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लड़कियों को पढ़ाना - बीबीसी समाचार

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    भारत में तीस लाख लड़कियां
    स्कूल नहीं जातीं।
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    मतलब १०-१४ आयुवर्ग की
    तीन लड़कियों में से एक।
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    मगर 'बेटी पढ़ाओ' से ये सब बदल रहा है।
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    प्रचलित नज़रिया है
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    मेरी बकरी एक संपत्ति है
    और मेरी लड़की देनदारी है।
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    और बात इस नज़रिये
    को बदलने की है।
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    मेरा नाम भागवंती है।
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    स्कूल जाने से पहले
    मुझे घर का काम करना होता है:
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    खाना बनाते हैं, बर्तन माँजते हैं
    कपड़े धोते हैं, बकरी चराने ले जाते हैं।
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    कभी-कभी घर भी साफ़ करना होता है।
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    सबसे पहले, हर गाँव में
    जहां भी हम जाते हैं
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    हमें एक सामुदायिक स्वयंसेवक मिलता है।
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    हमारे स्वयंसेवक युवा हैं, शिक्षित हैं,
    और वे जोशीले हैं।
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    वे स्वयं सचमुच बदलाव देखना चाहते हैं।
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    वे घर-घर जाते हैं और हर उस लड़की का
    पता लगाते हैं जो स्कूल नहीं जा पाती है।
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    फिर, वे वास्तव में समुदाय के साथ बैठते हैं
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    और इन लड़कियों को स्कूल वापस लाने के लिए
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    समुदाय-आधारित भर्ती योजनाएँ बनाते हैं।
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    सामुदायिक स्वयंसेवक या "बालिका"
    गाँव के स्कूलों के साथ काम करती हैं...
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    सुनिश्चित करने कि वे सुरक्षित हैं
    और लड़कियों के शौचालय हैं।
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    वे लड़कियों की पढ़ाई में भी मदद करती हैं।
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    तो, तब हमारे 'टीम बालिका' स्वयंसेवक
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    सरकारी स्कूल के क्लास में आते है
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    और वे हिन्दी, अंग्रेज़ी
    और गणित की क्लास लेते हैं
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    यह सुनिश्चित करने के लिए कि सभी बच्चे
    -लड़कियां और लड़के,
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    वास्तव में शिक्षण के
    वांछित परिणाम पा रहे हैं।
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    बात हर लड़की के स्कूल आने के बारे में है।
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    बात हर लड़की के दुनिया को बदलने में
    योगदान करने बारे में है।
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    बात हर लड़की के परिवार को बदलने में
    योगदान करने के बारे में है,
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    और बात है सम्पूर्ण समाज को बदलने में
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    हर लड़की के योगदान की है।
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    हम बात कर रहे हैं बेहतर स्वास्थ्य की,
    बेहतर आय की।
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    हम बात कर रहे हैं बेहतर शिक्षा की,
    ताकि वह प्रत्येक बच्चे के लिए हो।
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    राजस्थान में लगभग ५०, ६० प्रतिशत लड़कियों
    की शादी हो जाती है
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    १८ वर्ष से कम आयु में।
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    राष्ट्रीय स्तर पर,
    बाल विवाह का प्रतिशत बहुत अधिक है।
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    बहुत सारे, लगभग १०-१५ प्रतिशत
    बच्चे ऐसे भी हैं,
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    जिनके विवाह १० की उम्र से कम में
    हो जाते हैं।
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    मेरे माता पिता ने मेरा विवाह
    १४ में कर दिया था।
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    मैं आठवीं क्लास में पढ़ रही थी।
    लड़के के माता पिता आगे पढ़ाई
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    ज़ारी रखने को मान गए
    मगर जब मेरी परीक्षाएँ आईं
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    तब वे अपने वादे से मुकर गए।
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    नीलम लड़की पढ़ाओ की
    १०,००० लड़कियों में से एक है।
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    उन्होंने बीस लाख बच्चों की सहायता की है।
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    मैं पढ़ाई करने के बाद टीचर बनना
    और दूसरी लड़कियों को पढ़ाना चाहती हूँ
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    क्योंकि शिक्षित होने से
    आपमें हिम्मत आती है,
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    अपने पैरों पर खड़ी हो सकती हैं,
    नौकरी खोज सकती हैं
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    और परिवार की आर्थिक सहायता कर सकती हैं।
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    स्कूल का प्रत्येक अतिरिक्त वर्ष
    महिला की आय को २० प्रतिशत बढ़ा सकता है।
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    पिछले १० वर्षों में,
    मुझे सचमुच गर्व है कि हमने
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    स्कूल छोड़ने वाली १५०,००० लड़कियों को खोजा
    और उन्हें स्कूल वापस लाये हैं
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    जो अब जुड़ गए हैं
    और स्कूल जा रहे हैं और सीख रहे हैं।
Title:
लड़कियों को पढ़ाना - बीबीसी समाचार
Description:

भारत में 10-14 आयुवर्ग की तीन मिलियन लड़कियां हैं जो स्कूल में नहीं पढ़ रही हैं। यूनिसेफ़ के अनुसार दुनिया के किसी भी अन्य देश की तुलना में भारत में बालिका वधुएँ अधिक हैं।
लगभग आधी जीवित भारतीय महिलाओं का विवाह 18 की वैधानिक आयु से पहले ही हुआ था। लड़की पढ़ाओ में स्वयंसेवकों की एक टीम है जो गाँव में जा कर उन लड़कियों को खोजते हैं जो स्कूल नहीं जाती हैं।
वे लड़कियों को स्कूल भेजने के महत्व के संबंध में परिवारों से बात करते हैं और समुदाय के साथ उनको भर्ती कराने की योजना बनाते हैं।
अभी तक उन्होंने लाखों बच्चों की मदद की है तथा वे 150,000 लड़कियों को स्कूल भेजने के लिए जिम्मेदार रहे हैं।

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चित्रों में दुनिया https://www.youtube.com/playlist?list=PLS3XGZxi7cBX37n4R0UGJN-TLiQOm7ZTP
Big Hitters https://www.youtube.com/playlist?list=PLS3XGZxi7cBUME-LUrFkDwFmiEc3jwMXP
बस अच्छी ख़बर https://www.youtube.com/playlist?list=PLS3XGZxi7cBUsYo_P26cjihXLN-k3w246

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Video Language:
English
Team:
Amplifying Voices
Project:
Promoting Girls Education
Duration:
03:27

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