-
जब हम कुछ सुनते हैं,
-
तो हमें गहराई से सुनने की विधि
-
अपनानी चाहिए।
-
इस तरह सुनिए कि जो दूसरे कहते हैं,
वह गहराई तक जा सके।
-
क्योंकि हममें से बहुत कम लोग ही
-
दूसरों की बातों को ग्रहण कर पाते हैं।
-
क्योंकि हमारे पूर्वकल्पित मत रहे हैं,
-
हम व्यस्त रहे हैं निश्चित विचारों के साथ।
-
उन मतों, उन विचारों,
उन दृष्टियों, उन धारणाओं,
-
ने हमें व्यस्त रखा है।
-
इसी कारण से, सुनते समय, हम आम तौर
पर उन मतों और विचारों को सामने लाते हैं
-
ताकि उनकी तुलना
हम जो सुन रहे हैं उससे कर सकें।
-
हम मतों से भरे हुए हैं।
हम विचारों से भरे हुए हैं।
-
और सुनते समय,
हम जो सुन रहे हैं उसकी तुलना
-
करने के लिए उन मतों,
उन विचारों को सामने लाते हैं।
-
लगभग हर कोई ऐसा करता है।
-
और जब हम देखते हैं कि दूसरे
-
जो कहते हैं वह हमारे मतों या विचारों
-
से मेल नहीं खाता है, तो हम उन्हें
-
असत्य मानकर नज़रअंदाज
-
कर देते हैं।
-
लगभग हर कोई इसी तरह सुनता है।
-
और यही कारण है कि
-
हम जो सुनते हैं,
वह हमारे मन में नहीं उतर पाता।
-
"Đế thính", "गैर-निर्णयात्मक श्रवण",
का अर्थ है तुलना करने
-
के लिए अपने मतों और
विचारों को सामने लाए बिना सुनना।
-
क्योंकि वे मत और वे विचार
-
एक दीवार की तरह हैं
-
जो एक गेंद को
-
उसके रास्ते में ही रोक देती है।
-
जैसे लोग दीवार पर गेंद फेंकते हैं
और दीवार गेंद को वापस भेज देती है।
-
वो दीवार गेंद को ग्रहण करने में असमर्थ है।
-
तो, हमारे अंदर, एक दीवार है।
-
मतों की एक दीवार।
विचारों की एक दीवार।
-
वह हमेशा वहीं खड़ी रहती है।
और जब भी...
-
जब भी कुछ ऐसा है
जो दूसरे हमें बताना चाहते हैं,
-
हमने अपनी रक्षा के
लिए वह दीवार खड़ी कर देते हैं।
-
और इसी कारण से,
हम दूसरों की बातों को ग्रहण नहीं कर पाते।
-
यदि दूसरे जो कहते हैं वह हमारे मतों
-
या हमारे विचारों से मेल खाता है,
हम कहते हैं, "आप सही हैं!"
-
"आप सही हैं!"
-
उस वाक्य का अर्थ है "मैं भी सही हूँ!"
-
"आप सही हैं" का अर्थ है "मैं भी सही हूँ।"
-
मैं और आप दोनों सही हैं।
-
लेकिन तथ्य यह है कि
दोनों ही पूरी तरह गलत हो सकते हैं।
-
और यदि दूसरे जो कहते हैं वह हमारे
मतों और विचारों से मेल नहीं खाता है,
-
हम तुरंत उन्हें यह कहते हुए खारिज
कर देंगे, "आप सही नहीं हैं। आप ग़लत हैं!"
-
क्योंकि हमने पहले ही एक दीवार खड़ी कर
दी है, हमने पहले से ही एक तुलना कर ली है।
-
और इसलिए, दोनों ही मामलों में,
-
हम कुछ भी ग्रहण नहीं कर पाते।
-
चाहे हम कहें, "आप सही हैं!"
या हम कहते हैं, "आप ग़लत हैं!"
-
दोनों ही मामलों में, हम दूसरे
व्यक्ति से कुछ भी ग्रहण नहीं करते।
-
हममें से लगभग सभी लोग इसी तरह सुनते हैं।
-
और इसलिए, ऐसे सुनना व्यर्थ जाता है।
-
सारी कही गयी बातें व्यर्थ जाती हैं।
-
"गैर-निर्णयात्मक श्रवण" का
अर्थ है दूसरे व्यक्ति को मौका देना,
-
हम जो सुनते हैं उसे
अपने अंदर उतरने का मौका देना।
-
और इसी कारण से,
हमारे दिल और दिमाग में एक जगह बनाएं —
-
faire le vide (फ्रान्सीसी भाषा)
-
अपने अंदर हम एक जगह बनाएं
-
जहां न तो कोई मत हों और न ही विचार,
-
ताकि दूसरे जो कहते हैं वह अंदर आ सके।
-
यह वैसा ही है जैसे जब कोई
दीवार हटा देता है तो अचानक जगह बन जाती है।
-
और गेंद
-
पार हो सकती है।
-
जब हम सूत्र सुनने
बैठते हैं तो वैसा ही होता है।
-
हमें अपनी मतों और विचारों को
-
एक विराम लेने,
-
एक अवकाश लेने
-
की अनुमति देनी चाहिए, ताकि
हम सूत्रों के सही अर्थों को ग्रहण कर सकें।
-
अतः सूत्रों को सुनना एक कला है।
-
और जब दूसरे लोग बोलते हैं
तो उन्हें सुनना भी एक कला है।
-
जब आप सुनें तो
-
अपने आप को खाली कर लें।
-
Faire le vide.
(फ्रान्सीसी भाषा)
-
यह गहराई से सुनने की कला है।
-
क्योंकि हममें से हर कोई
मतों और विचारों से भरा हुआ है।
-
और शायद वे मत और वे विचार ग़लतियों
-
और पूर्वाग्रहों
या रूढ़ियों से भरे हुए हैं।
-
जब हमारे शिक्षक हमें कुछ सिखाते हैं,
-
या जब हमारे बड़े भाई के पास
हमारे साथ साझा करने के लिए कुछ होता है,
-
या जब हमारी बड़ी बहन के पास
हमारे साथ साझा करने के लिए कुछ होता है,
-
तो हमें उसे अपने अंदर
समाहित होने देना चाहिए।
-
लेकिन अगर हम
-
तुरंत प्रतिक्रिया करते हैं,
-
यानी, हम तुलना करने के लिए अपनी
धारणाओं और पिछले अनुभव को सामने लाते हैं,
-
तो इसका मतलब है कि...
-
हम दूसरों द्वारा
-
हमारे साथ साझा की जा
रही बातों को एकाएक ही खारिज कर रहे हैं।
-
संभवतः वे करुणावश
-
हमें यह कह रहे हैं।
-
अगर उनमें हमारे लिए करुणा नही है, तो उन्हें
कभी हमसे यह कहने का कष्ट नहीं उठाना पड़ेगा
-
लेकिन क्योंकि हम पहले
से ही अपने मतों में व्यस्त हैं,
-
हम अपने मत सामने लाते हैं
और दूसरे के मत को दूर कर देते हैं।
-
और यह...
-
एक कठोर बर्खास्तगी है।
-
अस्वीकृति।
-
यह...
-
हमें बहुत
नुकसानदायक परिस्थिति में डालता है।
-
बहुत बड़ा नुकसान।
-
और दूसरा व्यक्ति एक शिक्षक के रूप में,
-
एक बड़े भाई के रूप में,
एक बड़ी बहन के रूप में,
-
या हमारे सह-अभ्यासी के
रूप में अपनी भूमिका को पूरा करने में
-
सक्षम नहीं हो पाता है।
-
क्योंकि वे जो भी कहेंगे,
हम हमेशा उसे अस्वीकृत कर देंगे।
-
हमें लगता है कि हम
सब पहले से ही जानते हैं।
-
इसके बारे में हमारा
अपना मत पहले से ही है।
-
हम पहले से ही सही हैं।
-
तो अपने अंदर जगह
बनाना बहुत बड़ी कला है।
-
एम्प्टी योरसेल्फ (अंग्रेजी)
-
फेयर ले वीद (फ़्रांसिसी)
-
वह है जिसका हमें अभ्यास करना चाहिए।
-
जब दूसरा व्यक्ति बोलता
है तो हमें सुनना आना चाहिए।
-
यह "दूसरा व्यक्ति" हमारे पिता,
-
हमारे पति या पुरुष साथी,
-
हमारी पत्नी या महिला साथी,
-
हमारी बेटी या बेटा,
-
हमारे शिक्षक या गुरु,
-
हमारे छोटे भाई या बहन हो सकते हैं।
-
और जब दूसरा व्यक्ति बोलता है तो
हमें बहुत सम्मानजनक रवैया रखना चाहिए।
-
हमें बनाना चाहिए,
हमें सृजन करना चाहिए, अपने अंदर एक जगह का
-
ताकि वे जो बात कहते हैं
उसे अंदर समाने का मौका मिले।
-
गीतकार Phạm Duy का एक
बहुत ही मज़ेदार गाना है। वह कहते है,
-
"प्रिय, तुम प्यार से भरने
के लिए एक खाली जगह हो।
-
मैं प्यार को फिर से भरने
के लिए एक खाली स्थल हूं।"
-
क्योंकि अगर ना ही अंदर "रिक्त स्थान"
हो और न ही "खाली स्थल" हो,
-
यदि हम पूरी तरह से व्याप्त हैं, तो किसी
अन्य चीज़ का प्रवेश करना कैसे संभव है?
-
एक चाय के कप की तरह जो पहले से ही भरा
हुआ है, हम उसमें और चाय कैसे डाल सकते हैं?
-
इसीलिए,
-
चाय के कप में जगह होनी चाहिए।
-
हमारे साथ भी ऐसा ही है - जब हम सुनते हैं,
-
जब हम अपना दैनिक कार्य करते हैं,
तो हमें अपने अंदर एक स्थान बनाना चाहिए।
-
इसलिए, हम सभी को...
-
सीखना चाहिए, तथा इस
दृष्टिकोण को प्राप्त करने,
-
इस पद्धति का अभ्यास करने में सफल होने
के लिए स्वयं को प्रशिक्षित करना चाहिए।
-
जब हम बैठकर सुनते हैं,
-
तो हमें गहराई से
सुनने में सक्षम होना चाहिए।
-
तुरंत प्रतिक्रिया देने
-
के लिए
-
अपनी राय या अपने विचार सामने न लाएं।
-
यदि ऐसा है, तो हम
-
दूसरे व्यक्ति की दया और करुणा के कारण
कही जा रही बात को अस्वीकार कर देते हैं।
-
चुप रहें...
-
चुप रहें और जगह बनाएं, ताकि दूसरा
व्यक्ति जो कह रहा है वह समझ में आ सके।
-
भले ही हमें दृढ़ता से लगे
कि वे जो कह रहे हैं वह सही नहीं है।
-
चूंकि हमारी राय पहले ही बन चुकी है,
-
इसलिए हमें लगता है कि
जो वे कह रहे हैं वह सही नहीं है।
-
zen मठ में यह विधि अक्सर लागू की जाती है।
-
खासकर शिक्षकों और
छात्रों के बीच प्रश्नोत्तर सत्र में।
-
मान लीजिए, एक शिष्य था
-
जो बहुत...
-
जो अभ्यास में अपनी
सीख के बारे में काफी आत्मसंतुष्ट था,
-
और यह विश्वास करता था
कि हर चीज में बुद्ध प्रकृति है,
-
बुद्ध की प्रकृति है।
-
अतः एक व्यक्ति में बुद्ध प्रकृति है।
-
एक पर्वत में भी बुद्ध प्रकृति है।
-
पक्षी में भी बुद्ध प्रकृति है।
-
मछली में भी बुद्ध प्रकृति है।
-
तो एक दिन, वह अपने शिक्षक के पास गया,
पूछते हुए, "प्रिय आदरणीय गुरूजी,
-
क्या कुत्ते में बुद्ध प्रकृति होती है?
-
उस शिष्य को पूरा विश्वास
था कि उत्तर "हाँ" ही होगा।
-
पता चला, उसके शिक्षक ने कहा,
"यह कैसे संभव हो सकता है?
-
एक कुत्ते में बुद्ध
प्रकृति कैसे हो सकती है?
-
वह क्रोध से बहुत आगबबूला था।
-
लेकिन क्योंकि यह बात
उसके शिक्षक ने कही थी,
-
इसलिए उसने बाहर से तो इसे स्वीकार कर लिया,
लेकिन अंदर से वह वास्तव में बहुत नाराज है।
-
यदि यह बात किसी और ने कही
होती तो उसकी शामत आ जाती।
-
उन्होंने यह सूत्र, वह सूत्र,
या इस zen गुरु, उस zen गुरु
-
को उद्धृत किया होता, यह सिद्ध करने के
लिए कि कुत्ते में बुद्ध प्रकृति होती है।
-
लेकिन चूँकि शिक्षक को
पता था कि वह धारणाओं...
-
और सिद्धांतों में फँसा हुआ है, और
वास्तव में अभ्यास में नहीं उतर रहा है,
-
इसलिए शिक्षक ने उसे शर्मिंदा
करने के लिए कहा, "बुद्ध प्रकृति नहीं है,"
-
और...
-
उसे अपने सीखने और अभ्यास के तरीके पर
पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित करने के लिए
-
जब हम हृदय सूत्र
(प्रज्ञापारमिताहृदयसूत्र) पढ़ते हैं,
-
तो अवलोकितेश्वर
बोधिसत्व को कहते हुए सुनते हैं,
-
"आँख, कान, नाक,
जीभ, शरीर या चित्त नहीं हैं"
-
तो हम बस उनके आगे झुक जाते हैं।
-
लेकिन अंदर ही अंदर हम
पूछते हैं, "आँखें क्यों नहीं?"
-
अगर आंखें ही न हों तो मैं
अपने बड़े भाई को कैसे देख पाता हूँ?
-
नाक क्यों नहीं?
-
अगर नाक ही न हो, तो आज
सुबह मैं गंध कैसे सूंघ सकता हूं...
-
शहद?
-
जीभ नहीं है? तो आज सुबह ही मैं कैसे जान
सकता हूँ कि मेरी मूसली बहुत स्वादिष्ट है?
-
लेकिन अवलोकितेश्वर ने कहा, "कोई आंख नहीं
है, कोई नाक नहीं है, कोई जीभ नहीं है, आदि"
-
तो अंदर ही अंदर हमारी एक राय होती है।
-
और जब कोई व्यक्ति हमारी
राय से भिन्न राय व्यक्त करता है,
-
तो हम सोचते हैं कि यह
किसी तरह सही नहीं है।
-
लेकिन यहाँ, चूँकि अवलोकितेश्वर
की विश्वसनीयता सर्वथा महान है,
-
इसलिए हम उनसे झगड़ा
करने का साहस नहीं कर पाते हैं।
-
लेकिन यदि यह बात कोई
छोटा भाई या बहन कहता है,
-
तो हम निश्चित रूप से
बात को यहीं नहीं छोड़ेंगे।
-
"न आँखें, न कान, न नाक, न जीभ, न प्रबोधन।
न दुर्भावना, न दुर्भावना के कारण,
-
न दुर्भावना का अंत,
न ही मार्ग।" यही कहा गया है।
-
इसलिए, जब हम कुछ सुनते हैं,
-
तो हमें उस चीज़ को समझने का
-
मौका देना चाहिए,
-
खुद को उसे समझने का मौका देना चाहिए।
-
एक दिन, Sư Bà (आदरणीय मठवासिनी)
Đức Viên ने कुछ मठवासिनियों से कहा,
-
"आप मठवासिनियों की एक आदत होती है।
जब कोई कुछ कहता है, तो आप...
-
आप...
-
आप हमेशा एक मेल खाता
जवाब खोजने में कामयाब हो जाती हैं।"
-
मान लीजिए, जब
Sư Bà (आदरणीय मठवासिनी) ने कहा,
-
"आज तुमने जो चावल पकाया है,
वह इतना गीला कैसे है, प्रिये?"
-
और एक मठवासिनी ने तुरंत उत्तर दिया,
-
"प्रिय आदरणीय Sư Bà (आदरणीय मठवासिनी),
क्योंकि मैंने इसमें ज़्यादा पानी डाल दिया"
-
आप बस कहने के लिए
कुछ न कुछ ढूंढ ही लेते हैं।
-
हर कोई जानता है कि चावल में
अधिक पानी डालने से वह गीला हो जाता है।
-
लेकिन यह एक आदत है।
-
अपने बचाव के लिए तुरंत
-
कुछ न कुछ ढूंढने की आदत।
-
यह 100% हमारी गलती है, लेकिन फिर
भी हम अपना बचाव करने की कोशिश करते हैं।
-
और फिर भी,
-
हमें यह दृढ़ विश्वास है
कि हमारी कोई गलती नहीं है,
-
हमारे पास बहुत अनुभव है,
-
हमारे पास बहुत विचार हैं,
-
हमारे पास बहुत से मत हैं
जो हमने पुस्तकों से प्राप्त किये हैं।
-
हमेशा जवाब देने के लिए...
-
तैयार.
-
इसी कारण से,
अच्छे शिष्टाचार प्रशिक्षण में,
-
हमने सीखा है कि
-
जब हमारे शिक्षक हमें कुछ सिखाते हैं,
-
तो हमें अपने हाथ जोड़ने चाहिए,
चुप रहना चाहिए, और उसे ग्रहण करना चाहिए।
-
तब भी जब हमारे शिक्षक की
बातें हमारी धारणाओं से मेल नहीं खातीं।
-
यह पुराने दिनों में,
-
एक नौसिखिए मठवासी के
रूप में, मैंने इसे दिल से सीखा है।
-
इस समय हम शायद यह न
सोचें कि हमारा शिक्षक सही है।
-
लेकिन तीन या चार दिन में,
हमें एहसास हो सकता है,
-
"पता चला कि शिक्षक
ने जो कहा था, उसमें सच्चाई है।"
-
कभी-कभी यह दो या तीन दिन में नहीं होता।
-
कभी-कभी, हमें अपने शिक्षक की सही बात का
एहसास होने में दो या तीन साल लग जाते हैं।
-
यदि हम अपने विचारों और धारणाओं
-
का उपयोग अपने शिक्षक
की कही बातों को काटने में करते हैं,
-
कैसे...
-
तो कैसे काम चलेगा?
-
हमें अपने शिक्षक की जरूरत नहीं है।
-
हमें संघ की आवश्यकता नहीं है।
-
शिक्षक और संघ हमारी
शक्तियों और कमजोरियों
-
पर प्रकाश डालने तथा हमारा
मार्गदर्शन करने के लिए मौजूद हैं।
-
लेकिन यदि हमें
अपनी बुद्धि पर इतना भरोसा है,
-
यदि हमें अपनी धारणाओं पर इतना यकीन है,
-
तो फिर हमें किसी शिक्षक की जरूरत
नहीं है, हमें किसी संघ की जरूरत नहीं है।
-
और इसी कारण से, हमें अपने
-
अंदर जगह बनाना सीखना चाहिए।
-
हम ऐसा अपनी भलाई के लिए कर रहे हैं।
-
ताकि हम अपने गुरु और संघ
की करुणा के प्रति कृतघ्न न बनें।
-
अपने आप को पलटकर
बात न करने के लिए प्रशिक्षित करें।
-
तुरन्त प्रतिक्रिया न दें।
-
अपने व्यक्तिगत विचारों और
मतों को काबू करने के तरीके खोजें,
-
ताकि हमारे गुरु और संघ
जो कहते हैं वह हमारे अंदर समा सके।
-
फिर, ध्यान में चलें,
-
या ध्यान में बैठें, या जो भी आपको करने
की आवश्यकता है वह करें,
-
ताकि जो हमने सुना है,
-
उसमें निहित अंतर्दृष्टि
-
और व्यावहारिक अनुभव
-
को देख सकें।
-
जब हम सूत्रों का अध्ययन
करते हैं तो यह वही बात है।
-
हमारी भी अपनी राय है, शिक्षाओं
के बारे में हमारे भी अपने विचार हैं।
-
तुलनात्मक मन से सूत्रों को पढ़ने पर
-
हम सूत्रों के सही
अर्थों को समझ नहीं पाएंगे।
-
हमें अंदर एक जगह छोड़नी चाहिए
-
ताकि सूत्रों के सच्चे अर्थ
-
सामने आ सकें।
-
कई लोग आपके साथ सूत्र पढ़ते हैं।
-
लेकिन कुछ लोग उन्हें बार-बार पढ़ते रहते
हैं, लेकिन उनमें कुछ भी नया नहीं देखते।
-
उनमें कुछ भी...
-
कुछ भी...
-
अजीब नहीं देखते।
-
उनमें कुछ भी...
-
विशेष नहीं देखते।
-
लेकिन कुछ लोगों के
लिए, सूत्रों को पढ़ते समय,
-
ये नई, विचित्र, विशेष चीजें
-
फूलों की तरह खिल उठती हैं,
क्योंकि वे सूत्रों को स्वतंत्रता
-
की नजर से पढ़ते हैं।
-
स्वतंत्रता के हृदय के साथ.
-
बिना...
-
पिछले अनुभव या
-
पूर्वाग्रहों और रूढ़ियों से भरे बिना।
-
इस कारण, अपने आप को खाली करें।
-
Faire le vide. (फ्रान्सीसी भाषा)
-
खैर,
-
एक जगह बनाएं।
-
यह एक महान कला है।
-
जब हम...
-
जब हम पेट्रोल पंप पर
-
पेट्रोल खरीदने जाते हैं, तो
हम अक्सर कहते हैं, "पूरा भर दो"
-
लेकिन अब हमें इसके विपरीत कहना
होगा। हमें कहना चाहिए, "खाली कर दो।"
-
"पूरा भर दो" कहने के बजाय,
-
हम कहते हैं, "खाली कर दो।"
-
यही वह कला है जिसमें निपुणता
प्राप्त करने के लिए हम काम कर रहे हैं।
-
सुनिश्चित करें कि आप यह कर सकते हैं।
-
केवल बौद्ध धर्म ही इस विषय
को पूर्ण विस्तार से सिखाता है।
-
क्योंकि हम...
-
एक दूसरे पर युद्ध करते हैं,
-
हम एक दूसरे को मारते हैं, हम एक दूसरे
से लड़ते हैं, और हम एक दूसरे को पीटते हैं,
-
सब इसी वजह से...
-
यदि हम गहराई से सुनना जानते हैं,
यदि हम अपने अंदर जगह बनाना जानते हैं,
-
तो हमारी अपने बीच
-
और विभिन्न लोगों के बीच
-
शांति और मानवता का
निर्माण कर पाने की अच्छी संभावना है।
-
इसे हमें अपने दैनिक
जीवन में व्यवहार में लाना चाहिए।
-
हमें उचित प्रकार से सुनना
और बोलना सीखना चाहिए
-
केवल तभी बोलें...
-
जब हमें लगे कि बोलना नितांत आवश्यक है।
-
हर बार जब आप बोलने के
लिए अपना मुंह खोलें, तो कोई बहुत
-
अच्छा कारण होना चाहिए।
-
-
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