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प्रातःकालीन आध्यात्मिक अभ्यास चिर उपस्थिति के समान कैसे रहें

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    प्रातःकालीन आध्यात्मिक अभ्यास
    चिर उपस्थिति के समान कैसे रहें
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    19 अक्टूबर 2020
    (उपशीर्षक के साथ)
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    [मूजी] सुबह जागने पर बैठ जाओ।
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    बस इतना ही I
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    और सिर्फ अपने होने के एहसास पर ध्यान दो।
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    इससे पहले कि तुम बाहर जाओ
    और दुनिया का एहसास करो,
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    पहले से ही तुम्हारा मन दुनिया का एहसास कर रहा है
    तुम्हारे अपने ही कमरे के अंदर
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    विचारों, भावनाओं, धारणाओं के रूप में,
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    और योजनाओं, अनुमानों, आदि के रूप में I
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    इसलिए शांत होकर बैठो, और ध्यान से देखो।
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    देखो कि क्या तुम मन की ऊर्जा
    और अस्तित्व के बीच का
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    अंतर समझ सकते हो।
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    हमेशा, पहले वहाँ होने का एहसास होता है।
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    तुम में चेतना के बिना मन की ऊर्जा नहीं हो सकती है।
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    होने का एहसास और चेतना एक ही चीज है।
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    तो तुम शांत होकर बैठो I
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    मन को या सोच-विचार को
    रोकने की कोशिश मत करो।
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    पहले ध्यान से देखो।
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    यह एक बहुत ही मध्यस्थ मनोभाव है।
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    तुम डटें रहो। ध्यान से देखते रहो।
    बस अवलोकन करते रहो।
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    तुम कहते हो, 'आह्'।
    तुम काफी कुछ महसूस कर सकते हो [मन की चक-चक]।
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    उसमें मत उलझो।
    उसमें लॉग-इन ना करो I
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    बस उसे ध्यान से देखो।
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    साथ ही उस आकाश की ओर ध्यान दो
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    जिसकी ओर हम अक्सर ध्यान नहीं देते हैं।
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    इसकी ओर कोई ध्यान नहीं देता है।
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    और फिर भी, वह आकाश यहाँ है
    किसी भी कोलाहल के आरम्भ होने से पहले।
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    वह यहाँ है ,कोलाहल के दौरान भी
    और कोलाहल ख़तम होने के बाद भी I
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    उसे कुछ नहीं हुआ है।
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    तो मैं कहता हूँ, बस ध्यान दो ।
    कोई रचना मत करो ।
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    बस सरल, शांत ध्यान।
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    और फिर तुम देखना लगते हो
    कि यह सब ही मन है,
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    और यह लगभग हमेशा व्यक्तिगत होता है।
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    'मुझे यह करना है और यह ... ' ' ओह, नहीं ... '
    ' चक -चक, चक -चक...
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    मन की बकवासI
    हमेशा व्यक्तिगत होती हैं।
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    होने का एहसास व्यक्तिगत नहीं होता है।
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    यह आकाश , मौन और शांति के समान है।
    एक चिर उपस्थिति!
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    बस उपस्थिति I
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    एक शब्द में मैं कह सकता हूँ , बस 'उपस्थिति'।
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    अव्यक्तिगत उपस्थिति। अपक्षपाती उपस्थिति।
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    उसी में स्थित रहो,
    सिर्फ और सिर्फ उपस्थिति के साथ एक होकर।
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    उपस्थिति के साथ एकरूप रहो
    क्योंकि वह ही आधार है।
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    मन, तूफान में लंगर के बिना एक जहाज की तरह है।
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    [डूबते-उतरते जहाज़ की नक़ल करते हुए ]
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    लेकिन यह उपस्थिति जड़ की तरह है।
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    मैं इसे लंगर नहीं कह सकता
    क्योंकि लंगर एक छोटी चीज है।
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    उपस्थिति हर जगह है!
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    उसी के साथ रहो और बस उस पर ध्यान देकर
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    अपने अस्तित्व को स्पष्टता से जानो।
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    और देखो कि यह प्रतीक्षा की स्थिति नहीं है।
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    होने का एहसास
    मन के शांत होने का इंतजार नहीं कर रहा है।
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    यह बस नित्य है। यह बस है।
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    मन के सापेक्ष, यह एक स्थिर स्थिति है।
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    बस वैसे ही रहो ,
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    उस मन और उपस्थिति के बीच के भेद को देखते हुए।
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    फिर तुमको मन को
    नियंत्रित करने की कोशिश नहीं करनी पड़ेगी।
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    बस उपस्थिति के साथ एक होने से ,
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    मन की निरर्थक बातें बहुत कमजोर, अर्थहीन हो जाती हैं ।
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    यदि तुम व्यक्ति के रूप में रहते हो ,
  • 3:22 - 3:30
    जिसे तुम कह सकते हो ,
  • 3:30 - 3:32
    रोज़मर्रा के निजी व्यक्तित्व की तरह,
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    यदि तुम व्यक्ति के रूप में रहते हो ,
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    तब वह ही है
    जिसके साथ मन ज्यादा सम्बन्ध जोड़ता है।
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    [चक-चक ,चक-चक]
    ऐसे I
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    लेकिन अगर तुम होने के एहसास में रहते हो ,
    तो यह जो चल भी रहा है, कुछ नहीं है।
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    क्योंकि वह बदल जाएगा।
    यह हमेशा बदल रहा है।
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    उस मंच पर हमेशा नए कलाकार होते हैं I
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    पर आत्म बोध में होना,
    यह सुन्दर हैI
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    यदि तुम ऐसा करते हो ,
    भले दस मिनट के लिए क्यों न हो ,
  • 3:57 - 3:59
    तुम इसे बहुत पसंद करोगे
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    क्योंकि तुम शांति अनुभव करते हो
    जो स्वभावतः तुम्हारा स्वरुप ही है।
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    तुम बस उस पर ध्यान दो।
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    भले ही तुम इसे थोड़े समय के लिए करो,
    पूरी तरह से करो।
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    तुम उस बिंदु पर पहुंचोगे जहाँ तुम देखोगे ,
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    'अच्छा , मूजी कहते हैं,
    "मन की बातों में मत उलझो",
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    लेकिन यह मुश्किल है
    क्योंकि वे बहुत परिचित हैं '।
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    यह ऐसा है जैसे पुराने दोस्त
    घर पर आकर दस्तक दे रहे हों I
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    और, 'रुको !'
    तुम्हें जवाब नहीं देना है।
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    मैंने कहा, सही है, तुम जवाब नहीं दोगे
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    क्योंकि, हालाँकि वे पुराने दोस्त हैं,
    पर वे नीरस दोस्त हैं।
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    वे अच्छे दोस्त नहीं हैं।
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    किसी चीज़ को इसलिए स्वीकार न करो ,
    क्योंकि वह परिचित है ।
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    ऐसा हो रहा है ,
    और तुम उस परिदृश्य को जानते हो।
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    जिस क्षण तुम इससे व्यक्तिगत दृष्टिकोण से जुड़ते हो
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    इससे दूर जाना बहुत मुश्किल होता है।
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    लेकिन तुम अपने विवेक का प्रयोग करते हो ।
    तुम देख रहे हो।
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    यह कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे तुमको बनाना है
    क्योंकि वह पहले से ही एक तथ्य है।
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    बस इतना है कि यह एक अनदेखा तथ्य है।
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    अब तुमको इस तथ्य पर ध्यान देना चाहिए
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    कि जब तुम खुद को 'मैं' समझते हो ,
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    मन इस 'मैं' पर बहुत जल्दी अधिकार जमा लेता है ।
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    जब हम 'मैं' कहते हैं,
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    हम लगभग हमेशा सोच रहे होते हैं, 'मैं व्यक्ति हूँ '।
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    'मैं व्यक्ति हूँ '।
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    शब्द नहीं, लेकिन वास्तव में उनका क्या मतलब है।
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    हम खुद को एक व्यक्ति समझते हैं।
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    तुम अपने कमरे को छोड़ते हो एक व्यक्ति के रूप में I
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    अगर तुम एक व्यक्ति के रूप में बाहर जाते हो ,
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    तो तुम सारे व्यक्ति रूपों से ही मिलोगे ।
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    और तुम्हारे आपसी सम्बन्ध
    दो व्यक्तियों के बीच में होंगे।
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    अपने कमरे को चिर उपस्थिति समान छोड़ो I
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    कमरे को चिर उपस्थिति समान छोड़ो I
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    यह छोटी सी चीज़ तुम कर सकते हो ।
    और इसमें कोई समय भी नहीं लगता है।
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    धीरे-धीरे, जब तुम ऐसा करते रहते हो ,
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    तुम देखते हो कि यह स्वाभाविक हो जाता है।
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    ऐसा नहीं है कि तुम को अभ्यास करना है
    स्व बनने के लिए,
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    लेकिन तुमको अपने स्व में रहने का अभ्यास करना है।
    समझे ?
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    तुम्हारा स्व यहाँ है। हमारा सच्चा स्व यहाँ है।
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    यहाँ तक ​​कि मिथ्या स्व भी
    सच्चे स्व के बिना प्रकट नहीं हो सकते हैं I
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    वह यहाँ है।
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    पर यंत्रवत तुम व्यक्तिगत स्थान से शुरू करते हो,
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    तुम यहाँ हो ,
    लेकिन तुम ऐसे जी रहे हो जैसे तुम वहाँ हो,
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    और तुम दुनिया से भी उसी स्थान से मिल रहे हो।
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    यही कारण है कि मैं कहता हूँ ,
    कि यह जो तुम हो उसका मुखौटा है।
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    तुम दुनिया के साथ लेन देन कर रहे हो,
    लेकिन वास्तव में, तुम्हारा स्व यहाँ है।
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    अपने सत्य स्वरूप से अनभिज्ञ,
    तुम मुखौटा के रूप में जी रहे हो ।
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    यह मुख्य और सबसे महत्वपूर्ण बात है
    पहचानने के लिए।
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    यह सबसे महत्वपूर्ण है!
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    यदि तुम केवल आने वाली
    छोटी-मोटी परेशानियों को गोली मारते रहोगे ,
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    [व्यक्तिगत मुसीबतों को गोली मारने का अभिनय करते हैं]
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    तुम्हे बड़े बुलेट स्टोर से संपर्क करना पड़ेगा ,
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    क्योंकि यह तो कुछ न कुछ नया लेकर आते ही रहेंगेI
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    या फिर,यदि तुम एक रस्सी और काँटा लेकर
    मछली पकड़ने जाते हो
  • 7:10 - 7:13
    तुम जब तब एक मछली पकड़ सकते हो ,
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    लेकिन मैं तुम्हारे साथ जो साझा कर रहा हूँ ,
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    वह एक विशाल जाल डाल मछली पकड़ने की तरह है
    जो पूरे सागर को आच्छादित करता है।
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    मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ ?
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    तुम्हे उसको खोजना है जो इस दुनिया का
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    और इस सांसारिक व्यक्ति
    और उसकी पहचान का कारण है।
  • 7:32 - 7:34
    तुम्हे उसको खोजना है I
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    क्यों? तुम उसे कैसे जान सकते हो?
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    क्योंकि वह भी 'मैं ’के नाम से जाना जाता है।
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    यह महान विरोधाभासों में से एक है।
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    क्योंकि मैं कहता हूँ ,
    'मैं' भाव सबसे पहले प्रकट होता है,
  • 7:51 - 7:55
    किसी भी भाषा में 'मैं ' शब्द पहला है।
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    यह अंतर्दृष्टि ,'मैं हूँ ' का बोध सबसे पहले प्रकट होता है।
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    तभी तुम दूसरों को, या यह और वह देख सकते हो,
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    क्योंकि 'मैं' कर्ता है,
    जो 'मैं ' की भावना को अनुभव करता है ।
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    लेकिन हमें समझना चाहिए
    कि 'मैं' का क्या अर्थ है।
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    क्योंकि, जैसा मैंने पहले कहा,
    भगवान कहते हैं, 'मैं हूँ '
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    लेकिन अहम् भी कहता है, 'मैं हूँ ',
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    और तो और शैतान भी कहता है, 'मैं हूँ'।
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    तो, क्या यह एक ही बात है?
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    तुम को अंतर देखना चाहिए।
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    व्यक्तिगत भाव 'मैं हूँ' मूल कारण है,
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    'मैं हूँ ' यानि की, 'मैं शरीर हूँ।'
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    तुमहें आभास नहीं होता है ,
    लेकिन स्वाभाविक रूप से हम ऐसा समझ लेते हैं।
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    'अगर तुम इस शरीर को देखते हो, तो मैं यह हूँ।
    यह मैं हूँ।'
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    'मैं शरीर हूँ',
    फिर, 'मैं अपने संस्कार हूँ'।
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    फिर नए संस्कार आ सकते हैं I
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    यहीं से व्यक्ति का जन्म होता है।
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    व्यक्ति का जन्म,
    शरीर के जन्म के समय नहीं होता है।
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    इस धारणा के पैदा होने पर
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    कि 'मैं शरीर हूँ और मैं अपने संस्कार हूँ',
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    जब यह पैदा होता है, तो व्यक्ति प्रकट होता है।
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    लेकिन व्यक्ति के आने से पहले,
    चेतना वहाँ होती है।
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    [मूजी] क्या यह कुछ ज्यादा कहना हुआ ?
    [संघ में से आवाज़ें ] नहीं।
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    [मूजी] तो, तुम इस यंत्रवत प्रतिक्रिया की ऊर्जा पर
    रोक लगाना शुरू करते हो
  • 9:23 - 9:30
    यानि की तुरंत ही
    'मैं व्यक्ति हूँ ' वाले तरीक से सोचना शुरू कर देना ,
  • 9:30 - 9:33
    तब तुम पूरे दिन यह सोच जारी रख सकते हो कि
    'मैं व्यक्ति हूँ '
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    और सभी समस्याओं को 'मैं व्यक्ति हूँ, मैं शरीर हूँ '
  • 9:36 - 9:39
    वाली समझ से हल करने की कोशिश कर सकते हो।
  • 9:39 - 9:42
    यही कारण है कि मैं कहता हूँ ,
    सुबह जब तुम उठते हो ,
  • 9:42 - 9:46
    थोड़ी देर मौन में बैठो,
  • 9:46 - 9:49
    और स्व के भान पर ध्यान दो ,
  • 9:49 - 9:55
    जिसका अर्थ है अपने मन और अपने होने के भाव,
  • 9:55 - 9:58
    को देखो और उनके अंतर को समझो ।
  • 9:58 - 10:02
    मन कर रहा होगा [चक-चक की आवाज़ ]
    कुछ व्यक्तिगत प्रकार से ।
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    होने का भान अव्यक्तिगत है I
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    होने का भान आकाश की तरह है।
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    अंदर और बाहर, यह आकाश की तरह है।
  • 10:10 - 10:14
    मन एक व्यक्ति की तरह है,
    क्योंकि यह कोलाहल
  • 10:14 - 10:16
    और प्रयोजन और भावनाओं,
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    योजनाओं, मोह और इच्छाओं
    इन सभी इतिहास के साथ आता है।
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    और तुम्हें इस कोलाहल का भान है ।
  • 10:23 - 10:28
    तो, इस बार, बस इससे जुड़ो नहीं।
  • 10:28 - 10:30
    बस इसके बारे में सजग रहो।
  • 10:30 - 10:34
    यदि तुम इससे जुड़ोगे, तो तुम बोलोगे,
    'कृपया इससे छुटकारा पाने में मेरी मदद करें'।
  • 10:34 - 10:37
    सिर्फ सजग रहना काफी है। सजग रहो।
  • 10:37 - 10:39
    और साथ ही में ,
  • 10:39 - 10:45
    होने के विस्तार,
    चिर उपस्थिति के स्थान के बारे में सजग रहो ।
  • 10:45 - 10:50
    और तुम देखोगे कि चिर उपस्थिति स्थिर है,
    मन गतिशील है।
  • 10:50 - 10:53
    इस स्थिरता की शांति में स्थित रहो।
  • 10:53 - 10:56
    तुमको कुछ बनने की जरूरत नहीं है।
  • 10:56 - 10:58
    यह वहाँ पहले से ही है!
  • 10:58 - 11:00
    तुम पहले से ही स्थिर शांति के स्थान से देख रहे हो।
  • 11:00 - 11:02
    इसलिए जब मैं कहता हूँ , शून्य रहो ,
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    शून्य का अर्थ है शून्यता, आत्मन।
    ऐसे ही रहो।
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    यदि तुम पांच, सात मिनट के लिए ऐसे बैठते हो,
    दस मिनट अगर तुम चाहो तो ,
  • 11:12 - 11:16
    तो यह दस मिनट
    सबसे अच्छे दस मिनट होएंगे जो तुम बिताओगे।
  • 11:19 - 11:22
    कॉपीराइट © 2020 मूजी मीडिया लि।
    सर्वाधिकार सुरक्षित।
  • 11:22 - 11:25
    इस रिकॉर्डिंग का कोई भी भाग
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    बिना मूजी मीडिया लिमिटेड की सहमति के
    पुनः प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है।
Title:
प्रातःकालीन आध्यात्मिक अभ्यास चिर उपस्थिति के समान कैसे रहें
Description:

इस सप्ताह का सत्संग
https://mooji.tv/satsang-of-the-week

मूजी बाबा ने चिर उपस्थिति में स्थित होकर पर दिन की शुरुआत करने के बारे में बहुत ही सरल और व्यावहारिक सलाह दी है ।

"मैं यह बातें मन को कुछ समझाने के लिए नहीं कह रहा हूँ , बल्कि मन को उसमें घुल जाये इसलिए कह रहा हूँ । चिर उपस्थिति में स्थित रहो , यह सबसे अच्छे दस मिनट होने वाले हैं जो तुम बिताओगे ।"

मॉन्टे सहजा, पुर्तगाल
19 अक्टूबर 2020

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Video Language:
English
Duration:
11:33

Hindi subtitles

Incomplete

Revisions