मैंने यह कहानी पहले कभी इस तरह नहीं बताई
मैं इस बारे में ज्यादा बात नहीं करती,
क्योंकि यह--
क्योंकि यह बहुत समय पहले हुआ था और
इसके बारे में सोच कर दुख होता है
मगर मुझे साल में एक बार इसकी याद आती है
जब मैं करीब 30 साल की थी, तो एक सुबह
मेरी गर्दन पर एक बहुत बड़ा गुमड़ा था
वह पता नहीं कहां से प्रकट हो गया
मैं एक डॉक्टर के पास गई, और उसने कहा कि
मुझे अपने खून की जांच करानी पड़ेगी
तो मैंने सोचा, "ठीक है,
मैं यह करती हूं और देखते हैं क्या होता है।"
वह निश्चित करना चाहते थे कि कहीं यह
कैंसर जैसी गंभीर बीमारी तो नहीं है
तो मैं अपने खून की जांच कराने गई
और जांच कराने के बाद बहुत
इंतजार करना पड़ता है
और यह इंतजार बहुत मुश्किल होता है
जैसा आप सोच सकते हैं
दिमाग में ख्याल आता है कि,
"अगर यह कैंसर हुआ तो?
तो मैं क्या करूंगी?
उम्मीद है कि ऐसा नहीं होगा।
कैसा लगता होगा?
मुझे किन मुश्किलों से गुज़रना पड़ेगा?
क्या यह गंभीर है?"
आखिरकार उन्होंने मुझे जांच के नतीजे
लेने के लिए बुलाया
मुझे वह दिन याद है
दोपहर में मुझे काम पर जाना था
मैं न्यू जर्सी में रहती थी,
और फिलाडेल्फिया में नौकरी करती थी
मैं न्यूजर्सी तक गई अपनी खून की
जांच का परिणाम लेने के लिए
मैं काम पर जाने के लिए तैयार थी,
मैं एक दुकान में काम करती थी।
मैंने प्रयोगशाला में अपनी गाड़ी खड़ी की
और ऐसा काम करने में आप सुन्न पड़ जाते हैं
क्योंकि आप बस बुरी खबर
का इंतजार कर रहे होते हैं
क्या ऐसा ही कुछ।
मगर मैं फिर भी आशावादी थी।
उन्होंने मुझे लिफाफा पकड़ाया,
फिर अचानक, मुझे बहुत तेज़
हलचल होने की आवाज आई
बहुत सारे लोग-- मुझे पता नहीं।
जैसे कोई रो रहा हो।
मैं लॉबी में गई,
लिफाफा मेरे हाथ में था
और मैंने देखा कि कुछ लोग
एक छोटे से टीवी के आस-पास
घेरा सा बना कर खड़े हुए हैं।
लोग सिसक रहे थे और रो रहे थे
और मैं लोगों को हटा रही थी, और मैंने बोला:
"क्या हो रहा है? क्या कहीं आग लगी है?"
और वह सामने से हटे
और मैंने TV पर देखा:
"ऐसा नहीं लग रहा कि वहां पर अभी
तक किसी तरह की कोशिश की गई है
और याद रखिए, हे भगवान
हे भगवान।
(कथावाचक) यह एक दूसरा विमान लगता है।
मैंने अपने आसपास देखा
और लोग अपना मुंह पकड़ कर बैठे थे
और मैं बस TV की तरफ देखती रही
और धुआं और लपटें देखी
और मुझे समझ नहीं आया कि क्या हो रहा है
जब तक किसी ने कहा कि
वर्ल्ड ट्रेड सेंटर से एक विमान टकरा गया है
दो विमान। (हंसी)
मैंने सोचा "क्या जंग छिड़ चुकी है?
क्या सब खत्म हो गया?
इन सब लोगों को देखो।
जो लोग सबसे ऊंचे माले पर थे, उनका क्या?
हो क्या रहा है?
मैं सब कुछ देख कर बहुत सदमे में थी
और मैं कुछ मिनट तक वहीं खड़ी रही।
मुझे यह भी नहीं याद कि मैं
वहां कितनी देर तक खड़ी रही।
मुझे लगता है कि मुझे पता था
की मैंने काम पर जाना था।
तो मैं बिल्डिंग से बाहर निकली,
अपनी गाड़ी में बैठी,
काग़ज़ों को देखा
और परिणाम देखे,
कि मुझे किमो कराना पड़ेगा।
मेरा मतलब, इसकी क्या संभावना है?
मुझे बताया गया कि मुझे कैन्सर है
और पूरी दुनिया पर मुसीबतों
का पहाड़ टूट पड़ा।
मुझे अपने ऊपर तरस करने पर
बहुत बुरा लगा।
उसके थोड़ी देर बाद, मैंने गाड़ी चालू की
और बेन फ़्रैंक्लिन ब्रिज से होते हुए
न्यू जर्सी से फ़िलाडेल्फ़िया गई
काम पर जाने की लिए।
वह जगह बिलकुल वीरान थी।
पुल पर कोई भी नहीं था,
और ना ही दूसरी सड़कों पर।
मैंने सोचा: "क्या मुझे इस पुल पर
गाड़ी चला रहे होना चाहिए?
क्या इस पुल पर कोई बम विस्फोट
होने वाला है?
क्या ये सुरक्षित है?"
मैंने ऐसे हालात का कभी सामना
नहीं किया था।
मुझे नहीं लगता कि ज़्यादातर लोग
ऐसे हालात का सामना करते हैं।
मैंने पुल को सुरक्षापूर्वक पार किया,
दुकान में गई और हमेशा की तरह
अपनी गाड़ी खड़ी की।
मैं दुकान की प्रबंधक थी इसलिए
मेरे पास दुकान की चाबियाँ थीं।
मैं वहाँ बैठी और खिड़की से
बाहर देखा
मैंने देखा कि सड़कें एकदम वीरान थीं,
कोई भी बाहर नहीं जा रहा था।
ये बहुत ही अजीब बात थी।
मैंने मालकिन को फ़ोन किया और कहा:
"क्या हमें दुकान बंद कर देनी चाहिए?
और उन्होंने कहा: "हाँ, तुम्हें दुकान बंद
कर के घर चले जाना चाहिए।"
मैंने दुकान बंद की और अपनी गाड़ी
में बैठ कर चल दी।
मैंने बेन फ़्रैंक्लिन ब्रिज फिर से पार
किया, अपने आस पास देखते हुए सोचा:
"हे भगवान, ये क्या हो रहा है?
क्या इस पुल पर विस्फोट
होने वाला है?"
मैं बस इसी बारे में सोचती रही
मैं घर पहुँची, टीवी देखा,
और तब मैंने फ़ैसला लिया
कि मैं उस दिन ख़ुद पर
तरस नहीं करूँगी,
क्यूँकि मैं ज़िंदा थी, और ज़िंदा
रहना चाहती थी
और उन लोगों की दशा मुझसे
भी बहुत बुरी थी
क्यूँकि मैं इससे बाहर निकलने वाली थी।
तो इसीलिए, मैंने,
मैंने उस दिन अपने बारे में नहीं सोचा।
मैंने ये भी निश्चय लिया की मैं
फिर कभी नहीं डरूँगी।
वो सारी छोटी बड़ी चीज़ें जो कि--
मैं करना चाहती हूँ मगर नहीं करती
शायद मैं उसके लायक नहीं,
शायद मेरा क़द उतना नहीं,
या मेरा रंग सही नहीं है
या ऐसा ही कुछ।
मैं अब इस सब से परहेज़
नहीं करती।
अब मैं जाकर कोशिश करती हूँ।
क्यूँकि मैंने कैन्सर को मात दी
और अब मैं निडर हूँ।
अब मैं किसी भी चीज़ को अपने आड़े नहीं
आने दूँगी।