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Samadhi Part 2 (It's Not What You Think)

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    प्राचीन से आधुनिक काल तक दुनिया के सबसे
    महानतम आध्यात्मिक गुरुओं ने विचार साझा किया है कि
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    हमारे अस्तित्व की गहरी सच्चाई किसी एक विशेष
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    धार्मिक या आध्यात्मिक परंपरा की सम्पत्ति नहीं है बल्कि
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    प्रत्येक व्यक्ति के मन में समाई हैा
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    कवि रूमी ने कहा है "ऐसा चंद्रमा कहाँ है
    जो न कभी उगता है न डूबता है?
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    ऐसी आत्मा कहाँ है जो हमारे साथ है भी
    और नहीं भी। यह न कहो कि वह यहाँ या वहाँ है।
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    सारी रचना 'वही' है, लेकिन उन आँखों के लिए
    जो उसे देख सकती हैं।
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    टॉवर ऑफ़ बेबल की कथा में
    मानवता अनगिनत भाषाओँ ,
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    विश्वास, संस्कृतियों और दिलचस्पियों में बँटी हुई है ।
    बेबल का शाब्दिक अर्थ है "ईश्वर का द्वार"।
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    द्वार हमारा सोचने वाली बुद्धि है - हमारी
    अनुकूलित संरचनाएँ। उन लोगों के लिए
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    जो अपनी असली प्रकृति, नाम और रूप से अलग
    अपने अस्तित्व को समझने का प्रयास करते हैं,
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    उन्हें द्वार से परे के महान रहस्य से अवगत कराया जाता है।
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    एक पुरानी हाथी की नीति कथा के ज़रिए
    बताया गया है कि कैसे अलग-अलग
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    परंपराएँ एक ही महान सत्य की ओर
    इशारा कर रही हैं। कुछ अंधे लोग
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    एक हाथी के अलग-अलग अंगों को छूते हैं,
    और सबकी एक अलग धारणा बनती है कि
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    हाथी क्या है। हाथी के पैर के पास खड़ा व्यक्ति
    हाथी को एक
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    पेड़ की तरह बताता है। पूंछ की ओर खड़ा व्यक्ति
    उसे रस्सी जैसा बताता है।
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    हाथी के दाँत को छूने वाला व्यक्ति
    उसे भाले की तरह बताता है। और कोई
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    जो कान को छूता है, उसे लगता है कि
    हाथी एक पंखे की तरह है।
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    जो हाथी के पेट को छूता है
    उसे हाथी दीवार की तरह लगता है।
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    समस्या यह है कि हम हाथी के अपने अंश को छूते हैं
    और हम अपने अनुभव को ही
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    सच मान लेते हैं। हम न तो स्वीकार करते हैं
    न ही मानते हैं कि हर व्यक्ति का अनुभव
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    एक ही प्राणी के विभिन्न पहलू हैं।
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    सार्वकालिक दर्शन एक समझ है कि
    सभी आध्यात्मिक और धार्मिक परंपराएँ
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    एक ही सार्वभौमिक सत्य का उल्लेख करती हैं।
    एक रहस्यात्मक या
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    परम सत्य जिसकी नींव पर
    सभी आध्यात्मिक ज्ञान और उसके
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    सिद्धांत विकसित हुए हैं।
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    स्वामी विवेकानंद ने यह कह कर सार्वकालिक
    शिक्षा का सारांश प्रस्तुत किया, "हर धर्म का
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    लक्ष्य आत्मा में ईश्वर का बोध है।
    यही एकमात्र वैश्विक धर्म है।"
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    इस फिल्म में जब हम ईश्वर शब्द का प्रयोग करते हैं
    तो वह ज्ञानातीत रूपक मात्र है
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    जो सीमित अहंकारी मन से परे उस
    विलक्षण रहस्य की ओर इशारा करता है।
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    अपने सच्चे आत्म ज्ञान या अंतर्निहित आत्म को समझने का मतलब
    अपनी दिव्य प्रकृति को जानना है।
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    हर एक आत्मा में चेतना के नए उच्च स्तर की समझ,
    उसे नींद से जगाने और उसके
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    स्वरूप के साथ उसे पहचानने की क्षमता होती है।
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    अपनी पुस्तक "ब्रेव न्यू वर्ल्ड " के लिए विख्यात
    लेखक और दूरदर्शी आल्डस हक्सले ने
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    "द पेरिनियल फिलॉसफी" नामक पुस्तक भी लिखी,
    जिसमें उन्होंने उस शिक्षा के बारे में लिखा है
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    जो इतिहास में बार बार दोहराई जाती है,
    जो उस संस्कृति का रूप लेती है
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    जिसमें उसे महसूस किया जाता है।
    वे लिखते हैं, "द पेरिनियल फिलॉसफी
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    संस्कृत सूत्र "तत् त्वम असि"; "जो तुम हो" में काफ़ी
    संक्षिप्त रूप में व्यक्त किया गया है।
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    आत्मा या श्रेष्ठ अविनाशी आत्म वही है
    जो ब्रह्म में लीन है, यह परम सिद्धांत है
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    हर अस्तित्व का, और
    हरेक मानव का आखिरी अंत है
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    स्वयं तथ्य की खोज करना। यह पता लगाना कि
    दरअसल वह कौन है?
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    हर परम्परा रत्न के फलक जैसी है
    जो उसी सत्य का अलग परिप्रेक्ष्य
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    दिखाती है, जबकि परस्पर वही भाव
    प्रतिध्वनित और प्रकाशित करती है।
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    चाहे कोई भी भाषा या वैचारिक सोच
    इस्तेमाल की गयी हो, सभी धर्म जो
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    शाश्वत सत्य की शिक्षा देते हैं, उनकी यही
    अवधारणा होती है कि किसी परम तत्व से
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    मिलन होना है, जो हमारी समझ से परे है।
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    यह संभव है कि उनसे सीख और उनके साथ
    स्व की भावना का भेद किए बिना
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    एक या अनेक स्रोतों की शिक्षा को एकीकृत करें।
    ऐसा कहा जाता है कि समस्त सच्चा
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    आध्यात्मिक ज्ञान उस परम सत्य की ओर
    इशारा करती हुई उंगलियाँ हैं। यदि हम
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    राहत के लिए इस सीख से हठधर्मिता के साथ
    चिपके रहते हैं तो यह हमारे आध्यात्मिक विकास में
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    बाधक बन जाएगा। सत्य को किसी
    अवधारणा से परे जानने के लिए हमें
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    सभी लगाव और मोह को छोड़ना होगा,
    सभी धार्मिक अवधारणाओं को त्यागना होगा।
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    अहंकार के परिप्रेक्ष्य से आपको समाधि की ओर
    इशारा करने वाली उँगली सीधे पाताल की ओर
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    इशारा करती है।
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    क्रॉस के सेंट जॉन ने कहा है, "अगर कोई
    सत्य की राह पर चलने की इच्छा रखता है,
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    तो उसको अपनी आंखें बंद कर लेनी चाहिए
    और अंधेरे में चलना चाहिए।"
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    समाधि अज्ञात में एक छलांग के साथ शुरू होती है।
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    प्राचीन परंपराओं में यह कहा गया है कि
    समाधि प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को अंततः
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    चेतना को सभी ज्ञात वस्तुओं से
    दूर रखना होगा; सभी बाहरी प्रत्यक्ष
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    वस्तुओं से, अनुकूलित विचारों और संवेदनाओं से,
    स्वयं चेतना की दिशा में।
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    आंतरिक स्रोत की ओर; अपने अस्तित्व के केंद्र
    या मूल में। इस फिल्म में जब हम
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    समाधि शब्द का प्रयोग करते हैं तो
    हम परम तत्व की ओर इशारा करते हैं। उच्चतम
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    समाधि की ओर, जिसे निर्विकल्प समाधि नाम दिया गया है।
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    निर्विकल्प समाधि में अपनी गतिविधि बंद होती है,
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    खोजने और करने की। हम केवल उसके बारे में
    बोल सकते हैं जो हमारे पास जाने पर दूर जाता है
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    और जो हमारे वापस लौटने पर फिर दिखाई देने
    लगता है। न तो कोई समझ है और न ही
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    कोई नासमझी, न तो कोई "चीज़" है और न ही
    "कोई चीज़ नहीं", न तो चेतना और न ही
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    अचेतन। यह पूर्ण, अतुलनीय,
    और मन के लिए रहस्यपूर्ण है।
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    जब आत्मा गतिविधि की ओर लौटती है तब
    अज्ञानता रहती है ; एक तरह का पुनर्जन्म,
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    और सब कुछ फिर से नया हो जाता है। हमारे अंदर
    दिव्य शक्ति की खुशबु रह जाती है,
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    जो तब तक रहती है जब तक मानव
    इस पथ पर बढ़ते रहते हैं।
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    प्राचीन परंपराओं में अनेक तरह की
    समाधि का वर्णन है और
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    भाषा ने वर्षों तक काफ़ी भ्रम पैदा किया है।
    हम समाधि शब्द का चयन
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    ज्ञानातीत मिलन को दर्शाने के लिए
    कर रहे हैं, लेकिन हम इतनी ही
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    आसानी से किसी भी परंपरा के शब्द का प्रयोग
    कर सकते थे। समाधि एक प्राचीन संस्कृत
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    शब्द है जो भारत के वैदिक, योगिक
    और सांख्य परंपरा में आम है, और
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    कई अन्य आध्यात्मिक परंपराओं में
    मौजूद है। समाधि पतंजली योग के
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    आठ अंगो में से एक, और बुद्ध के
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    पावन अष्टांगिक मार्ग में आठवां है।
    बुद्ध ने "निर्वाण" शब्द का प्रयोग किया
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    "वान" का समापन या आत्म गतिविधि का समापन।
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    पतंजलि ने योग या समाधि को संस्कृत के
    "चित्त वृत्ति निरोध" के रूप में वर्णित किया, जिसका संस्कृत
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    अर्थ है "भंवर या सर्पिल मन का समापन।" यह चेतना के
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    सम्पूर्ण विन्यास या मन के रचनात्मक
    विन्यास को सुलझाना है।
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    समाधि किसी अवधारणा को नहीं बताती
    क्योंकि इसे प्राप्त करने के लिए आवश्यक है
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    कि हम अपने वैचारिक मन को त्याग दें।
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    विभिन्न धर्मों ने दिव्य मिलन का वर्णन करने के लिए
    विभिन्न शब्दों का उपयोग किया है।
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    दरअसल धर्म या रिलिजन शब्द का अर्थ भी
    वैसा ही कुछ है। लैटिन में "रैलिगेर"
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    का मतलब है पुनः बांधना या पुनः जुड़ना।
    योग में भी इसका वही अर्थ है जिसका
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    मतलब है सांसारिकता को परमात्मा से
    बांधना या जोड़ना। इस्लाम में
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    प्राचीन अरबी शब्द इस्लाम का ही शाब्दिक अर्थ है
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    पूर्ण समर्पण अथवा भगवान से याचना।
    यह आत्मा की संपूर्ण विनम्रता या
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    आत्मसमर्पण का प्रतीक है।
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    ईसाई रहस्यवादी जैसे कि असीसी के
    सेंट फ्रांसिस, एविला की सेंट टेरेसा और
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    क्रॉस के सेंट जॉन अंतर्निहित ईश्वर के साम्राज्य,
    ईश्वर से दिव्य मिलन का वर्णन करते हैं
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    गॉस्पेल ऑफ़ थॉमस में, ईसा मसीह ने कहा है
    "साम्राज्य यहाँ या वहाँ नहीं है।
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    बल्कि पूरे संसार में परमपिता का शासन है
    और लोग इसे
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    देख नहीं पाते हैं। "ग्रीक दार्शनिक प्लेटो,
    प्लोटिनस, परमेनाइड्स
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    और हेराक्लिटस के लेखन को सार्वकालिक
    शिक्षण बिंदु के लेंस के माध्यम से देखने पर
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    इसी ज्ञान की ओर इशारा करते नज़र आते हैं।
    प्लॉटिनस सिखाता है कि सबसे बड़ा मानवीय प्रयास
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    अपनी आत्मा को सर्वोच्च शक्ति की ओर ले जाने
    और उसमें एकाकार होने
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    के लिए निर्देशित होना चाहिए।
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    लकोटा औषधि और पवित्रात्मा ब्लैक एल्क ने
    कहा है, "पहली शांति, जो
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    सबसे महत्वपूर्ण है, वह मानव के भीतर से आती है
    जब वे ब्रह्मांड और उसकी
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    शक्तियों के साथ अपना संबंध, अपनी एकता
    मह्सूस करते हैं, और जब
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    वे महसूस करते हैं कि ब्रह्मांड के केंद्र में
    महान आत्मा रहती है और
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    इसका केंद्र वास्तव में हर जगह है।
    यह हम में से प्रत्येक के भीतर है।
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    जब तक हम समाधि में ना हो जागरूकता के पथ पर
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    हमेशा दो ध्रुवीयताएँ होती हैं, दो द्वार जिनमें
    आप प्रवेश कर सकते हैं। इसके दो पहलु है
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    एक शुद्ध चेतना की ओर, दूसरा असाधारण
    दुनिया की ओर। ऊपरी धारा
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    परमात्मा की ओर जाती है, और
    निचली धारा माया और उन सबकी ओर
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    जो प्रत्यक्ष है, देखा और अनदेखा, दोनों।
    सगे सम्बन्धियों के साथ रिश्ता और
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    परमात्मा के साथ रिश्ते को श्री निसर्गदत्त महाराज के
    निम्नलिखित उद्धरण से संपूर्ण रूप से समझा जा सकता है
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    कि: "ज्ञान यह जानना है कि मैं कुछ भी नहीं हूँ,
    प्रेम यह जानना है कि मैं ही सब कुछ हूँ, और
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    इन दोनों के बीच मेरी ज़िन्दगी चलती है"
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    इस मिलन से जिसका जन्म होता है वह एक
    नई दिव्य चेतना है। इन ध्रुवीयताओं के
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    विवाह या मिलन से कुछ उत्पन्न हुआ या
    द्वैतवादी पहचान का पतन,
  • 19:07 - 19:17
    फिर भी जो पैदा हुआ वह कोई चीज़ नहीं है
    और वह कभी पैदा ही नहीं हुआ था।
  • 19:19 - 19:25
    चेतना कुछ नई रचना से खिलती है,
    जिसे आप कह सकते हैं
  • 19:25 - 19:28
    शाश्वत त्रिमूर्ति।
  • 19:29 - 19:35
    परमपिता परमात्मा, ज्ञानातीत, जिसे जाना नहीं
    जा सकता और जो अपरिवर्तनशील है, जो
  • 19:35 - 19:44
    दिव्य शक्ति से जुड़ा है , जो पूरी तरह
    परिवर्तनशील है। यह मिलन एक
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    रासायनिक परिवर्तन लाता है;
    एक तरह की मृत्यु और पुनर्जन्म।
  • 19:52 - 19:58
    वैदिक शिक्षण में दो मौलिक शक्तियाँ
    दिव्य मिलन का प्रतिनिधित्व करती हैं
  • 19:58 - 20:06
    शिव और शक्ति। विभिन्न देवताओं के नाम
    और चेहरे पूरे इतिहास में बदल जाते हैं
  • 20:06 - 20:14
    लेकिन उनके मौलिक गुण वही रहते हैं।
    इस मिलन से पैदा होती है
  • 20:14 - 20:23
    एक नई दिव्य चेतना, दुनिया में अस्तित्व का
    एक नया तरीका। दो ध्रुवीयताएँ
  • 20:23 - 20:31
    अविश्वसनीय रूप से एक। एक सार्वभौमिक ऊर्जा,
    केन्द्रहीन, सीमा से मुक्त।
  • 20:31 - 20:35
    यह विशुद्ध प्रेम है। इसमें पाने या खोने के लिए
    कुछ भी नहीं है
  • 20:35 - 20:51
    क्योंकि यह पूरी तरह खाली है
    लेकिन बिल्कुल संपूर्ण।
  • 20:51 - 20:57
    चाहे वह मेसोपोटामिया के रहस्यमय संप्रदाय हों,
    या आध्यात्मिक परम्पराएँ हों
  • 20:57 - 21:02
    बेबिलोनिया और असीरिया की,
    प्राचीन मिस्र के धर्म हों,
  • 21:02 - 21:08
    या प्राचीन अफ्रीका की नूबियन और
    केमेटिक संस्कृतियाँ, शमनिक और मूल
  • 21:08 - 21:15
    परंपराएँ दुनिया भर की , प्राचीन ग्रीस के
    रहस्यवादी, नॉस्टिकवादी
  • 21:15 - 21:30
    अद्वैतवादी बौद्ध, ताओवादी, यहूदी,
    ज़रदुश्त, जैन , मुस्लिम,
  • 21:30 - 21:37
    या ईसाई हों, पर सबको जोड़ने वाली
    कड़ी है उनकी सर्वोच्च आध्यात्मिक
  • 21:37 - 21:44
    अंतर्दृष्टि, जिसने अपने अनुयायियों को
    समाधि हासिल करने की इजाजत दी है।
  • 21:45 - 21:52
    मूल शब्द समाधि का अर्थ सभी चीज़ों में
    समानता या एकता को महसूस करना है।
  • 21:52 - 22:00
    इसका मतलब संघ है। यह अपने
    सभी पहलुओं को एकजुट करना है।
  • 22:00 - 22:08
    लेकिन समाधि की वास्तविक प्राप्ति के लिए
    बौद्धिक समझ को
  • 22:08 - 22:16
    भ्रमित मत करो। दरअसल आपकी स्थिरता,
    आपका खालीपन ही है जो एकजुट करता है
  • 22:16 - 22:46
    सर्पिल जीवन के सभी स्तरों को।
  • 22:55 - 23:00
    समाधि के इस प्राचीन शिक्षण के माध्यम से ही
    मानवता सभी धर्मों के सामान्य स्रोत को
  • 23:00 - 23:05
    समझने की शुरुआत कर सकती है
    और एक बार फिर सर्पिल जीवन,
  • 23:05 - 23:13
    परमात्म, धम्म या ताओ के साथ
    एक सीध में आ सकती है।
  • 23:14 - 23:21
    सर्पिलता वह पुल है जो सूक्ष्म जगत से
    ब्रह्मांड तक फैलता है।
  • 23:23 - 23:31
    आपके डीएनए से जो ऊर्जा आंतरिक कमल तक
    चक्रों के माध्यम से, आकाशगंगा की
  • 23:31 - 23:36
    सर्पिल र्भुजाओं तक व्याप्त है।
  • 23:36 - 23:43
    आत्मा का हर स्तर सर्पिलता के माध्यम से
    सदा विकसित शाखाओं के रूप में व्यक्त किया जाता है,
  • 23:43 - 23:51
    जीते हुए, अन्वेषण करते हुए। सच्ची समाधि
    स्वयं के सभी स्तरों पर
  • 23:51 - 24:00
    शून्यता को प्राप्त करना है। आत्मा के सभी आवरणों में।
    सर्पिलता अंतहीन खेल है
  • 24:00 - 24:06
    द्वंद्व तथा जीवन और मृत्यु के चक्र का।
  • 24:08 - 24:18
    कभी-कभी हम स्रोत से
    अपना सम्बन्ध भूल जाते हैं।
  • 24:20 - 24:28
    जिस लेंस से हम देखते हैं वह बहुत छोटा है
    और हम अपनी पहचान करते हैं कि
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    हम धरती पर रेंगने वाले सीमित प्राणी हैं,
    ताकि एक बार फिर यात्रा पूरी कर सकें
  • 24:34 - 24:36
    वापस उस स्रोत तक;
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    केंद्र तक, जो हर जगह है।
  • 24:48 - 24:55
    चुआंग त्ज़ू ने कहा है, "जब इस और उस के बीच
    कोई और अलगाव नहीं होता है, तो उसे
  • 24:55 - 25:02
    ताओ का स्थिर बिंदु कहा जाता है।
    सर्पिल के केंद्र में स्थिर बिंदु पर
  • 25:02 - 25:10
    सभी में अनंत को देख सकते हैं।"
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    प्राचीन मंत्र "ओम् मणि पद्मेहम" का
    एक काव्यात्मक अर्थ है। जैसे कोई जागृत या महसूस करता है
  • 25:23 - 25:31
    अपने कमल के भीतरी रत्न को। उसी तरह
    आपकी सच्ची प्रकृति आत्मा के भीतर जागती है,
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    दुनिया के भीतर दुनिया के रूप में।
  • 25:50 - 25:58
    हर्मेटिक सिद्धांत "जो ऊपर है वही नीचे है,
    जो नीचे है वही ऊपर है" के प्रयोग द्वारा हम समनुरूप
  • 25:58 - 26:03
    उपयोग कर सकते हैं मन और स्थिरता के बीच
    संबंधों की समानता, सापेक्ष और निरपेक्ष को
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    समझने के लिए।
  • 26:13 - 26:19
    समाधि की गैर-वैचारिक प्रकृति को
    समझने का एक तरीका है
  • 26:19 - 26:25
    ब्लैक होल की सादृश्यता का प्रयोग करना।
  • 26:25 - 26:31
    ब्लैक होल परंपरागत रूप से
    अंतरिक्ष के एक क्षेत्र के रूप में वर्णित है
  • 26:31 - 26:37
    जिसमे गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र इतना शक्तिशाली है कि
    कोई प्रकाश या पदार्थ बच नहीं सकता है। नए सिद्धांत
  • 26:37 - 26:43
    यह पुष्टि करते है कि सभी वस्तुएँ
    छोटे से छोटे सूक्ष्मदर्शी कण से लेकर
  • 26:43 - 26:48
    आकाशगंगा जैसी ब्रह्मांडीय संरचनाओं तक में
    ब्लैक होल या रहस्यमय
  • 26:48 - 26:55
    एक केंद्र होता है । इस समानता में
    हम उपयोग करने जा रहे हैं
  • 26:55 - 27:02
    ब्लैक होल की यह नई परिभाषा कि
    "केंद्र जो हर जगह है"।
  • 27:07 - 27:14
    ज़ेन में कई कवितायें और उपाख्यान हैं
    जो हमें बिना द्वार के प्रवेश-द्वार से
  • 27:14 - 27:24
    रू-ब-रू करवाते हैं। समाधि प्राप्त करने के लिए
    हमें बिन दरवाज़े के प्रवेश द्वार से गुज़रना होगा।
  • 27:24 - 27:30
    किसी घटना का क्षितिज अंतरिक्षीय समय में
    वह सीमा है जिसके बाद कोई भी घटना
  • 27:30 - 27:36
    किसी बाहरी व्यक्ति को प्रभावित नहीं कर सकती है '
    जिसका मतलब है कि
  • 27:36 - 27:43
    घटना क्षितिज आपके लिए अज्ञात है।
    आप कह सकते हैं कि घटना के क्षितिज
  • 27:43 - 27:50
    का ब्लैक होल एक द्वारविहीन द्वार की तरह है।
    यह आत्म और अनात्म के बीच की
  • 27:50 - 28:01
    सीमा है। ऐसा कोई "मैं "नहीं है
    जो इस घटना के क्षितिज के पार जा सके।
  • 28:01 - 28:07
    ब्लैक होल के केंद्र में एक-आयामी चीज़ है जिसमें
  • 28:07 - 28:14
    बहुत ही छोटी जगह में अरबों सूर्यों का भार है।
    जिसका मतलब है
  • 28:14 - 28:20
    अनंत भार। यानी कि ब्रह्मांड कुछ
    इतनी छोटी जगह में
  • 28:20 - 28:27
    जो एक रेत के कण से भी छोटा हो।
    एकात्मकता समय से परे है और
  • 28:27 - 28:35
    अंतरिक्ष से भी। भौतिकी के अनुसार
    गति असंभव है , चीज़ों का अस्तित्व
  • 28:35 - 28:41
    असंभव है। यह जो कुछ है,
    वह सम्बंधित नहीं है
  • 28:41 - 28:46
    किसी भी धारणा से, इसके बावजूद
    इसे स्थिरता नहीं कहा जा सकता।
  • 28:46 - 28:54
    यह स्थिरता और गति से परे है।
    जब आप उस केंद्र को समझ जाते हैं जो
  • 28:54 - 29:01
    हर जगह है कहीं भी नहीं है, तो द्वंद्व खंडित करता है,
    आकार और खालीपन को
  • 29:01 - 29:06
    समय और अनंत को।
  • 29:06 - 29:13
    इसे हम ऐसी गतिशील स्थिरता और भरा पूरा
    खालीपन कह सकते हैं जो स्थापित है
  • 29:13 - 29:22
    पूर्ण अंधेरे के केंद्र में। ताओवादी शिक्षक
    लाओ त्से ने कहा है
  • 29:22 - 29:30
    "अंधेरे के भीतर अंधेरा सभी समझ का प्रवेश द्वार।"
  • 29:39 - 29:45
    लेखक और तुलनात्मक पुराणों के अध्येता
    जोसेफ़ कैम्पबेल पुनरावर्ती प्रतीक का वर्णन करते है
  • 29:45 - 29:52
    जो हिस्सा है शाश्वत दर्शन का
    जिसको वो एक्सिस मंडी कहते है,जिसका
  • 29:52 - 29:57
    मतलब है केंद्र बिंदु या उच्चतम शिखर। एक धुरी
  • 29:57 - 30:03
    जिसके चारों ओर सब कुछ घूमता है।
    वह बिंदु जहाँ स्थिरता और गति
  • 30:03 - 30:12
    एक साथ होते हैं। इसके केंद्र से एक शक्तिशाली
    वृक्ष फलता फूलता है। एक बोधी वृक्ष
  • 30:12 - 30:25
    जो पूरे संसार को जोड़ता है। जैसे सूर्य
    ब्लैक होल में चला जाता है, जब आप
  • 30:25 - 30:31
    परम ज्ञान के करीब पहुँचते है, आपका जीवन
    इसके चारों ओर घूमना शुरू कर देता है और आप
  • 30:31 - 30:35
    गायब होने लगते हैं।
  • 30:39 - 30:46
    जैसे ही आप स्थिर आत्म से संपर्क करते हैं,
    यह अहंकार संरचना को डरा सकता है।
  • 30:46 - 30:53
    द्वारपालक उनका परिक्षण करते है
    जो अपनी यात्रा पर हैं।
  • 30:53 - 30:59
    हर किसी को अपने सबसे बड़े डर का सामना करने के लिए
    तैयार रहना चाहिए और साथ ही साथ
  • 30:59 - 31:08
    अपनी अंतर्निहित शक्ति को स्वीकार करना चाहिए।
    अपने अचेतन भय को और छिपी सुंदरता को
  • 31:08 - 31:20
    प्रकाशित करना चाहिए। यदि आपका मन विचलित नहीं होता है
    और आप कोई आत्म प्रतिक्रिया भी नहीं करते है तो
  • 31:20 - 31:26
    अचेतन से उत्पन्न सभी घटनाएँ समाप्त हो जाती है।
  • 31:26 - 31:33
    यह आध्यात्मिक यात्रा का वह समय है जब
    विश्वास की सर्वाधिक आवश्यकता होती है।
  • 31:33 - 31:42
    विश्वास से हमारा क्या मतलब है? आस्था और विश्वास
    एकसमान नहीं है। विश्वास है अपने दिमागी स्तर पर
  • 31:42 - 31:49
    कुछ स्वीकार करना राहत और आश्वासन के लिए।
    विश्वास है अनुभव के अंकन या
  • 31:49 - 31:57
    उसे नियंत्रित करने का दिमाग़ी तरीक़ा।
    आस्था इसके ठीक विपरीत है। आस्था है
  • 31:57 - 32:03
    पूरी तरह से अज्ञानी बने रहना, हर वो चीज़
    स्वीकार करना जो उत्पन्न हो
  • 32:03 - 32:10
    आपके अचेतन से। आस्था
    एकात्मकता के खिंचाव के प्रति समर्पण है,
  • 32:10 - 32:27
    अपने आप का सम्मिलन या समापन
    द्वारविहीन द्वार से गुज़रने के लिए।
  • 32:28 - 32:35
    आकाशगंगा का विकास और उसकी संरचना
    ब्लैक होल से निकटता से बंधी हुई है
  • 32:35 - 32:40
    ठीक उसी प्रकार जैसे आपका विकास जुड़ा हुआ है
    अंतर्भूत आत्म की उपस्थिति के साथ
  • 32:40 - 32:47
    एकात्म, जो आपका सच्चा स्वभाव है।
  • 32:48 - 32:53
    हम ब्लैक होल को नहीं देख सकते हैं, लेकिन
    हमें इसके आस-पास गतिशील चीज़ों से इसके बारे में
  • 32:53 - 33:01
    पता चलता है, जिस प्रकार यह भौतिक वास्तविकता के साथ
    परस्पर-क्रिया करता है। उसी तरह हम
  • 33:01 - 33:09
    अपनी असली प्रकृति को नहीं देख सकते हैं।
    स्थिर आत्म कोई वस्तु नहीं है, लेकिन हम देख सकते हैं
  • 33:09 - 33:17
    प्रबुद्ध क्रिया। जैसा कि ज़ेन मास्टर सुजुकी ने कहा है,
    "सच मानिये तो यहाँ
  • 33:17 - 33:26
    कोई प्रबुद्ध लोग नहीं है। केवल प्रबुद्ध गतिविधि है।"
  • 33:26 - 33:34
    हम इसे देख नहीं सकते जैसे कि आँख खुद को नहीं देख सकती है।
    हम इसे नहीं देख सकते क्योंकि यह वो चीज़ है
  • 33:34 - 33:41
    जिसके माध्यम से देखना संभव है। ब्लैक होल की तरह समाधि भी
  • 33:41 - 33:48
    शून्यता नहीं है , और न ही यह कोई चीज़ है।
    यह होने या न होने के द्वन्द्व को
  • 33:48 - 33:57
    खत्म करती है। परम सत्य में प्रवेश के लिए
    कोई द्वार नहीं है,
  • 33:57 - 34:05
    लेकिन अनंत पथ हैं। धर्म का पथ
    एक अंतहीन सर्पिल पथ की तरह है
  • 34:05 - 34:13
    जिसका कोई आदि और कोई अंत नहीं है। कोई भी
    द्वारविहीन द्वार से गुज़र नहीं सकता। किसी की बुद्धि ने
  • 34:13 - 34:23
    अभी तक यह पता नहीं लगाया है और न कभी लगा पायेगा।
    कोई भी द्वारविहीन द्वार से नहीं गुज़र सकता है,
  • 34:23 - 34:29
    तो ऐसा ही सही।
  • 34:44 - 34:53
    समाधि पथहीन मार्ग, सुनहरी कुंजी है।
    यह हमारी आत्म संरचनाओं के साथ
  • 34:53 - 35:15
    पहचान का अंत है जो हमारी आंतरिक
    और बाहरी दुनिया को अलग करती हैं।
  • 35:15 - 35:20
    कई विकासशील नमूने हैं जो आत्म संरचना की परतों
    या स्तरों का वर्णन करते हैं
  • 35:20 - 35:28
    हम एक उदाहरण का उपयोग करेंगे
    जो बहुत प्राचीन है।
  • 35:28 - 35:36
    उपनिषदों में, आत्मन या आत्मा को ढकने वाले आवरण को
    कोष कहा जाता है। प्रत्येक कोष
  • 35:36 - 35:44
    एक दर्पण की तरह है। आत्म संरचना की एक परत;
    एक आवरण या माया का स्तर
  • 35:44 - 35:51
    जो हमें अपनी मूल प्रकृति को समझने से
    भटकाता है अगर उससे हमारी पहचान होती है।
  • 35:51 - 36:00
    अधिकांश लोग प्रतिबिंब देखते हैं
    और मान लेते हैं कि वे वही हैं।
  • 36:00 - 36:07
    एक दर्पण पशु परत, यानी भौतिक शरीर को दर्शाता है।
    एक और दर्पण दर्शाता है
  • 36:07 - 36:15
    आपके मन, आपकी सोच, आपकी सहज वृत्तियों,
    और धारणाओं को। दूसरा आपकी आंतरिक ऊर्जा
  • 36:15 - 36:21
    या प्राण को, जिसे आप अंतर्मुखी होकर
    देख सकते हैं। एक और दर्पण
  • 36:21 - 36:26
    आपके काल्पनिक स्तर को दर्शाता है
    जो उच्चतर मन या ज्ञान की परत है,
  • 36:26 - 36:33
    और बहुत सारी ऐसी सर्वोच्च परतें हैं
    जो अतींद्रिय या अद्वैत आनंद का अनुभव कराती हैं
  • 36:33 - 36:37
    समाधि की ओर अग्रसर होने पर।
  • 36:37 - 36:43
    यहाँ संभावित रूप से अनगिनत दर्पण
    या आत्मा के पहलू हैं जिसमें कोई भी
  • 36:43 - 36:51
    अंतर कर सकता है, और वे लगातार बदलते रहते हैं।
  • 36:51 - 36:56
    अधिकांश लोगों ने अभी तक प्राणिक, उच्च मन और
    अद्वैत आनंद की परतों की खोज नहीं की है
  • 36:56 - 37:01
    वे उनके अस्तित्व के बारे में भी नहीं जानते हैं।
  • 37:01 - 37:09
    ये परतें आपके जीवन को सूचित कर रही हैं
    लेकिन आप उन्हें नहीं देख रहे हैं। छिपे दर्पण
  • 37:09 - 37:14
    दिखाई देने वालों की तुलना में हमारे
    जीवन को अधिक जानकारी देते हैं।
  • 37:14 - 37:19
    वे अदृश्य हैं क्योंकि ज्यादातर लोगों के लिए वे
    पूरी तरह उनकी चेतना मे प्रकाशित नहीं होते हैं
  • 37:19 - 37:29
    इंद्र के रत्न-जाल की तरह, सभी दर्पण एक दूसरे को
    प्रतिबिंबित करते हैं और
  • 37:29 - 37:36
    प्रतिबिंब असीम रूप से हर दूसरे प्रतिबिंब को
    प्रतिबिंबित करते हैं। एक स्तर पर कोई बदलाव
  • 37:36 - 37:42
    सभी स्तरों को एक साथ प्रभावित करता है।
  • 37:42 - 37:49
    इन दर्पणों में से कुछ छाया में छोड़े जा सकते हैं
    जब तक कि हम इतने भाग्यशाली न हों
  • 37:49 - 37:55
    कि उन पर प्रकाश डालने में हमारी मदद के लिए
    कोई सक्षम मार्गदर्शक हमारे साथ हो। सच ये है कि
  • 37:55 - 38:03
    हम ये नहीं जानते कि हम क्या नहीं जानते है |
    अब कल्पना करें कि आप सभी दर्पणों को तोड़ दें।
  • 38:03 - 38:12
    आपके पास स्वयं को प्रतिबिंबित करने के लिए
    कुछ भी नहीं है। आप कहाँ हैं?
  • 38:14 - 38:23
    जब मन स्थिर हो जाता है तो दर्पण
    प्रतिबिंबित करना बंद कर देते हैं। फिर कोई
  • 38:23 - 38:33
    विषय और वस्तु नहीं रह जाता है। लेकिन इस स्थिति को
    शून्यता या विस्मृति की आदिम स्थिति समझने की
  • 38:33 - 38:48
    गलती ना करें। आत्म कुछ नहीं है लेकिन ऐसा भी न समझें
    कि यह कुछ भी नहीं है।
  • 38:48 - 38:57
    स्रोत कोई चीज नहीं है, यह अपने आप मे
    खालीपन या स्थिरता है।
  • 38:57 - 39:06
    यह एक खालीपन है जो सभी चीजों का स्रोत है।
    आकृति को बिल्कुल खालीपन के स्वरूप में
  • 39:06 - 39:17
    महसूस किया जाता है और खालीपन को एक आकृति में
    पा सकते हैं। यह स्रोत महान
  • 39:17 - 39:23
    सृष्टि का गर्भ है जो सभी संभावनाओं से भरी हुई है।
  • 39:41 - 39:48
    समाधि अवैयक्तिक चेतना की जागृति है। जैसे ही आप
  • 39:48 - 39:54
    सपना देखते है, जागने पर आपको एहसास होता है
    कि सपने में जो कुछ था वो
  • 39:54 - 39:59
    बस आपके दिमाग में है। समाधि को समझने पर
    यह महसूस किया जाता है कि
  • 39:59 - 40:05
    इस दुनिया में सब कुछ ऊर्जा के स्तर पर
    स्तरों और चेतना के भीतर हो रहा है
  • 40:05 - 40:13
    यह दर्पण के भीतर सारे दर्पण हैं,
    सपनों के भीतर सपने। आप जिसे
  • 40:13 - 40:21
    मानते हैं कि आप हैं, सपना और
    और सपना देखने वाला, दोनों हैं।
  • 40:34 - 40:44
    इस फिल्म में हम जो भी कहते हैं, उसे भूल जाएँ।
    उसे मन में धारण न करें। आत्मा
  • 40:44 - 40:49
    सपना देख रहा है, आपका सपना देख रहा है।
  • 40:49 - 40:57
    सपना, वह सब कुछ है जो बदल रहा है, लेकिन
    इस परिवर्तनहीनता को महसूस करना संभव है।
  • 40:57 - 41:13
    यह अहसास सीमित व्यक्तिगत मन से
  • 41:13 - 41:22
    समझा नहीं जा सकता है।
  • 41:22 - 41:29
    जब हम निर्विकल्प समाधि से बाहर आते हैं
    तो दर्पण फिर से प्रतिबिंबित करना प्रारंभ करते हैं
  • 41:29 - 41:37
    यह समझा जाता है कि जिस दुनिया में अपने रहने की बात
    आप सोचते हैं दरअसल वह आप हैं।
  • 41:37 - 41:44
    जो केवल आपका एक अस्थायी प्रतिबिंब है
    और आप उसी तक सीमित नहीं है, लेकिन
  • 41:44 - 41:54
    आप अपने सच्चे प्रकृति के सभी के स्रोत को जानते हैं ।
    उच्च ज्ञान की यह शुरुआत,
  • 41:54 - 42:04
    भ्रूण, "प्रज्ञा" या आत्मिक ज्ञान
    समाधि से उत्पन्न हुआ है।
  • 42:04 - 42:13
    जॉब चोकमाह की किताब के अनुसार
    ज्ञान शून्यता से उपजती है। ज्ञान का यह बिंदु
  • 42:13 - 42:19
    असीम रूप से छोटा होते हुए भी पूरे अस्तित्व को घेरता है,
    लेकिन इसे तब तक
  • 42:19 - 42:25
    समझा नहीं जा सकता जब तक उसने दर्पणों के महल में
    कोई आकार और स्वरूप ना दिया हो
  • 42:25 - 42:32
    उस दर्पण के महल को "बिनाह " कहा जाता है,
    जो गर्भ उच्च ज्ञान से उत्पन्न होता है और जो
  • 42:32 - 42:50
    भ्रूणीय ईश्वर की आत्मा को आकार देता है।
  • 42:50 - 43:01
    [संगीत] इंडियाजिव द्वारा "अब्वून द बाश्माया"
  • 43:08 - 43:15
    दर्पण या मन का अस्तित्व
    कोई समस्या नहीं है।
  • 43:15 - 43:22
    इसके विपरीत, मानव धारणा की त्रुटि या विचलन
    यह है कि हम इससे अपनी पहचान करते हैं।
  • 43:22 - 43:33
    यह भ्रम, कि हम सीमित आत्म हैं, माया है। योगिक
  • 43:33 - 43:38
    मार्ग का कहना है कि समाधि को समझने के लिए
    ध्यान लक्ष्य का पालन तब तक करना चाहिए
  • 43:38 - 43:50
    जब तक कि आप इसमें लीन न हो जाएँ या
    यह आप में न समा जाए। हालांकि
  • 43:50 - 43:56
    विभिन्न परंपराओं में भाषा अपने मूल में
    असमान हैं, लेकिन वे सभी आत्म-पहचान और
  • 43:56 - 44:01
    आत्म केंद्रित गतिविधि के समापन की ओर
  • 44:01 - 44:08
    इशारा करते है। बुद्ध हमेशा नकारात्मक शब्दों में
    पढ़ाया करते थे। उन्होंने सिखाया कि सीधे
  • 44:08 - 44:15
    आत्म संरचना की खोज करें।
    उन्होंने यह नहीं कहा कि समाधि क्या थी
  • 44:15 - 44:24
    सिवाय इसके कि यह सभी कष्टों का अंत है ।
    अद्वैत वेदांत का एक शब्द है "नेति "
  • 44:24 - 44:31
    जिसका अर्थ है "ना ये ना वो।"
    आत्म-प्राप्ति के मार्ग पर चलने वाले लोग
  • 44:31 - 44:38
    अपनी असली प्रकृति या ब्रह्म की प्रकृति के बारे में
    पहले यह जानकर खोज करते हैं कि
  • 44:38 - 44:42
    वे क्या नहीं हैं।
  • 44:43 - 44:49
    इसी तरह ईसाई धर्म में अविला की सेंट टेरेसा ने
    प्रार्थना के लिए एक दृष्टिकोण का वर्णन किया
  • 44:49 - 44:57
    जो नकारात्मक पथ, या नेगेटिवा पर आधारित है ।
    शांत, समर्पण और मिलाप द्वारा प्रार्थना,
  • 44:57 - 45:03
    यही एक तरीका है परम तत्व तक
    पहुँचने का।
  • 45:03 - 45:09
    अलग होने की इस क्रमिक प्रक्रिया से व्यक्ति ऐसी
    कोई चीज़ छोड़ सकता है
  • 45:09 - 45:18
    जो स्थाई न हो, जो बदल रहा हो।
    मन, अहंकार का निर्माण और
  • 45:18 - 45:24
    आत्म की छिपी परतों सहित सभी घटनाएं।
    अचेतन मन का उस
  • 45:24 - 45:31
    एक स्रोत को प्रतिबिंबित करने के लिए
    पारदर्शी होना ज़रूरी है। अगर अचेतन में कुछ
  • 45:31 - 45:37
    गहरा ज्ञान या कोई आत्म परिचालन है, तो
    फिर हमारा जीवन बंद रह जाता है
  • 45:37 - 45:45
    एक छिपे पैटर्न की भूलभुलैया में
    जिसमे अज्ञात आत्म शामिल है।
  • 45:48 - 45:55
    जब स्व की सभी परतें शून्य के रूप में
    प्रकट होती हैं तो व्यक्ति स्व से मुक्त हो जाता है।
  • 45:55 - 46:00
    सभी अवधारणाओं से मुक्त।
  • 46:04 - 46:11
    आपके विकास का महत्वपूर्ण बिंदु वह है जब आप
    महसूस करते हैं कि आप नहीं जानते कि आप कौन हैं।
  • 46:11 - 46:22
    साँस का अनुभव कौन करता है?
    स्वाद का अनुभव कौन करता है?
  • 46:22 - 46:36
    मंत्र, अनुष्ठान, नृत्य, पहाड़ का अनुभव
    कौन करता है? साक्ष्य ही गवाह है,
  • 46:36 - 46:40
    अवलोकन ही पर्यवेक्षक।
  • 46:40 - 46:47
    सबसे पहले जब आप पर्यवेक्षक का अवलोकन करते हैं
    तो आप केवल झूठे आत्म को देखेंगे, लेकिन यदि
  • 46:47 - 46:52
    आप आग्रही हैं तो वह हार मान लेगा।
  • 46:54 - 47:00
    सीधे पूछताछ करें कौन और क्या अनुभव करता है।
  • 47:00 - 47:10
    बिना पलकें झपकाए, तीखेपन से, सूक्ष्मदर्शी बनकर
    अपने अस्तित्व की पूरी ताकत के साथ।
  • 47:17 - 47:19
    [संगीत] "गते, गते, परागते। पार सम गते, बोधिस्वाहा।"
    (अर्थ: चला गया, बहुत दूर, जागृत स्रोत से परे पूरी तरह से)
  • 47:20 - 47:32
    - बिना अनुवाद उपशीर्षक -
  • 47:48 - 47:57
    जागने वाला कोई आत्म नहीं है।
    जागने वाला कोई "आप" नहीं हो। आप जिसे
  • 47:57 - 48:04
    जगा रहे हैं वह अलग आत्म का भ्रम है।
    अपने उस सपने से जो
  • 48:04 - 48:08
    सीमित "आप" हैं। इसके बारे में बात करना अर्थहीन है।
  • 48:08 - 48:15
    आत्म को समझने के लिए आत्म का वास्तविक
    समापन होना चाहिए कि यह क्या है, और
  • 48:15 - 48:24
    जब यह महसूस हो जाए तो इसके बारे में
    कहने को कुछ भी नहीं बचता है। जैसे ही आप
  • 48:24 - 48:40
    कुछ कहते हैं आप मन में वापस आ जाते हैं।
    मैंने पहले ही बहुत कुछ कहा है।
  • 48:40 - 48:46
    आम तौर पर चेतना की तीन अवस्थाएँ होती हैं:
    जागना, सपना देखना और गहरी नींद।
  • 48:46 - 48:53
    समाधि को कभी-कभी चौथी अवस्था कहा जाता है,
    जो प्राथमिक अवस्था है
  • 48:53 - 49:00
    चेतना की। आदिम जागृति जो
    निरंतर उपस्थित हो सकती है और
  • 49:00 - 49:10
    अन्य चेतन अवस्थाओं के साथ समानांतर में
    उपस्थित है। वेदांत में इसे तूरीय कहा जाता है।
  • 49:11 - 49:17
    तूरीय के लिए अन्य नाम दिए गए है
    क्राइस्ट चेतना , कृष्ण चेतना,
  • 49:17 - 49:27
    बुद्ध प्रकृति या सहज समाधि।
    सहज समाधि में स्थिर आत्म अपनी सभी
  • 49:27 - 49:34
    मानवीय गतिविधियों के पूर्ण उपयोग के साथ
    उपस्थित है। स्थिरता
  • 49:34 - 49:39
    बदलती सर्पिल घटना के केंद्र में गतिहीन है।
  • 49:39 - 49:46
    विचार, भावनाएँ, संवेदनाएँ और ऊर्जा
    इसकी परिधि के चारों ओर घूमती हैं
  • 49:46 - 49:54
    लेकिन स्थिरता की मात्रा या मैं-हूँ-की भावना
    बाहरी गतिविधि के दौरान बिल्कुल वैसी बनी रहती है
  • 49:54 - 50:03
    जैसे कि ध्यान में। यह संभव है कि
    अंतर्हित आत्म गहरी नींद में भी
  • 50:03 - 50:12
    मौजूद रहे; कि आपकी मैं हूँ की जागरूकता
    चेतना के परिवर्तन की अवस्थायों के रूप में
  • 50:12 - 50:15
    आती या जाती नहीं है।
  • 50:20 - 50:24
    यह योगिक निद्रा है।
  • 50:25 - 50:30
    हिब्रू बाइबिल या ओल्ड टेस्टामेंट का
    सांग्स ऑफ सांग्स, या सांग ऑफ़ सोलोमन
  • 50:30 - 50:40
    यह कहता है, "मैं सोता हूँ लेकिन मेरा दिल जागता है"।
    शाश्वत अवैयक्तिक चेतना का
  • 50:40 - 50:47
    यह अहसास मसीह के शब्दों में दिखाई देता है
    जब वे कहते हैं
  • 50:47 - 50:54
    "इब्राहिम से पहले, मैं हूँ।"
  • 50:56 - 51:09
    एक चेतना जो अनगिनत चेहरे,
    अनगिनत रूपों के माध्यम से चमकती है।
  • 51:16 - 51:23
    सबसे पहले यह आपके भीतर ध्रुवीयताओं से
    पैदा हुई नाजुक लौ की तरह लगती है।
  • 51:23 - 51:29
    समर्पण के साथ समाती हुई
    पुरुषत्व चेतना या स्त्री शक्ति का
  • 51:29 - 51:36
    उद्घाटन। यह नाजुक है, और आसानी से खो सकता है,
    इसकी रक्षा करने के लिए बहुत सावधानी बरतनी चाहिए
  • 51:36 - 51:41
    और जब तक यह परिपक्व न हो इसे जीवित रखना चाहिए।
  • 51:44 - 51:51
    समाधि साथ ही समयहीन अवस्था है
    चेतना की एक और अवस्था
  • 51:51 - 51:58
    विकास प्रक्रिया को प्रकट करने की।
    कुछ जैविक और समय के साथ विकसित।
  • 52:05 - 52:14
    जैसे-जैसे कोई समाधि में अधिक से अधिक
    समय बिताता है, वर्तमान में, शाश्वतता में,
  • 52:14 - 52:23
    तब वह अधिक से अधिक हृदय, आत्मा से
    दिशाबोध ग्रहण करता है, और
  • 52:23 - 52:28
    अनुकूलित संरचना से कम।
  • 52:29 - 52:38
    इस तरह कोई निम्नतर मन से मुक्त हो जाता है।
    मनोविकार से मुक्त हो जाता है ।
  • 52:38 - 52:45
    आंतरिक तारों में परिवर्तन आ जाता है।
    ऊर्जा बहुत देर तक अचेतन रूप से
  • 52:45 - 52:52
    पुरानी अनुकूलित संरचनों में नहीं बहती, जोकि यह
    कहने का एक और तरीका है कि किसी को
  • 52:52 - 53:10
    उसकी आत्म संरचना से उसके स्वरूप की
    बाहरी दुनिया से नहीं पहचाना जाता है।
  • 53:11 - 53:17
    समाधि प्राप्त करने के लिए इतनी ज़्यादा कोशिश ज़रूरी है
    कि यह पूरी तरह आत्मसमर्पण बन जाता है
  • 53:17 - 53:25
    स्वयं का, और आत्मसमर्पण ऐसा कि
    इसमें शामिल हो पूर्ण प्रयास
  • 53:25 - 53:34
    किसी के अस्तित्व का ; उसकी सभी ऊर्जा का।
    यह संतुलन है प्रयास और
  • 53:34 - 53:41
    आत्मसमर्पण का, यिन और यांग का।
    एक तरह का सरल प्रयास।
  • 53:47 - 53:55
    भारतीय रहस्यवादी और योगी
    परमहंस रामकृष्ण ने कहा, "मत खोजो प्रकाश
  • 53:55 - 54:03
    जब तक कि आप उसे इस तरह नहीं खोजते जैसे कि
    बालों में आग लगी हो और जो तालाब की खोज में हो"
  • 54:03 - 54:06
    आप इसे अपने पूरे अस्तित्व के साथ खोजते हैं।
  • 54:06 - 54:13
    किसी के अहंकार से आगे बढ़ने के दौरान
    अत्यधिक साहस, सतर्कता और दृढ़ता ज़रूरी है
  • 54:13 - 54:22
    भ्रूण को जीवित रखने के लिए।
    सांसारिक माया जाल में न फँसने के लिए।
  • 54:22 - 54:28
    इच्छाशक्ति बेहद जरूरी है
    प्रवाह के विरुद्ध तैरने के लिए,
  • 54:28 - 54:36
    दैहिक साँचे के दबाव और सांसारिक पहिए में
    पिसने से बचने के लिए। हर सांस
  • 54:36 - 54:44
    हर विचार, हर क्रिया स्रोत को
    हासिल करने के लिए होनी चाहिए। समाधि
  • 54:44 - 54:51
    प्रयास से हासिल नहीं होती है और ना ही बिना प्रयास के।
    प्रयास या बिना प्रयास को जाने दें; यह
  • 54:51 - 54:59
    द्वंद्व केवल मन में मौजूद है। समाधि का
    वास्तविक अहसास इतना सरल
  • 54:59 - 55:05
    इतना निर्विवाद है कि इसे हमेशा भाषा के
    माध्यम से गलत समझा जाता है
  • 55:05 - 55:13
    जो स्वाभाविक रूप से द्वंद्वात्मक है।
    केवल एक प्रायोगिक चेतना है जो
  • 55:13 - 55:21
    दुनिया के रूप में जागृत है लेकिन यह मन की
    कई परतों में अस्पष्ट है। जिस तरह
  • 55:21 - 55:28
    सूर्य बादलों के पीछे छिपा हुआ है वैसे ही मन की
    प्रत्येक परत हटने के बाद व्यक्ति के अस्तित्व का
  • 55:28 - 55:31
    सार प्रकट हो जाता है।
  • 55:33 - 55:39
    मन की प्रत्येक परत हटने पर, लोग इसे
    अलग समाधि कहते हैं। वे इसे
  • 55:39 - 55:45
    विभिन्न अनुभवों या विभिन्न भौतिक विषयों के
    नाम देते हैं
  • 55:55 - 56:00
    लेकिन समाधि इतनी सरल है कि जब आपको बताया जाता है कि
    यह क्या है और कैसे हासिल किया जाए
  • 56:00 - 56:05
    तो आपका मन हमेशा चूक जाता है।
  • 56:05 - 56:13
    दरअसल समाधि सरल या जटिल नहीं है;
    यह केवल मन है जो इसे
  • 56:13 - 56:20
    ऐसा बनाता है। जब कोई मन नहीं होता है
    तो कोई समस्या नहीं होती है, क्योंकि मन है
  • 56:20 - 56:29
    जिसे रोकने की ज़रूरत है इसे प्राप्त करने के लिए।
    यह कोई घटना तो बिल्कुल नही है।
  • 56:37 - 56:44
    समाधि की सबसे संक्षिप्त व्याख्या
    शायद इस वाक्यांश में है:
  • 56:44 - 56:56
    "शांत रहें और जानें।"
  • 56:59 - 57:05
    हम स्थिरता को व्यक्त करने के लिए शब्दों और चित्रों का उपयोग
    कैसे कर सकते हैं? हम शोर के ज़रिये
  • 57:05 - 57:13
    शांति कैसे व्यक्त कर सकते हैं? समाधि को
    एक बौद्धिक सिद्धांत कहने के बजाय,
  • 57:13 - 57:23
    यह फिल्म निष्क्रियता का परिवर्तनवादी आह्वान है।
    यह ध्यान, आंतरिक शांति और
  • 57:23 - 57:31
    आंतरिक प्रार्थना के लिए बुलावा है।
    थमने का आह्वान।
  • 57:38 - 57:45
    तर्कहीन अहंकारी मन से संचालित
    हर चीज को रोक दें।
  • 57:46 - 57:50
    स्थिर रहें और जानें।
  • 57:54 - 58:00
    स्थिरता से क्या निकलेगा यह आपको
    कोई भी नहीं बता सकता।
  • 58:00 - 58:06
    यह आध्यात्मिक मन से कार्य करने का आह्वान है।
  • 58:22 - 58:30
    यह किसी पुराने को याद करने जैसा है।
    आत्मा जागती है और खुद को याद करती है।
  • 58:30 - 58:37
    यह एक नींद में डूबे यात्री की तरह है लेकिन
    अब खालीपन जाग जाता है और खुद को ही
  • 58:37 - 58:43
    सब कुछ मानने लगता है।
  • 58:44 - 58:51
    आप सीमित अहंकारी मन से समाधि क्या है
    इसकी कल्पना नहीं कर सकते बिलकुल उसी तरह जैसे
  • 58:51 - 58:58
    आप अंधे इंसान को यह नहीं समझा सकते की रंग क्या है।
    आपका मन जान नहीं सकता। वह इसे
  • 58:58 - 59:07
    बना भी नहीं सकता। समाधि को पाने का मतलब
    अलग दृष्टिकोण से देखना है, अलग चीज़ों को
  • 59:07 - 59:13
    देखना नहीं बल्कि द्रष्टा को पहचानना है।
  • 59:15 - 59:25
    असीसी के सेंट फ्रांसिस ने कहा है, "जो आप खोज रहे हैं
    वही देख रहा है।" आपने अगर एक बार
  • 59:25 - 59:34
    चंद्रमा को देखा हो तो उसकी हर परछाई
    पहचान सकते हैं। सच्चा आत्म
  • 59:34 - 59:43
    हमेशा वहीं रहा है, यह हर चीज़ में है, लेकिन
    आपने इसकी उपस्थिति को महसूस नहीं किया है।
  • 59:43 - 59:51
    जब आप मन और इन्द्रियों से परे अपने स्वरूप को
    पहचानते और उसे मानने लगते हैं
  • 59:51 - 60:09
    तो यह मुमकिन है कि आप बेहद मामूली चीज़ों से
    विस्मय का एहसास करें। हम स्वयं विस्मय बन जाते हैं।
  • 60:09 - 60:16
    इच्छाओं से मुक्त होने की कोशिश न करें
    क्योंकि इच्छाओं से मुक्त होने की इच्छा भी
  • 60:16 - 60:26
    एक इच्छा है। आप स्थिर रहने की कोशिश नहीं कर सकते
    क्योंकि प्रत्येक प्रयास एक गति है।
  • 60:26 - 60:35
    उस स्थिरता को समझें जो हमेशा पहले से मौजूद है।
  • 60:35 - 60:38
    खुद स्थिर हो जाएँ और जानें
  • 60:39 - 60:45
    जब सभी प्राथमिकताएँ त्याग दी जाती हैं,
    तब पता चलता है स्रोत का, लेकिन स्रोत से भी
  • 60:45 - 60:57
    न चिपकें। महान वास्तविकता, ताओ
    न तो एक है न ही दो। रमण महर्षि ने कहा है
  • 60:57 - 61:08
    "आत्मा केवल एक है। यदि यह सीमित है तो
    यह अहंकार है, और अगर असीमित है तो यह अनंत
  • 61:08 - 61:21
    और महान वास्तविकता है।" जो कहा जा रहा है
    उसे यदि आप मानते हैं तो आपने इसे नहीं समझा है।
  • 61:21 - 61:28
    यदि आप नहीं मानते हैं तब भी आपने इसे नहीं समझा है।
    विश्वास और अविश्वास आपके मन के
  • 61:28 - 61:35
    स्तर पर काम करते हैं। उन्हें जानकारी चाहिए,
    लेकिन यदि आप अपने अस्तित्व की
  • 61:35 - 61:40
    तहकीकात करते हुए अपने अस्तित्व के सभी पहलुओं की
    जाँच करते हैं, यह जानकर कि जाँच
  • 61:40 - 61:46
    कौन कर रहा है, अगर आप इस सिद्धांत पर चलना चाहते हैं
    "मेरी नहीं, ऊपर वाले की मर्ज़ी चलेगी,"
  • 61:46 - 61:54
    अगर आप सारे ज्ञान से आगे बढ़ना चाहते हैं
    तब आप वह एहसास समझ पाएंगे
  • 61:54 - 62:00
    जिसकी ओर मैं इशारा कर रहा हूँ।
    तभी आप गूढ़ रहस्य और साधारण अस्तित्व की
  • 62:00 - 62:08
    सुंदरता का एहसास कर पाएंगे।
  • 62:08 - 62:16
    जीवन की एक और संभावना है।
    कुछ ऐसा जो पवित्र, समझ से परे है
  • 62:16 - 62:23
    जिसे आपके अस्तित्व की शांत
    गहराइयों में पाया जा सकता है,
  • 62:23 - 62:34
    धारणाओं, नीतियों, अनुकूलित गतिविधियों
    और हर अभिरुचियों से परे। इसे
  • 62:34 - 62:41
    तकनीकों, अनुष्ठानों या प्रथाओं से नहीं पाया जा सकता।
    इसे "कैसे" पाएँ का कोई तरीक़ा नहीं है।
  • 62:41 - 62:54
    कोई प्रणाली नहीं है। उपाय का
    कोई रास्ता नहीं है। जैसा कि ज़ेन में कहा जाता है
  • 62:54 - 63:01
    यह जन्म से पहले अपने मूल चेहरे की खोज है। यह खुद को
  • 63:01 - 63:10
    निखारने का नाम नहीं है। यह स्वयं
    प्रकाश बनना है; वह प्रकाश जो आत्मा के
  • 63:10 - 63:20
    भ्रम को दूर करता है। जीवन हमेशा अपूर्ण रहेगा
  • 63:20 - 63:27
    और हृदय तब तक बेचैन रहेगा
    जब तक कि यह नाम और रूप से परे के
  • 63:27 - 63:33
    रहस्य में राहत न पा जाए।
  • 64:04 - 64:06
    [संगीत] ओम् श्रीम् लक्ष्मी
Title:
Samadhi Part 2 (It's Not What You Think)
Description:

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Video Language:
English
Team:
Awaken the World
Project:
01 -Samadhi Film Series
Duration:
01:10:26

Hindi subtitles

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