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त्वचा के रंग का विज्ञानं- एंजेला कोइन फ्लिन्

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    जब अल्ट्रावायलेट सूरज की रोशनी
    हमारी त्वचा पर गिरती है|
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    वे हम सबको थोड़े
    अलग ढंगसे प्रभावित करती है|
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    आपकी त्वचा के रंग के आधार पर, इसके लिये
    थोड़े ही मिनट काफी होते है|
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    एक व्यक्ति को चुकंदर गुलाबी रंग होने में,
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    जबकि किसीको ज्यादा घंटे लगेंगे
    थोडासा परिवर्तन अनुभव करने में|
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    तो क्या है इस अंतर का राज़?
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    और शुरुसे कैसे हमारी त्वचा
    अलग अलग रंग कैसे ले आती आई है?
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    जो बी रंग हो,
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    हमारी त्वचा महाकाव्य कहानी कहती है
    मानव सहनशीलता और अनुकूलता की,
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    प्रकाशित करती है उसका भेद जीव
    विज्ञान का काम|
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    मेलेनिन इसके केंदस्थानमे है,
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    रंगद्रव्य जो त्वचा और बालों
    को उनका रंग देता है|
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    ये घटक त्वचा के कोशिकाओं
    से आता है जिनका नाम है मेलानोसैतेस
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    और दो आधारभूत रूप लेता है|
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    एक है युमेलानिं, जो कई भूरे त्वचा के
    रंगों को वृद्धि करता है,
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    उसके साथ काले, भूरे
    और गोर्रबालों को भी,
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    दूसरा फेओमेलनिन, जो लाल भूरे चकतो
    और लाल बालों को उत्पन्न करता है|
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    परंतु मनुष्य हमेशा ऐसे नहीं थे|
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    हमारे अलग-अलग त्वचा के रंग एक
    उद्विकासी प्रक्रिया से बने थे
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    सूरज से प्ररित हो कर|
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    कुछ ५०,००० सालों पहले जब हमारे
    पूर्वज अफ्रीका से उत्तर की तरफ जा बसे
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    और यूरोप और एशिया में|
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    ये प्राचीन मानव भूमध्य रेखा और "ट्रोपिक
    ऑफ़ काप्रिकोर्ण" के बिच रहते थे,
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    एक जगह जो सूरज की
    अतिनील किरणों से तर-बतर थी|
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    जब युव त्वचा पर लम्बे समयतक प्रकट होती है,
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    वे युव हमारे कोशिकाओं के अन्दर
    के डीएनए को नुक़सान पोहचती है,
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    और हमारी त्वचा जलने लगती है|
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    अगर यह हानि काफी गंभीर हो, तो
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    कोशिकाओं का परिवर्तन मेलेनोमा
    को ढावा दे सकता है,
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    एक प्राणनाशक कैंसर त्वचा के
    मेलानोसैतेस में पैदा होता है|
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    सनस्क्रीन, जैसे हमे आज पता है, ५०,०००
    सालों पहले मौजूद नहीं था|
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    हमारे पूर्वजोंने कैसे इस अतिनील
    प्रकाश के हमलेका सामना किया?
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    उनके उत्तरजीविता की चाबी थी उनके
    अपने निजी सनस्क्रीन में
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    विनिर्मित त्वचा के निचे मेलेनिन|
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    आपकी त्वचा में मेलेनिन का प्रकार
    और उसकी मात्रा
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    निर्धारित करता है की आप सूरज से कम ये ज्यादा संरक्षित रहेंगे|
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    ये निर्भर है त्वचा की प्रतिक्रिया पे, जब
    सूरज उसपे गिरता है|
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    जब युव रोशनी उसपे प्रकट होती है
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    वह शुरू करता है विशेष रोशनी-सेद्नशील
    रिसेप्टर जिनका नाम है रेडोप्सीन,
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    जो मेलेनिन के उत्पादन को उत्तेजित करके
    बचाता है कोशिकाओं को नुकसान से
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    गोरें लोंगों मे अधिक मेलेनिन,
    त्वचा को काला करता है और टॅन पैदा करता है|
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    का उत्पादन करता है| कई पीढ़ियों से,
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    मनुष्य जो अफ्रीका के
    सूरज से तर-बतर जगाओं में रहते थे
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    अनुकूलित हुए उच्चतर मेलेनिन
    उत्पादन रखने के लिए
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    और ज्यादा यूमेलानिन के लिए,
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    अत त्वचा को गहेरा रंग दिया.
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    ये निर्मित-में सूरज कवच ने उन्हें
    मेलेनोमा से बचाने में मदद की,
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    संभाव्य उन्हें उद्विकासी लायक बनाया
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    और सक्षम बनाया ये उपयोगी विशेषता
    नयी पीढ़ियों को देने के लिए.
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    लेकिन शीघ्र ही, हमारे कुछ पूर्वज उत्तर
    की ओर बस गए
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    "ट्रॉपिकल" क्षेत्र के बहार,
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    दूर और व्यापक आर-पार पृथ्वी पर
    फैलाने लगे|
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    जितना आगे उत्तर की तरफ वो
    गए, उतनी कम धूप उन्हें दिखी|
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    यह एक समस्या थी क्यूंकि हालांकि युवी
    रोशनी त्वचा को हनी पहुंचा सकती है,
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    उसका एक महत्वपूर्ण समांतर लाभ है|
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    युव हमारे शरीर को विटामिन डी उत्पादित
    करने में मदद करता है,
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    एक घटक जो हड्डियां मजबूत करके हमे
    अहम खनिज पदार्थ लेने में मदद करता है|
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    करता है, जैसे की कैल्शियम, आयरन,
    मैग्नीशियम, फॉस्फेट और झिंक|
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    उसके बिना, मनुष्य गंभीर थकान तथा
    हड्डियांमे कमजोरी लगती है
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    जो एक अवस्था पैदा कर सकती है
    जिसका नाम है रिकेट्स|
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    साँवली त्वचा सूरज की रोशनी
    को अवरुद्ध करती थी,
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    उनके लिए विटामिन डी की कमी ने
    गंभीर आशंका पैदा की होगी, उत्तर में|
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    लेकिन उनमे से कुछ कम
    मेलेनिन उत्पादित करते थे|
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    वे रोशनी के छोटी पर्याप्त मात्रा से
    प्रकाशित हुए थे इसलिए मेलेनोमा की
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    संभावना कम थी, और उनकी गोरी त्वचा
    युवी किरणों को बेहतर अवशोषित कर सकी|
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    अतः वे लाभान्वित हुए विटामिन डी से,
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    हड्डियों को मज़बूत बनाया,
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    और आचे से जीवित रहें
    स्वस्थ संतति उत्पादित करने के लिए|
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    चयन की कई पीढ़ियों से अधिक,
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    त्वचा का रंग उन क्षेत्रों में
    धीरे-धीरे हल्का हुआ|
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    हमारे पपूर्वजों की
    अनुकूलनशीलता के परिणाम स्वरूप,
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    आज ग्रह कई त्वचा के रंगवाले
    लोंगों से भरा हुआ है,
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    गहरे रंग यूमेलानिन-तर त्वचा गरम,
    इक्वेटर के पास वाले पट्टे में,
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    और तेजी से गोरे फेओमेलनिन-तर
    त्वचा के रंग बहार की तरफ
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    जैसे सूरज की रोशनी कम होती जाती है|
    यानि, त्वचा का
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    रंग बस थोडा ही ज्यादा है
    एक अनुकूली लक्षण एक चट्टान पे रहने के लिए
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    जो सूरज को गृह्पथित करता है,
    यह शायद
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    रोशनी को सोखता है परंतु यह निस्संदेह
    चरित्र को प्रतिबिंबित नहीं करता|
Title:
त्वचा के रंग का विज्ञानं- एंजेला कोइन फ्लिन्
Speaker:
Angela Koine Flynn
Description:

पूरा उपदेश/ "लेसन" देखिये: https://ed.ted.com/lessons/the-science-of-skin-color-angela-koine-flynn

जब अल्ट्रावायलेट सूरज की रोशनी हमारी त्वचा पर गिरती है, वे हम सबको थोड़े अलग ढंगसे प्रभावित करती है. आपकी त्वचा के रंग के आधार पर, बस अनावरण के थोड़े ही मिनट लगते हैं एक व्यक्ति को चुकंदर गुलाबी रंग होने में, जबकि कोई और को घंटो लगेंगे थोडा सा भी परिवर्तन अनुभव करने में. तो क्या है इस अंतर का राज़ और शुरुसे कैसे हमारी त्वचा अलग अलग रंग लेती आई है?

उपदेश/ "लेसन" एंजेला कोइन फ्ल्यन्न से, एनीमेशन तोमस पिचार्दो-एस्पैल्लत से.

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Video Language:
English
Team:
closed TED
Project:
TED-Ed
Duration:
04:54
Michelle Mehrtens edited Hindi subtitles for The science of skin color
Abhinav Garule approved Hindi subtitles for The science of skin color
Abhinav Garule edited Hindi subtitles for The science of skin color
Abhinav Garule edited Hindi subtitles for The science of skin color
Abhinav Garule edited Hindi subtitles for The science of skin color
Arvind Patil accepted Hindi subtitles for The science of skin color
Arvind Patil edited Hindi subtitles for The science of skin color
Arvind Patil edited Hindi subtitles for The science of skin color
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