Inner Worlds, Outer Worlds - Part 1 - Akasha
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0:19 - 0:22सृष्टि के आरंभ में था लोगोस (नाद/शब्द),
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0:22 - 0:25महाविस्फोट (बिग बैंग), प्रारंभिक ओम् (ओंकार नाद) ।
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0:25 - 0:29महाविस्फोटक सिद्धांत के अनुसार भौतिक सर्पिल
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0:29 - 0:32ब्रह्माण्ड एक अकल्पनीय गर्म और सघन एकल
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0:32 - 0:35बिंदु से प्रकट हुआ जो विलक्षण कहलाता है- पिन
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0:35 - 0:39की नोक से करोड़ों गुना सूक्ष्म ।
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0:39 - 0:44क्यों और कैसे, यह स्पष्ट नहीं । कोई वस्तु
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0:44 - 0:47जितनी रहस्मयमय हो, हमें लगता है
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0:47 - 0:54हम उसे जान गए हैं।
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0:54 - 1:03ऐसा सोचा गया कि अंततोगत्वा गुरुत्वाकर्षण
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1:03 - 1:08या तो विस्तार को धीमा करेगा
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1:08 - 1:12या ब्रह्माण्ड के लिए विकट स्थिति पैदा करेगा ।
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1:12 - 1:16लेकिन हब्बल अंतरिक्ष दूरबीन की छवियों से
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1:16 - 1:21पता चलता है कि ब्रह्माण्ड के विस्तार
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1:21 - 1:26में वास्तव में तेजी आई । ज्यों-ज्यों यह महाविस्फोट से बाहर आया,
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1:26 - 1:33इसमें तेजी से विस्तार होने लगा । पता नहीं कैसे, पर ब्रह्माण्ड में भौतिकी के पूर्वानुमान से कहीं अधिक
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1:33 - 1:38द्रव्यमान है। लापता द्रव्यमान की खोज में भौतिकविद मानते हैं कि ब्रह्माण्ड में केवल 4% परमाणु खनिज है,
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1:38 - 1:47जिसे हम सामान्य खनिज कहते हैं । ब्रह्माण्ड में 23% अविज्ञ पदार्थ है
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1:47 - 1:55और 73% निष्क्रिय ऊर्जा है – जिस पर पहले हमने रिक्त स्थान के रूप में विचार किया था ।
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1:55 - 2:00यह अदृश्य तंत्रिका तंत्र की तरह है जो सभी वस्तुओं को संबद्ध करते हुए समग्र
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2:00 - 2:08ब्रह्माण्ड में संचालित होता है ।
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2:08 - 2:11प्राचीन वैदिक शिक्षकों ने सिखाया कि नाद
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2:11 - 2:14ब्रहृम है-ब्रह्माण्ड कंपायमान है ।
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2:14 - 2:18कंपायमान क्षेत्र समस्त मूल आध्यात्मिक अनुभव
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2:18 - 2:20और वैज्ञानिक अन्वेषण का आधार है ।
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2:20 - 2:26यह ऊर्जा का वही क्षेत्र है जिसे संतों,
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2:26 - 2:31बुद्धजनों, योगियों, मनीषियों, पादरियों, शमन और मठवासियों ने अपने
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2:31 - 2:42भीतर खोज कर महसूस किया । इसे संपूर्ण इतिहास में आकाश, प्रारंभिक ओम्,
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2:42 - 2:47इंद्र का रत्नजाल, खगोल का संगीत और
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2:47 - 2:55न जाने कितने हज़ारों अन्य नाम दिए गए ।
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2:55 - 3:05यह सभी धर्मों का आधार है ।
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3:05 - 3:34और यह हमारे भीतरी और बाहरी दुनिया की संपर्क कड़ी है।
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3:34 - 3:36तीसरी सदी में महायान बौद्ध धर्म में ब्रह्माण्ड-विज्ञान
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3:36 - 3:39की जो व्याख्या की गई है, वह आज की उन्नत
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3:39 - 3:42भौतिकी से भिन्न नहीं है ।
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3:42 - 3:46इंद्र का रत्नजाल अति प्राचीन वैदिक शिक्षा
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3:46 - 3:50को परिभाषित करने के लिए प्रयुक्त एक उपमा है जो ब्रह्माण्ड
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3:50 - 3:51की संरचना को स्पष्ट करता है ।
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3:51 - 3:55देवताओं के राजा इंद्र ने सूर्य को जन्म दिया और
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3:55 - 4:04वायु एवं जल को गतिशील बनाया ।
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4:04 - 4:09मकड़ी के जाल की कल्पना कीजिए जो सभी दिशाओं में फैला होता है ।
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4:09 - 4:10जाला, ओस की बूंदों से बना होता है और प्रत्येक
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4:10 - 4:15बूंद में जल की अन्य सभी बूंदों का प्रतिबिंब होता
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4:15 - 4:19है और प्रत्येक प्रतिबिंबित ओस की बूंद में आप
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4:19 - 4:23अन्य सभी ओस की बूदों का प्रतिबिंब देख सकेंगे ।
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4:23 - 4:27उस प्रतिबिंब में, इसी प्रकार पूरा जाल अनंत
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4:27 - 4:29सीमा तक फैला होता है ।
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4:29 - 4:32इंद्र के जाल को स्वलिखित ब्रह्माण्ड के रूप में वर्णित किया जा
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4:32 - 4:35सकता है जहां प्रकाश की क्षणिक झलक में
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4:35 - 4:42भी पूर्णता का एहसास होता है ।
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4:42 - 4:46सर्बियाई अमेरिकी वैज्ञानिक, निकोला टेस्ला
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4:46 - 4:49को कभी-कभी "20वीं सदी की खोज करने वाले व्यक्ति"
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4:49 - 4:50का श्रेय दिया जाता है ।
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4:50 - 4:53टेस्ला प्रत्यावर्ती विद्युत धारा की खोज तथा कई
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4:53 - 4:55अन्य सृजनों के लिए विख्यात थे,
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4:55 - 4:59जो आज हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा हैं ।
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4:59 - 5:02प्राचीन वैदिक परंपराओं में अपनी रुचि के कारण,
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5:02 - 5:06टेस्ला पूर्वी और पश्चिमी मॉडल, दोनों के माध्यम से विज्ञान
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5:06 - 5:10को समझने की अदि्वतीय स्थिति में था ।
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5:10 - 5:13सभी महान वैज्ञानिकों की तरह टेस्ला ने न
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5:13 - 5:15केवल बाहरी संसार के रहस्य को गहराई से देखा,
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5:15 - 5:20बल्कि अपने भीतर की गहराई में भी झाँका।
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5:20 - 5:23प्राचीन योगियों की तरह, टेस्ला ने स्वर्गिक अनुभव
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5:23 - 5:32को वर्णित करने के लिए आकाश शब्द का प्रयोग किया,
जो सभी वस्तुओं में प्रसरित है । -
5:32 - 5:36टेस्ला ने योगी स्वामी विवेकानंद के साथ अध्ययन किया,
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5:36 - 5:38जिन्होंने भारत की प्राचीन शिक्षा को पश्चिम तक पहुंचाया ।
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5:38 - 5:43वैदिक शिक्षाओं में आकाश स्वयं में शून्य है;
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5:43 - 5:45वह शून्य जिसमें अन्य तत्व भरे हैं,
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5:45 - 5:49जो कंपन सहित उपस्थित रहते हैं ।
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5:49 - 6:00दोनों अभिन्न हैं । आकाश यिन है और प्राण यांग ।
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6:00 - 6:09एक आधुनिक संकल्पना जिससे आकाश अथवा प्राथमिक
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6:09 - 6:16अस्तित्व की अवधारणा का हमें पता चल सकता है, वह है अंश की अद्भुत कल्पना ।
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6:16 - 6:201980 के दशक के बाद ही कंप्यूटर के क्षेत्र में प्रगति ने प्रकृति के ढांचे
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6:20 - 6:23की गणितीय कल्पना कर उसे वास्तविक
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6:23 - 6:26रूप में पहचानने का हमें अवसर दिया ।
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6:26 - 6:29`फ्रैक्टल` अर्थात अंश शब्द का गठन 1980
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6:29 - 6:31में गणितज्ञ बेनॉयट मेंडेलब्रॉट ने किया
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6:31 - 6:35जब उन्होंने कुछ गणितीय समीकरणों का अध्ययन
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6:35 - 6:37करने पर पाया कि एक सीमित
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6:37 - 6:40दायरे में दोहराने पर वे अंतहीन गणितीय
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6:40 - 6:42अथवा ज्योमितीय रूप में बदलती हैं ।
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6:42 - 6:48वे सीमित हैं लेकिन साथ ही अनंत भी ।
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6:48 - 6:52एक अंश एक स्थूल ज्यामितीय आकार है,
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6:52 - 6:56जिसे अनेक हिस्सों में विभाजित किया जा सकता है,
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6:56 - 6:59जिनमें से प्रत्येक लगभग संपूर्ण आकार का संक्षिप्त प्रतिरूप है –
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6:59 - 7:06एक गुण जिसे “समरूपता“ कहा जाता है
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7:06 - 7:07मेंडेलब्राट के `अंश` को ईश्वर के अंगूठे
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7:07 - 7:23की छाप कहा गया है ।
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7:23 - 7:27आप प्रकृति की स्वयं निर्मित कलाकृति देख रहे हैं ।
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7:27 - 7:30यदि आप मेंडेलब्राट की आकृति को एक विशिष्ट तरीक़े से
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7:30 - 7:34घुमाएँ तो यह किसी हिन्दू देवता अथवा बुद्ध के समान दिखाई देगा ।
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7:34 - 7:53इसे `बुद्धब्राट आकार` नाम दिया गया है ।
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7:53 - 8:01यदि आप किन्हीं प्राचीन कला और स्थापत्य कला के रूप देखें,
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8:01 - 8:03आप पाएंगे कि मानवों ने ज़माने से सौंदर्य और
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8:03 - 8:18पवित्रता को फ़्रैक्टल पैटर्न के साथ जोड़ा है ।
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8:18 - 8:21अत्यंत जटिल, फिर भी कण-कण में
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8:21 - 8:24उसकी पूर्णता का बीज है ।
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8:24 - 8:27फ्रैक्टल्स यानी अंशों ने सृष्टि और इसकी संचालन प्रक्रिया पर
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8:27 - 8:30गणितज्ञों का दृष्टिकोण बदला है ।
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8:30 - 8:33आवर्धन के हर नए स्तर के साथ,
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8:33 - 8:36मूल से भिन्नता उजागर होती हैं ।
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8:36 - 8:39जब हम फ्रैक्टल के एक स्तर से दूसरे स्तर पर पारगमन करते
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8:39 - 8:43हैं तो सतत परिवर्धन एवं रूपांतरण घटित होता है ।
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8:43 - 8:46यह रूपांतरण ब्रह्माण्डीय सर्पिल गति में होता है ।
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8:46 - 9:15दिक्काल के सांचे में सन्निहित बुद्धिमता ।
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9:15 - 9:19फ्रैक्टल्स यानी `अंश` सहज रूप से अस्तव्यस्त - शब्द एवं नियम से भरपूर हैं।
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9:19 - 9:23हमारे मस्तिष्क किसी आकार को जब पहचानते या परिभाषित करते हैं,
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9:23 - 9:26तो हमारा ध्यान उस पर यूं केन्द्रित होता है मानो वह कोई वस्तु हो ।
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9:26 - 9:30हम आकारों को देखी गई सुंदरता के अनुरूप ढूंढते हैं,
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9:30 - 9:32किन अपने मस्तिष्क में इन आकारों को बनाए
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9:32 - 9:53रखने के क्रम में हमें शेष फ्रैक्टल्स हटा देने चाहिए ।
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9:53 - 9:55फ्रैक्टल्स को चेतनाओं में समाविष्ट करना,
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9:55 - 10:01इसका संचालन सीमित करना है ।
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10:01 - 10:05ब्रह्माण्ड में समस्त ऊर्जा तटस्थ,
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10:05 - 10:10शाश्वत, आयामहीन है ।
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10:10 - 10:14हमारी अपनी रचनात्मकता और आकार की पहचान क्षमता,
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10:14 - 10:18सूक्ष्म जगत एवं ब्रह्माण्ड के बीच की कड़ी है ।
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10:18 - 10:24लहरों का शाश्वत जगत और ठोस वस्तुओं का जगत ।
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10:24 - 10:29चिंतन की स्वभाविक सीमाओं में
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10:29 - 10:32अवलोकन करना एक सृजनात्मकता है ।
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10:32 - 10:34हम वर्गीकरण द्वारा नाम देकर,
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10:34 - 10:37चीजों के ठोसपन का भ्रम पैदा करते हैं ।
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10:37 - 10:40दार्शनिक कीर्केगार्ड ने कहा,
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10:40 - 10:43"यदि आप मेरा नाम रखते हैं तो आप मुझे नकारते हैं ।
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10:43 - 10:46मेरा नाम रखकर, वर्गीकरण कर, आप उन सभी
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10:46 - 10:50अन्य चीजों को नकार देते हैं जिनकी मुझमें होने की संभावना हो सकती है ।
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10:50 - 10:53आप कण को नाम देकर उसकी वस्तु
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10:53 - 10:56के रूप में व्याख्या कर देते हैं,
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10:56 - 10:57आप उसके अस्तित्व को परिभाषित
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10:57 - 11:03कर उसका सृजन कर देते हैं ।"
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11:03 - 11:06सृजनात्मकता हमारी सर्वोच्च प्रकृति है ।
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11:06 - 11:10वस्तुओं के सृजन से, ऐसी स्थिति बनती
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11:10 - 11:17है जब चीजों में ठोसपन का भ्रम हो ।
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11:17 - 11:22आइन्सटीन पहला वैज्ञानिक था जिसने महसूस
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11:22 - 11:26किया कि जिस अंतरिक्ष को हम शून्य मानते हैं,
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11:26 - 11:29वह ऐसा है नहीं, उसकी विशेषताएं हैं,
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11:29 - 11:30अंतरिक्ष की प्रकृति अथाह
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11:30 - 11:35आंतरिक ऊर्जा से भरपूर है ।
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11:35 - 11:38प्रतिष्ठित भौतिक शास्त्री रिचर्ड फैनमेन ने एक बार कहा,
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11:38 - 11:41"अंतरिक्ष के अकेले क्यूबिक मीटर में इतनी ऊर्जा है
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11:41 - 11:48कि विश्व के सभी महासागर उबल सकें ।"
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11:48 - 11:51गंभीर ध्यानी जानते हैं कि अधिकतम
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11:51 - 11:54ऊर्जा मौन में है ।
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11:54 - 11:59बुद्ध के पास इस तात्विक सार के लिए एक और शब्द था
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11:59 - 12:03जिसे उन्होंने `कल्प` कहा, जो सूक्ष्म कणों या तरंगिकाओं
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12:03 - 12:08की तरह हैं और प्रति सेकंड खरबों बार उत्पन्न
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12:08 - 12:18व लुप्त होती हैं । इस अर्थ में वास्तविकता,
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12:18 - 12:21स्वलिखित फ़िल्म कैमरे में तेज़ी से गतिशील फ़्रेमों की शृंखला
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12:21 - 12:27द्वारा सातत्य का भ्रम पैदा करने के समान है ।
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12:27 - 12:30चेतना के पूर्णतया स्थिर होने पर यह भ्रम समझा
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12:30 - 12:32जा सकता है चूंकि यह चेतना ही है जो
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12:32 - 13:18भ्रम को संचालित करती है ।
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13:18 - 13:20पूर्वी प्राचीन परंपराओं में,
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13:20 - 13:22सदियों से यह समझा गया है कि सब
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13:22 - 13:26कुछ कंपायमान है ।
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13:26 - 13:31`नाद ब्रह्म`-ब्रह्माण्ड ध्वनि है ।
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13:31 - 13:35`नाद` शब्द का अर्थ है ध्वनि या कंपन और
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13:35 - 13:38`ब्रह्म` ईश्वर का नाम है ।
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13:38 - 13:43इसके साथ ही ब्रह्मा, ब्रह्माण्ड या ईश है और ईश सृजक है ।
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13:43 - 13:49कलाकार और कला अभिन्न हैं ।
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13:49 - 13:51उपनिषदों में,
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13:51 - 13:54जोकि प्राचीन भारत के प्राचीनतम मानव जाति के अभिलेख हैं,
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13:54 - 13:59यह कहा गया है "कमल पर बैठे सृजक ब्रह्मा
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13:59 - 14:06के नेत्र खुलने पर जगत अस्तित्व में आता है ।
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14:06 - 14:07ब्रहृमा के नेत्र मूंदते ही जगत
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14:07 - 14:14का अस्तित्व मिट जाता है ।
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14:14 - 14:16"प्राचीन रहस्यवादियों, योगियों और ॠषियों
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14:16 - 14:18ने माना कि चेतना का
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14:18 - 14:20मूल एक आधार है ।
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14:20 - 14:24आक्षिक क्षेत्र अथवा आक्षिक अभिलेख,
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14:24 - 14:28जहां विगत, वर्तमान और भविष्य की सभी जानकारियां,
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14:28 - 14:32सभी अनुभव अस्तित्व में हैं और सदा रहती हैं ।
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14:32 - 14:33यह वही क्षेत्र अथवा आव्यूह है जहां
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14:33 - 14:36से सभी वस्तुएं प्रकट होती हैं ।
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14:36 - 14:40उप-परमाणु अणुओं से लेकर आकाशगंगा,
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14:40 - 14:51नक्षत्र, सितारे और समस्त जीवन चक्र तक।
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14:51 - 14:53आप इसे समग्रता में कभी
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14:53 - 14:56नहीं देख पाते, क्योंकि यह कंपन परत-दर-परत
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14:56 - 14:59पर बना है और निरंतर
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14:59 - 15:05परिवर्तनशील है, आकाश से जानकारी का आदान-प्रदान कर रही हैं।
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15:05 - 15:17वृक्ष जल ग्रहण कर रहा है सूर्य, वायु,
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वर्षा तथा पृथ्वी से । -
15:17 - 15:19वस्तु के भीतर और बाहर ऊर्जा का संसार संचालित
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15:19 - 15:22है जिसे हम वृक्ष कहते हैं ।
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15:22 - 15:24जब विचारशील मस्तिष्क शांत हो,
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15:24 - 15:27तो आप यथार्थ को वास्तविक रूप में देखते हैं ।
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15:27 - 15:30सभी अवस्थाएं एक साथ ।
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15:30 - 15:33वृक्ष एवं आकाश और पृथ्वी तथा वर्षा
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15:33 - 15:36एवं सितारे पृथक नहीं ।
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15:36 - 15:41जीवन और मृत्यु हमारी अपनी या किसी अन्य की, पृथक नहीं हैं ।
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15:41 - 15:46ठीक वैसे ही जैसे पर्वत और वादियां अभिन्न हैं ।
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15:46 - 15:47अमेरिका की आदिवासी तथा अन्य देशज
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15:47 - 15:49परंपराओं में कहा गया है कि प्रत्येक
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15:49 - 15:52वस्तु में जीव है जिसे अन्य तरीक़े से कहा
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15:52 - 15:54जा सकता है कि प्रत्येक वस्तु
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15:54 - 15:58स्पंदनशील स्रोत से संबद्ध है ।
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15:58 - 16:02सर्वत्र एक चेतना, एक व्यापकता,
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16:02 - 16:05एक ऊर्जा विद्यमान है ।
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16:05 - 16:08यह व्याप्ति आपके आसपास नहीं,
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16:08 - 16:10बल्कि यह आपके माध्यम से घटित हो रही है और आपके
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16:10 - 16:15वास्तविक स्वरूप के अनुसार घटित हो रही है ।
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16:15 - 16:19आप ब्रह्मांड का अंश हैं ।
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16:19 - 16:25आप नेत्र हैं जिनके माध्यम से सृजक स्वयं को देखता है ।
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16:25 - 16:27स्वप्न से बाहर आने पर आप महसूस करते हैं कि
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16:27 - 16:30स्वप्न में सब कुछ आप ही थे ।
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16:30 - 16:32आप इसे सृजित कर रहे थे।
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16:32 - 16:34तथाकथित वास्तविक जीवन अलग नहीं है।
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16:34 - 16:38प्रत्येक व्यक्ति और प्रत्येक वस्तु आप हैं।
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16:38 - 16:46प्रत्येक नेत्र की चेतन दृष्टि, प्रत्येक चट्टान के नीचे छिपे
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16:46 - 17:07प्रत्येक अणु के भीतर तक देखती है ।
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17:07 - 17:09सीईआरएन, कण भौतिक शास्त्र की यूरोपियन
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17:09 - 17:12प्रयोगशाला के अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधानकर्ता
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17:12 - 17:13इस क्षेत्र के लिए अनुसंधान कर रहे हैं,
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17:13 - 17:16जो सभी वस्तुओं में विद्यमान हैं ।
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17:16 - 17:18लेकिन इसके भीतर झांकने की बजाय वे
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17:18 - 17:24बाहरी भौतिक संसार देखते हैं ।
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17:24 - 17:26जेनेवा, स्विट्जरलैंड के सीईआरएन की प्रयोगशाला
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17:26 - 17:28में अनुसंधानकर्ताओं ने घोषित किया कि उन्होंने
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17:28 - 17:32हिग्स बोसन या ईश्वर कण खोज लिया है ।
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17:32 - 17:35हिग्स बोसन के प्रयोगों ने वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित किया कि
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17:35 - 17:41अदृश्य ऊर्जा फील्ड अंतरिक्ष का शून्य भर देती है ।
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17:41 - 17:44सीईआरएन का बड़ा हैडरॉन कोलाईडर
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17:44 - 17:48(गोलाकार) 17 मील की परिधि में है जिसमें
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17:48 - 17:51दो किरण पुंज विपरीत दिशाओं में दौड़ते
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17:51 - 17:53हैं और प्रकाश की गति के निकट एक साथ
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17:53 - 17:55टकराकर नष्ट हो जाते हैं ।
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17:55 - 17:57वैज्ञानिकों ने देखकर जाना कि प्रचंड
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17:57 - 18:02टकराहट से क्या हासिल होता है ।
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18:02 - 18:04मानक मॉडल यह पता नहीं लगा सकता कि
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18:04 - 18:07अणुओं का द्रव्यमान कहाँ से आता है।
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18:07 - 18:09प्रत्येक पदार्थ कंपन से निर्मित दृष्टिगोचर होता है,
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18:09 - 18:16लेकिन कोई चीज कंपित नहीं हो रही होती ।
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18:16 - 18:19लगता है मानो कोई अदृश्य नर्तक ब्रह्मांड की
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18:19 - 18:23नृत्य-नाटिका में छिप कर छाया नर्तन कर रहा हो ।
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18:23 - 18:26अन्य सभी नर्तक हमेशा इस छिपे
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18:26 - 18:29नर्तक के आसपास नृत्य करते हैं ।
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18:29 - 18:31हमने नृत्य की नृत्यकला देखी लेकिन
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18:31 - 18:41अब तक उस नर्तक को नहीं देख सके ।
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18:41 - 18:44तथाकथित "ईश्वर कण",
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18:44 - 18:47ब्रह्माण्ड का आधार तत्व का गुण,
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18:47 - 18:49सभी पदार्थों का अंत:स्तल है, जो उस रहस्यमय द्रव्यमान
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18:49 - 18:56एवं ऊर्जा के साथ ब्रह्माण्ड के विस्तार को संचालित करता है ।
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18:56 - 18:59लेकिन ब्रह्माण्ड की प्रकृति की व्याख्या करना तो दूर की बात,
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18:59 - 19:02हिग्स बोसन की खोज ने बड़े-बड़े रहस्य साधारण
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19:02 - 19:05रूप में प्रस्तुत किए, जिसने वह ब्रह्माण्ड उद्घाटित
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19:05 - 19:11किया जो हमारी कल्पना से कहीं अधिक रहस्यपूर्ण है ।
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19:11 - 19:14विज्ञान चेतना और पदार्थ के बीच की सीमा-रेखा के
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19:14 - 19:15सन्निकट है ।
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19:15 - 19:19वह दृष्टि जिससे हम प्रारंभिक सिद्धांत का क्षेत्र देखते हैं और
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19:19 - 19:21वह दृष्टि जिससे क्षेत्र हमें देखता है,
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19:21 - 19:35एक ही है ।
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19:35 - 19:38जर्मन लेखक और विद्वान वुल्फगेंग वॉन गोयथे ने कहा है,
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19:38 - 19:41"तरंग आदिकालीन तथ्य है
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19:41 - 19:45जिससे विश्व उत्पन्न हुआ" ।
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19:45 - 19:54सिमेटिक दृश्य ध्वनि का अध्ययन है ।
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19:54 - 19:57सिमेटिक शब्द ग्रीक के मूल शब्द `साईमा`
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19:57 - 20:09से बना, जिसका अर्थ है - तरंग या कंपन ।
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20:09 - 20:11तरंगीय तथ्य का गंभीरता से अध्ययन करने वालों
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20:11 - 20:13में प्रथम पश्चिमी वैज्ञानिक अर्नस्ट श्लाड्नी,
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20:13 - 20:16अठारहवीं शताब्दी का एक जर्मन
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20:16 - 20:18संगीतज्ञ एवं भौतिक विज्ञानी था ।
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20:18 - 20:20श्लाड्नी ने खोज की कि धातु की प्लेटों पर रेत फैला कर वायलन
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20:20 - 20:24गज से जब प्लेटों को डुलाया गया,
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20:24 - 20:29तो रेत स्वत: प्रतिकृतियों में व्यवस्थित हो गई ।
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20:29 - 20:31उत्पादित कंपन के आधार पर भिन्न-भिन्न
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20:31 - 20:38ज्यामितिक स्वरूप दृष्टिगोचर हुए ।
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20:38 - 20:40श्लाड्नी ने इन रूपों की समूची तालिका रिकार्ड
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20:40 - 20:43की, जिन्हें श्लाड्नी आकृतियों के रूप में उल्लिखित
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20:43 - 20:45किया जाता है ।
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20:45 - 20:47इनमें कई प्रतिकृतियों को समग्र प्राकृतिक विश्व में
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20:47 - 20:54देखा जा सकता है । जैसे कछुए या तेंदुए की
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20:54 - 21:04चित्तियों की प्रतिकृतियों के निशान ।
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21:04 - 21:07श्लाड्नी की प्रतिकृतियों या साइमेटिक प्रतिकृतियों का अध्ययन
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21:07 - 21:10एक गोपनीय विधि है जिसके माध्यम से उन्नत गिटार, वॉयलिन
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21:10 - 21:22और अन्य वाद्ययंत्रों के निर्माता वाद्ययंत्रों की ध्वनि गुणवत्ता का निर्धारण करते हैं ।
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21:22 - 21:28हैंस जेनी ने वर्ष 1960 में श्लाड्नी का कार्य आगे बढ़ाया और ध्वनि
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21:28 - 21:31नैरंतर्य को विकसित करने के लिए विभिन्न द्रव्य एवं इलेक्ट्रॉनिक प्रवर्धकों का
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21:31 - 21:37प्रयोग किया एवं `सिमेटिक्स` (तरंग) ध्वनि का सृजन किया ।
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21:37 - 21:41यदि आप जल में सामान्य तरंगों की ओर दौड़ते
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21:41 - 21:44हैं तो आप जल में प्रतिकृतियां देख सकते हैं ।
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21:44 - 21:46तरंग की आवृत्ति के आधार पर विभिन्न
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21:46 - 21:47तरंगित प्रतिकृतियाँ दृष्टिगोचर होंगी ।
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21:47 - 21:52आवृत्ति के बढ़ने पर प्रतिकृति जटिल होती जाएगी ।
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21:52 - 21:55इन स्वरूपों की पुनरावृति होगी, लेकिन ये बेतरतीब नहीं होंगी ।
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21:55 - 21:57जितना अधिक आप इन पर ध्यान केंद्रित करेंगे,
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21:57 - 22:02उतना ही आपको इस बात का एहसास होगा कि किस प्रकार तरंग पदार्थ
को साधारण दुहराव -
22:02 - 22:04वाले तरंगों से जटिल रूपों में व्यवस्थित करने लगती हैं ।
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22:04 - 22:30इस जलतरंग की प्रतिकृति सूर्यमुखी फूल के समान है ।
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22:30 - 22:32मात्र ध्वनि नैरंतर्य के परिवर्तन से हम
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22:32 - 22:52विभिन्न प्रतिकृतियां पा जाते हैं ।
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22:52 - 22:55जल अत्यंत रहस्यात्मक द्रव्य है ।
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22:55 - 22:57यह अत्यंत संवेदनशील है ।
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22:57 - 23:01अर्थात्, यह कंपन प्राप्त कर सकता है और उसे रोक कर रख सकता है ।
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23:01 - 23:03अपनी अत्याधिक गुंजायमान क्षमता तथा
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23:03 - 23:07संवेदनशीलता एवं गूंजने के लिए आंतरिक तत्परता के कारण
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23:07 - 23:10जल सभी प्रकार की ध्वनि तरंगों
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23:10 - 23:13के प्रति तत्काल प्रतिक्रिया देता है ।
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23:13 - 23:13प्रदोलित जल तथा पृथ्वी से
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23:13 - 23:17अधिकांश पौधों तथा पशुओं के समूह का निर्माण होता है ।
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23:17 - 23:22यह देखना सरल है कि जल में किस प्रकार साधारण
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23:22 - 23:25प्रदोलन, पहचानने योग्य प्राकृतिक प्रतिकृतियों को सृजित कर सकता है,
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23:25 - 23:30लेकिन जैसे ही हम उसमें ठोस पदार्थ मिलाते हैं और उसके आयाम
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23:30 - 23:35को बढ़ा देते हैं तो वस्तुएं और भी दिलचस्प हो जाती हैं ।
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23:35 - 23:37पानी में कार्नस्टार्च (मक्की की मांड) मिलाने से हमें
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23:37 - 23:58और मिश्रित तत्व हासिल होते हैं ।
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23:58 - 24:00कदाचित जीवन के सिद्धांतों को भी महसूस किया
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24:00 - 24:03जा सकता है, चूंकि कंपनों से कार्नस्टार्च चलते-
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24:03 - 24:13फिरते जीव में परिवर्तित हो जाती है ।
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24:13 - 24:15ब्रह्माण्ड का जीवंत सिद्धांत उन शब्दों का प्रयोग
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24:15 - 24:18करते हुए प्रत्येक बड़े धर्म में वर्णित किया
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24:18 - 24:20गया है जो इतिहास में तत्कालीन
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24:20 - 24:26समझ को प्रतिबिंबित करता है ।
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24:26 - 24:31इकांस की भाषा में, कोलंबियन-पूर्व
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24:31 - 24:35अमेरिका में `मानव शरीर` के लिए `अल्पा कमास्का` शब्द है,
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24:35 - 24:41जिसका शाब्दिक अर्थ है `जीवंत पृथ्वी` ।
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24:41 - 24:43कबाला या यहूदी रहस्यवाद में ईश्वर के
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24:43 - 24:46दिव्य नाम का उल्लेख है ।
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24:46 - 24:49वह नाम जिसे उच्चारित नहीं किया जा सकता ।
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24:49 - 24:51इसे इसलिए नहीं बोला जा सकता,
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24:51 - 24:56चूंकि यह ऐसा कंपन है जो सर्वत्र है । यह सभी शब्दों, सभी पदार्थों में हैं ।
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24:56 - 25:00पवित्र शब्द ही सब कुछ है ।
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25:00 - 25:02चतुष्फलक सर्वाधिक सामान्य आकार है,
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25:02 - 25:05जो तीन आयामों में अस्तित्व में है ।
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25:05 - 25:07कुछ में भौतिक वास्तविकता के लिए कम
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25:07 - 25:09से कम चार बिंदु होने चाहिए ।
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25:09 - 25:11त्रिकोणीय संरचना प्रकृति की केवल
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25:11 - 25:14स्वनिर्धारित प्रतिकृति है ।
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25:14 - 25:17पूर्व-विधान में शब्द `चतुर्वर्णी`
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25:17 - 25:20ईश्वर के कुछेक प्रकटीकरण के लिए प्राय: प्रयुक्त किया जाता है ।
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25:20 - 25:24इसे तब प्रयोग किया गया था, जब ईश्वर के शब्द या ईश्वर,
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25:24 - 25:31लोगो या प्रारंभिक शब्द के विशेष नाम से बात की गई थी ।
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25:31 - 25:36प्राचीन सभ्यता जानती है कि ब्रह्माण्ड की
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25:36 - 25:40आधारभूत संरचना चतुष्फलक आकार की थी ।
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25:40 - 25:43इस आकार में प्रकृति साम्य, शिव के लिए
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25:43 - 25:48आधारभूत प्रमाण प्रदर्शित करती है ।
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25:48 - 25:50हालांकि इसमें परिवर्तन के लिए आधारभूत प्रमाण,
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25:50 - 25:57शक्ति भी है ।
-
25:57 - 25:59बाइबल में जॉन सिद्धांत में सामान्यतया
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25:59 - 26:02`आरंभ में शब्द था़`
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26:02 - 26:05पठित है लेकिन मूल पाठ में प्रयुक्त शब्द
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26:05 - 26:08`लोगो` था ।
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26:08 - 26:09ईसा पूर्व लगभग 500वें वर्ष में विद्यमान
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26:09 - 26:13ग्रीक दार्शनिक हरक्लीटस ने
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26:13 - 26:14`लोगो` का उल्लेख कुछ आधारभूत
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26:14 - 26:17अज्ञात के रूप में किया ।
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26:17 - 26:22सभी पुनरावृति, पद्धति और स्वरूपों का उद्भव ।
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26:22 - 26:24हरक्लीटस के उपदेशों का अनुसरण करने वाले
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26:24 - 26:27निर्लिप्त दार्शनिकों ने ब्रह्माण्ड में व्याप्त दिव्य जीवंत
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26:27 - 26:36सिद्धांत के साथ इस शब्द का पता लगाया ।
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26:36 - 26:42सूफीवाद में `लोगो` सर्वत्र है और सभी वस्तुओं में है ।
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26:42 - 26:53यह वह तत्व है जिसमें अव्यक्त, व्यक्त हो जाता है ।
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26:53 - 26:57हिन्दू परंपरा में शिव नटराज का शाब्दिक अर्थ है
-
26:57 - 27:00`नृत्य सम्राट`।
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27:00 - 27:03संपूर्ण ब्रह्माण्ड शिव की धुन पर नृत्य करता है ।
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27:03 - 27:08सभी कुछ स्पंदन से ही ओतप्रोत होता है ।
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27:08 - 27:10केवल जब तक शिव नृत्य कर रहे हैं तभी तक
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27:10 - 27:13संसार विकसित और परिवर्तित हो सकता है,
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27:13 - 27:19अन्यथा सब कुछ समाप्त होकर शून्य हो जाएगा ।
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27:19 - 27:21यद्यपि शिव हमारी चेतना का साक्ष्य है,
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27:21 - 27:26शक्ति संसार का सार है ।
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27:26 - 27:29यद्यपि शिव ध्यानमग्न हैं,
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27:29 - 27:32शक्ति उन्हें संचालित करने का प्रयत्न करती है,
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27:32 - 27:34जिससे उन्हें नृत्य में उतारा जा सके ।
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27:34 - 27:36यिन एवं यांग की तरह नर्तक
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27:36 - 27:43तथा नृत्य का अस्तित्व एक है ।
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27:43 - 27:47`लोगो़` का अर्थ है अनावृत सत्य ।
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27:47 - 27:52जो `लोगो़` को जानता है, वही सत्य को जानता है ।
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27:52 - 27:53छिपाव की कई परतें आकाश के रूप में मानवीय
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27:53 - 27:56संसार में अस्तित्व में हैं, जिससे स्वयं
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27:56 - 27:59के स्रोत को छिपाते हुए
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27:59 - 28:02वह जटिल संरचनाओं के भंवर में फंस जाता है ।
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28:02 - 28:04लुकाछिपी के दिव्य खेल की तरह हम हजारों
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28:04 - 28:08वर्षों से छिपते चले आ रहे हैं और खेल
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28:08 - 28:10eको पूरी तरह से भूल गए हैं ।
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28:10 - 28:18हम भूल गए हैं कि कोई ऐसी चीज है जिसकी खोज की जानी है ।
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28:18 - 28:21बौद्धधर्म में प्रत्येक को अपने `लोगो़` को सीधे महसूस करना,
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28:21 - 28:26अर्थात् ध्यान के माध्यम से अपने भीतर परिवर्तन या नश्वरता के क्षेत्र का पता
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28:26 - 28:28लगाना सिखाया जाता है।
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28:28 - 28:30जब आप अपना आंतरिक संसार देखते
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28:30 - 28:34हैं तो आप सूक्ष्म संवेदनाओं और ऊर्जा को देखते हैं और
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28:34 - 28:39मस्तिष्क अधिकाधिक कुशाग्र व आत्मकेन्द्रित होने लगता है ।
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28:39 - 28:41`अणिका` के प्रत्यक्ष अनुभव या संवेदन के
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28:41 - 28:44आधारभूत स्तर पर नश्वरता के माध्यम से व्यक्ति
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28:44 - 28:51मोह से मुक्त हो जाता है ।
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28:51 - 28:53एक बार हम अनुभव कर लेते
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28:53 - 28:56हैं कि एक ही क्षेत्र है जो सभी धर्मों का सामान्य रास्ता है,
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28:56 - 29:05तो हम किस प्रकार कह सकते हैं `मेरा धर्म` या `यह मेरा मौलिक ओम्
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29:05 - 29:21है`, `मेरा क्वाण्टम क्षेत्र है` ?
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29:21 - 29:28हमारे संसार में वास्तविक संकट सामाजिक,
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29:28 - 29:32राजनीतिक या आर्थिक नहीं हैं ।
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29:32 - 29:38हमारे संकट चेतना के संकट हैं, अपने वास्तविक स्वरूप को प्रत्यक्ष अनुभव कर
-
29:38 - 29:41पाने की असमर्थता ।
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29:41 - 29:45प्रत्येक वस्तु और प्रत्येक व्यक्ति में इस प्रकृति
-
29:45 - 29:53को पहचानने की असमर्थता ।
-
29:53 - 29:56बौद्ध परंपरा में, `बोधिसत्व`
-
29:56 - 29:59जागृत बुद्ध प्रकृति का व्यक्ति है ।
-
29:59 - 30:03ब्रह्माण्ड में बोधिसत्व हर प्राणी को जागृत करने में
-
30:03 - 30:09सहायता करता है, यह अनुभव करते हुए कि चेतना केवल एक ही है।
-
30:09 - 30:17किसी के वास्तविक स्वरूप को जागृत करने के लिए व्यक्ति को सभी को जागृत करना चाहिए ।
-
30:17 - 30:24“विश्व में असंख्य सचेतन प्राणी हैं, मैं उनकी
-
30:24 - 30:29जागृति में सहायता करना चाहता हूं ।
-
30:29 - 30:32मेरी अपूर्णताएं असंख्य हैं ।
-
30:32 - 30:34मैं उन पर विजय पाना चाहता हूँ।
-
30:34 - 30:38धर्म अज्ञात है।
-
30:38 - 30:41मैं इसे जानना चाहता हूं ।
-
30:41 - 30:47जागृति का मार्ग अप्राप्य है ।
-
30:47 -मैं इसे पाना चाहता हूं ।“
�
- Title:
- Inner Worlds, Outer Worlds - Part 1 - Akasha
- Description:
-
All 4 parts of the film can be found at www.innerworldsmovie.com.
Part one of the film Inner Worlds, Outer Worlds. Akasha is the unmanifested, the "nothing" or emptiness which fills the vacuum of space. As Einstein realized, empty space is not really empty. Saints, sages and yogis who have looked within themselves have also realized that within the emptiness is unfathomable power, a web of information or energy which connects all things. This matrix or web has been called the Logos, the Higgs Field, the Primordial OM and a thousand other names throughout history. In part one of Inner Worlds, we explore the one vibratory source that extends through all things, through the science of cymatics, the concept of the Logos, and the Vedic concept of Nada Brahma (the universe is sound or vibration). Once we realize that there is one vibratory source that is the root of all scientific and spiritual investigation, how can we say "my religion", "my God" or "my discovery".
- Video Language:
- American Sign Language
- Duration:
- 31:01
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Amara Bot edited Hindi subtitles for Inner Worlds, Outer Worlds - Part 1 - Akasha | |
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Amara Bot added a translation |