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पैट्रिसिया रायन: ज़बरदस्ती इंग्लिश न थोपें!

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    मुझे पता है कि आपको क्या लग रहा है।
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    आप सोच रहे हैं कि मैं रास्ता भूल गयी हूँ,
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    और अभी कोई मंच पर आयेगा और
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    मुझे चुपचाप वापस अपनी सीट तक पहुँचा जाएगा।
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    (ठहाका)
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    दुबई में ये अक्सर मेरे साथ होता है।
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    "छुट्टी में आयी हैं?"
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    (हँसी)
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    "बच्चों से मिलने आयी हैं?"
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    "कितने दिन रुकेंगी?"
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    असल में, मैं काफ़ी दिन और रुकना चाहती हूँ।
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    मैं खाडी में रह रही हूँ और पढा रही हूँ
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    करीब पिछले तीस साल से भी ज्यादा से।
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    (ठहाका)
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    और इतने समय में, मैनें बहुत सारे बदलाव देखे हैं।
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    और इसकी संख्या
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    काफ़ी चौंकाने वाली है।
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    और आज मैं आपसे बात करना चाहती हूँ
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    भाषाओं के खोने के बारे में
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    और इंग्लिश के सारी दुनिया में फ़ैलने के बारे में।
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    मैं आपको अपने एक दोस्त के बारे में बताना चाहती हूँ
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    जो कि अबु धाबी में व्यस्कों को इंग्लिश पढाते हैं।
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    और एक दिन,
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    उन्होंने सोचा कि उन सब को बगीचे में ले जा कर
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    प्राकृतिक वस्तुओं के नाम आदि सिखायेंगी।
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    मगर असल में उन्हें ही सीखने को मिले
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    तमाम अरब शब्द उन सब स्थानीय पौधों के,
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    और उनके इस्तेमाल भी --
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    दवाई के रूप में, सौंदर्य प्रसाधन के रूप में,
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    खाने में, आदि।
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    इन विद्यार्थियों को ये जानकारी कहाँ से मिली थी?
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    ज़ाहिर है, अपने दादा-दादी, नाना-नानी से
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    और परदादा, परनाना से भी।
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    अलग से ये बताना ज़रूरी नहीं कि कितना महत्वपूर्ण है कि
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    हम बातचीते करें
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    पीढियों के बीच।
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    मगर दुखद है कि, आज,
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    भाषाओं मर रही हैं
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    बहुत तेज़ दर से।
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    हर १४ दिन में एक भाषा लुप्त हो जाती है।
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    और ठीक वहीं,
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    इंग्लिश विश्व-भाषा बन कर उभर रही है।
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    क्या ये बातें संबंधित हैं?
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    मुझे नहीं पता।
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    मगर मैं ये जानती हूँ कि मैनें बहुत सारे बदलाव देखे हैं।
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    जब मैं पहली बार खाडी में आई, तो मैं कुवैत गयी
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    उन दिनों में जब वहाँ जाना कठिन था।
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    असल में, उतनी पुरानी बात नहीं है।
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    थोडा ही पहले की बात है।
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    मगर फ़िर भी,
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    मुझे ब्रिटिश काउंसिल ने नौकरी दी थी
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    २५ और अध्यापकों के साथ।
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    और हम पहले गैर-इस्लामी लोग थे
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    जिन्होने कुवैत के सरकारी स्कूलों में पढाया।
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    हमें इंग्लिश पढाने के लिये लाया गया था
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    क्योंकि सरकार देश को आधुनिक बनाना चाहती थी
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    और नागरिको को क्षमता देना चाहती थी, शिक्षा के ज़रिये।
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    और बिलकुल ही, यू.के. ने फ़ायदा उठाया
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    तमाम सारे तेल के संसाधनों का।
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    ओके।
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    और जो बदलाव मैने देखा है वो ये है कि-
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    कैसे इंगलिश पढाना
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    बदला है
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    दोनो ओर को फ़ायदे देने वाली क्रिया से
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    इतने बडे वैश्विक व्यापार में, जो आज वो है।
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    वो सिर्फ़ स्कूल के कोर्स में पढायी जाने वाली विदेशी भाषा नहीं रह गयी है।
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    न ही वो बपौती रह गयी है
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    इंग्लैण्ड की।
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    वो ऐसी पार्टी बन गयी है जिसमें
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    इंग्लिश बोलने वाले हर राष्ट्र को शामिल होना ही है।
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    और क्यों न हो?
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    आखिरकार, सबसे बढिया शिक्षा --
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    विश्व के विद्यालयों की लिस्ट के हिसाब से ---
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    उन विश्वविद्यालयों में --
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    जो कि यू.के. और यू.एस. में हैं।
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    तो हर कोई इंग्लिश की पढाई करना चाहता है, ज़ाहिर तौर पर।
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    मगर यदि आप इंगलिश के मूल-वक्ता नहीं हैं,
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    तो आपको एक परीक्षा देनी होती है।
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    क्या यह सही हो सकता है कि
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    कि किसी विद्यार्थी को इसलिये दाखिला न मिले
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    कि उसकी भाषा पर पकड ठीक नही है?
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    शायद कोई ऐसा कम्प्यूटर वैज्ञानिक हो
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    जो जीनियास हो।
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    क्या उसे भाषा-कौशल की उतनी ही ज़रूरत पडेगी, जितनी कि, एक वकील को?
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    देखिये, मुझे तो ऐसा नहीं लगता।
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    हम इंग्लिश के अध्यापक अक्सर ऐसे लोगों को हटा देते हैं।
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    उनके सामने रुको का साइन-बोर्ड लगा कर,
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    और उन्हें हम उनके रास्ते में ही रोक देते हैं।
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    वो अपने सपनों को साकार नहीं कर सकते,
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    जब तक कि वो इंग्लिश न सीख लें।
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    चलिये, दूसरी तरह से कहती हूँ,
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    अगर मुझे सिर्फ़ एक भाषा बोलने वाल डच व्यक्ति मिले,
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    जिसके पास कैंसर का इलाज है,
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    तो क्या मैं उसे ब्रिटिश विश्वविद्यालय में आने से रोकूँगी?
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    मैं तो बिलकुल भी नहीं रोकूँगी।
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    मगर सच मे, हम बिलकुल यही कर रहे हैं।
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    हम इंग्लिश अध्यापक वो चौकीदर हैं।
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    और पहली आपको हमें संतुष्ट करना होगा
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    कि आपकी अंग्रेजी ठीक-ठाक है।
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    ये बहुत खतरनाक हो सकता है
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    कि हम बहुत ज्यादा ताकत दे दें
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    समाज के एक छोटे से हिस्से को।
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    शायद ये रुकावट सारे विश्व में फ़ैल जाये।
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    है न?
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    मगर, आप कहेंगे,
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    कि "शोध के बारे में मेरी क्या राय है?
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    वो तो पूरा ही अंग्रेजी में है।"
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    तो सारी किताबें इंग्लिश में हैं,
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    सारे जर्नल इंग्लिश में हैं,
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    मगर ये खुद को ही स्थापित करते जाने वाली बात है।
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    ये तर्क और भी ज्यादा अंग्रेजी जानने को बढावा देता है।
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    और ये इसी तरह बढता जाता है।
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    मैं आपसे पूछती हूँ, अनुवाद का क्या हुआ?
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    अगर आप इस्लाम के स्वर्ण काल के बारे में सोचें,
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    तो आप पायेंगे कि तब बहुत अनुवाद होता था।
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    वो लेटिन और ग्रीक से अनुवाद करते थे,
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    अरबी मे, फ़ारसी में,
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    और फ़िर वहाँ से आगे,
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    यूरोप की जर्मन मूल की भाषाओं मे,
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    और रोमन भाषाओं में।
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    और इस तरह से ही यूरोप का अँधकार-युग ख्त्म हुआ।
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    देखिये, मुझे गलत मत समझिये;
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    मैं इंग्लिश पठन-पाठन के ख़िलाफ़ नहीं हूँ,
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    अँग्रेज़ी अध्यापक ध्यान दें।
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    मुझे ये बात बहुत अच्छी लगती है हमारे पास एक वैश्विक भाषा है।
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    आज हमें ऐसी वैश्विक भाषा की ज़रूरत है।
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    मगर मैं उसके
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    रुकावट के रूप में विकसित होने के ख़िलाफ़ हूँ।
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    क्या हम सच में चाहते हैं कि केवल ६०० भाषाएँ हों
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    और मुख्य भाषा इंग्लिश हो, या चीनी हो?
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    हमें उस से ज्यादा चाहिये। हम कहाँ पर लाइन खींचें?
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    आज का सिस्टम
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    बुद्धिमत्ता को
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    इंगलिश की जानकारी से कनफ़्यूज़ करता है,
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    जो कि बिल्कुल ही गलत है।
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    (अभिवादन)
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    और मैं आपको याद दिलाना चाहती हूँ
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    कि उन महान हस्तियों को, जिनके कंधों
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    पर आज के ज्ञान और बुद्धि टिकी है,
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    इंगलिश नहीं पढनी पडती थी,
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    न हि उन्हें इंग्लिश की कोई परीक्षा पास करनी होती थी।
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    मिसाल के तौर पर, आइंस्टाइन।
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    और उन्हें तो स्कूल में बुद्धू समझा जाता था
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    क्योंकि असल में, वो डिस्लेक्सिक थे।
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    मगर ये संसार का सौभाग्य ही था,
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    कि उन्हें अँग्रेज़ी की परीक्षा नहीं देनी पडी।
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    क्योंकि सन १९६४ तक
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    टोफ़ेल (TOEFL) परीक्षा की शुरुवात ही नहीं हुई थी,
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    जो कि अमरीकी परीक्षा है अंग्रेज़ी की।
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    और अब तो उसके बिना कुछ होता ही न।
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    इंग्लिश-कौशल मापने के आज तमाम तरीके हैं
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    और कई लाख विद्यार्थी उनमें शरीक हो रहे है,
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    साल दर साल।
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    और आपको और मुझे लग सकता है,
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    कि उनमें लगने वाली फ़ीस, ठीक ही है, बहुत महँगी नहीं,.
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    मगर वो रुकावट पैदा करती है
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    करोंडों गरीब लोगों की राह में।
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    तो इसलिये, उन्हें तो हम बिना परीक्षा के ही भगा दे रहे हैं।
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    (अभिवादन)
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    मुझे एक खबर याद आ रही है, हाल ही की:
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    शिक्षा: विभाजन का ज़रिया
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    अब मुझे समझ आया है।
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    मैं समझती हूँ कि क्यों लोग इंग्लिश पर इतना ध्यान देते हैं
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    वो अपने बच्चों को सफ़लता प्राप्त करने लायक बनाना चाहते हैं।
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    और वो करने के लिये, उन्हें पाशचात्य शिक्षा की आवश्यकता है।
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    क्योंकि, ज़ाहिर है, सबसे अच्छी नौकरियाँ
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    उन्हीं को मिलती हैं जो पश्चिमी विश्वविद्यालयॊं में पढ्ते है,
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    जैसा मैने पहले कहा था।
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    ये एक घुमावदार मृग-मरीचिका है ।
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    ठीक है?
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    चलिये मैं आपको दो वैज्ञानिकों की कहानी सुनाती हूँ,
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    दो इंग्लिश वैज्ञानिकों की।\
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    वो एक प्रयोग कर रहे थे
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    जैनेटिक्स पर,
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    जानवरो के अगले पाँवों और पिछले पाँवो पर आधारित।
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    मगर उन्हें वो निष्कर्श नहीं मिल रहे थे जो वो चाहते थे।
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    उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था कि वो आखिर क्या करें,
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    जब तक कि एक जर्मन साइंसदान नही आया,
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    जिसने ये देखा कि वो लोग दो अलग अलग शब्दों से
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    अगले और पिछले पाँवो के बारे में बात कर रह थे.
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    जबकि जैनेटिक्स को पाँवो के अगले या पिछले होने से फ़र्क नहीं पडता,
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    और न ही जर्मन भाषा को।
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    बस धडाके से
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    समस्या हल हो गयी।
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    यदि आप कोई विचार सोच नहीं पायेंगे,
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    तो आप अटक जायेंगे।
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    मगर यदि दूसरी भाषा वो विचार सोच सके,
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    तो साझेदारी से
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    बहुत कुछ पाया जा सकता है, और सीखा जा सकता है।
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    मेरी बेटी,
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    इंगलैंड से कुवैत यी थी।
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    उसने विज्ञान और गणित अरबी भाषा में सीखा है।
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    एक अरबी विद्यालय में।
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    और उसे उस ज्ञान को अंग्रेजी में अनुवादित करना पडा अपने व्याकरण विद्यालय में।
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    और वो कक्षा में अव्वल थी
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    इन विषयों में।
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    जिस से ये पता चलता है कि
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    जब विद्यार्थी विदेश से हमारे पास आता है,
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    हम शायद उनके ज्ञान को
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    यथोचित सम्मान नहीं दे रहे है,
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    और उन्हें ज्ञान अपनी भाषा में होता है।
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    जब एक भाषा की मृत्यु होती है,
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    हमें नहीं पता चलता है कि उस भाषा के साथ हम क्या खो रहे हैं।
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    पता नहीं आपने सी.एन.एन पर देखा या नहीं --
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    वो हीरो पुरस्कार देते हैं-
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    एक कीन्या के चरवाहे लडके को
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    जो कि अपने गाँव में रात को पढ नही पाता था,
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    क्यों तमाम और बच्चों की तरह ही
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    उसका मिट्टी तेल का दिया,
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    धुँआ करता था, और आँखें खराब करता थी।
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    और ऐसे भी, उस के पास पर्याप्त तेल नहीं होता थी,
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    क्योंकि एक डालर प्रतिदिन में आप क्या क्या खरीद सकते हैं?
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    तो उसने अविष्कार किया
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    एक मुफ़्त सौर-लालटेन का।
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    और अब, उसके गाँव के बच्चे,
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    वही नंबर लाते है, जो कि वो बच्चे
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    जिनके घरों में बिजली है।
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    (अभिवादन)
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    जब उसे वो पुरस्कार मिला,
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    उसने ये प्यारे शब्द कहे:
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    "बच्चे अफ़्रीक को बदल सकते हैं -
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    एक अंधकार-युक्त महाद्वीप से,
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    एक रोशनी भरे महाद्वीप में"
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    एक छोटा सा आयडिया,
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    मगर उसके कितने बडा असर हो सकता है।
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    जिन लोगों के पास रोशनी नहीं है,
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    चाहे दिये की या फ़िर ज्ञान की,
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    वो हमारे अंग्रेजी की परीक्षाओं को पास नहीं कर सकते हैं,
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    और हमें कभी पता नहीं लगेगा कि उनके पास क्या ज्ञान है।
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    आइये उन्हें और स्वयं को
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    अँधकार से निकालें।
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    विविधता का सम्मान करें।
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    अपनी जुबान पर काबू करें।
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    उसे महान विचारों को फ़ैलाने में इस्तेमाल करें।
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    (अभिवादन)
  • 10:08 - 10:10
    धन्यवाद।
  • 10:10 - 10:13
    (अभिवादन)
Title:
पैट्रिसिया रायन: ज़बरदस्ती इंग्लिश न थोपें!
Speaker:
Patricia Ryan
Description:

टेडेक्स दुबई में, अनुभवी इंगलिश अध्यापिका पैट्रिसिया रायन ने एक चुनौती भरा मुद्दा उठाया: क्या विश्व भर का अंग्रेजी पर अत्यधिक केंद्रित होना बाकी भाषाओं में नये विचारों को पैदा होने से रोक रहा है? (उदाहरण के लिये: यदि आइन्सटाइन को टोफ़ेल (TOEFL) की परीक्षा देनी पडती तो क्या होता?)। अनुवाद और विचारों के आदान-प्रदान के पक्ष में दिया गया एक रोचक वकतव्य।

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Video Language:
English
Team:
closed TED
Project:
TEDTalks
Duration:
10:14
Swapnil Dixit added a translation

Hindi subtitles

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