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5 नवम्बर, 2020
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को यूनाइटेड किंगडम में लॉक डाउन लग गया था |
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वे कोविड-19 के बढ़े मामलों को रोकने की
हर कोशिश कर रहे थे |
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और, अगर आप मामलों के चार्ट को देखें |
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तो लगता था की बचाव कार्य काम कर रहा है |
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लेकिन लॉक डाउन के सामान नियमों के बावजूद
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केंट , जो लन्दन का बाहरी हिस्सा है,
में इन्फेक्शन के केसेस बढ़ते जा रहे थे |
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शुरूआती दिसंबर में जब सब जगह केसों में
कमी आयी ,तो देश में पाबंदियो में
ढील दी गई |
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और तब ये हुआ |
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इस समय तक वैज्ञानिकों को यह
एहसास नहीं हुआ था
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की केंट मे कही , वायरस ने अपने आप को
ही बदल दिया है |
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ये वायरस का नया रूप था |
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अब वो और संक्रामक हो गया था |
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और फैल रहा था |
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जबतक वैज्ञानिक उसको कोई नाम देते,तबतक
दक्षिण -पूर्वी इंग्लैंड में फैल चुका था |
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दो महीनों बाद, वो 30 अन्य देशों में फ़ैल
चूका था
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पाँच महीने बाद, वह अमेरिका मे पाया जाने
वाला सबसे आम वायरस बन गया था |
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उसके बाद, दुनिया में जगह जगह पर इसके दूसरे
दूसरे वैरिएंट आने लगे
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तो फिर ये अब क्यो उभर रहे हैं ?
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और महामारी के लिए इसका क्या मतलब हो
सकता है ?
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वायरस को समझना बहुत आसान है
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वह मूलतः अनुवांशिक पदार्थ से घिरा हुआ
प्रोटीन का एक कवच है
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जो डीएनए या आरएनए हो सकता है
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यह अनुवांशिक पदार्थ उन कणों से बना
होता है
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जिसे अक्षरों के क्रम में दिखाया जा सकता
है ,जैसे की ये,
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जिसके हर कोड के भाग में एक निर्देश
होता है
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जिससे वो एक विशेष प्रोटीन बनता है,जो
वायरस को काम करने में मदद करता है
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वायरस अपने आप को शक्तिशाली बनाने के
उद्देश्य से काम करता है |
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ये काम आसान तो है , पर वायरस ये खुद
नहीं कर सकता
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तो इसलिए ये आपके शरीर का इस्तेमाल करता है
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हरबार वायरस किसी को संक्रमित करता है,तो
उसकी कोशिकाओं की मदद से अपने को बढ़ाते
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हुए कईबार अपने जटिल कोड की कॉपी बनाता
रहता है |
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पर आखिर , वो एक गलती करता है ,
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की कभी कभी वो एक कण छोड़ या जोड़ देता है
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और कभी कभी उसको अलट पलट कर देता है
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इसे संरचना परिवर्तन कहते हैं
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और यह वायरस बनाने के निर्देशों में थोड़ा
बदलाव करता है।
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यह बदला हुआ वायरस, एकप्रकार के नये
वायरस का रूप होता है
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चुकीं वायरस लगातार अपने आप को बढाने में
लगा रहता है ,
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तो लाज़मी है की वो समय समय पर अपने को
बदलता रहता है
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उदाहरण के तौर पे , यह चार्ट SARS_CoV2
द्वारा दिसंबर 2019 से
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लगातार किये परिवर्कोतनों को दिखता है
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अधिक्तम ,इन परिवर्तनों से कोई नुक्सान
नहीं होता बल्कि वायरस कमजोर हो जाता है
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और बिना कुछ खास अंतर किये के ये अपने आप
नष्ट हो जाते हैं
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पर कभी कभी वायरस का किया परिवर्तन हम पर
भारी पड़ जाता है
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वैज्ञानिकों ने सितम्बर 2020 में SARS_CoV2
के साथ यही ध्यान देना शुरू किया |
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"ये जो आप विशेष परिवर्तन देख
रहे है इसने वायरस को मानव
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रिसेप्टर से बंधने और मानव कोशिकाओ में
प्रवेश करने के लिए बेहतर बना दिया है "
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कोरोनावायरस नोकीले प्रोटीन से
ढके होते हैं जो
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उन्हें मानव कोशिकाओं से बंधने व संक्रमित
करने में मदद करते हैं
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बात ये है की, ये बंधन बिलकुल सही नहीं
बैठता
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इसलिए यह हमेशा कोशिकाओं का सुरक्षा कवच
तोड़ नहीं पता
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लेकिन B.1.1.7 वैरिएंट ,जिसका नाम
वैज्ञानिकों ने बाद में "अल्फा" रखा,
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उसने अपने स्पाइक प्रोटीन वैरिएंट
में बहुत परिवर्तन किये हैं
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ऐसे परिवर्तन जिससे वायरस आसानी से मानव
कोशिकओं से बंध जाए
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इसी वजह से वायरस और संक्रामक हो गया
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जिसके कारण यह दुनिया भर में कई स्थानों
पर एक प्रमुख प्रजाति बन गया
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लेकिन अगर SARS_CoV2 लगातार अपने में
परिवर्तन कर रहा है तो
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अल्फा वैरिएंट जैसे वैरिएंट आज अचानक
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इतने खतरनाक कैसे हो गाए ?
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ये ध्यान रखना जरूरी है की वायरस अपने आप
इतनी जल्दी अपने में बदलाव नहीं ला सकता
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ऐसा नहीं है की वायरस किसी योजनाबद तरीके
से कोशिकाओं मे बदलाव लता है
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क्योंकि वायरस मे परिवर्तन अनियमित तरीके
से होता है
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पर जितने समय तक वायरस रहेगा , उतने
ज्यादा लोगों को संक्रमित करेगा और उतना
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परिवर्तन अपने में लाता रहेगा
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और जितना बदलाव बढता रहेगा उतना ही ज्यादा
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अधिक ख़तरनाक वायरस के विकसित होने की
संभावना बनी रहेगी |
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ये चार वेरिंट्स विश्व स्वास्थ्य संगठन के
लिए "चिंता का विषय " बन गए है
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इन सभी में स्पाइक प्रोटीन वाला परिवर्तन
आया है
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इस सूची में सबसे हाल ही में शामिल डेल्टा
को "डबल म्यूटेंट" कहा गया है,
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क्योंकि,इसमें कई अलग अलग परिवर्तन हुए है
इनके दो परिवर्तन पहले भी देखे जा चुके हैं
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ऐसा लगता है की इन परिवर्तनों ने वायरस को
और संक्रामक बना दिया है
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और इसका यह परिवर्तन अन्य दो वरिंट्स में
भी पाया गया है जिसकी
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वजह से कोविद 19 से संक्रमित लोगों को फिर
से संक्रमित करने मे वायरस को आसानी हो गई
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मतलब,जोदो परिवर्तन हुए है वो हमारीअंदरूनी
प्रतिरोधक क्षमता को चकमा देने के लिए हुए है
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सौभग्य से,जो प्रतिरोधक क्षमता हमें टीकों
से मिलती है
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वो हमरे अपने शरीर की प्रतिरोधक क्षमता से
कहीं ज्यादा मजबूत है
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इसलिए, हम ऐसे वेरिएंट देख सकते हैं जो
टीकों को कुछ हद तक कम प्रभावी बनाते हैं,
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अधिकांश विशेषज्ञ मानते है ऐसा कोई वायरस
नहीं होगा जो हमारे टीके से बच सके
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पर इसका ये मतलब नहीं ,की ऐसा हो
नहीं सकता
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"यदि आप वायरस को बार बार दोहराने का मौका
और अधिक समय देते हैं
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तो वह एक बहुत बड़े विकसित प्रतिरूप
की जगह ले लेगा
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और जिस समस्या का समाधान हमने -
टीकाकरण
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के रूप में व्यापक रूप से प्रतिरक्षा को
फैलाना दिया है |"
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भले ही SARS_CoV2 उस जगह तक न पहुचें
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पर जबतक महामारी चलती रहेगी , तबतक
वायरस भी फैलता रहेगा
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और वो अपनी प्रतियां बनता रहेगा ,
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तो, अगर हम इन वरिंट्स को रोकना चाहते है ,
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तो हमें वायरस को रोकना पड़ेगा |
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वायरस बन तो गाया , पर वो किसी ऐसी चीज़ में
नहीं बदला कि हम उसे पहचान न सकें
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जो हमरे पास टीका है , वो अभी भी सारे
वरिंट्स से हमारी सुरक्षा करेगा
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समस्या ये है की , हम इन टीकों को हरजगह
दुनिया में तेजी से नहीं पहुँचा पा रहे |
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जो वायरस को बदलने के लिए अधिक समय
दे रहा है,
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और दुनिया के सबसे संक्रमित हिस्से टीके का
अभी भी इंतज़ार कर रहे हैं
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वरिंट्स का इस तरह बढना याद दिलता है की
महामारी अभी खत्म नहीं हुई है |
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भले ही हममें से कुछ लोगों को ऐसा
मानना है की ,"हमें इसे रोकना होगा,
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क्योंकि हमें ऐसा वैरिएंट नहीं चाहते
हमारी प्रतिरक्षा को प्रभावित करे
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और इसलिए हमें इसे हर जगह अपना
प्रतिरूप बनाने से रोकना होगा |"