जब मैं १९ वर्ष की हुई, तब मैंने अपनी जीविका आरम्भ करी पहली महिला छाया पत्रकार की तरह फिलिस्तीन की गाज़ा पट्टी में एक महिला छायाकार के रूप में मेरा काम एक गंभीर अपमान माना गया स्थानीय परंपराओं के लिए यह स्थायी कलंक बन गया मेरे और मेरे परिवार के लिए पुरुष प्रधान क्षेत्र ने हर संभव तरीके से मेरी उपस्थिति को अनिष्ट कर दिया उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि एक महिला को पुरुषों का काम नहीं करना चाहिए गाज़ा में छाया संस्थानों ने मुझे प्रशिक्षित करने से मना कर दिया मेरे लिंग की वजह से "नहीं" काफी स्पष्ट था मेरे तीन सहकर्मी मुझे जंग के खुले मैदान में जितनी दूर हों सके लेकर गए जहाँ मैं सिर्फ विस्फोट की ध्वनियाँ ही सुन पा रही थी हवा में धूल उड़ रही थी और मेरे नीचे की ज़मीन झूले की तरह हिल रही थी मुझे बाद में एहसास हुआ कि हम वहाँ घटना को दस्तावेज़ करने नहीं गए थे जब वो तीनों बख़्तरबंद जीप में बैठ के मेरी ओर हाथ हिलाकर, मुस्कुराते हुए वापिस चले गये मुझे जंग के खुले मैदान में अकेला छोड़कर एक क्षण के लिए, मुझे भयभीत अपमानित महसूस हुआ, खुद के लिए काफी खेद हुआ मेरे सहकर्मियों के द्वारा दी गयी मौत की धमकी पहली नहीं थी परन्तु सबसे खतरनाक थी. गाज़ा में महिलाओं के जीवन की धारणा निष्क्रीय है हाल ही तक, काफी महिलाओं को काम या शिक्षा प्राप्त करने की अनुमति नहीं थी ऐसे दुगने युद्ध के समय जिसमें महिलाओं पर सामाजिक प्रतिबंध था और इजरायल - फिलीस्तीनियों में संघर्ष, महिलाओं की काली एवम चमकदार कहानियाँ लुप्त होती जा रहीं थी पुरुषों के लिए, महिलाओं की कहानियाँ महत्वहीन थी. मैने गाज़ा में महिलाओं के जीवन पर करीब से ध्यान देना शुरू कर दिया मेरे लिंग की वजह से मुझे वहाँ जाने की अनुमति थी जहाँ मेरे सहकर्मियों का जाना वर्जित था सपष्ट दर्द और संघर्ष के परे, एक स्वस्थ खुराक थी हँसी और उपलब्धियों की गाज़ा शहर में पुलिस परिसर के सामने गाजा में पहले युद्ध के दौरान एक इजरायली हवाई हमला, परिसर को नष्ट करने में और मेरी नाक तोड़ने में कामयाब रहा. एक क्षण के लिए तो मुझे सब कुछ सफ़ेद, चमकदार सफ़ेद दिखाई दिया, इन रोशनियों की तरह मुझे लगा या तो में अंधी हो गयी हुँ या स्वर्ग में आ गयी हुँ जब तक मैने अपनी आँखें खोली तब तक मैने उस क्षण को दर्ज कर लिए था मुहम्मद खादर, एक फिलिस्तीनी कार्यकर्ता जिन्होने दो दशक इसराइल में गुज़ारे, अपनी सेवानिवृत्ति योजना के रूप में, उन्होने एक चार मंजिल घर बनाने का फैसला किया, उनके पड़ोस में पहले मैदानी ऑपरेशन के दौरान उनका घर भूमि पर चपटा हो गया कबूतरों को छोड़कर कुछ भी नहीं बचा और एक स्पा, एक बाथटब वह तेल अवीव से लाये थे मुहम्मद बाथटब को उठा कर मलबे के शीर्ष पर ले आये और अपने बच्चों को हर प्रातः उसमें बुलबुला स्नान देना शुरू कर दिया मेरा काम युद्ध के निशान छिपाना नहीं, बल्कि गाज़न्स की अनदेखी कहानियों को पूर्ण रूप से दिखाना है एक फिलिस्तीनी महिला फोटोग्राफर के रूप में, संघर्ष , उत्तरजीविता और रोजमर्रा की जिंदगी ने मुझे समुदाय वर्जना से उभरने के लिए प्रेरित किया है और युद्ध और उसके परिणाम के अलग पक्ष को देखने के लिए प्रेरित किया है मैं एक विकल्प के साथ एक गवाह बन गई: या तो भाग जाऊं या निस्तभता से खड़ी रहूँ धन्यवाद! (तालियाँ)