जय भगवान
-
0:00 - 0:09मूजी बाबा के साथ सैर
-
0:09 - 0:14जय भगवान
06/08/2017 -
0:14 - 0:18तो हम चल रहे हैं,
सुबह का वक़्त है। -
0:18 - 0:23अभी अभी उषा की पहली किरणें फूटी हैं
और यह बहुत मनोहर है -
0:23 - 0:27इस तरह जंगल के साथ साथ चलना।
-
0:27 - 0:31तो हम एक साथ कहते हैं, 'जय भगवान्, जय भगवान् '।
-
0:31 - 0:35दिल यह व्यक्त करना चाहता है।
-
0:35 - 0:37कि भगवान् दरअसल है क्या?
-
0:37 - 0:42मेरा कहना है की भगवान् सर्वस्व है,
सर्व-व्यापक, केवल एक, -
0:42 - 0:45दो नहीं हैं।
-
0:45 - 0:47शायद इसके अलग अलग नाम हैं।
-
0:47 - 0:49जैसा मैंने पहले कहा
-
0:49 - 0:56अज्ञानी कल्पना करते हैं
कि हम अलग-अलग भगवानों की पूजा करते हैं। -
0:56 - 1:01लेकिन असल में, हम सभी
एक ही भगवान को अलग-अलग तरह से पूज रहे हैं, -
1:01 - 1:04अलग अलग विधियों से।
-
1:04 - 1:09हर कोई ईश्वर को अपने रास्ते से मिले।
-
1:09 - 1:16किन्तु हम कहते हैं, यह न कहें कि
भगवान् क्या है या क्या नहीं है। -
1:16 - 1:23इससे बेहतर है कि तुम अपना ध्यान
अंदर लगाओ और चुप रहो, -
1:23 - 1:27जब तक तुम यह नहीं पा लेते कि तुम्हारा ईश्वर यहाँ है।
-
1:27 - 1:31क्योंकि ईश्वर सबसे आतंरिक तत्व है,
सबसे आतंरिक तत्व, -
1:31 - 1:35लेकिन वह हर चीज़ में समाया है, हर चीज़ में!
-
1:35 - 1:38चाहे तुम उसे पुरुष कहो या स्त्री या वस्तु
-
1:38 - 1:41या सर्वत्र-ता या होना या सदृश-ता,
-
1:41 - 1:45या ताओ या चाहे कुछ भी,
इससे फ़र्क़ नहीं पड़ता। -
1:45 - 1:54जैसे भगवान् कृष्ण ने कहा,
एक तरह से सर्वोच्च परमेश्वर की ओर से -
1:54 - 2:00वे कहते हैं,
'जिस भी रूप में मानव ईश्वर की उपासना करें, -
2:00 - 2:02सब उपासना मुझ तक आती है'।
-
2:02 - 2:10मतलब मैं कृष्ण नहीं,
किन्तु मैं, सर्वोच्च परमेश्वर, सर्वोच्च परमात्मा। -
2:10 - 2:15तो क्या कहा जाये?
-
2:15 - 2:18और येसु कहते हैं,
'मैं और मेरे पिता एक हैं'। -
2:18 - 2:22मतलब, बराबर नहीं,
यद्यपि मैं सामंजस्य में हूँ। -
2:22 - 2:25मैं ईश्वर मे हूँ और ईश्वर मुझ में है।
-
2:25 - 2:27हमें ईश्वर को कोई रूप
देने की ज़रूरत नहीं है, -
2:27 - 2:31क्योंकि दरअसल ईश्वर अरूप है, रूप के परे।
-
2:31 - 2:35यह वह सर्वोच्च प्रज्ञा है
जो सबको घेरे है -
2:35 - 2:37और सबमें समायी है।
-
2:37 - 2:42तो मुझे ईश्वर से बाहर कुछ नहीं दिखता।
-
2:42 - 2:45और धीरे धीरे, साधक जान जाता है
-
2:45 - 2:48कि वे अपनी स्थानबद्ध चेतना खो देते हैं,
-
2:48 - 2:52जिसने व्यक्ति-रूप लिया हुआ है
और बहुत सीमित है -
2:52 - 2:55और इसीलिए सनकी स्वभाव
व् धारणाओं से भरी हुई है, -
2:55 - 3:02जो असुरक्षा व् डर से भरी हुई है,
वह विस्तृत हो जाती है। -
3:02 - 3:09तब चेतना विस्तृत
व् पूर्ण व् सम्पूर्ण प्रतीत होती है। -
3:10 - 3:16हम अहम् की सीमित हद से व धारणाओं से
मुक्त होते हैं और बढ़ते हैं .... -
3:16 - 3:23जितना अधिक तुम अपने स्रोत को पहचानोगे,
-
3:23 - 3:29उतना अधिक तुम हृदय में ईश्वर को पाओगे।
-
3:29 - 3:35और हम में अभी भी अलग व्यक्तित्व होने का
एहसास होता है, जो ठीक भी है। -
3:35 - 3:38जैसे कि तुम अलग व्यक्तित्व भी हो
और सार्वभौमिक भी। -
3:38 - 3:42तुम कर्ता भी हो और अकर्ता भी,
और उनके परे भी। -
3:42 - 3:48हम यह खोज पा रहे हैं।
कितनी अद्भुत, स्वादिष्ट मिठास -
3:48 - 3:51इस सामंजस्य में खोजना।
-
3:51 - 3:54कुछ भी बाहर नहीं छूटा है,
किसी के प्रति पक्षपात नहीं है। -
3:54 - 3:56यह बस सामंजस्य की भूमि है,
-
3:56 - 4:03और इस भूमि की सुगंध
आनंद व् अखंड शांति -
4:03 - 4:16व् कभी कम न होने वाला, अवर्णनीय प्रेम
व् खुलापन व् ज्ञान है। -
4:16 - 4:21यह हमारी सुगंध है जब हम
अहम्-भाव की जकड़ से -
4:21 - 4:26व् मनोवैज्ञानिक मन से व् उसके अनुकूलन से
मुक्त होते हैं। -
4:26 - 4:33फिर, हम ईश्वर के बारे में कहते हैं
विशाल शांति, विशाल अस्तित्व। -
4:33 - 4:38किन्तु दरअसल ऐसा कोई शब्द नहीं है
जो उसे समाहित कर सके जो वह है। -
4:38 - 4:40हम केवल सहजज्ञान से बोल सकते हैं
-
4:40 - 4:44और रूपक या प्रतीक के रूप में
शब्दों का प्रयोग कर सकते हैं, -
4:44 - 4:46क्योंकि वह इन सबके परे है।
-
4:46 - 4:49किन्तु परे फ़ासले के रूप में नहीं,
-
4:49 - 4:53अपितु सूक्ष्मता व् पवित्रता के रूप में।
-
4:53 - 4:58और फिर भी, वह किसी चीज़ से अलग नहीं है।
यही विरोधाभास है। -
4:58 - 5:05लेकिन किसके लिए?
-
5:05 - 5:09सब बस यही कहना शुरू करें, 'धन्यवाद'।
-
5:09 - 5:12'धन्यवाद, धन्यवाद, धन्यवाद, धन्यवाद।'
-
5:12 - 5:16शायद शुरू में हम निश्चित न हों,
क्योंकि मन बहुत कठोर होता है -
5:16 - 5:19और बहुत कृतघ्न।
-
5:19 - 5:23लेकिन बस यह कहना शुरू करें,
'धन्यवाद, धन्यवाद, धन्यवाद, धन्यवाद। -
5:23 - 5:27अस्तित्व को धन्यवाद।
ईश्वर को धन्यवाद। जीवन को धन्यवाद। -
5:27 - 5:32इन्द्रियों के लिए धन्यवाद।
विवेक के लिए धन्यवाद।' -
5:32 - 5:35और धीरे धीरे यह बढ़ेगा,
-
5:35 - 5:41कृपा व् आशीर्वाद की एक विशाल वर्षा में।
-
5:41 - 5:45मैं सबके लिए पूर्ण शांति और पूर्ण प्रेम
की अभिलाषा करता हूँ -
5:45 - 5:51उसकी बढ़ती पहचान में
जो कालातीत व् अनश्वर है, -
5:51 - 5:55हृदय में वह विशुद्ध चेतना।
-
5:55 - 5:58धन्यवाद, धन्यवाद. धन्यवाद।
-
5:58 - 6:01कॉपीराइट @. 2017 मूजी मीडिया लिमिटेड
सर्वाधिकार आरक्षित। -
6:01 - 6:05इस रिकॉर्ड का कोई भाग
मूजी मीडिया लि की प्रत्यक्ष -
6:05 - 6:08अनुमति बिना पुनःप्रस्तुत
नहीं किया जा सकता
- Title:
- जय भगवान
- Description:
-
मूजी बाबा के साथ सैर
इस सुन्दर सुबह की सैर में मूजी ईश्वर के स्वरुप के बारे में, उस परम प्रज्ञा के बारे में जो शब्दों व् रूप के परे है, औरअपने अहम् का त्याग कर के तथा अपन सत्य स्वरुप के प्रति जागृत हो कर कैसे हम भगवान् को जान सकते हैं, इनके बारे में बात करते हैं।हमें ईश्वर को कोई रूप देने की ज़रूरत नहीं है,
!
2:27.36
क्योंकि दरअसल ईश्वर अरूप है, रूप के परे। यह वह सर्वोच्च प्रज्ञा है
जो सबको घेरे है
और सबमें समायी है।
तो मुझे ईश्वर से बाहर कुछ नहीं दिखता।
जितना अधिक तुम अपने स्रोत को पहचानोगे,
उतना अधिक तुम हृदय में ईश्वर को पाओगे।
अस्तित्व को धन्यवाद।
ईश्वर को धन्यवाद। जीवन को धन्यवाद!"
~संगीत: गोविन्द, एश्ले व् इगोर द्वारा संगीत । मोंटे सहज शिविर २०१७ द्वारा रिकॉर्ड किया गया।
यह एवं कई और वीडियो मूजी.टीवी पर देखे जा सकते हैं
- Video Language:
- English
- Duration:
- 06:09
pd12 edited Hindi subtitles for Glory to God | ||
Sonam Aparna edited Hindi subtitles for Glory to God | ||
Sonam Aparna edited Hindi subtitles for Glory to God | ||
Sonam Aparna edited Hindi subtitles for Glory to God | ||
Sonam Aparna edited Hindi subtitles for Glory to God | ||
Sonam Aparna edited Hindi subtitles for Glory to God | ||
Sonam Aparna edited Hindi subtitles for Glory to God | ||
Sonam Aparna edited Hindi subtitles for Glory to God |