने भाग्यशाली न हों
-
कि उन पर प्रकाश डालने में हमारी मदद के लिए
कोई सक्षम मार्गदर्शक हमारे साथ हो। सच ये है कि
-
हम ये नहीं जानते कि हम क्या नहीं जानते है |
अब कल्पना करें कि आप सभी दर्पणों को तोड़ दें।
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आपके पास स्वयं को प्रतिबिंबित करने के लिए
कुछ भी नहीं है। आप कहाँ हैं?
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जब मन स्थिर हो जाता है तो दर्पण
प्रतिबिंबित करना बंद कर देते हैं। फिर कोई
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विषय और वस्तु नहीं रह जाता है। लेकिन इस स्थिति को
शून्यता या विस्मृति की आदिम स्थिति समझने की
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गलती ना करें। आत्म कुछ नहीं है लेकिन ऐसा भी न समझें
कि यह कुछ भी नहीं है।
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स्रोत कोई चीज नहीं है, यह अपने आप मे
खालीपन या स्थिरता है।
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यह एक खालीपन है जो सभी चीजों का स्रोत है।
आकृति को बिल्कुल खालीपन के स्वरूप में
-
महसूस किया जाता है और खालीपन को एक आकृति में
पा सकते हैं। यह स्रोत महान
-
सृष्टि का गर्भ है जो सभी संभावनाओं से भरी हुई है।
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समाधि अवैयक्तिक चेतना की जागृति है। जैसे ही आप
-
सपना देखते है, जागने पर आपको एहसास होता है
कि सपने में जो कुछ था वो
-
बस आपके दिमाग में है। समाधि को समझने पर
यह महसूस किया जाता है कि
-
इस दुनिया में सब कुछ ऊर्जा के स्तर पर
स्तरों और चेतना के भीतर हो रहा है
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यह दर्पण के भीतर सारे दर्पण हैं,
सपनों के भीतर सपने। आप जिसे
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मानते हैं कि आप हैं, सपना और
और सपना देखने वाला, दोनों हैं।
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इस फिल्म में हम जो भी कहते हैं, उसे भूल जाएँ।
उसे मन में धारण न करें। आत्मा
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सपना देख रहा है, आपका सपना देख रहा है।
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सपना, वह सब कुछ है जो बदल रहा है, लेकिन
इस परिवर्तनहीनता को महसूस करना संभव है।
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यह अहसास सीमित व्यक्तिगत मन से
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समझा नहीं जा सकता है।
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जब हम निर्विकल्प समाधि से बाहर आते हैं
तो दर्पण फिर से प्रतिबिंबित करना प्रारंभ करते हैं
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यह समझा जाता है कि जिस दुनिया में अपने रहने की बात
आप सोचते हैं दरअसल वह आप हैं।
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जो केवल आपका एक अस्थायी प्रतिबिंब है
और आप उसी तक सीमित नहीं है, लेकिन
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आप अपने सच्चे प्रकृति के सभी के स्रोत को जानते हैं ।
उच्च ज्ञान की यह शुरुआत,
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भ्रूण, "प्रज्ञा" या आत्मिक ज्ञान
समाधि से उत्पन्न हुआ है।
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जॉब चोकमाह की किताब के अनुसार
ज्ञान शून्यता से उपजती है। ज्ञान का यह बिंदु
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असीम रूप से छोटा होते हुए भी पूरे अस्तित्व को घेरता है,
लेकिन इसे तब तक
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समझा नहीं जा सकता जब तक उसने दर्पणों के महल में
कोई आकार और स्वरूप ना दिया हो
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उस दर्पण के महल को "बिनाह " कहा जाता है,
जो गर्भ उच्च ज्ञान से उत्पन्न होता है और जो
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भ्रूणीय ईश्वर की आत्मा को आकार देता है।
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[संगीत] इंडियाजिव द्वारा "अब्वून द बाश्माया"
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दर्पण या मन का अस्तित्व
कोई समस्या नहीं है।
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इसके विपरीत, मानव धारणा की त्रुटि या विचलन
यह है कि हम इससे अपनी पहचान करते हैं।
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यह भ्रम, कि हम सीमित आत्म हैं, माया है। योगिक
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मार्ग का कहना है कि समाधि को समझने के लिए
ध्यान लक्ष्य का पालन तब तक करना चाहिए
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जब तक कि आप इसमें लीन न हो जाएँ या
यह आप में न समा जाए। हालांकि
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विभिन्न परंपराओं में भाषा अपने मूल में
असमान हैं, लेकिन वे सभी आत्म-पहचान और
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आत्म केंद्रित गतिविधि के समापन की ओर
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इशारा करते है। बुद्ध हमेशा नकारात्मक शब्दों में
पढ़ाया करते थे। उन्होंने सिखाया कि सीधे
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आत्म संरचना की खोज करें।
उन्होंने यह नहीं कहा कि समाधि क्या थी
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सिवाय इसके कि यह सभी कष्टों का अंत है ।
अद्वैत वेदांत का एक शब्द है "नेति "
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जिसका अर्थ है "ना ये ना वो।"
आत्म-प्राप्ति के मार्ग पर चलने वाले लोग
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अपनी असली प्रकृति या ब्रह्म की प्रकृति के बारे में
पहले यह जानकर खोज करते हैं कि
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वे क्या नहीं हैं।
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इसी तरह ईसाई धर्म में अविला की सेंट टेरेसा ने
प्रार्थना के लिए एक दृष्टिकोण का वर्णन किया
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जो नकारात्मक पथ, या नेगेटिवा पर आधारित है ।
शांत, समर्पण और मिलाप द्वारा प्रार्थना,
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यही एक तरीका है परम तत्व तक
पहुँचने का।
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अलग होने की इस क्रमिक प्रक्रिया से व्यक्ति ऐसी
कोई चीज़ छोड़ सकता है
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जो स्थाई न हो, जो बदल रहा हो।
मन, अहंकार का निर्माण और
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आत्म की छिपी परतों सहित सभी घटनाएं।
अचेतन मन का उस
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एक स्रोत को प्रतिबिंबित करने के लिए
पारदर्शी होना ज़रूरी है। अगर अचेतन में कुछ
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गहरा ज्ञान या कोई आत्म परिचालन है, तो
फिर हमारा जीवन बंद रह जाता है
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एक छिपे पैटर्न की भूलभुलैया में
जिसमे अज्ञात आत्म शामिल है।
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जब स्व की सभी परतें शून्य के रूप में
प्रकट होती हैं तो व्यक्ति स्व से मुक्त हो जाता है।
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सभी अवधारणाओं से मुक्त।
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आपके विकास का महत्वपूर्ण बिंदु वह है जब आप
महसूस करते हैं कि आप नहीं जानते कि आप कौन हैं।
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साँस का अनुभव कौन करता है?
स्वाद का अनुभव कौन करता है?
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मंत्र, अनुष्ठान, नृत्य, पहाड़ का अनुभव
कौन करता है? साक्ष्य ही गवाह है,
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अवलोकन ही पर्यवेक्षक।
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सबसे पहले जब आप पर्यवेक्षक का अवलोकन करते हैं
तो आप केवल झूठे आत्म को देखेंगे, लेकिन यदि
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आप आग्रही हैं तो वह हार मान लेगा।
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सीधे पूछताछ करें कौन और क्या अनुभव करता है।
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बिना पलकें झपकाए, तीखेपन से, सूक्ष्मदर्शी बनकर
अपने अस्तित्व की पूरी ताकत के साथ।
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[संगीत] "गते, गते, परागते। पार सम गते, बोधिस्वाहा।"
(अर्थ: चला गया, बहुत दूर, जागृत स्रोत से परे पूरी तरह से)
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- बिना अनुवाद उपशीर्षक -
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जागने वाला कोई आत्म नहीं है।
जागने वाला कोई "आप" नहीं हो। आप जिसे
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जगा रहे हैं वह अलग आत्म का भ्रम है।
अपने उस सपने से जो
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सीमित "आप" हैं। इसके बारे में बात करना अर्थहीन है।
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आत्म को समझने के लिए आत्म का वास्तविक
समापन होना चाहिए कि यह क्या है, और
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जब यह महसूस हो जाए तो इसके बारे में
कहने को कुछ भी नहीं बचता है। जैसे ही आप
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कुछ कहते हैं आप मन में वापस आ जाते हैं।
मैंने पहले ही बहुत कुछ कहा है।
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आम तौर पर चेतना की तीन अवस्थाएँ होती हैं:
जागना, सपना देखना और गहरी नींद।
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समाधि को कभी-कभी चौथी अवस्था कहा जाता है,
जो प्राथमिक अवस्था है
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चेतना की। आदिम जागृति जो
निरंतर उपस्थित हो सकती है और
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अन्य चेतन अवस्थाओं के साथ समानांतर में
उपस्थित है। वेदांत में इसे तूरीय कहा जाता है।
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तूरीय के लिए अन्य नाम दिए गए है
क्राइस्ट चेतना , कृष्ण चेतना,
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बुद्ध प्रकृति या सहज समाधि।
सहज समाधि में स्थिर आत्म अपनी सभी
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मानवीय गतिविधियों के पूर्ण उपयोग के साथ
उपस्थित है। स्थिरता
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बदलती सर्पिल घटना के केंद्र में गतिहीन है।
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विचार, भावनाएँ, संवेदनाएँ और ऊर्जा
इसकी परिधि के चारों ओर घूमती हैं
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लेकिन स्थिरता की मात्रा या मैं-हूँ-की भावना
बाहरी गतिविधि के दौरान बिल्कुल वैसी बनी रहती है
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जैसे कि ध्यान में। यह संभव है कि
अंतर्हित आत्म गहरी नींद में भी
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मौजूद रहे; कि आपकी मैं हूँ की जागरूकता
चेतना के परिवर्तन की अवस्थायों के रूप में
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आती या जाती नहीं है।
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यह योगिक निद्रा है।
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हिब्रू बाइबिल या ओल्ड टेस्टामेंट का
सांग्स ऑफ सांग्स, या सांग ऑफ़ सोलोमन
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यह कहता है, "मैं सोता हूँ लेकिन मेरा दिल जागता है"।
शाश्वत अवैयक्तिक चेतना का
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यह अहसास मसीह के शब्दों में दिखाई देता है
जब वे कहते हैं
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"इब्राहिम से पहले, मैं हूँ।"
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एक चेतना जो अनगिनत चेहरे,
अनगिनत रूपों के माध्यम से चमकती है।
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सबसे पहले यह आपके भीतर ध्रुवीयताओं से
पैदा हुई नाजुक लौ की तरह लगती है।
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समर्पण के साथ समाती हुई
पुरुषत्व चेतना या स्त्री शक्ति का
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उद्घाटन। यह नाजुक है, और आसानी से खो सकता है,
इसकी रक्षा करने के लिए बहुत सावधानी बरतनी चाहिए
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और जब तक यह परिपक्व न हो इसे जीवित रखना चाहिए।
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समाधि साथ ही समयहीन अवस्था है
चेतना की एक और अवस्था
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विकास प्रक्रिया को प्रकट करने की।
कुछ जैविक और समय के साथ विकसित।
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जैसे-जैसे कोई समाधि में अधिक से अधिक
समय बिताता है, वर्तमान में, शाश्वतता में,
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तब वह अधिक से अधिक हृदय, आत्मा से
दिशाबोध ग्रहण करता है, और
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अनुकूलित संरचना से कम।
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इस तरह कोई निम्नतर मन से मुक्त हो जाता है।
मनोविकार से मुक्त हो जाता है ।
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आंतरिक तारों में परिवर्तन आ जाता है।
ऊर्जा बहुत देर तक अचेतन रूप से
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पुरानी अनुकूलित संरचनों में नहीं बहती, जोकि यह
कहने का एक और तरीका है कि किसी को
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उसकी आत्म संरचना से उसके स्वरूप की
बाहरी दुनिया से नहीं पहचाना जाता है।
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समाधि प्राप्त करने के लिए इतनी ज़्यादा कोशिश ज़रूरी है
कि यह पूरी तरह आत्मसमर्पण बन जाता है
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स्वयं का, और आत्मसमर्पण ऐसा कि
इसमें शामिल हो पूर्ण प्रयास
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किसी के अस्तित्व का ; उसकी सभी ऊर्जा का।
यह संतुलन है प्रयास और
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आत्मसमर्पण का, यिन और यांग का।
एक तरह का सरल प्रयास।
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भारतीय रहस्यवादी और योगी
परमहंस रामकृष्ण ने कहा, "मत खोजो प्रकाश
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जब तक कि आप उसे इस तरह नहीं खोजते जैसे कि
बालों में आग लगी हो और जो तालाब की खोज में हो"
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आप इसे अपने पूरे अस्तित्व के साथ खोजते हैं।
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किसी के अहंकार से आगे बढ़ने के दौरान
अत्यधिक साहस, सतर्कता और दृढ़ता ज़रूरी है
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भ्रूण को जीवित रखने के लिए।
सांसारिक माया जाल में न फँसने के लिए।
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इच्छाशक्ति बेहद जरूरी है
प्रवाह के विरुद्ध तैरने के लिए,
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दैहिक साँचे के दबाव और सांसारिक पहिए में
पिसने से बचने के लिए। हर सांस
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हर विचार, हर क्रिया स्रोत को
हासिल करने के लिए होनी चाहिए। समाधि
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प्रयास से हासिल नहीं होती है और ना ही बिना प्रयास के।
प्रयास या बिना प्रयास को जाने दें; यह
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द्वंद्व केवल मन में मौजूद है। समाधि का
वास्तविक अहसास इतना सरल
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इतना निर्विवाद है कि इसे हमेशा भाषा के
माध्यम से गलत समझा जाता है
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जो स्वाभाविक रूप से द्वंद्वात्मक है।
केवल एक प्रायोगिक चेतना है जो
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दुनिया के रूप में जागृत है लेकिन यह मन की
कई परतों में अस्पष्ट है। जिस तरह
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सूर्य बादलों के पीछे छिपा हुआ है वैसे ही मन की
प्रत्येक परत हटने के बाद व्यक्ति के अस्तित्व का
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सार प्रकट हो जाता है।
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मन की प्रत्येक परत हटने पर, लोग इसे
अलग समाधि कहते हैं। वे इसे
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विभिन्न अनुभवों या विभिन्न भौतिक विषयों के
नाम देते हैं
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लेकिन समाधि इतनी सरल है कि जब आपको बताया जाता है कि
यह क्या है और कैसे हासिल किया जाए
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तो आपका मन हमेशा चूक जाता है।
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दरअसल समाधि सरल या जटिल नहीं है;
यह केवल मन है जो इसे
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ऐसा बनाता है। जब कोई मन नहीं होता है
तो कोई समस्या नहीं होती है, क्योंकि मन है
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जिसे रोकने की ज़रूरत है इसे प्राप्त करने के लिए।
यह कोई घटना तो बिल्कुल नही है।
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समाधि की सबसे संक्षिप्त व्याख्या
शायद इस वाक्यांश में है:
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"शांत रहें और जानें।"
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हम स्थिरता को व्यक्त करने के लिए शब्दों और चित्रों का उपयोग
कैसे कर सकते हैं? हम शोर के ज़रिये
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शांति कैसे व्यक्त कर सकते हैं? समाधि को
एक बौद्धिक सिद्धांत कहने के बजाय,
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यह फिल्म निष्क्रियता का परिवर्तनवादी आह्वान है।
यह ध्यान, आंतरिक शांति और
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आंतरिक प्रार्थना के लिए बुलावा है।
थमने का आह्वान।
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तर्कहीन अहंकारी मन से संचालित
हर चीज को रोक दें।
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स्थिर रहें और जानें।
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स्थिरता से क्या निकलेगा यह आपको
कोई भी नहीं बता सकता।
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यह आध्यात्मिक मन से कार्य करने का आह्वान है।
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यह किसी पुराने को याद करने जैसा है।
आत्मा जागती है और खुद को याद करती है।
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यह एक नींद में डूबे यात्री की तरह है लेकिन
अब खालीपन जाग जाता है और खुद को ही
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सब कुछ मानने लगता है।
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आप सीमित अहंकारी मन से समाधि क्या है
इसकी कल्पना नहीं कर सकते बिलकुल उसी तरह जैसे
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आप अंधे इंसान को यह नहीं समझा सकते की रंग क्या है।
आपका मन जान नहीं सकता। वह इसे
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बना भी नहीं सकता। समाधि को पाने का मतलब
अलग दृष्टिकोण से देखना है, अलग चीज़ों को
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देखना नहीं बल्कि द्रष्टा को पहचानना है।
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असीसी के सेंट फ्रांसिस ने कहा है, "जो आप खोज रहे हैं
वही देख रहा है।" आपने अगर एक बार
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चंद्रमा को देखा हो तो उसकी हर परछाई
पहचान सकते हैं। सच्चा आत्म
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हमेशा वहीं रहा है, यह हर चीज़ में है, लेकिन
आपने इसकी उपस्थिति को महसूस नहीं किया है।
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जब आप मन और इन्द्रियों से परे अपने स्वरूप को
पहचानते और उसे मानने लगते हैं
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तो यह मुमकिन है कि आप बेहद मामूली चीज़ों से
विस्मय का एहसास करें। हम स्वयं विस्मय बन जाते हैं।
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इच्छाओं से मुक्त होने की कोशिश न करें
क्योंकि इच्छाओं से मुक्त होने की इच्छा भी
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एक इच्छा है। आप स्थिर रहने की कोशिश नहीं कर सकते
क्योंकि प्रत्येक प्रयास एक गति है।
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उस स्थिरता को समझें जो हमेशा पहले से मौजूद है।
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खुद स्थिर हो जाएँ और जानें
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जब सभी प्राथमिकताएँ त्याग दी जाती हैं,
तब पता चलता है स्रोत का, लेकिन स्रोत से भी
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न चिपकें। महान वास्तविकता, ताओ
न तो एक है न ही दो। रमण महर्षि ने कहा है
-
"आत्मा केवल एक है। यदि यह सीमित है तो
यह अहंकार है, और अगर असीमित है तो यह अनंत
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और महान वास्तविकता है।" जो कहा जा रहा है
उसे यदि आप मानते हैं तो आपने इसे नहीं समझा है।
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यदि आप नहीं मानते हैं तब भी आपने इसे नहीं समझा है।
विश्वास और अविश्वास आपके मन के
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स्तर पर काम करते हैं। उन्हें जानकारी चाहिए,
लेकिन यदि आप अपने अस्तित्व की
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तहकीकात करते हुए अपने अस्तित्व के सभी पहलुओं की
जाँच करते हैं, यह जानकर कि जाँच
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कौन कर रहा है, अगर आप इस सिद्धांत पर चलना चाहते हैं
"मेरी नहीं, ऊपर वाले की मर्ज़ी चलेगी,"
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अगर आप सारे ज्ञान से आगे बढ़ना चाहते हैं
तब आप वह एहसास समझ पाएंगे
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जिसकी ओर मैं इशारा कर रहा हूँ।
तभी आप गूढ़ रहस्य और साधारण अस्तित्व की
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सुंदरता का एहसास कर पाएंगे।
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जीवन की एक और संभावना है।
कुछ ऐसा जो पवित्र, समझ से परे है
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जिसे आपके अस्तित्व की शांत
गहराइयों में पाया जा सकता है,
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धारणाओं, नीतियों, अनुकूलित गतिविधियों
और हर अभिरुचियों से परे। इसे
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तकनीकों, अनुष्ठानों या प्रथाओं से नहीं पाया जा सकता।
इसे "कैसे" पाएँ का कोई तरीक़ा नहीं है।
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कोई प्रणाली नहीं है। उपाय का
कोई रास्ता नहीं है। जैसा कि ज़ेन में कहा जाता है
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यह जन्म से पहले अपने मूल चेहरे की खोज है। यह खुद को
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निखारने का नाम नहीं है। यह स्वयं
प्रकाश बनना है; वह प्रकाश जो आत्मा के
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भ्रम को दूर करता है। जीवन हमेशा अपूर्ण रहेगा
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और हृदय तब तक बेचैन रहेगा
जब तक कि यह नाम और रूप से परे के
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रहस्य में राहत न पा जाए।
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[संगीत] ओम् श्रीम् लक्ष्मी