अरुणाचलम मुरुगनाथम: कैसे मैने सैनेटरी नैपकिन पर आन्दोलन शुरु किया!
-
0:01 - 0:05मैं अपनी बीवी के लिए कुछ खास करना चाहता था.
-
0:05 - 0:08और उसी काम ने आज मुझे यहाँ ला खड़ा किया,
-
0:08 - 0:10नाम, और पैसे भी दिलाए.
-
0:10 - 0:14तो बात तब की है, जब मेरी नई नई शादी हुई थी.
-
0:14 - 0:16शादी के पहले पहले दिनों में हर पति अपनी पत्नी
-
0:16 - 0:19की नज़रों में छा जाना चाहता है. मैं भी यही चाहता था.
-
0:19 - 0:22एकदिन मैंने पाया कि मेरी पत्नी
-
0:22 - 0:24कोई चीज़ ऎसे, छुपा कर ले जा रही थी.
-
0:24 - 0:26मैंने देख लिया. "ये क्या है?' उससे पूछा.
-
0:26 - 0:29बीवी ने कहा,"तुम्हारे मतलब का कुछ नहीं."
-
0:29 - 0:31मैंने भाग कर देखा, वो अपने पीछे एक
-
0:31 - 0:33पोछे जैसा कपड़ा छुपा रही थी.
-
0:33 - 0:36वैसे कपड़े से तो मैं अपना टू-व्हीलर भी साफ न करूँ!
-
0:36 - 0:39तब मैं समझा वो क्या था- मासीक धर्म के दिनों से निपटने का
-
0:39 - 0:41अस्वास्थ्यकर, अस्वच्छ तरीक़ा.
-
0:41 - 0:43मैंने तुरंत पूछा, तुम ये अस्वास्थ्यकर तरीक़ा क्यों अपना रही हो?
-
0:43 - 0:46उसने कहा,"मैं भी सैनिटरी पैड के बारे में जानती हूँ,
-
0:46 - 0:49पर अगर मैं और मेरी बहनें उनका इस्तेमाल करने लगीं,
-
0:49 - 0:52तो महीने के दूध का ख़र्च काटना पड़ेगा.
-
0:52 - 0:53मुझे जैसे झटका लगा. भला दूध के ख़र्च और
-
0:53 - 0:55सेनेटरी नैपकिन के इस्तेमाल में क्या संबंध है?
-
0:55 - 0:57यहाँ सीधा सवाल था ख़र्चा कर पाने की क्षमता का.
-
0:57 - 1:02मैंने अपनी बीवी को खुश करने के लिए उसे सैनेटरी पैड का पैकेट देने की ठानी.
-
1:02 - 1:05मैं सैनेटरी पैड ख़रीदने पास के एक दुकान में गया.
-
1:05 - 1:06दुकानदार ने दाँए-बाँए देखा,
-
1:06 - 1:09एक अख़बार फैलाया, और पैकेट को उसमें लपेटकर
-
1:09 - 1:12ऎसे देने लगा, जैसे कोई बहुत ग़लत चीज़ दे रहा हो.
-
1:12 - 1:16क्यों भई? मैंने कन्डोम तो नहीं मांगा था!
-
1:16 - 1:20मैंने एक पैड उठाया. मैं देखना चाहता था कि ये था क्या, और इसके अन्दर क्या है?
-
1:20 - 1:24तो पहली बार, 29 साल की उमर में,
-
1:24 - 1:26मैंने एक सैनेटरी पैड को अपने हाथ में लिया.
-
1:26 - 1:31अब आप बताईए: यहाँ कितने आदमी हैं जिन्होंने सैनेटरी पैड हाथ में लिया है?
-
1:31 - 1:36मुझे पता है, आप में से ऎसा यहाँ कोई नहीं, आखिर ये झमेला भी तो आपका नहीं!
-
1:36 - 1:39फिर मैंने सोचा, हे भगवान,
-
1:39 - 1:43ये रूई से बनी कौड़ियों के दाम की सफेद चीज़ को
-
1:43 - 1:45ये लोग सौ, दो सौ गुना ज़्यादा महँगा बेच रहे हैं!
-
1:45 - 1:50क्यों ना मैं अपनी नई नवेली बीवी के लिए खुद ही सैनेटरी पैड बनाऊँ?
-
1:50 - 1:53तो शुरुवात यहीं से हुई, मगर सैनेटरी पैड बनाने के बाद,
-
1:53 - 1:54मैं उसे परखने कहाँ ले जाता?
-
1:54 - 1:58आखिर मैं उसकी जाँच किसी लैबोरेटरी में नहीं करवा सकता था.
-
1:58 - 2:01मुझे किसी महिला वोलन्टियर की ज़रुरत थी. ऎसी महिला इस पूरे भारत में कहाँ मिलती?
-
2:01 - 2:04ऎसा कोई बैंगलोर में मिलने से तो रहा.
-
2:04 - 2:10तो समस्या का समाधान यही था: बली का एकलौता उपलब्द्ध बकरा, मेरी बीवी.
-
2:10 - 2:14मैंने सैनेटरी पैड बनाकर शान्ती को दे दिया--मेरी पत्नी का नाम शान्ती है.
-
2:14 - 2:16"अपनी आँखे बन्द करो. मैं तुम्हें जो देने जा रहा हूँ,
-
2:16 - 2:17वो ना तो हीरों का हार है,
-
2:17 - 2:19ना हीरे की अंगूठी, ना ही कोई चॉकलेट.
-
2:19 - 2:22मैं तुम्हें रंगीन क़ागज़ में लपेटकर एक सरप्राईज़ देने जा रहा हूँ.
-
2:22 - 2:24अपनी आँखें बन्द करो."
-
2:24 - 2:27मैं उसे ये तोह्फा बड़े प्यार से देना चाहता था.
-
2:27 - 2:30आखिर हमारी अरेन्ज्ड मैरेज थी, लव मैरेज नहीं.
-
2:30 - 2:33(हँसी)
-
2:33 - 2:37फिर एकदिन उसने मुझे सीधे कहा, "मैं इसमें तुम्हारा साथ नहीं दूँगी."
-
2:37 - 2:40मुझे नए उपयोगकर्ता चाहिए थे, तो अब मैंने अपनी बहनों से मदद मांगी.
-
2:40 - 2:43पर ना बहनें, ना बीवी, इस काम में मदद के लिए कोई तैयार नहीं था.
-
2:43 - 2:46इसलिए मुझे हमेशा अपने देश के साधू-संतों से जलन होती है.
-
2:46 - 2:50उनके आस-पास हमेशा महिला स्वेच्छासेवियों की टोली होती है.
-
2:50 - 2:51मुझे एक भी महिला मदद करने को तैयार नहीं?
-
2:51 - 2:59और देखिए, साधू-संतों के काम में महिलाएं बुलाने से पहले ही स्वेच्छा-सेवा के लिए जमा हो जाती हैं.
-
2:59 - 3:03फिर मैने मेडिकल कॉलेज की लड़कियों से मदद लेने की सोची.
-
3:03 - 3:05मगर उन्होने भी मना कर दिया. आखिरकार, मैने तय किया,
-
3:05 - 3:08कि मैं खुद ही सैनेटरी पैड पहनकर देखूँगा.
-
3:08 - 3:10मेरा काम चाँद में क़दम रखने वाले पहले इन्सान
-
3:10 - 3:14आर्मस्ट्रांग, या पहले एवरेस्ट चढ़ने वाले
-
3:14 - 3:17तेन्ज़िंग और हिलरी के ही जैसा है
-
3:17 - 3:19मुरुगनाथन- दुनिया में सैनेटरी पैड पहनने वाला
-
3:19 - 3:23पहला आदमी!
-
3:23 - 3:27तो मैने सैनेटरी पैद पहना. एक फुटबॉल बॉटल में जानवर का खून भर कर
-
3:27 - 3:29यहाँ बाँध दिया,.इससे निकलकर एक ट्युब मेरी चड्डी के अंदर जाती थी.
-
3:29 - 3:32चलते समय, साईकल चलाते समय, मैं उसको दबाता था,
-
3:32 - 3:34जिससे ट्युब से ख़ून निकलता था.
-
3:34 - 3:38इस अनुभव के बाद मैं किसी भी महिला के आगे
-
3:38 - 3:41ससम्मान सर झुकाना चाहूँगा. वो पाँच दिन मैं ज़िन्दगी भर नहीं भूल सकता--
-
3:41 - 3:44वो तकलीफ भरे दिन, वो बेचैनी और गीलापन!
-
3:44 - 3:49हे भगवान, सोच पाना भी मुश्किल है!
-
3:49 - 3:54पर अब समस्या थी, एक कम्पनी रूई से
-
3:54 - 3:57नैपकिन बना रही थी. उनका पैड सही काम कर रही थी.
-
3:57 - 4:00पर मैं भी तो अच्छे रूई से ही सैनेटरी पैड बना रहा था. मगर मेरे बनाए पैड काम नहीं कर रहे थे.
-
4:00 - 4:03बार बार नाकामी से परेशान होकर मैं ये सब छोड़ देना चाहता था.
-
4:03 - 4:05पहले आपको पास पैसे होने चाहिए.
-
4:05 - 4:08पर परेशानी सिर्फ पैसे के ही नहीं थी. चूँकि मेरा काम सैनेटरी नैपकिन जैसी चीज़ को लेकर था,
-
4:08 - 4:12मुझे हर तरह की परेशानी का सामना करना पड़ा,
-
4:12 - 4:14यहाँ तक कि अपनी बीवी से तलाक़ का नोटिस भी.
-
4:14 - 4:17ऎसा क्यों? क्योंकि मैंने मेडिकल कॉलेज की लड़कियों से मदद ली थी.
-
4:17 - 4:20बीवी को लगा मैं इस काम के बहाने
-
4:20 - 4:23मेडिकल कॉलेज की लड़कियों से चक्कर चला रहा था.
-
4:23 - 4:26आखिरकार मुझे पाईन की लकड़ी से बनने वाली
-
4:26 - 4:28विशेष सेलुलोज़ का पता चला, मगर उससे पैड बनाने के लिए
-
4:28 - 4:30करोड़ों की लागत वाली ऎसे प्लान्ट की ज़रूरत थी.
-
4:30 - 4:34रास्ते में फिर रुकावट आ गई.
-
4:34 - 4:38मैंने और् चार साल बिताए अपने खुद की मशीन बनाने के लिए,
-
4:38 - 4:40ऎसी एक साधारण, आसान सी मशीन बनाई मैने.
-
4:40 - 4:43इस मशीन से कोई भी ग्रामीण महिला
-
4:43 - 4:46बड़े मल्टीनैशनलों के प्लान्ट में लगने वाले कच्चे माल से ही
-
4:46 - 4:50घर बैठे विश्व स्तर की नैपकिन बना सकती है.
-
4:50 - 4:53ये मेरी खोज है.
-
4:53 - 4:56इसके बाद, मैने क्या किया,
-
4:56 - 4:59किसी के पास कोई पेटेन्ट या आविष्कार होता है,
-
4:59 - 5:03तो तुरंत वो उससे ये - पैसे- बनाना चाहता है.
-
5:03 - 5:06मैने ऎसा नहीं किया. मैने उसे बिल्कुल ऎसे ही, छोड़ दिया,
-
5:06 - 5:10क्योंकि अगर कोई पैसे के पीछे ही भागता रहे,
-
5:10 - 5:13तो जीवन में कोई सुन्दरता नहीं बचेगी. ज़िन्दगी बड़ी उबाऊ होगी.
-
5:13 - 5:15बहुत से लोग ढेर सारा पैसा बनाते हैं, करोड़ों,
-
5:15 - 5:17अरबों रूपए जमा करते हैं.
-
5:17 - 5:20इस सब के बाद वो आखिर में समाजसेवा करने आते हैं, क्यों?
-
5:20 - 5:23पहले पैसों का ढेर बनाकर फिर समाजसेवा करने आने का क्या मतलब है?
-
5:23 - 5:27क्यों ना पहले दिन से ही समाज का सोचें?
-
5:27 - 5:30इसी लिए, मैं ये मशीन केवल ग्रामीण भारत में,
-
5:30 - 5:34ग्रामीण महिलाओं को दे रहा हूँ, क्योंकि भारत में,
-
5:34 - 5:36आपको जानकर आश्चर्य होगा, केवल दो प्रतिशत महिलाएं
-
5:36 - 5:40सैनेटरी नैपकिन इस्तेमाल करती हैं. बाकी सभी, फटे-पुराने, पोछे-नुमा कपड़े,
-
5:40 - 5:44पत्ते, भूसा, लकड़ी का बुरादा - इसी सब से काम चलाती हैं- सैनेटरी नैपकिन नहीं.
-
5:44 - 5:46इस 21वी सदी में भी ये हाल है. इसी वजह से मैने
-
5:46 - 5:50ये मशीन भारत भर की गरीब महिलाओं को देने की सोची है.
-
5:50 - 5:53अब तक 23 राज्यों और 6 और देशों में
-
5:53 - 5:56630 मशीन लग चुके हैं.
-
5:56 - 6:00बड़े बड़े मल्टीनेशनल और विदेशी कम्पनियों के उत्पादों से जूझकर
-
6:00 - 6:05जमकर टिके रहने का ये मेरा सातवाँ साल है - इस बात से सभी एम बी ए दंग हैं.
-
6:05 - 6:08स्कूल की पढ़ाई भी पूरी ना कर पाने वाला कोईम्बटूर का एक साधारण आदमी, कैसे अब तक मार्केट में टिका है?
-
6:08 - 6:15इसी बात ने मुझे सभी आई आई एम में विज़िटिंग प्रोफेसर और गेस्ट लेक्चरर बना दिया.
-
6:15 - 6:20(तालियाँ)
-
6:20 - 6:23विडियो वन चलाईए.
-
6:23 - 6:28(विडियो) अरूणाचलम मुरुगनाथन: अपने बीवी के हाथ में उसे देखकर मैने पूछा, "तुम इस गन्दे कपड़े का इस्तेमाल क्यों कर रही हो?"
-
6:28 - 6:32उसने तुरंत जवाब दिया, "मुझे नैपकिन के बारे में पता है, मगर अगर मैं
-
6:32 - 6:36उनका इस्तेमाल करने लगी, तो हमें हमारे दूध का ख़र्च काटना पड़ेगा."
-
6:36 - 6:40क्यों ना मैं कम क़ीमत का नैपकिन बनाऊँ?
-
6:40 - 6:43तो मैने अब तय किया है कि इस नए मशीन को
-
6:43 - 6:45केवल महिला स्वंय सहायता समूह (एस एच जी) को हिइ बेचूँगा.
-
6:50 - 6:53यही मेरी सोच है.
-
6:54 - 6:59पहले आप को नैपकिन बनाने के लिए करोड़ों निवेश करना पड़ता था,
-
6:59 - 7:03मशीन और बाकी ताम-झाम में. अब, कोई भ्री ग्रामीण महिला आसानी से इसे बना सकती है.
-
7:03 - 7:05वो लोग पूजा कर रहीं हैं.
-
7:05 - 7:22(विडियो):(गीत)
-
7:22 - 7:26ज़रा सोचिए, हारवर्ड, आक्सफोर्ड से पढ़कर आए
-
7:26 - 7:28दिग्गजों से मुक़ाबला आसान नहीं.
-
7:28 - 7:31मगर मैने ग्रामीण महीलाओं को इन मल्टीनेशनल से टक्कर लेने की ताक़त दी.
-
7:31 - 7:32मैं सात साल से अपने पैर जमाए खड़ा हूँ.
-
7:32 - 7:35अबतक 600 मशीनें लग चुकि हैं. क्या है मेरा मक़सद ?
-
7:35 - 7:37मैं भारत को अपने जीते जी
-
7:37 - 7:41100%-सैनेटरी-नैपकिन-इस्तेमाल करने वाला देश बनाना चाहता हूँ.
-
7:41 - 7:43इस काम से मैं कम से कम दस लाख ग्रामीणों
-
7:43 - 7:45को रोज़गार दिलाने जा रहा हूँ.
-
7:45 - 7:48यही वजह है कि मैं पैसे के पीछे नहीं भाग रहा.
-
7:48 - 7:50मैं एक महत्वपूर्ण काम कर रहा हूँ.
-
7:50 - 7:54अगर आप किसी लड़की का पीछा करें, वो आपको भाव नहीं देगी.
-
7:54 - 7:56मगर अगर आप अपना काम ढंग से करें, लड़की आपके पीछे-पीछे आएगी.
-
7:56 - 7:59बिल्कुल वैसे ही, मैने कभी महालक्ष्मी (पैसे) का पीछा नहीं किया.
-
7:59 - 8:04महालक्ष्मी ही मेरे पीछे आ रही हैं, और मैं उन्हें अपने पीछे के पॉकेट में रखता हूँ.
-
8:04 - 8:08सामने के पॉकेट में नहीं, मैं पैसे पीछे के पॉकेट में रखने वाला इन्सान हूँ.
-
8:08 - 8:12बस, मुझे इतना ही कहना था. स्कूली शिक्षा पूरी ना करने वाले एक आदमी ने
-
8:12 - 8:14समाज में सैनेटरी पैड ना इस्तेमाल कर पाने की समस्या को समझा.
-
8:14 - 8:16मैने समस्या का समाधान बनाया. मैं बहुत खुश हूँ.
-
8:16 - 8:19मैं अपने इस प्रयास को कोई कॉरपोरेट शक्ल नहीं देना चाहता.
-
8:19 - 8:23मैं इसे एक देसी सैनेटरी पैड आन्दोलन बनाना चाहता हूं, जो आगे
-
8:23 - 8:26चलकर विश्व भर में फैल जाए. इसलिए मैंने इसकी सारी जानकारी
-
8:26 - 8:29ओपेन सॉफ्टवेयर की तरह साधारण लोगों की पहुँच में रखी है.
-
8:29 - 8:34आज 110 देश इससे जुड़ रहे हैं. क्या कहते हैं?
-
8:34 - 8:38मैं समझता हूँ लोग तीन तरह के होते हैं:
-
8:38 - 8:45अनपढ़, कम पढ़े लिखे, और बहुत पढ़े लिखे.
-
8:45 - 8:48एक कम पढ़े लिखे आदमी ने ये कर दिखाया. आप सब
-
8:48 - 8:50बहुत पढ़े लिखे लोग, आप समाज के लिए क्या कर रहे हैं?
-
8:50 - 8:54बहुत धन्यवाद आप सभी का. चलता हूँ.
-
8:54 - 9:05(तालियाँ)
- Title:
- अरुणाचलम मुरुगनाथम: कैसे मैने सैनेटरी नैपकिन पर आन्दोलन शुरु किया!
- Speaker:
- Arunachalam Muruganantham
- Description:
-
परिवार के बाकी ख़र्चे और सैनेटरी नैपकिन ख़रीदने में से एक चुनने की अपनी पत्नी की मजबूरी को जान कर अरुणाचलम मुरुगनाथनम ने इस समस्या का समाधान ढूँढने की ठानी. उनकी शोध बहुत ही व्यक्तिगत बन गई--और उन्होने एक मज़बूत बिज़नेस मॉडेल बना डाला. (इसे TED ग्लोबल टैलेन्ट सर्च के तहत बैंगलुरु में फिल्माया गया.)
- Video Language:
- English
- Team:
- closed TED
- Project:
- TEDTalks
- Duration:
- 09:21
Gaurav Gupta approved Hindi subtitles for How I started a sanitary napkin revolution! | ||
Gaurav Gupta edited Hindi subtitles for How I started a sanitary napkin revolution! | ||
Rahul Date accepted Hindi subtitles for How I started a sanitary napkin revolution! | ||
Rahul Date commented on Hindi subtitles for How I started a sanitary napkin revolution! | ||
Rahul Date edited Hindi subtitles for How I started a sanitary napkin revolution! | ||
Arpita Bhattacharjee edited Hindi subtitles for How I started a sanitary napkin revolution! | ||
Arpita Bhattacharjee added a translation |