प्रातःकालीन आध्यात्मिक अभ्यास चिर उपस्थिति के समान कैसे रहें
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0:08 - 0:12प्रातःकालीन आध्यात्मिक अभ्यास
चिर उपस्थिति के समान कैसे रहें -
0:12 - 0:1519 अक्टूबर 2020
(उपशीर्षक के साथ) -
0:16 - 0:21[मूजी] सुबह जागने पर बैठ जाओ।
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0:21 - 0:23बस इतना ही I
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0:23 - 0:26और सिर्फ अपने होने के एहसास पर ध्यान दो।
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0:26 - 0:30इससे पहले कि तुम बाहर जाओ
और दुनिया का एहसास करो, -
0:30 - 0:35पहले से ही तुम्हारा मन दुनिया का एहसास कर रहा है
तुम्हारे अपने ही कमरे के अंदर -
0:35 - 0:38विचारों, भावनाओं, धारणाओं के रूप में,
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0:38 - 0:40और योजनाओं, अनुमानों, आदि के रूप में I
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0:40 - 0:44इसलिए शांत होकर बैठो, और ध्यान से देखो।
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0:44 - 0:49देखो कि क्या तुम मन की ऊर्जा
और अस्तित्व के बीच का -
0:49 - 0:52अंतर समझ सकते हो।
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0:52 - 0:55हमेशा, पहले वहाँ होने का एहसास होता है।
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0:55 - 0:58तुम में चेतना के बिना मन की ऊर्जा नहीं हो सकती है।
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0:58 - 1:01होने का एहसास और चेतना एक ही चीज है।
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1:01 - 1:03तो तुम शांत होकर बैठो I
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1:03 - 1:07मन को या सोच-विचार को
रोकने की कोशिश मत करो। -
1:07 - 1:09पहले ध्यान से देखो।
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1:09 - 1:12यह एक बहुत ही मध्यस्थ मनोभाव है।
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1:12 - 1:15तुम डटें रहो। ध्यान से देखते रहो।
बस अवलोकन करते रहो। -
1:15 - 1:19तुम कहते हो, 'आह्'।
तुम काफी कुछ महसूस कर सकते हो [मन की चक-चक]। -
1:19 - 1:22उसमें मत उलझो।
उसमें लॉग-इन ना करो I -
1:22 - 1:24बस उसे ध्यान से देखो।
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1:24 - 1:27साथ ही उस आकाश की ओर ध्यान दो
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1:27 - 1:30जिसकी ओर हम अक्सर ध्यान नहीं देते हैं।
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1:30 - 1:33इसकी ओर कोई ध्यान नहीं देता है।
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1:33 - 1:37और फिर भी, वह आकाश यहाँ है
किसी भी कोलाहल के आरम्भ होने से पहले। -
1:37 - 1:41वह यहाँ है ,कोलाहल के दौरान भी
और कोलाहल ख़तम होने के बाद भी I -
1:41 - 1:42उसे कुछ नहीं हुआ है।
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1:42 - 1:46तो मैं कहता हूँ, बस ध्यान दो ।
कोई रचना मत करो । -
1:46 - 1:49बस सरल, शांत ध्यान।
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1:49 - 1:52और फिर तुम देखना लगते हो
कि यह सब ही मन है, -
1:52 - 1:55और यह लगभग हमेशा व्यक्तिगत होता है।
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1:55 - 1:59'मुझे यह करना है और यह ... ' ' ओह, नहीं ... '
' चक -चक, चक -चक... -
1:59 - 2:01मन की बकवासI
हमेशा व्यक्तिगत होती हैं। -
2:01 - 2:04होने का एहसास व्यक्तिगत नहीं होता है।
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2:04 - 2:10यह आकाश , मौन और शांति के समान है।
एक चिर उपस्थिति! -
2:10 - 2:12बस उपस्थिति I
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2:12 - 2:15एक शब्द में मैं कह सकता हूँ , बस 'उपस्थिति'।
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2:15 - 2:17अव्यक्तिगत उपस्थिति। अपक्षपाती उपस्थिति।
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2:17 - 2:21उसी में स्थित रहो,
सिर्फ और सिर्फ उपस्थिति के साथ एक होकर। -
2:21 - 2:24उपस्थिति के साथ एकरूप रहो
क्योंकि वह ही आधार है। -
2:24 - 2:29मन, तूफान में लंगर के बिना एक जहाज की तरह है।
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2:29 - 2:31[डूबते-उतरते जहाज़ की नक़ल करते हुए ]
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2:31 - 2:33लेकिन यह उपस्थिति जड़ की तरह है।
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2:33 - 2:37मैं इसे लंगर नहीं कह सकता
क्योंकि लंगर एक छोटी चीज है। -
2:37 - 2:39उपस्थिति हर जगह है!
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2:39 - 2:43उसी के साथ रहो और बस उस पर ध्यान देकर
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2:43 - 2:46अपने अस्तित्व को स्पष्टता से जानो।
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2:46 - 2:50और देखो कि यह प्रतीक्षा की स्थिति नहीं है।
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2:50 - 2:53होने का एहसास
मन के शांत होने का इंतजार नहीं कर रहा है। -
2:53 - 2:56यह बस नित्य है। यह बस है।
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2:56 - 2:59मन के सापेक्ष, यह एक स्थिर स्थिति है।
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2:59 - 3:02बस वैसे ही रहो ,
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3:02 - 3:08उस मन और उपस्थिति के बीच के भेद को देखते हुए।
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3:08 - 3:11फिर तुमको मन को
नियंत्रित करने की कोशिश नहीं करनी पड़ेगी। -
3:11 - 3:14बस उपस्थिति के साथ एक होने से ,
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3:14 - 3:19मन की निरर्थक बातें बहुत कमजोर, अर्थहीन हो जाती हैं ।
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3:19 - 3:22यदि तुम व्यक्ति के रूप में रहते हो ,
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3:22 - 3:30जिसे तुम कह सकते हो ,
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3:30 - 3:32रोज़मर्रा के निजी व्यक्तित्व की तरह,
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3:32 - 3:35यदि तुम व्यक्ति के रूप में रहते हो ,
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3:35 - 3:38तब वह ही है
जिसके साथ मन ज्यादा सम्बन्ध जोड़ता है। -
3:38 - 3:40[चक-चक ,चक-चक]
ऐसे I -
3:40 - 3:45लेकिन अगर तुम होने के एहसास में रहते हो ,
तो यह जो चल भी रहा है, कुछ नहीं है। -
3:45 - 3:48क्योंकि वह बदल जाएगा।
यह हमेशा बदल रहा है। -
3:48 - 3:50उस मंच पर हमेशा नए कलाकार होते हैं I
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3:50 - 3:53पर आत्म बोध में होना,
यह सुन्दर हैI -
3:53 - 3:57यदि तुम ऐसा करते हो ,
भले दस मिनट के लिए क्यों न हो , -
3:57 - 3:59तुम इसे बहुत पसंद करोगे
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3:59 - 4:03क्योंकि तुम शांति अनुभव करते हो
जो स्वभावतः तुम्हारा स्वरुप ही है। -
4:03 - 4:06तुम बस उस पर ध्यान दो।
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4:06 - 4:09भले ही तुम इसे थोड़े समय के लिए करो,
पूरी तरह से करो। -
4:09 - 4:12तुम उस बिंदु पर पहुंचोगे जहाँ तुम देखोगे ,
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4:12 - 4:16'अच्छा , मूजी कहते हैं,
"मन की बातों में मत उलझो", -
4:16 - 4:20लेकिन यह मुश्किल है
क्योंकि वे बहुत परिचित हैं '। -
4:20 - 4:24यह ऐसा है जैसे पुराने दोस्त
घर पर आकर दस्तक दे रहे हों I -
4:24 - 4:26और, 'रुको !'
तुम्हें जवाब नहीं देना है। -
4:26 - 4:28मैंने कहा, सही है, तुम जवाब नहीं दोगे
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4:28 - 4:32क्योंकि, हालाँकि वे पुराने दोस्त हैं,
पर वे नीरस दोस्त हैं। -
4:32 - 4:35
वे अच्छे दोस्त नहीं हैं। -
4:35 - 4:39किसी चीज़ को इसलिए स्वीकार न करो ,
क्योंकि वह परिचित है । -
4:39 - 4:43ऐसा हो रहा है ,
और तुम उस परिदृश्य को जानते हो। -
4:43 - 4:46जिस क्षण तुम इससे व्यक्तिगत दृष्टिकोण से जुड़ते हो
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4:46 - 4:50इससे दूर जाना बहुत मुश्किल होता है।
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4:50 - 4:54लेकिन तुम अपने विवेक का प्रयोग करते हो ।
तुम देख रहे हो। -
4:54 - 4:59यह कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे तुमको बनाना है
क्योंकि वह पहले से ही एक तथ्य है। -
4:59 - 5:01बस इतना है कि यह एक अनदेखा तथ्य है।
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5:01 - 5:04अब तुमको इस तथ्य पर ध्यान देना चाहिए
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5:04 - 5:07कि जब तुम खुद को 'मैं' समझते हो ,
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5:07 - 5:12मन इस 'मैं' पर बहुत जल्दी अधिकार जमा लेता है ।
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5:12 - 5:14जब हम 'मैं' कहते हैं,
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5:14 - 5:17हम लगभग हमेशा सोच रहे होते हैं, 'मैं व्यक्ति हूँ '।
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5:17 - 5:19'मैं व्यक्ति हूँ '।
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5:19 - 5:24शब्द नहीं, लेकिन वास्तव में उनका क्या मतलब है।
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5:24 - 5:27हम खुद को एक व्यक्ति समझते हैं।
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5:27 - 5:30तुम अपने कमरे को छोड़ते हो एक व्यक्ति के रूप में I
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5:30 - 5:33अगर तुम एक व्यक्ति के रूप में बाहर जाते हो ,
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5:33 - 5:35तो तुम सारे व्यक्ति रूपों से ही मिलोगे ।
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5:35 - 5:39और तुम्हारे आपसी सम्बन्ध
दो व्यक्तियों के बीच में होंगे। -
5:39 - 5:42अपने कमरे को चिर उपस्थिति समान छोड़ो I
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5:42 - 5:44कमरे को चिर उपस्थिति समान छोड़ो I
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5:44 - 5:48यह छोटी सी चीज़ तुम कर सकते हो ।
और इसमें कोई समय भी नहीं लगता है। -
5:48 - 5:53धीरे-धीरे, जब तुम ऐसा करते रहते हो ,
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5:53 - 5:55तुम देखते हो कि यह स्वाभाविक हो जाता है।
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5:55 - 5:59ऐसा नहीं है कि तुम को अभ्यास करना है
स्व बनने के लिए, -
5:59 - 6:02लेकिन तुमको अपने स्व में रहने का अभ्यास करना है।
समझे ? -
6:02 - 6:05तुम्हारा स्व यहाँ है। हमारा सच्चा स्व यहाँ है।
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6:05 - 6:09यहाँ तक कि मिथ्या स्व भी
सच्चे स्व के बिना प्रकट नहीं हो सकते हैं I -
6:09 - 6:11वह यहाँ है।
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6:11 - 6:16पर यंत्रवत तुम व्यक्तिगत स्थान से शुरू करते हो,
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6:16 - 6:19तुम यहाँ हो ,
लेकिन तुम ऐसे जी रहे हो जैसे तुम वहाँ हो, -
6:19 - 6:22और तुम दुनिया से भी उसी स्थान से मिल रहे हो।
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6:22 - 6:26यही कारण है कि मैं कहता हूँ ,
कि यह जो तुम हो उसका मुखौटा है। -
6:26 - 6:31तुम दुनिया के साथ लेन देन कर रहे हो,
लेकिन वास्तव में, तुम्हारा स्व यहाँ है। -
6:31 - 6:37अपने सत्य स्वरूप से अनभिज्ञ,
तुम मुखौटा के रूप में जी रहे हो । -
6:37 - 6:45यह मुख्य और सबसे महत्वपूर्ण बात है
पहचानने के लिए। -
6:45 - 6:47यह सबसे महत्वपूर्ण है!
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6:47 - 6:54यदि तुम केवल आने वाली
छोटी-मोटी परेशानियों को गोली मारते रहोगे , -
6:54 - 6:57[व्यक्तिगत मुसीबतों को गोली मारने का अभिनय करते हैं]
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6:57 - 7:02तुम्हे बड़े बुलेट स्टोर से संपर्क करना पड़ेगा ,
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7:02 - 7:06क्योंकि यह तो कुछ न कुछ नया लेकर आते ही रहेंगेI
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7:06 - 7:10या फिर,यदि तुम एक रस्सी और काँटा लेकर
मछली पकड़ने जाते हो -
7:10 - 7:13तुम जब तब एक मछली पकड़ सकते हो ,
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7:13 - 7:16लेकिन मैं तुम्हारे साथ जो साझा कर रहा हूँ ,
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7:16 - 7:21वह एक विशाल जाल डाल मछली पकड़ने की तरह है
जो पूरे सागर को आच्छादित करता है। -
7:21 - 7:23मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ ?
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7:23 - 7:29तुम्हे उसको खोजना है जो इस दुनिया का
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7:29 - 7:32और इस सांसारिक व्यक्ति
और उसकी पहचान का कारण है। -
7:32 - 7:34तुम्हे उसको खोजना है I
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7:34 - 7:37क्यों? तुम उसे कैसे जान सकते हो?
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7:37 - 7:40क्योंकि वह भी 'मैं ’के नाम से जाना जाता है।
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7:40 - 7:45यह महान विरोधाभासों में से एक है।
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7:45 - 7:51क्योंकि मैं कहता हूँ ,
'मैं' भाव सबसे पहले प्रकट होता है, -
7:51 - 7:55किसी भी भाषा में 'मैं ' शब्द पहला है।
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7:55 - 8:01यह अंतर्दृष्टि ,'मैं हूँ ' का बोध सबसे पहले प्रकट होता है।
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8:01 - 8:05तभी तुम दूसरों को, या यह और वह देख सकते हो,
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8:05 - 8:09क्योंकि 'मैं' कर्ता है,
जो 'मैं ' की भावना को अनुभव करता है । -
8:09 - 8:13लेकिन हमें समझना चाहिए
कि 'मैं' का क्या अर्थ है। -
8:13 - 8:17क्योंकि, जैसा मैंने पहले कहा,
भगवान कहते हैं, 'मैं हूँ ' -
8:17 - 8:20लेकिन अहम् भी कहता है, 'मैं हूँ ',
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8:20 - 8:23और तो और शैतान भी कहता है, 'मैं हूँ'।
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8:23 - 8:25तो, क्या यह एक ही बात है?
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8:25 - 8:27तुम को अंतर देखना चाहिए।
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8:27 - 8:32व्यक्तिगत भाव 'मैं हूँ' मूल कारण है,
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8:32 - 8:35'मैं हूँ ' यानि की, 'मैं शरीर हूँ।'
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8:35 - 8:40तुमहें आभास नहीं होता है ,
लेकिन स्वाभाविक रूप से हम ऐसा समझ लेते हैं। -
8:40 - 8:43'अगर तुम इस शरीर को देखते हो, तो मैं यह हूँ।
यह मैं हूँ।' -
8:43 - 8:48'मैं शरीर हूँ',
फिर, 'मैं अपने संस्कार हूँ'। -
8:48 - 8:50फिर नए संस्कार आ सकते हैं I
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8:50 - 8:53यहीं से व्यक्ति का जन्म होता है।
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8:53 - 8:56व्यक्ति का जन्म,
शरीर के जन्म के समय नहीं होता है। -
8:56 - 8:58इस धारणा के पैदा होने पर
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8:58 - 9:03कि 'मैं शरीर हूँ और मैं अपने संस्कार हूँ',
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9:03 - 9:06जब यह पैदा होता है, तो व्यक्ति प्रकट होता है।
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9:06 - 9:11लेकिन व्यक्ति के आने से पहले,
चेतना वहाँ होती है। -
9:11 - 9:16[मूजी] क्या यह कुछ ज्यादा कहना हुआ ?
[संघ में से आवाज़ें ] नहीं। -
9:16 - 9:23[मूजी] तो, तुम इस यंत्रवत प्रतिक्रिया की ऊर्जा पर
रोक लगाना शुरू करते हो -
9:23 - 9:30यानि की तुरंत ही
'मैं व्यक्ति हूँ ' वाले तरीक से सोचना शुरू कर देना , -
9:30 - 9:33तब तुम पूरे दिन यह सोच जारी रख सकते हो कि
'मैं व्यक्ति हूँ ' -
9:33 - 9:36और सभी समस्याओं को 'मैं व्यक्ति हूँ, मैं शरीर हूँ '
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9:36 - 9:39वाली समझ से हल करने की कोशिश कर सकते हो।
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9:39 - 9:42यही कारण है कि मैं कहता हूँ ,
सुबह जब तुम उठते हो , -
9:42 - 9:46थोड़ी देर मौन में बैठो,
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9:46 - 9:49और स्व के भान पर ध्यान दो ,
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9:49 - 9:55जिसका अर्थ है अपने मन और अपने होने के भाव,
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9:55 - 9:58को देखो और उनके अंतर को समझो ।
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9:58 - 10:02मन कर रहा होगा [चक-चक की आवाज़ ]
कुछ व्यक्तिगत प्रकार से । -
10:02 - 10:05होने का भान अव्यक्तिगत है I
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10:05 - 10:08होने का भान आकाश की तरह है।
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10:08 - 10:10अंदर और बाहर, यह आकाश की तरह है।
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10:10 - 10:14मन एक व्यक्ति की तरह है,
क्योंकि यह कोलाहल -
10:14 - 10:16और प्रयोजन और भावनाओं,
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10:16 - 10:20योजनाओं, मोह और इच्छाओं
इन सभी इतिहास के साथ आता है। -
10:20 - 10:23और तुम्हें इस कोलाहल का भान है ।
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10:23 - 10:28तो, इस बार, बस इससे जुड़ो नहीं।
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10:28 - 10:30बस इसके बारे में सजग रहो।
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10:30 - 10:34यदि तुम इससे जुड़ोगे, तो तुम बोलोगे,
'कृपया इससे छुटकारा पाने में मेरी मदद करें'। -
10:34 - 10:37सिर्फ सजग रहना काफी है। सजग रहो।
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10:37 - 10:39और साथ ही में ,
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10:39 - 10:45होने के विस्तार,
चिर उपस्थिति के स्थान के बारे में सजग रहो । -
10:45 - 10:50और तुम देखोगे कि चिर उपस्थिति स्थिर है,
मन गतिशील है। -
10:50 - 10:53इस स्थिरता की शांति में स्थित रहो।
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10:53 - 10:56तुमको कुछ बनने की जरूरत नहीं है।
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10:56 - 10:58यह वहाँ पहले से ही है!
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10:58 - 11:00तुम पहले से ही स्थिर शांति के स्थान से देख रहे हो।
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11:00 - 11:02इसलिए जब मैं कहता हूँ , शून्य रहो ,
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11:02 - 11:08शून्य का अर्थ है शून्यता, आत्मन।
ऐसे ही रहो। -
11:08 - 11:12यदि तुम पांच, सात मिनट के लिए ऐसे बैठते हो,
दस मिनट अगर तुम चाहो तो , -
11:12 - 11:16तो यह दस मिनट
सबसे अच्छे दस मिनट होएंगे जो तुम बिताओगे। -
11:19 - 11:22कॉपीराइट © 2020 मूजी मीडिया लि।
सर्वाधिकार सुरक्षित। -
11:22 - 11:25इस रिकॉर्डिंग का कोई भी भाग
-
11:25 - 11:30बिना मूजी मीडिया लिमिटेड की सहमति के
पुनः प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है।
- Title:
- प्रातःकालीन आध्यात्मिक अभ्यास चिर उपस्थिति के समान कैसे रहें
- Description:
-
इस सप्ताह का सत्संग
https://mooji.tv/satsang-of-the-weekमूजी बाबा ने चिर उपस्थिति में स्थित होकर पर दिन की शुरुआत करने के बारे में बहुत ही सरल और व्यावहारिक सलाह दी है ।
"मैं यह बातें मन को कुछ समझाने के लिए नहीं कह रहा हूँ , बल्कि मन को उसमें घुल जाये इसलिए कह रहा हूँ । चिर उपस्थिति में स्थित रहो , यह सबसे अच्छे दस मिनट होने वाले हैं जो तुम बिताओगे ।"
मॉन्टे सहजा, पुर्तगाल
19 अक्टूबर 2020 - Video Language:
- English
- Duration:
- 11:33
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