दूसरों का उपकार करने के सिद्धान्त को कैसे अपना मार्गदर्शक बनाए
-
0:01 - 0:08हम इंसानों के पास
अच्छाई की विशेष क्षमता है| -
0:08 - 0:12लेकिन हमारे पास नुकसान पहुचाने
की भी अत्यधिक शक्ति है| -
0:12 - 0:18किसी भी हथियार का उपयोग बनाने
या नष्ट करने के लिए किया जा सकता है| -
0:18 - 0:21ये सब हमारी प्रेरणा पर निर्भर करता है|
-
0:21 - 0:25इसलिये स्वार्थी भावना के बदले
करुना की भावना को प्रोत्साहन देना -
0:25 - 0:29और भी ज़रूरी हो जाता है|
-
0:31 - 0:37निस्संदेह हम आज के समय मे बहुत सी
मुश्किलों का सामना कर रहे हैं| -
0:37 - 0:40ये मुश्किलें निजी हो सकती है|
-
0:40 - 0:45हमारा खुदका मन हमारा सबसे अच्छा दोस्त हो
सकता है या हमारा सबसे बड़ा दुश्मन| -
0:46 - 0:49मुश्किलें सामाजिक भी हो सकती है|
-
0:49 - 0:55समृद्धि के बीच मे ग़रीबी,
असमानता, लड़ाई, और अन्याय| -
0:55 - 0:59और फिर ऐसी भी मुश्किलें है जो नई हैं,
जिनकी हमे बिलकुल भी उम्मीद नहीं होती| -
0:59 - 1:04दस हज़ार सालों पहले, धरती पे करीब
५० लाख लोग थे| -
1:04 - 1:05वो जो भी करते
-
1:05 - 1:11धरती का पलटाव इंसान की गतिविधियों
को जल्द ही स्वस्थ कर देता| -
1:11 - 1:14औद्योगिक और प्रौद्योगिकीय आमूल
परिवर्तन के बाद, -
1:14 - 1:16ये स्तिथि पहले जैसी नहीं रही|
-
1:16 - 1:20आज हम धरती पे होने वाले प्रभाव के
प्रमुख एजेंट हैं| -
1:20 - 1:25हम अन्थ्रोप्रोसिन मे प्रवेश कर रहे हैं,
मनुष्य का युग| -
1:25 - 1:32तो एक तरह से, अगर हम कहें कि,
हमे यह अनंत बढ़त और अनंत -
1:32 - 1:36भौतिक संसाधन का उपयोग जरी
रखने की ज़रूरत है, -
1:36 - 1:39तो वो यह कहने के बराबर है कि अगर यह इंसान-
-
1:39 - 1:43और मैंने एक पूर्व राज्य के प्रधान को कहते
सुना है, में उनका नाम नहीं लूँगा कि -
1:43 - 1:47"पांच साल पहले हम खड़ी चट्टान की
कगार पर थे| -
1:47 - 1:50आज हमने एक बड़ा कदम आगे बढाया है|"
-
1:51 - 1:57वैज्ञानिकों ने जो ग्रहों की सीमा की
परिभाषण दी है -
1:57 - 1:59वह इस कगार के सामान्य है|
-
1:59 - 2:04और उन सीमओं के अंदर,
वे अनेक तत्व रखते हैं| -
2:04 - 2:09हम अभी भी उन्नति कर सकतें हैं, मानवजाति
अभी भी १५०००० सालों तक उन्नति कर सकती है, -
2:09 - 2:13यदि हम जलवायु स्थिरता वैसे ही बनाएं रखें
-
2:13 - 2:16जैसेः पिछलें दस हजार सालों से है|
-
2:16 - 2:21परंतु यह स्वैच्छिक सादगी, गुण-संबंधी बढ़त
-
2:21 - 2:24नाकि परिमाण-संबंधी बढ़त को
चुनने पर निर्धारित है| -
2:24 - 2:30साल १९०० मे, जैसा कि आप देख सकतें हैं,
हम सुरक्षा की सीमा के बहुत अंदर थे| -
2:30 - 2:36फिर, साल १९५० मे ज़ोर की तेज़ी आई|
-
2:36 - 2:41अब अपनी सासों को रोक कर रखें, ज्यादा देर
तक नहीं, यह सोचने के लिए कि आगे क्या होगा| -
2:41 - 2:47आज हम उन ग्रहों की सीमा के बहुत
आगे निकल चुकें हैं| -
2:47 - 2:51जैव विविधता को लें तो, इस तेज़ी से
अगर हम चलतें रहेंगे, -
2:51 - 2:57तो साल २०५० तक धरती से ३० प्रतिशत
जातियां गायब हों जायेंगी| -
2:57 - 3:03अगर हम उनका डीएनए फ्रिज मे भी रखें,
तब भी वह अपरिवर्तनीय रहेगा| -
3:03 - 3:05तो यहाँ में बेठा हूँ,
-
3:05 - 3:11७००० मीटर ऊंचाई पर, २१००० फुट
हिमानी के आगें, भूटान मे| -
3:11 - 3:18तीसरे पोल मे २००० हिमानी तेज़ी से
पिघल रहें हैं, उत्तरी ध्रुवी से भी तेज़| -
3:18 - 3:21तो इस स्थिति मे हम क्या कर सकतें हैं?
-
3:22 - 3:29पर्यावरण का सवाल कितना भी कठिन हो,
-
3:29 - 3:32राजनीतिक, आर्थिक या वैज्ञानिक रूप से,
-
3:32 - 3:39अंत मे यह केवल एक सवाल पर रुक्ता है,
दूसरोँ के लाभ की इच्छा या अपने लाभ की? -
3:39 - 3:42में ग्रुचो झुकाव का मार्क्सिस्ट हूँ|
-
3:42 - 3:44(हँसी)
-
3:44 - 3:47ग्रुचो मार्क्स कहतें हैं, “में आने वालीं
पीढ़ी की चिंता क्यों करूँ? -
3:47 - 3:49उन्होंने मेरे लिए क्या किया?”
-
3:49 - 3:51(हँसी)
-
3:51 - 3:55दुर्भाग्य से मैंने लाखपति स्टीव फोर्ब्स
-
3:55 - 3:59को बिलकुल यही चीज़ फॉक्स
न्यूज़ पे कहते सुना| -
3:59 - 4:01उन्हें सागर की अधिकता के
बारे मे बताया गया, -
4:01 - 4:05और उन्होंने कहा कि “जो घटना १०० साल
बाद होने वाली है, -
4:05 - 4:08उसके लिए आज अपना व्यवहार
बदलना मुझे बेतुका लगता है|” -
4:08 - 4:11तो अगर आपको आने वालीं
पीढ़ियों की चिंता नहीं हैं, -
4:11 - 4:13तो ठीक है|
-
4:13 - 4:16हमारे ज़माने की एक विशेष चुनौती
-
4:16 - 4:20३ समय सीमा के बीच मेल-मिलाप कराना है:
-
4:20 - 4:22तुरंत आने वाला अर्थव्यवस्था का समय,
-
4:22 - 4:26शेयर बाजार का उतार-चढ़ाव,
साल के अंत का हिसाब-किताब; -
4:26 - 4:29मध्यावधि मे जीवन की गुणवत्ता --
-
4:29 - 4:34अगले १०-२० सालों में, हमारे जीवन के हर पल
की क्या गुणवत्ता है? -
4:34 - 4:38और लंबे समय मे पर्यावरण|
-
4:38 - 4:40जब पर्यावरणविद् लोंग अर्थशास्त्रियोंसे
-
4:40 - 4:43बातें करतें हैं, वह संवाद पागलपन के
बराबर है, पूरी तरह से बेमेल| -
4:43 - 4:46वे अलग भाषओं मे बात करतें हैं|
-
4:46 - 4:49अभ, पिछले १० सालों मे मैंने
दुनिया के चक्कर कटे| -
4:49 - 4:53र्थशास्त्रीयो , वैज्ञानिकों,
तंत्रिका वैज्ञानिकों, पर्यावरणविदों, -
4:53 - 4:58दार्शनिकों, विचारकों सें मिला,
हिमालय मे, सभी जगहों में| -
4:58 - 5:02मुझे लगता है कि, एक ही ऐसा विचार है,
-
5:02 - 5:05जो उन ३ समय सीमाओं का बीच
मेल-मिलाप ला सकता है| -
5:05 - 5:09जो सीधे सभ्दों मे है कि ‘दूसरो का
ज्यादा ख्याल करना’| -
5:09 - 5:14अगर आप दूसरों का ज्यादा ख्याल करतें हैं
तो आपकी अर्थव्यवस्था बेहतर होगी, -
5:14 - 5:17जहाँ वित्त, समाज की सेवा मे होगी,
-
5:17 - 5:20नाकि समाज वित्त की सेवा मे|
-
5:20 - 5:22आप कैसिनो जाके वे पैसे
-
5:22 - 5:25खर्च नहीं करेंगें, जो लोगों ने विश्वास से
आपकों सोंपे हैं| -
5:25 - 5:28अगर आप अन्य लोगों का
ज़्यादा ख्याल करतें हैं, -
5:28 - 5:31तब आप यह निश्चित करेंगें कि आप
असमानता का उपाय निकाले, -
5:31 - 5:34कि आप समझ, शिक्षा,
-
5:35 - 5:37नौकरी में भलाई लायें|
-
5:37 - 5:41वरना ऐसे देश का क्या मतलब होगा, जो सबसे
शक्तिशाली और अमीर हो -
5:41 - 5:44पर वहां के लोंग दुखी हों|
-
5:44 - 5:46और अगर आपको ऑरों का ख्याल है,
-
5:46 - 5:49तो आप धरती को नहीं लूटेंगे
-
5:49 - 5:54और आज के गत्ती से चलें तो हमारे
पास रहने के लिए ३ और गृह नहीं हैं| -
5:54 - 5:56सवाल यह है ,
-
5:56 - 6:00माना कि अल्त्रुइस्म सिर्फ एक
अच्छा सुझाव ही नहीं -
6:00 - 6:04पर क्या वह एक वास्तविक और उपयोगी
हल बन सकता है? -
6:04 - 6:06पर उससे भी पहले, क्या सच्चा अल्त्रुइस्म
मौजूद है? -
6:06 - 6:10या हम सभी स्वार्थी है?
-
6:10 - 6:16कुछ दार्शनिक लोंग सोचते है कि,
हम सब अपूरणीय स्वार्थी लोंग है| -
6:16 - 6:21पर क्या हम सच मे सिर्फ दुष्ट हैं?
-
6:21 - 6:24क्या यह अच्छी बात है?
-
6:24 - 6:26होब्बस जैसे कईं दार्शनिकों ने ऐसा कहाँ है|
-
6:26 - 6:29पर हर इंसान दुष्ट नहीं दीखता|
-
6:29 - 6:32या क्या एक इंसान बाकी इंसानों
के लिए भेदिये जैसा है? -
6:32 - 6:35यह इंसान ज़्यादा बुरा नहीं लगता|
-
6:35 - 6:38यह मेरा तिबेट का एक दोस्त है|
-
6:38 - 6:40वो बहुत सज्जनतापूर्ण है|
-
6:40 - 6:44हम सबको साथ मिलाकर काम
करना अच्छा लगता है| -
6:44 - 6:48साथ मिलाकर काम करने से जो आनंद आता है,
उससे अच्छा कोई और आनंद है क्या? -
6:48 - 6:52यह भाव सिर्फ इंसानों मे नहीँ है|
-
6:52 - 6:55बेशक जिंदगी मे संघर्ष भी है,
-
6:55 - 6:59सबसे योग्य का ही जीवित रह पाना,
‘सोशल दार्विनिस्म’| -
6:59 - 7:05परंतु विकास मे, जबकि औरो के
साथ मुक़ाबला होगा, -
7:05 - 7:11सहयोग को और भी रचनात्मक बनना होगा जो
ऊंचे स्तर के उलझन तक पहुँच सके| -
7:11 - 7:15हम सहयोग मे अव्वल हैं, पर हमे
और भी आगे बढ़ना चाहिए| -
7:15 - 7:21उसके ऊपर आती है मानव संबंध की गुणवत्ता|
-
7:21 - 7:26‘ओईसीडी’ ने दस कारकों का सर्वेक्षण
किया जैसे, आमदनी, इत्यादि| -
7:26 - 7:29लोगों के हिसाब से, उनकीं ख़ुशी का
सबसे पहले उच्च कारण -
7:29 - 7:33सामाजिक रिश्ते है|
-
7:33 - 7:35यह कारण सिर्फ इंसानों के लिए
ही सच नहीं हैं| -
7:35 - 7:39इन परदादीयों को ही देख लिजिएं|
-
7:39 - 7:44तो अब देखा जाए तो यह सोच की अगर
हम गहराई से अपने अंदर देखें, -
7:44 - 7:47तो हम स्वार्थी हैं,
-
7:47 - 7:49यह सोच मे कोई सचाई नहीं हैं|
-
7:49 - 7:51ऐसी एक भी समाजशास्त्रीय या
मनोवैज्ञानिक -
7:51 - 7:55जाँच नहीं है जो इस बात को
सिद्ध कर सकती है| -
7:55 - 7:57बल्कि उसका उल्टा है|
-
7:57 - 8:00मेरे दोस्त, डेनियल बॅट्सन ने अपनी
सारी ज़िन्दगी निकाल दी, -
8:00 - 8:03लोगों को प्रयोगशाला मे डालने मे,
बहुत जटिल स्तिथिओं मे| -
8:03 - 8:07हाँ, कभीकभार हम स्वार्थी होतें हैं, कुछ
लोंग बाकि लोगों से ज़्यादा होतें हैं| -
8:07 - 8:10पर मेरे दोस्त ने पाया कि,
चाहे कुछ भी हो जाएँ, -
8:10 - 8:13ऐसे काफी लोंग हैं
-
8:13 - 8:17जो परोपकारिता से पेश आतें हैं,
चाहे जो हो जाए| -
8:17 - 8:20अगर आप किसी को गहरी चोंट मे
तड़पते हुए देखतें हैं, -
8:20 - 8:22तो शायद आप, उस पर दया खा कर,
उसकी मदद कर दें -- -
8:22 - 8:26आपसे वह दृश्य देखा नहीं जाएगा, तो आप उससे
देखने से बेहतर उसकी मदद करना चाहेंगें| -
8:26 - 8:32हमनें इस सब की जांच की और अंत मे, मेरे
दोस्त ने कहा की बेशक इंसान परोपकारी है| -
8:32 - 8:34तो यह एक अच्छी खबर है|
-
8:34 - 8:40उससे आगे बढ़कर, हमे अच्छाई की
साधारणता भी देखनी चाहिए| -
8:40 - 8:42आप यहाँ ही देख लीजिये|
-
8:42 - 8:44जब हम बहार निलेंगे, हम यह नहीं कहेंगे कि
कितना अच्छा है, -
8:44 - 8:49जब लोंग परोपकारिता के बारे मे सोच रहे थे
तब कोई मारा-मारी नहीं हुई| -
8:49 - 8:51नहीं,वह तो अपेक्षित है ना?
-
8:51 - 8:54अगर लड़ाई होती तो हम उसके बारे
मे महीनो तक बात करते| -
8:54 - 8:58अच्छाई की साधारणता ऐसी चीज़ है जो आपका
ध्यान अपनी तरफ आकर्षित नहीं करती, -
8:58 - 8:59पर वो मौजूद है|
-
8:59 - 9:05अब इसको देखिये|
-
9:09 - 9:12जब में मनोवैज्ञानिकों से कहता हूँ
-
9:12 - 9:15के में हिमालय मे १४० मानवीय
परियोजनओं को चलता हूँ, -
9:15 - 9:18जिससे मुझें बहुत ख़ुशी मिलती हैं,
-
9:18 - 9:21तब वे कहतें है कि, “अच्छा तो आप अपनी
ख़ुशी के लिए यह करते हैं, -
9:21 - 9:24यह भावना परोपकारीक नहीं, हैं,
आपको ख़ुद अच्छा लगता है|” -
9:24 - 9:27क्या आपको लगता है कि जब यह इंसान ट्रेन के
आगे कूदा तब उसने सोचा, -
9:27 - 9:29“जब यह ख़तम हो जाएगा
तब मुझे कितना अच्छा लगेगा?" -
9:29 - 9:30(हँसी)
-
9:32 - 9:34बात यहीं ख़तम नहीं होती|
-
9:34 - 9:36लोंग कहतें है, जब उससे पूछ-ताछ
की गईं तब उस्सने कहाँ, -
9:36 - 9:40“मेरे पास और कोई इंतिख़ाब नहीं था,
मुझें कूदना पड़ा|” -
9:40 - 9:43उसके पास और कोई विकल्प नहीं हाँ| स्वत:
व्यवहार| यह नाही स्वार्थी है ना परोप्करिक| -
9:43 - 9:45कोई विकल्प नहीं था?
-
9:45 - 9:48हाँ, यह इंसान आधे घंटे तक नहीं सोचेगा,
-
9:48 - 9:50“में मदद करूँ या ना करूँ?”
-
9:50 - 9:54पर वो सोचता है, उसके पास विकल्प है,
बस वह स्पष्ट है, तुरंत है| -
9:54 - 9:56यहाँ भी उसके पास विकल्प है|
-
9:56 - 9:59(हँसी)
-
9:59 - 10:02ऐसे लोंग हैं जिनके पास विकल्प थे, जैसे
पॅस्टर आंद्रे त्रोक्मे और उनकी पत्नी, -
10:02 - 10:05और फ्रांस के Le Chambon-sur-Lignon
का पूरा गाँव| -
10:05 - 10:09दुसरे महायुद्ध के समय इन लोगों ने अनेक
बाधाओं के बावजूद ३५०० यहूदीयों को बचाया, -
10:09 - 10:12उनकों शरण दी, उनकों
स्विट्जरलैंड लेके आयें, -
10:12 - 10:15अपनीं और अपनें परिवार की जान
को जोखिम मे डाल के| -
10:15 - 10:17परोपकारिता लोगों मे मौजूद है|
-
10:17 - 10:19तो परोपकारिता क्या है?
-
10:19 - 10:23वे एक इच्छा है कि, अन्य लोग ख़ुश रहें और
ख़ुशी का कारण ढूंड सकें| -
10:23 - 10:28सहानुभूति एक भावात्मक या संज्ञानात्मक
प्रतिध्वनि है जो आपको बताती है कि, -
10:28 - 10:31यह इंसान ख़ुश है,
यह इंसान दुखी है| -
10:31 - 10:34किन्तु सहानुभूति अकेले ही काफी नहीं|
-
10:34 - 10:37अगर आपका ओंरों की पीड़ा से सामना होता रहा,
-
10:37 - 10:39तो आपके लिए वो पीड़ा सहन
करना मुश्किल हो जाएगा, -
10:39 - 10:44इसलिए आपको सहानुभूति से बढ़कर
प्यार और करुणा की ज़रूरत पड़ेगी| -
10:44 - 10:46तानिया सिंगर के साथ हमनें
मैक्स प्लांक इंस्टिट्यूट -
10:46 - 10:52ऑफ़ लेइप्ज़िग मे दिखाया कि, हमारा दिमागी
नेटवर्क, सहानुभूति और करुणा के लिए अलग है| -
10:52 - 10:54यहाँ तक सब ठीक है,
-
10:54 - 11:00हमे यह भाव हमारी उत्क्रांति से, ममता से,
माता पिता के प्यार से मिला है, -
11:00 - 11:02पर हमे इस भाव का विस्तार करना है|
-
11:02 - 11:05यह भाव और जाति के प्राणियों की ओर
भी बढ़ाया जा सकता है| -
11:05 - 11:09अगर हम ज़्यादा परोपकारी समाज चाहतें है,
तो उसके लिए हमें २ चीज़ें लगेंगीं, -
11:09 - 11:13व्यक्तिगत बद्लाव और सामाजिक बद्लाव|
-
11:13 - 11:15क्या व्यक्तिगत बद्लाव मुमकिन है?
-
11:15 - 11:18२००० सालों की मननशील अध्ययन
कहता है कि यह मुमकिन है| -
11:18 - 11:22तंत्रिका विज्ञान और एपिजेनेटिक्स के साथ
१५ सालों का संबंध कहता है -
11:22 - 11:26हाँ, हमारा दिमाग बदल सकता है जब
हम परोपकारिता का प्रशिक्षण करते है| -
11:26 - 11:31मैंने १२० घंटे एक एमआरआई मशीन मे गुज़ारे|
-
11:31 - 11:33यह मेरे पहली बार जाने के २.५
घंटे बाद की तस्वीर है| -
11:33 - 11:37इसका नतीजा कईं
वैज्ञानिक पत्रिकों मे छप्पा है| -
11:37 - 11:41ये बिना किसी शंका के दिखाता है कि कैसे,
परोपकारिता का प्रशिक्षण करने से -
11:41 - 11:45हमारे दिमाग मे संरचनात्मक और
कार्यात्मक बद्लाव आता है| -
11:45 - 11:46एक नमूना दिखाऊँ तो,
-
11:46 - 11:49ध्यानी जो बाएं ओर बेठा है, विश्रांत में
-
11:49 - 11:53सहानुभूतिपूर्वक ध्यान लगते हुए,
आप यहाँ हलचल देख सकतें हैं, -
11:53 - 11:55दूसरी तरफ आम इंसान,
विश्रांत में और ध्यान लगते हुए, -
11:55 - 11:57यहाँ कुछ नहीं होता|
-
11:57 - 11:59वे लोंग प्रशिक्षित नहीं है|
-
11:59 - 12:04तो क्या आपको ५०००० घंटे ध्यान लगाने की
ज़रूरत है?, नहीं| -
12:04 - 12:08४ हफ़्तों के लिया, रोज़ २० मिनट का
करुणा और सचेतन का ध्यान भी -
12:08 - 12:14दिमाग मे संरचनात्मक बद्लाव ला सकता है,
आम इंसान के साथ तुलना हो तो| -
12:14 - 12:18सिर्फ रोज़ के २० मिनट, ४ हफ़्तों के लिए|
-
12:18 - 12:21छोटे बचों पर भी काम करता है,
रिचर्ड डेविडसन ने यह मैडिसन मे किया था| -
12:21 - 12:28८ हफ़्तों के लिए, कृतज्ञता, करुणा,
सहयोग, जागरूकता से सांस लेना| -
12:28 - 12:30शायद आप कहें, “पर वे तो सिर्फ बच्चें है|”
-
12:30 - 12:32८ हफ़्तों के बाद देखिए,
-
12:32 - 12:34नीली रेखा उनके सामाजिक व्यव्हार में
सुधर दिखाती है| -
12:34 - 12:39और फिर आती है सबसे परम वैज्ञानिक जाँच,
‘द स्टिकर टेस्ट’| -
12:39 - 12:43पहले आप सारें बच्चों के सबसे करीबी दोस्त,
सबसे कम पसंदीदा दोस्त, -
12:43 - 12:47अंजान बच्चा एक बीमार
बच्चा निर्धारित कर लीजिये, -
12:47 - 12:50और बच्चों को स्टिकर बांटने है|
-
12:50 - 12:54प्रशिक्षण से पहले, बच्चें ज़्यादातर स्टिकर
अपने सबसे अच्छे दोस्त को देते हैं| -
12:54 - 12:58४-५ साल के बच्चें, २० मिनट हफ्ते मे ३
बार प्रशिक्षण करतें हैं| -
12:58 - 13:01प्रशिक्षण के बाद कोई भेद भाव नहीं था :
-
13:01 - 13:05सबसे करीबी दोस्त और सबसे कम पसंदीदा दोस्त,
दोनों को एक समान स्टीकर दिएँ गए| -
13:05 - 13:08यह हमे दुनिया के सारे
स्कूलों मे करना चाहिए| -
13:08 - 13:10अब आगे क्या?
-
13:10 - 13:15(तालियाँ)
-
13:15 - 13:17जब दलाई लामा ने यह सुना, उन्होंने रिचर्ड
डेविडसन से कहाँ -
13:17 - 13:21"तुम १० स्कूल, १०० स्कूल, यूएन मे,
पुरे देश मे जाओ| -
13:21 - 13:22फिर उसके आगे क्या?
-
13:22 - 13:25व्यक्तिगत बद्लाव मुमकिन है|
-
13:25 - 13:29अब क्या हम परोप्करिक जीन का इंसान मे पैदा
होने का इंतज़ार करें? -
13:29 - 13:33उसमे, ५०००० साल लग जायेंगे,
वातावरण के लिए इतनी देर रुकना मुमकिन नहीं| -
13:33 - 13:38सैभाग्यवश, संस्कृति का विकास हो रहा है|
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13:38 - 13:43विशेषज्ञों ने कहा है की संस्कृति मे इंसान
की जीन से ज्यादा तेज़ी से बद्लाव आता है| -
13:43 - 13:45यह एक अच्छी खबर है|
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13:45 - 13:48पिछले कुछ सालों मे युद्ध के प्रति हमारे
रवैया मे दूरतम बद्लाव आया है| -
13:48 - 13:53व्यक्तिगत बद्लाव और सांस्कृतिक परिवर्तन
एक साथ चलते हैं, -
13:53 - 13:56हम एक ज्यादा परोप्कारी समाज बना सकतें हैं|
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13:56 - 13:58अब इसके भी आगे क्या?
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13:58 - 14:00में वापस पूर्व देश मे चला जाऊँगा|
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14:00 - 14:04अपने परियोजनाओं से हम साल मे
१००००० रोगियों का इलाज करतें हैं| -
14:04 - 14:07हमारें स्कूलों मे २५००० बच्चें पढ़ते हैं|
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14:07 - 14:10कुछ लोंग कहते हैं,
"आपका काम वास्तव मे चलता है, -
14:10 - 14:12पर क्या सिद्धांत मे चलता है?"
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14:12 - 14:15सकारात्मक विचलन हमेशा मौजूद है|
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14:15 - 14:18में वापस अपने आश्रम मे जाऊँगा
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14:18 - 14:21आंतरिक संसाधनों ढूँढने, जिसकी मदद से मे
औरों की बेहतर सेवा कर सकूँ| -
14:21 - 14:24लेकिन हम वैश्विक स्तर पर
क्या कर सकतें हैं? -
14:24 - 14:26हमे तीन चींज़े चाहिए|
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14:26 - 14:28सहयोग बढ़ाने:
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14:28 - 14:32पाठशाला में सहयोग की भावना के साथ
सीखना नाकि मुकाबले की भावना से| -
14:32 - 14:36कंपनियों के भीतर बेहद सहयोग हो,
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14:36 - 14:40कंपनिया आपस मे थोड़ा मुकाबला
कर सकतें हैं, पर अपने भीतर नहीँ| -
14:40 - 14:44हमें सतत एकता बनाएँ रखने की ज़रूरत है,
मुझे यह शब्द बहुत पसंद है| -
14:44 - 14:46नाकि सतत विकास|
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14:46 - 14:50सतत एकता मतलब असमानता
को कम करेंगे| -
14:50 - 14:54आगे से हम कम साधनो से ज़्यादा काम चलाएँगे,
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14:54 - 14:58हम गुणात्मकता से बढ़ते रहेंगें,
नाकि मात्रात्मकता से| -
14:58 - 15:01हमें ध्यान रखने वाली
अर्थशास्त्र की ज़रूरत है| -
15:01 - 15:06होमो एकोनोमिकस समृद्धि के बीच
जीवित ग़रीबी, -
15:06 - 15:09साधारण सामान की दिकत,
वातावरण, महासागर, -
15:09 - 15:11इन सब से नहीं जूज सकती|
हमें ध्यान रखने वाली -
15:11 - 15:13अर्थशास्त्र की ज़रूरत है|
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15:13 - 15:15अगर आप बोलो किअर्थशास्त्र
करुणामय होनी चाहिए -
15:15 - 15:16वो कहेंगे यह हमारा काम नहीं हैं
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15:16 - 15:20अगर आप कहें की उन्हें कोई
परवा नहीं,वह सही नहीं होगा| -
15:20 - 15:23हमे, स्थानीय प्रतिबद्धता,
वैश्विक जिम्मेदारी की ज़रूरत है| -
15:23 - 15:28हमे सरे १६ लाख़ जाति की ओर
सहानुभूति बढ़ाने की ज़रूरत है| -
15:28 - 15:32सारे जीवित प्राणी इस दुनिया
के सह नागरिक है, -
15:32 - 15:35और हमे परोपकारिता दिखने की
हिम्मत करनी पड़ेगी| -
15:35 - 15:39परोपकारीक क्रांति की जय हो|
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15:39 - 15:43क्रांति की जय हो|
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15:43 - 15:49(तालियाँ)
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15:49 - 15:50शुक्रिया|
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15:50 - 15:52(तालियाँ)
- Title:
- दूसरों का उपकार करने के सिद्धान्त को कैसे अपना मार्गदर्शक बनाए
- Speaker:
- मैथ्हिउ रिकार्ड
- Description:
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ऑल्त्रट्रूइस्म (दूसरों का उपकार करने का सिद्धान्त) क्या है? सीधे शब्दों में कहें तो, ये एक ख्वाहिश है कि अन्य लोग खुश रहे| और मैथ्हिउ रिकार्ड, ख़ुशी पे खोज करने वाले और एक बौद्ध भिक्षु, कहते है कि ऑल्त्रट्रूइस्म, फैसले लेने का एक बहुत अच्छा नजरिया है, दोनों छोटे और लम्बे समय के लिए, काम और ज़िन्दगी के फैसलों के लिए|
- Video Language:
- English
- Team:
- closed TED
- Project:
- TEDTalks
- Duration:
- 16:07
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