एम आर यूनिवर्सिटी
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अर्थशास्त्र के सिद्धान्त
प्रति व्यक्ति वास्तविक जीडीपी और जीवन स्तर
[अलेक्स] क्या प्रति व्यक्ति वास्तविक जीडीपी
जीवन स्तर का अच्छा माप है?
लोग मुझसे हमेशा कहते हैं,
"तुम अर्थशास्त्री,
बहुत भौतिकतावादी होते हो।"
क्या वास्तविक प्रति व्यक्ति जीडीपी उस
सबको नहीं मापती है जो हम खरीदते हैं?
तब हमारे स्वास्थ्य, हमारी ख़ुशी,
और शिक्षा का क्या?
वैसे, वास्तविक प्रति व्यक्ति जीडीपी ...
सटीक माप तो नहीं है।
मगर मैं आपको दिखाना चाहता हूँ
कि क्यों यह संभवतः
किसी भी देश के जीवन स्तर का
सर्वश्रेष्ठ अकेला माप है।
और वह इसलिए नहीं कि भौतिक सामान ही
सबसे महत्वपूर्ण सामान होते हैं।
बल्कि इसलिए
कि प्रति व्यक्ति वास्तविक जीडीपी
उन अनेक चीज़ों से सम्बद्ध है
जिनकी हम परवाह करते हैं।
जीवन प्रत्याशा से शुरू करते हैं।
यहाँ हम प्रति व्यक्ति वास्तविक जीडीपी को
क्षैतिज अक्ष पर दिखाते हैं
और जीवन प्रत्याशा को लम्बवत अक्ष पर।
जैसा आप देख सकते हैं,
इनमें सकारात्मक संबंध है।
जिन देशों में प्रति व्यक्ति
वास्तविक जीडीपी ऊंची होती है
उनमें जीवन प्रत्याशा भी ऊंची होती है।
शायद यह बहुत आश्चर्यजनक नहीं है।
ख़ुशी को देखते हैं।
शायद यह अधिक अद्भुत तथ्य है।
यह चार्ट प्रति व्यक्ति वास्तविक जीडीपी
क्षैतिज अक्ष पर दिखाता है
और ख़ुशी के माप को लम्बवत अक्ष पर।
हम फिर, सकारात्मक संबंध देखते हैं।
उच्च प्रति व्यक्ति वास्तविक
जीडीपी वाले देशों में
सामान्यतः लोगों के
खुश होने की प्रवृत्ति होती है।
ये आँकड़ों का सेट
संयुक्त राष्ट्र संघ से है।
इसे कहते हैं मानव विकास इंडेक्स।
इसमें जीवन प्रत्याशा, शिक्षा और
जीवन स्तर के माप को मिलाया गया है।
संपूर्णता में देख सकते हैं, कि सामान्यतः
जब प्रति व्यक्ति वास्तविक जीडीपी बढ़ती है,
तभी मानव विकास...
कम से कम जैसा इस इंडेक्स में नापा गया है।
मूल कहानी... बहुत सादी है। जब हमारे पास
अधिक उत्पाद और सेवाएँ होती हैं
हम आम तौर जीवन की
अधिक अच्छी चीज़ें पाने में समर्थ होते हैं।
तो जीवन की अच्छी चीज़ें...
उनमें साथ ही रहने की प्रवृत्ति होती है।
वैसे प्रति व्यक्ति जीडीपी
बिलकुल सटीक तो नहीं ही है।
इसमें एक समस्या है।
प्रति व्यक्ति जीडीपी
आय के वितरण को ध्यान में नहीं रखती।
उदाहरण के लिए नाइजीरिया की प्रति व्यक्ति
वास्तविक जीडीपी की तुलना करते हैं
पाकिस्तान और होण्डुरास से।
दरअसल वह काफ़ी समान है।
तो आप सोचेंगे की सभी तीन देशों में
जीवन स्तर समान हैं।
फिर भी, नाइजीरिया में
लगभग 80% आबादी $2 प्रतिदिन से कम में
जीवनयापन करती है।
पाकिस्तान में ऐसे केवल 60% हैं
होण्डुरास में, केवल 33%।
बेहद ग़रीबी में रहने वाले लोगों की
संख्या में इतना फ़र्क कैसे हो सकता है,
जबकि प्रति व्यक्ति वास्तविक
जीडीपी लगभग बराबर है?
कारण है की नाइजीरिया में आय
बहुत अधिक असमानता से वितरित है
पाकिस्तान और होण्डुरास की तुलना में।
नाइजीरिया में बहुत से ग़रीब लोग हैं,
मगर कुछ बहुत अमीर भी हैं।
तो आम आय...
करीब करीब बराबर ही है नाइजीरिया,
पाकिस्तान और होण्डुरास में,
हालांकि नाइजीरिया में
ग़रीबों की संख्या अधिक है।
समय के साथ, वैसे, प्रति व्यक्ति
वास्तविक जीडीपी में वृद्धि
चाहे नाइजीरिया में, या पाकिस्तान में
या होण्डुरास में,
आम तौर पर सभी की आमदनी में
वृद्धि का संकेत देती है,
जिनमें बेहद ग़रीब भी शामिल हैं।
तो यह वक्र दिखाता है
प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि
क्षैतिज अक्ष पर,
जबकि 20% सबसे ग़रीबों की आय में वृद्धि
लम्बवत अक्ष पर।
एक बार फिर आप देखते हैं,
जब औसत प्रति व्यक्ति आय बढ़ती है,
आप बेहद ग़रीबों की
आय में भी वृद्धि होती है।
कुल मिला कर, वास्तविक जीडीपी तथा
प्रति व्यक्ति वास्तविक जीडीपी उपयोगी रहे
दो भिन्न देशों के जीवन स्तर की
तुलना करने के लिए,
या एक ही देश की
अलग अलग समय पर तुलना करने के लिए।
ठीक। अब आप जानते हैं कि
प्रति व्यक्ति वास्तविक जीडीपी...
जेवण स्तर की एक अच्छी माप है,
हम महत्वपूर्ण प्रश्न पर आते हैं।
हम जीवन स्तर कैसे बढ़ा सकते हैं?
हम किसी अर्थव्यवस्था का कैसे विकास करें?
हम कैसे
प्रति व्यक्ति वास्तविक जीडीपी बढ़ाएँ?
यह बड़ा सवाल है, विकास का बड़ा सवाल है।
हम इससे निबटेंगे
भविष्य के अनेक वीडियो में।
मगर आप जाएँ इससे पहले, हमें यह बताने को
एक पल निकालिए कि हम कैसा कर रहे हैं?
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