देवदत्त पटनायक: पूरब बनाम पश्चिम - मिथकों की मित्थ्यता
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0:02 - 0:05ये समझने के लिये कि पौराणिक कथाओं का मामला
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0:05 - 0:09और मुख्य विश्वास अधिकारी का काम क्या है,
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0:09 - 0:11आपको एक कहानी सुननी होगी
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0:11 - 0:13भगवान गणेश की कहानी,
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0:13 - 0:15भगवान गजानन - हाथी के सर वाले भगवान की कहानी
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0:15 - 0:18जो कि कथावाचकों के सरताज़ हैं,
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0:18 - 0:19और उनके भाई,
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0:19 - 0:21देवताओं के सेनापति
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0:21 - 0:23कार्तिकेय ।
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0:23 - 0:26एक दिन दोनो भाइयों में एक प्रतियोगिता हुई - एक दौड
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0:26 - 0:29पूरे ब्रह्माण्ड के तीन चक्कर लगाने की दौड
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0:29 - 0:32कार्तिकेय अपने मोर पर सवार हुए
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0:32 - 0:35और महाद्वीपों को नाप डाला
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0:35 - 0:40फिर पहाडों को, फिर सागरों को,
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0:40 - 0:42उन्होंने ब्रह्माण्ड का पहला चक्कर लगाया,
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0:42 - 0:44फिर दूसरा
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0:44 - 0:47और फिर तीसरा चक्कर भी लगा डाला ।
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0:47 - 0:50पर उनके भाई, गणॆश ने
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0:50 - 0:53मात्र अपने माता-पिता की परिक्रमा की
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0:53 - 0:55एक बार, दो बार, और तीन बार,
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0:55 - 0:58और एलान कर डाला, "मैं जीत गया ।"
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0:58 - 1:00कार्तिकेय ने पूछा, "कैसे ?"
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1:00 - 1:01और तब गणेश ने कहा,
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1:01 - 1:04"तुमने 'ब्रहमाण्ड' की परिक्रमा की ।
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1:04 - 1:07और मैने 'अपने ब्रह्माण्ड' की ।"
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1:07 - 1:10संसार और मेरे संसार में ज्यादा महत्व किसका है ?
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1:10 - 1:13यदि आप 'संसार' और 'मेरे संसार' के बीच के अंतर को समझ सके,
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1:13 - 1:17तो आप 'सही' और 'मेरे लिये सही' के अंतर को समझ सकेंगे ।
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1:17 - 1:19'संसार' लक्ष्य-निर्धारित है, तार्किक है,
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1:19 - 1:22तथ्यात्मक है, संपूर्ण है,
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1:22 - 1:24वैज्ञानिक है ।
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1:24 - 1:27'मेरा संसार' व्यक्तिपरक है.
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1:27 - 1:30यह भावुक है. यह निजी है.
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1:30 - 1:33इसके अपने दृष्टिकोण, विचार हैं - अपननी भावनाएँ और अपने सपने है ।
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1:33 - 1:36ये जीवन मूल्यों का एक ढाँचा है जिससे अंतर्गत हम जीवन व्यतीत करते हैं ।
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1:36 - 1:39यह मिथक है कि हम तटस्थ हो कर रह रहे हैं ।
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1:39 - 1:42'संसार' हमें बताता है कि क्या चल रहा है,
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1:42 - 1:45सूरज उग कैसे रहा है,
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1:45 - 1:48हम पैदा कैसे होते हैं ।
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1:48 - 1:51'मेरा संसार' बताता है कि सूरज क्यों उग रहा है,
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1:51 - 1:55हम क्यों पैदा हुए ।
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1:55 - 1:59हर संस्कृति स्वयं को ही समझने की कोशिश कर रही है,
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1:59 - 2:01"हम अस्तित्व का कारण क्या है ?"
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2:01 - 2:04और हर संस्कृति ने अपने अपने जवाब ढूँढे हैं,
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2:04 - 2:09अपनी समझ के अनुरूप पौराणिक गाथाओं के रूप में ।
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2:09 - 2:12संस्कृति प्रकृति के प्रति हमारी प्रतिक्रिया है,
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2:12 - 2:14और इस प्रतिक्रिया की समझ, हमारी पूर्वजों के अनुसार
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2:14 - 2:17पीढी दर पीढी चलती आ रही है
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2:17 - 2:20कथाओं, प्रतीकों और अनुष्ठानों के रूप में,
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2:20 - 2:26जिन्हें तर्क, कारण और विश्लेषणॊं से कोई मतलब नहीं है ।
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2:26 - 2:28और जब आप इसमें गहरे उतरेंगे, तो आपको पता चलेगा
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2:28 - 2:30कि दुनिया के अलग अलग लोग
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2:30 - 2:33दुनिया को अपने अलग ढँग से समझते हैं ।
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2:33 - 2:35अलग अलग लोग एक ही चीज़ को :
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2:35 - 2:37अलग अलग दृष्टिकोणों से देखते हैं ।
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2:37 - 2:39एक हुई मेरी दुनिया और एक हुई आपकी दुनिया,
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2:39 - 2:42और मेरी दुनिया हमेशा मुझे आपकी दुनिया से बेहतर लगती है,
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2:42 - 2:45क्योंकि देखिये, मेरी दुनिया तर्कसंगत है
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2:45 - 2:47और आपकी अंधविश्वास पर आधारित,
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2:47 - 2:49आपकी मात्र विश्वास पर चलती है
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2:49 - 2:52तर्क पर आधारित नहीं है ।
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2:52 - 2:55यही सभ्यताओं के संघर्ष की जड़ है ।
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2:55 - 2:59326 ईसा पूर्व में भी यह बहस एक बार हुई थी ।
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2:59 - 3:02सिंधु नदी के तट पर,
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3:02 - 3:04जो कि अब पाकिस्तान में है ।
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3:04 - 3:07इस नदी से ही इण्डिया को उसका नाम मिला है ।
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3:07 - 3:09सिन्धु - हिन्दु - इन्दु - इन्डिया ।
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3:12 - 3:15सिकंदर, युवा मकदूनियन,
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3:15 - 3:19वहाँ ऐसे व्यक्ति से मिला जिसे उसने 'जिमनोसोफ़िस्ट' कहा है,
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3:19 - 3:22जिसका अर्थ है 'नंगा फ़कीर'
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3:22 - 3:24हम नहीं जानते कि वह कौन था ।
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3:24 - 3:26शायद कोई जैन साधु रहा हो,
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3:26 - 3:28जैसे कि बाहुबली, यहीं पास में ही,
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3:28 - 3:29गोमतेश्वर बाहुबली,
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3:29 - 3:31मैसूर से ज्यादा दूर नहीं है उनकी छवि ।
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3:31 - 3:33या फ़िर शायद वो कोई योगी रहा हो,
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3:33 - 3:35चट्टान पर बैठा, आसमान को ताकता,
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3:35 - 3:37और सूरज और चाँद को निहारता ।
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3:37 - 3:40सिकंदर ने पूछा, "आप क्या कर रहे हैं?"
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3:40 - 3:42और नंगे फ़कीर ने जवाब दिया,
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3:42 - 3:45"मैं शून्यता का अनुभव कर रहा हूँ."
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3:45 - 3:48फिर फ़कीर ने पूछा,
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3:48 - 3:50"आप क्या कर रहे हैं?"
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3:50 - 3:53और सिकंदर ने जवाब दिया, "मैं दुनिया पर विजय प्राप्त कर रहा हूँ ।"
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3:53 - 3:56और फिर वो दोनो हँसने लगे ।
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3:56 - 4:00दोनो एक दूसरे को मूर्ख समझ रहे थे ।
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4:00 - 4:04फ़कीर ने पूछा कि वो दुनिया को जीतने क्यों चाहता है ।
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4:04 - 4:07वो व्यर्थ है ।
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4:07 - 4:09और सिकंदर ने सोचा,
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4:09 - 4:11"ये साधु यहाँ बैठ कर वक्त क्यों गँवा रहा है?"
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4:11 - 4:13सारे जीवन को व्यर्थ कर रहा है ।
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4:13 - 4:17इन दोनों के विचारों के फ़र्क को समझने के लिये
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4:17 - 4:20हमें समझना होगा कि
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4:20 - 4:23सिकंदर का अपना सत्य समझना होगा:
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4:23 - 4:28और उन मिथकों को, जिन्होने उस सत्य को जन्म दिया ।
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4:28 - 4:31सिकंदर के माँ-बाप और उसके शिक्षक अरस्तु
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4:31 - 4:34ने उसे होमर के इलियाड की कहानियाँ सुनाई थीं ।
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4:34 - 4:37महान नायक अचिलस की कहानी, जिसका
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4:37 - 4:40लडाई में होना भर, विजय सुनिश्चित करता था,
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4:40 - 4:43पर यदि वो लडाई में न हो,
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4:43 - 4:46तो हार भी निश्नित होती थी ।
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4:46 - 4:49"अचिलस वो व्यक्ति था जो इतिहास बदलने की क्षमता रखता था,
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4:49 - 4:52नियति को काबू कर लेने वाला,
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4:52 - 4:55और सिकंदर, तुम्हें उस जैसा बनना चाहिये ।"
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4:55 - 4:57उसने ये सुना था ।
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4:57 - 5:00"और तुम्हें क्या नहीं बनना चाहिये ?
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5:00 - 5:03तुम्हें सिसिफस नहीं बनना चाहिये,
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5:03 - 5:05जो कि दिन भर भारी चट्टान को पहाड पर चढाता है
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5:05 - 5:10और हर रात, चट्टान वापस लुढक जाती है ।
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5:10 - 5:13ऐसा जीवन मत जियो जो साधारण हो,
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5:13 - 5:15औसत, निरर्थक हो ।
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5:15 - 5:18भव्य बनो ! --
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5:18 - 5:20ग्रीक नायकों की तरह,
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5:20 - 5:22जैसे जेसन, जो कि समंदर पार गया
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5:22 - 5:26अरगोनाट्स के साथ और सुनहरी ऊन ले कर आया ।
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5:26 - 5:29महान बनो जैसे थीसियस,
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5:29 - 5:35जिसने नर्क में घुस कर भैंसे के सिर वाले राक्षस मिनोटोर को मार गिराया ।
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5:35 - 5:39जब जब प्रतियोगिता में भाग लो, जीतो ! --
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5:39 - 5:42क्योंकि जीत की प्रसन्नता, उसकी अनुभव
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5:42 - 5:47देवों के सामीप्य का सबसे प्रत्यक्क्ष अनुभव होगा ।"
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5:47 - 5:50देखिय, ग्रीक ये मानते थे
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5:50 - 5:52कि आप केवल एक बार जीते है
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5:52 - 5:56और जब आपकी मृत्यु होती है, आप स्टिक्स नदी पार करते हैं,
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5:56 - 5:59और यदि आपने भव्य जीवन जिया है,
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5:59 - 6:02तो आपको अलीसियम (स्वर्ग) में आमंत्रित किया जायेगा,
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6:02 - 6:06या जिसे फ़्रांसीसी लोग 'शाम्पस-अलीयसीज़' (पेरिस की प्रसिद्ध बाज़ार) कहते हैं --
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6:06 - 6:07(हँसी) --
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6:07 - 6:10महापुरोषों का स्वर्ग ।
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6:13 - 6:17पर ये वो कहानियाँ नहीं थी जो हमारे फ़कीर ने सुनी थीं ।
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6:17 - 6:20उसने बहुत अलग कहानियाँ सुनी थीं ।
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6:20 - 6:23उसने भरत नाम के व्यक्ति के बारे में सुना था,
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6:23 - 6:26जिसकी नाम पर इण्डिया को भारत भी कहते है ।
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6:26 - 6:29भरत ने भी विश्व-विजय प्राप्त की थी ।
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6:29 - 6:32और तब वो संसार के केंन्द्र-बिन्दु पर
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6:32 - 6:35स्थित सबसे बडे पहाड की सबसे ऊँची चोटी पर गया,
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6:35 - 6:36जिसका नाम था मेरु ।
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6:36 - 6:39और वो वहाँ अपने नाम का झंडा फहराना चाहता था,
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6:39 - 6:42"मैं यहाँ आने वाला पहला व्यक्ति था ।"
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6:42 - 6:44पर जब वो मेरु पर्वत पर पहुँचा,
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6:44 - 6:49तो उसने उसे अनगिनत झंडों से ढका पाया,
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6:49 - 6:52उससे पहले आने वाले विश्व-विजयिओं के झंडों से,
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6:52 - 6:56हर झंडा दाव कर रहा था "मैं यहाँ सबसे पहले आया...
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6:56 - 7:00...ऐसा मैं सोचता था जब तक मैं यहाँ नहीं आया था ।"
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7:00 - 7:03और अचानक, अनन्ता की इस पृष्ठभूमि में,
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7:03 - 7:07भरत ने स्वयं को क्षुद्र, नगण्य़ पाया ।
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7:07 - 7:11ये उस फ़कीर का सुना हुआ मिथक था ।
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7:11 - 7:16देखिय, फ़कीर के भी अपने नायक थे, जैसे राम - रघुपति राम
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7:16 - 7:18और कृष्ण, गोविन्द, हरि ।
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7:18 - 7:22परन्तु वो दो अलग अलग पात्र दो अलग अलग अभियानों पर निकले दो अलग अलग नायक नहीं थे ।
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7:22 - 7:26वो एक ही नायक के दो जन्म थे ।
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7:26 - 7:30जब रामायण काल समाप्त होता है, तो महाभारत काल प्रारंभ होता है ।
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7:30 - 7:32जब राम यमलोक सिधारते है, कृष्ण जन्म लेते है ।
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7:32 - 7:35जब कृष्ण यमलोक जाते है, तो वो पुनः राम के रूप में अवतार लेते हैं ।
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7:35 - 7:38भारतीय मिथकों में भी एक नदी है
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7:38 - 7:41जो कि जीवितों और मृतकों की दुनिया की सीमारेखा है ।
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7:41 - 7:43पर इसे केवल एक बार ही पार नहीं करना होता है ।
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7:43 - 7:46इस के तो आर-पार अनन्ता तक आना जाना होता है ।
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7:46 - 7:49इस नदी का नाम है वैतरणी ।
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7:49 - 7:52आप बार-बार, बारम्बार आते जाते है ।
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7:52 - 7:53क्योंकि, आप देखिये,
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7:53 - 7:56भारत में कुछ भी हमेशा नहीं टिकता, मृत्यु भी नहीं ।
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7:56 - 7:59इसलिये ही तो, हमारे भव्य आयोजनों में
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7:59 - 8:02देवियों की महान मूर्तियाँ तैयार की जाती हैं,
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8:02 - 8:04उन्हें दस दिन तक पूजा जाता है...
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8:04 - 8:06और दस दिन के बाद क्या होत है ?
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8:06 - 8:09उसे नदी में विसर्जित कर दिया जाता है ।
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8:09 - 8:11क्योंकि उसका अंत होना ही है ।
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8:11 - 8:14और अगले साल, वो देवी फिर आयेगी ।
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8:14 - 8:16जो जाता है, वो ज़रूर ज़रूर लौटता है
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8:16 - 8:19और ये सिर्फ़ मानवों पर ही नहीं,
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8:19 - 8:21बल्कि देवताओं पर भी लागू होता है ।
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8:21 - 8:24देखिये, देवताओं को भी
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8:24 - 8:26बार बार कई बार अवतार लेना होगा,
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8:26 - 8:28राम के रूप में , कृष्ण के रूप में
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8:28 - 8:31न सिर्फ़ वो अनगिनत जन्म लेते हैं,
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8:31 - 8:34वो उसी जीवन को अनगिनत बार जीते हैं
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8:34 - 8:39जब तक कि सब कुछ समझ ना आ जाये ।
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8:39 - 8:41ग्राउन्डहॉग डे (इसे विचार पर बनी एक हॉलीवुड फ़िल्म) ।
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8:41 - 8:44(हँसी)
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8:46 - 8:49दो अलग मिथयताएँ
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8:49 - 8:51इसमें सही कौन सी है ?
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8:51 - 8:54दो अलग समझें, दुनिया को समझने के दो अलग नज़रिये ।
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8:54 - 8:56एक सीधी रेखा में और दूसरा गोलाकार
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8:56 - 8:58एक मानता है कि केवल यही और सिर्फ़ यही एक जीवन है।
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8:58 - 9:03और दूसरा मानता है कि यह कई जीवनों में से एक जीवन है ।
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9:03 - 9:07और इसलिये सिकंदर के जीवन की तल-संख्या 'एक' थी ।
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9:07 - 9:10और उसके सारी जीवन का मूल्य इस एक जीवन में अर्जित
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9:10 - 9:12उसकी उपलबधियों के बराबर था ।
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9:12 - 9:16फ़कीर के जीवन की तल-संख्या 'अनन्त, अनगिनत' थी ।
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9:16 - 9:19और इसलिये, वो चाहे इस जीवन में जो कर ले,
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9:19 - 9:21सब जीवनों में बँट कर इस जीवन की उपलब्धियाँ नगण्य थीं ।
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9:21 - 9:24मुझे लगता है कि शायद भारतीय मिथक के इसी पहलू
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9:24 - 9:27के ज़रिये भारतीय गणितज्ञों ने
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9:27 - 9:29'शून्य' संख्या की खोज की होगी ।
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9:29 - 9:31क्या पता ?
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9:31 - 9:34और अब हम आते है कारोबार के मिथक पर ।
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9:34 - 9:37यदि सिकंदर का विश्वास उसके व्यवहार पर असर डाल सकता है,
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9:37 - 9:41यदि फ़कीर का विश्वास उसके जीवन पर प्रभाव डालता है,
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9:41 - 9:46तो निश्चय ही ये उन कारोबारों पर भी प्रभाव डालेगा जिनमें वो लगे थे ।
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9:46 - 9:48देखिये, कारोबार असल में
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9:48 - 9:50इस बात का ही तो परिणाम है कि बाज़ार ने कैसा व्यवहार किया
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9:50 - 9:53और संगठनों ने क्या व्यवहार किया ?
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9:53 - 9:56यदि आप दुनिया भर की संस्कृतियों पर एक नज़र डालें,
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9:56 - 9:58और उनके अपने अपने मिथकों को समझे,
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9:58 - 10:01तो आप को उनका व्यवहार और उनका कारोबार का ढँग समझ आ जाएगा ।
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10:01 - 10:05धयान से देखिये ।
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10:05 - 10:08अगर आप एक ही जीवन वाली संस्कृति से नाता रखते हैं
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10:08 - 10:10तो आप देखेंगे कि वो 'पूर्णतः सही या पूर्णतः गलत' के विचारधार से आसक्त हैं,
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10:10 - 10:13निर्धारित पूर्ण सत्य, मानकीकरण,
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10:13 - 10:16संपूर्णता, सीधी रेखा पर आधारित ढाँचे ।
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10:16 - 10:19पर यदि आप जीवन की पुनरावृत्ति वाली गोलाकार संस्कृति को देखेंगे
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10:19 - 10:24आप देखेंगे कि वो अस्पष्ठता के सहज हैं,
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10:24 - 10:26अनुमानों के साथ,
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10:26 - 10:28विषयक सोच के साथ,
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10:28 - 10:31'लगभग' के साथ, संदर्भों पर आधारित मानकों के साथ --
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10:31 - 10:32(हँसी)
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10:32 - 10:34ज्यादातर ।
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10:34 - 10:35(हँसी)
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10:35 - 10:38चलिये, कला पर नज़र डालते हैं । बैले नर्तकी को देखिये ।
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10:38 - 10:40कैसे उसकी जुम्बिश सीधी रेखाकार होती है ।
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10:40 - 10:42और भारतीय सस्कृतिक नर्तकी को देखिये,
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10:42 - 10:44कुचिपुडि, भरतनाट्यम नर्तकों को देखिये,
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10:44 - 10:46घुमावदार ।
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10:46 - 10:49(हँसी)
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10:49 - 10:51और धंधे के तरीके देखिये ।
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10:51 - 10:53मानकों पर आधारित ढाँचा:
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10:53 - 10:57अवलोकन, लक्ष्य, मूल्य, विधियाँ
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10:57 - 10:59लगता है जैसे किसी ऐसे यात्रा की कल्पना है
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10:59 - 11:01जो कि जंगल से सभ्य समाज तक ले जाती है,
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11:01 - 11:03एक नेता के दिये गये निर्देशों के अनुसार ।
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11:03 - 11:08यदि आप निर्देशों का पालन करेंगे, स्वर्ग प्राप्त होगा ।
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11:08 - 11:10पर भारत में कोई एक स्वर्ग नहीं है,
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11:10 - 11:13बहुत सारे अपने अपने स्वर्ग हैं,
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11:13 - 11:16आप समाज के किस हिस्से से हैं, इस के हिसाब से
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11:16 - 11:18आप जीवन के किस पडाव पर हैं, इस के हिसाब से
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11:18 - 11:22देखिये, कारोबार संगठनों की तरह नहीं चलाये जाते,
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11:22 - 11:25किसी एक व्यक्ति के निर्देशानुसार।
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11:25 - 11:28वो हमेशा पसन्द के अनुसार चलते हैं ।
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11:28 - 11:32मेरे अपनी खास पसंद के अनुसार ।
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11:32 - 11:34जैसे, भारतीय संगीत, मिसाल के तौर पर,
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11:34 - 11:36उसमें अनुरूपता, स्वर-संगति की कोई जगह नहीं है ।
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11:36 - 11:40वादकों के समूह का कोई एक निर्देशक नहीं होता है ।
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11:40 - 11:43एक कलाकार प्रदर्शन करता है, और बाकी सब लोग उसका अनुगमन करते हैं ।
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11:43 - 11:47और आप कभी भी उसके प्रदर्शन को बिलकुल वैसे ही दुबारा प्रस्तुत नहीं कर सकते ।
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11:47 - 11:49यहाँ लिखित प्रमाणों और अनुबंधों का खास महत्व नहीं है ।
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11:49 - 11:53यहाँ बातचीत और विश्वास पर ज्यादा ज़ोर है ।
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11:53 - 11:57यहाँ नियमों के पालन से ज्यादा ज़रूरी है 'सेटिंग',
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11:57 - 12:01बस काम पूरा होना चाहिये, चाहे नियम को मोड कर, या उसे तोड कर -
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12:01 - 12:03अपने आसपास मौजूद भारतीयों पर नज़र डालिये,
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12:03 - 12:05देखिये सब मुस्करा रहे हैं, उन्हे पता है मैं क्या कर रहा हूँ।
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12:05 - 12:06(हँसी)
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12:06 - 12:08और अब ज़रा उन्हें देखिये जिन्हें भारत में व्यवसाय किया है,
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12:08 - 12:10उनके चेहरे पर रोष छुपाये नहीं छुप रहा ।
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12:10 - 12:11(हँसी)
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12:11 - 12:15(अभिवादन)
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12:15 - 12:17देखिये, आज का भारत यही है । धरातल की सच्चाई
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12:17 - 12:19दुनिया को देखने के इसी गोलाकार नज़रिये पर टिकी है ।
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12:19 - 12:22इसीलिये ये लगातार बदल रही है, विविधताओं से परिपूर्ण है,
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12:22 - 12:25अस्त-व्यस्त है, अनुमान से परे है ।
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12:25 - 12:28और लोगबाग इसे ठीक पाते हैं ।
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12:28 - 12:30और अब तो वैश्वीकरण हो रहा है ।
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12:30 - 12:34आधुनिक संगठननुमा सोच की माँग बढ रही है ।
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12:34 - 12:38जो कि रेखाकार सीधी सभ्यता की जड है ।
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12:38 - 12:40और एक वैचारिक मुठभेड होने वाली है,
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12:40 - 12:43जैसे कि सिन्धु नदी के तट पर हुई थी ।
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12:43 - 12:46इसे होना ही है ।
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12:46 - 12:49मैनें खुद इसका अनुभव किया है । मैं एक प्रशिक्षित चिकित्सक हूँ ।
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12:49 - 12:52मुझे सर्जरी पढने का कतई मन नहीं था, और मत पूछिये क्यों ।
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12:52 - 12:54मुझे मिथक बहुत प्रिय हैं ।
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12:54 - 12:56मैं मिथकों को ही पढना चाहता था । मगर ऐसा कोई जगह नहीं है जहाँ ऐसा होता हो ।
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12:56 - 12:58तो मुझे स्वयं को ही पढाना पडा ।
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12:58 - 13:01और मिथकों से कमाई भी नहीं होती थी, कम से कम अब तक ।
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13:01 - 13:05(हँसी)
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13:05 - 13:08तो मुझे नौकरी करनी पडी । और मैनें औषधि के उद्योग में काम लिया ।
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13:08 - 13:10फिर मैने स्वास्थय - उद्योग में भी काम किया ।
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13:10 - 13:12मैनें मार्कटिंग में काम किया, सेल्स में काम किया ।
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13:12 - 13:15तकनीकी जानकार के रूप में, प्रशिक्षक के रूप में, और विषय-वस्तु तैयार करने का काम भी किया ।
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13:15 - 13:18मै एक व्यावसायिक सलाहकार भी रहा हूँ- योजना और दाँव-पेंच तैयार करता रहा हूँ ।
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13:18 - 13:20और मुझे असंतुष्टि दिखती है
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13:20 - 13:23अपने अमरीकन और यूरिपियन साथियों में
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13:23 - 13:25जब वो भारत में काम करते हैं ।
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13:25 - 13:28उदाहरण के तौर पर: कृपया हमें बताइये कि हम
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13:28 - 13:31हॉस्पिटलों को बिल कैसे भेजें ।
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13:31 - 13:35पहले A करें - फ़िर B करें - फ़िर C करें - ज्यादातर ऐसे ही होता है ।
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13:35 - 13:37(हँसी)
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13:37 - 13:39अब आप 'ज्यादातर' की क्या परिभाषा लिखेंगे ?
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13:39 - 13:43'ज्यादातर' को साफ़्ट्वेयर में कैसे डालेंगे ? नहीं कर सकते ।
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13:43 - 13:45मैं उन्हें अपना दृष्टिकोण बताना चाहता था ।
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13:45 - 13:47मगर कोई भी सुनने को तैयार नहीं था,
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13:47 - 13:51देखिये, जब तक मैं फ़्यूचर समुदाय के किशोर बियानी से नहीं मिला ।
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13:51 - 13:56देखिये, उन्होंने बिग बाजार नामक फुटकर बिक्री की सबसे बडी श्रंखला की स्थापना की है ।
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13:56 - 13:58और इसे कम से कम २०० अलग अलग तरीकों से
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13:58 - 14:00भारत के करीब ५० शहरों और कस्बों में चलाय जाता है ।
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14:00 - 14:04और वो बहुत ही विविध और सक्रिय बाजारों से काम कर रहे थे ।
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14:04 - 14:06और उन्हें सहजता से पता था,
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14:06 - 14:08कि उत्कृष्ट कार्य-प्रणालियाँ
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14:08 - 14:11जो कि जापान, चीन, यूरोप और अमरीका में बनी हैं
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14:11 - 14:14भारत में काम नहीं करेंगी ।
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14:14 - 14:18उन्हें पता था कि भारत में संस्थागत सोच नहीं चलेगी । यहाँ व्यक्तिगत सोच चलेगी ।
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14:18 - 14:22उन्हें भारत की मिथकीय बनावट की सहज समझ थी ।
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14:22 - 14:24तो, उन्होंने मुझसे मुख्य विश्वास अधिकारी बनने को कहा, और ये भी कहा,
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14:24 - 14:27"मैं चाहता हूँ कि आप सबके विश्वास को एक धुरी पर लाएँ ।"
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14:27 - 14:29कितना आसान सा लगता है ना ।
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14:29 - 14:31मगर विश्वास को मापा तो नहीं जा सकता ।
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14:31 - 14:33और ना ही उस पर प्रबंधन तकनीके लागू हो सकती हैं ।
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14:33 - 14:35तो आप कैसे विश्वास की आधार-शिला रखेंगे ?
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14:35 - 14:39कैसे आप लोगों में भारतीयता के प्रति संवेदना बढाएँगे
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14:39 - 14:43भारतीयों के लिये भी भारतीयता इतनी सहज या नहीं होती है ।
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14:43 - 14:47तो, मैनें संस्कृति का एक सर्वव्यापी ढाँचा तैयार करने का प्रयास किया,
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14:47 - 14:49जो था - कहानियों का विकास करना, चिन्हों का विकास करना, और रीति-रिवाजों का विकास करना ।
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14:49 - 14:52और मैं ऐसे एक रिवाज के बारे में आपको बताता हूँ ।
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14:52 - 14:55देखिये ये हिन्दुओं की 'दर्शन' रीति पर आधारित है ।
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14:55 - 14:57हिन्दु धर्म में कोई धर्मादेश नहीं होते हैं ।
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14:57 - 14:59इसलिये जीवन में जो आप करते हैं, उसमें कुछ गलत या सही नहीं होता है ।
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14:59 - 15:02तो आप ईश्वर के सम्मुख पापी हैं या पुण्यात्मा, ये किसी को नहीं पता ।
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15:02 - 15:05तो आप जब मंदिर जाते है, आप सिर्फ़ ईश्वर से मिलना चाहते हैं ।
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15:05 - 15:07बस सिर्फ़ दो मिनट के लिय एक मुलाकात करना ।
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15:07 - 15:11आप सिर्फ़ उनके 'दर्शन' करना चाहती है, और इसलिये ईश्वर की बडी बडी आँखें होती हैं,
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15:11 - 15:13विशाल अपलक टक टक ताकने वाले नेत्र,
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15:13 - 15:16कभी कभी चाँदी के बने हुए,
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15:16 - 15:18जिससे वो आप को देख सकें
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15:18 - 15:20अब क्योंकि आपको भी ये नहीं पता कि आप सही थे या गलत, आप केवल
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15:20 - 15:24देवता से समानुभूति की उम्मीद करते हैं ।
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15:24 - 15:27"बस जान लीजिये कि मैं कहाँ का हूँ, मैने जुगाड क्यों लगाई ।"
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15:27 - 15:28(हँसी)
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15:28 - 15:30"मैने ये सेटिंग क्यों भिडाई,
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15:30 - 15:35मैं इतना नियम कानून की परवाह क्यों नहीं करता, थोडा समझिये ।"
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15:35 - 15:38तो इस आधार पर हमने अगुआ लोगों के लिये कुछ रिवाज बनाए ।
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15:38 - 15:42जब उसका प्रशिक्षण समाप्त होता है, और वो अपने दुकान का दारोमदार लेने वाला होता है,
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15:42 - 15:46हम उस की आँखों पर पट्टी बाँधते है, और उसे घेर देते हैं,
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15:46 - 15:50ग्राहकों से, उसके परिवारजनों से, उसके दल से, उसके अफसर से ।
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15:50 - 15:53और हम उसकी जिम्मेदारियों और उससे अपेक्षित प्रदर्शन की बात करके उसे चाबी सौंप देते हैं,
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15:53 - 15:55और फिर उसकी पट्टी हटाते हैं ।
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15:55 - 15:58और हमेशा, एक आंसू उसकी आँखों में तैरता दिखता है,
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15:58 - 16:00क्योंकि वो समझ चुका होता है ।
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16:00 - 16:04उसे समझ आ जाता है कि सफल होने के लिये,
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16:04 - 16:07उसे कोई पेशेवर वयवसायी बनने की जरूरत नहीं है,
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16:07 - 16:10उसे अपनी भावनाओं को मारने की कतई ज़रूरत नहीं है,
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16:10 - 16:13उसे बस सब लोगों को साथ ले कर चलना है,
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16:13 - 16:17उसकी दुनिया के अपने लोगों को, और उन्हें खुश रखना है,
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16:17 - 16:19अपने अफसर को खुश रखना है, सब लोगों को खुश रखना है ।
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16:19 - 16:22ग्राहक को प्रसन्न रखना ही है, क्योंकि ग्राहक ईश्वर का रूप है ।
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16:22 - 16:25इस स्तर की संवेदनशीलता की आवश्यकता है । एक बार ये विश्वास घर कर ले,
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16:25 - 16:28व्यवहार भी आने लगता है, धंधा भी चलने लगता है ।
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16:28 - 16:31और चला है ।
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16:31 - 16:34वापस सिकंदर की बात करते हैं ।
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16:34 - 16:36और फकीर की ।
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16:36 - 16:40और अक्सर मुझसे पूछा जाता है, "सही रास्ता क्या है - ये य वो ?"
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16:40 - 16:42और ये बहुत ही खतरनाक प्रश्न है ।
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16:42 - 16:46क्योंकि ये आपको हिंसा और रूढिवादिता के रास्ते पर ले जाता है ।
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16:46 - 16:48इसलिये, मैं इसका उत्तर नहीं दूँगा ।
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16:48 - 16:50मैं आपको इसका भारतीयता-पूर्ण उत्तर दूँगा,
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16:50 - 16:52हमारा प्रसिद्ध सिर हिलाने का इशारा ।
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16:52 - 16:54(हँसी)
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16:54 - 16:58(अभिवादन)
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16:58 - 17:00संदर्भ के अनुसार,
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17:00 - 17:02कार्य के परिणाम के हिसाब से,
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17:02 - 17:05अपना दृष्टिकोण चुनिये ।
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17:05 - 17:08देखिये, क्योंकि दोनो ही नज़रिये इंसानी कल्पनाएँ हैं ।
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17:08 - 17:11सांस्कृतिक कल्पनाएँ हैं,
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17:11 - 17:14न कि कोई प्राकृतिक सत्य ।
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17:14 - 17:17तो जब अगली बार आप किसी अजनबी से मिलें,
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17:17 - 17:19एक प्रार्थना है:
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17:19 - 17:22समझियेगा कि आप संदर्भ-आधारित सत्य में जीवित हैं,
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17:22 - 17:24और वो अजनबी भी ।
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17:24 - 17:26इसे बिलकुल जहन में उतार लीजिये ।
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17:26 - 17:31और जब आप ये समझ जाएँगे, आप एक शानदार रत्न पा लेंगे ।
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17:31 - 17:33आपको इसका भान होगा कि अनगिनत मिथकों के
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17:33 - 17:35बीच परम सत्य स्थापित है ।
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17:35 - 17:37संपूर्ण ब्रह्माण्ड को कौन देखता है ?
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17:37 - 17:39वरुण हज़ार नेत्रों का स्वामी है ।
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17:39 - 17:42इन्द्र, सौ नेत्रो का ।
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17:42 - 17:44आप और मैं, केवल दो नेत्रों के ।
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17:44 - 17:47धन्यवाद
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17:47 - 18:05(अभिवादन)
- Title:
- देवदत्त पटनायक: पूरब बनाम पश्चिम - मिथकों की मित्थ्यता
- Speaker:
- Devdutt Pattanaik
- Description:
-
देवदत्त पटनायक भारत और पश्चिम के मिथकों पर पडा पर्दा हटाते है, ये दिखाते हुए कि कैसे इन दो मूलत: विभिन्न धारणाओं ने हमेशा एक दूसरे को समझा ही नहीं ।
- Video Language:
- English
- Team:
closed TED
- Project:
- TEDTalks
- Duration:
- 18:08