कुछ समय पहले मुझे न्योता आया जेम्स मैडिसन के ऐतिहासिक घर में कुछ समय बिताने का. जेम्स मैडिसन संयुक्त राष्ट्र अमरीका के चौथे राष्ट्रपति, संविधान के निर्माता, एवं "बिल ऑफ़ राइट्स" के वास्तुकार थे. एक इतिहासकार होने के नाते मैं काफी उत्साहित था, क्योंकि इस स्थान की महत्ता मैं समझ सकता था. मैडिसन इसे "मोंटपेलिएर" कहते थे, जो काफी सुन्दर है. हज़ारों एकड़ में फैले पहाड़, खेत, जंगल, एवं पर्वत श्रेणियों के अद्भुत दृश्य. परन्तु यहां ग़ुलामी भी करवाई जाती थी. जेम्स मैडिसन ने अपने जीवनकाल में 100 से अधिक ग़ुलाम रखे थे. और कभी किसी को आज़ाद नहीं किया, अपने अंतिम क्षणों में भी नहीं. इस क्षेत्र का मुख्य आकर्षण उनकी हवेली है. जेम्स यहीं पले-बढे, राष्ट्रपति पद से निवृत्त होकर यहीं वापस आये, एवं यहीं उन्होंने अंतिम सांस ली. तथा इस हवेली का मुख्य आकर्षण उनका पुस्तकालय है. दूसरे तल पर स्थित यह कक्ष वही स्थान है, जहां उन्होंने "बिल ऑफ़ राइट्स" की नींव रखी. जब मैं वहाँ पहली बार गया, तब शिक्षा निदेशक क्रिस्टिआन कोट्ज़, जो कि काफी गोरे व्यक्ति हैं, और काफी हंसमुख भी -- (दर्शकों में हंसी) मुझे तुरंत पुस्तकालय में ले गए. ऐसे स्थान पर खड़े रहना मेरे लिए एक अद्भुत अनुभव था जहां अमरीकी इतिहास के इतने महत्तवपूर्ण क्षण का सृजन हुआ. किन्तु कुछ समय वहाँ रुकने के बाद, वे मुझे हवेली के तहखाने में ले कर गए. यह वही स्थान था, जहां जेम्स के अफ्रीकी-अमरीकी सेवक रहा करते थे सेवक जो की घर के काम करते थे. यहां "अमरीका में ग़ुलामी" पर प्रदर्शनी भी लगायी जाने वाली थी. और जब हम वहां पर थे, क्रिस्टिआन ने मुझे एक अजीब चीज़ करने को कहा. उन्होंने कहा, अपने हाथ को ईंट की दीवार पर रखो और धीरे-धीरे फेरो, जब तक कुछ छाप या गड्ढे महसूस न हों. अब क्योंकि मै यहां रुकने वाला था कुछ दिन, इसलिए किसी गोरे व्यक्ति को नाराज़ नहीं करना चाहता था. (दर्शकों में हंसी) क्योंकि अंत में मैं यहां से सकुशल निकलना चाहता था. (दर्शकों में हंसी) किन्तु जब मैंने दीवार पर हाथ फेरा, मुझे मेरी बेटियों की याद आ गयी, खासकर सबसे छोटी बेटी की, जो उस समय दो या तीन साल की रही होगी, क्योंकि जब भी वह हमारी कार से उतरती थी, इसी तरह कार पर अपने हाथ फेरती थी, जो की हास्यास्पद होता था . और -- और यदि मैं समय पर उसे नहीं रोक पाता तोह वह अपनी गन्दी उंगलियां मुँह में डाल लेती थी जिसे देखकर मुझे चिढ आती थी. एक इतिहासकार होने के बावजूद मैं यह सब सोच रहा था (दर्शकों में हंसी) परन्तु तभी मुझे कुछ एहसास हुआ दीवार की ईंट में कुछ छाप सी. और एक क्षण में समझ गया कि यह क्या है. वो थीं ...... ....छोटी छोटी हथेलियों की छापें क्योंकि वहाँ बनी सारी ईंटें ग़ुलाम बनाये गए बच्चों के हाथों से बनी थीं. और तब मुझे आभास हुआ कि वह पुस्तकालय जहां मैडिसन ने "बिल ऑफ़ राइट्स" कि नींव रखी, उस पुस्तकालय कि नींव है यह तहखाना जिसकी ईंटें ग़ुलाम रखे गए बच्चों ने बनायीं हैं. मैं इसे इतिहास का काला अध्याय कहूंगा. काला अध्याय इसलिए, क्योंकि मुश्किल होता है ऐसी अमानवीयता की कल्पना करना, जहां बच्चों को ग़ुलाम बनाया जाता है ताकि वे किसी के आराम-गृह के लिए ईंटें बना सकें. काला अध्याय इसलिए, क्योंकि जो ग़ुलामी के काले सच हैं - शारीरिक यातनायें, बंधुआ मजदूरी, बिखरते असहाय परिवार ...... इन सब की चर्चा करने से लोग कतराते हैं. काला अध्याय इसलिए, क्योंकि श्वेत-वर्चस्व के नाम पर ग़ुलामी को सही ठहराया जाता था. इसलिए इस काले सच का सामना करने की जगह, हम इसको नकारते रहे. कभी कभी इस कारण से अनोखे तर्क सुनने को भी मिले. मैं बता नहीं सकता, कितनी बार मैंने लोगों को कहते सुना है कि अमरीका में आंतरिक गृह-युद्ध ग़ुलामी के विरोध के कारण हुआ. यह तर्क उन लोगों को अवश्य अचंभित कर देता जो अमरीकी गृह-युद्ध का हिस्सा थे. (दर्शकों में हंसी) कभी कभी हम अपने काले इतिहास को सही ठहराने का प्रयास करते हैं. जब लोग मोंटपेलिएर जाते हैं मेरा मतलब, श्वेत-वर्ण के लोग -- जब वे मोंटपेलिएर जाते हैं और उन्हें पता चलता है कि मैडिसन ने कई ग़ुलाम रखे थे, तो वे अक्सर यह सवाल करते हैं - "क्या मैडिसन एक अच्छे मालिक नहीं थे?" एक "अच्छा मालिक" ? ग़ुलामी में कोई भी मालिक "अच्छा" नहीं होता है . सिर्फ "बुरे" और "बहुत बुरे" मालिक ही होते हैं ग़ुलामी में. और कभी तो हम ऐसा बर्ताव करते हैं जैसे कि कुछ गलत हुआ ही नहीं. मैं बता नहीं सकता कितनी बार मैंने लोगों को कहते सुना है "दक्षिणी प्रांतों में तो ग़ुलामी होती ही नहीं थी." बिलकुल होती थी ग़ुलामी हर अमरीकी राज्य में होती थी, मेरे राज्य, न्यू यॉर्क में होती थी अमरीकी क्रांति के 50 वर्ष बाद भी. हम ऐसा आखिर क्यों करते हैं? क्यों हम अपने अतीत का सामना नहीं करते? साहित्यकार रेगी गिब्सन ने इसका सही उत्तर दिया था जब उन्होंने कहा था कि अमरीकी दरअसल अपने अतीत से मुँह चुराते हैं, नापसंद करते हैं हमें पसंद हैं सुखद स्मरण, अच्छी यादें सुनहरे पल हमें अतीत की वो कहानियां अच्छी लगती हैं जो हमें वर्तमान में प्रसन्न रखें, परेशान न करें. परन्तु हम ये मुखौटा हमेशा नहीं रख सकते. स्पेन के दार्शनिक एवं लेखक जॉर्ज संतायना ने कहा था कि जो अपने अतीत को याद नहीं रख सकते वे उसे दोहराने का दुस्साहस करते हैं. एक इतिहासकार होने के नाते मैं इस कथन पर काफी मंथन करता हूँ, और मुझे लगता है कि एक प्रकार से यह अमरीका पर सटीक बैठता है. और एक प्रकार से नहीं भी. क्योंकि इस कथन में यह मान लिया गया है कि कभी अतीत के किसी मोड़ पर हमने वह सब धारणायें छोड़ दी थी जिनसे असमता उपजी थी. कटु सत्य यह है कि हमने वो धारणाएं अभी तक नहीं छोड़ी हैं. उदाहरण के लिए, जातीय आर्थिक असमता को लीजिये परिवारों में एक पीढ़ी धन-संपत्ति एकत्र करती है और उसे अगली पीढ़ी को सौंप देती है. श्वेत परिवारों में औसत वार्षिक आय 1,47,000 डॉलर है जबकि अश्वेत परिवारों में औसत वार्षिक आय मात्र 4000 डॉलर है. इस असमता को कैसे समझा जाए? काला इतिहास. काला अतीत. मेरे परदादा ग़ुलाम ही पैदा हुए थे, जेस्पर काउंटी, जॉर्जिया, 1850 में. एक ग़ुलाम होने के तौर पर न तो उन्हें संपत्ति एकत्र करने दी गयी और न आज़ाद होने पर आर्थिक सहायता दी गयी उनकी मेहनत का कोई फल नहीं दिया गया. उनके सुपुत्र, जो कि 1870 में पैदा हुए उन्होंने काफी जायदाद बना ली थी. परन्तु 1910 के दशक में जिम क्रो ने उनसे वह भी ले ली. उसके बाद जिम क्रो ने अपनी जान भी ले ली. मेरे दादाजी, जब जॉर्जिया में पैदा हुए उनके लिए कोई भी पैतृक संपत्ति नहीं थी. इसलिए वे जॉर्जिया छोड़ कर न्यू जर्सी में पले बढे वे जीवनभर इमारतों का रखरखाव करते रहे. उन्हें शिक्षा में एवं कार्यस्थल पर भेदभाव का सामना करना पड़ा जिस वजह से वे कभी मध्यम वर्ग में स्थान नहीं बना पाए. इसलिए 1990 के दशक में अपनी मृत्यु के समय वे अपने दो बेटों को सिर्फ एक जीवन बीमा पॉलिसी ही दे पाए जिससे उनके अंतिम संस्कार का खर्च ही मुश्किल से निकल पाया. मेरे माता-पिता, जो कि सामाजिक कार्यकर्ता हैं, किसी प्रकार एक घर खरीद पाए क्राउन हाइट्स, ब्रुकलिन (न्यू यॉर्क) में, 1980 में, 55,000 डॉलर की कीमत चुकाकर. उस समय क्राउन हाइट्स में अश्वेत परिवार ही रहा करते थे, और वह बस्ती असुरक्षित थी. मेरा भाई और मैं जब सोते थे तो हमें नींद में गोलियों कि आवाज़ सुनाई देती थी. पर हमारे माँ-बाप ने हमें सुरक्षित रखा, और उन्होंने वह घर भी नहीं छोड़ा. 40 साल तक. और वे अभी भी वहीँ रहते हैं. पर कुछ बहुत ही "अमरीकी" घटना हुई करीब 20 साल पहले. करीब 20 साल पहले, एक रात, वे सोये तो अश्वेतों की बस्ती में लेकि अगली सुबह जब जागे तो वह बस्ती श्वेतों की बन चुकी थी (दर्शकों में हंसी) बस्ती की इस "जीर्णोद्धार" की प्रक्रिया में न सिर्फ वहाँ के रहवासी रहस्य्मयी तरीके से गायब हो गए बल्कि उनके घर की कीमतें आसमान को छू गयीं. तो जो घर उन्होंने 55,000 डॉलर की कीमत पर लिया था -- 29% ब्याज पर, उसकी कीमत अब 30 गुना हो गयी है. 30 गुना. चलिए इसका हिसाब लगते है. 55,000 गुणा 30 ....... इतने सारे शून्य ! यह काफी बड़ी राशि है. (दर्शकों में हंसी) तो इसका अर्थ ये कि उनकी एकमात्र संपत्ति को जब मुझे और मेरे भाई को दिए जाने का समय आएगा तो मेरे वंश के इतिहास में ऐसा पहली बार होगा, ग़ुलामी के अंत के 150 साल बाद, कि नयी पीढ़ी को विरासत में वाकई कुछ मूल्यवान संपत्ति मिलेगी. और ऐसा इसलिए नहीं क्योकि हमारे पूर्वजों ने बचत नहीं की, मेहनत नहीं की, शिक्षा पर ध्यान नहीं दिया. बल्कि इसलिए क्योंकि हमारा अतीत काला रहा है. इसलिए जब मैं उसके बारे में मंथन करता हूँ, तो मुझे चिंता इस बात कि नहीं होती कि हम यदि उसे भूल गए, तो फिर वही इतिहास दोहराया जाएगा, बल्कि इस बात कि चिंता होती है कि यदि हम वो इतिहास भूल गए , तो हम गलतियां करते ही रहेंगे. हम वो सब करते रहेंगे जिससे असमता और अन्याय की शुरुआत हुई थी. इसीलिए ज़रूरी है की हम सदियों से चले आ रहे इस सिलसिले को रोक दें. हम ऐसा कर सकते हैं, सच को जानकर. अपने काले अतीत का सामना कर. इतिहास के वो पन्ने पूरी दुनिया के सामने खोलकर. सच बोलकर. छात्रों को उसके बारे में ज्ञान देकर. यदि हम ऐसा नहीं करते हैं तो यह शिक्षा प्रणाली की असफलता होगी . अभिभावकों को अपने बच्चों को सच बताना होगा, ताकि वे समझ सकें की हम आज जो हैं, वो किस दौर से गुज़र कर बने हैं. अंततः, हमें सत्य के मार्ग पर चलना होगा. अकेले और दूसरों के साथ, एकांत में और सबके सामने, छोटे और बड़े स्तर पर. हमें प्रयास करना होगा, अपने मौलिकता की दिशा को न्याय की तरफ मोड़ने का. इस प्रसंग में निष्क्रिय रहना, असमता को बढ़ावा देना माना जाएगा. ... इतिहास हमें याद दिलाता है की एक राष्ट्र के तौर पर हम राजनैतिक महारथियों के कन्धों पर खड़े हुए हैं. जैसे कि जेम्स मैडिसन. लेकिन वह हमें यह भी याद दिलाता है कि एक राष्ट्र के तौर पर हम, ग़ुलाम बनाये गए अफ़्रीकी-अमरीकी बच्चों के कन्धों पर भी खड़े हैं. अश्वेत परिवारों के छोटे, मासूम बच्चे जिन्होंने अपने कोमल हाथों से वो ईंटें बनायीं जिनसे हमारे राष्ट्र की नींव रखी गयी. और यदि हम एक न्यायसंगत समाज को गंभीरता से विकसित करना चाहते हैं, तो हमें अपना संपूर्ण इतिहास याद रखना होगा और याद रखने होंगे वो लोग .......... धन्यवाद (दर्शकों में तालियां)