-
भारत में तीन मिलियन लड़कियां
स्कूल नहीं जातीं।
-
अर्थात 10-14 आयुवर्ग की
तीन लड़कियों में से एक।
-
मगर 'लड़की पढ़ाओ' से वह बदल रहा है।
-
वर्तमान नज़रिया है
-
मेरी बकरी मेरी संपत्ति है
और मेरी लड़की देनदारी है।
-
और बात इस नज़रिये को बदलने की है।
-
मेरा नाम भागवंती है।
-
स्कूल जाने से पहले
मुझे घर का काम करना होता है:
-
खाना बनाना, कपड़े धोना,
बकरियों को चराने ले जाना।
-
कभी कभी घर भी साफ़ करना होता है।
-
सबसे पहले, हर गाँव में
जहां हम प्रवेश करते हैं
-
हमें एक सामुदायिक स्वयंसेवक मिलता है।
-
हमारे स्वयंसेवक युवा हैं, शिक्षित हैं,
और वे जोशीले हैं।
-
वे स्वयं बदलाव देखना चाहते हैं।
-
वे घर-घर जाते हैं और हर उस लड़की का
पता लगाते हैं जो स्कूल नहीं जाती है।
-
फिर, वे वास्तव में समुदाय के साथ बैठते हैं
-
और इन लड़कियों को स्कूल वापस लाने के लिए
-
समुदाय-आधारित भर्ती योजनाएँ बनाते हैं।
-
सामुदायिक स्वयंसेवक या "बालिका"
गाँव के स्कूलों के साथ काम करती हैं...
-
सुनिश्चित करने कि वे सुरक्षित हैं
और लड़कियों के शौचालय हैं।
-
वे लड़कियों की पढ़ाई में भी मदद करती हैं।
-
तो, तब हमारे 'टीम बालिका' स्वयंसेवक
-
सरकारी स्कूल के क्लास में आते है
-
और वे हिन्दी, अंग्रेज़ी
और गणित की क्लास लते हैं
-
यह सुनिश्चित करने कि सभी बच्चे
-लड़कियां और लड़के,
-
वास्तव में शिक्षण के
वांछित परिणाम पा रहे हैं।
-
बात हर लड़की के स्कूल आने के बारे में है।
-
बात हर लड़की के दुनिया को बदलने में
योगदान करने बारे में है।
-
बात हर लड़की के परिवार को बदलने में
योगदान करने के बारे में है,
-
और बात है सम्पूर्ण समाज को बदलने में
-
हर लड़की के योगदान की।
-
हम बात कर रहे हैं बेहतर स्वास्थ्य की,
बेहतर आय की।
-
हम बात कर रहे हैं बेहतर शिक्षा की,
ताकि वह प्रत्येक बच्चे के लिए हो।
-
राजस्थान में लगभग 50, 60 प्रतिशत लड़कियों
की शादी हो जाती है
-
18 वर्ष से कम आयु में।
-
राष्ट्रीय स्टार पर,
बाल विवाह का प्रतिशत बहुत अधिक है।
-
बहुत सारे, लगभग 10-15 प्रतिशत
बच्चे ऐसे भी हैं,
-
जिनके विवाह 10 की उम्र से कम में
हो जाते हैं।
-
मेरे माता पिता ने मेरा विवाह
14 में कर दिया था।
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-