< Return to Video

दुनिया देखने के हमारे नज़रिये को एक फिल्म कैसे बदल देती है।

  • 0:01 - 0:03
    मैं कहानियाँ सुनाती हूँ,
  • 0:03 - 0:05
    लेकिन मुसीबतें भी खड़ी करती हूँ।
  • 0:05 - 0:06
    (हँसी)
  • 0:06 - 0:09
    और मुझे कठिन सवाल पूछने की आदत है।
  • 0:10 - 0:12
    यह तब शुरू हुआ जब मैं 10 साल की थी,
  • 0:12 - 0:16
    और मेरी माँ के पास अपने छ्ह बच्चों
    को पालने का वक्त नहीं था।
  • 0:17 - 0:21
    मेरे 14 साल की होने पर,
    उसने मेरे बढ़ते सवालों से तंग आकर
  • 0:21 - 0:26
    मुझे सुझाया कि मैं पाकिस्तान के
    स्थानीय अँग्रेजी अखबार में
  • 0:26 - 0:28
    लिखना शुरू करूँ,
  • 0:28 - 0:31
    उसने कहा कि मैं अपने सवाल
    पूरी दुनिया से पूछूँ।
  • 0:32 - 0:34
    (हँसी)
  • 0:34 - 0:38
    सत्रह साल की उम्र में मैं एक
    अंडरकवर खोजी पत्रकार थी।
  • 0:38 - 0:42
    मुझे नहीं लगता कि मेरे एडिटर को
    पता था कि मैं तब कितनी छोटी थी
  • 0:42 - 0:47
    जब मैंने एक कहानी भेजी थी
    जिसने कुछ बेहद रसूखदारों
  • 0:47 - 0:49
    को बदनाम कर दिया।
  • 0:50 - 0:53
    जिन लोगों के बारे में मैंने लिखा था,
    वे मुझे सबक सिखाना चाहते थे।
  • 0:54 - 0:58
    वे मुझे और मेरे परिवार को
    बदनाम करना चाहते थे।
  • 1:00 - 1:02
    उन्होने मेरा और मेरे घर वालों का नाम
    स्प्रे पेंट से लिख दिया
  • 1:02 - 1:06
    भद्दी गालियों के साथ
    हमारे घर के दरवाजे
  • 1:06 - 1:08
    और अड़ोस-पड़ोस में।
  • 1:08 - 1:12
    उनका ख्याल था कि
    कट्टर विचारों वाले मेरे पिता
  • 1:12 - 1:14
    मुझ पर रोक लगा देंगे।
  • 1:14 - 1:17
    इसके बजाय, मेरे पिता ने मेरे
    सामने खड़े होकर कहा,
  • 1:17 - 1:20
    "यदि तुम सच बोल रही हो
    तो मैं तुम्हारे साथ रहूँगा,
  • 1:20 - 1:21
    और पूरी दुनिया भी।"
  • 1:21 - 1:23
    और फिर उन्होनें --
  • 1:23 - 1:28
    (तालियाँ)
  • 1:28 - 1:32
    और फिर उन्होनें कुछ लोगों को इकट्ठा
    करके दीवारों पर सफेदी पोत दी।
  • 1:32 - 1:33
    (हँसी)
  • 1:33 - 1:36
    मैं हमेशा अपनी कहानियों से
    लोगों को झटका देना चाहते थी,
  • 1:36 - 1:40
    उन्हें एक गंभीर बहस के लिए
    उकसाना चाहती थी।
  • 1:41 - 1:45
    और मुझे लगा कि दृश्यों के ज़रिए
    यह करना ज़्यादा असरकार होगा।
  • 1:45 - 1:49
    तो 21 साल की उम्र में मैं एक
    डॉक्यूमेंट्री फ़िल्मकार बन गई,
  • 1:49 - 1:52
    अपने कैमेरे का रूख युद्ध क्षेत्र की
    पहली पंक्ति में हाशिये पर पड़े
  • 1:52 - 1:55
    समुदाय की ओर मोड़ते हुए
  • 1:55 - 1:58
    अंत में अपने घर पाकिस्तान लौटते हुए,
  • 1:58 - 2:01
    जहाँ मैं औरतों के खिलाफ हिंसा
    को दर्ज़ करना चाहती थी।
  • 2:03 - 2:06
    पाकिस्तान 20 करोड़ लोगों का घर है।
  • 2:06 - 2:08
    और साक्षरता कम होने के कारण,
  • 2:08 - 2:13
    फिल्म लोगों के मसलों को
    समझने का तरीका बदल सकती है।
  • 2:14 - 2:17
    एक प्रभावी कहानीकार
    हमारी भावनाओं को सुनाता है,
  • 2:19 - 2:21
    दया और सहानुभूति को उजागर करता है,
  • 2:21 - 2:25
    और हमारे नज़रिये को बदलने पर ज़ोर देता है।
  • 2:25 - 2:31
    मेरे देश में फिल्म, सिनेमा से
    आगे जाने की ताकत रखती थी
  • 2:31 - 2:33
    यह ज़िंदगियाँ बदल सकती थी।
  • 2:34 - 2:37
    जिन मुद्दों को मैं हमेशा उठाना चाहती थी --
  • 2:37 - 2:40
    समाज को हमेशा आईना दिखाना चाहती थी --
  • 2:40 - 2:43
    उन मुद्दों ने मेरे गुस्से के
    पारे को बढ़ा दिया।
  • 2:43 - 2:49
    और मेरे गुस्से का पारा मुझे 2014 के
    ऑनर किलिंग तक ले गया।
  • 2:49 - 2:52
    ऑनर किलिंग दुनिया के कई
    हिस्सों में होती है,
  • 2:52 - 2:57
    जहाँ मर्द उन औरतों को सज़ा देते हैं
    जो उनके बनाए नियमों को तोड़ती हैं;
  • 2:57 - 3:00
    जो औरतें अपनी मर्ज़ी से
    शादी के फैसले लेती हैं;
  • 3:00 - 3:03
    या जो औरतें तलाक चाहती हैं;
  • 3:03 - 3:07
    या जिन औरतों पर अवैध संबंध
    रखने का शक होता है।
  • 3:08 - 3:12
    बाकी सभी देशों में ऑनर किलिंग को
    हत्या माना जाता है।
  • 3:16 - 3:21
    मैं हमेशा से यह कहानी इसकी शिकार हुई
    किसी औरत के नज़रिये से कहना चाहती थी।
  • 3:22 - 3:25
    लेकिन वे औरतें अपनी कहानी सुनाने के लिए
    ज़िंदा नहीं बचती थी
  • 3:25 - 3:29
    बल्कि किसी गुमनाम कब्र में
    दफन हो जाती थीं।
  • 3:29 - 3:31
    तो एक सुबह, जब मैं अख़बार पढ़ रही थी,
  • 3:31 - 3:35
    और मैंने पढ़ा कि एक जवान औरत
    उस हमले में चमत्कारपूर्ण ढंग से बच गई थी
  • 3:35 - 3:39
    जिसमें उसके बाप और चाचा ने
    उसके चेहरे पर गोली मारी थी
  • 3:39 - 3:43
    क्योंकि उसने अपनी मर्ज़ी से एक
    आदमी से शादी करने का फैसला किया था।
  • 3:43 - 3:46
    मैं समझ गई कि मुझे अपनी
    कहानीकार मिल गई।
  • 3:47 - 3:51
    तय था कि सबा अपने पिता और चाचा
    को जेल भिजवा देगी,
  • 3:51 - 3:53
    लेकिन अस्पताल छोडने के
    कुछ दिनों के दौरान
  • 3:53 - 3:56
    उस पर उन्हें माफ करने का दवाब डाला गया।
  • 3:56 - 3:58
    जानते हैं, कानून में बच निकलने का
    एक रास्ता था
  • 3:58 - 4:02
    जो यह इजाज़त देता था कि पीड़ित
    अपने दोषियों को माफ कर दे
  • 4:02 - 4:05
    इससे वे जेल जाने से बच जाते थे।
  • 4:06 - 4:09
    और उसे कहा गया कि उसका
    बहिष्कार कर दिया जाएगा
  • 4:09 - 4:11
    और उसके घर तथा ससुराल वालों को
  • 4:11 - 4:14
    समाज से बाहर कर दिया जाएगा,
  • 4:14 - 4:18
    क्योंकि कई लोग यह महसूस करते थे
    कि उसके पिता को हक था,
  • 4:18 - 4:19
    उसे सजा देने का।
  • 4:21 - 4:22
    वह लड़ती रही --
  • 4:23 - 4:25
    महीनों तक।
  • 4:25 - 4:27
    लेकिन अदालत के फैसले वाले दिन,
  • 4:27 - 4:30
    उसने उनके नाम माफ़ीनामा लिख दिया।
  • 4:32 - 4:34
    बतौर फ़िल्मकार, हमें नुकसान हुआ,
  • 4:34 - 4:37
    क्योंकि हम यह वाली फिल्म
    बनाने नहीं निकले थे।
  • 4:38 - 4:44
    बाद में लगा कि अगर वह अपना मुकदमा
    लड़ती और जीत जाती,
  • 4:44 - 4:46
    तो वह एक मिसाल बनती।
  • 4:46 - 4:50
    जब इतनी मजबूत औरत को चुप करवा दिया गया,
  • 4:50 - 4:52
    तो दूसरी औरतों के लिए क्या उम्मीद थी?
  • 4:54 - 4:56
    और हमने सोचना शुरू किया कि कैसे हम अपनी
  • 4:56 - 4:59
    फिल्म से ऑनर किलिंग के बारे में
    लोगों का नज़रिया बदलें,
  • 5:00 - 5:02
    कानून की ख़ामी को टक्कर दें।
  • 5:03 - 5:07
    और जब हमारी फिल्म एकेडेमी अवार्ड
    के लिए चुनी गई,
  • 5:07 - 5:10
    और ऑनर किलिंग खबरों की हैडलाइन बनी,
  • 5:10 - 5:14
    और प्रधानमंत्री ने,
    अपनी बधाइयाँ भेजते हुए,
  • 5:14 - 5:18
    अपने ऑफिस में इस फिल्म के
    पहले प्रदर्शन की मेजबानी करने को कहा।
  • 5:18 - 5:20
    बिलकुल, इस मौके को हमने लपक लिया,
  • 5:20 - 5:23
    क्योंकि इस देश के इतिहास में किसी
    प्रधानमंत्री ने कभी ऐसा नहीं किया था।
  • 5:24 - 5:25
    और प्रदर्शन के वक्त,
  • 5:25 - 5:29
    जिसे राष्ट्रीय टेलीविज़न पर
    लाईव दिखाया था,
  • 5:29 - 5:33
    उन्होनें ऐसा कुछ कहा
    जो देश भर में गूँज उठा:
  • 5:33 - 5:36
    उन्होनें कहा, "इज्ज़त के लिए की गई
    हत्या में कोई इज्ज़त नहीं है"
  • 5:36 - 5:43
    (तालियाँ)
  • 5:44 - 5:47
    लॉस एंजिल्स में एकेडेमी अवार्ड के वक्त
  • 5:47 - 5:49
    कई विद्वानों नें हमें ख़ारिज़ कर दिया था,
  • 5:49 - 5:53
    लेकिन हमें महसूस हुआ कि देश के
    विधान को बनाए रखने के लिए,
  • 5:53 - 5:55
    हमें यह पुरस्कार चाहिए।
  • 5:56 - 5:58
    और फिर, मेरा नाम पुकारा गया,
  • 5:58 - 6:03
    और मैं मंच पर चप्पल पहने हुए ही चढ़ी,
    क्योंकि मुझे इसकी उम्मीद नहीं थी।
  • 6:03 - 6:05
    (हँसी)
  • 6:05 - 6:08
    और मैंने ऑस्कर स्टेचू कबूल किया,
    मुझे देख रहे करोड़ों लोगो को यह बताते हुए,
  • 6:09 - 6:12
    कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने अपने
    कानून को बदलने का संकल्प लिया है,
  • 6:12 - 6:16
    क्योंकि, प्रधानमंत्री को जवाबदेह बनाए
    रखने का, बिल्कुल यह एक तरीका है।
  • 6:16 - 6:18
    (हँसी)
  • 6:18 - 6:19
    और --
  • 6:19 - 6:23
    (तालियाँ)
  • 6:24 - 6:28
    वहाँ मेरे देश में, हमारी ऑस्कर जीत की खबर
    सुर्खियों में आगे थी,
  • 6:28 - 6:31
    और कई लोग इस लड़ाई से जुड़े,
  • 6:31 - 6:34
    यह माँग करते हुए कि कानून की
    यह ख़ामी दूर की जाए।
  • 6:34 - 6:39
    और फिर अक्टूबर 2016 में,
    कई महीनों की कवायद के बाद,
  • 6:39 - 6:41
    यह ख़ामी दूर कर दी गई।
  • 6:41 - 6:45
    (तालियाँ)
  • 6:45 - 6:49
    और अब जो मर्द इज्ज़त के नाम पर
    औरतों को कत्ल करते हैं
  • 6:49 - 6:51
    उन्हें उम्रक़ैद दी जाती है।
  • 6:52 - 6:57
    (तालियाँ)
  • 6:57 - 6:59
    फिर भी, अगले ही दिन,
  • 6:59 - 7:02
    एक औरत इज्ज़त के नाम पर कत्ल कर दी गई,
  • 7:02 - 7:04
    और फिर एक और, फिर एक और।
  • 7:06 - 7:08
    हमनें विधानसभा को हिला दिया,
  • 7:09 - 7:10
    लेकिन यह काफी नहीं था।
  • 7:11 - 7:15
    हमें अपनी फिल्म और उसके संदेश को
  • 7:15 - 7:19
    छोटे गाँव, कस्बों के बीच और
    देश भर में ले जाने की ज़रूरत थी।
  • 7:20 - 7:26
    देखिए, मेरे लिए, सिनेमा एक सकारात्मक
    माध्यम है
  • 7:26 - 7:30
    जो समाज को एक सही दिशा में ढालने
    और बदलने की भूमिका अदा करता है।
  • 7:31 - 7:35
    लेकिन हम इन जगहों पर कैसे पहुँचते?
  • 7:36 - 7:38
    हम उन छोटे गाँव-कस्बों तक कैसे जाते?
  • 7:40 - 7:43
    हमनें मोबाईल सिनेमा बनाया,
  • 7:43 - 7:48
    एक ट्रक, जो देश के कोने-कोने में
    चला जाता,
  • 7:48 - 7:51
    जो छोटे गाँव-कस्बों में रुक जाता।
  • 7:51 - 7:56
    हमनें इसमें एक बड़ी स्क्रीन लगायी,
    जो रात के आकाश में रोशन होती,
  • 7:56 - 7:58
    और हम इसे कहते थे, "देखो मगर प्यार से।"
  • 7:59 - 8:02
    यह उन लोगों को
    शाम को एक साथ बैठ कर
  • 8:02 - 8:04
    फिल्म देखने का मौका देता।
  • 8:04 - 8:08
    हमें पता था, हम मर्दों और बच्चों को
    मोबाईल सिनेमा से लुभा सकते हैं।
  • 8:08 - 8:10
    वे आते और फिल्म देखते।
  • 8:10 - 8:12
    लेकिन औरतों का क्या?
  • 8:12 - 8:15
    इन छोटे अलग-थलग ग्रामीण समुदायों में
  • 8:15 - 8:18
    औरतें को हम बाहर कैसे लाते?
  • 8:18 - 8:21
    इसके लिए हमें संस्कृति के निर्धारित
    नियमों के मुताबिक काम करना पड़ा,
  • 8:21 - 8:24
    और तब हमनें सिनेमा के भीतर एक
    और सिनेमा बनाया,
  • 8:24 - 8:28
    हमनें इसमें स्क्रीन और सीटें लगायीं
    जहा औरतें भीतर जाकर फिल्म देख सकती थीं,
  • 8:28 - 8:30
    बिना किसी डर
  • 8:30 - 8:32
    या शर्म
  • 8:32 - 8:33
    या परेशानी के।
  • 8:34 - 8:37
    हम उनका परिचय फिल्मों से करवाने लगे
  • 8:37 - 8:42
    जिनहोने दुनिया के नज़रिये के प्रति उनके
    दिमागों को खोला,
  • 8:43 - 8:45
    बच्चों में गहरी सोच बनाने को
    बढ़ावा देते हुए
  • 8:45 - 8:47
    ताकि वे सवाल पूछ सकें।
  • 8:48 - 8:51
    और हम अपनी सोच के दायरे को
    ऑनर किलिंग से परे ले गए,
  • 8:51 - 8:54
    आर्थिक असमानता के बारे में बात करके,
  • 8:54 - 8:56
    परिवेश के बारे में,
  • 8:56 - 9:00
    जातीय सम्बन्धों, धार्मिक सहिष्णुता और
    दबाव के बारे में बात करके।
  • 9:00 - 9:02
    और अंदर, उन औरतों के लिए
  • 9:02 - 9:05
    हमनें वे फिल्में दिखाईं जिनमें वे
    शिकार नहीं बल्कि हीरो थीं,
  • 9:05 - 9:10
    और हमनें उन्हें बताया कि वे कानून और पुलिस
    का कैसे इस्तेमाल कर सकती हैं,
  • 9:10 - 9:12
    उन्हें उनके हक के बारे में सिखाया,
  • 9:12 - 9:14
    उन्हें बताया कि घरेलू हिंसा का शिकार
  • 9:14 - 9:17
    होने पर वे कहाँ शरण ले सकती हैं,
  • 9:17 - 9:19
    वे कहाँ जाकर मदद माँग सकती हैं।
  • 9:21 - 9:24
    हमें हैरानी हुई कि उनमें से कई
    जगहों पर हमारा स्वागत हुआ,
  • 9:24 - 9:26
    जहां हम गए थे।
  • 9:28 - 9:33
    कई कस्बों ने टीवी और सोशल मीडिया
    कभी देखा ही नहीं था,
  • 9:33 - 9:35
    और वे अपने बच्चों को सिखाने
    के इच्छुक थे।
  • 9:35 - 9:38
    लेकिन जो आईडिया हम अपने साथ
  • 9:38 - 9:40
    लेकर जा रहे थे,
    उसके कुछ नुकसान भी थे।
  • 9:41 - 9:46
    हमारी मोबाईल सिनेमा टीम के दो
    सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया,
  • 9:46 - 9:47
    क्योंकि गाँवों से धमकी मिली थी।
  • 9:48 - 9:51
    और ऐसे ही एक गाँव में,
    जहाँ हम फिल्म दिखा रहे थे,
  • 9:51 - 9:52
    उन्होने वह बंद करवा दी
  • 9:52 - 9:55
    और कहा कि वे नहीं चाहते कि
    औरतें अपने हक के बारे में जानें।
  • 9:55 - 9:59
    लेकिन इसके उलट, एक दूसरे गाँव में
    जब फिल्म को रोक दिया गया,
  • 9:59 - 10:03
    सादा कपड़ों में बैठे एक पुलिसवाले ने
    उठ कर दुबारा शुरू करने का आदेश दिया,
  • 10:03 - 10:05
    और हमारी टीम की हिफाज़त करते हुए,
  • 10:05 - 10:09
    उसने सबको बताया कि यह उसका फर्ज़ है
    कि नौजवानों को
  • 10:09 - 10:13
    दूसरे मुल्कों के नजरियों से
    वाकिफ कराया जाए।
  • 10:13 - 10:15
    वह एक साधारण हीरो था।
  • 10:15 - 10:18
    लेकिन अपनी इस यात्रा में
    हमें ऐसे कई हीरो मिले।
  • 10:19 - 10:23
    एक दूसरे कस्बे में, जहाँ मर्दों ने कहा कि
    केवल वे ही फिल्म देख सकेंगे
  • 10:23 - 10:24
    और औरतों को घर में रहना पड़ेगा,
  • 10:24 - 10:26
    वहाँ एक बुजुर्ग आगे आए,
  • 10:26 - 10:30
    उन्होने लोगों को इकट्ठा किया,
    उनसे बातचीत की,
  • 10:30 - 10:34
    और फिर औरत-मर्दों ने
    एक साथ बैठ कर फिल्म देखी।
  • 10:36 - 10:38
    हम जो कर रहे हैं, उसे दर्ज़ कर रहे हैं।
  • 10:39 - 10:40
    हम लोगों से बात करते हैं।
  • 10:40 - 10:42
    तालमेल बैठाते हैं।
  • 10:42 - 10:44
    फिल्मों की लाईनअप बदलते हैं।
  • 10:45 - 10:47
    जब हम मर्दों को वे फिल्में दिखाते हैं
  • 10:47 - 10:51
    जिनमें हिंसा के दोषियों को
    जेल में दिखाया जाता है,
  • 10:51 - 10:54
    तो हम यह सच समझाना चाहते हैं
    कि यदि मर्द हिंसा करेंगे,
  • 10:54 - 10:55
    तो उसके नतीजे भी भुगतेंगे।
  • 10:56 - 11:02
    लेकिन हम वे फिल्में भी दिखाते हैं जिनमें
    मर्द औरतों को सहयोग कर रहे होते हैं,
  • 11:02 - 11:04
    क्योंकि हम चाहते हैं कि वे भी
    यही भूमिका निभाएँ।
  • 11:07 - 11:10
    औरतों को जब हम वे फिल्में दिखाते हैं,
    जिनमें वे घर की मुखिया होती हैं,
  • 11:10 - 11:14
    या कोई वकील या डॉक्टर या किसी
    अग्रणी स्थिति में होती हैं,
  • 11:14 - 11:17
    हम उनसे बात करके इन भूमिकाओं
    में आने के लिए बढ़ावा देते हैं।
  • 11:18 - 11:23
    हम उन तरीकों को बदल रहे हैं
    जिनसे लोग इन गाँवों में दो-चार होते हैं,
  • 11:23 - 11:27
    और हम अपनी ये जानकारी
    दूसरी जगहों पर ले जा रहे हैं।
  • 11:27 - 11:31
    अभी, एक ग्रुप ने हमसे संपर्क किया और
    वे चाहते हैं कि हम अपने मोबाईल सिनेमा को
  • 11:31 - 11:33
    बांग्लादेश और सीरीया ले जाएँ,
  • 11:33 - 11:35
    और हम अपनी जानकारी उनसे साझा कर रहे हैं।
  • 11:36 - 11:38
    हम महसूस करते हैं कि यह बहुत ज़रूरी है,
  • 11:38 - 11:43
    कि जो हम कर रहे हैं उसे दुनिया भर
    में फैलाएँ।
  • 11:43 - 11:46
    पाकिस्तान के छोटे गाँव-कस्बों में,
  • 11:46 - 11:49
    औरतों के प्रति मर्द अपना रूख बदल रहे हैं,
  • 11:49 - 11:52
    बच्चे दुनिया को देखने का
    अपना नज़रिया बदल रहे हैं,
  • 11:53 - 11:55
    एक बार में एक गाँव, सिनेमा के जरिए।
  • 11:55 - 11:56
    शुक्रिया।
  • 11:56 - 12:03
    (तालियाँ)
Title:
दुनिया देखने के हमारे नज़रिये को एक फिल्म कैसे बदल देती है।
Speaker:
शमीन ओबैद-चिनोय
Description:

हम अपने और अपनी संस्कृति के बारे में जो सोचते हैं, उसे बदलने की ताकत एक फिल्म में होती है। वृत्तचित्रकार और टेड की सदस्य शमीन ओबैद-चिनोय, पाकिस्तान में ऑनर किलिंग पर अपने कैमरे का रूख करते हुए, इसका इस्तेमाल औरतों के खिलाफ हिंसा से लड़ने में करती हैं। इस विचारोत्तेजक बातचीत में उन्होने बताया कि कैसे वे अपनी ऑस्कर विजेता फिल्म को, मोबाईल सिनेमा के जरिये पाकिस्तान के छोटे गाँव-कस्बों में ले गई - और एक बार में एक फिल्म शो से कैसे औरतों, मर्दों और समाज के बीच संबंध को परिवर्तित किया।

more » « less
Video Language:
English
Team:
closed TED
Project:
TEDTalks
Duration:
12:19

Hindi subtitles

Revisions