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पक्षी गाना कैसे सीखते हैं ? - पार्थ सिंह

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    यह ब्राउन थ्रेशर द्वारा
    गाया गया एक गाना था |
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    पर यह सिर्फ उन हज़ारो,
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    या जितने भी ज्यादा यह जानता है
    उनमे से एक था.
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    केवल यही एक पक्षीय दक्ष संगीतज्ञ नही है
    थ्रश नामका पक्षी.
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    उनमे से एक था|
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    एकसाथ दो स्वरमानो मे गा सकती है|
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    एक मॉकिंगबर्ड अपने
    आसपास की आवाज़ों की बराबरी कर सकती है -
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    जिसमे कार अलार्म भी शामिल है|
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    और ऑस्ट्रेलियाई दिखाऊ लायरबर्ड के पास,
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    एक अद्वितीय , सजीले नाच
    और गाने की परंपरा होती है|
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    यह सांगबर्ड्स की ४००० प्रजातियों मे से
    कुछेक ही है.
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    कई चिड़ियाएं छोटे , सरल आवाज़े निकालती हैं.
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    पर सांगबर्ड्स के पास
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    एक जटिल स्वररूप का खज़ाना भी होता है,
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    जो उन्हे मदद करता है साथी ढूंढने मे,
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    अपना इलाका बचाने मे,
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    और अपने सामाजिक बंधनो को मजबूत करने मे|
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    हर सांगबर्ड प्रजाति की आवाज़ों का
    अपना विशिष्ट स्वरूप होता है,
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    जिसमे क्षेत्रीय बोलियां भी शामिल हैं|
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    अनुभवी श्रोता हर चिड़िया को
    उसके अपने व्यक्तिगत आवाज़.
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    और गाने से पहचान सकता है|
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    तो पहली बात यह है कि,
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    चिड़ियाएं यह गाने गाना सीखती कैसे हैं ?
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    वे अपनी स्वयं की प्रजाति की ही
    आवाज़ों की नकल करना कैसे जानती हैं ?
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    क्या उन्हें जन्मजात ही
    गाने का ज्ञान होता है ?
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    पक्षियों के गाने के विषय मे
    ज्यादातर जो बाते वैज्ञानिक जानते हैं|
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    वे अफ़्रीकी ज़ेबरा फिंच चिड़ियाओं
    का अवलोकन कर प्राप्त हुई हैं|
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    एक शिशु ज़ेबरा फिंच चिड़िया,
    गाना प्रारुपिकतया अपने पिता से
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    या दूसरे वयस्क नरो को देखकर सीखता है|
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    अपने घोसले मे अनुभवहीन बैठे होते हुए
    के समय से ही वो यह सब सीखने लगता है|
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    पहले एक संवेदिक सीखने का काल होता है|
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    जब शिशु फिंच अपने आसपास गाये जाने वाले
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    गानों को सुनता है और याद कर लेता है|
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    फिर सञ्चालन द्वारा सीखने के काल मे वह,
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    इन गानों को गाने का अभ्यास करने लगता है,
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    और तब तक अभ्यास करता है
    जब तक वह गाना
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    उसके याद किये हुए गाने के समान
    नही हो जाता|
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    इस तरह पक्षी सीखते हैं,
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    अध्यापक को बार-बार सुनकर
    और अभ्यास कर
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    यह उपयोगी होता है - एक बिंदु तक.
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    और अगर वह, इसे बार बार सुनता है तो
    अनुकरण निम्नीकृत हो सकता है,
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    स्त्रोत भी मायने रखता है|
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    अगर गाना किसी ध्वनि- विस्तारक यन्त्र
    द्वारा बजाया जाये, तो
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    वह इसे जल्दी नही पकड़ पायेगा|
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    पर अगर आप उसी के समान एक ध्वनि - विस्तारक
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    किसी ज़ेबरा फिंच
    के समान दिखने वाले खिलौने के अंदर
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    लगा दें, तब उस शिशु की सीखने की क्षमता
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    बढ़ जायेगी|
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    पर क्या हो अगर शिशु फिंच ने
    किसी दूसरे ज़ेबरा फिंच की आवाज़
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    कभी सुनी ही ना हो ?
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    आश्चर्यजनक रूप से,
    यह तब भी गाना सीख जायेगा|
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    विलग हुए फिंच भी गाना गाते हैं
    जिन्हे एन्नेट या आइसोलेट गाने कहते हैं|
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    कोई निश्चित धुन भी सिखाई जा सकती हैं,
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    यह गाने कि सहज प्रवृति
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    सांगबर्ड्स के मस्तिष्क मे
    यंत्रस्थ होती है|
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    एन्नेट गाने, सभ्य गानों से
    अलग ध्वनित होते हैं
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    पहली बार सीखी गयी --
    दूसरी फिंच चिड़ियाओं से|
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    अगर विलग हुई ज़ेबरा फिंचे
    कोई नई कॉलोनी शुरू करती हैं
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    तो वहां के शिशु फिंच
    उस आइसोलेट गाने को सीख जाते हैं |
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    अपने माता पिता से
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    पर वह गाना पीढ़ी दर पीढ़ी बदल रहा होता है |
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    और कुछ पुनरावृत्तियों के बाद,
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    धुन असल मे अपने मूल रूप के
    सदृश होने लगती है
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    जंगली ज़ेबरा फिन्चो द्वारा
    गाये गए सभ्य गानों के
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    यह सीखने की क्रिया कुछ ख़ास है|
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    और पक्षियों के मस्तिष्क में यंत्रस्थ है
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    और बार बार उन्ही मूल प्रतिरूपो की और
    ले जाती है
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    इसका अर्थ है कि ज़ेबरा फिन्चो के गाने
    की मूल जानकारी
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    इनके जीनोम मे ही कहीं पर संगृहीत होगी जो
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    करोड़ो वर्षो के विकास के पश्चात अंकित हुई|
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    पहली बार मे यह असंभव लगता है
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    और बहुधा,हम जेनेटिक कोड्स को जैव रासायनिक
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    या किसी शारीरक रूप से उपयोगी
    रूप मे ही देखते हैं
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    ना कि व्यवहार या कार्यो
    जैसी सरल लगने वाली वस्तुओ मे|
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    पर दोनों आधारभूत रूप से अलग नही होते|
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    हम दोनों को जीनोम के द्वारा
    मष्तिष्क की कार्यप्रणाली से जोड़ सकते हैं|
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    पर यह जोड़ बहुत ही कोलाहलमय और जटिल है|
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    यह साधारणतया, जीन्स को
    साधारण क्रिया से नही जोड़ता
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    पर इसका वहां पर अस्तित्व होता है|
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    जीनोम मे+ मष्तिष्क के विकास के लिए
    जरुरी जीन्स होते हैं|
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    जैसे कि, वे मॉलिक्यूल्स जो तंत्रिकाओं के
    विकास के लिए मार्ग प्रशस्त करते हैं|
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    पृथक परिपथो का गठन करते हुए
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    पक्षियों के मस्तिष्क मे
    जिन्हे "गीत परिपथ" कहा जा सकता है|
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    वे तब सक्रिय होते हैं
    जब चिड़ियाएं गाती हैं|
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    यही परिपथ तब भी प्रतिक्रिया करते हैं
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    जब उन चिड़ियाओं की अपनी
    जाति की चिड़ियाएं गाती हैं|
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    दूसरी प्रजातियों के गीतों से ज्यादा तेज़|
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    तो यह सिद्धांत कि पक्षियों के मस्तिष्क
    का विकास, जीन्स का असर होता है|
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    जिनका सम्बन्ध गाने तथा
    गाना सीखने की क्षमता से जुड़ा होता है
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    और फिर गानो का अनावरण
    उन तंत्रिका परिपथों को आकार देता है|
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    ऐसे गाने उत्पन्न करने के लिए
    जो उस प्रजाति के विशिष्टः हैं|
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    इस तरह के अनुवांशिक व्यवहार
    पक्षियों में ही नहीं
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    अपितु पशु जगत मे भी
    विभिन्न प्रजातियों मे व्याप्त हैं|
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    प्रभावशाली उदाहरणो मे आते हैं -
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    मोनार्क तितलियों का तथा
    सालमॅन मछलियों का लम्बी दुरी का प्रवास
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    तो मनुष्यो के लिए इसका क्या अर्थ है ?
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    हम भी उसी सहज बोध के साथ पैदा हुए
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    जो हमारे जीनोम मे अंकित है
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    जो हमारे तंत्रिका परिपथों को
    आकार देने में सहायक है,
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    और अंततः परिणामित होता है
    कुछ ऐसा जो हम जानते हैं ?
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    क्या ऐसा कोई ज्ञान है|
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    जो अद्वितीय है और अन्तस्थ है
    मनुष्यो के लिए एक प्रजाति के तौर पर ?
Title:
पक्षी गाना कैसे सीखते हैं ? - पार्थ सिंह
Description:

पूरा पाठ देखिये : https://ed.ted.com/lessons/how-do-birds-learn-to-sing-partha-mitra

एक भूरी थ्रेशर हज़ारों गाने जानती है| एक वुड थ्रश, दो स्वरमानो में एक साथ गा सकती है | एक मॉकिंगबर्ड अपने आसपास के आवाज़ों की नकल कर सकती है — कार के अलार्मों समेत |ये गाने वाली चिड़ियाओं की ४००० मे से सिर्फ कुछ प्रजातियां है | ये चिड़ियाएं गाना कैसे सीखती हैं ? वे अपनी स्वयं कि प्रजाति की ही आवाज़ों की नकल करना कैसे जानती हैं ? क्या उनमे जन्मजात ही गाने का कौशल होता है ? पार्थ पी. मित्रा , चिड़ियों के गानों की इस सुन्दर दुनिया पर प्रकाश डालते हैं|

पाठ - पार्थ पी. मित्रा द्वारा , एनीमेशन - TED-Ed द्वारा |

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Video Language:
English
Team:
closed TED
Project:
TED-Ed
Duration:
05:39

Hindi subtitles

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