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My 911, 2001 Story

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    मैंने यह कहानी पहले कभी इस तरह नहीं बताई
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    मैं इस बारे में ज्यादा बात नहीं करती,
    क्योंकि यह--
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    क्योंकि यह बहुत समय पहले हुआ था और
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    इसके बारे में सोच कर दुख होता है
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    मगर मुझे साल में एक बार इसकी याद आती है
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    जब मैं करीब 30 साल की थी, तो एक सुबह
    मेरी गर्दन पर एक बहुत बड़ा गुमड़ा था
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    वह पता नहीं कहां से प्रकट हो गया
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    मैं एक डॉक्टर के पास गई, और उसने कहा कि
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    मुझे अपने खून की जांच करानी पड़ेगी
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    तो मैंने सोचा, "ठीक है,
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    मैं यह करती हूं और देखते हैं क्या होता है।"
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    वह निश्चित करना चाहते थे कि कहीं यह
    कैंसर जैसी गंभीर बीमारी तो नहीं है
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    तो मैं अपने खून की जांच कराने गई
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    और जांच कराने के बाद बहुत
    इंतजार करना पड़ता है
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    और यह इंतजार बहुत मुश्किल होता है
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    जैसा आप सोच सकते हैं
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    दिमाग में ख्याल आता है कि,
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    "अगर यह कैंसर हुआ तो?
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    तो मैं क्या करूंगी?
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    उम्मीद है कि ऐसा नहीं होगा।
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    कैसा लगता होगा?
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    मुझे किन मुश्किलों से गुज़रना पड़ेगा?
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    क्या यह गंभीर है?"
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    आखिरकार उन्होंने मुझे जांच के नतीजे
    लेने के लिए बुलाया
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    मुझे वह दिन याद है
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    दोपहर में मुझे काम पर जाना था
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    मैं न्यू जर्सी में रहती थी,
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    और फिलाडेल्फिया में नौकरी करती थी
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    मैं न्यूजर्सी तक गई अपनी खून की
    जांच का परिणाम लेने के लिए
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    मैं काम पर जाने के लिए तैयार थी,
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    मैं एक दुकान में काम करती थी।
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    मैंने प्रयोगशाला में अपनी गाड़ी खड़ी की
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    और ऐसा काम करने में आप सुन्न पड़ जाते हैं
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    क्योंकि आप बस बुरी खबर
    का इंतजार कर रहे होते हैं
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    क्या ऐसा ही कुछ।
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    मगर मैं फिर भी आशावादी थी।
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    उन्होंने मुझे लिफाफा पकड़ाया,
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    फिर अचानक, मुझे बहुत तेज़
    हलचल होने की आवाज आई
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    बहुत सारे लोग-- मुझे पता नहीं।
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    जैसे कोई रो रहा हो।
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    मैं लॉबी में गई,
    लिफाफा मेरे हाथ में था
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    और मैंने देखा कि कुछ लोग
    एक छोटे से टीवी के आस-पास
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    घेरा सा बना कर खड़े हुए हैं।
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    लोग सिसक रहे थे और रो रहे थे
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    और मैं लोगों को हटा रही थी, और मैंने बोला:
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    "क्या हो रहा है? क्या कहीं आग लगी है?"
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    और वह सामने से हटे
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    और मैंने TV पर देखा:
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    "ऐसा नहीं लग रहा कि वहां पर अभी
    तक किसी तरह की कोशिश की गई है
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    और याद रखिए, हे भगवान
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    हे भगवान।
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    (कथावाचक) यह एक दूसरा विमान लगता है।
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    मैंने अपने आसपास देखा
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    और लोग अपना मुंह पकड़ कर बैठे थे
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    और मैं बस TV की तरफ देखती रही
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    और धुआं और लपटें देखी
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    और मुझे समझ नहीं आया कि क्या हो रहा है
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    जब तक किसी ने कहा कि
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    वर्ल्ड ट्रेड सेंटर से एक विमान टकरा गया है
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    दो विमान। (हंसी)
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    मैंने सोचा "क्या जंग छिड़ चुकी है?
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    क्या सब खत्म हो गया?
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    इन सब लोगों को देखो।
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    जो लोग सबसे ऊंचे माले पर थे, उनका क्या?
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    हो क्या रहा है?
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    मैं सब कुछ देख कर बहुत सदमे में थी
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    और मैं कुछ मिनट तक वहीं खड़ी रही।
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    मुझे यह भी नहीं याद कि मैं
    वहां कितनी देर तक खड़ी रही।
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    मुझे लगता है कि मुझे पता था
    की मैंने काम पर जाना था।
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    तो मैं बिल्डिंग से बाहर निकली,
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    अपनी गाड़ी में बैठी,
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    काग़ज़ों को देखा
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    और परिणाम देखे,
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    कि मुझे किमो कराना पड़ेगा।
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    मेरा मतलब, इसकी क्या संभावना है?
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    मुझे बताया गया कि मुझे कैन्सर है
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    और पूरी दुनिया पर मुसीबतों
    का पहाड़ टूट पड़ा।
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    मुझे अपने ऊपर तरस करने पर
    बहुत बुरा लगा।
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    उसके थोड़ी देर बाद, मैंने गाड़ी चालू की
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    और बेन फ़्रैंक्लिन ब्रिज से होते हुए
    न्यू जर्सी से फ़िलाडेल्फ़िया गई
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    काम पर जाने की लिए।
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    वह जगह बिलकुल वीरान थी।
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    पुल पर कोई भी नहीं था,
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    और ना ही दूसरी सड़कों पर।
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    मैंने सोचा: "क्या मुझे इस पुल पर
    गाड़ी चला रहे होना चाहिए?
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    क्या इस पुल पर कोई बम विस्फोट
    होने वाला है?
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    क्या ये सुरक्षित है?"
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    मैंने ऐसे हालात का कभी सामना
    नहीं किया था।
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    मुझे नहीं लगता कि ज़्यादातर लोग
    ऐसे हालात का सामना करते हैं।
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    मैंने पुल को सुरक्षापूर्वक पार किया,
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    दुकान में गई और हमेशा की तरह
    अपनी गाड़ी खड़ी की।
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    मैं दुकान की प्रबंधक थी इसलिए
    मेरे पास दुकान की चाबियाँ थीं।
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    मैं वहाँ बैठी और खिड़की से
    बाहर देखा
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    मैंने देखा कि सड़कें एकदम वीरान थीं,
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    कोई भी बाहर नहीं जा रहा था।
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    ये बहुत ही अजीब बात थी।
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    मैंने मालकिन को फ़ोन किया और कहा:
    "क्या हमें दुकान बंद कर देनी चाहिए?
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    और उन्होंने कहा: "हाँ, तुम्हें दुकान बंद
    कर के घर चले जाना चाहिए।"
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    मैंने दुकान बंद की और अपनी गाड़ी
    में बैठ कर चल दी।
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    मैंने बेन फ़्रैंक्लिन ब्रिज फिर से पार
    किया, अपने आस पास देखते हुए सोचा:
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    "हे भगवान, ये क्या हो रहा है?
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    क्या इस पुल पर विस्फोट
    होने वाला है?"
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    मैं बस इसी बारे में सोचती रही
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    मैं घर पहुँची, टीवी देखा,
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    और तब मैंने फ़ैसला लिया
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    कि मैं उस दिन ख़ुद पर
    तरस नहीं करूँगी,
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    क्यूँकि मैं ज़िंदा थी, और ज़िंदा
    रहना चाहती थी
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    और उन लोगों की दशा मुझसे
    भी बहुत बुरी थी
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    क्यूँकि मैं इससे बाहर निकलने वाली थी।
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    तो इसीलिए, मैंने,
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    मैंने उस दिन अपने बारे में नहीं सोचा।
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    मैंने ये भी निश्चय लिया की मैं
    फिर कभी नहीं डरूँगी।
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    वो सारी छोटी बड़ी चीज़ें जो कि--
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    मैं करना चाहती हूँ मगर नहीं करती
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    शायद मैं उसके लायक नहीं,
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    शायद मेरा क़द उतना नहीं,
    या मेरा रंग सही नहीं है
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    या ऐसा ही कुछ।
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    मैं अब इस सब से परहेज़
    नहीं करती।
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    अब मैं जाकर कोशिश करती हूँ।
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    क्यूँकि मैंने कैन्सर को मात दी
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    और अब मैं निडर हूँ।
  • Not Synced
    अब मैं किसी भी चीज़ को अपने आड़े नहीं
    आने दूँगी।
Title:
My 911, 2001 Story
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Video Language:
English
Team:
Captions Requested
Duration:
06:49
Retired user edited Hindi subtitles for My 911, 2001 Story
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