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प्रणव मिस्त्रीः सिक्स्थ सेंस तकनीक का रोमांचक सामर्थ्य

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    हमारा विकास अपने चारों ओर की
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    वस्तुओं के साथ व्यवहार कर हुआ है।
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    इनमें से बहुत से ऐसे हैं
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    जिन्हें हम प्रतिदिन प्रयोग करते हैं।
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    हमारे अधिकांश कम्प्यूटिंग यन्त्रों की अपेक्षा
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    इन वस्तुओं को प्रयोग करने में ज्यादा मज़ेदार लगता है।
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    जब हम वस्तुओं की बात करते हैं,
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    इनसे जुङी एक और चीज़ स्वतः सामने आती है,
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    और वो है संकेत :
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    कैसे हम इन वस्तुओं से काम लेते हैं,
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    कैसे हम इन वस्तुओं को रोज़मर्रा के कार्यों के लिये प्रयोग करते हैं।
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    हम संकेतों द्वारा न केवल इन वस्तुओं से काम लेते हैं,
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    पर इनके प्रयोग से हम एक दूसरे से सम्पर्क भी स्थापित करते हैं।
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    यह संकेत "नमस्ते" का, किसी को आदर देने के लिये,
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    या फ़िर --
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    भारत में मुझे किसी बच्चे को यह बताने की जरूरत नहीं है कि इसका मतलब
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    "चौका" है क्रिकेट में।
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    यह हमारी रोज़ की सीख से आता है।
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    तो, मुझे हमेशा से यह दिलचस्पी रही है,
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    कि कैसे
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    हम अपनी रोज़ाना की
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    वस्तुओं और संकेतों की जानकारी,
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    व इन वस्तुओं का प्रयोग कर सकते हैं,
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    डिजिट्ल दुनिया के साथ सम्पर्क करने के लिये।
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    बजाय अपने कीबोर्ड और माउस के,
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    क्या मैं अपना कम्पयूटर प्रयोग कर सकता हूँ
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    उसी प्रकार जैसे मैं असल दुनिया से संपर्क करता हूँ?
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    इसलिये मैंने यह खोज लगभग आठ वर्ष पहले शुरू की,
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    और वास्तव में इसकी शुरूआत हुयी मेरे मेज़ के एक माउस से।
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    उसे अपने कम्प्यूटर के साथ प्रयोग करने के बजाय,
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    मैंने उसे खोल दिया।
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    आप में से बहुत यह जानते होंगे, कि उन दिनों
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    माउस में एक गेंद होती थी,
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    व साथ में दो रोलर थे
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    जो वास्तव में गेंद की दिशा कम्प्यूटर को निर्धारित करते थे,
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    व उसी अनुसार माउस की चाल का मार्गदर्शन करते थे।
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    तो, मुझे इन रोलरों में दिलचस्पी हुई,
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    मुझे असल में और चाहिये थे, तो मैंने एक माउस अपने एक मित्र से माँग लिया--
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    और कभी लौटाया नहीं--
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    तो अब मेरे पास चार रोलर थे।
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    दिलचस्प बात है कि मैंने इन रोलर्ज़ के साथ यह किया,
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    उन्हें मैंने इन माउसों में से निकाल लिया
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    और उन्हें एक पंक्ति में रख दिया।
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    साथ में कुछ तारें और चरखियाँ थीं व कुछेक स्प्रिन्ग थे।
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    मुझे मौलिक रूप से एक सांकेतिक इन्टरफेस यंत्र मिला
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    जो वास्तव में एक चाल संवेदक यंत्र का कार्य करता था
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    व बना था दो डौलर में।
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    तो, यहॉ जो गतिविधि मैं अपनी दुनिया में करता हूँ
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    उसकी नकल डिजिट्ल दुनिया में होती है
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    सिर्फ़ इस छोटे से यंत्र के प्रयोग से, जो मैंने आठ वर्ष पूर्व बनाया था ,
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    सन 2000 में।
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    क्योंकि मै इन दोनों संसारों को जोड़ने के लिये बहुत उत्सुक था,
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    मैंने स्टिकी नोट्स के बारे में सोचा।
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    मैंने सोचा "क्या मैं
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    एक भौतिक स्टिकी नोट के सामान्य इंटरफ़ेस को
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    डिजिटल दुनिया से जो़ड़ सकता हूँ ?"
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    अपनी माँ को स्टि्की नोट पर लिखा एक संदेश
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    एक काग़ज पर
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    एक SMS के रूप में आ सकता है,
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    या एक बैठक रिमाइंडर जो अपने आप
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    मेरे डिजिट्ल कैलेंडर के साथ समक्रमित हो जाए--
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    एक कार्य-सूची जो अपने आप मेरे साथ समक्रमित हो जाए।
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    पर आप डिजिट्ल दुनिया में खोज भी कर सकते हैं,
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    या आप एक प्रश्न लिख सकते हैं, जैसे,
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    "डा. स्मिथ का पता क्या है?"
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    और यह छोटी पद्धति वास्तव में इसे प्रिंट कर सकती है--
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    तो यह एक आगत-उत्पाद पद्धति की तरह कार्य करता है,
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    कागज़ से बना हुआ।
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    एक और खोज में,
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    मैंने एक ऐसा पेन बनाने का सोचा जो तीन-आयामी चित्र बना सके।
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    तो, मैंने इस पेन को कार्यान्वित किया
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    जो न केवल डिजाइनरों व वास्तुकारों को
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    तीन-आयामी सोच देने में मदद करता है,
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    पर वास्तव में रच भी सकता है
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    तो इसे प्रयोग करना अधिक सहज़ है।
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    अब मैंने सोचा, "क्यों न एक गूगल मैप बनाया जाए,
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    पर भौतिक दुनिया में?"
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    कुछ ढूढ़ने के लिए एक कीवर्ड लिखने के बजाय,
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    मैंने अपनी वस्तुएँ उसके ऊपर रख दीं।
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    अगर मैं एक बोर्डिंग पास रखूँ, तो वह मुझे फ़्लाइट गेट दिखाएगा।
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    एक कौफ़ी कप दिखाएगा कहाँ मुझे और कौफ़ी मिलेगी,
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    या कहाँ मैं कप को फ़ेंक सकता हूँ ।
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    तो यह मेरी कुछ पुरानी खोजें थीं जिन्हें मैंने किया था क्योंकि
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    मैं इन दोनों संसारों को सीवनरहित जोड़ना चाहता था।
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    इन सभी प्रयोगों में
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    एक चीज़ सामान्य थी:
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    मैं भौतिक दुनिया का एक हिस्सा डिजिट्ल दुनिया में लाने की कोशिश कर रहा था।
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    मै वस्तुओं के कुछ भाग लेता,
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    या वास्तविक दुनिया की कोई भी सहजता,
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    और उन्हें डिजिट्ल दुनिया में लाता,
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    क्योंकि लक्ष्य था हमारे कम्प्यूटिंग यंत्रों को और सहज बनाना।
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    पर तब मुझे अहसास हुआ कि हम मानवों को
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    वास्तव में कम्प्यूटिंग में रुचि नहीं है।
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    हमें दिलचस्पी है जानकारी में।
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    हमें चीज़ों के बारे में जानना चाहते हैं।
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    हम अपने आसपास मौजूद परिवर्तनात्मक चीज़ों के बारे में जानना चाहते हैं।
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    तो मैंने सोचा, पिछ्ले साल--पिछले साल की शुरुआत में--
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    मैंने सोचने लगा, "क्या मैं इस पद्धति को विपरीत ले जा सकता हूँ?"
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    "क्यों न मैं डिजिट्ल दुनिया लेकर
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    भौतिक दुनिया को डिजिट्ल जानकारी से रंग दूँ?"
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    क्योंकि पिक्सल असल में, अभी, इन समकोणीय यंत्रों में कैद हैं
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    जो हमारी जेबों में फ़िट हो जाते हैं।
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    क्यों न मैं इस कैद को हटा दूँ
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    और इसे अपने रोज़ाना जीवन में ले आऊँ
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    ताकि उन पिक्सलों से पारस्परिक व्यवहार करने के लिए
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    मुझे कोई नई भाषा न सीखनी पड़े?
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    तो, इस सपने को पूरा करने के लिए
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    मैंने वास्तव में अपने सिर पर एक प्रोजेक्टर रखने का सोचा।
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    मेरे विचार से इस कारण इसे एक हेड-माउंटेड प्रोजेक्टर कहते हैं, है न?
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    जैसा मैंने कहा,
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    मैंने अपना बाइक हेलमेट लिया,
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    उसे थोड़ा सा काटा ताकि प्रोजेक्टर अच्छी तरह लग जाए।
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    तो अब,
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    मैं इस डिजिट्ल जानकारी से अपनी दुनिया का फ़ैलाव कर सकता हूँ।
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    पर बाद में,
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    मुझे अहसास हुआ मैं इन डिजिट्ल पिक्सल्ज़ के साथ भी कार्य करना चाहता था।
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    तो वहाँ मैंने एक छोटा कैमरा लगाया,
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    जो एक डिजिट्ल आँख का काम करता है।
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    बाद में, हमने इसका एक बेहतर,
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    ग्राहक-अनुकूल पेंडेंट आवृत्तिनिकाला,
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    जिसे आप अब सिक्स्थ सेंस यंत्र के नाम से जानते हैं।
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    पर इस तकनीक की सबसे रोचक तथ्य यह है
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    कि आप अपनी डिजिट्ल दुनिया अपने साथ ले जा सकते हैं
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    जहाँ भी आप जाएँ।
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    आप किसी भी सतह को, पास की दीवार का प्रयोग कर सकते हैं,
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    एक इंटरफेस की तरह।
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    कैमरा आपके सारे संकेतों को भाँप रहा है।
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    जो भी आप अपने हाथों से कर रहे हैं,
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    वह संकेत समझ रहा है।
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    और, जैसा आप देख सकते हैं,हमने प्रारंभिक आवृत्ति के साथ
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    कुछ रंगीन मार्कर प्रयोग किए हैं।
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    आप किसी भी दीवार पर चित्रकारी कर सकते हैं।
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    दीवार के सामने रुककर उस पर चित्र बना सकते हैं।
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    पर हम यहाँ एक ही उंगली से काम नहीं कर रहे हैं।
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    हम आपको दोनों हाथ इस्तेमाल करने की आज़ादी दे रहे हैं,
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    इससे आप दोनों हाथों से किसी नक्शे का आकार बढ़ा व घटा सकते हैं,
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    सिर्फ़ उन सबको दबाने से।
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    कैमरा वास्तव में यह कर रहा है--
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    सारे चित्रों को इकट्ठा करना--
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    व किनारों और रंग की पहचान करना
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    और उसके अंदर कई प्रणालियाँ चल रहीं हैं।
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    तो, तकनीकी तौर पर, यह थोड़ा पेचीदा है,
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    पर यह आपको एक ऐसा उत्पाद देगा जो कुछ हद तक उपयोग करने में सहज है।
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    पर मैं उत्सुक हूँ कि आप इसे बाहर भी ले जा सकते हैं।
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    बजाय अपना कैमरा जेब से निकालने के,
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    आप बस चित्र लेने का संकेत दें
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    और यह आपके लिए चित्र ले लेगा।
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    (तालियाँ)
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    धन्यवाद।
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    और बाद में कहीं भी, किसी भी दीवार पर,
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    मैं चित्रों को देख सकता हूँ
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    या फ़िर, "मैं इस चित्र को थोड़ा सुधार कर
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    अपने मित्र को इमेल कर सकता हूँ ।"
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    तो हम एक ऐसे युग की ओर देख रहे हैं जहाँ
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    कम्प्यूटिंग यथार्थ में भौतिक संसार के साथ मिल जाएगी।
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    और, अगर आपके पास कोई सतह नहीं है,
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    आप अपना हाथ इस्तेमाल कर सकते हैं सरल कामों के लिए।
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    यहाँ, मैं एक फ़ोन नंबर डायल कर रहा हूँ सिर्फ़ अपने हाथ के ज़रिए।
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    यहाँ कैमरा सिर्फ़ आपके हाथों की चाल ही नहीं समझ रहा है,
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    पर, दिलचस्पी से,
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    यह उस वस्तु को भी समझ रहा है जो आपके हाथ में है।
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    यहाँ असल में क्या हो रहा है--
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    उदाहरण के तौर पर, यहाँ,
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    पुस्तक के कवर को
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    हज़ारों या लाखों औनलाइन पुस्तकों के साथ मिलाया
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    व यह भी पता किया कि यह कौन सी पुस्तक है।
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    एक बार इसे यह जानकारी मिल गयी,
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    वह फ़िर उसके बारे में और पुनरवलोकन प्राप्त करता है,
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    या अगर New York Times के पास उसका कोइ ध्वनि पुनरवलोकन है,
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    तो आप उसे एक पु्स्तक पर
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    ध्वनि के रूप में सुन सकते हैं।
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    ("हार्वर्ड विश्वविद्यालय में मशहूर बात ")
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    यह ओबामा की MIT में पिछ्ले हफ़्ते की मुलाकात थी।
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    ("और मैं धन्यवाद करना चाहूँगा दो बेहतरीन MIT")
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    तो, मैं इसकी वीडियो देख रहा था, बाहर, सिर्फ़ एक अखबार पर।
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    आपका अखबार मौसम की ताज़ा जानकारी दिखाएगा
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    बिना उसे अपडेट किये-- जैसे,आपको यह करने के लिए अपना
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    कम्प्यूटर जाँचना पड़ता है, ठीक?
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    (तालियाँ)
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    जब मैं वापस जाऊँ , मैं सिर्फ़ अपना बोर्डिंग पास प्रयोग कर सकता हूँ
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    यह देखने के लिए कि मेरी फ़्लाइट को आने में कितनी देर है,
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    क्योंकि उस समय मुझे नहीं लगता
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    कि मैं अपना iPhone निकालूँगा,
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    और किसी आइकन को ढूँढूगा।
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    और मुझे लगता है कि यह तकनीक उस तरीके को ही नहीं बदलेगी--
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    हाँ ।
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    वह तरीका भी बदलेगी जिस तरह हम लोगों के साथ व्यवहार करते हैं,
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    नाकि केवल भौतिक दुनिया।
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    मज़ेदार बात यह है, मैं Boston मैट्रो में जाता हूँ
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    और पौंग खेल सकता हूँ ट्रेन के अंदर
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    सतह पर, ठीक?
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    (हँसी)
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    और मुझे लगता है कि कल्पना ही सीमा है
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    कि आप क्या इजाद कर सकते हैं
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    जब यह तकनीक असल ज़िन्दगी के साथ जा मिलेगी।
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    पर आप में से कई यह बोलेंगे, कि
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    हमारा सारा काम वस्तुओं के साथ तो होता नहीं है।
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    हम बहुत सी गणना व संपादन
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    और ऐसी बहुत सी चीज़ें करते हैं, उनका क्या?
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    और आप में से बहुत उन टेबलेट कमप्यूटरों को
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    बाज़ार में आने को लेकर काफ़ी उत्सुक हैं।
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    तो, बजाय उनका इंतज़ार करने के
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    मैंने वह अपना खुद का बनाया, सिर्फ़ एक कागज़ को लेकर।
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    तो, मैंने यहाँ अपना कैमरा निकाल दिया--
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    हर वेबकैम कैमरे के अंदर एक माइक्रोफ़ोन लगा होता है।
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    मैंने वह माइक्रोफोन वहाँ से निकाल दिया,
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    और उसे सिर्फ़ दबाया--
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    जैसे मैंने माइक्रोफ़ोन से एक क्लिप बनाया--
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    और उसे एक कागज़ से जोड़ दिया, किसी भी कागज़ से।
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    तो अब स्पर्श की ध्वनि मुझे बताती है
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    कि कब मैं कागज़ को छू रहा हूँ ।
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    पर कैमरा असल में देख रहा है कि मेरी अँगुलियां कहाँ जा रहीं हैं।
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    आप मूवीज़ भी देख सकते हैं।
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    ("Good Afternoon. My name is Russell...")
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    ("...and I am a Wilderness Explorer in Tribe 54.")
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    और आप गेम भी खेल सकते हैं।
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    (कार इंजिन)
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    यहाँ, कैमरा असल में समझ रहा है कि कैसे आपने कागज़ को पकड़ा हुआ है
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    और आप एक कार-रेसिंग गेम खेल रहे हैं।
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    (तालियाँ )
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    आप में से बहुतों ने यह सोचा होगा, ठीक है, आप ब्राउज़ कर सकते हैं।
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    हाँ, आप किसी भी वेबसाइट को ब्राउज़ कर सकते हैं
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    या आप किसी भी प्रकार की क्म्प्यूटिंग कर सकते हैं एक कागज़ पर
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    जहाँ भी आप चाहें।
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    तो, दिलचस्प तौर पर,
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    मैं इसे एक और परिवर्तनात्मक तरीके में उपयोग करना चाहूँगा।
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    जब मैं वापस आऊँ मैं उस जानकारी को बस दबाकर
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    अपने डेस्क्टोप पर ला सकता हूँ ताकि
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    उसे मैं अपने क्म्प्यूटर पर प्रयोग कर सकूँ ।
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    (तालियाँ )
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    और सिर्फ़ क्म्प्यूटर ही क्यों? हम बस कागज़ों के साथ खेल सकते हैं।
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    कागज़ी दुनिया के साथ खेलना अधिक दिलचस्प है।
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    यहाँ, मैं एक पत्र का एक भाग लेता हूँ
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    और वहाँ दूसरी जगह से दूसरा भाग लेता हूँ--
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    और मैं असल में जानकारी में परिवर्तन करता हूँ
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    जो वहाँ मेरे पास है।
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    हाँ, और मैंने कहा, "ठीक है, ये अच्छा लगता है,
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    क्यों न मैं इसे प्रिंट कर दूँ ।"
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    तो अब मेरे पास उस चीज़ का प्रिंट-प्रति मेरे पास है, और अब--
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    कार्यप्रवाह बहुत ही सहजज्ञान हो गया है
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    आज से 20 साल पहले के अपेक्षा,
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    हमें इन दोनों संसारों को बदलने की ज़रूरत नहीं है।
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    तो, मेरे ख्याल में,
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    मैं सोचता हूँ कि रोज़मर्रा की वस्तुओं की जानकारियाँ एक करने से
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    न सिर्फ़ हमें डिजिट्ल विभाजन से छुटकारा मिलेगा,
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    इन दोनों संसारों के बीच की दूरी,
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    बल्कि यह हमारी एक तरह से मदद भी करेगा,
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    मानव रहने में,
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    भौतिक दुनिया से और जुड़े रहने में।
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    और यह वास्तव में हमारी मदद करेगा, कि हम मशीन बनकर
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    मशीनों के सामने न बैठे रहें।
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    बस यही। धन्यवाद्।
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    (तालियाँ )
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    धन्यवाद्।
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    (तालियाँ )
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    क्रिस एंडर्सन: तो, प्रणव,
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    सबसे पहले, तुम प्रतिभाशाली हो।
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    ये अविश्वसनीय है, सच में।
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    तुम इसके साथ क्या करोगे? क्या किसी कंपनी की योजना है?
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    या यह हमेशा शोध रहेगा, या क्या?
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    प्रणव मिस्ट्री: वैसे बहुत सी कंपनियाँ हैं--
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    असल में Media Lab की प्रायोजक कंपनियाँ--
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    जो इसे किसी न किसी तरीके से आगे ले जाने के लिए उत्सुक हैं।
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    मोबाइल फ़ोन ओपरेटर कंपनियाँ जो इसे अलग रूप में
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    देखती हैं जैसे भारत के NGO,
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    जो सोचती हैं,"हमारे पास केवल Sixth Sense ही क्यों?
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    हमारे पास Fifth Sense भी होनी चाहिए इंद्रि रहित लोगों के लिए
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    जो बोल नहीं सकते।
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    इस तकनीक को अलग तरीके से बोलने के लिए उपयोग कर सकते हैं
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    जैसे एक स्पीकर सिस्ट्म के साथ।"
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    क्रिस एंडर्सन: आपकी क्या योजनाएँ हैं? क्या आप MIT में रहेंगे,
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    या आप इसके साथ कुछ करने वाले हैं?
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    प्रणव मिस्ट्री: मैं इसे लोगों को ज़्यादा उपल्ब्ध कराना चाहता हूँ
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    ताकि हर कोई अपना खुद का Sixth Sense यंत्र विकसित कर सकें
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    क्योंकि न तो हार्डवेयर बनाना असल में इतना मु्श्किल है,
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    न खुद का बनाना।
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    हम उनके लिए सारा ओपन सोर्स सोफ़्ट्वेयर देंगे,
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    शायद अगले महीने से।
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    क्रिस एंडर्सन: ओपन सोर्स, वाह।
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    (तालियाँ )
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    क्रिस एंडर्सन: क्या आप इसके साथ भारत वापस आना चाहेंगे?
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    प्रणव मिस्ट्री: हाँ। हाँ,हाँ बिल्कुल।
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    क्रिस एंडर्सन: क्या योजना है आपकी? MIT?
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    भारत? आगे बढ़ने के लिए आप कैसे समय बाँटेंगे?
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    प्रणव मिस्ट्री: यहाँ बहुत सी ऊर्जा है। बहुत सा ज्ञान।
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    जो भी काम आज आपने देखा वह सब भारत में
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    मेरे ज्ञान के बारे में है।
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    और अब, अब अगर आप लागत-प्रभाव के बारे में देखें:
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    इस पद्धति का मूल्य सिर्फ़ 300 डालर है
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    यदि इसकी तुलना 20,000 डालर सर्फ़ेस टेब्ल्ज़ से की जाए, या उसके जैसा कुछ भी।
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    या वह माउस संकेत पद्धति जो
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    उस समय 5000 डालर की थी?
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    तो, हमने-- मैंने, एक सभा में,
  • 12:58 - 13:00
    राष्ट्रपति अब्दुल कलाम को यह दिखाया, उस समय,
  • 13:00 - 13:03
    और उन्होंने कहा,"ठीक है, हमें इसे Bhabha Atomic Research Centre में लाना चाहिए
  • 13:03 - 13:05
    किसी उपयोग के लिए।"
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    तो मैं बहुत उत्सुक हूँ कि कैसे मैं इस तकनीक को आम लोगों तक पहुँचा सकूँ
  • 13:08 - 13:11
    बजाय इसके कि मैं इस तकनीक को सिर्फ़ प्रयोगशाला में रखूँ ।
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    (तालियाँ )
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    क्रिस एंडर्सन: जैसे लोग मैंने TED पर देखें हैं उस आधार पर
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    मैं कहना चाहूँगा कि आप अभी दुनिया में मौजूद
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    दो या तीन आविष्कारकों में से एक हैं।
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    आपका TED पर होना हमारा लिए सम्मान है।
  • 13:23 - 13:25
    बहुत बहुत धन्यवाद्।
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    यह अदभुत है।
  • 13:26 - 13:30
    (तालियाँ )
Title:
प्रणव मिस्त्रीः सिक्स्थ सेंस तकनीक का रोमांचक सामर्थ्य
Speaker:
Pranav Mistry
Description:

TEDIndia पर, प्रणव मिस्ट्री उन साधनों का प्रदर्शन करते हैं जो भौतिक दुनिया को जानकारी के संसार के साथ व्यवहार करने में मदद करते हैं--साथ में एक गहरी नज़र उनके सिक्स्थ सेंस यंत्र और एक नये, क्रान्तिकारी कागज़ी "लैपटॉप" पर। मंच पर हुए सवाल-जवाब में मिस्ट्री कहते हैं सिक्स्थ सेंस के पीछे का सोफ़्ट्वेयर ओपन सोर्स होगा, ताकि संभावनाएँ सबके लिए खुलें।

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Video Language:
English
Team:
closed TED
Project:
TEDTalks
Duration:
13:30
Kuldeep Singh added a translation

Hindi subtitles

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