प्रणव मिस्त्रीः सिक्स्थ सेंस तकनीक का रोमांचक सामर्थ्य
-
0:00 - 0:02हमारा विकास अपने चारों ओर की
-
0:02 - 0:05वस्तुओं के साथ व्यवहार कर हुआ है।
-
0:05 - 0:07इनमें से बहुत से ऐसे हैं
-
0:07 - 0:09जिन्हें हम प्रतिदिन प्रयोग करते हैं।
-
0:09 - 0:12हमारे अधिकांश कम्प्यूटिंग यन्त्रों की अपेक्षा
-
0:12 - 0:15इन वस्तुओं को प्रयोग करने में ज्यादा मज़ेदार लगता है।
-
0:15 - 0:18जब हम वस्तुओं की बात करते हैं,
-
0:18 - 0:21इनसे जुङी एक और चीज़ स्वतः सामने आती है,
-
0:21 - 0:23और वो है संकेत :
-
0:23 - 0:25कैसे हम इन वस्तुओं से काम लेते हैं,
-
0:25 - 0:28कैसे हम इन वस्तुओं को रोज़मर्रा के कार्यों के लिये प्रयोग करते हैं।
-
0:28 - 0:31हम संकेतों द्वारा न केवल इन वस्तुओं से काम लेते हैं,
-
0:31 - 0:33पर इनके प्रयोग से हम एक दूसरे से सम्पर्क भी स्थापित करते हैं।
-
0:33 - 0:36यह संकेत "नमस्ते" का, किसी को आदर देने के लिये,
-
0:36 - 0:37या फ़िर --
-
0:37 - 0:39भारत में मुझे किसी बच्चे को यह बताने की जरूरत नहीं है कि इसका मतलब
-
0:39 - 0:41"चौका" है क्रिकेट में।
-
0:41 - 0:44यह हमारी रोज़ की सीख से आता है।
-
0:44 - 0:46तो, मुझे हमेशा से यह दिलचस्पी रही है,
-
0:46 - 0:48कि कैसे
-
0:48 - 0:50हम अपनी रोज़ाना की
-
0:50 - 0:52वस्तुओं और संकेतों की जानकारी,
-
0:52 - 0:54व इन वस्तुओं का प्रयोग कर सकते हैं,
-
0:54 - 0:57डिजिट्ल दुनिया के साथ सम्पर्क करने के लिये।
-
0:57 - 1:00बजाय अपने कीबोर्ड और माउस के,
-
1:00 - 1:03क्या मैं अपना कम्पयूटर प्रयोग कर सकता हूँ
-
1:03 - 1:06उसी प्रकार जैसे मैं असल दुनिया से संपर्क करता हूँ?
-
1:06 - 1:09इसलिये मैंने यह खोज लगभग आठ वर्ष पहले शुरू की,
-
1:09 - 1:12और वास्तव में इसकी शुरूआत हुयी मेरे मेज़ के एक माउस से।
-
1:12 - 1:15उसे अपने कम्प्यूटर के साथ प्रयोग करने के बजाय,
-
1:15 - 1:18मैंने उसे खोल दिया।
-
1:18 - 1:20आप में से बहुत यह जानते होंगे, कि उन दिनों
-
1:20 - 1:22माउस में एक गेंद होती थी,
-
1:22 - 1:24व साथ में दो रोलर थे
-
1:24 - 1:27जो वास्तव में गेंद की दिशा कम्प्यूटर को निर्धारित करते थे,
-
1:27 - 1:29व उसी अनुसार माउस की चाल का मार्गदर्शन करते थे।
-
1:29 - 1:32तो, मुझे इन रोलरों में दिलचस्पी हुई,
-
1:32 - 1:35मुझे असल में और चाहिये थे, तो मैंने एक माउस अपने एक मित्र से माँग लिया--
-
1:35 - 1:37और कभी लौटाया नहीं--
-
1:37 - 1:39तो अब मेरे पास चार रोलर थे।
-
1:39 - 1:42दिलचस्प बात है कि मैंने इन रोलर्ज़ के साथ यह किया,
-
1:42 - 1:45उन्हें मैंने इन माउसों में से निकाल लिया
-
1:45 - 1:47और उन्हें एक पंक्ति में रख दिया।
-
1:47 - 1:50साथ में कुछ तारें और चरखियाँ थीं व कुछेक स्प्रिन्ग थे।
-
1:50 - 1:53मुझे मौलिक रूप से एक सांकेतिक इन्टरफेस यंत्र मिला
-
1:53 - 1:57जो वास्तव में एक चाल संवेदक यंत्र का कार्य करता था
-
1:57 - 1:59व बना था दो डौलर में।
-
1:59 - 2:02तो, यहॉ जो गतिविधि मैं अपनी दुनिया में करता हूँ
-
2:02 - 2:05उसकी नकल डिजिट्ल दुनिया में होती है
-
2:05 - 2:08सिर्फ़ इस छोटे से यंत्र के प्रयोग से, जो मैंने आठ वर्ष पूर्व बनाया था ,
-
2:08 - 2:10सन 2000 में।
-
2:10 - 2:12क्योंकि मै इन दोनों संसारों को जोड़ने के लिये बहुत उत्सुक था,
-
2:12 - 2:14मैंने स्टिकी नोट्स के बारे में सोचा।
-
2:14 - 2:17मैंने सोचा "क्या मैं
-
2:17 - 2:19एक भौतिक स्टिकी नोट के सामान्य इंटरफ़ेस को
-
2:19 - 2:21डिजिटल दुनिया से जो़ड़ सकता हूँ ?"
-
2:21 - 2:23अपनी माँ को स्टि्की नोट पर लिखा एक संदेश
-
2:23 - 2:24एक काग़ज पर
-
2:24 - 2:26एक SMS के रूप में आ सकता है,
-
2:26 - 2:28या एक बैठक रिमाइंडर जो अपने आप
-
2:28 - 2:30मेरे डिजिट्ल कैलेंडर के साथ समक्रमित हो जाए--
-
2:30 - 2:33एक कार्य-सूची जो अपने आप मेरे साथ समक्रमित हो जाए।
-
2:33 - 2:36पर आप डिजिट्ल दुनिया में खोज भी कर सकते हैं,
-
2:36 - 2:38या आप एक प्रश्न लिख सकते हैं, जैसे,
-
2:38 - 2:40"डा. स्मिथ का पता क्या है?"
-
2:40 - 2:42और यह छोटी पद्धति वास्तव में इसे प्रिंट कर सकती है--
-
2:42 - 2:44तो यह एक आगत-उत्पाद पद्धति की तरह कार्य करता है,
-
2:44 - 2:47कागज़ से बना हुआ।
-
2:50 - 2:52एक और खोज में,
-
2:52 - 2:55मैंने एक ऐसा पेन बनाने का सोचा जो तीन-आयामी चित्र बना सके।
-
2:55 - 2:57तो, मैंने इस पेन को कार्यान्वित किया
-
2:57 - 2:59जो न केवल डिजाइनरों व वास्तुकारों को
-
2:59 - 3:01तीन-आयामी सोच देने में मदद करता है,
-
3:01 - 3:03पर वास्तव में रच भी सकता है
-
3:03 - 3:05तो इसे प्रयोग करना अधिक सहज़ है।
-
3:05 - 3:07अब मैंने सोचा, "क्यों न एक गूगल मैप बनाया जाए,
-
3:07 - 3:09पर भौतिक दुनिया में?"
-
3:09 - 3:12कुछ ढूढ़ने के लिए एक कीवर्ड लिखने के बजाय,
-
3:12 - 3:14मैंने अपनी वस्तुएँ उसके ऊपर रख दीं।
-
3:14 - 3:17अगर मैं एक बोर्डिंग पास रखूँ, तो वह मुझे फ़्लाइट गेट दिखाएगा।
-
3:17 - 3:20एक कौफ़ी कप दिखाएगा कहाँ मुझे और कौफ़ी मिलेगी,
-
3:20 - 3:22या कहाँ मैं कप को फ़ेंक सकता हूँ ।
-
3:22 - 3:25तो यह मेरी कुछ पुरानी खोजें थीं जिन्हें मैंने किया था क्योंकि
-
3:25 - 3:28मैं इन दोनों संसारों को सीवनरहित जोड़ना चाहता था।
-
3:29 - 3:31इन सभी प्रयोगों में
-
3:31 - 3:33एक चीज़ सामान्य थी:
-
3:33 - 3:37मैं भौतिक दुनिया का एक हिस्सा डिजिट्ल दुनिया में लाने की कोशिश कर रहा था।
-
3:37 - 3:40मै वस्तुओं के कुछ भाग लेता,
-
3:40 - 3:43या वास्तविक दुनिया की कोई भी सहजता,
-
3:43 - 3:46और उन्हें डिजिट्ल दुनिया में लाता,
-
3:46 - 3:49क्योंकि लक्ष्य था हमारे कम्प्यूटिंग यंत्रों को और सहज बनाना।
-
3:49 - 3:51पर तब मुझे अहसास हुआ कि हम मानवों को
-
3:51 - 3:54वास्तव में कम्प्यूटिंग में रुचि नहीं है।
-
3:54 - 3:57हमें दिलचस्पी है जानकारी में।
-
3:57 - 3:59हमें चीज़ों के बारे में जानना चाहते हैं।
-
3:59 - 4:01हम अपने आसपास मौजूद परिवर्तनात्मक चीज़ों के बारे में जानना चाहते हैं।
-
4:01 - 4:06तो मैंने सोचा, पिछ्ले साल--पिछले साल की शुरुआत में--
-
4:06 - 4:09मैंने सोचने लगा, "क्या मैं इस पद्धति को विपरीत ले जा सकता हूँ?"
-
4:09 - 4:12"क्यों न मैं डिजिट्ल दुनिया लेकर
-
4:12 - 4:17भौतिक दुनिया को डिजिट्ल जानकारी से रंग दूँ?"
-
4:17 - 4:21क्योंकि पिक्सल असल में, अभी, इन समकोणीय यंत्रों में कैद हैं
-
4:21 - 4:23जो हमारी जेबों में फ़िट हो जाते हैं।
-
4:23 - 4:26क्यों न मैं इस कैद को हटा दूँ
-
4:26 - 4:29और इसे अपने रोज़ाना जीवन में ले आऊँ
-
4:29 - 4:31ताकि उन पिक्सलों से पारस्परिक व्यवहार करने के लिए
-
4:31 - 4:34मुझे कोई नई भाषा न सीखनी पड़े?
-
4:35 - 4:37तो, इस सपने को पूरा करने के लिए
-
4:37 - 4:40मैंने वास्तव में अपने सिर पर एक प्रोजेक्टर रखने का सोचा।
-
4:40 - 4:43मेरे विचार से इस कारण इसे एक हेड-माउंटेड प्रोजेक्टर कहते हैं, है न?
-
4:43 - 4:45जैसा मैंने कहा,
-
4:45 - 4:47मैंने अपना बाइक हेलमेट लिया,
-
4:47 - 4:50उसे थोड़ा सा काटा ताकि प्रोजेक्टर अच्छी तरह लग जाए।
-
4:50 - 4:52तो अब,
-
4:52 - 4:56मैं इस डिजिट्ल जानकारी से अपनी दुनिया का फ़ैलाव कर सकता हूँ।
-
4:56 - 4:58पर बाद में,
-
4:58 - 5:01मुझे अहसास हुआ मैं इन डिजिट्ल पिक्सल्ज़ के साथ भी कार्य करना चाहता था।
-
5:01 - 5:03तो वहाँ मैंने एक छोटा कैमरा लगाया,
-
5:03 - 5:05जो एक डिजिट्ल आँख का काम करता है।
-
5:05 - 5:07बाद में, हमने इसका एक बेहतर,
-
5:07 - 5:09ग्राहक-अनुकूल पेंडेंट आवृत्तिनिकाला,
-
5:09 - 5:12जिसे आप अब सिक्स्थ सेंस यंत्र के नाम से जानते हैं।
-
5:12 - 5:15पर इस तकनीक की सबसे रोचक तथ्य यह है
-
5:15 - 5:19कि आप अपनी डिजिट्ल दुनिया अपने साथ ले जा सकते हैं
-
5:19 - 5:21जहाँ भी आप जाएँ।
-
5:21 - 5:24आप किसी भी सतह को, पास की दीवार का प्रयोग कर सकते हैं,
-
5:24 - 5:26एक इंटरफेस की तरह।
-
5:26 - 5:29कैमरा आपके सारे संकेतों को भाँप रहा है।
-
5:29 - 5:31जो भी आप अपने हाथों से कर रहे हैं,
-
5:31 - 5:33वह संकेत समझ रहा है।
-
5:33 - 5:35और, जैसा आप देख सकते हैं,हमने प्रारंभिक आवृत्ति के साथ
-
5:35 - 5:38कुछ रंगीन मार्कर प्रयोग किए हैं।
-
5:38 - 5:40आप किसी भी दीवार पर चित्रकारी कर सकते हैं।
-
5:40 - 5:43दीवार के सामने रुककर उस पर चित्र बना सकते हैं।
-
5:43 - 5:45पर हम यहाँ एक ही उंगली से काम नहीं कर रहे हैं।
-
5:45 - 5:49हम आपको दोनों हाथ इस्तेमाल करने की आज़ादी दे रहे हैं,
-
5:49 - 5:52इससे आप दोनों हाथों से किसी नक्शे का आकार बढ़ा व घटा सकते हैं,
-
5:52 - 5:54सिर्फ़ उन सबको दबाने से।
-
5:54 - 5:57कैमरा वास्तव में यह कर रहा है--
-
5:57 - 5:58सारे चित्रों को इकट्ठा करना--
-
5:58 - 6:01व किनारों और रंग की पहचान करना
-
6:01 - 6:04और उसके अंदर कई प्रणालियाँ चल रहीं हैं।
-
6:04 - 6:06तो, तकनीकी तौर पर, यह थोड़ा पेचीदा है,
-
6:06 - 6:09पर यह आपको एक ऐसा उत्पाद देगा जो कुछ हद तक उपयोग करने में सहज है।
-
6:09 - 6:12पर मैं उत्सुक हूँ कि आप इसे बाहर भी ले जा सकते हैं।
-
6:12 - 6:15बजाय अपना कैमरा जेब से निकालने के,
-
6:15 - 6:18आप बस चित्र लेने का संकेत दें
-
6:18 - 6:20और यह आपके लिए चित्र ले लेगा।
-
6:20 - 6:24(तालियाँ)
-
6:24 - 6:25धन्यवाद।
-
6:26 - 6:28और बाद में कहीं भी, किसी भी दीवार पर,
-
6:28 - 6:30मैं चित्रों को देख सकता हूँ
-
6:30 - 6:32या फ़िर, "मैं इस चित्र को थोड़ा सुधार कर
-
6:32 - 6:34अपने मित्र को इमेल कर सकता हूँ ।"
-
6:34 - 6:37तो हम एक ऐसे युग की ओर देख रहे हैं जहाँ
-
6:37 - 6:40कम्प्यूटिंग यथार्थ में भौतिक संसार के साथ मिल जाएगी।
-
6:40 - 6:43और, अगर आपके पास कोई सतह नहीं है,
-
6:43 - 6:46आप अपना हाथ इस्तेमाल कर सकते हैं सरल कामों के लिए।
-
6:46 - 6:48यहाँ, मैं एक फ़ोन नंबर डायल कर रहा हूँ सिर्फ़ अपने हाथ के ज़रिए।
-
6:52 - 6:55यहाँ कैमरा सिर्फ़ आपके हाथों की चाल ही नहीं समझ रहा है,
-
6:55 - 6:56पर, दिलचस्पी से,
-
6:56 - 6:59यह उस वस्तु को भी समझ रहा है जो आपके हाथ में है।
-
6:59 - 7:02यहाँ असल में क्या हो रहा है--
-
7:02 - 7:04उदाहरण के तौर पर, यहाँ,
-
7:04 - 7:06पुस्तक के कवर को
-
7:06 - 7:09हज़ारों या लाखों औनलाइन पुस्तकों के साथ मिलाया
-
7:09 - 7:11व यह भी पता किया कि यह कौन सी पुस्तक है।
-
7:11 - 7:12एक बार इसे यह जानकारी मिल गयी,
-
7:12 - 7:14वह फ़िर उसके बारे में और पुनरवलोकन प्राप्त करता है,
-
7:14 - 7:17या अगर New York Times के पास उसका कोइ ध्वनि पुनरवलोकन है,
-
7:17 - 7:19तो आप उसे एक पु्स्तक पर
-
7:19 - 7:21ध्वनि के रूप में सुन सकते हैं।
-
7:21 - 7:23("हार्वर्ड विश्वविद्यालय में मशहूर बात ")
-
7:23 - 7:26यह ओबामा की MIT में पिछ्ले हफ़्ते की मुलाकात थी।
-
7:27 - 7:31("और मैं धन्यवाद करना चाहूँगा दो बेहतरीन MIT")
-
7:31 - 7:36तो, मैं इसकी वीडियो देख रहा था, बाहर, सिर्फ़ एक अखबार पर।
-
7:36 - 7:39आपका अखबार मौसम की ताज़ा जानकारी दिखाएगा
-
7:39 - 7:42बिना उसे अपडेट किये-- जैसे,आपको यह करने के लिए अपना
-
7:42 - 7:44कम्प्यूटर जाँचना पड़ता है, ठीक?
-
7:44 - 7:49(तालियाँ)
-
7:49 - 7:52जब मैं वापस जाऊँ , मैं सिर्फ़ अपना बोर्डिंग पास प्रयोग कर सकता हूँ
-
7:52 - 7:54यह देखने के लिए कि मेरी फ़्लाइट को आने में कितनी देर है,
-
7:54 - 7:56क्योंकि उस समय मुझे नहीं लगता
-
7:56 - 7:58कि मैं अपना iPhone निकालूँगा,
-
7:58 - 8:00और किसी आइकन को ढूँढूगा।
-
8:00 - 8:03और मुझे लगता है कि यह तकनीक उस तरीके को ही नहीं बदलेगी--
-
8:03 - 8:04हाँ ।
-
8:05 - 8:07वह तरीका भी बदलेगी जिस तरह हम लोगों के साथ व्यवहार करते हैं,
-
8:07 - 8:09नाकि केवल भौतिक दुनिया।
-
8:09 - 8:12मज़ेदार बात यह है, मैं Boston मैट्रो में जाता हूँ
-
8:12 - 8:15और पौंग खेल सकता हूँ ट्रेन के अंदर
-
8:15 - 8:17सतह पर, ठीक?
-
8:17 - 8:18(हँसी)
-
8:18 - 8:20और मुझे लगता है कि कल्पना ही सीमा है
-
8:20 - 8:22कि आप क्या इजाद कर सकते हैं
-
8:22 - 8:24जब यह तकनीक असल ज़िन्दगी के साथ जा मिलेगी।
-
8:24 - 8:26पर आप में से कई यह बोलेंगे, कि
-
8:26 - 8:29हमारा सारा काम वस्तुओं के साथ तो होता नहीं है।
-
8:29 - 8:32हम बहुत सी गणना व संपादन
-
8:32 - 8:34और ऐसी बहुत सी चीज़ें करते हैं, उनका क्या?
-
8:34 - 8:38और आप में से बहुत उन टेबलेट कमप्यूटरों को
-
8:38 - 8:40बाज़ार में आने को लेकर काफ़ी उत्सुक हैं।
-
8:40 - 8:42तो, बजाय उनका इंतज़ार करने के
-
8:42 - 8:45मैंने वह अपना खुद का बनाया, सिर्फ़ एक कागज़ को लेकर।
-
8:45 - 8:47तो, मैंने यहाँ अपना कैमरा निकाल दिया--
-
8:47 - 8:51हर वेबकैम कैमरे के अंदर एक माइक्रोफ़ोन लगा होता है।
-
8:51 - 8:54मैंने वह माइक्रोफोन वहाँ से निकाल दिया,
-
8:54 - 8:56और उसे सिर्फ़ दबाया--
-
8:56 - 8:59जैसे मैंने माइक्रोफ़ोन से एक क्लिप बनाया--
-
8:59 - 9:03और उसे एक कागज़ से जोड़ दिया, किसी भी कागज़ से।
-
9:03 - 9:06तो अब स्पर्श की ध्वनि मुझे बताती है
-
9:06 - 9:09कि कब मैं कागज़ को छू रहा हूँ ।
-
9:09 - 9:13पर कैमरा असल में देख रहा है कि मेरी अँगुलियां कहाँ जा रहीं हैं।
-
9:13 - 9:16आप मूवीज़ भी देख सकते हैं।
-
9:16 - 9:19("Good Afternoon. My name is Russell...")
-
9:19 - 9:22("...and I am a Wilderness Explorer in Tribe 54.")
-
9:22 - 9:25और आप गेम भी खेल सकते हैं।
-
9:25 - 9:28(कार इंजिन)
-
9:28 - 9:31यहाँ, कैमरा असल में समझ रहा है कि कैसे आपने कागज़ को पकड़ा हुआ है
-
9:31 - 9:33और आप एक कार-रेसिंग गेम खेल रहे हैं।
-
9:33 - 9:36(तालियाँ )
-
9:37 - 9:39आप में से बहुतों ने यह सोचा होगा, ठीक है, आप ब्राउज़ कर सकते हैं।
-
9:39 - 9:42हाँ, आप किसी भी वेबसाइट को ब्राउज़ कर सकते हैं
-
9:42 - 9:45या आप किसी भी प्रकार की क्म्प्यूटिंग कर सकते हैं एक कागज़ पर
-
9:45 - 9:46जहाँ भी आप चाहें।
-
9:46 - 9:49तो, दिलचस्प तौर पर,
-
9:49 - 9:52मैं इसे एक और परिवर्तनात्मक तरीके में उपयोग करना चाहूँगा।
-
9:52 - 9:55जब मैं वापस आऊँ मैं उस जानकारी को बस दबाकर
-
9:55 - 9:57अपने डेस्क्टोप पर ला सकता हूँ ताकि
-
9:57 - 10:00उसे मैं अपने क्म्प्यूटर पर प्रयोग कर सकूँ ।
-
10:00 - 10:02(तालियाँ )
-
10:02 - 10:05और सिर्फ़ क्म्प्यूटर ही क्यों? हम बस कागज़ों के साथ खेल सकते हैं।
-
10:05 - 10:08कागज़ी दुनिया के साथ खेलना अधिक दिलचस्प है।
-
10:08 - 10:10यहाँ, मैं एक पत्र का एक भाग लेता हूँ
-
10:10 - 10:14और वहाँ दूसरी जगह से दूसरा भाग लेता हूँ--
-
10:14 - 10:17और मैं असल में जानकारी में परिवर्तन करता हूँ
-
10:17 - 10:19जो वहाँ मेरे पास है।
-
10:19 - 10:22हाँ, और मैंने कहा, "ठीक है, ये अच्छा लगता है,
-
10:22 - 10:24क्यों न मैं इसे प्रिंट कर दूँ ।"
-
10:24 - 10:26तो अब मेरे पास उस चीज़ का प्रिंट-प्रति मेरे पास है, और अब--
-
10:26 - 10:29कार्यप्रवाह बहुत ही सहजज्ञान हो गया है
-
10:29 - 10:32आज से 20 साल पहले के अपेक्षा,
-
10:32 - 10:35हमें इन दोनों संसारों को बदलने की ज़रूरत नहीं है।
-
10:35 - 10:38तो, मेरे ख्याल में,
-
10:38 - 10:41मैं सोचता हूँ कि रोज़मर्रा की वस्तुओं की जानकारियाँ एक करने से
-
10:41 - 10:46न सिर्फ़ हमें डिजिट्ल विभाजन से छुटकारा मिलेगा,
-
10:46 - 10:48इन दोनों संसारों के बीच की दूरी,
-
10:48 - 10:50बल्कि यह हमारी एक तरह से मदद भी करेगा,
-
10:50 - 10:52मानव रहने में,
-
10:52 - 10:55भौतिक दुनिया से और जुड़े रहने में।
-
10:58 - 11:01और यह वास्तव में हमारी मदद करेगा, कि हम मशीन बनकर
-
11:01 - 11:03मशीनों के सामने न बैठे रहें।
-
11:03 - 11:06बस यही। धन्यवाद्।
-
11:06 - 11:20(तालियाँ )
-
11:20 - 11:21धन्यवाद्।
-
11:21 - 11:24(तालियाँ )
-
11:24 - 11:25क्रिस एंडर्सन: तो, प्रणव,
-
11:25 - 11:28सबसे पहले, तुम प्रतिभाशाली हो।
-
11:28 - 11:31ये अविश्वसनीय है, सच में।
-
11:31 - 11:34तुम इसके साथ क्या करोगे? क्या किसी कंपनी की योजना है?
-
11:34 - 11:36या यह हमेशा शोध रहेगा, या क्या?
-
11:36 - 11:38प्रणव मिस्ट्री: वैसे बहुत सी कंपनियाँ हैं--
-
11:38 - 11:39असल में Media Lab की प्रायोजक कंपनियाँ--
-
11:39 - 11:42जो इसे किसी न किसी तरीके से आगे ले जाने के लिए उत्सुक हैं।
-
11:42 - 11:44मोबाइल फ़ोन ओपरेटर कंपनियाँ जो इसे अलग रूप में
-
11:44 - 11:47देखती हैं जैसे भारत के NGO,
-
11:47 - 11:50जो सोचती हैं,"हमारे पास केवल Sixth Sense ही क्यों?
-
11:50 - 11:52हमारे पास Fifth Sense भी होनी चाहिए इंद्रि रहित लोगों के लिए
-
11:52 - 11:53जो बोल नहीं सकते।
-
11:53 - 11:56इस तकनीक को अलग तरीके से बोलने के लिए उपयोग कर सकते हैं
-
11:56 - 11:57जैसे एक स्पीकर सिस्ट्म के साथ।"
-
11:57 - 12:00क्रिस एंडर्सन: आपकी क्या योजनाएँ हैं? क्या आप MIT में रहेंगे,
-
12:00 - 12:01या आप इसके साथ कुछ करने वाले हैं?
-
12:01 - 12:03प्रणव मिस्ट्री: मैं इसे लोगों को ज़्यादा उपल्ब्ध कराना चाहता हूँ
-
12:03 - 12:06ताकि हर कोई अपना खुद का Sixth Sense यंत्र विकसित कर सकें
-
12:06 - 12:11क्योंकि न तो हार्डवेयर बनाना असल में इतना मु्श्किल है,
-
12:11 - 12:13न खुद का बनाना।
-
12:13 - 12:15हम उनके लिए सारा ओपन सोर्स सोफ़्ट्वेयर देंगे,
-
12:15 - 12:17शायद अगले महीने से।
-
12:17 - 12:19क्रिस एंडर्सन: ओपन सोर्स, वाह।
-
12:19 - 12:24(तालियाँ )
-
12:24 - 12:27क्रिस एंडर्सन: क्या आप इसके साथ भारत वापस आना चाहेंगे?
-
12:27 - 12:29प्रणव मिस्ट्री: हाँ। हाँ,हाँ बिल्कुल।
-
12:29 - 12:31क्रिस एंडर्सन: क्या योजना है आपकी? MIT?
-
12:31 - 12:33भारत? आगे बढ़ने के लिए आप कैसे समय बाँटेंगे?
-
12:33 - 12:36प्रणव मिस्ट्री: यहाँ बहुत सी ऊर्जा है। बहुत सा ज्ञान।
-
12:36 - 12:38जो भी काम आज आपने देखा वह सब भारत में
-
12:38 - 12:40मेरे ज्ञान के बारे में है।
-
12:40 - 12:43और अब, अब अगर आप लागत-प्रभाव के बारे में देखें:
-
12:43 - 12:45इस पद्धति का मूल्य सिर्फ़ 300 डालर है
-
12:45 - 12:48यदि इसकी तुलना 20,000 डालर सर्फ़ेस टेब्ल्ज़ से की जाए, या उसके जैसा कुछ भी।
-
12:48 - 12:51या वह माउस संकेत पद्धति जो
-
12:51 - 12:54उस समय 5000 डालर की थी?
-
12:54 - 12:58तो, हमने-- मैंने, एक सभा में,
-
12:58 - 13:00राष्ट्रपति अब्दुल कलाम को यह दिखाया, उस समय,
-
13:00 - 13:03और उन्होंने कहा,"ठीक है, हमें इसे Bhabha Atomic Research Centre में लाना चाहिए
-
13:03 - 13:05किसी उपयोग के लिए।"
-
13:05 - 13:08तो मैं बहुत उत्सुक हूँ कि कैसे मैं इस तकनीक को आम लोगों तक पहुँचा सकूँ
-
13:08 - 13:11बजाय इसके कि मैं इस तकनीक को सिर्फ़ प्रयोगशाला में रखूँ ।
-
13:11 - 13:15(तालियाँ )
-
13:15 - 13:18क्रिस एंडर्सन: जैसे लोग मैंने TED पर देखें हैं उस आधार पर
-
13:18 - 13:19मैं कहना चाहूँगा कि आप अभी दुनिया में मौजूद
-
13:19 - 13:21दो या तीन आविष्कारकों में से एक हैं।
-
13:21 - 13:23आपका TED पर होना हमारा लिए सम्मान है।
-
13:23 - 13:25बहुत बहुत धन्यवाद्।
-
13:25 - 13:26यह अदभुत है।
-
13:26 - 13:30(तालियाँ )
- Title:
- प्रणव मिस्त्रीः सिक्स्थ सेंस तकनीक का रोमांचक सामर्थ्य
- Speaker:
- Pranav Mistry
- Description:
-
TEDIndia पर, प्रणव मिस्ट्री उन साधनों का प्रदर्शन करते हैं जो भौतिक दुनिया को जानकारी के संसार के साथ व्यवहार करने में मदद करते हैं--साथ में एक गहरी नज़र उनके सिक्स्थ सेंस यंत्र और एक नये, क्रान्तिकारी कागज़ी "लैपटॉप" पर। मंच पर हुए सवाल-जवाब में मिस्ट्री कहते हैं सिक्स्थ सेंस के पीछे का सोफ़्ट्वेयर ओपन सोर्स होगा, ताकि संभावनाएँ सबके लिए खुलें।
- Video Language:
- English
- Team:
closed TED
- Project:
- TEDTalks
- Duration:
- 13:30