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हैलो।
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मेरा नाम लतीफ़ा अल मख़तूम है।
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मेरा जन्मदिवस दिसंबर 5, 1985 है।
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मेरी माँ हुरिया अहमद लमारा हैं
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वह अल्जीरिया से हैं।
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मेरे पिता संयुक्त अरब अमीरात के प्रधानमंत्री हैं
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और दुबई के शासक,
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मोहम्मद बिन रशीद सईद अल मख़तूम।
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उनकी तीन बेटियों का नाम लतीफ़ा है।
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मैं मँझली हूँ।
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यानी एक मुझसे बड़ी हैं और एक छोटी है।
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उनकी दो बेटियाँ मरियम नाम से भी हैं।
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कुल मिलाकर मेरे तीस भाई और बहनें हैं।
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यह सब बताना ज़रूरी था
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क्योंकि इस वीडियो को यह कह कर बदनाम या ख़ारिज किया जा सकता है
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कि "नहीं, बस एक लतीफ़ा यहाँ है और दूसरी वहाँ"
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जी हाँ, तीन लतीफ़ा हैं और मैं उनमें से एक हूँ।
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मैं बीच वाली लतीफ़ा हूँ।
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मेरी सगी बहनें मेथा और शम्सा हैं।
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दोनों मुझसे बड़ी हैं
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और माजिद वह मुझसे कम आयु के हैं।
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और मैं इस वीडियो को बना रही हूँ क्योंकि यह मेरा आख़िरी वीडियो साबित हो सकता है।
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हाँ।
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बहुत जल्द, मैं किसी तरह.. यहाँ से जा रही हूँ।
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और नतीजा क्या होगा पता नहीं, लेकिन
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मुझे निन्यानवे प्रतिशत यकीन है कि यह हो सकेगा।
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और अगर नहीं हो पाया तो यह वीडियो मेरे काम आ सकता है।
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क्योंकि मेरे पिता सिर्फ अपनी प्रतिष्ठा की परवाह करते हैं।
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वह अपनी प्रतिष्ठा के लिए जानें भी ले सकते हैं।
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उन्हें.. उन्हें केवल अपने आपकी और अपने अहम की परवाह है।
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तो यह वीडियो मेरा जीवन बचा सकता है।
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लेकिन अगर आप इस वीडियो को देख रहे हैं तो यह एक बुरी ख़बर है।
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या तो मेरी जान जा चुकी है या मैं एक बहुत, बहुत,
बहुत बुरी स्थिति में हूँ।
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तो मैं कहाँ से शुरू करूँ?
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साल 2000 में,
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मेरी बहन शम्सा जब वह इंग्लैंड में छुट्टियों पर घूमने गई हुई थीं।
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तब वह अठारह साल की थीं और उन्नीसवाँ साल चल रहा था।
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वो वहाँ से भाग गईं।
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और वो दो महीने, जिनमें वो आज़ाद रह पायी
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हम संपर्क में थे और मैं उस वक्त दुबई में थी
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अपनी माँ और दूसरी बहन के साथ।
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जबकी वह यात्रा पर अपनी सौतेली माँ और..
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और उन सभी के साथ गयी थी।
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इसलिए वो..
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वो वहाँ से भागी क्योंकि दुबई में उसके पास ज़्यादा आज़ादी नहीं थी।
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उसके पास वह स्वतंत्रता नहीं थी जैसी एक सभ्य दुनिया में किसी को भी हासिल
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हुआ करती है। जैसे
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कार चला पाना या बाहर निकल पाना या अपने भविष्य से जुड़े कोई
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भी निर्णय ले पाना।
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अपने निर्णय खुद लेने की स्वतंत्रता आप मानिए कि यहाँ हमारे पास है ही नहीं।
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तो जो कुछ आपके पास हमेशा से रहा है, आप उसका महत्व नहीं समझ पाते। और जो चीज़ आपके पास कभी न रही हो वो आपके लिए बहुत मायने रखती है।
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तो जी हाँ, उसे भागना पड़ा और इस दौरान वह हर समय मेरे संपर्क में थी।
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मैं उस समय चौदह साल की थी।
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और हाँ, शम्सा ..
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मेरे लिए लगभग एक माँ जैसी थी।
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हाँ, वह मेरी बड़ी बहन है पर
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मैंने उसे हमेशा अपनी माँ जैसा भी माना क्योंकि उसने हमेशा मेरा ख्याल रखा।
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मैं हर एक दिन उससे बात किया करती थी।
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तो हाँ उसके जाने के बाद का वक्त मेरे लिए मुश्किल था।
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मैं उसके लिए खुश थी, लेकिन साथ ही साथ मुझे उसकी फिक्र भी थी।
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और इसके साथ वो
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दुबई में अपने दोस्तों में से एक के संपर्क में आयी
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जिसका नाम लैला ?? हरब ?? है
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और वो लैला को बार बार कॉल किया करती थी।
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और मेरे पिता ने क्या किया की वो लैला के घर गए
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और उसे एक रोलेक्स का लालच देने की कोशिश की
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और कहा की वो उसका फोन टैप करना चाहते हैं
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ताकि शम्सा का सही सही पता लगा सकें
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और उन्होनें ऐसा ही किया।
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लैला ने शम्सा को इस बारे में आगाह किया, और बताया कि
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'मेरा फोन टैप किया गया है।'
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'वे तुम्हें खोजने की कोशिश कर रहे हैं। सावधान रहना।'
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और शम्सा ने इसके बारे में मुझे बताया और मैंने उससे कहा कि,
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'लैला को कॉल करना बंद करो। क्योंकि अगर तुम उसे कॉल करोगी तो वो तुम्हें ढूंढ लेंगे। '
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मुझे लगता है कि वह यू॰के॰ में बहुत अकेलापन महसूस कर रही थी।
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उसके पास बात करने के लिए और कोई नहीं था। और उसने लैला से बात करना जारी रखा।
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तो, हाँ दो महीने के बाद, उसे ढूंढ लिया गया।
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वह लगभग सड़कों पर जी रही थी
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और एक कार में कुछ लोग आए
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और उसके लड़ने, चिल्लाने के बाद भी, जबरन उसे पकड़ कर
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कार में कहीं ले गए
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और बाद में किसी तरह एक हेलिकॉप्टर से
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उसे फ्रांस पहुंचाया और फिर फ्रांस से दुबई ले आए।
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उसे प्लेन में बेहोश करके रखा गया।
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यह एक निजी जेट था, और किसी भी तरह की तलाशी नहीं की गई।
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उसे नशे में रखा गया और दुबई वापस लाया गया
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और एक इमारत में कैद कर दिया।
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इस इमारत को 'ख़ेमा' नाम से जाना जाता है, यह 'तम्बू' के लिए अरबी का शब्द है।
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लेकिन यह एक तम्बू नहीं, सिर्फ 'तम्बू' नाम भर है
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और
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यह इमारत ज़बील पैलेस में है,
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मेरी सौतेली माँ हिंद की संपत्ति।
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और उसे वहाँ तालाबंद करके रखा गया।
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और उस समय के दौरान,
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हम उसे कपड़े या और कुछ चीजें भेज सकते थे।
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तो, हमनें छुपाकर उसके लिए एक टेलीफोन भेज दिया।
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'हमनें' यानि में और मेरी गोद ली हुई बहन मोना
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मोना ?? अल लमारा ??
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हम उसके साथ संपर्क में थे और
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हमनें चोरी-छिपे टेलीफोन भेजा था ताकि उससे बात कर सकें।
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इस दौरान जब वो कैद थी,
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वह यू॰के॰ के कुछ पत्रकारों के संपर्क में आई
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और उन्होनें 'द गार्डियन' में यह ख़बर छाप दी।
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मुझे लगता है कि यह मई 2001 के आसपास का समय था, कब ख़बर छपी मुझे सही सही नहीं पता।
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ख़बरें..
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अगर आप गूगल पर 'शम्सा अल मख़तूम' नाम लिखें तो पहली ख़बर यही होगी।
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उसके भागने का सच और यह सब।
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ख़बर छपते ही मुझे लगता है कि उन्हें पता चल गया कि वो किसी के संपर्क में किसी तरह है या
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उसकी कोई मदद कर रहा था।
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तो पुलिस आई और उन्होनें मोना को उसकी यूनिवर्सिटी से उठा लिया
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और उससे पूछताछ की और उसे यातनाएँ दी गईं
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और मेरी बहन मेथा उसी दिन शाम को
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मेरे कमरे में आयी, और उसने कहा
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'मोना को पुलिस ले गयी है और वे उससे पूछताछ कर रहे हैं
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और उसे मारा-पीटा भी जा रहा है
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तुम शम्सा के बारे में क्या जानती हो? '
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और मेथा एक तरह से पुलिस जैसी पूछताछ कर रही थी।
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जैसे की
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मैं सवाल-जवाब करूंगी और तुम सब साफ-साफ बताओगी।
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मैंने कहा कि मैं कुछ नहीं जानती।
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और फिर.. ख़ैर
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मैंनें अपनी दूसरी गोद ली हुई बहन फातिमा को इस बारे में बताया
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फातिमा ?? लमारा ??
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जिसे एक अलग कैबिन में बंद रखा जाता था।
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उसे वहाँ रखा गया था ..
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यह अपने में एक और कहानी है।
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वह हमारी संपत्ति पर ही लेकिन एक अलग कैबिन में रहती थी, लेकिन तालाबंद करके।
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परिवार के बाकी लोगों से अलग-थलग, क्योंकि वह "शरारती" है।
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उसका शरारती व्यवहार।
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उसके विद्रोही-स्वभाव के कारण।
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तो कह सकते हैं की हमारे घर में उसे एक पिंजरे में रखा जाता था।
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ख़ैर .. मैं .. मैंने उसके लिए एक नोट लिखा था और
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नौकरानी को कहा उस तक पहुंचा देने के लिए
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उसके दरवाज़े के नीचे से सरका देने के लिए और उसने यही किया।
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और मैंने उसे बताया कि मोना को उठा लिया गया है और पुलिस उससे पूछताछ कर रही है
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और बाकी सब कुछ।
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और फिर फातिमा तो जैसे पागल हो गयी, उसने खिड़की तोड़ डाली .. वह .. वह ..
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दरवाज़ा।
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उसने खिड़की की चौखट उखाड़ दी और बाहर फेंक दी।
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उसे तोड़ डाला।
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वह बाहर निकल आई।
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एक चाकू उठा लिया।
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वह अली को धमका रही थी, जो एक खानसामे की तरह है
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लेकिन रिश्ते से भाई जैसा भी है
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मेरे पिता का दाहिना हाथ।
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तो एक तरह से कर्मचारियों का जिम्मा उसके पास था
या ऐसा ही कुछ।
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तो उसने एक चाकू ले लिया और वह उसको धमका कर कह रही थी कि
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'मैं मोना को देखना चाहती हूँ, मैं मोना को देखना चाहती हूँ'
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तो वे फातिमा को भी उठा ले गए।
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उसे भी जेल में डाल दिया और उसे भी यातनाएँ दीं।
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और फिर उन्हें पता चला कि उसे कुछ भी मालूम नहीं था।
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हमनें उसे नहीं बताया क्योंकि हम नहीं बता सकते थे कि हम शम्सा के संपर्क में थे।
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ख़ैर उस के बाद क्या हुआ, हाँ उस दिन मैंनें एक तरह से हर किसी को खो दिया।
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अपने सभी दोस्तों को, अपनी सभी .. अपनी बहनों को सब कुछ।
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मैंनें उस दिन हर किसी को खो दिया।
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यह .. यह मेरे लिए बहुत मुश्किल दिन था।
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और ज़ाहीर है मैंनें शम्सा के साथ अपना संपर्क खो दिया।
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तो लगभग एक साल बाद
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16 साल की उम्र में मैंने तय कर लिया है कि मुझे यहाँ से बचकर निकलना है।
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उस समय मेरे पास इंटरनेट नहीं था।
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नहीं था ..
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मैं बहुत .. यह साल 2002 की बात है।
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इंटरनेट था, लेकिन मेरे पास नहीं, मुझे इंटरनेट इस्तेमाल की इजाज़त नहीं थी।
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तो मेरे पास इंटरनेट नहीं था।
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मेरे पास फोन भी नहीं था।
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जो फोन था भी उसे मेरे दोस्त ने मुझे दिया था
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तो यह मेरे परिवार या किसी और के कहने पर मुझे नहीं दिया गया था।
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तो मैंने तय कर लिया कि मैं बचकर यहाँ से निकलूंगी।
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मुझे जाना है, मैं यू॰ए॰ई छोड़ दूँगी।
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मैं किसी दूसरे देश में एक वकील खोज लूँगी।
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या फिर ओमान चली जाऊँगी।
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मैं किसी भी तरह निकल भागूंगी और एक वकील खोजुंगी या कुछ और
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और शम्सा की मदद करूंगी।
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क्या होगा, ज़्यादा से ज़्यादा वे मुझे पकड़कर उसके साथ कैद कर देंगे।
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जेल में कम से कम मैं उसके साथ रहूँगी, उसे देख पाऊँगी और उसे पता रहेगा कि मैं खुश हूँ
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कि उसके साथ कोई है और वह कुछ भी ऐसा-वैसा नहीं करेगी।
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वह खुद को चोट नहीं पहुंचाएगी।
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उसकी बहन उसके साथ है, इसलिए वह ऐसा कोई भी कदम नहीं उठाएगी।
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तो..
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तो मैं सोच रही थी कि या तो मैं उसे मदद दिला सकूँ या मैं उसके साथ जेल में डाल दी जाऊँ।
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तो साल 2002 में मैं भाग निकली।
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और उन्होंने मुझे सीमा पर पकड़ा।
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और हाँ ..
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मैं बहुत, बहुत भोली थी मैंने सोचा था कि कोई भी पार जा सकता है।
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मैंने सोचा था कि .. वहाँ एक तरह की सीमा होगी और उसके बाद रेत या और कुछ ..
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मुझे यह तक नहीं पता था की सीमा दिखती कैसी है।
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मैं पूरी ज़िंदगी कभी सीमारेखा तक नहीं गयी थी।
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यह जान सकने के लिए मेरे पास इंटरनेट नहीं था।
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मुझे सलाह देने के लिए, बात करने के लिए कोई भी नहीं था।
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मैं नहीं कर पायी ..
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मैं पूरी तरह अकेली थी।
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मैं पास कोई भी नहीं था।
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मेरे आसपास किसी को ख़बर नहीं थी.. जैसे कि स्कूल में मेरे दोस्त..
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उन्हें पता नहीं था कि मैं किन हालात से गुज़र रही हूँ।
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मैं इसके बारे में किसी से बात नहीं कर सकती थी।
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तो, हाँ .. मुझे बाहर जाने की इजाज़त नहीं थी।
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मुझे बाहर जाने की इजाज़त नहीं थी.. जैसे मैं स्कूल तो जा रही थी।
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और कभी-कभी घुड़सवारी करने के लिए परिवार के अस्तबल जाने देते थे
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लेकिन इसके अलावा और कुछ नहीं और मैं सीधा अपने घर चली जाती थी।
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इसलिए मैंनें.. मेरे पास
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मैं..
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मुझे कुछ भी नहीं पता था।
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तो हाँ, मुझे सीमा पर रोक लिया गया और उसके बाद उन्हें पता चला कि मैं कौन हूँ।
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मुझे दुबई वापस ले जाया गया और मेरे पिता के मुख्य सहायक ने मुझे जेल में डाल दिया
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मेरे पिता के आदेश पर और उसके बाद उनके सीआईडी के लोगों ने, उन्होनें ..
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उन्होनें मुझे जेल में डाल दिया और मुझे यातनाएँ दी गयीं
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एक व्यक्ति ने मुझे पकड़कर रखा हुआ था, और दूसरा मुझे पीट रहा था..
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और उन्होनें यह बार-बार किया।
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पहली बार जब मुझे पीटा जा रहा था, मुझे दर्द महसूस नहीं हुआ
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क्योंकि मैं इतने सदमे में थी।
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मुझे आभास नहीं हुआ..
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ऐसा लग रहा था जैसे कोई तकिया रख कर मार रहा हो।
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मुझे दिख रहा था कि वे क्या कर रहे थे, लेकिन मैं ..
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मुझे लग रहा थी की क्या सिर्फ मेरे शरीर पर ज्यादती हो रही है?
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क्या हो रहा है?
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मुझे .. दर्द का आभास नहीं था क्योंकि मुझे लगता है कि मैं इतने
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ज़्यादा सदमे में थी और लंबे समय बीना नींद के
और मैं बस .. दर्द का पता ही नहीं लगा ..
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नहीं लगा ..
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और आधे घंटे तक मुझे पीटा गया।
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और उसके बाद जब मुझे यातना दी गयी तो
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पांच घंटे तक चला। मुझे बिस्तर से घसीट कर
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महल में किसी दूसरी जगह ले गए
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उस ही इमारत में,
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"ख़ेमा", तम्बू, जो एक तम्बू नहीं है।
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और फिर से मुझे यातना दी गयी।
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मुझे पता था कि यह कितने समय तक चला, क्योंकि मेरे पास एक घड़ी थी
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और उन्होंने मुझसे कहा कि तुम्हारे पिता ने हमें कहा है कि
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इसे तब तक पीटो जब तक इसकी जान न चली जाये।
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ये कहा है, तुम्हारे पिता ने।
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तुम्हारे पिता, दुबई के शासक, यह कहा उन्होनें।
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तो उनकी यह सार्वजनिक छवि जो वो दिखाने कि कोशिश कर रहें हैं, मानवाधिकार वगैरह
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यह सब बकवास है।
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इससे बुरा इंसान मैंने अपने जीवन में नहीं देखा।
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बुराई के अलावा कुछ नहीं
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उसमें ज़रा भी अच्छाई नहीं है।
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वह इतने सारे लोगों की मृत्यु के लिए जिम्मेदार है
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और कई लोगों की ज़िंदगी बर्बाद कर चुका है।
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उसे किसी की भी परवाह नहीं है।
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वह केवल, अपनी छवि, अपनी प्रतिष्ठा की परवाह करता है
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और बड़ी आसानी से किसी की भी जान ले सकता है
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लेकिन वह ऐसा खुद नहीं करता।
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वह .. वह अपने हाथ गंदे नहीं करता।
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यह सब करने के लिए उसके अलग लोग हैं।
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उसे परवाह नहीं है।
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मेरे चाचा की मृत्यु होने के बाद, उसने उनकी पत्नियों में से एक को मार डाला
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..उसे जान से मार डाला
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हर किसी को पता है, वो मोरक्को से थी।
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और वो भी किस वजह से ..
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क्योंकि उसका व्यवहार अपमानजनक था।
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वो बहुत..
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मुझे लगता है कि वो कुछ ज़्यादा बोल जाती थी
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और मेरे पिता को उससे खतरा महसूस होता था।
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तो उसे मार डाला गया।
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बेशक, अगर मेरे चाचा होते तो यह नहीं होता,
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लेकिन मेरे चाचा की मृत्यु के बाद वो यह कर सकता था।
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हर कोई जानता है कि वह किस तरह का व्यक्ति है।
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तो कुल मिलाकर मैं तीन साल और चार महीने के लिए कैद में थी।
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मुझे जून 2002 में जेल में डाला गया था और अक्टूबर 2005 में मैं बाहर आई।
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आप खुद ही अंदाज़ा लगा लीजिये।
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लेकिन एक सप्ताह के लिए 2003 में मैं जेल से बाहर आयी थी।
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उन्होंने मुझे घर भेज दिया,
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"घर" यह एक घर नहीं है।
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यह मकान है, मेरी माँ का मकान।
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उन्होंने मुझे एक सप्ताह के लिए वहाँ वापस भेजा
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और ये सब सपने जैसा था।
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जब मैं अपने घर पहुँची अपनी माँ से मिलने
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मुझे थोड़ी सहानुभूति की उम्मीद थी?
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शायद?
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क्योंकि जेल में एक सामान्य जेल वाला अनुभव नहीं था
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निरंतर यातना, निरंतर यातना।
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यहां तक कि जब मुझे शारीरिक यातना नहीं दी जा रही होती थी
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तब भी वे मुझे परेशान करते थे।
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वे सभी रोशनियां बुझा देते थे।
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मैं एकान्त कारावास में थी, अकेली
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और वहाँ कोई खिड़कियाँ नहीं थी, न कोई रोशनी,
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इसलिए जब वे रोशनी बुझा देते थे, तो घुप्प अंधेरा हो जाता था।
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वे कई कई दिनों के लिए इसे बंद कर देते थे, तो ,मुझे पता नहीं
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चल पता था कि कब दिन शुरू हुआ और कब खत्म
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और उसके बाद वे ..
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वे मुझे परेशान करने के लिए आवाज़ें लगाते थे
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बीच रात में आकर
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मुझे बिस्तर से घसीट कर पीटा जाता था
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यह ..
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यह किसी भी तरह से एक सामान्य जेल जैसा अनुभव नहीं था।
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सिर्फ यातना।
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और उन्होंने मुझे कुछ भी नहीं दिया।
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मेरे पास अलग कपड़े तक नहीं थे।
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तो मैं रोज़ उन्हीं कपड़ों में अपने को किसी तरह साफ रखने कि कोशिश करती थी,
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लेकिन मारपीट के बाद मैं चल तक नहीं पाती थी।
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तो मैं बाथरूम भी घुटनों के बल जाती थी पानी पीने के लिए, नल खोलने के लिए .. पानी के लिए।
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मैं अपनें हाथों और घुटनों के बल जाती थी।
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वहाँ कोई चिकित्सीय सहायता नहीं मिलती थी।
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उन्हें इसकी परवाह नहीं थी।
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वैसे भी वो मुझे ज़िंदा नहीं चाहते थे ।
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तो हाँ, मेरे पास कुछ भी नहीं हुआ करता था।
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एक पुराना छेदवाला पतला गद्दा था और उसमें ख़ून और गंदगी के दाग थे
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बहुत घिन आती थी, इतनी बुरी बदबू।
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एक पतला कंबल भी था उतना ही गंदा।
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मेरे कपड़े जो मैंने पहने हुए थे।
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और आखिर के कुछ महीनों में मुझे एक टूथब्रश दे दिया गया था, सिर्फ एक टूथब्रश,
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तो
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तो ..
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साफ रह पाना बहुत मुश्किल था और अंत में मुझे कुछ कपड़े दे दिए थे,
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कपड़े धोने के लिए .. टाईड की तरह, कपड़े धोने का पाउडर।
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मैं कपड़े धोने वाले पाउडर से खुद को साफ रखती थी।
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यह वास्तव में बहुत ही घृणित था।
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तो, हाँ .. उस अनुभव के बाद, मैं एक सप्ताह के लिए घर भेज दी गयी और ..
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उन हालात से एकदम से अब घर, साबुन और कपड़े और न जाने क्या क्या यह सब चकरा देने वाला था।
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इसलिए मैं दिन में पाँच-पाँच बार नहाया करती थी क्योंकि अब मुमकिन था।
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गर्म पानी था।
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.. साबुन था।
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तौलिया था।
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कपड़े थे।
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यकीन नहीं होता था।
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टूथब्रश है।
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खाना है, मेरा मतलब खाने लायक खाना ..
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किसी डिब्बे में परोसा हुआ नहीं
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मांस और चावल, मांस और चावल।
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छोटे से डिब्बे में नहीं।
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ऐसा खाना जिसे ..
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अब मुझे ताज़ा खाना नसीब था।
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जब मैं बाहर आयी मैं बहुत, बहुत कमज़ोर थी।
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मेरा वज़न बहुत कम हो गया था।
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मेरे कपड़े जैसे चीथड़ों की तरह लटक रहे थे
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मुझे नए कपड़ों की ज़रूरत थी।
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सब कुछ मेरे लिए सिर्फ एक बड़ा झटका था।
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तो मुझे याद है, बहुत अजीब है, लेकिन
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मुझे याद है जब मैं पहली बार जेल से बाहर आयी थी
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कार में, मुझे याद है ऐसा लग रहा था जैसे कार बहुत तेज से चल रही हो
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क्योंकि मैं एक साल और एक महीने तक एक जगह से हिली तक नहीं थी
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तो कार में ऐसा लगा जैसे मैं एक रोलर-कोस्टर में थी।
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मुझे लगा कि उफ़्फ़ यह कितनी तेज चल रही है।
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और जब मैं अपने घर पहुंची सभी लोग मुझसे कितने सामान्य ढंग से बात कर रहे थे।
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सामान्य? मेरे साथ जो कुछ हुआ उसके बाद सामान्य?
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अब सामान्य होता क्या है मुझे नहीं पता, कुछ भी सामान्य नहीं बचा।
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हर वक्त, आज भी ..
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हल्की सी आवाज़ से में जाग जाती हूँ
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मुझे याद है जेल से बाहर आने के कुछ सालों बाद
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जब भी दरवाज़े के बाहर कोई आवाज़ होती
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मैं तो चौंककर जैसे, बिस्तर से बाहर आ गिरती थी
-
एकदम से
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मैं .. मैं अपने पैरों पर होती थी, क्योंकि मैं तैयार थी ..
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किसी से भी जूझने के लिए तैयार।
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हाँ।
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तो, हाँ .. वो एक अच्छा समय नहीं था।
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तो घर पर अपनी माँ और बहन के साथ एक सप्ताह के बाद भी
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उनमें मेरे लिए ज़रा भी सहानुभूति नहीं थी
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बल्कि मुझसे तो यह कहा गया
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'तुम्हें लगता है तुम्हारे जेल का अनुभव बुरा था?'
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'इससे भी बदतर होता है'
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और यह सुनकर मुझे एहसास हुआ
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मुझे गहरा धक्का लगा बहुत निराशा हुई।
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मुझे उम्मीद थी की उनमें कुछ तो दया होगी
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जैसी किसी भी माँ में होती है
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लेकिन उनमें नहीं थी।
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मुझे मेरी बहन, मेथा से भी कोई हमदर्दी नहीं मिली।
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ठीक है ... जैसा भी हो
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वो मेरी मदद कर सकते थे अगर चाहते तो..
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लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया ..
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हाँ उन्होनें मुझे जेल नहीं भेजा, लेकिन वे मेरी मदद कर सकते थे।
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वहाँ मुझसे मिलने तो आ सकते थे।
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वे मेरे लिए थोड़ा संघर्ष कर सकते थे।
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थोड़ी दया दिखा सकते थे, लेकिन उन्होंनें
एक तरह से यही जताया
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'ओह यह सब तुमने अपने आप खुदपर किया'
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नहीं, मैंने ऐसा नहीं किया।
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मैंने शम्सा को नहीं कहा था इंग्लैंड से भागने के लिए।
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मैंने उसे लैला से बात करते रहने को नहीं कहा था।
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मैंने नहीं कहा था की पकड़ी जाओ।
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मैंने नहीं किया ..
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मैंने खुदपर कुछ नहीं किया।
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सिर्फ़ एक ही बात थी ..
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मैं अपनी बहन को बचाने की कोशिश कर रही थी और उसकी मदद करने की कोशिश कर रही थी
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और मुझे उसकी यह कीमत चुकानी पड़ी
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तो हाँ वापस वहीं, मैं घर में थी।
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मैं सिर्फ़ एक सप्ताह के लिए घर में रह पायी
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क्योंकि एक सप्ताह के बाद मैंनें अपना आपा खो दिया
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मुझे ठीक से याद नहीं किस बात पर झगड़ा शुरू हुआ,
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लेकिन मैं चीख-चीख के कह रही थी कि
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मुझे शम्सा से मिलना है और मेरा चिल्लाना नहीं रुक रहा था।
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ऐसा था जैसे..
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मैं नहीं बता सकती।
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मैं सचमुच सिर्फ चिल्ला रही थी
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'मैं शम्सा को देखना चाहती हूँ, मैं शम्सा को देखना चाहती हूँ'
-
'मैं शम्सा को देखना चाहती हूँ'
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और बात इस हद तक चली गयी कि मैं लोगों से लड़ने की कोशिश कर रही थी।
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तो उन्होनें मुझे पकड़ा हुआ था और मुझे याद नहीं
है कि उन्होनें किसको कॉल किया।
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पुलिस को बुलाया, लेकिन एक वक्त पर कुछ लोगों
ने मुझे पकड़ा हुआ था।
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और फिर वहाँ एक डॉक्टर था।
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मैंने एक डॉक्टर को देखा और उसने मुझे इंजेक्शन दिया और मुझे या तो एक कार या एक एम्बुलेंस में ले गए,
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मुझे याद नहीं।
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मुझे लगता है कि यह एक कार थी, और मैं तो बस चिल्ला रही थी।
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मुझे याद नहीं।
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उन्होंने मुझे दवा देकर शांत करने की कोशिश की।
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यह पहली बार काम नहीं किया।
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उन्होंने मुझे अस्पताल में डाल दिया।
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मुझे याद है उन्होनें मुझे इंजेक्शन देकर शांत किया था।
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और फिर हल्का सा याद है.. मैं अस्पताल के बिस्तर पर हूँ और जागने के बाद
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लोग मुझे खिलाने की कोशिश कर रहे हैं.. उसके बाद बाथरूम में मेरी नींद टूटती है
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इस तरह मैंने कुछ बेहिसाब समय खो दिया.. कुछ दिन खो दिए।
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इतना चिल्लाने से मेरी आवाज़ चली गयी थी।
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तो, हाँ .. मुझे कुछ समय लगा..
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नहीं पता कि मुझे कितना बेहोश रखा गया या मुझे क्या दिया था, लेकिन हाँ मैंने कुछ दिन खो दिए।
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और फिर, हाँ .. तो मैंने एक सप्ताह अस्पताल में बिताया
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बेआवाज़ और नर्सों के साथ
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जो बहुत, बहुत, बहुत अच्छी थीं।
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और वे मेरे लिए हर तरह से सब सामान्य बनाने कि कोशिश कर रहीं थीं
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इस तरह से नहीं जैसे मैं कोई मानसिक रोगी हूँ ..
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क्योंकि मैं एक मानसिक रोगी नहीं हूँ।
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मैंने अपनी हल्की आवाज़ में उन्हें बताया कि मेरे साथ क्या हुआ है
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मैं उनसे बात कर पाती थी और वे वास्तव में अच्छीं थीं
-
उन्होनें मुझे सामान्य महसूस कराने की कोशिश की।
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ख़ैर.. तो एक सप्ताह घर में और एक सप्ताह अस्पताल में,
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और मुझे फिर से वापस जेल में डाल दिया।
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तो कुल मिलाकर तीन साल और चार महीने मैंने कैद में बिताए।
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और मैं नहीं जानती थी कि कब तक मैं वहाँ रहूँगी।
-
मुझे सिर्फ इतना बताया गया कि तुम्हारे पिता ने कहा है इसे तब तक पीटो जब तक इसमें जान ना बचे। बस
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वे मुझे ख़त्म नहीं कर पाए।
-
वे चाहते थे, लेकिन नहीं कर पाए।
-
तो जब मैं दूसरी बार कैद से बाहर आई..
-
तो मैं ..
-
मैं तो बस..
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मुझे हर किसी से नफ़रत थी।
-
मुझे किसी पर भरोसा नहीं था ..
-
मेरे लिए जैसे सभी लोग बुरे थे
-
किसी पर भी भरोसा नहीं किया जा सकता था,
-
जैसे सभी लोगों आपके खिलाफ हों,
-
मुझे ऐसा लगता था।
-
इसलिए मैं जानवरों के साथ बहुत समय बिताती थी
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घोड़ों, कुत्तों, बिल्लियों के साथ पक्षियों के साथ
-
अलग अलग जानवरों के साथ।
-
मैं पने दिन जानवरों के बिताती थी
-
और फिर मैं अपने कमरे में जाकर कोई फिल्म वगैरह देख लेती थी
-
लेकिन मैं लोगों के साथ बातचीत नहीं करती थी।
-
कोई नहीं था जिस पर मुझे भरोसा हो।
-
और फिर मैं .. हाँ, तो मुझे..
-
मुझे नहीं पता..
-
मुझे नहीं पता जेल से बाहर आने के बाद मुझे कितने साल लगे
-
पूरी तरह से उस अनुभव से उबरने में।
-
मुझे नहीं पता।
-
मुझे नहीं पता कब मैं सामान्य हो पायी।
-
मैं नहीं जानती कि मैं अब भी सामान्य हूँ या नहीं।
-
मेरा मतलब है यह कुछ ऐसा है कि
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आपको बदल देता है,
-
आप लोगों में विश्वास खो देते हैं।
-
2017 की गर्मियों में ऐसा बहुत कुछ हुआ,
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जिसने मुझ पर दबाव डाला ..
-
कि अब और नहीं रुका जा सकता, मैं शम्सा के ठीक होने का अब इंतजार नहीं कर सकती ताकि उसे अपने साथ ले चलूँ।
-
मुझे एहसास हुआ, यह समझने में मुझे लगभग दस साल लगे
-
कि यहाँ रह कर उसकी कोई मदद नहीं हो रही है।
-
मैं उसकी यहाँ मदद नहीं कर सकती।
-
मुझे जाना होगा।
-
यह एक ही रास्ता है जिससे मैं उसकी मदद कर सकती हूँ।
-
अपनी मदद कर सकती हूँ।
-
उसकी मदद कर सकती हूँ।
-
मैं बहुत से लोगों की मदद कर सकती हूँ, बस निकलना होगा। यहाँ रहकर ..
-
मैं उसकी बिल्कुल भी मदद नहीं कर सकती।
-
तो .. और 2017 की,
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गर्मियों में मैंने एक अच्छा दोस्त खो दिया है
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और मुझे एहसास हुआ कि जीवन कितना छोटा है।
-
इसकी कोई गारंटी नहीं है।
-
किसी के परिवर्तन लाने का बैठकर इंतज़ार करने का कोई फ़ायदा नहीं
-
या किसी के तैयार होने का।
-
इंतज़ार करने की कोई वजह नहीं, बस एक बड़ा कदम लेना होगा।
-
शम्सा को कुछ नहीं होगा और एक बार बाहर आ जाओ तो तुम उसकी मदद कर सकती हो।
-
इसलिए इस वीडियो को बनाने की जरूरत है।
-
अगर मैं कामयाब ना हो पाऊँ तो।
-
यह सब व्यर्थ नहीं जाएगा, किसी के पास कुछ फ़ुटेज तो रहेगी।
-
मुझे ..
-
मुझे सब कुछ याद करना होगा ये मेरा आख़िरी वीडियो हो सकता है।
-
मैं और क्या कहूँ पता नहीं।
-
मैं और क्या कहूँ पता नहीं।
-
वे निश्चित रूप से इस विडियो को बदनाम करने की कोशिश करेंगे, कहेंगे कि यह एक झूठ है या यह एक अभिनेत्री है
-
ऐसा ही कुछ।
-
मैं नहीं जानती और क्या अपने बारे में कहूँ।
-
तो मैं बस अपने बारे में और अधिक जानकारी देती हूँ।
-
जब मैं छोटी थी तब दुबई इंग्लिश स्पीकिंग स्कूल जाती थी
-
और फिर मैं इंटरनेशनल स्कूल ऑफ़ शूएफ़ात गयी
-
और उसके बाद एक साल के लिए मैं लतीफ़ा स्कूल फॉर गर्ल्स गयी।
-
और फिर, हाँ, जब मैं जेल से बाहर आई तो ज़बील अस्तबल में घुड़सवारी करती थी।
-
और फिर फ़ुजैरा में स्कूबा डाइविंग और
बाद में स्काईडाइव दुबई में स्काइडाइविंग शुरू की।
-
तो ऐसे बहुत से लोग हैं जो मुझे जानते पहचानते हैं।
-
वे मेरे चेहरे को जानते हैं। उन्हें मेरे बात करने का अंदाज़ पता है।
-
वो मुझे जानते हैं।
-
तो भले ही वे कोशिश करें मुझे बदनाम करने की, मुझे आशा है कि
-
मेरे कुछ दोस्त कहेंगे कि
-
'मैं लतीफ़ा को जानता हूँ और ये वास्तव में वही है'
-
वैसे भी मैं अपनी बहन मेथा की तरह दिखतीं हूँ।
-
मैं अपने भाई माजिद की तरह दिखतीं हूँ और वे दोनों मशहूर लोग हैं।
-
इसलिए भले ही वे मुझे बदनाम करने की कोशिश करें, मैं मेरे भाई बहन की तरह दिखतीं हूँ।
-
तो..
-
और मैंने अपने पासपोर्ट की प्रतियां भी दी हैं
और मेरे प्रमाण पत्र वगैरह
-
और हाँ ..
-
मेरा पासपोर्ट मेरे पास नहीं रहता, वो मुझे मेरा पासपोर्ट नहीं देते।
-
मेरा संयुक्त अरब अमीरात पासपोर्ट कभी मेरे पास नहीं रहता।
-
मुझे तो उसकी बस एक कॉपी मिली थी ..
-
अरे मेरा..
-
जब मैंने अपनी जीसीएसई परीक्षा दी थी
-
जेल से छूटने के बाद, मैंने कुछ परीक्षाएँ दी थीं और
उनके लिए पासपोर्ट प्रतियों की ज़रूरत थी।
-
तब मैंने पासपोर्ट की तस्वीर ली थी
-
और जब मैंने स्काइडाइविंग टैंडम रेटिंग ली थी
-
एफएआई? शायद यह कहा जाता है..उन्हें चिकित्सीय मंजूरी की ज़रूरत होती है
-
और उसके लिए पासपोर्ट की एक प्रति की ज़रूरत होती है
-
तो मैंने अपने पासपोर्ट प्रति की कॉपी बना ली।
-
वे मुझे मेरा पासपोर्ट नहीं देते, लेकिन उन्होंने मुझे मेरे पासपोर्ट की एक प्रति दी थी।
-
तो.. मुझे ड्राइव करने की इजाज़त नहीं है।
-
मैं ना कहीं जा सकती हूँ या दुबई छोड़ सकती हूँ
-
मैं साल 2000 के बाद से देश से बाहर नहीं गयी।
-
मैंने बहुत कोशिश की पढ़ने या कुछ भी सामान्य करने की इजाज़त मिले।
-
पर नहीं।
-
मुझे ..
-
मैं कब बाहर जाती हूँ कब वापस लौटती हूँ ..
-
सब निश्चित समय पर करना होता है।
-
वे .. मेरी माँ को हमेशा यह जानना होता है कि मैं कहाँ हूँ।
-
ड्राइवर मेरे पिता को रिपोर्ट देते हैं, मैं कहाँ जाती हूँ वगैरह।
-
हमारे ड्राइवर चुने हुए होते हैं।
-
ऐसे ही किसी की भी कार में नहीं जा सकते।
-
मुझे ड्राइवर के साथ जाना होता है।
-
ड्राइवर को हमेशा पता रहता है कि मैं कहाँ हूँ।
-
हाँ, तो यही है मेरी ज़िंदगी।
-
बहुत ही प्रतिबंधित।
-
मैं ..
-
मैं भी बिना इजाज़त किसी दूसरे अमीरात तक नहीं जा सकती।
-
नहीं।
-
इसलिए मुझे दुबई में रहना पड़ता है।
-
हाँ।
-
तो हाँ, भले ही वो मुझे बदनाम करने की कोशिश करें,
-
मेरे पास ऐसी बहुत जानकारी है की वो मुझे ख़ारिज नहीं कर सकते।
-
खैर, वे कोशिश करेंगे और फिर खुद ही ख़ारिज कर दिए जाएंगे।
-
तो हाँ, यह मेरा आखिरी वीडियो हो सकता है।
-
मुझे आशा है कि ऐसा नहीं होगा ..
-
मुझे आशा है कि इस वीडियो की मुझे जरूरत ना पड़े।
-
मुझे आशा है कि यह वीडियो सिर्फ नष्ट कर दिया जाए और हम सब ठीकठाक रहें
-
लेकिन इस वीडियो को बनाने की ज़रूरत थी।
-
नहीं पता और क्या कहूँ।
-
तो बाहर आने के बाद मैं आशा करती हूँ कि
-
कि
-
मेरे पास पासपोर्ट हो
-
और मेरे जीवन में निर्णय लेने की आज़ादी हो
-
और मैं जहाँ भी रहूँ शम्सा की मदद कर पाऊँ।
-
मैं कह सकूंगी कि उसे भी उसका पासपोर्ट दो।
-
उसे भी बाहर घूमने दो।
-
मुझसे मिलने दो।
-
और
-
मुझे लगता है कि अपनी और किसी दूसरे की मदद का यही एक रास्ता है।
-
और क्या कहूँ पता नहीं।
-
मैं अपने जीवन में देखी कई चीज़ों के बारे में बता सकती हूँ।
-
जब मैं छः महीने की थी, मेरे पिता की बहन मुझे चाहती थी।
-
तो वह मुझे मेरी माँ से दूर ले गईं।
-
तो ज़िंदगी के पहले दस साल मैंने महल में गुज़ारे
-
यह सोचते हुए कि मेरी चाची ही मेरी माँ हैं
-
और मैं साल में सिर्फ़ एक बार अपनी असली माँ से मिलने जाती थी।
-
मैं वहाँ कभी रात तक नहीं ठहरती थी।
-
सिर्फ़ दिन बिताकर, रात में महल चले जाते थे।
-
और जब मेरा छोटा भाई, तीन महीने का था
-
मेरी माँ ने उसे भी सौंप दिया।
-
खैर, यह स्वैच्छिक था क्योंकि वो मुझे अकेले रहने देना नहीं चाहती थीं,
-
तो उन्होनें मेरे भाई को मुझे सौंप दिया, ताकि हम दोनों साथ रहें।
-
तो हाँ, ज़िंदगी के पहले दस साल मैं एक झूठ जी रही थी
-
बाद में मुझे पता चला कि मैं कौन हूँ और फिर मैं अपनी माँ के साथ रहने चली गयी
-
और मैं अपनी माँ के साथ रहने के लिए झगड़ती थी
-
शम्सा हमारे उसके साथ रहने के लिए लड़ती थी।
-
इसलिए मैंने हमेशा शम्सा को उस व्यक्ति की तरह देखा जिसने मुझे बचाया।
-
इसलिए मैं उसे बचाने की कोशिश कर रही थी, तो ..
-
लेकिन मैं अब तक सफल नहीं हो पायी।
-
ओह! वे शायद ऐसा भी कर सकते हैं।
-
वे शायद शम्सा को विडियो बनाने के लिए मजबूर करें कहलवाएँ कि मैं झूठी हूँ या
-
मुझे बदनाम करने के लिए ऐसा ही कुछ।
-
यकीनन वे ऐसा करने की कोशिश करेंगे ..
-
मैं उन्हें जानती हूँ।
-
बेशक।
-
उसके पास किसी तरह की आज़ादी नहीं है।
-
वह कुछ भी नहीं कर सकती।
-
वह .. अभी वह ..
-
उसके साथ एक मनोचिकित्सक रहता है
-
और वह नर्सों से घिरी रहती है।
-
वे उसके साथ कमरे में रहते हैं जब वह सोती है।
-
और जब जागती है तो नोट्स लेते हैं,
-
कि वो कब सोती है, कब खाना खाती है, क्या खाती है,
-
क्या कहती है, क्या बातचीत करती है,
-
उसे अपने सामने गोलियाँ खिलाते हैं,
-
पक्का करने के लिए कि उसने सारी गोलियाँ ली हैं,
-
दवाएँ उसके दिमाग को क़ाबू करने के लिए,
-
मुझे नहीं पता वो क्या हैं।
-
तो इस तरह उसकी ज़िंदगी को पूरी तरह से नियंत्रित किया जाता है।
-
और हाँ गर्मियों में एक और बात हुई जो
-
मुझे कहनी चाहिए थी कि
-
शम्सा के पास से कुछ मोबाइल फ़ोन बरामद हुए इसलिए..
-
मेरी माँ और मेरी दूसरी बहन बहुत घबरा गए
-
कि वह फिर से इंग्लैंड में पत्रकारों से संपर्क करने की कोशिश करेगी
-
अपनी परिस्थिति या किसी और बारे में उनसे बात करने के लिए,
-
मेरे पिता की प्रतिष्ठा को धूमिल करने की कोशिश में।
-
उन्हें इस बात का डर था।
-
तो इसके बाद उसकी स्थिति और ज़्यादा नियंत्रित हो गयी है।
-
यही कारण है कि अब एक मनोचिकित्सक रखा गया है हमेशा उसके पास रहने के लिए।
-
पहले भी मनोचिकित्सक था लेकिन वह हमेशा उसके साथ नहीं रहता था
-
जैसा अब हो रहा है
-
और चौबीस घंटे उसके साथ रहने वाली नर्सें।
-
ऐसा है जैसे जहाँ वो जाती है एक पिंजड़ा उसके साथ-साथ पीछे चलता है,
-
तो उसके पास कोई .. कोई आज़ादी नहीं है।
-
तो, हाँ मुझे लगता है कि ..
-
वो मुझे लगता है कि उसका इस्तेमाल मुझे ख़ारिज करने के लिए कर सकते हैं।
-
ऐसा हुआ तो देखने लायक होगा
-
क्योंकि..
-
हाँ तो वे उसका इस्तेमाल मुझे ख़ारिज करने के लिए कर सकते हैं।
-
लेकिन वे कभी मुझसे अपने आपको ख़ारिज नहीं करावा पाएंगे क्योंकि
-
वो..
-
मैं ज़िंदा उनके हाथ नहीं लगने वाली
-
ऐसा बिलकुल नहीं होगा।
-
और क्या कहूँ पता नहीं।
-
मेरा मतलब है कि साल 2000 से यानी लगभग दो दशक हो चुके हैं, इस पागलपन को शुरु हुए।
-
अब हम 2018 में हैं, यह सब वाकई सिर घूमा देने वाला था।
-
बहुत से लोग..
-
बहुत से लोगों की ज़िंदगी को चोट पहुंची है,
-
बहुत से लोगों को प्रताड़ित किया गया है,
-
बहुत से लोगों ने जानें गवाईं हैं
-
बहुत कुछ हुआ है...
-
उसने बहुत से कत्लों पर पर्दा डलवाया है
-
मेरे पिता को किसी का डर नहीं।
-
इससे बड़े अपराधी की आप कल्पना नहीं कर सकते हैं।
-
और उनकी छवि एक आधुनिकतावादी की बनाई गयी है
-
यह सब बकवास है।
-
मेरे तीस भाई और बहनें हैं।
-
लेकिन..
-
उनकी सिर्फ ऐसी तस्वीरें डाली जाती हैं और ऐसी सार्वजनिक छवि दिखाई जाती है जैसे वह एक परिवारिक व्यक्ति हो,
-
यह .. सब बकवास है।
-
वो ऐसा नहीं है।
-
यह सिर्फ पी॰आर॰ है।
-
उसका लेबनान में एक बेटा है जिसकी वो कभी सुध नहीं लेता।
-
उसने.. वह उससे शायद एक या दो बार मिला है और तब भी हाथ भर मिलाया था ..
-
जब वह बेटा दुबई आया था।
-
वह .. उपेक्षित रहा है इतनी सारी दूसरी संतानों की तरह।
-
.. वह एक पिता नहीं है।
-
वह सच में, बहुत ही घृणित ,
-
बहुत ही घृणित इंसान है।
-
हाँ,
-
जिस तरह से उसने अपनी ज़िंदगी गुज़ारी है और दूसरों से उसका व्यवहार रहा है
-
वह वैसा नहीं है जैसा मीडिया दिखाता है, उसका खुदका मीडिया।
-
दुबई में याद रखें, मीडिया पूरी तरह नियंत्रित किया जाता है
-
और लगभग पूरे मध्यपूर्व में भी।
-
और समझ नहीं आता कि क्या कहूँ।
-
मुझे लगता है कि अगर इस कोशिश में मेरी जान जाती है
-
या अगर मैं जीवित बाहर नहीं आ पाती तो कम से कम एक वीडियो तो रहेगा।
-
यह दुख़ की बात है कि सब इस हद तक आ चुका है की मुझे एक वीडियो बनाना पड़ा, लेकिन यह ज़रूरी है।
-
और क्या कहूँ पता नहीं।
-
सोचने की कोशिश कर रही हूँ,
-
और क्या मैं अपने जीवन के बारे में बता सकती हूँ।
-
पता नहीं और क्या कहूँ ।
-
मुझे आशा है कि इस विडियो की मुझे ज़रूरत ना पड़े।
-
और लग रहा है मुझे इसकी ज़रूरत नहीं पड़ेगी।
-
मैं भविष्य के बारे में सकारात्मक महसूस कर रहीं हूँ
-
और मैं महसूस कर रही हूँ जैसे कि यह एक नयी शुरुआत है।
-
यह शुरुआत है मेरे द्वारा अपने जीवन का जिम्मा लेने की .. मेरी स्वतंत्रता, निर्णय की स्वतंत्रता।
-
मुझे इसके इतना आसान होने की उम्मीद नहीं है, कुछ भी आसान नहीं होता है,
-
लेकिन मुझे आशा है यह मेरे जीवन के एक नए अध्याय की शुरुआत होगी
-
जिसमें मेरी आवाज़ का कोई महत्व होगा
-
जहाँ मुझे खामोश नहीं किया जा सकेगा
-
और मैं अपने बारे बात कर सकूँगी, और शम्सा के बारे में बात कर पाऊँगी।
-
बता पाऊंगी की हमारे साथ क्या कुछ हुआ।
-
हाँ, मैं उस कल की राह देख रही हूँ।
-
हाँ, मैं नहीं जानती,
-
मुझे नहीं पता की वो सुबह कैसी होगी
-
जब मैं जागकर सोच सकूँगी..
-
कि मैं जो चाहूँ आज कर सकती हूँ।
-
जहाँ चाहूँ जा सकती हूँ।
-
मेरे पास दुनिया के वे सभी विकल्प हैं जो दूसरों के पास हैं।
-
कितना अलग और नया अनुभव होगा।
-
वह अद्भुत होगा।
-
मैं इसके लिए तत्पर हूँ।
-
एक देश में फंसे होकर आप एक हद तक ही कुछ कर सकते हैं
-
और वो भी इन बंधनों के साथ।
-
एक आम इंसान क्या कर सकता है उसकी कुछ सीमाएँ हैं।
-
मैं आशावान हूँ आने वाले समय के लिए, शम्सा के अच्छे जीवन लिए।
-
ऐसा बहुत कुछ है जिसके लिए मैं आशावान हूँ।
-
हाँ, मुझे वाकई लगता है कि यह मेरे जीवन में एक नए अध्याय की शुरुआत है।
-
मेरे दुबई में रहने की कोई वजह नहीं बची है।
-
मेरे यहाँ वापस आने की कोई वजह नहीं बची है।
-
मेरे आसपास ऐसे लोग हैं जिन्हें में मैं प्यार करती हूँ, लेकिन वे मुझसे मिलने आ सकते हैं।
-
जैसे मेरे परिवार में कुछ लोग हैं, दोस्त हैं जिनकी मुझे परवाह है,
-
मैं जहाँ भी रहूँ वे मुझसे मिलने आ सकते हैं।
-
और एक मुश्किल यह भी है कि मैं कल कहाँ जाऊँगी इसका भी पता नहीं।
-
मुझे..
-
मुझे नहीं पता मैं कहाँ रहूँगी।
-
नहीं पता .. मैं कहाँ रह सकती हूँ।
-
मुझे कुछ भी पता नहीं है।
-
मैं नहीं जानती मैं कहाँ जा रही हूँ।
-
हम नहीं जानते।
-
मैं जानती हूँ मैं कहाँ ठहरूँगी।
-
जानती हूँ कहाँ थोड़ी देर के लिए ठहरना होगा, लेकिन आख़िर में मैं कहाँ पहुँचूँगी इसका नहीं पता।
-
एक तरह से अच्छा ही है।
-
सभी विकल्प जो मेरे पास होंगे।
-
हाँ .. क्या मैं कहीं कुछ भूल तो नहीं गयी?
-
और किस बारे में बात करूँ?
-
क्या उन सभी हत्याओं के बारे में बात करूँ?
-
या उन अत्याचारों के बारे में जो मैंने देखे हैं?
-
किस बारे में बात करूँ?
-
मैं और क्या बताऊँ नहीं जानती
-
क्योंकि वो एक बहुत ही लंबी कहानी होगी।
-
मुझे नहीं पता।
-
पता होना चाहिए मुझे, हैं ना?
-
वो कई जानों के जाने के लिए ज़िम्मेदार है।
-
वो एक बहुत बड़ा अपराधी है।
-
यहाँ कोई न्याय नहीं है।
-
उन्हें कोई परवाह नहीं है, खासकर यदि आप एक महिला हैं, आपके जीवन के कोई मायने नहीं।
-
उन्हें कोई परवाह नहीं है।
-
यहाँ तक कि उसने सबूत छिपाने के लिए घरों तक को जला दिया है।
-
घरों को जलाकर राख़ कर दिया।
-
वह पागल इंसान है।
-
मुझे लगता है कि समय आ गया है कि वह अपने किए का अंजाम भुगते।
-
ऐसा होगा।
-
उसे अंजामों का सामना करना ही होगा।
-
मेरे साथ वो क्या करता है, यातनाएँ ..
सब कुछ, मैं उससे नहीं डरती।
-
मुझे उससे कोई डर नहीं।
-
वह दयनीय है
-
दयनीय इंसान।
-
और वह अपने किए का अंजाम भुगत कर रहेगा, उसने जो कुछ किया है
-
न सिर्फ मेरे साथ, लेकिन हर किसी के साथ।
-
उसे परिणामों का सामना करना पड़ेगा।
-
हाँ।
-
तो, मुझे नहीं लगता मेरे पास अब कहने के लिए ज़्यादा कुछ है।
-
उम्मीद है, मुझे इस वीडियो की जरूरत नहीं होगी।
-
और कोई अंतिम शब्द ..
-
कोई आख़िरी अल्फ़ाज़ ..
-
मेरे सभी दोस्तों को मेरा आभार, और उन लोगों का जिन्होनें मेरी परवाह की
-
और मेरे .. परिवार के उन सदस्यों को जिन्हें मेरी परवाह रही,
-
आपको पता है कि आप कौन हैं,
-
तुम सबने भले ही मेरी परवाह ना की हो, लेकिन आप में से कुछ ने की।
-
उन लोगों को मेरा धन्यवाद।
-
और अगर मैं यहाँ से बाहर नहीं निकल पाती,
-
मुझे आशा है कि इस सबसे एक अच्छा बदलाव आ पाएगा।
-
ठीक है।