क्या आप काली बिल्लियों से डरते हैं? क्या आप छत के नीचे छाता खोलेंगे? और आप तेरह अंक के बारे में क्या सोचते हैं? चाहे आप इनमें विश्वास करते हों या ना, आप इनमें से कुछ अंधविश्वासों के बारे में जानते तो होंगे ही। तो ऐसा कैसे हुआ कि दुनिया भर के लोग लकड़ी पर खटखटाते हैं, या फुटपाथ की दरारों से बच के निकलते हैं। ये बातें विज्ञान पर तो आधारित नहीं हैं, लेकिन इनमें से बहुत सी अजीब और विशिष्ट धारणाओं और प्रथाओं के उतने ही अजीब और विशिष्ट स्रोत हैं। क्योंकि इनमें अलौकिक कारण शामिल हैं, इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि बहुत से अंधविश्वास धर्म पर आधारित हैं। उदाहरण के लिये, तेरह अंक बाइबिल के अंतिम रात्रिभोज से सम्बन्धित था, जब ईसा मसीह ने अपने बारह शिष्यों के साथ खाना खाया था, अपने गिरफ्तार होने और सूली पर चढ़ाये जाने से बिलकुल पहले। परिणामस्वरूप ये विचार, कि मेज़ पर तेरह लोगों का होना दुर्भाग्य होता है, अंततः तेरह अंक के आम तौर पर दुर्भाग्यपूर्ण होने के रूप में माना जाने लगा। और अब इस तेरह अंक के डर, जिसको Triskaidekaphobia कहते हैं, इतना आम है कि दुनिया भर में बहुत सी इमारतों में तेरहवीं मंज़िल ही नहीं होती, बारहवीं के बाद सीधा चौदहवीं होती है। बेशक, बहुत लोग फसह के भोज की कहानी को सच मानते हैं, लेकिन बाकी अंधविश्वास ऐसी धार्मिक परम्पराओं पर आधारित हैं जिनको कम लोग मानते हैं या जो और भी कम को याद हैं। माना जाता है कि लकड़ी पर खटखटाना प्राचीन भारत-युरोपीय लोकगीत से उत्पन्न हुआ या सम्भवतः उनके पूर्वजों से जो मानते थे कि पेड़, विभिन्न आत्माओं का घर होते हैं। पेड़ को छूने से उसके अन्दर रह रही आत्मा का आशीर्वाद या सुरक्षा का आह्वान होगा। और किसी तरह, ये परम्परा इन आत्माओं पर आस्था के लुप्त हो जाने के बरसों बाद भी ज़िन्दा रह गई। रूस से लेकर आयलैंड में आज के बहुत से आम अन्धविश्वास उन मूर्तिपूजक धर्मों के अवशेष लगते हैं जिनका स्थान ईसाई धर्म ने लिया। लेकिन सारे अन्धविश्वास धार्मिक नहीं होते। कुछ केवल अमंगल संयोगों और सम्बन्धों पर आधारित हैं। उदाहरण के लिये, इटली के बहुत से लोग १७ अंक से डरते हैं क्योंकि रोम के अंक XVII को पुनर्व्यवस्थित करके vixi शब्द बनाया जा सकता है, जिसका अर्थ है "मेरा जीवन समाप्त हुआ"। इसी तरह चार अंक के लिये जो शब्द है वो बिलकुल मृत्यु के शब्द के जैसा सुनाई देता है कैंटोनीज़ जैसी भाषाओं में भी, और जापानी और कोरियाई भाषाओँ में भी जो चीनी अंक प्रयोग करती हैं। और क्योंकि एक अंक भी "ज़रूर" के लिये उपयोग होने वाले शब्द जैसा सुनाई देता है, चौदह अंक "मरना होगा" जैसे मुहावरे जैसा सुनाई देता है। ये तो लिफ्टों और अंतरराष्ट्रीय होटलों में ना प्रयोग करने के लिये बहुत सारे अंक हैं। और मानें या न मानें, कुछ अंधविश्वास सच में समझ आते हैं, या काम से काम तब तक आते थे जब तक हम उनका वास्तविक उद्देश्य भूले नहीं थे। उदाहरण के लिये, थिएटर की दृश्यावली में चित्रकारी की हुई बड़ी पृष्ठभूमि होती थीं, जिनको रंगमंच के मज़दूर सीटी बजा कर एक- दूसरे को संकेत देते हुए ऊपर नीचे करते थे। अन्य लोगों द्वारा यूँ ही बजा दी गई सीटी से दुर्घटना हो सकती थी। लेकिन परदे के पीछे सीटी बजाने की पाबन्दी आज भी जीवित है, मज़दूरों के रेडियो हेडसेट का प्रयोग शुरू करने के बरसों बाद भी। इसी तरह, एक ही तीली से तीन सिगरेट जलाना सच में दुर्भाग्यपूर्ण हो सकता था अगर आप गड्ढे में बैठे हुए एक सैनिक होते जहाँ तीली ज़्यादा देर जलाये रखने से शत्रु निशानची का ध्यान आकर्षित हो सकता था। ज़्यादातर धूमपान करनेवालों को अब निशानची का सोचना नहीं पड़ता, लेकिन ये अन्धविश्वास ज़िंदा है। तो लोग इन भूले हुए धर्मो, संयोगों और पुराने परामर्शों के टुकड़ों से लिपटे क्यों रहते हैं? क्या वो पूर्णतः तर्कहीन नहीं हो रहे? हाँ, लेकिन बहुत से लोगों के लिये, अंधविश्वास एक जाग्रत आस्था पर कम और सांस्कृतिक आदत पर आधारित ज़्यादा हैं। आखिर कोई भी ये जान के पैदा नहीं होता कि सीढ़ी के नीचे नहीं चलना या अंदर सीटी नहीं बजानी, लेकिन अगर आपके परिवार ने आपको हमेशा ऐसी चीज़ों से बचने के लिए बोला हो, तो सम्भावना है कि ये तर्कपूर्ण समझने के बाद भी कि कुछ बुरा नहीं होगा, इनसे आपको असुविधा होगी। और क्योंकि लकड़ी पर खटखटाने जैसे काम में ज़्यादा मेहनत नहीं है, अन्धविश्वास कायम रखना, उसका जागरूक रूप से प्रतिरोध करने से अक्सर आसान होता है। और वैसे भी, अन्धविश्वास थोड़ा काम तो करते भी हैं। हो सकता है आपको अपने शुभ मोज़े पहने हुए छक्का मारना याद हो। ये सिर्फ हमारा मनोवैज्ञानिक पक्षपात काम कर रहा है। बहुत काम सम्भावना है कि आपको उन्हीं मोजों को पहने हुए कितनी बार आउट होना याद होगा। लेकिन उनके शुभ होने में विश्वास रखना आपको परिणाम पर अधिक नियंत्रण होने का भ्रम देकर सच में अच्छा खिला सकता है। तो ऐसी स्थितियाँ जिनमें वो आत्मविश्वास पासा पलट सकता है, जैसे खेल प्रतियोगिता, उनमें ये सनकी अन्धविश्वास शायद आखिर उतने भी सनकी ना लगें।