Return to Video

यह मन से बचने का तुम्हारा एस्केप बटन है

  • 0:22 - 0:27
    एक संघ मिलन
    विश्व हमारा परिवार है
  • 0:27 - 0:30
    २४ - २८ मार्च २०२१
    (उपशीर्षक सहित)
  • 0:34 - 0:39
    यह मन से बचने का तुम्हारा एस्केप बटन है
  • 0:39 - 0:42
    २६ मार्च २०२१ - सत्संग के अंश
  • 0:44 - 0:47
    [मूजी पढ़ते हैं]
    'प्रिय मूजीबाबा,
  • 0:47 - 0:53
    ऐसा प्रेम और कृतज्ञता
    मेरे हृदय से आप पर बरसती है।
  • 0:53 - 0:57
    आप सभी जीवों के लिए जो कुछ भी करते हैं,
    उसके लिए
  • 0:57 - 1:00
    और आपके असीम प्रेम, बुद्धिमत्ता, धैर्य,
  • 1:00 - 1:04
    दयालुता और करुणा के लिए,
  • 1:04 - 1:06
    धन्यवाद धन्यवाद धन्यवाद।'
  • 1:06 - 1:08
    निक ने यह लिखा है।
  • 1:08 - 1:15
    'बाबाजी, कृपया मेरे अहंकार और
    तन-मन से तादात्म्य को ले लो,
  • 1:15 - 1:18
    आपके सिवा कुछ ना रहे।
    निक'
  • 1:18 - 1:20
    [मूजी] निक, हाँ, हाँ। निक।
  • 1:20 - 1:24
    बहुत अच्छा।
    तुम्हे देखकर अच्छा लगा, निक।
  • 1:30 - 1:32
    [प्रश्नकर्ता: निक] नमस्ते गुरुजी।
  • 1:38 - 1:42
    [मूजी] हाँ। बहुत अच्छा।
  • 1:42 - 1:50
    [प्र.] मेरे स्रोत।
    [मूजी] मेरे प्रभु।
  • 1:50 - 1:56
    [मूजी] 'बाबाजी, कृपया मेरे अहंकार और
    तन-मन से तादात्म्य को ले लो,
  • 1:56 - 1:58
    आपके सिवा कुछ ना रहे।
  • 1:58 - 2:03
    यहाँ तक कि जब मैं यह पत्र लिखता हूँ,
    मेरा एक अंश आप से भाग रहा है।'
  • 2:03 - 2:06
    मैं उसे अच्छी तरह से जानता हूँ।
  • 2:06 - 2:09
    हम सभी जानते हैं, है ना?
    हम सभी इस ऊर्जा को जानते हैं।
  • 2:09 - 2:12
    कुछ तो तुम्हारे हृदय को छू गया।
  • 2:12 - 2:15
    यह तुम्हे बुला रहा है
    और तुम इस आवाज़ को जानते हो,
  • 2:15 - 2:18
    भले ही तुम्हे लगे कि
    तुमने इसे पहले कभी नहीं सुना।
  • 2:18 - 2:20
    जब तुम अपने भीतर इस आवाज़ को सुनते हो,
  • 2:20 - 2:23
    आप उसे पहचान जाते हो,
    तुम समझ सकते हो।
  • 2:23 - 2:26
    क्योंकि वह अलग नहीं है,
    वह '(तुम्हारे) अलावा' नहीं है।
  • 2:26 - 2:32
    तुम्हारे अपने अंतरतम की आवाज़
    तुम्हे बुलाती है।
  • 2:32 - 2:43
    हाँ। और फिर भी कुछ है,
    जो भागना चाहता है।
  • 2:43 - 2:45
    'तो, यहाँ तक कि जब मैं यह पत्र लिखता हूँ,
  • 2:45 - 2:48
    मेरा एक अंश आप से भाग रहा है।'
  • 2:48 - 2:54
    और तुम यहाँ कहते हो, 'कृपया मुझे पकड़ लें,
    क्योंकि मैं एक अच्छा धावक हूँ।'
  • 2:54 - 2:56
    [मूजी हँसते हैं]
  • 2:56 - 2:58
    [मूजी] हाँ, वह एक अच्छा धावक है।
  • 2:58 - 3:03
    तुम्हे स्वयं और तुम्हारे मन के बीच का
    भेद पता होना चाहिए।
  • 3:03 - 3:10
    वह व्यक्ति, जो मन के अंदर रहता है,
    वह कल्पित स्व,
  • 3:10 - 3:14
    वह श्री रमण का कथन,
    जो मैंने अभी कहा है,
  • 3:14 - 3:17
    'वह 'मैं' उस 'मैं' को हटा देता है,
  • 3:17 - 3:22
    और वही रहता है',
    सहज 'अपने होने का भाव'।
  • 3:22 - 3:24
    पहले उस जगह पर आओ,
    तुम समझ सकते हो।
  • 3:24 - 3:26
    तो वह कहता है, 'कृपया मुझे पकड़ लें,
  • 3:26 - 3:30
    क्योंकि मैं एक अच्छा धावक हूँ,
    और मैं बचना नहीं चाहता'।
  • 3:30 - 3:34
    तो, तीन प्रकार के धावक होते हैं।
  • 3:34 - 3:38
    एक होता है तामसिक धावक।
  • 3:38 - 3:46
    वह ज़ोर से दौड़ता है।
    वह बहुत धीमा है, लेकिन फ़िर भी दौड़ता है।
  • 3:46 - 3:49
    वह यहाँ के अलावा
    कहीं भी भागना चाहता है।
  • 3:49 - 3:54
    अगला है राजसिक धावक।
  • 3:54 - 3:58
    राजसिक भाग रहा है।
    उसके पास गति भी है, दौड़ रहा है।
  • 3:58 - 4:03
    अगला है सात्त्विक धावक।
  • 4:03 - 4:05
    तुम यही कह रहे हो।
  • 4:05 - 4:09
    यह वह धावक है
    जो वास्तव में ठहरना चाहता है।
  • 4:09 - 4:11
    वह भाग रहा है,
    लेकिन वह पकड़ा जाना चाहता है।
  • 4:11 - 4:16
    केवल सात्विक धावक ही पकड़ा जाना चाहता है!
  • 4:16 - 4:18
    [मूजी हँसते हैं]
  • 4:18 - 4:21
    लेकिन कुछ और है, जो धावक नहीं है,
  • 4:21 - 4:25
    जो सात्त्विक धावक को दौड़ते हुए देखता है,
    क्या तुम समझ रहे हो?
  • 4:25 - 4:29
    अब, मैं सोचता हूँ कि
    क्या तुम इसमें मेरे साथ शामिल हो सकते हो।
  • 4:29 - 4:35
    चाहे वह धावक राजसिक धावक हो,
  • 4:35 - 4:39
    जिसमें बहुत ऊर्जा है,
    वह भागने के लिए फ़टा जा रहा है,
  • 4:39 - 4:42
    या चाहे वह धावक तामसिक धावक हो,
  • 4:42 - 4:48
    जो बहुत आलसी है, [धीरे दौड़ना और गुर्राना]
    मुड़कर भाग रहा है।
  • 4:48 - 4:50
    तुम वह नहीं हो।
  • 4:50 - 4:52
    लेकिन कोई है जो भाग रहा है
  • 4:52 - 4:55
    और वह देख रहा है, 'कृपया मुझे पकड़ लो,
    मुझे पकड़ लो।
  • 4:55 - 4:59
    मेरे पैर दौड़ रहे हैं,
    लेकिन मेरा हृदय ठहरना चाहता है।'
  • 4:59 - 5:04
    [प्र.] हाँ। हाँ। हाँ।
    [मूजी] तो यह ठहरना चाहता है,
  • 5:04 - 5:09
    लेकिन वह अपनी बेचैनी को
    नियंत्रित नहीं कर पा रहा।
  • 5:09 - 5:15
    जब भी कृपा की पुकार आती है,
    एक अनैच्छिक क्रिया के जैसे,
  • 5:15 - 5:18
    वह खुद को भागता हुआ पाता है।
  • 5:18 - 5:21
    लेकिन कोई और है।
  • 5:21 - 5:24
    वह दौड़ में बिल्कुल भी शामिल नहीं है।
  • 5:24 - 5:27
    वास्तव में,
    वह कहीं जा ही नहीं सकता।
  • 5:27 - 5:30
    वही तुम्हारा असली 'स्व' है।
  • 5:30 - 5:34
    और हम इसे कैसे जानते हैं?
  • 5:34 - 5:39
    वह अन्य तीनों का साक्षी है।
  • 5:39 - 5:43
    वह उनकी ऊर्जा से बहुत अलग है।
    वह उनके द्वारा पकड़ा नहीं गया है।
  • 5:43 - 5:50
    इन सबका साक्षी,
    वह किसी दौड़ में नहीं है।
  • 5:50 - 5:53
    वह किसी भी दौड़ में शामिल नहीं है।
  • 5:53 - 5:56
    वह (दौड़) शुरू होने से पहले से ही वहाँ है।
  • 5:56 - 6:00
    दौड़ के दौरान, दौड़ ख़त्म होने के बाद,
    वो अब भी नहीं बदला है,
  • 6:00 - 6:03
    हमेशा एक जैसा है।
  • 6:10 - 6:16
    तुम इसे जानते हो, तुम समझे।
  • 6:16 - 6:19
    'कृपया मुझे पकड़ लें,
    क्योंकि मैं एक अच्छा धावक हूँ
  • 6:19 - 6:22
    और मैं बचना नहीं चाहता।
  • 6:22 - 6:26
    बल्कि, मेरी इच्छा है कि आप मुझे
    आपकी तेज़ाबी कृपा में पिघला दें,
  • 6:26 - 6:30
    और केवल आप ही बचें।'
  • 6:30 - 6:36
    कृपा तो तेज़ाबी है
    केवल उसके लिए जो भागना चाहता है ।
  • 6:36 - 6:42
    लेकिन एक है
    जो भागता हुआ बाहों में आता है।
  • 6:42 - 6:48
    उनके लिए वह कृपा तेज़ाबी नहीं है।
  • 6:48 - 6:53
    यह एल्कलाइन भी नहीं है।
  • 6:53 - 6:56
    वह कृपा और 'स्व' एक ही है।
  • 6:56 - 7:01
    तो, हमें उनमें से
    प्रत्येक भूमिका निभानी होती है।
  • 7:01 - 7:04
    हम कई पड़ावों से गुजरे हैं,
  • 7:04 - 7:07
    तामसिक, विरोध करने वाला,
  • 7:07 - 7:13
    बहुत उत्साहित, रचनात्मक,
  • 7:13 - 7:17
    और वह जिसे सत्य के प्रति आकर्षण है,
  • 7:17 - 7:20
    लेकिन साथ ही,
    भाग जाता है जब भी ...
  • 7:20 - 7:22
    तुम एक संदेश भेजते हो,
    'सत्य, कृपया आओ'।
  • 7:22 - 7:26
    लेकिन जैसे ही सत्य द्वार पर आ रहा है,
    तुम भाग कर बगीचे में चले जाते हो।
  • 7:26 - 7:28
    तो, यह सात्विक है।
  • 7:28 - 7:32
    लेकिन वह ऐसा करना नहीं चाहता,
    वह बस खुद को भागता हुआ पाता है।
  • 7:32 - 7:38
    तो, इस स्तर पर मैं कह सकता हूँ,
    इनमें से कोई भी, तुम नहीं हो।
  • 7:38 - 7:42
    वे सब तुम्हारे मुखौटे हैं।
    उनमें से कोई भी, तुम नहीं हो।
  • 7:42 - 7:45
    तुम उन सभी के साक्षी हो।
  • 7:45 - 7:48
    क्या तुम अब भी मेरे साथ हो
    जब मैं ये बातें बोलता हूँ?
  • 7:48 - 7:51
    [प्र.] हाँ।
    [मूजी] हाँ। खुला मंच है।
  • 7:51 - 7:54
    [मूजी] क्या तुम अब भी मेरे साथ हो,
    जब हम बात करते हैं?
  • 7:54 - 7:57
    कुछ है जो देख रहा है,
    लेकिन साथ ही,
  • 7:57 - 8:02
    पुरानी पहचान और व्यक्तित्व के कुछ अवशेष
  • 8:02 - 8:06
    अभी भी शेष है,
    और हम उसकी गंध के परिचित हैं।
  • 8:06 - 8:10
    अगर वह वहाँ है तो तुम कहते हो,
    'ओह, हाँ, कृपया मुझे पकड़ लो',
  • 8:10 - 8:12
    और इस प्रकार की बात।
  • 8:12 - 8:18
    लेकिन यदि तुम इनमें से किसी भी गुण के साथ
    अपना तादात्म्य न बनाओ,
  • 8:18 - 8:22
    यहाँ तक कि
    तुरीय से भी तादात्म्य न बनाओ,
  • 8:22 - 8:27
    मतलब,
    चेतना के तीन ऊर्जावान गुणों से भी परे,
  • 8:27 - 8:30
    किसी भी चीज़ से
    तादात्म्य न बनाओ,
  • 8:30 - 8:32
    तो तुम देखते हो कि
    वे सभी देखे जा सकतें हैं।
  • 8:32 - 8:37
    सभी पड़ावों को देखा जा सकता है।
  • 8:37 - 8:41
    अब, किसी भी पड़ाव में शामिल न हो।
  • 8:41 - 8:43
    तुम उनको देखते हो।
  • 8:43 - 8:49
    वहाँ,
    जहाँ से उनका देखा जाना उत्पन्न होता है
  • 8:49 - 8:53
    तुम इसे आत्मबोध कह सकते हो।
  • 8:53 - 8:56
    वह, जो देखने को भी देखता है
  • 8:56 - 9:02
    मैं अब थोड़ा सा धीरे जाने वाला हूँ।
  • 9:02 - 9:07
    क्या कोई इससे इन्कार कर सकता है?
  • 9:07 - 9:11
    कि यहाँ भी,
    सूक्ष्मतम भी ...
  • 9:11 - 9:15
    तुम कह रहे हो, 'कृपया मुझे पकड़ लें',
    यह केवल आदतन है।
  • 9:15 - 9:21
    क्योंकि अगर मैं इसे पकड़ लेता हूँ,
    तो क्या मुझे उसे पकड़े रखना है?
  • 9:21 - 9:24
    नहीं, नहीं।
    बेहतर यह है कि तुम सब कुछ छोड़ दो।
  • 9:24 - 9:29
    और जब तुम सब कुछ छोड़ देते हो,
    खुद को उनसे जोड़े बिना,
  • 9:29 - 9:32
    तुम पाते हो कि
    तुम पूरी तरह से यहाँ हो।
  • 9:32 - 9:35
    मतलब, किसी भी पड़ाव को पकड़े मत रहो
  • 9:35 - 9:39
    चाहे उस समय वह कितना भी आकर्षक
  • 9:39 - 9:44
    कितना भी अप्रतिरोध्य लगता हो।
  • 9:44 - 9:51
    तुम समझे, सत्संग में भी,
    हमारे पास एक एस्केप बटन होना चाहिए।
  • 9:51 - 9:53
    है कि नहीं?
  • 9:53 - 9:59
    क्योंकि ...
    मैं बहुत ज़्यादा कंप्यूटर तो नहीं जानता,
  • 9:59 - 10:04
    कभी-कभी मैंने खुद को ढूंढते हुए पाया
    और फिर मैं किसी पेज पर फँस गया,
  • 10:04 - 10:07
    और मैंने कहा,
    समझ में नहीं आ रहा कि कैसे निकलूं।
  • 10:07 - 10:10
    मैं बटन दबा रहा हूँ,
    लेकिन कुछ भी नहीं हो रहा।
  • 10:10 - 10:14
    कुछ भी नहीं हो रहा। मैंने कहा,
    ओह, अब मुझे अपनी बात याद आ गई।
  • 10:14 - 10:17
    स्क्रीन पर कुछ आया।
  • 10:17 - 10:21
    और फ़िर क्रिश अंदर आया
    और मैंने कहा,
  • 10:21 - 10:25
    मैं इससे बाहर नहीं निकल सकता।
    मैं कैसे निकलूँ?
  • 10:25 - 10:28
    मैं कंप्यूटर को बाहर फेंकना चाहता था।
    बाहर कैसे निकलते हैं?
  • 10:28 - 10:33
    उसने मुझे एक बटन दिखाया
    जिस पर लिखा था 'Esc', बाहर निकलने का बटन।
  • 10:33 - 10:36
    तो मैंने यह बटन दबाया और, 'पूम!',
    मैं वापस आ गया।
  • 10:36 - 10:41
    तो,
    मन से बचने का तुम्हारा एस्केप बटन कहाँ है?
  • 10:41 - 10:43
    क्या मैं ऐसे देख सकता हूँ?
  • 10:43 - 10:45
    तुम्हारा एस्केप बटन कहाँ है?
  • 10:45 - 10:49
    क्योंकि 'ट्रैप बटन' यह है कि
    जो कुछ भी भीतर उठता है,
  • 10:49 - 10:53
    कोई रिफ्लेक्स उसे पकड़ लेता है
    और उसके साथ भागने लगता है।
  • 10:53 - 10:57
    और फिर तुम कहते हो,
    'कृपया इसे रोकने में मेरी मदद कर सकते हैं?
  • 10:57 - 11:00
    मैं बस खोया हुआ
    और भ्रमित महसूस कर रहा हूँ।'
  • 11:00 - 11:02
    मतलब, कुछ है जो भाग रहा है।
  • 11:02 - 11:07
    कुछ रिफ्लेक्स भाग गया,
    उसके साथ एक पहचान आई।
  • 11:07 - 11:10
    तुम्हे फ़िर से किसी आकार में
    खींच लिया गया।
  • 11:10 - 11:13
    फिर तुम्हे कोशिश करनी होगी और
    आकार को निराकार करना होगा या ऐसा कुछ।
  • 11:13 - 11:16
    क्या करें? इससे कैसे बचें?
  • 11:16 - 11:22
    तो मैंने कहा, याद रखो, जब ऐसा होता है,
    तो सुलझाने के लिए कुछ भी नहीं है।
  • 11:22 - 11:24
    कुछ भी सुलझाना नहीं है।
  • 11:24 - 11:28
    वह सत्य नहीं है!
  • 11:28 - 11:33
    साक्षी बनकर रहो,
    निराकार साक्षी।
  • 11:33 - 11:37
    अगर मैं कहूँ,
    और मैं यह अभी कह रहा हूँ,
  • 11:37 - 11:39
    क्या तुम इसकी ताक़त को महसूस कर सकते हो?
  • 11:39 - 11:43
    यह कुछ तत्काल है।
    यह तुम्हारा एस्केप बटन है।
  • 11:43 - 11:45
    फ़िर, जब तुम बच निकलते हो
    तो तुम्हें पता चलता है कि
  • 11:45 - 11:52
    यह, जो तुम यहाँ हो,
    वह कभी फँसा ही नहीं था।
  • 11:52 - 11:54
    तुम समझे?
  • 11:54 - 11:59
    [मूजी] जब तुम उस अवस्था में होते हो,
    ऐसा लगता है कि यही सब कुछ है। सब कुछ!
  • 11:59 - 12:02
    [मूजी] लेकिन जब तुम इससे बाहर आते हो,
  • 12:02 - 12:04
    या दूसरी अवस्था में चले जाते हो,
  • 12:04 - 12:08
    तुम पीछे मुड़कर देख सकते हो
    और सोच सकते हो, 'वाह, वह क्या था?'
  • 12:08 - 12:12
    मानो कुछ पल के लिए
    तुम सम्मोहित हो गए थे,
  • 12:12 - 12:15
    अपने स्वयं के यातायात में
    फँस गए थे,
  • 12:15 - 12:18
    कह रहे थे,
    'कृपया बाहर निकलने में मेरी मदद करें'।
  • 12:18 - 12:23
    लेकिन न तो अवस्था और न ही उसमें फँसा हुआ
    सत्य है!
  • 12:29 - 12:32
    मैं तुम्हें यह सरल अभ्यास दे सकता हूँ
    और कह सकता हूँ,
  • 12:32 - 12:37
    चलो सत्संग यहीं खत्म करते हैं।
    तुम इसे जाँचो!
  • 12:37 - 12:39
    वास्तव में इसे जाँचो।
  • 12:39 - 12:45
    और यह आदत भाग जाएगी!
  • 12:45 - 12:49
    तुम सच में इसे देखो।
    इसे छोड़ो मत।
  • 12:49 - 12:53
    इसे एक और सूत्र में,
    एक और अच्छी कहावत में मत बदलो।
  • 12:53 - 12:57
    नहीं, इसे सत्यापित करो, वास्तव में!
  • 12:57 - 13:01
    अगली बार जब मन की ऊर्जा आती है
    और तुम सोचते हो,
  • 13:01 - 13:04
    'अरे नहीं,
    पता नहीं मैं क्या करने जा रहा हूँ।
  • 13:04 - 13:06
    कृपया मदद करें! ओम नमः शिवाय।'
  • 13:06 - 13:09
    नहीं, नहीं, नहीं।
  • 13:09 - 13:14
    वह आता है और ज़ोर से दरवाज़ा खटखटाता है,
    और तुम्हे लगता है, 'मैं उसमें फँस गया हूँ'।
  • 13:14 - 13:19
    यह, 'मैं उसमें फँस गया हूँ', सपना है।
    यह सच नहीं है!
  • 13:19 - 13:22
    यह किसी झूठे मैं का सपना है।
  • 13:22 - 13:29
    जब तुम्हें याद आए, 'लेकिन एस्केप बटन',
    यह क्या है? इसका क्या अर्थ है?
  • 13:29 - 13:34
    छुओ मत। सब कुछ तुरंत छोड़ दो!
  • 13:34 - 13:37
    जैसा अभ्यास मैंने तुम्हें दिया था,
  • 13:37 - 13:40
    जब तुम देखते हो कि वास्तव में
    कुछ सच नहीं है,
  • 13:40 - 13:44
    मौखिक रूप से कहो, इसकी घोषणा करो,
    'यह सच नहीं है!'
  • 13:44 - 13:47
    उसे काट दो।
  • 13:47 - 13:49
    जब हम किसी चीज़ से जुड़े रहते हैं,
  • 13:49 - 13:53
    ऐसा इसलिए है क्योंकि
    कुछ है जो इस दृश्य में विश्वास कर रहा है।
  • 13:53 - 13:55
    तुम समझे?
  • 13:55 - 13:59
    कुछ है जो अभी भी कुछ पहचान को पकड़े हुए है।
  • 13:59 - 14:01
    वह जड़ होने वाली है।
  • 14:01 - 14:06
    एक व्यक्तिगत पहचान जिसका
    इस तरह के खेल के साथ संबंध है,
  • 14:06 - 14:08
    यही है जो चिपक रहा है।
  • 14:08 - 14:12
    क्या तुम इसे काट सकते हो?
    क्या इसे काटा जा सकता है?
  • 14:12 - 14:14
    क्या तुम बचना चाहते हो?
  • 14:14 - 14:18
    या शायद ऐसी कोई भावना है,
    'नहीं, नहीं, मुझे इससे निपटना है।
  • 14:18 - 14:22
    मुझे इसे सुलझाना है। यह मेरी वासना है,
    मुझे इसे सुलझाना ही चाहिए।'
  • 14:22 - 14:28
    तब यह बना रहेगा क्योंकि
    इसे तुम्हारा सहारा है, तुम्हारा भरोसा है।
  • 14:28 - 14:32
    यह सच नहीं है,
    लेकिन तुम इसे अस्तित्व में मानते हो,
  • 14:32 - 14:36
    और यह बन जाता है ...
  • 14:36 - 14:39
    एक समस्या वहीं पैदा हो जाती है।
  • 14:39 - 14:42
    तुम तय कर सकते हो।
  • 14:42 - 14:45
    हमें इसकी आदत नहीं है।
  • 14:45 - 14:48
    मैं एक आसान सा तरीका बता रहा हूँ।
  • 14:48 - 14:51
    तुम्हें किसी पेशेवर से मिलने जाने,
  • 14:51 - 14:54
    या कुछ करने,
    या विचलित होने की ज़रूरत नहीं है।
  • 14:54 - 14:57
    अगर तुम्हें कुछ विचलित करता है
  • 14:57 - 14:59
    अगर तुम कोई फिल्म या कुछ और देखने जाते हो,
  • 14:59 - 15:02
    यह वही है जो सिर्फ़ टालने के लिए,
    या अस्थायी रूप से बचने के लिए
  • 15:02 - 15:07
    फ़िल्म देखना चुन रहा है।
  • 15:07 - 15:09
    लेकिन तुम पहचान बनाए रखते हो।
  • 15:09 - 15:14
    तो मैं कह रहा हूँ, न ही पहचान
    न ही वह चीज़ जिससे वह पीड़ित है ...
  • 15:14 - 15:19
    वे बिल्कुल भी सच नहीं हैं।
  • 15:19 - 15:26
    यदि तुम अनुसरण करते हो जब मैं कहता हूँ,
    बस उस सब को काट दो,
  • 15:26 - 15:29
    जैसे, 'बैंग', इससे जागो,
    तुम पाते हो कि यह बस एक सपना है,
  • 15:29 - 15:34
    एक और दुःस्वप्न,
    एक और चीज़ का साक्षी होना।
  • 15:34 - 15:37
    लेकिन अब, तुम्हें खुद को खोजना होगा
    और कहना होगा,
  • 15:37 - 15:39
    'क्या मैं वाकई इसे छोड़ना चाहता हूँ?'
  • 15:39 - 15:42
    हो सकता है कि इसमें तुम्हारे लिए
    अभी भी कुछ रस बचा हो।
  • 15:42 - 15:44
    तुम मतलब कौन?
  • 15:44 - 15:46
    तुम अब भी 'मैं हूँ' ही हो
  • 15:46 - 15:52
    जो किसी तरह
    सोने और सपना देखने के किनारे पर है।
  • 15:52 - 15:55
    तुम अभी भी अपना मूल 'स्व' हो,
  • 15:55 - 16:01
    लेकिन कुछ आसक्त रवैये के साथ
    जो अभी भी उसके साथ मिला हुआ है।
  • 16:01 - 16:05
    तुम इसे जितना अधिक स्पष्टता से देखते हो,
    'लेकिन मैं यह नहीं हूँ',
  • 16:05 - 16:08
    उतना ही तुम इससे मुक्त हो जाते हो।
  • 16:08 - 16:11
    कभी-कभी तुरंत, ऐसे।
  • 16:16 - 16:20
    [मूजी] तो, मैंने तुम्हें
    एक बहुत ही आसान तरीका दिखाया है।
  • 16:20 - 16:24
    लेकिन इसे प्रयोग करने के लिए,
    तुम्हें इस पर भरोसा करना होगा।
  • 16:24 - 16:30
    भले ही तुम कहो, 'यह बहुत मुश्किल लगता है',
  • 16:30 - 16:34
    लेकिन आपने कहा है, तो
    'मैं कोशिश करूँगा और इसे करूँगा'।
  • 16:34 - 16:40
    'कोशिश' भी नहीं, क्योंकि यह संभव है।
  • 16:40 - 16:43
    तुम्हारी दुर्बलता भी कल्पित है।
  • 16:43 - 16:48
    हमारी कमज़ोरियाँ भी कल्पित
    और आदत से विकसित है।
  • 16:48 - 16:53
    आदत खेल रही है, लेकिन वह
    तुम्हारे सहयोग के बिना नहीं खेल सकती।
  • 16:53 - 16:59
    किसी स्तर पर हम इसका समर्थन कर रहे हैं,
    शायद अनजाने में।
  • 16:59 - 17:06
    क्योंकि तुम इस पर विश्वास करते हो,
    और यदि तुम इस पर विश्वास करते हो,
  • 17:06 - 17:10
    तो यह पर्याप्त समर्थन है।
    क्या मैं एक और बात कह सकता हूँ?
  • 17:10 - 17:14
    क्योंकि मुझे लगता है मैं तुम्हें कह सकता हूँ,
    पूरे प्रेम और आदर में,
  • 17:14 - 17:20
    विश्वास करने वाला भी सच नहीं है;
    तुम उसे भी काट सकते हो।
  • 17:20 - 17:25
    विश्वास करने वाला भी देखा जा सकता है।
  • 17:25 - 17:31
    तुम्हारे सत्संग के इस पड़ाव पे,
    क्या मैं तुमसे यह कह सकता हूँ?
  • 17:31 - 17:38
    विश्वास करने वाला भी
    लिया गया एक आकार है।
  • 17:38 - 17:42
    निराकार जागरूकता के शुद्ध अवकाश में,
  • 17:42 - 17:46
    यह कल्पित स्व खेल रहा है।
  • 17:46 - 17:49
    शायद कुछ महीने या एक साल पहले,
  • 17:49 - 17:52
    मैं तुमसे इस तरह बात नहीं कर सकता था,
  • 17:52 - 17:57
    क्योंकि तुम्हारी ग्रहणशीलता
    पर्याप्त विकसित नहीं थी
  • 17:57 - 18:00
    मेरे शब्दों को
    अपने हृदय में समाहित करने के लिए।
  • 18:00 - 18:03
    लेकिन अब तुम कर सकते हो।
  • 18:03 - 18:06
    यह विश्वास करने वाला भी,
    तुम इसे पार कर जाओगे।
  • 18:06 - 18:09
    इस विश्वास करने वाले ने
    बहुत सी बातों पर विश्वास किया है,
  • 18:09 - 18:15
    लेकिन विश्वास करने वाला
    ख़ुद भी सच नहीं है।
  • 18:15 - 18:19
    हमने कई अवस्थाओं में, कई पहचानों में,
    निवास किया है,
  • 18:19 - 18:23
    और वे तुम्हें प्रताड़ित करती हैं।
  • 18:23 - 18:25
    वे अंततः तुम्हारी शांति भंग करते हैं।
  • 18:25 - 18:29
    वे सभी शुरु में आकर्षक होतीं हैं।
  • 18:29 - 18:32
    कई चीजें शुरुआत में बहुत अच्छी होती हैं।
  • 18:32 - 18:39
    लेकिन जैसे जैसे तुम उनके साथ रहते हो,
    वे तुम में खट्टी होने लगती हैं।
  • 18:39 - 18:42
    लेकिन मैं
    तुम्हें केवल यह याद दिलाना चाहता हूँ कि
  • 18:42 - 18:46
    तुम्हारा असली तत्त्व,
    तुम्हारा होना, सपना नहीं है।
  • 18:46 - 18:50
    यह कोई कल्पना नहीं है।
  • 18:50 - 18:55
    इससे अधिक, यह स्पष्ट करने,
    स्पष्ट रूप से पहचानने के लिए।
  • 18:55 - 18:58
    लेकिन यह द्वैतवादी पहचान नहीं होगी।
  • 18:58 - 19:02
    यह ऐसा नहीं है कि
    एक चीज़ किसी और चीज़ की पहचान करती है।
  • 19:02 - 19:04
    यह ऐसा नहीं है कि
    व्यक्ति ईश्वर की पहचान करता है।
  • 19:04 - 19:09
    इसीलिए मैं कहता हूँ,
    मुक्ति व्यक्ति के लिए नहीं है,
  • 19:09 - 19:15
    मुक्ति व्यक्ति से मुक्त होना है!
  • 19:15 - 19:19
    लोग कभी कभी कहते हैं,
    'मैं व्यक्ति से परे कैसे जा सकता हूँ?'
  • 19:19 - 19:22
    यह अभी भी व्यक्ति है
    जो यह बोल रहा है।
  • 19:22 - 19:26
    यह अभी भी, साथ ही, एक रास्ता है।
  • 19:26 - 19:31
    ईश्वर ने जीवन के खेल में
    कई, कई रास्ते बनाए हैं।
  • 19:31 - 19:34
    तो, कभी-कभी जब तुम इस पड़ाव पे होते हो
  • 19:34 - 19:37
    जहाँ वास्तव में तुम अपने आप को
    यात्री मानते हो,
  • 19:37 - 19:40
    और कहते हो,
    'लेकिन मैं इस रास्ते से कैसे बच निकलूँ?'
  • 19:40 - 19:45
    यह उस 'मैं' में विश्वास है!
    लेकिन वह 'मैं' केवल एक मंच है।
  • 19:45 - 19:50
    यह अंतिम नहीं है!
    यह भी है ...
  • 19:50 - 19:53
    जैसे-जैसे तुम अपनी ख़ोज में आगे बढ़ते हो,
  • 19:53 - 19:59
    तुम्हारी पिछली सारी पहचानें
    तुम्हारे पीछे कटती जा रही हैं।
  • 19:59 - 20:06
    [मूजी] क्या आप समझे?
    क्या आपको लगता है कि मेरे शब्द कठोर हैं?
  • 20:06 - 20:10
    [मूजी] मैं अब आप सभी को देख रहा हूँ।
  • 20:10 - 20:13
    [मूजी] वास्तव में, वे मिठाई से बेहतर हैं।
  • 20:13 - 20:17
    क्योंकि तुरन्त ही,
    मानो कुछ (घोड़े से) उतर जाता है!
  • 20:17 - 20:20
    तुम उतर जाओ, 'बूप',
    घोड़े को सरपट दौड़ने दो,
  • 20:20 - 20:22
    लेकिन आप किसी तरह उतर जाते हो।
  • 20:22 - 20:25
    तुम यहाँ हो।
  • 20:34 - 20:37
    जब तुम उतरने की भावना का अनुभव करते हो,
  • 20:37 - 20:43
    तुम्हे यह एहसास भी हो सकता है कि
    घोड़ा असली नहीं था,
  • 20:43 - 20:46
    सवार भी असली नहीं था।
  • 20:46 - 20:48
    शायद अभी नहीं।
  • 20:48 - 20:52
    हो सकता है तुम बस उतरने का आनंद लो,
    'हा-हा-हा, बहुत अच्छा!'
  • 20:52 - 20:55
    शांति का आनंद लो।
  • 21:00 - 21:04
    कोई भी समस्या आदत से शुरू होती है
  • 21:04 - 21:08
    विश्वास और पहचान से कायम रहती है।
  • 21:14 - 21:18
    मान लो कि जो भी तुमने समस्या के रूप में देखा
    वह वास्तव में वास्तविक था,
  • 21:18 - 21:22
    तो तुम आज यहाँ नहीं होते!
  • 21:22 - 21:25
    तुम आज यहाँ नहीं होते।
  • 21:25 - 21:29
    तुम इतने कुचले गए होते कि
    हमें तुम्हें छत से या किसी जगह से
  • 21:29 - 21:31
    खुरचना पड़ता।
  • 21:31 - 21:33
    तुमने उन्हें पार कर लिया।
  • 21:33 - 21:39
    किसी ने पूछा, 'मैं कैसे परे जा सकता हूँ?
    यह बहुत बड़ी बात लगती है।'
  • 21:39 - 21:42
    नहीं, इसका सरल सा मतलब है कि
  • 21:42 - 21:45
    कुछ तुम्हारे रास्ते में आड़े आ रहा था,
    तुमने उसे हटा दिया।
  • 21:45 - 21:48
    तो अब तुम इससे परे हो।
    यह तुम्हारे लिए परेशानी की बात नहीं है।
  • 21:48 - 21:54
    परे जाने के लिए
    बस इतने ही शब्द पर्याप्त हैं।
  • 21:54 - 22:03
    ठीक है। तो इसके साथ, निक, कृपया ...
  • 22:03 - 22:06
    मन को अनेक शब्दों की,
    अनेक विवरणों की आवश्यकता है,
  • 22:06 - 22:14
    लेकिन हृदय साफ देखता है, 'आहा!', ऐसे।
  • 22:14 - 22:17
    यदि तुम्हें लगता है, 'ओह, जो मूजी कहते हैं
    मैं उसे समझने की कोशिश कर रहा हूँ।'
  • 22:17 - 22:20
    यह इतना कठिन है क्योंकि मैं ...'
  • 22:20 - 22:25
    फिर से, तुम गलत 'मैं' में खड़े हो।
  • 22:25 - 22:29
    हर कोई उसे देख रहा है
    जिससे कि 'मैं' पीड़ित है,
  • 22:29 - 22:32
    लेकिन उस 'मैं' को कोई नहीं देखता।
  • 22:32 - 22:35
    हर कोई देख रहा है और ध्यान दे रहा है कि
  • 22:35 - 22:40
    'मैं' किस चीज से पीड़ित है,
    इसकी शर्तें और इसके अनुमान,
  • 22:40 - 22:45
    लेकिन उस 'मैं' को कोई नहीं देखता।
  • 22:45 - 22:49
    इस हद तक, वह स्वयं
  • 22:49 - 22:56
    एक गोचर दृश्य के रूप में
    परदे पर आ जाता है।
  • 22:56 - 23:00
    क्या तुम समझे?
  • 23:00 - 23:06
    लेकिन मेरे संघ को यह करना ही चाहिए!
    और आप इसे करते रहे हैं,
  • 23:06 - 23:14
    अपनी सहज उपस्थिति और शक्ति को
    अधिक से अधिक महसूस कर रहे हैं।
  • 23:14 - 23:24
    नियंत्रित करने की शक्ति नहीं,
    बल्कि मुक्त करने की शक्ति।
  • 23:24 - 23:27
    धन्यवाद, निक। मेरा प्यार।
  • 23:27 - 23:31
    शुक्रिया, शुक्रिया।
    बहुत अच्छा, बहुत अच्छा।
  • 23:31 - 23:34
    धन्यवाद, धन्यवाद।
  • 23:39 - 23:43
    कॉपीराइट © 2021 मूजी मीडिया लि.।
    सर्वाधिकार आरक्षित।
  • 23:43 - 23:46
    मूजी मीडिया लि. की व्यक्त सहमति के बिना
  • 23:46 - 23:49
    इस रिकॉर्डिंग का कोई भी भाग
    पुनः प्रस्तुत नहीं किया जा सकता।
Title:
यह मन से बचने का तुम्हारा एस्केप बटन है
Description:

सत्संग ऑफ द वीक
https://mooji.tv/satsang-of-the-week

मूजी हमें मन से तादात्म्य से परे हमारे सहज आनंद और मुक्ति में ले जाने हेतु यह सरल 'एस्केप बटन' उपमा और निर्देशित आत्मविचार साझा करतें हैं।

“यहाँ सत्संग में भी, तुम्हारे पास एक एस्केप बटन होना चाहिए। मन से बचने का तुम्हारा एस्केप बटन कहाँ है? निराकार साक्षी बनकर रहो!

जब तुम बच निकलते हो तो तुम्हें पता चलता है कि यह, जो तुम यहाँ हो, वह कभी फँसा ही नहीं था। क्या तुम इसकी ताक़त को महसूस कर सकते हो?

मैंने तुम्हें एक बहुत ही सरल तरीका दिखाया है, लेकिन तुम्हें इस पर भरोसा करना चाहिए और इस पर अमल करना चाहिए।"

एक संघ मिलन
२६ मार्च २०२१| मूजी के साथ सत्संग

~

यह वीडियो २८ मार्च २०२१ के लिए 'सत्संग ऑफ द वीक' है
देखें: https://mooji.tv/satsang-of-the-week
साप्ताहिक अधिसूचना के लिए सदस्यता लें:
https://mooji.org/subscribe-satsang-of-the-week

सहजा एक्सप्रेस पर इस तरह के अधिक अंतरंग, सहज वार्तालाप उपलब्ध है:
https://mooji.tv/subscription

यदि आप सत्संग के प्रसार में सहयोग करना चाहते हैं, तो यहाँ दान कर सकते हैं:
https://mooji.org/donate?tcode=mtv7

#Mooji #satsang #spirituality #advaita #nonduality #awakening

more » « less
Video Language:
English
Duration:
23:51

Hindi subtitles

Revisions