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क्यों हिंसा शहरों में समूह बनाती है -- और इसे कैसे घटाएं

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    आप एक ट्रॉमा सर्जन हैं,
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    जो शहर के आपातकालीन सेवा में आधी रात की
    शिफ्ट पर काम करते है।
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    एक नौजवान को आपके सामने लाया जाता है,
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    जो की स्ट्रेचर पे बेहोश पड़ा है
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    उसे पैर पर गोली लगी है
    और बहुत खून बह रहा है।
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    बहरी और भीतरी घाव को देख कर
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    और रक्तस्राव की मात्रा को देखकर
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    ये लग रहा है की गोली पैर की धमनी
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    जो शरीर की सबसे बड़ी धमनियों में से एक
    को काट चुकी है।
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    उस नौजवान के डॉक्टर होने के नाते
    आपका क्या करना सही होगा ?
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    या ये कहा जाये, आपको सबसे पहले
    क्या करना चाहिए ?
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    आप गौर करते हैं की उस जवान लड़के ने फ़टे
    पुराने कपडे पहने हुए हैं।
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    वो बेरोज़गार , बेघर या काम पढ़ा लिखा
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    हो सकता है।
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    तो क्या आप उसका इलाज उसे एक नौकरी दिलवाकर
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    एक फ्लैट दिलवाकर या
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    उसे GED प्राप्त करने में मदत देकर करेंगे ?
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    दूसरी तरफ ,
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    ये इंसान किसी झगडे में शामिल हुआ है और
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    शायद खतरनाक हो सकता है।
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    उसके होश में आने से पहले
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    क्या आप उसे ज़ंजीर से बाँध देंगे
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    और अस्पताल को खबर देकर
    क्या 911 को फ़ोन करेंगे ?
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    हम में से ज़्यादातर इनमे से कोई भी
    काम नहीं करेंगे।
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    इसके बजाये हम सिर्फ समझदारी और इंसानियत
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    भरा कदम उठाएंगे।
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    सबसे पहले खून का बहना रोकेंगे।
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    क्यूंकि जब तक खून बहना नहीं रुकता तब तक
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    और कुछ भी मायने नहीं रखता।
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    जो कदम आपातकालीन सेवा में सही हैं वो
    दुनिया के बाकी सारे शहरों में भी है
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    जब बात शहरी हिंसा की होती है , सबसे पहली
    प्राथमिकता होती है जानें बचाना
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    उस हिंसा का उसी तात्कालिकता के साथ इलाज
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    करना, जिस तरह एक गोली की चोट का इलाज
    किया जाएगा एक ER में।
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    "शहरी हिंसा" कहते वक़्त हम
    किस बारे बात कर रहे हैं ?
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    शहरी हिंसा वह घातक हिंसा या घातक होने की
    क्षमता रखने वाली हिंसा है
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    जो की हमारी सड़कों पर देखने को मिलता है
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    इसके कई और नाम हैं :
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    सड़क हिंसा, युवा हिंसा
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    गिरोह हिंसा, बन्दूक हिंसा
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    शहरी हिंसा हम में से सबसे वंचित
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    और समाज से बेदखल किये गए
    लोगो के साथ होता है
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    इनमे ज़्यादातर जवान लड़के होते हैं,
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    जिनके पास ज़्यादा विकल्प या आशा नहीं होती।
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    मैंने ऐसे सैकड़ों नौजवानो के साथ कई घंटे
    बिताये हैं
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    मैंने उन्हें वाशिंगटन डी सी के
    विद्यालय में पढ़ाया था
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    जहाँ मेरे एक छात्र की हत्या की गयी
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    मैं न्यू यॉर्क शहर के
    कटघरों में खड़ा हुआ हूँ,
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    जहाँ मैंने एक प्प्रॉसिक्यूटर का पर
    काम किया
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    और आखिरकार,
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    मैं एक शहर से दुसरे शहर एक नीति निर्माता
    और शोधकर्ता के तौर पर घूमा हूँ जहाँ
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    जहाँ मैं इन नौजवानो से मिला और
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    इनके साथ अपने समाज को सुरक्षित बनाने
    के तरीकों पर बात चीत की
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    हमे इन नौजवानो की चिंता क्यों करनी चाहिए ?
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    शहरी हिंसा क्यों मायने रखती है ?
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    शहरी हिंसा मायने रखती है,
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    क्यूंकि अमेरिका में किसी भी शहरी हिंसा
    किसी भी दुसरे प्रकार के
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    हिंसा से ज़्यादा जानें लेता है।
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    शहरी हिंसा इसलिए भी मायने
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    रखती है क्यूंकि हम इसके बारे कुछ करने क
    ताकत रखते हैं.
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    इसे काबू करना नामुमकिन नहीं है जैसा की
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    काफी लोगों का मानना है।
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    दरसल , इसके लिए आज ऐसे कई तरह के
    उपाय मौजूद हैं जो की
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    असरदार साबित हुए हैं।
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    और इन सभी उपायों में एक सामान सामग्री है
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    ये सब इस बात को मानते हैं की शहरी हिंसा
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    चिपचिपी है यानी की ये लोगों और जगहों
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    में छोटे समूह बनती है
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    उद्धरण के लिए न्यू ओर्लांस में ,
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    700 से भी कम लोगों के एक संजाल का
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    शहर के ज़्यादातर हिंसक घटनाओं में हाथ है।
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    कुछ इन लोगों को "हॉट पीपल" कहते हैं।
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    यहाँ बोस्टन में ,
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    70 प्रतिशत शूटिंग्स ,
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    शहर के सिर्फ 5 प्रतिशत ब्लॉकों और कोनों
    में केंद्रित है।
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    इन जगहों को अक्सर "हॉट स्पॉट्स" के नाम
    से जाना जाता है।
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    हर शहर में, ज़्यादातर होने वाली
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    घातक हिंसा के लिए यही
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    हॉट पीपल और हॉट स्पॉट्स ज़िम्मेदार होते हैं
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    यहाँ तक की, ये खोज इतनी बार
    दोहराया जा चुका है
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    की शोधकर्ता इस घटना को लॉ ऑफ़ क्राइम
    कंसंट्रेशन का नाम दे चुके हैं।
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    जब हम इसके पीछे के विज्ञान को समझते हैं तब
    पाते हैं की स्टिकी सोलूशन्स सबसे कारगर हैं
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    सीधे शब्दों में कहें तो,
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    आप शूटिंग्स तब तक नहीं रोक सकते जब तक आप
    शूटर्स के बारे कुछ नहीं कर लेते
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    और आप तब तक हत्यायों को नहीं रोक सकते जब
    तक आप वहां नहीं जाते लोगों की हत्या हुई है
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    चार साल पहले
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    मैंने और मेरे सहकर्मियों ने अहिंसक
    रणनीतियों पर एक
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    व्यवस्थित मेटा-रिव्यु किया था,
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    जिसमे 1400 से ज़्यादा व्यक्तिगत प्रभाव के
    मूल्यांकन के नतीजों का सारांश निकाला गया
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    हमनें बार बार यही पाया की जो राणीनित्यां
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    सबसे ज़्यादा केंद्रित,
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    सबसे ज़्यादा लक्षित,
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    और सबसे स्टिकी थीं वे
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    सबसे कारगर रहीं
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    हमने इससे अपराध विज्ञान
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    पोलिसिंग के अध्ययन, गिरोह निवारण और उसकी
    उसकी पुनः जांच में भी देखा,
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    लेकिन हमनें इसे लोक स्वास्थय में भी देखा,
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    जहाँ तृतीया और द्वितीय
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    ने सामान्य मुख्य निवारण से ज़्यादा
    अच्छा प्रदशन दिखाया।
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    जब नीति निर्माता सबसे खतरनाक लोगों और
    जगहों पे ध्यान देते हैं।
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    तब उन्हें बेहतर परिणाम मिलते हैं
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    हो सकता है आप पूछें प्रतिस्थापन और
    विस्थापन के बारे क्या
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    खोज दिखता है की जब ड्रग डीलरों को जेल में
    डाल दिया जाता है
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    तब नए डीलर्स पुराने डीलर्स की जगह ले लेते हैं,
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    कुछ को इस बात की चिंता होती है की जब
    पुलिस उनकी कुछ ख़ास जगहों पर
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    ज़्यादा ध्यान देती है तब,
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    अपराध उन जगहों से निकलकर सड़कों पे आ
    जायेगा
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    सौभागय से हमे पता है की स्तिक्किनेस्स की
    घटना के कारण
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    इन स्टिकी रणनीतियों से जुड़े हुए ,
    प्रतिस्थापन और विस्थापन के प्रभाव
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    न के बराबर हैं ,
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    एक शूटर बनने के लिए जीवन भर के ट्रॉमा की
    ज़रुरत होती है
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    स्पॉट बनाने के लिए दशकों का विनिवेश।
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    तो ये लोग और जगह इतनी
    आसानी से इधर उधर नहीं होते
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    तो मूल कारणों के बारे क्या ?
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    क्या गरीबी या असमानता या अवसरों की कमी
    के बारे कुछ करना हिंसा को हटाने का
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    का सबसे अच्छा उपाय नहीं होगा ?
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    विज्ञानं के अनुसार इसका जवाब
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    दोनों हाँ और न है ,
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    हाँ, क्यूंकि हिंसा के ऊंचे दर स्पष्ट रूप
    से
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    सामाजिक और आर्थिक नुक़्सानो से जुड़ा हुआ है
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    लेकिन चूंकि इन चीज़ों में बदलाव
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    लाने से ये ज़रूरी नहीं है की ये हिंसा में
    भी बदलाव आएं
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    खासकर छोटी दौड़ में तो बिलकुल भी नहीं
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    गरीबी के उधार को मान कर चलिए,
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    गरीबी के ऊपर जीत हासिल
    करने में कई दशक लग जाएंगे ,
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    जबकि गरीबों को हिंसा से छुटकारा अभी मिलना
    चाहिये और ये उनका हक़ भी है
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    साथ ही मूल वजहें स्तिक्किनेस्स की घटना को
    नहीं समझा सकती
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    अगर गरीबी हमेशा हिंसा को बढ़ावा देती तो
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    हमें सारे गरीब लोगों में हिंसा दिखाई देनी
    चाहिए।
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    लेकिन हमें ऐसा नहीं दिखता।
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    बल्कि, हम अनुभव से पाते हैं की गरीबी के
    केंद्रित होने के
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    साथ ही अपराध भी केंद्रित होता चला जाता है
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    और हिंसा सबसे ज़्यादा केंद्रित होती है।
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    इसलिए स्टिकी सोल्यूशन्स कारगर हैं।
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    ये इसलिए कारगर हैं क्यूंकि ये पहले ज़्यादा
    ज़रूरी चीज़ें करते हैं।
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    और ये ज़रूरी है ,
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    क्यूंकि चाहे हिंसा एक तरफ गरीबी को बढ़ावा
    देती हो
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    सबूत ये दिखाते हैं की हिंसा गरीबी को
    बढ़ावा देती है।
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    एक उदाहरण इस बात को समझा सकता है ,
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    जैसा की समाजशास्त्री पैट्रिक शार्के ने
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    पाया, की जब गरीब बच्चों को
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    हिंसा देखनीपड़ती है.
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    वे बहूत घबरा जाते .
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    इससे उनकी नींद , व्यावहारिक जीवन, सोचने
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    समझने , और सीखने की क्षमता पर असर होता है
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    और अगर गरीब बच्चे सीख न पाएं तो वे
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    स्कूल में अच्छे नतीजे नहीं दे पाएंगे।
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    और इससे आगे चलकर उनकी कमाई पे असर
    होता है जो कि उनकी गरीबी से दूर होने का
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    एक ज़रिया है।
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    दुर्भाग्य से, अर्थशास्त्री राज शेट्टी की
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    ऐतिहासिक अध्ययन की श्रृंख्ला में पाया
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    गया की हमने हर समय यही होते हुए देखा है।
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    गरीब बच्चे जिन्हे बचपन में हिंसा का सामना
    करना पड़ता है उनकी आय की गतिशीलता उन
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    से कम होती है जो शांत माहौल में बड़े हुए।
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    हिंसा बच्चों को गरीबी के चपेट से निकलने
    नहीं देती है।
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    इसी लिए ये ज़रूरी है की हम शहरी हिंसा के
    बारे में कुछ करें।
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    चलिए दो उदाहरणों पर गौर करें।
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    यहाँ बोस्टन में , 1990 के आस पास
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    पुलिस और समाज के लोगों के बीच एक साझेदारी
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    की वजह से युवा हत्याओं में
    कमाल की 63 प्रतिशत की कमी पायी गयी।
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    ओकलैंड में भी उसी रणनीति की वजह से
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    बन्दूक से होनेवाले गैर जानलेवा हमलो में
    55 प्रतिशत कमी हुई।
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    सिनसिनाटी, इंडिआनापलिस, एवं नई हैवन में
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    ऐसी घटनाओं में एक तिहाई की कटौती हुई।
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    सीधे तरीके से कहा जाये तो ये रणनीति बस
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    लोगों को पहचानने में मदद करती है जो की या
    तो किसी और को गोली मार सकते हैं या तो खुद
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    उसका शिकार बन सकते हैं
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    और फिर उन्हें सहानुभूति और जवाबदेही का
    दोहरा
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    सन्देश देती है।
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    " हमें पता है की तुम गोली चला रहे हो ये
    सब रुक
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    जाना चाहिए।
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    अगर तुम चाहो तो हम तुम्हारी मदद कर सकते
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    है ,हम तुम्हे ये सब करने से रोक सकते हैं "
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    जो बदलना चाहते हैं उन्हें सेवाएं और समर्थन
    प्रदान किया जाता है।
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    जो अपना हिंसक बर्ताव जारी रखना चाहते हैं
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    उनपर कानून के माध्यम से
    न्याय के लिए करवाई होती है।
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    शिकागो में , एक दुसरा प्रोग्राम
    कॉग्निटिव बहवोरिअल थेरेपी का इस्तेमाल
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    करता है युवाओं को मुश्किल विचारों
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    और संवेदनाओं का सामना करने में मदद करता
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    है उन्हें झगडे काम और नहीं करना सीखाकर।
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    इस प्रोग्राम ने हिंसक जुर्म की गिरफ़्तारी
    को 50 प्रतिशत घटाने में
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    सफलता हासिल की।
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    ऐसी रणनीतियों के इस्तेमाल से किसी के
    फिर से अपराध
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    करने जैसी घटनाएं 50 प्रतिशत घट गयी।
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    अब शिकागो ने एक नयी प्रयास की है जिसमे
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    वही तकनीकों का इस्तेमाल किया
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    गया है उनके लिए जो बन्दूक हिंसा
    के ज़्यादा जोखिम मे है
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    और यह प्रोग्राम हमें काफी अच्छे नतीजे
    दिखा रहा है।
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    साथ ही,
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    चूंकि ये रणनीतियां इतनी केंद्रित, और
    लक्षित हैं, इनपे हमें
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    ज़्यादा खर्च भी नहीं करना पड़ता है। और ये उन
    कानूनों
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    के साथ काम करती हैं जो की
    पहले से ही किताबों में दर्ज हैं।
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    तो ये थी अच्छी खबर।
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    हम अपने शहरों में शान्ति ला सकते हैं,
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    अभी,
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    बिना ज़्यादा खर्च किये
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    और बिना किन्ही नए कानूनों के.
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    तो ये अब हुआ क्यों नहीं है ?
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    क्यों अब तक ये उपाय सिर्फ कुछ ही छोटे
    शहरों में अपने गए हैं ?
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    क्यों य इतने कारगर होने के बावजूद सहयोग
    पाने के लिए इतने मुश्किलों
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    का सामना करते हैं ?
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    एक बुरी खबर भी है।
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    सच्चाई ये है की हमनें स्टिकी घटनाओं
    को अच्छी तरह आयोजित में
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    अपना पूरा ज़ोर नहि लगाया है।
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    इस बात के तीन मुख्या कारन हैं की क्यों हम
    शहरी हिंसा को काम करने
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    के मामले में सबूतों पर ध्यान नहीं देते।
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    सबसे पहले, जैसा की आप समझ ही गए होंगे
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    है राजनीती।
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    ज़्यादातर स्टिकी उपाय किसी एक या किसी
    दुसरे राजनीतिक मंच के अनुरूप नहीं होता है
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    बल्कि ये गाजर और लाठी दोनों का प्रस्ताव
    करते हैं,
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    इलाज के वादे और गिरफ़्तारी के वादे के साथ,
    स्थान आधारित निवेश
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    और हॉट स्पॉट नीति का आयोग करते हैं।
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    दुसरे शब्दों में
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    ये उपाय दोनों एक ही समय पे
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    नरम एवं सख्त हैं।
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    क्यूंकि ये दोनों एक साथ अच्छे से
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    मेल नहीं खाते क्यूंकि राजनेता पूरा समय
    सिर्फ लेफ्ट और राइट के बारे बातें करते हैं
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    वे कभी इन विचारों की तरफ कदम नहीं उठाएंगे
    चाहे उन्हें कितना भी शिक्षित किया जाए या
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    दबाव डाला जाए।
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    ये आसान नहीं होगा लेकिन,
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    के प्रति राजनीति को डाल सकते हैं हिंसा
    को एक जीती
  • 10:38 - 10:42
    जा सकने वाली बहस नहीं बल्कि एक हल की जाने
  • 10:42 - 10:45
    वाली एक समस्या के रूप में देखकर
  • 10:45 - 10:47
    हमें विचारधारा के बजाये सबूतों का इस्तेमाल
    करना चाहिए
  • 10:47 - 10:50
    ये देखने के लिए की हमारे लिए क्या अच्छा
    होगा।
  • 10:51 - 10:54
    दूसरी वजह की क्यों हम सबूतों पर ध्यान
    नहीं देते हैं
  • 10:54 - 10:57
    है इन उपायों का जटिल स्वाभाव।
  • 10:57 - 10:59
    यहां एक व्यंग्य है।
  • 10:59 - 11:02
    हिंसा को रोकने के सबसे आसान तरीके कौन से
    हैं ?
  • 11:03 - 11:04
    ज़्यादा पुलिस कर्मी।
  • 11:04 - 11:06
    ज़्यादा नौकरियां।
  • 11:06 - 11:07
    कम बंदूकें।
  • 11:08 - 11:10
    कहना तो आसान हैं
  • 11:10 - 11:13
    लेकिन करना मुश्किल।
  • 11:13 - 11:14
    दूसरी तरफ ,
  • 11:14 - 11:17
    शोध से पाए गए उपायों को समझाना मुश्किल है
  • 11:17 - 11:19
    लेकिन उनके नतीजे बेहतर होते हैं।
  • 11:20 - 11:22
    अभी हमारे पास बहुत सारे प्रोफेसर हैं
  • 11:22 - 11:24
    जो हिंसा के बारे अकादमिक जौर्नलों मे
    लिख रहे हैं
  • 11:24 - 11:27
    और ऐसे बोहोत लोग हैं जो की हमें सड़कों पे
    सुरक्षित रखते हैं।
  • 11:28 - 11:29
    लेकिन हमारे पास संचार
  • 11:29 - 11:31
    की कमी है।
  • 11:31 - 11:35
    हमारी शोध और कामों में एक मज़बूत कड़ी नहीं
    है।
  • 11:36 - 11:38
    और जब भी कोई शोध असल में काम करती है , तब
    वह कड़ी
  • 11:38 - 11:40
    सिर्फ एक संयोग नहीं होती है।
  • 11:40 - 11:43
    ये सिर्फ तभी मुमकिन हो पता है जब कोई समय
  • 11:43 - 11:45
    निकलकर ध्यान से उस शोध का मतलब समझाता है।
  • 11:45 - 11:46
    की ये क्यों ज़रूरी है
  • 11:46 - 11:49
    और ये कैसे एक जगत में बदलाव ला सकती है।
  • 11:50 - 11:52
    हम शोध करने में काफी वक़्त ज़ाया करते हैं
  • 11:52 - 11:56
    लेकिन उसे छोटे हिस्सों में बांटें में नहीं
  • 11:56 - 12:00
    ताकि एक व्यस्त पुलिस कर्मी या समाज सेवक
    उसे आसानी से समझ सके।
  • 12:03 - 12:05
    ये मानना मुहकिल हो सकता है लेकिन जाती
  • 12:05 - 12:08
    तीसरी वजह है जिसकी वजह से हिंसा कम करने के
  • 12:08 - 12:11
    लिए ज़्यादा काम नहीं हो पाए हैं।
  • 12:13 - 12:16
    शहरी हिंसा गरीब काले समुदायों में
    ज़्यादातर पायी जाती है।
  • 12:17 - 12:21
    इस वजह से जो उन समुदायों में नहीं रहते वे
    इन समस्याओं को आसानी से रफा दफा
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    कर देते हैं ये कहकर की ये
    उनकी दिक्कत नहींहै।
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    ज़ाहिर सी बात है की ये गलत है.
  • 12:27 - 12:30
    शहरी हिंसा सबके लिए एक मुश्किल है।
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    सीधे तरीके से या नहीं भी ,
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    हम उन सब गोली चलने की घटनाओ और
    मौतों की कीमत
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    चुकाते हैं जो क हमारे शहरों में होती हैं।
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    इसलिए हमें और तरीके ढूंढ़ने की ज़रुरत है
    ताकि हम लोगों को रंग और वर्ग
  • 12:40 - 12:43
    की इन दीवारों को पार कर इस संघर्ष में
    हिस्सा लें।
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    क्यूंकि हमें इन रणनीयतियों में ज़्यादा
    साधनो की ज़रुरत नहीं है ,
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    हमें नए सहयोगी दलों को
    बढ़ावा नहीं देना होगा
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    हमें बस कुछ की ज़रुरत होगी।
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    उन्हें बस ज़ोरदार होना होगा।
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    अगर हम इन समस्याओं का समाधान निकल लें
  • 12:57 - 13:00
    इन स्टिकी सोलूशन्स को उन जगहों तक फैलाएं
    जहाँ उनकी ज़रुरत है,
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    हम हज़ारों जानें बचा पाएंगे।
  • 13:04 - 13:06
    अगर जिन रणनीतियों के बारे में मैंने आज
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    चर्चा की है, उनके देश के 40 सबसे हिंसक
    शहरों में लागु किया जाए तो हम
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    अगले आठ सालों में 12000 से भी
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    ज़्यादा जानें बचा पाएंगे।
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    इसकी कीमत कितनी होगी ?
  • 13:18 - 13:20
    एक साल में करीब 10 करोड़।
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    ये सुनने में ज़्यादा लग सकता है , लेकिन
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    असल में ये संख्या सालाना फ़ेडरल बजट
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    के एक प्रतिशत हिस्से से भी कम है।
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    रक्षा मंत्रालय इतना सिर्फ एक ऍफ़-35 फाइटर
    जेट
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    पर खर्च कर देता है।
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    लाक्षणिक तौर से देखा जाए तो चाहे बात एक
    आदमी को गोली लगने की
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    हो या एक एक पूरा समुदाय जो की इन घावों
    से चलनी हो या एक
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    देश जो की ऐसी ही समुदायों से भरा
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    हुआ हो , सबका इलाज एक ही है।
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    हर मामले में , इलाज करने का सबसे पहला कदम
    होगा
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    खून का बहना बंद करना
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    मुझे पता है की ये काम करेगा
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    मुझे पता है क्यूंकि मैंने ये देखा है।
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    मैंने बन्दूक धारियों को अपनी बंदूकें नीचे
    रखते हुए
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    और दूसरों को भी करने का बढ़ावा देने में
    अपनी ज़िन्दगी व्यतीत करते हुए देखा है
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    मैं उन घरों के सामने से गुज़रा हूँ जहाँ
    गोलियों की शोर गूंजती थी
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    अभी वहां बच्चों को खेलते हुए देखता हूँ।
  • 14:13 - 14:15
    मैं उन पुलिस वालों और उन समुदाय के सदस्यों
    के साथ
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    बैठा हूँ जो पहले एक दुसरे से
    नफरत करते थे मगर अब एक साथ काम करते हैं
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    और मैंने हर तरह के लोगों के साथ काम किया
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    आप जैसे लोग, आख़िरकार
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    इस संघर्ष में हिस्सा लेने के लिए
    तैयार हो जाते हैं।
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    और इसलिए मुझे पता है की हम एक साथ मिलकर,
  • 14:28 - 14:32
    इस मूर्ख संहार का अंत कर सकते हैं, और
    करेंगे भी।
  • 14:33 - 14:34
    धन्यवाद
  • 14:34 - 14:39
    (तालियां)
Title:
क्यों हिंसा शहरों में समूह बनाती है -- और इसे कैसे घटाएं
Speaker:
थॉमस अब्त
Description:

अपराध अनुसंधानकर्ता और शिक्षक थॉमस अब्त का मानना है की अमेरिका में हिंसा को घटाना एक नामुमकिन और असभ्य चुनौती नहीं है जैसा की काफी लोग सोचते हैं। वो ये समझाते हैं की शहरी हिंसा किस तरह से "चिपचिपी" है -- यानी की ये बहुत छोटे लोगों और जगहों की संख्या में समूह बनाती है -- और हमें एक परिवर्तनात्मक और केंद्रित रणनीति दिखाते हैं जो की हमारे शहरों को अभी ज़्यादा सुरक्षित बना सकती ही वो भी बिना बड़े बजट या नए कानूनों के।

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Video Language:
English
Team:
closed TED
Project:
TEDTalks
Duration:
14:51

Hindi subtitles

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