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अनुपम मिश्रा: जल संरक्षण की प्राचीन विद्वता

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    भावनाएँ हैं, अतः हमें तुरंत रेगिस्तान की ओर नहीं बढ़ना चाहिए।
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    इसलिए, पहले, एक छोटा सी घरेलू घोषणा:
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    कृपया आपके दिमाग में इंस्टॉल
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    सही अंग्रेजी जाँचने वाले प्रोग्राम्स
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    बंद कर दें।
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    (तालियाँ)
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    तो, गोल्डन डेज़र्ट, भारतीय रेगिस्तान में आपका स्वागत है।
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    जहाँ देश में सबसे कम बारिश होती है,
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    न्यूनतम वर्षा।
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    यदि आप इंच से भलीभाँति परिचित हैं, नौ इंच,
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    सेण्टीमीटर, 16 इंच।
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    जलस्तर 300 फ़ीट, 100 मीटर नीचे है।
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    और अधिकांश भागों में यह खारा है, पीने योग्य नहीं है।
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    तो आप हैण्ड पम्प नहीं लगा सकते या कुएँ नहीं खोद सकते,
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    अधिकांश गाँवों में बिजली भी नहीं है।
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    लेकिन मान लें कि आप हरित तकनीक का उपयोग करते हैं, सौर पम्प --
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    वे इस क्षेत्र में उपयोगी नहीं हैं।
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    तो, गोल्डन डेज़र्ट में आपका स्वागत है।
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    इस भूभाग में बादल कभी कभी ही आते हैं।
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    लेकिन यहाँ बोली जाने वाली भाषा में बादलों के 40 अलग-अलग नाम हैं।
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    वर्षा संरक्षण की यहाँ कई तकनीकें हैं।
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    यह नया काम है, एक नया कार्यक्रम है।
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    लेकिन डेज़र्ट सोसायटी के लिए
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    यह कोई कार्यक्रम नहीं; उनकी ज़िन्दगी है।
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    और वे बहुत तरीकों से बारिश जमा करते हैं।
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    तो, यह है वो पहला उपकरण जिसका वे उपयोग करते हैं
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    वर्षा संरक्षण में।
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    इन्हें कुण्ड कहा जाता है; कुछ जगह इन्हें टांका भी कहते हैं।
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    और आप देख सकते हैं इन्हें एक बनावटी
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    जलग्रह जैसा बनाया गया है।
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    रेगिस्तान है, रेत का टीला, एक छोटा मैदान।
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    और यह खड़ा हुआ बड़ा प्लेटफ़ॉर्म।
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    आप देख सकते हैं छोटे छेद
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    पानी इस जलग्रह में गिरता है,
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    और वहाँ एक ढ़लान है।
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    कई बार हमारे इंजीनियर और वास्तुकार
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    स्नानघर में ढ़लान पर ध्यान नहीं देते
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    लेकिन यहाँ वे अच्छी तरह से देंगे।
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    और पानी जहाँ जाना चाहिए वहीं जाता है।
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    और यह 40 फ़ीट गहरा है।
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    अच्छे से वाटरप्रूफ़िंग की गई है,
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    हमारे शहर के ठेकेदारों से बढ़िया,
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    क्योंकि पानी की कोई बूँद भी इसमें बर्बाद नहीं जानी चाहिए।
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    ये एक मौसम में 100 हज़ार लीटर पानी इकट्ठा कर लेते हैं।
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    और शुद्ध पीने का पानी।
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    उसके नीचे बहुत खारा पानी है।
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    लेकिन अब साल भर के लिए आपके पास यह है।
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    ये हैं दो घर।
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    एक शब्द है जिसे हम अधिकतर काम में लेते हैं कानूनन।
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    क्योंकि हमें लिखी हुई चीज़ों की आदत है।
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    लेकिन यह है जो कानून में लिखित नहीं है।
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    और लोग अपने घर बनाते हैं,
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    और पानी के टैंक।
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    इस स्टेज की तरह वे अपने प्लेटफ़ॉर्म खड़े करते हैं।
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    वास्तव में वे 15 फ़ीट नीचे जाते हैं,
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    और छत से पानी इकट्ठा करते हैं,
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    एक छोटा पाइप है, और अपने आँगन से।
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    अच्छे मानसून में यह 25 हज़ार के लगभग संरक्षण भी कर सकता है।
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    एक और बड़ा,
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    यह निस्संदेह एक पूर्णतया रेगिस्तानी इलाके से बाहर है।
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    यह जयपुर के पास है। इसे कहते हैं जयगढ़ किला।
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    और यह एक मौसम में 60 लाख गैलन बारिश का पानी इकट्ठा कर सकता है।
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    यह 400 साल पुराना है।
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    अर्थात, 400 सालों से यह हर मौसम में लगभग
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    साठ लाख गैलन पानी आपको दे रहा है।
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    आप इस पानी की कीमत का अंदाज़ा लगा सकते हैं।
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    यह 15 किलोमीटर लंबी नाल से पानी लाता है।
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    देखिये एक आधुनिक सड़क, मुश्किल से 50 साल पुरानी।
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    कभी-कभी टूट जाती है।
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    लेकिन ये 400 साल पुरानी नाल, जिसमें पानी बहता है,
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    कई पीढ़ियों से बरकरार है।
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    हाँ यदि आप अन्दर जाना चाहते हैं, तो दोनों दरवाज़े बंद हैं।
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    लेकिन TED वालों के लिए ये खोले जा सकते हैं।
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    (हँसी)
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    हम उनसे निवेदन कर सकते हैं।
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    यहाँ एक आदमी आ रहा है
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    पानी के दो कनस्तरों के साथ।
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    और पानी का स्तर -- ये खाली कनस्तर नहीं हैं --
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    जल स्तर यहाँ तक है।
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    इससे कई नगरपालिकाओं को जलन हो सकती है,
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    पानी के रंग, स्वाद, शुद्धता से।
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    और ये उस तरह का है जिसे वे ज़ीरो बी पानी कहते हैं,
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    क्योंकि यह बादलों से आता है,
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    शुद्ध आसव पानी।
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    हम एक छोटे से कमर्शियल ब्रेक के लिए रुकेंगे,
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    और फिर पारंपरिक प्रणालियों पर वापस आएँगे।
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    सरकार ने सोचा कि यह बहुत
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    पिछड़ा इलाका है और हमें चाहिए कि
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    एक मल्टी-मिलियन डॉलर का प्रोजेक्ट लाएँ
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    हिमालय से पानी लाने के लिए।
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    यही कारण है कि मैंने कहा यह एक कमर्शियल ब्रेक है।
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    (हँसी)
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    लेकिन हम वापस आ गए हैं, दोबारा,
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    पारंपरिक मुद्दे के साथ।
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    तो, 300, 400 किलोमीटर दूर से पानी,
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    जल्द ही ऐसा होता है।
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    बहुत से भाग में, पानी के पौधे
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    इस तरह से इन बड़े नाल को ढ़क लेते हैं।
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    हाँ कुछ इलाके हैं जहाँ पानी पहुँच रहा है,
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    मैं नहीं कह रहा कि यह बिल्कुल नहीं पहुँच रहा।
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    लेकिन सबसे बाद का छोर, जैसलमेर इलाका,
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    आप बीकानेर में इस तरह की चीज़ें देखेंगे:
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    जहाँ पानी के पौधे नहीं उग सके
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    इन नालों में रेत बह रही है।
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    इसका बोनस ये है कि आपको इसके आसपास वन्यजीव मिल सकते हैं।
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    (हँसी)
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    फ़ुल-पेज विज्ञापन थे,
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    कुछ 30 साल, 25 साल पहले जब यह नाल आई।
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    जिनमें कहा गया था कि अपनी पारंपरिक प्रणालियों को हटा दो,
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    ये नए सीमेण्ट टैंक आपको पाइप का पानी प्रदान करेंगे।
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    यह एक सपना है। और यह एक सपना ही हो गया।
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    क्योंकि पानी इन इलाकों तक नहीं पहुँच सकता था।
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    और लोगों ने अपने ही ढ़ाँचे को पुनः बनाना शुरु किया।
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    ये सब पारंपरिक पानी के ढाँचे हैं,
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    जिन्हें एक छोटे से समय में हम नहीं समझ सकेंगे।
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    लेकिन आप देख सकते हैं कि इन पर कोई औरत नहीं खड़ी है।
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    (हँसी)
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    और यहाँ काम कर रही है।
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    (तालियाँ)
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    जैसलमेर। रेगिस्तान का दिल।
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    यह शहर 800 साल पहले बनाया गया था।
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    उस समय जब शायद ही
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    मुम्बई या दिल्ली,
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    या चेन्नई या बैंगलोर थे।
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    तो, सिल्क रूट के लिए यह टर्मिनल पॉइंट था।
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    अच्छे से जुड़ा हुआ, 800 साल पहले, यूरोप से।
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    हम में से कोई भी यूरोप नहीं जा सकता था,
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    लेकिन जैसलमेर इससे अच्छे से जुड़ा था।
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    और यह है 16 सेण्टीमीटर वाला क्षेत्र।
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    बहुत ही कम वर्षा,
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    पर इन क्षेत्रों में ज़िंदगी काफ़ी रंगो भरी है।
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    इस स्लाइड में आपको पानी नहीं मिलेगा।
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    लेकिन वह अदृश्य है।
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    यहाँ से कोई नदी या नाला
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    कहीं बह रहा है।
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    या, यदि आप रंग भरना चाहें, तो आप सारा नीला भर सकते हैं
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    क्योंकि इस तस्वीर में दिख रही सभी छतें
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    बारिश की बूँदें इकट्ठी करती हैं
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    और कमरों में जमा करती हैं।
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    लेकिन इस प्रणाली के अलावा,
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    उन्होंने इस कस्बे में 52 सुन्दर पानी के होद बनाए।
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    और जिन्हें हम प्राइवेट पब्लिक पार्टनरशिप कहते हैं
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    आप इसमें एस्टेट भी जोड़ सकते हैं।
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    तो, एस्टेट, पब्लिक और प्राइवेट एण्टरप्राइज़
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    इस सुन्दर पानी की होद को बनाने में एक साथ काम करते हैं।
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    और यह सभी मौसमों के लिए एक प्रकार की पानी की होद है।
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    आप इसकी प्रशंसा करेंगे। साल भर इस सुंदरता को निहार सकते हैं।
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    भले ही पानी का स्तर ऊपर या नीचे हो,
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    सुंदरता बनी रहती है।
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    एक और पानी की होद, निश्चित ही सूखती है,
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    गर्मी के दौरान,
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    लेकिन आप देख सकते हैं कि पारंपरिक समाज किस प्रकार
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    दिल से इंजीनियरिंग में सुंदरता मिलाता है।
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    ये प्रतिमाएँ, शानदार प्रतिमाएँ,
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    आपको पानी के स्तर की जानकारी देती हैं।
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    जब बारिश होती है तो पानी इस टैंक में भरना शुरू हो जाता है,
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    और इन सुन्दर प्रतिमाओं को डुबा लेता है
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    जिसे आज हम अंग्रेजी में "मास कम्यूनिकेशन" कहते हैं।
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    यह मास कम्यूनिकेशन के लिए था।
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    कस्बे का हर आदमी जान लेगा कि हाथी डूब चुका है,
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    मतलब अब सात महीने, नौ महीने या 12 महीने तक
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    इसमें पानी रहेगा।
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    और फिर वे आएँगे और कुण्ड की पूजा करेंगे,
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    सम्मान देंगे, धन्यवाद देंगे।
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    एक और छोटी पानी की होद, जिसे जसेरी कहते हैं।
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    इसका अंग्रेजी में अनुवाद करना मुश्किल है,
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    विशेषकर मेरी अंग्रेजी में तो।
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    लेकिन सबसे निकट होगा "ग्लोरी", एक प्रतिष्ठा।
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    रेगिस्तान में इस छोटी पानी की होद की प्रतिष्ठा है
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    कि ये कभी नहीं सूखती।
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    सूखे की गंभीर परिस्थितियों में भी
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    किसी ने नहीं देखा कि ये पानी की होद
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    सूख गई हों।
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    और संभवतः वे भविष्य भी जानते थे।
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    यह लगभग 150 साल पहले बनाई गई थी।
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    लेकिन संभवतः वे जानते थे कि छ नवंबर 2009 को
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    एक TED ग्रीन व ब्लू सेशन होगा,
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    इसलिए उन्होंने इसे ऐसा रंग दिया है।
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    (हँसी)
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    (तालियाँ)
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    सूखी होद। बच्चे इस पर खड़े हैं
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    इस यंत्र का वर्णन करना बहुत मुश्किल है।
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    इसे कुँई कहते हैं। जैसे धरातल का पानी और नींव का पानी होता है।
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    लेकिन यह नींव का पानी नहीं है।
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    नींव का पानी आप कुएँ से प्राप्त कर सकते हैं।
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    लेकिन यह कोई सामान्य कुआँ नहीं है।
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    यह वो नमी सोखता है
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    जो मिट्टी में होती है।
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    और उन्होंने इस पानी को तीसरे रूप में बदला है जिसे रेजानी कहते हैं।
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    और इसके नीचे जिप्सम की पट्टी चलती है।
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    यह धरती माँ द्वारा जमा किया गया था,
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    कुछ 30 लाख साल पहले।
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    और जहाँ यह जिप्सम की पट्टी है
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    वे इस पानी को जमा कर सकते हैं।
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    यह वही सूखी पानी की होद है,
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    इस समय, आपको कोई रानी नहीं दिखेगी;
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    वे सब विलीन हो चुकी हैं।
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    लेकिन जब पानी नीचे चला जाता है तो वे
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    उन प्रतिमाओं से पानी ले पाते हैं, साल भर।
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    इस साल केवल छ सेण्टीमीटर वर्षा ही हुई।
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    छ सेण्टीमीटर वर्षा,
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    लेकिन वे आपको टेलीफ़ोन कर सकते हैं
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    कि यदि आपको अपने शहर में पानी की समस्या है,
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    दिल्ली, मुम्बई, बैंग्लोर, मैसूर,
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    कृपया हमारे छ सेण्टीमीटर वाले क्षेत्र में आएँ, हम आपको पानी दे सकते हैं।
  • 11:34 - 11:35
    (हँसी)
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    वे इसे कैसे बनाए रखते हैं?
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    तीन बातें हैं: विचार की योजना बनाना,
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    वास्तविक चीजें बनाना, और उन्हें बनाए रखना।
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    यह एक संरचना है बनाए रखने के लिए,
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    सदियों के लिए, पीढ़ियों द्वारा, बिना किसी विभाग के,
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    बिना किसी कोष के,
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    तो रहस्य है "श्रद्धा", आदर।
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    आपकी अपनी चीज़, निजी सम्पत्ति नहीं,
  • 12:01 - 12:04
    मेरी सम्पत्ति, हर बार।
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    तो, यह पत्थर स्तंभ
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    आपको बता देंगे कि आप एक पानी की होद वाले क्षेत्र में आ गए हैं।
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    थूके नहीं, कुछ गलत न करें,
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    ताकि यह साफ़ पानी भरा जा सके।
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    एक और स्तंभ, पत्थर स्तंभ आपकी दायीं ओर।
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    यदि आप ये पांच छ सीढियाँ चढ़ते हैं
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    तो आपको कुछ बढ़िया दिखाई देगा।
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    यह ग्यारहवीं सदी में बनाया गया था।
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    और आपको थोड़ा नीचे जाना होगा।
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    यूँ कहें कि यह तस्वीर हज़ार शब्द कहती है,
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    तो हम एक हज़ार शब्द अभी कह सकते हैं,
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    और एक हज़ार शब्द।
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    यदि पानी का स्तर नीचे जाता है,
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    आपको और सीढियाँ मिल जाती हैं।
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    यदि यह ऊपर आता है, तो कुछ डूब जाती हैं।
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    तो, साल भर
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    यह सुन्दर संरचना आपको खुशी देती है।
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    तीन तरफ़ ऐसी ही सीढियाँ, चौथी तरफ़
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    एक चार मंजिला इमारत
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    जहाँ आप कभी भी ऐसी TED सभाएँ लगा सकते हैं।
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    (तालियाँ)
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    माफ़ कीजियेगा, ये संरचनाएँ किसने निर्मित कीं?
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    वे आपके सामने हैं।
  • 13:14 - 13:18
    हमारे बेहतरीन सिविल इंजीनियर, बेहतरीन योजना बनाने वाले,
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    बेहतरीन वास्तुकार।
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    हम कह सकते हैं कि इन्हीं के कारण,
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    उनके पूर्वजों के कारण,
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    भारत ने पहला इंजीनियरिंग कॉलेज खोला
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    1847 में।
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    उस समय कोई इंग्लिश मीडियम स्कूल नहीं थे,
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    बल्कि हिंदी स्कूल भी नहीं, कोई स्कूल नहीं।
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    लेकिन इन लोगों ने ईस्ट इंडिया कम्पनी को विवश किया,
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    जो यहाँ व्यापार करने आए थे, एक गंदा व्यापार...
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    (हँसी)
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    इंजीनियरिंग कॉलेज खोलने नहीं,
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    लेकिन इनकी वजह से, पहला इंजीनियरिंग कॉलेज बनाया गया
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    एक छोटे गाँव में शहर में नहीं।
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    आखिरी बिंदु, हम सब जानते हैं कि हमारे प्राथमिक स्कूलों में
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    ऊँट रेगिस्तान का जहाज होता है।
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    तो, आप अपनी जीप से ढ़ूँढ़ सकते हैं,
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    ऊँट और ऊँटगाड़ी।
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    यह टायर हवाई जहाज का है।
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    तो आप देखें डेज़र्ट सोसायटी की सुंदरता
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    जो वर्षा का पानी जमा कर सकती है,
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    और ऐसा कुछ बना सकती है
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    एक जेट प्लेन के टायर से,
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    ऊँटगाड़ी के उपयोग हेतु।
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    आखिरी तस्वीर, यह एक टेटू है,
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    2000 साल पुराना टेटू।
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    इसका उपयोग शरीर पर किया जाता था।
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    एक समय टेटू
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    कुछ ब्लैक लिस्ट हो गया था
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    कुछ बुरी चीज़, लेकिन अब वापस आ गया।
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    (हँसी)
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    (तालियाँ)
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    आप इस टेटू को कॉपी कर सकते हैं। मेरे पास इसके कुछ पोस्टर हैं।
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    (हँसी)
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    जीवन के केन्द्र में पानी है।
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    ये सुन्दर लहरें हैं।
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    ये सुन्दर सीढ़ियाँ हैं
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    जिसे हमने अभी एक स्लाइड में देखा था।
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    ये पेड़ हैं।
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    और ये फूल हैं जो
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    हमारे जीवन में खुशबू फैलाते हैं।
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    तो, यह रेगिस्तान का संदेश है।
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    आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
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    (तालियाँ)
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    क्रिस एण्डरसन: सबसे पहले तो मैं दुआ करता हूँ कि मैं भी आप जितना अच्छा बोल सकूँ, सच में, किसी भी भाषा में।
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    (तालियाँ)
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    ये शिल्पकारी और संरचनाएँ बहुत प्रेरणा देने वाली हैं।
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    क्या आपको लगता है कि इनका उपयोग और कहीं किया जा सकता है,
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    ताकि इससे दुनिया कुछ सीख पाए?
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    या यह इस जगह के लिए ही सही है?
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    अनुपम मिश्रा: नहीं, मूल उद्देश्य है कि
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    अपने इलाके में गिरने वाले पानी को काम में लेना।
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    इसलिए, कुण्ड, खुली होद सब जगह हैं,
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    श्रीलंका से कश्मीर तक, अन्य जगहों पर भी।
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    और ये टाँके, जो पानी जमा करते हैं,
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    दो तरह के हैं।
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    एक पुनः बनाते हैं और एक हैं जो जमा करते हैं।
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    तो, यह उस भू-भाग पर निर्भर करता हैं।
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    लेकिन कुँई, जो जिप्सम बेल्ट को काम में लेती है,
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    के लिए आपको कैलेण्डर में पीछे जाना होगा,
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    तीस लाख साल पहले।
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    यदि वहाँ ऐसा हुआ तो उसे अब भी किया जा सकता है।
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    वरना, नहीं हो सकता।
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    (हँसी)
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    (तालियाँ)
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    CA: आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
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    (तालियाँ)
Title:
अनुपम मिश्रा: जल संरक्षण की प्राचीन विद्वता
Speaker:
Anupam Mishra
Description:

ज्ञान और चतुराई युक्त, अनुपम मिश्रा बता रहे हैं जल संरक्षण हेतु गोल्डन डेज़र्ट के लोगों द्वारा सदियों पहले बनाए गए इंजीनियरिंग के अद्भुत निर्माणों के बारे में। ये निर्माण आज भी उपयोगी हैं -- और कुछ संदर्भ में आधुनिक जल परियोजनाओं से बेहतर भी।

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Video Language:
English
Team:
closed TED
Project:
TEDTalks
Duration:
16:55
Vineet Choraria added a translation

Hindi subtitles

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