WEBVTT 00:00:06.914 --> 00:00:09.393 भाषा अन्तहीन रूप में परिवर्तनीय है। 00:00:09.393 --> 00:00:10.763 हर कोई अपनी मातृभाषा में 00:00:10.763 --> 00:00:14.134 अनन्त वाक्य बना सकता है 00:00:14.134 --> 00:00:16.924 और वह भी बहुत ही छोटी उम्र से-- 00:00:16.924 --> 00:00:20.384 लगभग जैसे ही वह वाक्यों में संवाद करने लगे। 00:00:20.384 --> 00:00:22.164 यह कैसे सम्भव है? NOTE Paragraph 00:00:22.164 --> 00:00:26.164 1950 के दशक के आरम्भ में नोअम चॉम्स्की ने एक सिद्धान्त का प्रस्ताव रखा 00:00:26.164 --> 00:00:29.405 जो इस पर्यवेक्षण पर आधारित था कि इस बहुविज्ञता का कारण 00:00:29.405 --> 00:00:31.463 व्याकरण प्रतीत होती है: 00:00:31.463 --> 00:00:35.053 एक अनजाने वाक्य की जानी पहचानी व्याकरण संरचना 00:00:35.053 --> 00:00:37.363 हमें उसका अर्थ समझा देती है। 00:00:37.363 --> 00:00:39.683 उन्होंने प्रस्तावित किया कि व्याकरण के नियम 00:00:39.683 --> 00:00:44.603 सब भाषाओं के लिए लागू होते हैं और यह नियम अन्तर्जात होते हैं -- 00:00:44.603 --> 00:00:49.788 मनुष्य का मस्तिष्क इन नियमों के अनुसार भाषा को संसाधित करने के लिए यंत्रस्थ है। NOTE Paragraph 00:00:49.788 --> 00:00:53.168 उन्होंने इस आन्तरिक शक्ति को सार्वभौमिक व्याकरण का नाम दिया 00:00:53.168 --> 00:00:55.843 और इससे ऐसे अनुसन्धानों की शुरुआत हुई जिनसे भाषा विज्ञान 00:00:55.843 --> 00:00:59.793 और संज्ञानात्मक विज्ञान के उभरते हुए क्षेत्र 00:00:59.793 --> 00:01:02.065 दोनों को आगे आने वाले कई दशकों के लिए आकार मिला। 00:01:02.065 --> 00:01:04.705 चॉम्स्की और बाकी शोधकर्ताओं ने सार्वभौमिक व्याकरण के 00:01:04.705 --> 00:01:07.675 दो मुख्य अंगों की जाँच आरम्भ की: 00:01:07.675 --> 00:01:10.725 पहला, कि क्या वास्तव में व्याकरण के ऐसे नियम होते हैं 00:01:10.725 --> 00:01:13.285 जो सभी भाषाओँ में समान हैं, 00:01:13.285 --> 00:01:17.955 और दूसरा, कि क्या यह नियम हमारे मस्तिष्क में अन्तर्जात हैं। NOTE Paragraph 00:01:17.955 --> 00:01:21.105 व्याकरण के सार्वभौमिक नियमों को स्थापित करने के प्रयास में 00:01:21.105 --> 00:01:23.791 चॉम्स्की ने एक विश्लेषणात्मक उपकरण विकसित किया 00:01:23.791 --> 00:01:26.200 जिसे उत्पादक वाक्य-रचना कहते हैं 00:01:26.200 --> 00:01:29.161 जो किसी वाक्य में शब्दों के क्रम का वर्णन 00:01:29.161 --> 00:01:31.564 उन श्रेणीबद्ध वाक्य-रचना पेड़ों में करता है 00:01:31.564 --> 00:01:34.294 जो यह दिखाते हैं कि कैसी संरचनाएँ सम्भव हैं। NOTE Paragraph 00:01:34.294 --> 00:01:37.934 इस पेड़ के आधार पर हम व्याकरण का यह नियम बता सकते थे 00:01:37.934 --> 00:01:41.034 कि क्रिया वाक्यांश में क्रिया विशेषण होते हैं। 00:01:41.034 --> 00:01:43.914 परन्तु ज़्यादा आधार-सामग्री से यह शीघ्र ही स्पष्ट हो जाता है 00:01:43.914 --> 00:01:47.224 कि क्रिया विशेषण, क्रिया वाक्यांशों के बिना भी प्रयोग हो सकते हैं। 00:01:47.224 --> 00:01:50.854 यह सहज उदाहरण एक बड़ी समस्या को दर्शाता है: 00:01:50.854 --> 00:01:54.544 एक भाषा की व्याकरण के नियम स्थापित करने के लिए 00:01:54.544 --> 00:01:57.084 उस भाषा से बहुत सारी आधार-सामग्री की आवश्यकता होती है 00:01:57.084 --> 00:01:59.614 इससे पहले कि हम यह निर्धारित करने की शुरुआत तक कर सकें 00:01:59.614 --> 00:02:02.696 कि वह कौन से नियम हैं जो सब भाषाओं में समान हो सकते हैं। 00:02:02.696 --> 00:02:05.144 जब चॉम्स्की ने एक सार्वभौमिक व्याकरण का प्रस्ताव रखा 00:02:05.144 --> 00:02:07.816 तब अधिकतर भाषाओं के अभिलिखित नमूनों की संख्या 00:02:07.816 --> 00:02:09.781 उत्पादक वाक्य-रचना का प्रयोग कर 00:02:09.781 --> 00:02:12.417 उनका विश्लेषण करने के लिए ज़रूरी संख्या से बहुत कम थी। 00:02:12.417 --> 00:02:14.020 बहुत सारी आधार-सामग्री होने पर भी 00:02:14.020 --> 00:02:17.670 किसी भाषा की संरचना का मानचित्र बनाना अत्यधिक जटिल है। 00:02:17.670 --> 00:02:20.158 50 वर्षों के विश्लेषण के बाद 00:02:20.158 --> 00:02:23.073 हम आज तक भी अंग्रेज़ी को पूरी तरह समझ नहीं पाए हैं। NOTE Paragraph 00:02:23.073 --> 00:02:26.809 जैसे-जैसे ज़्यादा भाषाविद आधार-सामग्री को एकत्रित कर उसका विश्लेषण किया गया 00:02:26.809 --> 00:02:31.266 यह साफ़ हो गया कि दुनिया भर की भाषाएँ बहुत भिन्न हैं, 00:02:31.266 --> 00:02:35.421 जिसने इस सिद्धान्त को चुनौती दी कि व्याकरण के नियम सार्वभौमिक होते हैं। 00:02:35.421 --> 00:02:38.755 1980 के दशक में, चॉम्स्की ने इस भिन्नता को समायोजित करने के प्रयास में 00:02:38.755 --> 00:02:41.245 इस सिद्धान्त में संशोधन किया। 00:02:41.245 --> 00:02:45.742 सिद्धान्तों और मापदण्डों की उनकी नई परिकल्पना के अनुसार 00:02:45.742 --> 00:02:48.652 सभी भाषाओं में कुछ व्याकरण के सिद्धान्त समान थे 00:02:48.652 --> 00:02:50.886 परन्तु वह अपने मापदण्डों में 00:02:50.886 --> 00:02:53.500 या इन सिद्धान्तों के प्रयोग में भिन्न हो सकते थे। 00:02:53.500 --> 00:02:57.581 उदाहरण के लिए, एक सिद्धान्त है "हर वाक्य का एक कर्ता होना चाहिए," 00:02:57.581 --> 00:03:01.925 पर उस कर्ता को स्पष्ट रूप से बताए जाने का मापदण्ड 00:03:01.925 --> 00:03:03.835 अलग-अलग भाषाओं में भिन्न हो सकता था। NOTE Paragraph 00:03:03.835 --> 00:03:06.365 सिद्धान्तों और मापदण्डों की परिकल्पना ने 00:03:06.365 --> 00:03:08.277 फिर भी इस प्रश्न का उत्तर नहीं दिया 00:03:08.277 --> 00:03:11.320 कि कौनसे व्याकरण के नियम सार्वभौमिक होते हैं। 00:03:11.320 --> 00:03:13.012 2000वीं सदी की शुरुआत में 00:03:13.012 --> 00:03:16.404 चॉम्स्की ने सुझाव दिया कि केवल एक ही सिद्धान्त समान है 00:03:16.404 --> 00:03:17.975 जिसे प्रत्यावर्तन कहते हैं 00:03:17.975 --> 00:03:21.571 जिसका अर्थ है कि संरचनाएँ एक दूसरे के अन्दर समाई हो सकती हैं। 00:03:21.571 --> 00:03:23.124 इस वाक्य को देखिए, 00:03:23.124 --> 00:03:26.764 जो एक वाक्य को दूसरे, और दूसरे वाक्य को तीसरे में समाए हुए है। 00:03:26.764 --> 00:03:30.654 या यह वाक्य, जो एक संज्ञा वाक्यांश को दूसरे, 00:03:30.654 --> 00:03:32.408 और दूसरे को तीसरे में समाए हुए है। 00:03:32.408 --> 00:03:34.551 प्रत्यावर्तन एक सार्वभौमिक व्याकरण नियम के लिए 00:03:34.551 --> 00:03:35.661 अच्छा उम्मीदवार था 00:03:35.661 --> 00:03:38.431 क्योंकि यह बहुत से रूप धारण कर सकता है। 00:03:38.431 --> 00:03:42.351 परन्तु, 2005 में भाषविदों ने एक अमेजन की पिराहा नामक भाषा पर 00:03:42.351 --> 00:03:45.181 निष्कर्ष प्रकाशित किए 00:03:45.181 --> 00:03:49.181 जिसमें कोई प्रत्यावर्तन संरचनाएँ नहीं दीखती थीं। NOTE Paragraph 00:03:49.181 --> 00:03:51.991 तो चॉम्स्की के सिद्धान्त के दूसरे भाग का क्या 00:03:51.991 --> 00:03:54.694 जो कहता था कि हमारी भाषा शक्ति अन्तर्जात है? 00:03:54.694 --> 00:03:57.701 जब उन्होंने पहली बार सार्वभौमिक व्याकरण का सुझाव दिया था 00:03:57.701 --> 00:04:02.419 तब भाषा अधिग्रहण का आनुवांशिक रूप से एक निर्धारित पहलू होने के विचार का 00:04:02.419 --> 00:04:05.379 एक गहरा, क्रान्तिकारी प्रभाव हुआ था। 00:04:05.379 --> 00:04:09.679 इसने उस प्रमुख प्रतिमान को चुनौती दी, जिसे व्यवहारवाद कहते हैं। 00:04:09.679 --> 00:04:15.174 व्यवहारवादियों का तर्क था कि सभी जानवरों और मनुष्यों के व्यवहार, और उनकी भाषा भी, 00:04:15.174 --> 00:04:18.357 उनका मस्तिष्क, जिसकी शुरुआत एक खाली तख़्ति के रूप में होती है, 00:04:18.357 --> 00:04:20.927 बाहर से अधिग्रहण करता है। 00:04:20.927 --> 00:04:24.544 आज, वैज्ञानिक इस बात पर सहमत हैं कि व्यवहारवाद ग़लत था 00:04:24.544 --> 00:04:25.969 और मानते हैं कि भाषा सीखने का 00:04:25.969 --> 00:04:28.472 एक अंतर्निहित, आनुवंशिक रूप से सांकेतिक बना 00:04:28.472 --> 00:04:29.930 जैविक तन्त्र होता है। 00:04:29.930 --> 00:04:33.010 बहुत से लोग मानते हैं कि जो जीवविज्ञान भाषा के लिए उत्तरदायी है 00:04:33.010 --> 00:04:37.011 वही अनुभूति के पहलूओं के लिए भी। 00:04:37.011 --> 00:04:39.505 तो वह चॉम्स्की के विचारों से सहमत नहीं हैं 00:04:39.505 --> 00:04:45.015 कि मस्तिष्क में एक विशिष्ट, पृथक, सहज भाषा शक्ति होती है। NOTE Paragraph 00:04:45.015 --> 00:04:49.135 सार्वभौमिक व्याकरण के सिद्धान्त के कारण ऐसी कई भाषाओं का प्रलेखन और अध्ययन हुआ 00:04:49.135 --> 00:04:52.235 जिन पर पहले कभी शोध नहीं हुआ था। 00:04:52.235 --> 00:04:53.940 इसके कारण एक पुराने विचार का 00:04:53.940 --> 00:04:57.151 पुनर्मूल्यांकन कर उसे अंततः उखाड़ फेंका गया 00:04:57.151 --> 00:05:01.553 जिससे हम मनुष्य के मस्तिष्क के बारे में अपनी समझ को बढ़ाने के योग्य बन पाए।