[Script Info] Title: [Events] Format: Layer, Start, End, Style, Name, MarginL, MarginR, MarginV, Effect, Text Dialogue: 0,0:00:03.00,0:00:07.73,Default,,0000,0000,0000,,पश्चिमी सभ्यता और लिखित भाषा के प्रारंभ से पूर्व, विज्ञान एवं Dialogue: 0,0:00:07.73,0:00:13.93,Default,,0000,0000,0000,,आध्यात्मिकता दो अलग धाराएं नहीं थीं । Dialogue: 0,0:00:13.93,0:00:16.83,Default,,0000,0000,0000,,महान प्राचीन परंपराओं की शिक्षाओं में ज्ञान तथा Dialogue: 0,0:00:16.83,0:00:19.77,Default,,0000,0000,0000,,निश्चिंतता के लिए बाहरी खोज परिवर्तन के Dialogue: 0,0:00:19.77,0:00:21.87,Default,,0000,0000,0000,,सर्पिल की नश्वर एवं अंतर्दर्शी समझ की Dialogue: 0,0:00:21.87,0:00:27.13,Default,,0000,0000,0000,,आंतरिक अनुभूति द्वारा संतुलित थी । Dialogue: 0,0:00:27.13,0:00:31.00,Default,,0000,0000,0000,,जैसे ही वैज्ञानिक चिंतन अधिक प्रभावी हुआ और सूचना में अत्यधिक भरमार हुई, Dialogue: 0,0:00:31.00,0:00:36.00,Default,,0000,0000,0000,,वैसे ही हमारे ज्ञानतंत्र के अंदर विखंडन आरंभ हुआ । Dialogue: 0,0:00:36.00,0:00:38.23,Default,,0000,0000,0000,,बढ़ती हुई विशेषज्ञता का यह अर्थ हुआ कि कम लोग अनुभूति Dialogue: 0,0:00:38.23,0:00:40.93,Default,,0000,0000,0000,,का विशाल चित्र एवं समग्र रूप में तंत्र की अंतदर्शी एवं Dialogue: 0,0:00:40.93,0:00:45.43,Default,,0000,0000,0000,,सौंदर्य चेतना को देखने के योग्य थे । Dialogue: 0,0:00:45.43,0:00:57.23,Default,,0000,0000,0000,,किसी ने नहीं पूछा कि “क्या यह सब सोचना हमारे लिए अच्छा है ?“ Dialogue: 0,0:00:57.23,0:01:01.43,Default,,0000,0000,0000,,प्राचीन ज्ञान हम लोगों के बीच में है । प्रत्यक्ष दृष्टि से ओझल। Dialogue: 0,0:01:01.43,0:01:06.83,Default,,0000,0000,0000,,परंतु हम अपने पूर्व विचारों से भरे हैं जिसके कारण इसे पहचान नहीं पा रहे हैं। Dialogue: 0,0:01:06.83,0:01:10.00,Default,,0000,0000,0000,,यह विस्मृत बुद्धिमत्ता ही आंतरिक एवं बाहरी के Dialogue: 0,0:01:10.00,0:01:14.53,Default,,0000,0000,0000,,बीच संतुलन बिठाने का मार्ग है । Dialogue: 0,0:01:14.53,0:01:14.01,Default,,0000,0000,0000,,यिन एवं यांग । Dialogue: 0,0:01:14.01,0:01:52.17,Default,,0000,0000,0000,,परिवर्तन के सर्पिल तथा हमारे अभ्यांतर में स्थिरता के बीच । Dialogue: 0,0:01:52.17,0:01:59.00,Default,,0000,0000,0000,,ग्रीक दंतकथा में, अपोलो चिकित्सा के देव असलेपियस का पुत्र था। Dialogue: 0,0:01:59.00,0:02:02.01,Default,,0000,0000,0000,,चिकित्सा में उसकी बुद्धिमता एवं कुशलता का कोई सानी नहीं था और कहा जाता है कि उसने Dialogue: 0,0:02:02.01,0:02:10.00,Default,,0000,0000,0000,,जीवन एवं मृत्यु का रहस्य खोजा । Dialogue: 0,0:02:10.00,0:02:13.00,Default,,0000,0000,0000,,प्राचीन ग्रीस में एसक्लेपियन के चिकित्सा मंदिरों Dialogue: 0,0:02:13.00,0:02:16.00,Default,,0000,0000,0000,,ने आदिम सर्पिल की शक्ति को मान्यता दी । Dialogue: 0,0:02:16.00,0:02:21.37,Default,,0000,0000,0000,,जिसे एक्लेपियस की छड़ द्वारा प्रतीक के रूप में समझा जाता है, Dialogue: 0,0:02:21.37,0:02:26.13,Default,,0000,0000,0000,,औषध के पिता हिप्पोक्रेट्स ने, Dialogue: 0,0:02:26.13,0:02:27.87,Default,,0000,0000,0000,,जिसकी शपथ चिकित्सा पेशे की आज Dialogue: 0,0:02:27.87,0:02:30.00,Default,,0000,0000,0000,,भी आधार संहिता है, एसीपीयन मंदिर Dialogue: 0,0:02:30.00,0:02:33.93,Default,,0000,0000,0000,,में अपना प्रशिक्षण प्राप्त किया । Dialogue: 0,0:02:33.93,0:02:37.00,Default,,0000,0000,0000,,आज भी हमारी विकासात्मक ऊर्जा का यह प्रतीक Dialogue: 0,0:02:37.00,0:02:40.00,Default,,0000,0000,0000,,अमरीकन चिकित्सा एसोसिएशन तथा विश्वव्यापी अन्य Dialogue: 0,0:02:40.00,0:02:48.53,Default,,0000,0000,0000,,चिकित्सा संगठनों के प्रतीक के रूप में है । Dialogue: 0,0:02:48.53,0:02:51.83,Default,,0000,0000,0000,,इजिप्ट के प्रतिमा विज्ञान में, सर्प एवं पक्षी मानवीय प्रकृति Dialogue: 0,0:02:51.83,0:03:02.07,Default,,0000,0000,0000,,की गुणवत्ता तथा ध्रुवत्व का प्रतिनिधित्व करता है । Dialogue: 0,0:03:02.07,0:03:07.03,Default,,0000,0000,0000,,सर्प की अधोगामी दिशा, विश्व की विकासात्मक Dialogue: 0,0:03:07.03,0:03:13.67,Default,,0000,0000,0000,,ऊर्जा का प्रत्यक्ष सर्पिल रूप है । Dialogue: 0,0:03:13.67,0:03:17.00,Default,,0000,0000,0000,,पक्षी उर्ध्वगामी दिशा में है - सूर्य या जागृत एकमात्र के Dialogue: 0,0:03:17.00,0:03:21.53,Default,,0000,0000,0000,,केन्द्रित संचेतनता की ओर उन्मुख ऊर्ध्वगामी बहाव; Dialogue: 0,0:03:21.53,0:03:34.00,Default,,0000,0000,0000,,आकाश की शून्यता । Dialogue: 0,0:03:34.00,0:03:36.57,Default,,0000,0000,0000,,फारौस तथा ईश्वर जागृत ऊर्जा से चित्रित किए Dialogue: 0,0:03:36.57,0:03:40.27,Default,,0000,0000,0000,,जाते हैं जहां कुंडलिनी सांप मेरुदंड की ओर जाती Dialogue: 0,0:03:40.27,0:03:48.97,Default,,0000,0000,0000,,है और नेत्रों के बीच `अज्ञान चक्र` भेदती है । Dialogue: 0,0:03:48.97,0:03:52.93,Default,,0000,0000,0000,,इसे होरस के नेत्र के रूप में उल्लिखित किया जाता है । Dialogue: 0,0:03:52.93,0:03:58.00,Default,,0000,0000,0000,,हिन्दू परंपरा में बिंदी तीसरे नेत्र का भी प्रतीक है; Dialogue: 0,0:03:58.00,0:04:07.93,Default,,0000,0000,0000,,आत्मा से दिव्य संबंध । Dialogue: 0,0:04:07.93,0:04:10.57,Default,,0000,0000,0000,,राजा टुटनखमुन का मुखावरण पुरातन उदाहरण है जिससे सर्प एवं पक्षी, Dialogue: 0,0:04:10.57,0:04:19.00,Default,,0000,0000,0000,,दोनों के मूलभाव का पता चलता है । Dialogue: 0,0:04:19.00,0:04:24.53,Default,,0000,0000,0000,,मयन और अजटेक परंपराएं सर्प एवं पक्षी के मूलभाव को एक ईश्वर में समन्वित करती हैं । Dialogue: 0,0:04:24.53,0:04:27.03,Default,,0000,0000,0000,,क्यूटजलकोट्ल या कुकुल्कन । Dialogue: 0,0:04:27.03,0:04:30.73,Default,,0000,0000,0000,,पर से सुशोभित दैवी सर्प जागृत विकासात्मक Dialogue: 0,0:04:30.73,0:04:34.63,Default,,0000,0000,0000,,सचेतनता या जागृत कुंडलिनी का प्रतीक है । Dialogue: 0,0:04:34.63,0:04:37.93,Default,,0000,0000,0000,,व्यक्ति का स्वयं में क्यूटजलकोट्ल को जागृत कर लेना, Dialogue: 0,0:04:37.93,0:04:41.01,Default,,0000,0000,0000,,दिव्यता का जीवंत प्रकटीकरण है । Dialogue: 0,0:04:41.01,0:04:46.00,Default,,0000,0000,0000,,कहा जाता है कि क्यूटजलकोट्ल या सर्पिल ऊर्जा, Dialogue: 0,0:04:46.00,0:05:01.00,Default,,0000,0000,0000,,काल की समाप्ति पर वापस लौटेगी । Dialogue: 0,0:05:01.00,0:05:06.33,Default,,0000,0000,0000,,सर्प तथा पक्षी के प्रतीक ईसाई धर्म में भी देखे जा सकते हैं । Dialogue: 0,0:05:06.33,0:05:08.63,Default,,0000,0000,0000,,उनका सच्चा अर्थ अधिक गहन में हो सकता है, Dialogue: 0,0:05:08.63,0:05:14.00,Default,,0000,0000,0000,,पर इसका अर्थ अन्य प्राचीन परंपराओं के समान ही है । Dialogue: 0,0:05:14.00,0:05:19.27,Default,,0000,0000,0000,,ईसाई धर्म में, पक्षी या कपोत प्राय: ईसा के सिर पर देखा जा Dialogue: 0,0:05:19.27,0:05:23.57,Default,,0000,0000,0000,,सकता है जो छठे चक्र और उससे आगे बढ़ते Dialogue: 0,0:05:23.57,0:05:29.00,Default,,0000,0000,0000,,समय पवित्र आत्मा या कुंडलिनी शक्ति दर्शाता है। Dialogue: 0,0:05:29.00,0:05:38.01,Default,,0000,0000,0000,,ईसाई धर्म के रहस्यवादियों ने कुंडलिनी को पवित्र आत्मा कह कर अन्य नाम से पुकारा। Dialogue: 0,0:05:38.01,0:05:45.33,Default,,0000,0000,0000,,जान 3:12 में कहा गया है “और जैसे मोसेस ने बीहड़ में सर्प का उत्थान Dialogue: 0,0:05:45.33,0:05:51.13,Default,,0000,0000,0000,,किया उसी तरह मनुष्य के पुत्र का भी उत्थान किया जाए“ Dialogue: 0,0:05:51.13,0:05:56.07,Default,,0000,0000,0000,,जीसस तथा मोसेस ने अपनी कुंडलिनी ऊर्जा को जागृत करते हुए अचेतन रेंगने वाली शक्तियों को जागृत\Nसचेतनता की ओर उन्मुख किया, Dialogue: 0,0:05:56.07,0:06:03.37,Default,,0000,0000,0000,,जिससे मानवीय लालसा संचालित होती है । Dialogue: 0,0:06:03.37,0:06:05.01,Default,,0000,0000,0000,,कहा जाता है कि यीशू ने निर्जन में चालीस दिन और चालीस रातें बिताईं, Dialogue: 0,0:06:05.01,0:06:12.53,Default,,0000,0000,0000,,इस दौरान उन्हें शैतान द्वारा प्रलोभित किया गया । Dialogue: 0,0:06:12.53,0:06:18.47,Default,,0000,0000,0000,,इसी प्रकार, बुद्ध को `मरा` द्वारा प्रलोभन दिया गया और उन्होंने बौद्धिवृक्ष Dialogue: 0,0:06:18.47,0:06:26.01,Default,,0000,0000,0000,,या बुद्धिमत्ता वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त किया । Dialogue: 0,0:06:26.01,0:06:30.73,Default,,0000,0000,0000,,ईसा मसीह और बुद्ध, दोनों प्रलोभन या ऐन्द्रिक Dialogue: 0,0:06:30.73,0:06:38.07,Default,,0000,0000,0000,,आनंद व सांसारिक लोभों से दूर रहे । Dialogue: 0,0:06:38.07,0:07:01.13,Default,,0000,0000,0000,,प्रत्येक कहानी में, दानवी वृत्ति, व्यक्ति के अपने मोह का मानवीकरण ही है । Dialogue: 0,0:07:01.13,0:07:06.00,Default,,0000,0000,0000,,यदि हम वैदिक और मिस्र की परंपराओं के प्रकाश में आदम और हव्वा की कहानी पढ़ते हैं तो हम पाते हैं कि Dialogue: 0,0:07:06.00,0:07:11.17,Default,,0000,0000,0000,,जीवन वृक्ष के लालच और प्रलोभन का प्रतिनिधित्व करता है । Dialogue: 0,0:07:11.17,0:07:16.33,Default,,0000,0000,0000,,आंतरिक संसार के ज्ञान से हमारा ध्यान भंग Dialogue: 0,0:07:16.33,0:07:19.00,Default,,0000,0000,0000,,करते हुए ज्ञान का वृक्ष Dialogue: 0,0:07:19.00,0:07:33.63,Default,,0000,0000,0000,,हमारे भीतर है । Dialogue: 0,0:07:33.63,0:07:38.53,Default,,0000,0000,0000,,अपने अहं के पोषण तथा बाहरी आकर्षणों के फेर में पड़कर हम अपने आंतरिक जगत Dialogue: 0,0:07:38.53,0:07:45.33,Default,,0000,0000,0000,,की जानकारी से कट जाते Dialogue: 0,0:07:45.33,0:07:48.47,Default,,0000,0000,0000,,हैं और आकाश Dialogue: 0,0:07:48.47,0:07:52.73,Default,,0000,0000,0000,,तथा बुद्धिमता स्रोत से Dialogue: 0,0:07:52.73,0:08:07.07,Default,,0000,0000,0000,,हमारा संपर्क टूटने लगता है । Dialogue: 0,0:08:07.07,0:08:09.77,Default,,0000,0000,0000,,पर वाले सर्पों (ड्रैगन) के बारे में विश्व के कई ऐतिहासिक मिथकों को, Dialogue: 0,0:08:09.77,0:08:12.13,Default,,0000,0000,0000,,संस्कृतियों की आंतरिक ऊर्जा के रूपकों के रूप में पढ़ा जा सकता है, Dialogue: 0,0:08:12.13,0:08:15.57,Default,,0000,0000,0000,,जिसमें उन्हें अंत: स्थापित किया गया है। Dialogue: 0,0:08:15.57,0:08:24.00,Default,,0000,0000,0000,,चीन में, पर वाला सर्प अभी भी पवित्र प्रतीक है जो प्रसन्नता का प्रतिनिधित्व करता है । Dialogue: 0,0:08:24.00,0:08:27.63,Default,,0000,0000,0000,,मिस्र के फरोहा की भाँति, Dialogue: 0,0:08:27.63,0:08:30.83,Default,,0000,0000,0000,,विकासात्मक ऊर्जा को जागृत करने वाले प्राचीन चीनी शासकों का प्रतिनिधित्व, Dialogue: 0,0:08:30.83,0:08:36.17,Default,,0000,0000,0000,,पंख वाले सर्प या ड्रैगन द्वारा किया गया। Dialogue: 0,0:08:36.17,0:08:40.57,Default,,0000,0000,0000,,जेड शासक या सेलेस्टियल शासक के शाही कुलचिह्न इड़ा Dialogue: 0,0:08:40.57,0:08:46.00,Default,,0000,0000,0000,,और पिंगला के समान संतुलन दर्शाते हैं । Dialogue: 0,0:08:46.00,0:08:50.00,Default,,0000,0000,0000,,शंकुरूप केन्द्र को जागृत करने वाले ताओवादी यिन Dialogue: 0,0:08:50.00,0:09:06.83,Default,,0000,0000,0000,,एवं यांग या जिसे ताओवाद में उच्च डेंटियन कहा जाता है। Dialogue: 0,0:09:06.83,0:09:08.63,Default,,0000,0000,0000,,प्रकृति विभिन्न प्रकार के अभिज्ञान और आत्म Dialogue: 0,0:09:08.63,0:09:11.23,Default,,0000,0000,0000,,साक्षात्करण के प्रकाश से परिपूर्ण है । Dialogue: 0,0:09:11.23,0:09:15.87,Default,,0000,0000,0000,,उदाहरण के लिए, समुद्र की जलसाही दरअसल अपने नुकीले शरीर से देख सकती है, Dialogue: 0,0:09:15.87,0:09:19.93,Default,,0000,0000,0000,,जो एक बड़े नेत्र के रूप में कार्य करता है। Dialogue: 0,0:09:19.93,0:09:22.73,Default,,0000,0000,0000,,जलसाही अपने रीढ़ पर आघात करने वाले प्रकाश का अभिज्ञान करती है और Dialogue: 0,0:09:22.73,0:09:36.93,Default,,0000,0000,0000,,अपने परिवेश की चेतना अनुभव करने के लिए किरणपुंज की सघनताओं की तुलना करती है । Dialogue: 0,0:09:36.93,0:09:40.27,Default,,0000,0000,0000,,हरी गोह तथा अन्य रेंगनेवालों जीव के सिर के ऊपर Dialogue: 0,0:09:40.27,0:09:44.17,Default,,0000,0000,0000,,भित्तीय आंख या शंकुरूप ग्रंथि होती है जिससे Dialogue: 0,0:09:44.17,0:09:56.01,Default,,0000,0000,0000,,वे ऊपर से परभक्षी का पता लगाते हैं। Dialogue: 0,0:09:56.01,0:10:00.00,Default,,0000,0000,0000,,मानव शंकुरूप ग्रंथि एक लघु अंत:स्रावी ग्रंथि होती है जो चलने Dialogue: 0,0:10:00.00,0:10:04.00,Default,,0000,0000,0000,,एवं सोने की क्रियाएं विनियमित करती है । Dialogue: 0,0:10:04.00,0:10:06.93,Default,,0000,0000,0000,,यद्यपि यह सिर की गहराई में गड़ी होती हैं, तथापि शंकरूप Dialogue: 0,0:10:06.93,0:10:12.03,Default,,0000,0000,0000,,ग्रंथि प्रकाश के प्रति संवेदनशील होती है । Dialogue: 0,0:10:12.03,0:10:15.13,Default,,0000,0000,0000,,दार्शनिक डिसकार्टस ने माना कि शंकरूप ग्रंथि स्थल या तीसरी आंख, Dialogue: 0,0:10:15.13,0:10:20.63,Default,,0000,0000,0000,,चेतनता तथा पदार्थ के बीच अंतरापृष्ठ है । Dialogue: 0,0:10:20.63,0:10:23.33,Default,,0000,0000,0000,,प्राय: प्रत्येक वस्तु मानव शरीर में समनुरूप है । Dialogue: 0,0:10:23.33,0:10:30.01,Default,,0000,0000,0000,,दो आंख, दो कान, दो नासिका यहां तक कि मस्तिष्क के भी दो पक्ष हैं । Dialogue: 0,0:10:30.01,0:10:33.97,Default,,0000,0000,0000,,लेकिन मस्तिष्क का एक क्षेत्र है जो प्रतिरूप प्रस्तुत नहीं करता । Dialogue: 0,0:10:33.97,0:10:40.03,Default,,0000,0000,0000,,यह शंकरूप ग्रंथि क्षेत्र और उसे चारों ओर से घेरने वाला ऊर्जावान केंद्र है । Dialogue: 0,0:10:40.03,0:10:43.17,Default,,0000,0000,0000,,शारीरिक स्तर पर विशिष्ट अणु शंकरूप ग्रंथि द्वारा प्राकृतिक Dialogue: 0,0:10:43.17,0:10:46.77,Default,,0000,0000,0000,,रूप से निर्मित होते हैं जैसे डीएमटी । Dialogue: 0,0:10:46.77,0:10:52.01,Default,,0000,0000,0000,,डीएमटी जन्म के समय और मृत्यु के समय Dialogue: 0,0:10:52.01,0:10:58.01,Default,,0000,0000,0000,,प्राकृतिक रूप से निर्मित होते हैं । Dialogue: 0,0:10:58.01,0:11:05.00,Default,,0000,0000,0000,,शाब्दिक रूप से यह जीवित और मृत संसार के बीच Dialogue: 0,0:11:05.00,0:11:10.00,Default,,0000,0000,0000,,अनन्य पुल का कार्य करते हैं । Dialogue: 0,0:11:10.00,0:11:14.53,Default,,0000,0000,0000,,डीएमटी गहन ध्यान की स्थिति और समाधि पर एंथीयोजेनिक उपायों Dialogue: 0,0:11:14.53,0:11:23.17,Default,,0000,0000,0000,,के माध्यम से उत्पादित होता है । Dialogue: 0,0:11:23.17,0:11:27.03,Default,,0000,0000,0000,,उदाहरण के लिए, आयुष्का दक्षिण अमरीका में शमनिक परंपराओं में प्रयुक्त होता है ताकि आंतरिक Dialogue: 0,0:11:27.03,0:11:32.67,Default,,0000,0000,0000,,और बाहरी संसार के बीच के परदे को दूर किया जा सके । Dialogue: 0,0:11:32.67,0:11:36.37,Default,,0000,0000,0000,,यह पद्धति जीवन पद्धति के पुष्प के रूप में अभिज्ञात है, Dialogue: 0,0:11:36.37,0:11:41.00,Default,,0000,0000,0000,,जो जागृत या आत्मावलोकित प्राणी को चित्रित करने वाली प्राचीन कला कार्य में सामान्य है Dialogue: 0,0:11:41.00,0:11:45.17,Default,,0000,0000,0000,,जब देवदारु फल की छवि पवित्र कला कार्य में दिखाई देती है Dialogue: 0,0:11:45.17,0:11:49.73,Default,,0000,0000,0000,,तो यह जागृत तीसरी आंख, विकासात्मक ऊर्जा के प्रवाह को निर्देशित Dialogue: 0,0:11:49.73,0:11:54.67,Default,,0000,0000,0000,,करते हुए एकल बिंदु चेतना का प्रतिनिधित्व करती है । Dialogue: 0,0:11:54.67,0:11:58.01,Default,,0000,0000,0000,,देवदारु का फल उच्चतर चक्रों के खिलने का प्रतिनिधित्व करता है Dialogue: 0,0:11:58.01,0:12:06.57,Default,,0000,0000,0000,,जो ज्ञान चक्र और उससे आगे बढ़ने के लिए सुषुम्ना के रूप में सक्रिय होता है । Dialogue: 0,0:12:06.57,0:12:10.27,Default,,0000,0000,0000,,ग्रीक पुराण में डॉयोनिसस के उपासकों ने देवदारु Dialogue: 0,0:12:10.27,0:12:16.00,Default,,0000,0000,0000,,फल सहित सर्पिल वल्लरी से लपेटकर थायरसस या दैत्यों को उठाया था। Dialogue: 0,0:12:16.00,0:12:20.87,Default,,0000,0000,0000,,दोबारा, यह मेरुदंड से शुंकरूप ग्रंथि के छठे चक्र में जाते हुए डायनेसियन Dialogue: 0,0:12:20.87,0:12:31.13,Default,,0000,0000,0000,,ऊर्जा या कुंडलिनी शक्ति का प्रतिनिधित्व करती है। Dialogue: 0,0:12:31.13,0:12:33.73,Default,,0000,0000,0000,,वैटिकन के हृदय में आप यीशु या मेरी की वृहत् प्रतिमा की आशा कर सकते हैं, Dialogue: 0,0:12:33.73,0:12:39.63,Default,,0000,0000,0000,,लेकिन इसके स्थान पर हम वृहद् देवदारु फल की प्रतिमा पाते Dialogue: 0,0:12:39.63,0:12:42.93,Default,,0000,0000,0000,,हैं जो सूचित करता है कि ईसाई इतिहास में चक्रों Dialogue: 0,0:12:42.93,0:12:46.00,Default,,0000,0000,0000,,तथा कुंडलिनी के बारे में जानकारी थी, लेकिन किन्हीं कारणों Dialogue: 0,0:12:46.00,0:12:47.63,Default,,0000,0000,0000,,से उसे जन-समूह से दूर रखा गया। Dialogue: 0,0:12:47.63,0:12:51.37,Default,,0000,0000,0000,,शासकीय चर्च का स्पष्टीकरण है कि देवरारु का फल पुनरुत्पादन का प्रतीक Dialogue: 0,0:12:51.37,0:13:03.23,Default,,0000,0000,0000,,है और ईसा में नए जन्म का प्रतिनिधित्व करता है। Dialogue: 0,0:13:03.23,0:13:14.93,Default,,0000,0000,0000,,तेरहवीं शताब्दी के दार्शनिक व रहस्यावादी मीस्टर एक्खार्ट ने कहा है, Dialogue: 0,0:13:14.93,0:13:20.63,Default,,0000,0000,0000,,“वह नेत्र जिससे मैं ईश्वर को देखता हूं और Dialogue: 0,0:13:20.63,0:13:25.57,Default,,0000,0000,0000,,वह नेत्र जिससे ईश्वर मुझे देखता है, एक ही है ।“ Dialogue: 0,0:13:25.57,0:13:31.17,Default,,0000,0000,0000,,किंग जेम्स बाईबल में यीशु ने कहा है “शरीर का प्रकाश नेत्र है । Dialogue: 0,0:13:31.17,0:13:47.23,Default,,0000,0000,0000,,यदि एक भी नेत्र है तो संपूर्ण शरीर प्रकाश से परिपूर्ण होगा।” Dialogue: 0,0:13:47.23,0:13:52.00,Default,,0000,0000,0000,,बुद्ध ने कहा “शरीर एक नेत्र है ।” Dialogue: 0,0:13:52.00,0:13:57.57,Default,,0000,0000,0000,,समाधि की अवस्था में, दृष्टा और देखे जाने वाला दोनों एक हैं । Dialogue: 0,0:13:57.57,0:14:13.97,Default,,0000,0000,0000,,हम स्वयं विश्वात्मा हैं । Dialogue: 0,0:14:13.97,0:14:18.17,Default,,0000,0000,0000,,जब कुंडलिनी सक्रिय होती है, यह छठे चक्र को और शंकुरूप केन्द्र Dialogue: 0,0:14:18.17,0:14:21.47,Default,,0000,0000,0000,,को उद्दीप्त करती है एवं यह क्षेत्र अपने कुछ विकासात्मक कार्यों को पुन: Dialogue: 0,0:14:21.47,0:14:26.01,Default,,0000,0000,0000,,प्राप्त करना आरंभ कर देता है । Dialogue: 0,0:14:26.01,0:14:29.00,Default,,0000,0000,0000,,गूढ़ ध्यान शंकुरूप ग्रंथि के क्षेत्र में छठे चक्र को सक्रिय करने के लिए Dialogue: 0,0:14:29.00,0:14:35.87,Default,,0000,0000,0000,,हजारों वर्षों से प्रयुक्त होता रहा है । Dialogue: 0,0:14:35.87,0:14:41.67,Default,,0000,0000,0000,,इस केन्द्र की सक्रियता से व्यक्ति को अपने आंतरिक प्रकाश को देखने की दृष्टि मिलती है । Dialogue: 0,0:14:41.67,0:14:45.57,Default,,0000,0000,0000,,भले ही लोकप्रसिद्ध योगी हों या गुफ़ा के एकांत में बसे शमन, Dialogue: 0,0:14:45.57,0:14:51.53,Default,,0000,0000,0000,,या ताओवादी हों या तिब्बती मठवासी, सभी परंपराएं उस अवधि Dialogue: 0,0:14:51.53,0:14:57.33,Default,,0000,0000,0000,,को समाविष्ट करती हैं जिसमें व्यक्ति तम में उतरता है । Dialogue: 0,0:14:57.33,0:15:04.83,Default,,0000,0000,0000,,शंकुरूप ग्रंथि व्यक्ति का प्रत्यक्ष रूप से सूक्ष्म ऊर्जा अनुभव करने का मार्ग है । Dialogue: 0,0:15:04.83,0:15:10.03,Default,,0000,0000,0000,,दार्शनिक नीत्शे ने कहा है “यदि आप रसातल पर काफ़ी देर तक नज़रें गढ़ते हैं, Dialogue: 0,0:15:10.03,0:15:17.67,Default,,0000,0000,0000,,तो अंततोगत्वा आप पाते हैं कि अगाध गर्त आपको घूर रहा है।” Dialogue: 0,0:15:17.67,0:15:26.00,Default,,0000,0000,0000,,पुराकालिक स्मारक या प्राचीन द्वारा वाले कब्र पृथ्वी पर शेष प्राचीनतम ढांचे हैं। Dialogue: 0,0:15:26.00,0:15:32.23,Default,,0000,0000,0000,,अधिकांश ईसा पूर्व 3000-4000 की नवप्रस्तर अवधि के और Dialogue: 0,0:15:32.23,0:15:35.97,Default,,0000,0000,0000,,पश्चिमी यूरोप में कुछ सात हजार वर्ष पुराने हैं। Dialogue: 0,0:15:35.97,0:15:40.33,Default,,0000,0000,0000,,पुराकालिक स्मारक का प्रयोग मानव द्वारा आंतरिक तथा बाहरी संसार के बीच सेतु निर्माण के एक Dialogue: 0,0:15:40.33,0:15:47.33,Default,,0000,0000,0000,,उपाय के रूप में निरंतर ध्यान में प्रवेशार्थ उपयोग किया गया था। Dialogue: 0,0:15:47.33,0:15:50.97,Default,,0000,0000,0000,,चूंकि जब कोई निरंतर अंधकार में ध्यान केंद्रित करना जारी रखता है, Dialogue: 0,0:15:50.97,0:15:59.83,Default,,0000,0000,0000,,तो अंततोगत्वा आंतरिक ऊर्जा या प्रकाश को तीसरे नेत्र के सक्रिय होने के रूप में देखने लग जाता है। Dialogue: 0,0:15:59.83,0:16:04.00,Default,,0000,0000,0000,,सूर्य तथा चंद्रमा माध्यमों से संचालित जीव चक्रीय लय, शरीर के कार्यों को अधिक Dialogue: 0,0:16:04.00,0:16:16.00,Default,,0000,0000,0000,,समय तक नियमित नहीं कर सकती और नया ताल स्थापित हो जाता है। Dialogue: 0,0:16:16.00,0:16:19.00,Default,,0000,0000,0000,,हजारों वर्षों से सातवां चक्र `ओम्` प्रतीक Dialogue: 0,0:16:19.00,0:16:21.93,Default,,0000,0000,0000,,रूप में प्रतिनिधित्व करता रहा है। Dialogue: 0,0:16:21.93,0:16:28.47,Default,,0000,0000,0000,,ऐसा प्रतीक जो तत्वों को प्रतिनिधित्व करने वाले संस्कृत चिह्नों से निर्मित हुआ । Dialogue: 0,0:16:28.47,0:16:32.33,Default,,0000,0000,0000,,जब कुंडलिनी छठे चक्र से आगे उठती है तो ऊर्जा तेजोमंडल (हेलो) का Dialogue: 0,0:16:32.33,0:16:34.83,Default,,0000,0000,0000,,सृजन आरंभ होता है । Dialogue: 0,0:16:34.83,0:16:37.00,Default,,0000,0000,0000,,तेजोमंडल संसार के विभिन्न भागों में विभिन्न परंपराओं की Dialogue: 0,0:16:37.00,0:17:31.07,Default,,0000,0000,0000,,धार्मिक चित्रकलाओं में अनवरत दृष्टिगोचर होती है । Dialogue: 0,0:17:31.07,0:17:34.00,Default,,0000,0000,0000,,जागृत प्राणी के आसपास तेजोमंडल या ऊर्जा Dialogue: 0,0:17:34.00,0:17:38.43,Default,,0000,0000,0000,,का वर्णन विश्व के सभी भागों में वास्तविक सभी Dialogue: 0,0:17:38.43,0:17:42.77,Default,,0000,0000,0000,,धर्मों में सामान्य है । Dialogue: 0,0:17:42.77,0:17:46.00,Default,,0000,0000,0000,,चक्रों को जागृत करने की विकासात्मक प्रक्रिया किसी Dialogue: 0,0:17:46.00,0:17:49.97,Default,,0000,0000,0000,,एक समूह या एक धर्म की संपत्ति नहीं है बल्कि Dialogue: 0,0:17:49.97,0:18:07.77,Default,,0000,0000,0000,,ग्रह पर प्रत्येक प्राणी मात्र का जन्मजात अधिकार है । Dialogue: 0,0:18:07.77,0:18:12.17,Default,,0000,0000,0000,,शीर्ष चक्र दिव्यता से संबद्ध है, Dialogue: 0,0:18:12.17,0:18:15.47,Default,,0000,0000,0000,,जो द्वैत से आगे है । Dialogue: 0,0:18:15.47,0:18:21.83,Default,,0000,0000,0000,,नाम और रूप से आगे । Dialogue: 0,0:18:21.83,0:18:28.00,Default,,0000,0000,0000,,अखेनातेन एक फरोआ था जिसकी पत्नी नेफरतिति थी । Dialogue: 0,0:18:28.00,0:18:32.03,Default,,0000,0000,0000,,उसका उल्लेख सूर्य पुत्र के रूप में किया गया है । Dialogue: 0,0:18:32.03,0:18:37.33,Default,,0000,0000,0000,,उसने एटेन या स्वयं में ईश्वर के शब्द का पुन: अनुसंधान किया, Dialogue: 0,0:18:37.33,0:18:47.17,Default,,0000,0000,0000,,जिससे कुंडलिनी एवं चेतनता को समन्वित किया गया । Dialogue: 0,0:18:47.17,0:18:50.83,Default,,0000,0000,0000,,इजिप्ट आईकोनोग्राफी में, एक बार फिर जागृत Dialogue: 0,0:18:50.83,0:18:55.07,Default,,0000,0000,0000,,चेतना का ईश्वर या जागृत प्राणी के शीर्षों से ऊपर देखी Dialogue: 0,0:18:55.07,0:19:03.93,Default,,0000,0000,0000,,गई सौर चक्रिका द्वारा प्रतिनिधित्व किया जाता है । Dialogue: 0,0:19:03.93,0:19:06.63,Default,,0000,0000,0000,,हिन्दू तथा यौगिक परंपराओं में, इस तेजोमंडल को `सहस्रार` – Dialogue: 0,0:19:06.63,0:19:17.63,Default,,0000,0000,0000,,हजार पंखुड़ी वाला कमल कहा गया है । Dialogue: 0,0:19:17.63,0:19:23.43,Default,,0000,0000,0000,,बुद्ध को कमल के प्रतीक से संबद्ध किया गया है । Dialogue: 0,0:19:23.43,0:19:26.73,Default,,0000,0000,0000,,पर्णविन्यास वही पद्धति है जिसे खिलते हुए Dialogue: 0,0:19:26.73,0:19:29.23,Default,,0000,0000,0000,,कमल में देखा जा सकता है । Dialogue: 0,0:19:29.23,0:19:31.43,Default,,0000,0000,0000,,यह जीवन पद्धति का पुष्प है । Dialogue: 0,0:19:31.43,0:19:33.00,Default,,0000,0000,0000,,जीवन का बीज । Dialogue: 0,0:19:33.00,0:19:36.57,Default,,0000,0000,0000,,यह एक बुनियादी पद्धति है जिसमें सभी रूप अनुकूल हो जाते हैं । Dialogue: 0,0:19:36.57,0:19:54.13,Default,,0000,0000,0000,,यह अंतरिक्ष का ठीक आकार है या आकाश में अंतनिर्हित गुणवत्ता है । Dialogue: 0,0:19:54.13,0:20:02.83,Default,,0000,0000,0000,,इतिहास में किसी समय जीवन प्रतीक का पुष्प संपूर्ण पृथ्वी पर व्याप्त था। Dialogue: 0,0:20:02.83,0:20:16.53,Default,,0000,0000,0000,,चीन के अधिकांश पवित्र स्थलों और एशिया के अन्य \N55\N204\N00:20:05,567 --> 00:20:12,567\Nभागों में शेरों को जीवन-पुष्प की रक्षा करते हुए देखा जा सकता है । Dialogue: 0,0:20:16.53,0:20:22.03,Default,,0000,0000,0000,,1 चिंग का 64 हैक्साग्राम प्राय: यिनयांग प्रतीक को घेरे रहता है, जो जीवन पुष्प का Dialogue: 0,0:20:22.03,0:20:27.43,Default,,0000,0000,0000,,प्रतिनिधित्व करने का एक और तरीका है । Dialogue: 0,0:20:27.43,0:20:30.00,Default,,0000,0000,0000,,जीवन पुष्प के भीतर सभी आध्यात्मिक ठोस पदार्थों के लिए ज्यामितिक आधार है; Dialogue: 0,0:20:30.00,0:20:32.63,Default,,0000,0000,0000,,अनिवार्य रूप से ऐसा स्वरूप, Dialogue: 0,0:20:32.63,0:20:37.43,Default,,0000,0000,0000,,जिसका अस्तित्व हो सकता है । Dialogue: 0,0:20:37.43,0:20:39.93,Default,,0000,0000,0000,,जीवन का प्राचीन फूल डेविड के सितारे की ज्यामिती से आरंभ Dialogue: 0,0:20:39.93,0:20:45.17,Default,,0000,0000,0000,,होता है या त्रिकोणों का सामना करते हुए ऊर्ध्वगामी या अधोगामी होता है या Dialogue: 0,0:20:45.17,0:20:49.47,Default,,0000,0000,0000,,3डी में ये चतुष्फलकीय संरचनाएं हो सकती हैं । Dialogue: 0,0:20:49.47,0:20:55.53,Default,,0000,0000,0000,,यह प्रतीक एक यंत्र है, एक प्रकार का प्रोग्राम, जो ब्रह्माण्ड के भीतर अस्त्त्वि में है, Dialogue: 0,0:20:55.53,0:21:01.43,Default,,0000,0000,0000,,वह मशीन जो संसार में हमारे अंश जनित कर रही है । Dialogue: 0,0:21:01.43,0:21:04.13,Default,,0000,0000,0000,,यंत्रों का हजारों वर्षों से चेतना जागृत करने के लिए Dialogue: 0,0:21:04.13,0:21:05.87,Default,,0000,0000,0000,,उपकरणों के रूप में उपयोग किया जा रहा है । Dialogue: 0,0:21:05.87,0:21:10.63,Default,,0000,0000,0000,,यंत्र का दृश्य रूप आध्यात्मिक अनावरण की Dialogue: 0,0:21:10.63,0:21:17.87,Default,,0000,0000,0000,,आंतरिक प्रक्रिया का बाहरी प्रतिनिधित्व है । Dialogue: 0,0:21:17.87,0:21:21.77,Default,,0000,0000,0000,,यह ब्रह्माण्ड के छिपे संगीत को प्रत्यक्ष करना है । Dialogue: 0,0:21:21.77,0:21:39.00,Default,,0000,0000,0000,,ज्यामितिक रूपों एवं हस्तक्षेपीय पद्धतियों से समन्वित । Dialogue: 0,0:21:39.00,0:21:44.97,Default,,0000,0000,0000,,प्रत्येक चक्र एक कमल, एक यंत्र, एक मनौवैज्ञानिक केन्द्र है, Dialogue: 0,0:21:44.97,0:21:54.73,Default,,0000,0000,0000,,जिसके माध्यम से विश्व का अनुभव किया जा सकता है। Dialogue: 0,0:21:54.73,0:22:21.00,Default,,0000,0000,0000,,एक पारंपरिक यंत्र, जिसे तिब्बती परंपरा में पाया जा सकता है, Dialogue: 0,0:22:21.00,0:22:24.67,Default,,0000,0000,0000,,अर्थ की समृद्ध परतों से परिपूरित, जो कभी कभार Dialogue: 0,0:22:24.67,0:22:29.87,Default,,0000,0000,0000,,पूर्ण ब्रह्माण्ड विज्ञान एवं विश्व दृष्टि को शामिल करता है । Dialogue: 0,0:22:29.87,0:22:33.00,Default,,0000,0000,0000,,यंत्र सतत विकसित पद्धति है जो पुनरावृति Dialogue: 0,0:22:33.00,0:22:35.13,Default,,0000,0000,0000,,की शक्ति या चक्र की अन्योन्य Dialogue: 0,0:22:35.13,0:22:37.83,Default,,0000,0000,0000,,क्रिया के माध्यम से कार्य करता है । Dialogue: 0,0:22:37.83,0:22:41.73,Default,,0000,0000,0000,,यंत्र की शक्ति सब कुछ है लेकिन वर्तमान संसार में समाप्त हो गई है, Dialogue: 0,0:22:41.73,0:22:44.73,Default,,0000,0000,0000,,क्योंकि हम केवल बाहरी रूप में अर्थ ढूँढ़ते हैं और हम अपने Dialogue: 0,0:22:44.73,0:22:59.23,Default,,0000,0000,0000,,अभीष्ट के माध्यम से अपनी आंतरिक ऊर्जा से इसे संबद्ध नहीं करते। Dialogue: 0,0:22:59.23,0:23:01.63,Default,,0000,0000,0000,,पादरी, मठवासी, योगियों का पारंपरिक रूप से ब्रह्मचारी Dialogue: 0,0:23:01.63,0:23:04.00,Default,,0000,0000,0000,,बने रहने के पीछे भी एक सही कारण रहा है। Dialogue: 0,0:23:04.00,0:23:08.43,Default,,0000,0000,0000,,आज केवल बहुत कम लोग जानते हैं कि वे क्यों ब्रह्मचर्य का अभ्यास कर रहे हैं, Dialogue: 0,0:23:08.43,0:23:11.63,Default,,0000,0000,0000,,चूंकि सच्चा प्रयोजन समाप्त हो गया है । Dialogue: 0,0:23:11.63,0:23:16.03,Default,,0000,0000,0000,,सीधी-सी बात है कि जैसी भी स्थिति है, Dialogue: 0,0:23:16.03,0:23:19.43,Default,,0000,0000,0000,,आपकी ऊर्जा अधिक जीवाणु या Dialogue: 0,0:23:19.43,0:23:24.27,Default,,0000,0000,0000,,अंडों का उत्पापादन कर रही है । कुंडलिनी के और अधिक उत्कर्ष के लिए उत्तेजना नहीं है, जो उच्चतर\Nचक्रों को सक्रिय करता है । Dialogue: 0,0:23:24.27,0:23:34.00,Default,,0000,0000,0000,,कुंडलिनी जीवन ऊर्जा है, जो यौन ऊर्जा भी है । Dialogue: 0,0:23:34.00,0:23:37.53,Default,,0000,0000,0000,,जब जागृति पाश्विक इच्छाओं पर कम केन्द्रित होने लगती है Dialogue: 0,0:23:37.53,0:23:41.01,Default,,0000,0000,0000,,और उच्च चक्रों के वास्तविक प्रतिबिंबन पर आ जाती है, Dialogue: 0,0:23:41.01,0:23:49.01,Default,,0000,0000,0000,,तो वह ऊर्जा मेरुदंड पर उन चक्रों में प्रवाहित होने लगती है । Dialogue: 0,0:23:49.01,0:23:54.01,Default,,0000,0000,0000,,कई तांत्रिक अभ्यास करवाते हैं कि इस यौन ऊर्जा पर किस प्रकार नियंत्रण किया जाए, Dialogue: 0,0:23:54.01,0:24:07.27,Default,,0000,0000,0000,,ताकि इसका उपयोग उच्चतर आध्यात्मिक विकास में किया जा सके । Dialogue: 0,0:24:07.27,0:24:09.01,Default,,0000,0000,0000,,आपकी चेतना की मनोदशा आपकी ऊर्जा के लिए उचित Dialogue: 0,0:24:09.01,0:24:12.53,Default,,0000,0000,0000,,स्थितियों का सृजन करती है Dialogue: 0,0:24:12.53,0:24:16.13,Default,,0000,0000,0000,,ताकि इसका विकास किया जा सके । Dialogue: 0,0:24:16.13,0:24:20.01,Default,,0000,0000,0000,,जैसा कि एक्खार्ट टोले ने कहा है “जागृति एवं उपस्थिति सदैव वर्तमान में घटित होती है।“ Dialogue: 0,0:24:20.01,0:24:23.87,Default,,0000,0000,0000,,यदि आप कुछ घटित होने का प्रयास कर रहे हैं तो आप Dialogue: 0,0:24:23.87,0:24:28.23,Default,,0000,0000,0000,,यथास्थिति में प्रतिरोध उत्पन्न कर रहे हैं । Dialogue: 0,0:24:28.23,0:24:31.00,Default,,0000,0000,0000,,यह सभी तरह के प्रतिरोध को दूर करना ही है, Dialogue: 0,0:24:31.00,0:24:38.00,Default,,0000,0000,0000,,जिससे विकासात्मक ऊर्जा अनावृत होने लगती है । Dialogue: 0,0:24:38.00,0:24:41.73,Default,,0000,0000,0000,,प्राचीन यौगिक परंपरा में योग क्रियाओं को ध्यान के लिए शरीर Dialogue: 0,0:24:41.73,0:24:44.73,Default,,0000,0000,0000,,को तैयार करने के लिए किया जाता है । Dialogue: 0,0:24:44.73,0:24:49.53,Default,,0000,0000,0000,,हठयोग का उद्देश्य केवल अभ्यास पद्धति नहीं, Dialogue: 0,0:24:49.53,0:24:54.43,Default,,0000,0000,0000,,बल्कि व्यक्ति का आंतरिक तथा बाहरी संसार से संपर्क साधना है । Dialogue: 0,0:24:54.43,0:25:01.97,Default,,0000,0000,0000,,संस्कृत शब्द `हठ` का अर्थ `सूर्य` का `ह` तथा चंद्रमा का `ठ` है । Dialogue: 0,0:25:01.97,0:25:05.23,Default,,0000,0000,0000,,पतंजलि के मूल योग सूत्र में योग के आठ Dialogue: 0,0:25:05.23,0:25:07.23,Default,,0000,0000,0000,,अवयवों का प्रयोजन बुद्ध की आठ परतों Dialogue: 0,0:25:07.23,0:25:10.77,Default,,0000,0000,0000,,के मार्ग के समान है, जिससे Dialogue: 0,0:25:10.77,0:25:14.77,Default,,0000,0000,0000,,व्यक्ति पीड़ाओं से उबर सके । Dialogue: 0,0:25:14.77,0:25:17.77,Default,,0000,0000,0000,,जब द्वैत विश्व की ध्रुवताएं संतुलन में हैं, Dialogue: 0,0:25:17.77,0:25:21.00,Default,,0000,0000,0000,,तो तीसरी वस्तु, उत्पन्न होती है । Dialogue: 0,0:25:21.00,0:25:23.83,Default,,0000,0000,0000,,हम रहस्यपूर्ण स्वर्ण कुंजी पाते हैं जो प्रकृति की Dialogue: 0,0:25:23.83,0:25:28.27,Default,,0000,0000,0000,,विकासात्मक शक्तियों को खोलती हैं । Dialogue: 0,0:25:28.27,0:25:43.83,Default,,0000,0000,0000,,सूर्य एवं चंन्द्रमा का यह संश्लेषण हमारी विकासात्मक ऊर्जा है । Dialogue: 0,0:25:43.83,0:25:46.33,Default,,0000,0000,0000,,चूंकि मनुष्य अब अनन्य रूप से आंतरिक एवं बाहरी Dialogue: 0,0:25:46.33,0:25:49.17,Default,,0000,0000,0000,,संसार तथा अपने विचारों से जाना जाता है अतएव Dialogue: 0,0:25:49.17,0:25:51.83,Default,,0000,0000,0000,,ऐसे विरल व्यक्ति हैं जो आंतरिक तथा बाहरी शक्तियों Dialogue: 0,0:25:51.83,0:25:55.63,Default,,0000,0000,0000,,का संतुलन प्राप्त करते हैं जिससे कुंडलिनी Dialogue: 0,0:25:55.63,0:25:59.63,Default,,0000,0000,0000,,प्राकृतिक रूप से जागृत हो जाती है । Dialogue: 0,0:25:59.63,0:26:02.73,Default,,0000,0000,0000,,जो केवल संयम में रहते हैं, Dialogue: 0,0:26:02.73,0:26:06.01,Default,,0000,0000,0000,,उनके लिए कुंडलिनी हमेशा रूपक, Dialogue: 0,0:26:06.01,0:26:12.27,Default,,0000,0000,0000,,एक विचार बनी रहती है न कि व्यक्ति की ऊर्जा और Dialogue: 0,0:26:12.27,9:59:59.99,Default,,0000,0000,0000,,यह चेतना का प्रत्यक्ष अनुभव बन जाती है । \N�