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Empty Yourself! Creating Space Inside | Thich Nhat Hanh (EN subtitles)

  • 0:03 - 0:06
    जब हम कुछ सुनते हैं,
  • 0:08 - 0:12
    तो हमें गहराई से सुनने की विधि
  • 0:12 - 0:14
    अपनानी चाहिए।
  • 0:18 - 0:24
    इस तरह सुनिए कि जो दूसरे कहते हैं,
    वह गहराई तक जा सके।
  • 0:24 - 0:28
    क्योंकि हममें से बहुत कम लोग ही
  • 0:28 - 0:32
    दूसरों की बातों को ग्रहण कर पाते हैं।
  • 0:33 - 0:37
    क्योंकि हमारे पूर्वकल्पित मत रहे हैं,
  • 0:38 - 0:42
    हम व्यस्त रहे हैं निश्चित विचारों के साथ।
  • 0:43 - 0:50
    उन मतों, उन विचारों,
    उन दृष्टियों, उन धारणाओं,
  • 0:50 - 0:53
    ने हमें व्यस्त रखा है।
  • 0:53 - 0:59
    इसी कारण से, सुनते समय, हम आम तौर
    पर उन मतों और विचारों को सामने लाते हैं
  • 0:59 - 1:04
    ताकि उनकी तुलना
    हम जो सुन रहे हैं उससे कर सकें।
  • 1:05 - 1:09
    हम मतों से भरे हुए हैं।
    हम विचारों से भरे हुए हैं।
  • 1:09 - 1:14
    और सुनते समय,
    हम जो सुन रहे हैं उसकी तुलना
  • 1:14 - 1:18
    करने के लिए उन मतों,
    उन विचारों को सामने लाते हैं।
  • 1:22 - 1:26
    लगभग हर कोई ऐसा करता है।
  • 1:27 - 1:31
    और जब हम देखते हैं कि दूसरे
  • 1:31 - 1:34
    जो कहते हैं वह हमारे मतों या विचारों
  • 1:34 - 1:36
    से मेल नहीं खाता है, तो हम उन्हें
  • 1:36 - 1:37
    असत्य मानकर नज़रअंदाज
  • 1:37 - 1:40
    कर देते हैं।
  • 1:44 - 1:48
    लगभग हर कोई इसी तरह सुनता है।
  • 1:48 - 1:51
    और यही कारण है कि
  • 1:54 - 1:58
    हम जो सुनते हैं,
    वह हमारे मन में नहीं उतर पाता।
  • 2:00 - 2:04
    "Đế thính", "गैर-निर्णयात्मक श्रवण",
    का अर्थ है तुलना करने
  • 2:04 - 2:09
    के लिए अपने मतों और
    विचारों को सामने लाए बिना सुनना।
  • 2:10 - 2:12
    क्योंकि वे मत और वे विचार
  • 2:12 - 2:15
    एक दीवार की तरह हैं
  • 2:15 - 2:17
    जो एक गेंद को
  • 2:18 - 2:20
    उसके रास्ते में ही रोक देती है।
  • 2:20 - 2:26
    जैसे लोग दीवार पर गेंद फेंकते हैं
    और दीवार गेंद को वापस भेज देती है।
  • 2:26 - 2:30
    वो दीवार गेंद को ग्रहण करने में असमर्थ है।
  • 2:36 - 2:40
    तो, हमारे अंदर, एक दीवार है।
  • 2:40 - 2:43
    मतों की एक दीवार।
    विचारों की एक दीवार।
  • 2:43 - 2:48
    वह हमेशा वहीं खड़ी रहती है।
    और जब भी...
  • 2:48 - 2:51
    जब भी कुछ ऐसा है
    जो दूसरे हमें बताना चाहते हैं,
  • 2:51 - 2:55
    हमने अपनी रक्षा के
    लिए वह दीवार खड़ी कर देते हैं।
  • 2:55 - 3:00
    और इसी कारण से,
    हम दूसरों की बातों को ग्रहण नहीं कर पाते।
  • 3:01 - 3:04
    यदि दूसरे जो कहते हैं वह हमारे मतों
  • 3:04 - 3:08
    या हमारे विचारों से मेल खाता है,
    हम कहते हैं, "आप सही हैं!"
  • 3:08 - 3:10
    "आप सही हैं!"
  • 3:12 - 3:16
    उस वाक्य का अर्थ है "मैं भी सही हूँ!"
  • 3:17 - 3:19
    "आप सही हैं" का अर्थ है "मैं भी सही हूँ।"
  • 3:19 - 3:22
    मैं और आप दोनों सही हैं।
  • 3:22 - 3:26
    लेकिन तथ्य यह है कि
    दोनों ही पूरी तरह गलत हो सकते हैं।
  • 3:27 - 3:32
    और यदि दूसरे जो कहते हैं वह हमारे
    मतों और विचारों से मेल नहीं खाता है,
  • 3:32 - 3:37
    हम तुरंत उन्हें यह कहते हुए खारिज
    कर देंगे, "आप सही नहीं हैं। आप ग़लत हैं!"
  • 3:38 - 3:42
    क्योंकि हमने पहले ही एक दीवार खड़ी कर
    दी है, हमने पहले से ही एक तुलना कर ली है।
  • 3:43 - 3:47
    और इसलिए, दोनों ही मामलों में,
  • 3:47 - 3:50
    हम कुछ भी ग्रहण नहीं कर पाते।
  • 3:50 - 3:53
    चाहे हम कहें, "आप सही हैं!"
    या हम कहते हैं, "आप ग़लत हैं!"
  • 3:53 - 3:58
    दोनों ही मामलों में, हम दूसरे
    व्यक्ति से कुछ भी ग्रहण नहीं करते।
  • 4:01 - 4:03
    हममें से लगभग सभी लोग इसी तरह सुनते हैं।
  • 4:03 - 4:05
    और इसलिए, ऐसे सुनना व्यर्थ जाता है।
  • 4:05 - 4:09
    सारी कही गयी बातें व्यर्थ जाती हैं।
  • 4:15 - 4:20
    "गैर-निर्णयात्मक श्रवण" का
    अर्थ है दूसरे व्यक्ति को मौका देना,
  • 4:20 - 4:25
    हम जो सुनते हैं उसे
    अपने अंदर उतरने का मौका देना।
  • 4:25 - 4:28
    और इसी कारण से,
    हमारे दिल और दिमाग में एक जगह बनाएं —
  • 4:28 - 4:33
    faire le vide (फ्रान्सीसी भाषा)
  • 4:33 - 4:37
    अपने अंदर हम एक जगह बनाएं
  • 4:37 - 4:41
    जहां न तो कोई मत हों और न ही विचार,
  • 4:41 - 4:45
    ताकि दूसरे जो कहते हैं वह अंदर आ सके।
  • 4:45 - 4:48
    यह वैसा ही है जैसे जब कोई
    दीवार हटा देता है तो अचानक जगह बन जाती है।
  • 4:48 - 4:50
    और गेंद
  • 4:50 - 4:52
    पार हो सकती है।
  • 4:58 - 5:01
    जब हम सूत्र सुनने
    बैठते हैं तो वैसा ही होता है।
  • 5:01 - 5:07
    हमें अपनी मतों और विचारों को
  • 5:08 - 5:09
    एक विराम लेने,
  • 5:09 - 5:11
    एक अवकाश लेने
  • 5:15 - 5:19
    की अनुमति देनी चाहिए, ताकि
    हम सूत्रों के सही अर्थों को ग्रहण कर सकें।
  • 5:19 - 5:21
    अतः सूत्रों को सुनना एक कला है।
  • 5:21 - 5:26
    और जब दूसरे लोग बोलते हैं
    तो उन्हें सुनना भी एक कला है।
  • 5:32 - 5:35
    जब आप सुनें तो
  • 5:35 - 5:37
    अपने आप को खाली कर लें।
  • 5:37 - 5:40
    Faire le vide.
    (फ्रान्सीसी भाषा)
  • 5:42 - 5:44
    यह गहराई से सुनने की कला है।
  • 5:44 - 5:50
    क्योंकि हममें से हर कोई
    मतों और विचारों से भरा हुआ है।
  • 5:51 - 5:56
    और शायद वे मत और वे विचार ग़लतियों
  • 5:56 - 5:59
    और पूर्वाग्रहों
    या रूढ़ियों से भरे हुए हैं।
  • 6:04 - 6:09
    जब हमारे शिक्षक हमें कुछ सिखाते हैं,
  • 6:13 - 6:16
    या जब हमारे बड़े भाई के पास
    हमारे साथ साझा करने के लिए कुछ होता है,
  • 6:17 - 6:21
    या जब हमारी बड़ी बहन के पास
    हमारे साथ साझा करने के लिए कुछ होता है,
  • 6:21 - 6:25
    तो हमें उसे अपने अंदर
    समाहित होने देना चाहिए।
  • 6:25 - 6:27
    लेकिन अगर हम
  • 6:27 - 6:29
    तुरंत प्रतिक्रिया करते हैं,
  • 6:29 - 6:34
    यानी, हम तुलना करने के लिए अपनी
    धारणाओं और पिछले अनुभव को सामने लाते हैं,
  • 6:34 - 6:38
    तो इसका मतलब है कि...
  • 6:39 - 6:41
    हम दूसरों द्वारा
  • 6:41 - 6:43
    हमारे साथ साझा की जा
    रही बातों को एकाएक ही खारिज कर रहे हैं।
  • 6:43 - 6:46
    संभवतः वे करुणावश
  • 6:46 - 6:50
    हमें यह कह रहे हैं।
  • 6:54 - 6:59
    अगर उनमें हमारे लिए करुणा नही है, तो उन्हें
    कभी हमसे यह कहने का कष्ट नहीं उठाना पड़ेगा
  • 6:59 - 7:02
    लेकिन क्योंकि हम पहले
    से ही अपने मतों में व्यस्त हैं,
  • 7:02 - 7:08
    हम अपने मत सामने लाते हैं
    और दूसरे के मत को दूर कर देते हैं।
  • 7:08 - 7:10
    और यह...
  • 7:10 - 7:12
    एक कठोर बर्खास्तगी है।
  • 7:12 - 7:14
    अस्वीकृति।
  • 7:14 - 7:17
    यह...
  • 7:18 - 7:21
    हमें बहुत
    नुकसानदायक परिस्थिति में डालता है।
  • 7:25 - 7:27
    बहुत बड़ा नुकसान।
  • 7:27 - 7:29
    और दूसरा व्यक्ति एक शिक्षक के रूप में,
  • 7:29 - 7:33
    एक बड़े भाई के रूप में,
    एक बड़ी बहन के रूप में,
  • 7:33 - 7:36
    या हमारे सह-अभ्यासी के
    रूप में अपनी भूमिका को पूरा करने में
  • 7:36 - 7:37
    सक्षम नहीं हो पाता है।
  • 7:37 - 7:40
    क्योंकि वे जो भी कहेंगे,
    हम हमेशा उसे अस्वीकृत कर देंगे।
  • 7:40 - 7:42
    हमें लगता है कि हम
    सब पहले से ही जानते हैं।
  • 7:42 - 7:44
    इसके बारे में हमारा
    अपना मत पहले से ही है।
  • 7:44 - 7:47
    हम पहले से ही सही हैं।
  • 7:52 - 7:56
    तो अपने अंदर जगह
    बनाना बहुत बड़ी कला है।
  • 7:56 - 7:59
    एम्प्टी योरसेल्फ (अंग्रेजी)
  • 8:01 - 8:04
    फेयर ले वीद (फ़्रांसिसी)
  • 8:04 - 8:06
    वह है जिसका हमें अभ्यास करना चाहिए।
  • 8:06 - 8:09
    जब दूसरा व्यक्ति बोलता
    है तो हमें सुनना आना चाहिए।
  • 8:09 - 8:12
    यह "दूसरा व्यक्ति" हमारे पिता,
  • 8:12 - 8:15
    हमारे पति या पुरुष साथी,
  • 8:16 - 8:19
    हमारी पत्नी या महिला साथी,
  • 8:19 - 8:21
    हमारी बेटी या बेटा,
  • 8:21 - 8:23
    हमारे शिक्षक या गुरु,
  • 8:23 - 8:26
    हमारे छोटे भाई या बहन हो सकते हैं।
  • 8:26 - 8:30
    और जब दूसरा व्यक्ति बोलता है तो
    हमें बहुत सम्मानजनक रवैया रखना चाहिए।
  • 8:30 - 8:35
    हमें बनाना चाहिए,
    हमें सृजन करना चाहिए, अपने अंदर एक जगह का
  • 8:39 - 8:43
    ताकि वे जो बात कहते हैं
    उसे अंदर समाने का मौका मिले।
  • 8:43 - 8:46
    गीतकार Phạm Duy का एक
    बहुत ही मज़ेदार गाना है। वह कहते है,
  • 8:46 - 8:51
    "प्रिय, तुम प्यार से भरने
    के लिए एक खाली जगह हो।
  • 8:54 - 8:57
    मैं प्यार को फिर से भरने
    के लिए एक खाली स्थल हूं।"
  • 8:57 - 9:00
    क्योंकि अगर ना ही अंदर "रिक्त स्थान"
    हो और न ही "खाली स्थल" हो,
  • 9:00 - 9:04
    यदि हम पूरी तरह से व्याप्त हैं, तो किसी
    अन्य चीज़ का प्रवेश करना कैसे संभव है?
  • 9:04 - 9:09
    एक चाय के कप की तरह जो पहले से ही भरा
    हुआ है, हम उसमें और चाय कैसे डाल सकते हैं?
  • 9:09 - 9:10
    इसीलिए,
  • 9:10 - 9:12
    चाय के कप में जगह होनी चाहिए।
  • 9:12 - 9:16
    हमारे साथ भी ऐसा ही है - जब हम सुनते हैं,
  • 9:16 - 9:20
    जब हम अपना दैनिक कार्य करते हैं,
    तो हमें अपने अंदर एक स्थान बनाना चाहिए।
  • 9:28 - 9:30
    इसलिए, हम सभी को...
  • 9:30 - 9:33
    सीखना चाहिए, तथा इस
    दृष्टिकोण को प्राप्त करने,
  • 9:33 - 9:37
    इस पद्धति का अभ्यास करने में सफल होने
    के लिए स्वयं को प्रशिक्षित करना चाहिए।
  • 9:37 - 9:40
    जब हम बैठकर सुनते हैं,
  • 9:40 - 9:45
    तो हमें गहराई से
    सुनने में सक्षम होना चाहिए।
  • 9:50 - 9:54
    तुरंत प्रतिक्रिया देने
  • 9:54 - 9:55
    के लिए
  • 9:55 - 9:57
    अपनी राय या अपने विचार सामने न लाएं।
  • 9:57 - 10:00
    यदि ऐसा है, तो हम
  • 10:00 - 10:04
    दूसरे व्यक्ति की दया और करुणा के कारण
    कही जा रही बात को अस्वीकार कर देते हैं।
  • 10:04 - 10:06
    चुप रहें...
  • 10:06 - 10:12
    चुप रहें और जगह बनाएं, ताकि दूसरा
    व्यक्ति जो कह रहा है वह समझ में आ सके।
  • 10:12 - 10:17
    भले ही हमें दृढ़ता से लगे
    कि वे जो कह रहे हैं वह सही नहीं है।
  • 10:18 - 10:19
    चूंकि हमारी राय पहले ही बन चुकी है,
  • 10:19 - 10:25
    इसलिए हमें लगता है कि
    जो वे कह रहे हैं वह सही नहीं है।
  • 10:32 - 10:37
    zen मठ में यह विधि अक्सर लागू की जाती है।
  • 10:38 - 10:43
    खासकर शिक्षकों और
    छात्रों के बीच प्रश्नोत्तर सत्र में।
  • 10:45 - 10:47
    मान लीजिए, एक शिष्य था
  • 10:47 - 10:51
    जो बहुत...
  • 10:51 - 10:55
    जो अभ्यास में अपनी
    सीख के बारे में काफी आत्मसंतुष्ट था,
  • 10:55 - 10:58
    और यह विश्वास करता था
    कि हर चीज में बुद्ध प्रकृति है,
  • 10:58 - 11:00
    बुद्ध की प्रकृति है।
  • 11:00 - 11:02
    अतः एक व्यक्ति में बुद्ध प्रकृति है।
  • 11:02 - 11:04
    एक पर्वत में भी बुद्ध प्रकृति है।
  • 11:04 - 11:07
    पक्षी में भी बुद्ध प्रकृति है।
  • 11:07 - 11:10
    मछली में भी बुद्ध प्रकृति है।
  • 11:11 - 11:16
    तो एक दिन, वह अपने शिक्षक के पास गया,
    पूछते हुए, "प्रिय आदरणीय गुरूजी,
  • 11:16 - 11:20
    क्या कुत्ते में बुद्ध प्रकृति होती है?
  • 11:22 - 11:27
    उस शिष्य को पूरा विश्वास
    था कि उत्तर "हाँ" ही होगा।
  • 11:28 - 11:32
    पता चला, उसके शिक्षक ने कहा,
    "यह कैसे संभव हो सकता है?
  • 11:32 - 11:35
    एक कुत्ते में बुद्ध
    प्रकृति कैसे हो सकती है?
  • 11:37 - 11:40
    वह क्रोध से बहुत आगबबूला था।
  • 11:40 - 11:42
    लेकिन क्योंकि यह बात
    उसके शिक्षक ने कही थी,
  • 11:42 - 11:46
    इसलिए उसने बाहर से तो इसे स्वीकार कर लिया,
    लेकिन अंदर से वह वास्तव में बहुत नाराज है।
  • 11:46 - 11:49
    यदि यह बात किसी और ने कही
    होती तो उसकी शामत आ जाती।
  • 11:49 - 11:52
    उन्होंने यह सूत्र, वह सूत्र,
    या इस zen गुरु, उस zen गुरु
  • 11:52 - 11:57
    को उद्धृत किया होता, यह सिद्ध करने के
    लिए कि कुत्ते में बुद्ध प्रकृति होती है।
  • 11:57 - 12:00
    लेकिन चूँकि शिक्षक को
    पता था कि वह धारणाओं...
  • 12:00 - 12:04
    और सिद्धांतों में फँसा हुआ है, और
    वास्तव में अभ्यास में नहीं उतर रहा है,
  • 12:04 - 12:08
    इसलिए शिक्षक ने उसे शर्मिंदा
    करने के लिए कहा, "बुद्ध प्रकृति नहीं है,"
  • 12:08 - 12:09
    और...
  • 12:09 - 12:14
    उसे अपने सीखने और अभ्यास के तरीके पर
    पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित करने के लिए
  • 12:15 - 12:18
    जब हम हृदय सूत्र
    (प्रज्ञापारमिताहृदयसूत्र) पढ़ते हैं,
  • 12:18 - 12:21
    तो अवलोकितेश्वर
    बोधिसत्व को कहते हुए सुनते हैं,
  • 12:21 - 12:24
    "आँख, कान, नाक,
    जीभ, शरीर या चित्त नहीं हैं"
  • 12:24 - 12:27
    तो हम बस उनके आगे झुक जाते हैं।
  • 12:27 - 12:30
    लेकिन अंदर ही अंदर हम
    पूछते हैं, "आँखें क्यों नहीं?"
  • 12:30 - 12:33
    अगर आंखें ही न हों तो मैं
    अपने बड़े भाई को कैसे देख पाता हूँ?
  • 12:33 - 12:34
    नाक क्यों नहीं?
  • 12:34 - 12:39
    अगर नाक ही न हो, तो आज
    सुबह मैं गंध कैसे सूंघ सकता हूं...
  • 12:41 - 12:43
    शहद?
  • 12:44 - 12:49
    जीभ नहीं है? तो आज सुबह ही मैं कैसे जान
    सकता हूँ कि मेरी मूसली बहुत स्वादिष्ट है?
  • 12:50 - 12:55
    लेकिन अवलोकितेश्वर ने कहा, "कोई आंख नहीं
    है, कोई नाक नहीं है, कोई जीभ नहीं है, आदि"
  • 12:55 - 12:59
    तो अंदर ही अंदर हमारी एक राय होती है।
  • 12:59 - 13:03
    और जब कोई व्यक्ति हमारी
    राय से भिन्न राय व्यक्त करता है,
  • 13:03 - 13:06
    तो हम सोचते हैं कि यह
    किसी तरह सही नहीं है।
  • 13:06 - 13:09
    लेकिन यहाँ, चूँकि अवलोकितेश्वर
    की विश्वसनीयता सर्वथा महान है,
  • 13:09 - 13:11
    इसलिए हम उनसे झगड़ा
    करने का साहस नहीं कर पाते हैं।
  • 13:11 - 13:15
    लेकिन यदि यह बात कोई
    छोटा भाई या बहन कहता है,
  • 13:15 - 13:18
    तो हम निश्चित रूप से
    बात को यहीं नहीं छोड़ेंगे।
  • 13:18 - 13:21
    "न आँखें, न कान, न नाक, न जीभ, न प्रबोधन।
    न दुर्भावना, न दुर्भावना के कारण,
  • 13:21 - 13:26
    न दुर्भावना का अंत,
    न ही मार्ग।" यही कहा गया है।
  • 13:26 - 13:31
    इसलिए, जब हम कुछ सुनते हैं,
  • 13:33 - 13:37
    तो हमें उस चीज़ को समझने का
  • 13:37 - 13:38
    मौका देना चाहिए,
  • 13:38 - 13:42
    खुद को उसे समझने का मौका देना चाहिए।
  • 13:47 - 13:51
    एक दिन, Sư Bà (आदरणीय मठवासिनी)
    Đức Viên ने कुछ मठवासिनियों से कहा,
  • 13:51 - 13:57
    "आप मठवासिनियों की एक आदत होती है।
    जब कोई कुछ कहता है, तो आप...
  • 13:57 - 13:58
    आप...
  • 13:58 - 14:01
    आप हमेशा एक मेल खाता
    जवाब खोजने में कामयाब हो जाती हैं।"
  • 14:01 - 14:03
    मान लीजिए, जब
    Sư Bà (आदरणीय मठवासिनी) ने कहा,
  • 14:03 - 14:08
    "आज तुमने जो चावल पकाया है,
    वह इतना गीला कैसे है, प्रिये?"
  • 14:08 - 14:10
    और एक मठवासिनी ने तुरंत उत्तर दिया,
  • 14:10 - 14:14
    "प्रिय आदरणीय Sư Bà (आदरणीय मठवासिनी),
    क्योंकि मैंने इसमें ज़्यादा पानी डाल दिया"
  • 14:14 - 14:17
    आप बस कहने के लिए
    कुछ न कुछ ढूंढ ही लेते हैं।
  • 14:17 - 14:22
    हर कोई जानता है कि चावल में
    अधिक पानी डालने से वह गीला हो जाता है।
  • 14:22 - 14:23
    लेकिन यह एक आदत है।
  • 14:23 - 14:26
    अपने बचाव के लिए तुरंत
  • 14:26 - 14:29
    कुछ न कुछ ढूंढने की आदत।
  • 14:31 - 14:35
    यह 100% हमारी गलती है, लेकिन फिर
    भी हम अपना बचाव करने की कोशिश करते हैं।
  • 14:35 - 14:37
    और फिर भी,
  • 14:37 - 14:39
    हमें यह दृढ़ विश्वास है
    कि हमारी कोई गलती नहीं है,
  • 14:39 - 14:42
    हमारे पास बहुत अनुभव है,
  • 14:42 - 14:43
    हमारे पास बहुत विचार हैं,
  • 14:43 - 14:47
    हमारे पास बहुत से मत हैं
    जो हमने पुस्तकों से प्राप्त किये हैं।
  • 14:47 - 14:49
    हमेशा जवाब देने के लिए...
  • 14:49 - 14:52
    तैयार.
  • 14:56 - 14:59
    इसी कारण से,
    अच्छे शिष्टाचार प्रशिक्षण में,
  • 15:01 - 15:03
    हमने सीखा है कि
  • 15:03 - 15:07
    जब हमारे शिक्षक हमें कुछ सिखाते हैं,
  • 15:07 - 15:11
    तो हमें अपने हाथ जोड़ने चाहिए,
    चुप रहना चाहिए, और उसे ग्रहण करना चाहिए।
  • 15:11 - 15:18
    तब भी जब हमारे शिक्षक की
    बातें हमारी धारणाओं से मेल नहीं खातीं।
  • 15:19 - 15:21
    यह पुराने दिनों में,
  • 15:21 - 15:24
    एक नौसिखिए मठवासी के
    रूप में, मैंने इसे दिल से सीखा है।
  • 15:24 - 15:27
    इस समय हम शायद यह न
    सोचें कि हमारा शिक्षक सही है।
  • 15:27 - 15:30
    लेकिन तीन या चार दिन में,
    हमें एहसास हो सकता है,
  • 15:30 - 15:34
    "पता चला कि शिक्षक
    ने जो कहा था, उसमें सच्चाई है।"
  • 15:34 - 15:36
    कभी-कभी यह दो या तीन दिन में नहीं होता।
  • 15:36 - 15:41
    कभी-कभी, हमें अपने शिक्षक की सही बात का
    एहसास होने में दो या तीन साल लग जाते हैं।
  • 15:42 - 15:45
    यदि हम अपने विचारों और धारणाओं
  • 15:45 - 15:48
    का उपयोग अपने शिक्षक
    की कही बातों को काटने में करते हैं,
  • 15:48 - 15:49
    कैसे...
  • 15:49 - 15:52
    तो कैसे काम चलेगा?
  • 15:52 - 15:55
    हमें अपने शिक्षक की जरूरत नहीं है।
  • 15:55 - 15:57
    हमें संघ की आवश्यकता नहीं है।
  • 15:57 - 15:59
    शिक्षक और संघ हमारी
    शक्तियों और कमजोरियों
  • 15:59 - 16:04
    पर प्रकाश डालने तथा हमारा
    मार्गदर्शन करने के लिए मौजूद हैं।
  • 16:04 - 16:07
    लेकिन यदि हमें
    अपनी बुद्धि पर इतना भरोसा है,
  • 16:07 - 16:10
    यदि हमें अपनी धारणाओं पर इतना यकीन है,
  • 16:10 - 16:14
    तो फिर हमें किसी शिक्षक की जरूरत
    नहीं है, हमें किसी संघ की जरूरत नहीं है।
  • 16:14 - 16:18
    और इसी कारण से, हमें अपने
  • 16:18 - 16:21
    अंदर जगह बनाना सीखना चाहिए।
  • 16:21 - 16:25
    हम ऐसा अपनी भलाई के लिए कर रहे हैं।
  • 16:26 - 16:31
    ताकि हम अपने गुरु और संघ
    की करुणा के प्रति कृतघ्न न बनें।
  • 16:31 - 16:34
    अपने आप को पलटकर
    बात न करने के लिए प्रशिक्षित करें।
  • 16:34 - 16:37
    तुरन्त प्रतिक्रिया न दें।
  • 16:38 - 16:45
    अपने व्यक्तिगत विचारों और
    मतों को काबू करने के तरीके खोजें,
  • 16:45 - 16:49
    ताकि हमारे गुरु और संघ
    जो कहते हैं वह हमारे अंदर समा सके।
  • 16:49 - 16:52
    फिर, ध्यान में चलें,
  • 16:52 - 16:57
    या ध्यान में बैठें, या जो भी आपको करने
    की आवश्यकता है वह करें,
  • 17:01 - 17:04
    ताकि जो हमने सुना है,
  • 17:04 - 17:06
    उसमें निहित अंतर्दृष्टि
  • 17:07 - 17:09
    और व्यावहारिक अनुभव
  • 17:09 - 17:12
    को देख सकें।
  • 17:21 - 17:23
    जब हम सूत्रों का अध्ययन
    करते हैं तो यह वही बात है।
  • 17:25 - 17:30
    हमारी भी अपनी राय है, शिक्षाओं
    के बारे में हमारे भी अपने विचार हैं।
  • 17:30 - 17:34
    तुलनात्मक मन से सूत्रों को पढ़ने पर
  • 17:34 - 17:37
    हम सूत्रों के सही
    अर्थों को समझ नहीं पाएंगे।
  • 17:37 - 17:41
    हमें अंदर एक जगह छोड़नी चाहिए
  • 17:41 - 17:44
    ताकि सूत्रों के सच्चे अर्थ
  • 17:44 - 17:47
    सामने आ सकें।
  • 17:51 - 17:54
    कई लोग आपके साथ सूत्र पढ़ते हैं।
  • 17:54 - 17:58
    लेकिन कुछ लोग उन्हें बार-बार पढ़ते रहते
    हैं, लेकिन उनमें कुछ भी नया नहीं देखते।
  • 17:58 - 18:01
    उनमें कुछ भी...
  • 18:01 - 18:02
    कुछ भी...
  • 18:02 - 18:05
    अजीब नहीं देखते।
  • 18:05 - 18:07
    उनमें कुछ भी...
  • 18:07 - 18:08
    विशेष नहीं देखते।
  • 18:08 - 18:10
    लेकिन कुछ लोगों के
    लिए, सूत्रों को पढ़ते समय,
  • 18:10 - 18:13
    ये नई, विचित्र, विशेष चीजें
  • 18:13 - 18:17
    फूलों की तरह खिल उठती हैं,
    क्योंकि वे सूत्रों को स्वतंत्रता
  • 18:17 - 18:20
    की नजर से पढ़ते हैं।
  • 18:20 - 18:24
    स्वतंत्रता के हृदय के साथ.
  • 18:24 - 18:26
    बिना...
  • 18:26 - 18:27
    पिछले अनुभव या
  • 18:27 - 18:32
    पूर्वाग्रहों और रूढ़ियों से भरे बिना।
  • 18:32 - 18:35
    इस कारण, अपने आप को खाली करें।
  • 18:37 - 18:40
    Faire le vide. (फ्रान्सीसी भाषा)
  • 18:40 - 18:42
    खैर,
  • 18:42 - 18:44
    एक जगह बनाएं।
  • 18:44 - 18:47
    यह एक महान कला है।
  • 18:47 - 18:49
    जब हम...
  • 18:49 - 18:54
    जब हम पेट्रोल पंप पर
  • 18:56 - 19:01
    पेट्रोल खरीदने जाते हैं, तो
    हम अक्सर कहते हैं, "पूरा भर दो"
  • 19:02 - 19:06
    लेकिन अब हमें इसके विपरीत कहना
    होगा। हमें कहना चाहिए, "खाली कर दो।"
  • 19:09 - 19:11
    "पूरा भर दो" कहने के बजाय,
  • 19:11 - 19:14
    हम कहते हैं, "खाली कर दो।"
  • 19:14 - 19:18
    यही वह कला है जिसमें निपुणता
    प्राप्त करने के लिए हम काम कर रहे हैं।
  • 19:21 - 19:23
    सुनिश्चित करें कि आप यह कर सकते हैं।
  • 19:23 - 19:28
    केवल बौद्ध धर्म ही इस विषय
    को पूर्ण विस्तार से सिखाता है।
  • 19:28 - 19:30
    क्योंकि हम...
  • 19:30 - 19:31
    एक दूसरे पर युद्ध करते हैं,
  • 19:31 - 19:35
    हम एक दूसरे को मारते हैं, हम एक दूसरे
    से लड़ते हैं, और हम एक दूसरे को पीटते हैं,
  • 19:35 - 19:37
    सब इसी वजह से...
  • 19:37 - 19:40
    यदि हम गहराई से सुनना जानते हैं,
    यदि हम अपने अंदर जगह बनाना जानते हैं,
  • 19:40 - 19:42
    तो हमारी अपने बीच
  • 19:42 - 19:46
    और विभिन्न लोगों के बीच
  • 19:46 - 19:51
    शांति और मानवता का
    निर्माण कर पाने की अच्छी संभावना है।
  • 19:54 - 19:57
    इसे हमें अपने दैनिक
    जीवन में व्यवहार में लाना चाहिए।
  • 19:57 - 20:01
    हमें उचित प्रकार से सुनना
    और बोलना सीखना चाहिए
  • 20:01 - 20:04
    केवल तभी बोलें...
  • 20:04 - 20:08
    जब हमें लगे कि बोलना नितांत आवश्यक है।
  • 20:09 - 20:12
    हर बार जब आप बोलने के
    लिए अपना मुंह खोलें, तो कोई बहुत
  • 20:12 - 20:14
    अच्छा कारण होना चाहिए।
  • 20:14 - 20:16
  • 20:16 - 20:18
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  • 27:27 - 27:30
Title:
Empty Yourself! Creating Space Inside | Thich Nhat Hanh (EN subtitles)
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Video Language:
English
Duration:
27:31

Hindi subtitles

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