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देवदत्त पटनायक: पूरब बनाम पश्चिम - मिथकों की मित्थ्यता

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    ये समझने के लिये कि पौराणिक कथाओं का मामला
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    और मुख्य विश्वास अधिकारी का काम क्या है,
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    आपको एक कहानी सुननी होगी
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    भगवान गणेश की कहानी,
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    भगवान गजानन - हाथी के सर वाले भगवान की कहानी
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    जो कि कथावाचकों के सरताज़ हैं,
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    और उनके भाई,
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    देवताओं के सेनापति
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    कार्तिकेय ।
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    एक दिन दोनो भाइयों में एक प्रतियोगिता हुई - एक दौड
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    पूरे ब्रह्माण्ड के तीन चक्कर लगाने की दौड
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    कार्तिकेय अपने मोर पर सवार हुए
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    और महाद्वीपों को नाप डाला
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    फिर पहाडों को, फिर सागरों को,
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    उन्होंने ब्रह्माण्ड का पहला चक्कर लगाया,
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    फिर दूसरा
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    और फिर तीसरा चक्कर भी लगा डाला ।
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    पर उनके भाई, गणॆश ने
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    मात्र अपने माता-पिता की परिक्रमा की
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    एक बार, दो बार, और तीन बार,
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    और एलान कर डाला, "मैं जीत गया ।"
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    कार्तिकेय ने पूछा, "कैसे ?"
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    और तब गणेश ने कहा,
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    "तुमने 'ब्रहमाण्ड' की परिक्रमा की ।
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    और मैने 'अपने ब्रह्माण्ड' की ।"
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    संसार और मेरे संसार में ज्यादा महत्व किसका है ?
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    यदि आप 'संसार' और 'मेरे संसार' के बीच के अंतर को समझ सके,
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    तो आप 'सही' और 'मेरे लिये सही' के अंतर को समझ सकेंगे ।
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    'संसार' लक्ष्य-निर्धारित है, तार्किक है,
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    तथ्यात्मक है, संपूर्ण है,
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    वैज्ञानिक है ।
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    'मेरा संसार' व्यक्तिपरक है.
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    यह भावुक है. यह निजी है.
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    इसके अपने दृष्टिकोण, विचार हैं - अपननी भावनाएँ और अपने सपने है ।
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    ये जीवन मूल्यों का एक ढाँचा है जिससे अंतर्गत हम जीवन व्यतीत करते हैं ।
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    यह मिथक है कि हम तटस्थ हो कर रह रहे हैं ।
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    'संसार' हमें बताता है कि क्या चल रहा है,
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    सूरज उग कैसे रहा है,
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    हम पैदा कैसे होते हैं ।
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    'मेरा संसार' बताता है कि सूरज क्यों उग रहा है,
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    हम क्यों पैदा हुए ।
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    हर संस्कृति स्वयं को ही समझने की कोशिश कर रही है,
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    "हम अस्तित्व का कारण क्या है ?"
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    और हर संस्कृति ने अपने अपने जवाब ढूँढे हैं,
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    अपनी समझ के अनुरूप पौराणिक गाथाओं के रूप में ।
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    संस्कृति प्रकृति के प्रति हमारी प्रतिक्रिया है,
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    और इस प्रतिक्रिया की समझ, हमारी पूर्वजों के अनुसार
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    पीढी दर पीढी चलती आ रही है
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    कथाओं, प्रतीकों और अनुष्ठानों के रूप में,
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    जिन्हें तर्क, कारण और विश्लेषणॊं से कोई मतलब नहीं है ।
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    और जब आप इसमें गहरे उतरेंगे, तो आपको पता चलेगा
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    कि दुनिया के अलग अलग लोग
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    दुनिया को अपने अलग ढँग से समझते हैं ।
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    अलग अलग लोग एक ही चीज़ को :
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    अलग अलग दृष्टिकोणों से देखते हैं ।
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    एक हुई मेरी दुनिया और एक हुई आपकी दुनिया,
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    और मेरी दुनिया हमेशा मुझे आपकी दुनिया से बेहतर लगती है,
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    क्योंकि देखिये, मेरी दुनिया तर्कसंगत है
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    और आपकी अंधविश्वास पर आधारित,
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    आपकी मात्र विश्वास पर चलती है
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    तर्क पर आधारित नहीं है ।
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    यही सभ्यताओं के संघर्ष की जड़ है ।
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    326 ईसा पूर्व में भी यह बहस एक बार हुई थी ।
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    सिंधु नदी के तट पर,
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    जो कि अब पाकिस्तान में है ।
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    इस नदी से ही इण्डिया को उसका नाम मिला है ।
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    सिन्धु - हिन्दु - इन्दु - इन्डिया ।
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    सिकंदर, युवा मकदूनियन,
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    वहाँ ऐसे व्यक्ति से मिला जिसे उसने 'जिमनोसोफ़िस्ट' कहा है,
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    जिसका अर्थ है 'नंगा फ़कीर'
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    हम नहीं जानते कि वह कौन था ।
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    शायद कोई जैन साधु रहा हो,
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    जैसे कि बाहुबली, यहीं पास में ही,
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    गोमतेश्वर बाहुबली,
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    मैसूर से ज्यादा दूर नहीं है उनकी छवि ।
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    या फ़िर शायद वो कोई योगी रहा हो,
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    चट्टान पर बैठा, आसमान को ताकता,
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    और सूरज और चाँद को निहारता ।
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    सिकंदर ने पूछा, "आप क्या कर रहे हैं?"
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    और नंगे फ़कीर ने जवाब दिया,
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    "मैं शून्यता का अनुभव कर रहा हूँ."
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    फिर फ़कीर ने पूछा,
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    "आप क्या कर रहे हैं?"
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    और सिकंदर ने जवाब दिया, "मैं दुनिया पर विजय प्राप्त कर रहा हूँ ।"
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    और फिर वो दोनो हँसने लगे ।
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    दोनो एक दूसरे को मूर्ख समझ रहे थे ।
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    फ़कीर ने पूछा कि वो दुनिया को जीतने क्यों चाहता है ।
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    वो व्यर्थ है ।
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    और सिकंदर ने सोचा,
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    "ये साधु यहाँ बैठ कर वक्त क्यों गँवा रहा है?"
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    सारे जीवन को व्यर्थ कर रहा है ।
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    इन दोनों के विचारों के फ़र्क को समझने के लिये
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    हमें समझना होगा कि
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    सिकंदर का अपना सत्य समझना होगा:
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    और उन मिथकों को, जिन्होने उस सत्य को जन्म दिया ।
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    सिकंदर के माँ-बाप और उसके शिक्षक अरस्तु
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    ने उसे होमर के इलियाड की कहानियाँ सुनाई थीं ।
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    महान नायक अचिलस की कहानी, जिसका
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    लडाई में होना भर, विजय सुनिश्चित करता था,
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    पर यदि वो लडाई में न हो,
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    तो हार भी निश्नित होती थी ।
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    "अचिलस वो व्यक्ति था जो इतिहास बदलने की क्षमता रखता था,
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    नियति को काबू कर लेने वाला,
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    और सिकंदर, तुम्हें उस जैसा बनना चाहिये ।"
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    उसने ये सुना था ।
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    "और तुम्हें क्या नहीं बनना चाहिये ?
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    तुम्हें सिसिफस नहीं बनना चाहिये,
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    जो कि दिन भर भारी चट्टान को पहाड पर चढाता है
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    और हर रात, चट्टान वापस लुढक जाती है ।
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    ऐसा जीवन मत जियो जो साधारण हो,
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    औसत, निरर्थक हो ।
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    भव्य बनो ! --
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    ग्रीक नायकों की तरह,
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    जैसे जेसन, जो कि समंदर पार गया
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    अरगोनाट्स के साथ और सुनहरी ऊन ले कर आया ।
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    महान बनो जैसे थीसियस,
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    जिसने नर्क में घुस कर भैंसे के सिर वाले राक्षस मिनोटोर को मार गिराया ।
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    जब जब प्रतियोगिता में भाग लो, जीतो ! --
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    क्योंकि जीत की प्रसन्नता, उसकी अनुभव
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    देवों के सामीप्य का सबसे प्रत्यक्क्ष अनुभव होगा ।"
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    देखिय, ग्रीक ये मानते थे
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    कि आप केवल एक बार जीते है
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    और जब आपकी मृत्यु होती है, आप स्टिक्स नदी पार करते हैं,
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    और यदि आपने भव्य जीवन जिया है,
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    तो आपको अलीसियम (स्वर्ग) में आमंत्रित किया जायेगा,
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    या जिसे फ़्रांसीसी लोग 'शाम्पस-अलीयसीज़' (पेरिस की प्रसिद्ध बाज़ार) कहते हैं --
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    (हँसी) --
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    महापुरोषों का स्वर्ग ।
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    पर ये वो कहानियाँ नहीं थी जो हमारे फ़कीर ने सुनी थीं ।
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    उसने बहुत अलग कहानियाँ सुनी थीं ।
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    उसने भरत नाम के व्यक्ति के बारे में सुना था,
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    जिसकी नाम पर इण्डिया को भारत भी कहते है ।
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    भरत ने भी विश्व-विजय प्राप्त की थी ।
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    और तब वो संसार के केंन्द्र-बिन्दु पर
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    स्थित सबसे बडे पहाड की सबसे ऊँची चोटी पर गया,
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    जिसका नाम था मेरु ।
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    और वो वहाँ अपने नाम का झंडा फहराना चाहता था,
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    "मैं यहाँ आने वाला पहला व्यक्ति था ।"
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    पर जब वो मेरु पर्वत पर पहुँचा,
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    तो उसने उसे अनगिनत झंडों से ढका पाया,
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    उससे पहले आने वाले विश्व-विजयिओं के झंडों से,
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    हर झंडा दाव कर रहा था "मैं यहाँ सबसे पहले आया...
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    ...ऐसा मैं सोचता था जब तक मैं यहाँ नहीं आया था ।"
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    और अचानक, अनन्ता की इस पृष्ठभूमि में,
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    भरत ने स्वयं को क्षुद्र, नगण्य़ पाया ।
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    ये उस फ़कीर का सुना हुआ मिथक था ।
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    देखिय, फ़कीर के भी अपने नायक थे, जैसे राम - रघुपति राम
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    और कृष्ण, गोविन्द, हरि ।
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    परन्तु वो दो अलग अलग पात्र दो अलग अलग अभियानों पर निकले दो अलग अलग नायक नहीं थे ।
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    वो एक ही नायक के दो जन्म थे ।
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    जब रामायण काल समाप्त होता है, तो महाभारत काल प्रारंभ होता है ।
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    जब राम यमलोक सिधारते है, कृष्ण जन्म लेते है ।
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    जब कृष्ण यमलोक जाते है, तो वो पुनः राम के रूप में अवतार लेते हैं ।
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    भारतीय मिथकों में भी एक नदी है
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    जो कि जीवितों और मृतकों की दुनिया की सीमारेखा है ।
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    पर इसे केवल एक बार ही पार नहीं करना होता है ।
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    इस के तो आर-पार अनन्ता तक आना जाना होता है ।
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    इस नदी का नाम है वैतरणी ।
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    आप बार-बार, बारम्बार आते जाते है ।
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    क्योंकि, आप देखिये,
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    भारत में कुछ भी हमेशा नहीं टिकता, मृत्यु भी नहीं ।
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    इसलिये ही तो, हमारे भव्य आयोजनों में
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    देवियों की महान मूर्तियाँ तैयार की जाती हैं,
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    उन्हें दस दिन तक पूजा जाता है...
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    और दस दिन के बाद क्या होत है ?
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    उसे नदी में विसर्जित कर दिया जाता है ।
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    क्योंकि उसका अंत होना ही है ।
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    और अगले साल, वो देवी फिर आयेगी ।
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    जो जाता है, वो ज़रूर ज़रूर लौटता है
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    और ये सिर्फ़ मानवों पर ही नहीं,
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    बल्कि देवताओं पर भी लागू होता है ।
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    देखिये, देवताओं को भी
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    बार बार कई बार अवतार लेना होगा,
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    राम के रूप में , कृष्ण के रूप में
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    न सिर्फ़ वो अनगिनत जन्म लेते हैं,
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    वो उसी जीवन को अनगिनत बार जीते हैं
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    जब तक कि सब कुछ समझ ना आ जाये ।
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    ग्राउन्डहॉग डे (इसे विचार पर बनी एक हॉलीवुड फ़िल्म) ।
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    (हँसी)
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    दो अलग मिथयताएँ
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    इसमें सही कौन सी है ?
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    दो अलग समझें, दुनिया को समझने के दो अलग नज़रिये ।
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    एक सीधी रेखा में और दूसरा गोलाकार
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    एक मानता है कि केवल यही और सिर्फ़ यही एक जीवन है।
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    और दूसरा मानता है कि यह कई जीवनों में से एक जीवन है ।
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    और इसलिये सिकंदर के जीवन की तल-संख्या 'एक' थी ।
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    और उसके सारी जीवन का मूल्य इस एक जीवन में अर्जित
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    उसकी उपलबधियों के बराबर था ।
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    फ़कीर के जीवन की तल-संख्या 'अनन्त, अनगिनत' थी ।
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    और इसलिये, वो चाहे इस जीवन में जो कर ले,
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    सब जीवनों में बँट कर इस जीवन की उपलब्धियाँ नगण्य थीं ।
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    मुझे लगता है कि शायद भारतीय मिथक के इसी पहलू
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    के ज़रिये भारतीय गणितज्ञों ने
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    'शून्य' संख्या की खोज की होगी ।
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    क्या पता ?
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    और अब हम आते है कारोबार के मिथक पर ।
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    यदि सिकंदर का विश्वास उसके व्यवहार पर असर डाल सकता है,
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    यदि फ़कीर का विश्वास उसके जीवन पर प्रभाव डालता है,
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    तो निश्चय ही ये उन कारोबारों पर भी प्रभाव डालेगा जिनमें वो लगे थे ।
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    देखिये, कारोबार असल में
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    इस बात का ही तो परिणाम है कि बाज़ार ने कैसा व्यवहार किया
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    और संगठनों ने क्या व्यवहार किया ?
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    यदि आप दुनिया भर की संस्कृतियों पर एक नज़र डालें,
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    और उनके अपने अपने मिथकों को समझे,
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    तो आप को उनका व्यवहार और उनका कारोबार का ढँग समझ आ जाएगा ।
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    धयान से देखिये ।
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    अगर आप एक ही जीवन वाली संस्कृति से नाता रखते हैं
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    तो आप देखेंगे कि वो 'पूर्णतः सही या पूर्णतः गलत' के विचारधार से आसक्त हैं,
  • 10:10 - 10:13
    निर्धारित पूर्ण सत्य, मानकीकरण,
  • 10:13 - 10:16
    संपूर्णता, सीधी रेखा पर आधारित ढाँचे ।
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    पर यदि आप जीवन की पुनरावृत्ति वाली गोलाकार संस्कृति को देखेंगे
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    आप देखेंगे कि वो अस्पष्ठता के सहज हैं,
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    अनुमानों के साथ,
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    विषयक सोच के साथ,
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    'लगभग' के साथ, संदर्भों पर आधारित मानकों के साथ --
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    (हँसी)
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    ज्यादातर ।
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    (हँसी)
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    चलिये, कला पर नज़र डालते हैं । बैले नर्तकी को देखिये ।
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    कैसे उसकी जुम्बिश सीधी रेखाकार होती है ।
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    और भारतीय सस्कृतिक नर्तकी को देखिये,
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    कुचिपुडि, भरतनाट्यम नर्तकों को देखिये,
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    घुमावदार ।
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    (हँसी)
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    और धंधे के तरीके देखिये ।
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    मानकों पर आधारित ढाँचा:
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    अवलोकन, लक्ष्य, मूल्य, विधियाँ
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    लगता है जैसे किसी ऐसे यात्रा की कल्पना है
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    जो कि जंगल से सभ्य समाज तक ले जाती है,
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    एक नेता के दिये गये निर्देशों के अनुसार ।
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    यदि आप निर्देशों का पालन करेंगे, स्वर्ग प्राप्त होगा ।
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    पर भारत में कोई एक स्वर्ग नहीं है,
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    बहुत सारे अपने अपने स्वर्ग हैं,
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    आप समाज के किस हिस्से से हैं, इस के हिसाब से
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    आप जीवन के किस पडाव पर हैं, इस के हिसाब से
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    देखिये, कारोबार संगठनों की तरह नहीं चलाये जाते,
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    किसी एक व्यक्ति के निर्देशानुसार।
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    वो हमेशा पसन्द के अनुसार चलते हैं ।
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    मेरे अपनी खास पसंद के अनुसार ।
  • 11:32 - 11:34
    जैसे, भारतीय संगीत, मिसाल के तौर पर,
  • 11:34 - 11:36
    उसमें अनुरूपता, स्वर-संगति की कोई जगह नहीं है ।
  • 11:36 - 11:40
    वादकों के समूह का कोई एक निर्देशक नहीं होता है ।
  • 11:40 - 11:43
    एक कलाकार प्रदर्शन करता है, और बाकी सब लोग उसका अनुगमन करते हैं ।
  • 11:43 - 11:47
    और आप कभी भी उसके प्रदर्शन को बिलकुल वैसे ही दुबारा प्रस्तुत नहीं कर सकते ।
  • 11:47 - 11:49
    यहाँ लिखित प्रमाणों और अनुबंधों का खास महत्व नहीं है ।
  • 11:49 - 11:53
    यहाँ बातचीत और विश्वास पर ज्यादा ज़ोर है ।
  • 11:53 - 11:57
    यहाँ नियमों के पालन से ज्यादा ज़रूरी है 'सेटिंग',
  • 11:57 - 12:01
    बस काम पूरा होना चाहिये, चाहे नियम को मोड कर, या उसे तोड कर -
  • 12:01 - 12:03
    अपने आसपास मौजूद भारतीयों पर नज़र डालिये,
  • 12:03 - 12:05
    देखिये सब मुस्करा रहे हैं, उन्हे पता है मैं क्या कर रहा हूँ।
  • 12:05 - 12:06
    (हँसी)
  • 12:06 - 12:08
    और अब ज़रा उन्हें देखिये जिन्हें भारत में व्यवसाय किया है,
  • 12:08 - 12:10
    उनके चेहरे पर रोष छुपाये नहीं छुप रहा ।
  • 12:10 - 12:11
    (हँसी)
  • 12:11 - 12:15
    (अभिवादन)
  • 12:15 - 12:17
    देखिये, आज का भारत यही है । धरातल की सच्चाई
  • 12:17 - 12:19
    दुनिया को देखने के इसी गोलाकार नज़रिये पर टिकी है ।
  • 12:19 - 12:22
    इसीलिये ये लगातार बदल रही है, विविधताओं से परिपूर्ण है,
  • 12:22 - 12:25
    अस्त-व्यस्त है, अनुमान से परे है ।
  • 12:25 - 12:28
    और लोगबाग इसे ठीक पाते हैं ।
  • 12:28 - 12:30
    और अब तो वैश्वीकरण हो रहा है ।
  • 12:30 - 12:34
    आधुनिक संगठननुमा सोच की माँग बढ रही है ।
  • 12:34 - 12:38
    जो कि रेखाकार सीधी सभ्यता की जड है ।
  • 12:38 - 12:40
    और एक वैचारिक मुठभेड होने वाली है,
  • 12:40 - 12:43
    जैसे कि सिन्धु नदी के तट पर हुई थी ।
  • 12:43 - 12:46
    इसे होना ही है ।
  • 12:46 - 12:49
    मैनें खुद इसका अनुभव किया है । मैं एक प्रशिक्षित चिकित्सक हूँ ।
  • 12:49 - 12:52
    मुझे सर्जरी पढने का कतई मन नहीं था, और मत पूछिये क्यों ।
  • 12:52 - 12:54
    मुझे मिथक बहुत प्रिय हैं ।
  • 12:54 - 12:56
    मैं मिथकों को ही पढना चाहता था । मगर ऐसा कोई जगह नहीं है जहाँ ऐसा होता हो ।
  • 12:56 - 12:58
    तो मुझे स्वयं को ही पढाना पडा ।
  • 12:58 - 13:01
    और मिथकों से कमाई भी नहीं होती थी, कम से कम अब तक ।
  • 13:01 - 13:05
    (हँसी)
  • 13:05 - 13:08
    तो मुझे नौकरी करनी पडी । और मैनें औषधि के उद्योग में काम लिया ।
  • 13:08 - 13:10
    फिर मैने स्वास्थय - उद्योग में भी काम किया ।
  • 13:10 - 13:12
    मैनें मार्कटिंग में काम किया, सेल्स में काम किया ।
  • 13:12 - 13:15
    तकनीकी जानकार के रूप में, प्रशिक्षक के रूप में, और विषय-वस्तु तैयार करने का काम भी किया ।
  • 13:15 - 13:18
    मै एक व्यावसायिक सलाहकार भी रहा हूँ- योजना और दाँव-पेंच तैयार करता रहा हूँ ।
  • 13:18 - 13:20
    और मुझे असंतुष्टि दिखती है
  • 13:20 - 13:23
    अपने अमरीकन और यूरिपियन साथियों में
  • 13:23 - 13:25
    जब वो भारत में काम करते हैं ।
  • 13:25 - 13:28
    उदाहरण के तौर पर: कृपया हमें बताइये कि हम
  • 13:28 - 13:31
    हॉस्पिटलों को बिल कैसे भेजें ।
  • 13:31 - 13:35
    पहले A करें - फ़िर B करें - फ़िर C करें - ज्यादातर ऐसे ही होता है ।
  • 13:35 - 13:37
    (हँसी)
  • 13:37 - 13:39
    अब आप 'ज्यादातर' की क्या परिभाषा लिखेंगे ?
  • 13:39 - 13:43
    'ज्यादातर' को साफ़्ट्वेयर में कैसे डालेंगे ? नहीं कर सकते ।
  • 13:43 - 13:45
    मैं उन्हें अपना दृष्टिकोण बताना चाहता था ।
  • 13:45 - 13:47
    मगर कोई भी सुनने को तैयार नहीं था,
  • 13:47 - 13:51
    देखिये, जब तक मैं फ़्यूचर समुदाय के किशोर बियानी से नहीं मिला ।
  • 13:51 - 13:56
    देखिये, उन्होंने बिग बाजार नामक फुटकर बिक्री की सबसे बडी श्रंखला की स्थापना की है ।
  • 13:56 - 13:58
    और इसे कम से कम २०० अलग अलग तरीकों से
  • 13:58 - 14:00
    भारत के करीब ५० शहरों और कस्बों में चलाय जाता है ।
  • 14:00 - 14:04
    और वो बहुत ही विविध और सक्रिय बाजारों से काम कर रहे थे ।
  • 14:04 - 14:06
    और उन्हें सहजता से पता था,
  • 14:06 - 14:08
    कि उत्कृष्ट कार्य-प्रणालियाँ
  • 14:08 - 14:11
    जो कि जापान, चीन, यूरोप और अमरीका में बनी हैं
  • 14:11 - 14:14
    भारत में काम नहीं करेंगी ।
  • 14:14 - 14:18
    उन्हें पता था कि भारत में संस्थागत सोच नहीं चलेगी । यहाँ व्यक्तिगत सोच चलेगी ।
  • 14:18 - 14:22
    उन्हें भारत की मिथकीय बनावट की सहज समझ थी ।
  • 14:22 - 14:24
    तो, उन्होंने मुझसे मुख्य विश्वास अधिकारी बनने को कहा, और ये भी कहा,
  • 14:24 - 14:27
    "मैं चाहता हूँ कि आप सबके विश्वास को एक धुरी पर लाएँ ।"
  • 14:27 - 14:29
    कितना आसान सा लगता है ना ।
  • 14:29 - 14:31
    मगर विश्वास को मापा तो नहीं जा सकता ।
  • 14:31 - 14:33
    और ना ही उस पर प्रबंधन तकनीके लागू हो सकती हैं ।
  • 14:33 - 14:35
    तो आप कैसे विश्वास की आधार-शिला रखेंगे ?
  • 14:35 - 14:39
    कैसे आप लोगों में भारतीयता के प्रति संवेदना बढाएँगे
  • 14:39 - 14:43
    भारतीयों के लिये भी भारतीयता इतनी सहज या नहीं होती है ।
  • 14:43 - 14:47
    तो, मैनें संस्कृति का एक सर्वव्यापी ढाँचा तैयार करने का प्रयास किया,
  • 14:47 - 14:49
    जो था - कहानियों का विकास करना, चिन्हों का विकास करना, और रीति-रिवाजों का विकास करना ।
  • 14:49 - 14:52
    और मैं ऐसे एक रिवाज के बारे में आपको बताता हूँ ।
  • 14:52 - 14:55
    देखिये ये हिन्दुओं की 'दर्शन' रीति पर आधारित है ।
  • 14:55 - 14:57
    हिन्दु धर्म में कोई धर्मादेश नहीं होते हैं ।
  • 14:57 - 14:59
    इसलिये जीवन में जो आप करते हैं, उसमें कुछ गलत या सही नहीं होता है ।
  • 14:59 - 15:02
    तो आप ईश्वर के सम्मुख पापी हैं या पुण्यात्मा, ये किसी को नहीं पता ।
  • 15:02 - 15:05
    तो आप जब मंदिर जाते है, आप सिर्फ़ ईश्वर से मिलना चाहते हैं ।
  • 15:05 - 15:07
    बस सिर्फ़ दो मिनट के लिय एक मुलाकात करना ।
  • 15:07 - 15:11
    आप सिर्फ़ उनके 'दर्शन' करना चाहती है, और इसलिये ईश्वर की बडी बडी आँखें होती हैं,
  • 15:11 - 15:13
    विशाल अपलक टक टक ताकने वाले नेत्र,
  • 15:13 - 15:16
    कभी कभी चाँदी के बने हुए,
  • 15:16 - 15:18
    जिससे वो आप को देख सकें
  • 15:18 - 15:20
    अब क्योंकि आपको भी ये नहीं पता कि आप सही थे या गलत, आप केवल
  • 15:20 - 15:24
    देवता से समानुभूति की उम्मीद करते हैं ।
  • 15:24 - 15:27
    "बस जान लीजिये कि मैं कहाँ का हूँ, मैने जुगाड क्यों लगाई ।"
  • 15:27 - 15:28
    (हँसी)
  • 15:28 - 15:30
    "मैने ये सेटिंग क्यों भिडाई,
  • 15:30 - 15:35
    मैं इतना नियम कानून की परवाह क्यों नहीं करता, थोडा समझिये ।"
  • 15:35 - 15:38
    तो इस आधार पर हमने अगुआ लोगों के लिये कुछ रिवाज बनाए ।
  • 15:38 - 15:42
    जब उसका प्रशिक्षण समाप्त होता है, और वो अपने दुकान का दारोमदार लेने वाला होता है,
  • 15:42 - 15:46
    हम उस की आँखों पर पट्टी बाँधते है, और उसे घेर देते हैं,
  • 15:46 - 15:50
    ग्राहकों से, उसके परिवारजनों से, उसके दल से, उसके अफसर से ।
  • 15:50 - 15:53
    और हम उसकी जिम्मेदारियों और उससे अपेक्षित प्रदर्शन की बात करके उसे चाबी सौंप देते हैं,
  • 15:53 - 15:55
    और फिर उसकी पट्टी हटाते हैं ।
  • 15:55 - 15:58
    और हमेशा, एक आंसू उसकी आँखों में तैरता दिखता है,
  • 15:58 - 16:00
    क्योंकि वो समझ चुका होता है ।
  • 16:00 - 16:04
    उसे समझ आ जाता है कि सफल होने के लिये,
  • 16:04 - 16:07
    उसे कोई पेशेवर वयवसायी बनने की जरूरत नहीं है,
  • 16:07 - 16:10
    उसे अपनी भावनाओं को मारने की कतई ज़रूरत नहीं है,
  • 16:10 - 16:13
    उसे बस सब लोगों को साथ ले कर चलना है,
  • 16:13 - 16:17
    उसकी दुनिया के अपने लोगों को, और उन्हें खुश रखना है,
  • 16:17 - 16:19
    अपने अफसर को खुश रखना है, सब लोगों को खुश रखना है ।
  • 16:19 - 16:22
    ग्राहक को प्रसन्न रखना ही है, क्योंकि ग्राहक ईश्वर का रूप है ।
  • 16:22 - 16:25
    इस स्तर की संवेदनशीलता की आवश्यकता है । एक बार ये विश्वास घर कर ले,
  • 16:25 - 16:28
    व्यवहार भी आने लगता है, धंधा भी चलने लगता है ।
  • 16:28 - 16:31
    और चला है ।
  • 16:31 - 16:34
    वापस सिकंदर की बात करते हैं ।
  • 16:34 - 16:36
    और फकीर की ।
  • 16:36 - 16:40
    और अक्सर मुझसे पूछा जाता है, "सही रास्ता क्या है - ये य वो ?"
  • 16:40 - 16:42
    और ये बहुत ही खतरनाक प्रश्न है ।
  • 16:42 - 16:46
    क्योंकि ये आपको हिंसा और रूढिवादिता के रास्ते पर ले जाता है ।
  • 16:46 - 16:48
    इसलिये, मैं इसका उत्तर नहीं दूँगा ।
  • 16:48 - 16:50
    मैं आपको इसका भारतीयता-पूर्ण उत्तर दूँगा,
  • 16:50 - 16:52
    हमारा प्रसिद्ध सिर हिलाने का इशारा ।
  • 16:52 - 16:54
    (हँसी)
  • 16:54 - 16:58
    (अभिवादन)
  • 16:58 - 17:00
    संदर्भ के अनुसार,
  • 17:00 - 17:02
    कार्य के परिणाम के हिसाब से,
  • 17:02 - 17:05
    अपना दृष्टिकोण चुनिये ।
  • 17:05 - 17:08
    देखिये, क्योंकि दोनो ही नज़रिये इंसानी कल्पनाएँ हैं ।
  • 17:08 - 17:11
    सांस्कृतिक कल्पनाएँ हैं,
  • 17:11 - 17:14
    न कि कोई प्राकृतिक सत्य ।
  • 17:14 - 17:17
    तो जब अगली बार आप किसी अजनबी से मिलें,
  • 17:17 - 17:19
    एक प्रार्थना है:
  • 17:19 - 17:22
    समझियेगा कि आप संदर्भ-आधारित सत्य में जीवित हैं,
  • 17:22 - 17:24
    और वो अजनबी भी ।
  • 17:24 - 17:26
    इसे बिलकुल जहन में उतार लीजिये ।
  • 17:26 - 17:31
    और जब आप ये समझ जाएँगे, आप एक शानदार रत्न पा लेंगे ।
  • 17:31 - 17:33
    आपको इसका भान होगा कि अनगिनत मिथकों के
  • 17:33 - 17:35
    बीच परम सत्य स्थापित है ।
  • 17:35 - 17:37
    संपूर्ण ब्रह्माण्ड को कौन देखता है ?
  • 17:37 - 17:39
    वरुण हज़ार नेत्रों का स्वामी है ।
  • 17:39 - 17:42
    इन्द्र, सौ नेत्रो का ।
  • 17:42 - 17:44
    आप और मैं, केवल दो नेत्रों के ।
  • 17:44 - 17:47
    धन्यवाद
  • 17:47 - 18:05
    (अभिवादन)
Title:
देवदत्त पटनायक: पूरब बनाम पश्चिम - मिथकों की मित्थ्यता
Speaker:
Devdutt Pattanaik
Description:

देवदत्त पटनायक भारत और पश्चिम के मिथकों पर पडा पर्दा हटाते है, ये दिखाते हुए कि कैसे इन दो मूलत: विभिन्न धारणाओं ने हमेशा एक दूसरे को समझा ही नहीं ।

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Video Language:
English
Team:
closed TED
Project:
TEDTalks
Duration:
18:08
Swapnil Dixit added a translation

Hindi subtitles

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