0:00:01.014,0:00:03.374 [संगीत] 0:00:35.457,0:00:38.324 तुम और घर एक ही चीज़ हो [br](उपशीर्षक सहित) 0:00:38.324,0:00:40.444 10-09-2018 0:00:41.744,0:00:46.965 [मूजी] ॐ। नमस्ते। सभी का स्वागत है। 0:00:46.965,0:00:51.454 इतने कम समय में, यहाँ आने के लिए धन्यवाद। 0:00:53.404,0:00:56.494 मैं यहाँ कई नए चेहरे देख रहा हूँ 0:00:56.494,0:01:00.434 जिन्हें मैं शायद पहले नहीं मिला। 0:01:00.434,0:01:03.654 तो आप सभी का स्वागत है। 0:01:03.654,0:01:08.525 और मुझे उम्मीद है कि आप [br]अपनी अपनी जगह ढूंढ पा रहे हैं, 0:01:08.525,0:01:16.486 अगर आप मेरा मतलब समझें तो,[br]यहाँ मोंटे सहजा में थोड़े सहज हो रहे हैं। 0:01:16.486,0:01:20.514 तो, मैं यहाँ हूँ। अगर कोई सवाल हैं [br]तो मैं उनके लिये उपलब्ध हूँ। 0:01:20.514,0:01:25.065 क्या कोई पूछना चाहता है? [br]और देखते हैं हम कहाँ तक पहुँचते हैं। 0:01:25.065,0:01:27.775 ठीक है, तुम यहाँ शुरुआत कर सकते हो। 0:01:27.775,0:01:33.224 हमारे पास एक [माइक है]।[br]अभी आ रहा है। 0:01:35.784,0:01:38.124 [प्रश्नकर्ता १] धन्यवाद प्रिय मूजी। 0:01:38.124,0:01:40.812 आखिरकार, पांच महीने के बाद[br]मुझे एक सवाल मिल ही गया। 0:01:40.812,0:01:43.424 [मूजी] पांच महीने के बाद मिला? 0:01:43.424,0:01:48.587 [प्र. १] उम्मीद है कि अच्छा हो। [br][मूजी] चलो देखते हैं। [हँसी] 0:01:48.587,0:01:51.656 [प्र.१] यह निमंत्रण भी क्या उपहार है। 0:01:51.656,0:01:55.374 मैं सच में यह विस्तार महसूस कर पाता हूँ। [br]सच में यह खुलापन महसूस कर पाता हूँ। 0:01:55.374,0:02:02.083 पर हर बार मैं यह शरीर भी महसूस करता हूँ। 0:02:02.083,0:02:06.504 मेरे लिये इसे छोड़ पाना [br]सबसे मुश्किल काम है। 0:02:06.504,0:02:10.363 तो मैंने यह पूछने की कोशिश की,[br]'क्या मैं अपना हाथ हूँ?' 0:02:10.363,0:02:14.184 और मैंने पुष्टि की, कि नहीं,[br]'मैं अपना हाथ नहीं हूँ।' 0:02:14.184,0:02:17.515 मैंने अपने शरीर और मन को जांचा, 0:02:17.515,0:02:20.583 'नहीं, मैं अपना मन नहीं हूँ'। यह सच है। 0:02:20.583,0:02:23.716 पर जब मैं हृदय पर आता हूँ,[br]'क्या मैं अपना दिल हूँ?' 0:02:23.716,0:02:26.455 तब वह इतना स्पष्ट नहीं होता। 0:02:26.455,0:02:29.875 [मूजी] वह दिल नहीं।[br][प्र.१] शारीरिक दिल नहीं। 0:02:29.875,0:02:32.557 [प्र.१] पर वह 'मैं' जैसा लगता है, [br]जो मैं हूँ, 0:02:32.557,0:02:36.007 ऐसा लगता है कि वह यहाँ अंदर भी है। 0:02:36.007,0:02:41.185 [मूजी] हाँ। हाँ। बेशक वह वहाँ अंदर भी है। 0:02:41.185,0:02:43.926 [प्र.१] हाँ। [हँसी] पर वह ऐसा है जैसे.... 0:02:43.926,0:02:48.544 [मू.] क्या वह सिर्फ़ तुम्हारी उँगलियों के[br]छोर तक और तुम्हारे सर के ऊपर तक है? 0:02:48.544,0:02:52.756 [मूजी] क्या वह पूरे नाप का, सिकुड़ा हुआ है?[br][प्र.१] दरअसल नहीं। 0:02:52.756,0:02:59.475 [मूजी] क्या तुम्हें यह एहसास है, [br]जब हम इसके बारे में बात करते हैं ... 0:02:59.475,0:03:03.796 तुम उस प्रश्न को कैसे लेते हो, [br]'क्या उसका कोई रूप है?' 0:03:03.796,0:03:08.765 [प्र.१] यह स्पष्ट है कि वह निराकार है। 0:03:08.765,0:03:13.665 पर मुझे हमेशा लगता है, [br]'मैं तो अभी भी यह व्यक्ति हूँ', 0:03:13.665,0:03:16.335 या यह संबंध महसूस होता है। 0:03:16.335,0:03:21.218 [मूजी] उससे छुटकारा पाने की[br]कोई ज़रूरत नहीं। 0:03:21.218,0:03:27.345 वह इतना कड़ा अनुकूलन है 0:03:27.345,0:03:30.394 जो हम अपने अभिव्यक्त जीवन में [br]अनुभव करते हैं। 0:03:30.394,0:03:35.416 हम यहाँ भी हैं[br]और इस शरीर में काम कर रहे हैं 0:03:35.416,0:03:41.284 पर यह एक ऐसा अनुकूलन है[br]जिसे हमने माना हुआ है। 0:03:41.284,0:03:43.646 लगभग कोई भी इस पर सवाल नहीं उठाता। 0:03:43.646,0:03:46.047 तो, अगर तुम किसी चीज़ पर सवाल न उठाओ, 0:03:46.047,0:03:50.346 तो मान लिया जाता है कि यह एक सच है,[br]जिस पर कोई विवाद नहीं है। 0:03:50.346,0:03:54.346 तो अगर यही एकमात्र सच होता 0:03:54.346,0:04:02.226 कि तुम बस अपना शरीर और मन ही हो, 0:04:02.226,0:04:07.226 और उसके आगे कुछ भी नहीं है, 0:04:07.226,0:04:10.136 तो अधिकतर लोगों के लिए यह काफ़ी होता। 0:04:10.136,0:04:15.276 उनका यही मानना है कि जो है यही है,[br]तुम्हारी शारीरिक पहचान, 0:04:15.276,0:04:19.656 और यह कि तुम देख रहे हो। 0:04:19.656,0:04:23.827 तुम्हारी इन्द्रियां हैं और कुछ है [br]जो इन मन और इन्द्रियों के माध्यम से 0:04:23.827,0:04:27.956 देख रहा है, अनुभव कर रहा है। [br]मन के लिये यही काफ़ी है। 0:04:27.956,0:04:30.106 यह काफ़ी क्यों नहीं है? 0:04:30.106,0:04:34.075 क्यों यह काफ़ी नहीं है? 0:04:34.075,0:04:38.916 अगर आत्मा नाम की कोई चीज़ न होती, [br]या स्व-आत्मन्, या विशुद्ध चैतन्य, 0:04:38.916,0:04:41.086 तो क्यों वह काफ़ी न होता 0:04:41.086,0:04:44.914 कि तुम सिर्फ़ अपने बारे में माना गया [br]अपना एक ख़याल होते? 0:04:44.914,0:04:48.076 जो वैसे भी बदलता रहता है, 0:04:48.076,0:04:50.566 जैसे अपनी हमेशा बदलती हुई[br]ख़ुद की एक तस्वीर। 0:04:50.566,0:04:52.744 तो वह हमेशा नहीं रहता। 0:04:52.744,0:04:55.805 और शरीर भी हमेशा नहीं रहता। 0:04:55.805,0:04:59.036 यह वह शरीर नहीं है [br]जिसे तुम्हारी मां ने जन्म दिया था। 0:04:59.036,0:05:02.296 तो, यह भी बदल रहा है।[br]सब कुछ बदल रहा है। 0:05:02.296,0:05:07.076 तो, अगर सब कुछ बदल रहा है [br]और यह चीज़ों का स्वभाव है कि वे बदलेंगी ही, 0:05:07.076,0:05:11.525 जो भी है, सब बदल रहा है। 0:05:11.525,0:05:14.695 तो हम क्या कर सकते हैं?[br]ऐसा ही तो है। 0:05:14.695,0:05:18.156 और ऐसा लगता है कि सभी के लिए ऐसा ही है। 0:05:18.156,0:05:21.694 तुम्हारा जीवन है, तुम जीवन जीते हो,[br]और अंत में ... 0:05:21.694,0:05:23.845 क्योंकि जीवन का एक अंत है, 0:05:23.845,0:05:27.105 जैसे जीवन की शुरुआत है, हम सोचते हैं, 0:05:27.105,0:05:30.076 कि हमारा अस्तित्व तब होता है [br]जब हमारा शरीर पैदा होता है। 0:05:30.076,0:05:32.697 हम कहते हैं कि वह तुम्हारा पहला दिन है 0:05:32.697,0:05:35.914 और एक आखरी दिन भी होगा। 0:05:35.914,0:05:38.994 और उसके बाद? उसके बाद कुछ नहीं। 0:05:38.994,0:05:44.265 मान लो ऐसा ही है, या इसके दौरान भी, 0:05:44.265,0:05:50.945 तन-मन के चलन के सिवा और कुछ नहीं है। 0:05:50.945,0:05:56.936 क्या तुम्हारे लिए ऐसा है? [br]तुमने यह पाया है क्या ? 0:05:56.936,0:05:59.776 तो इस निमंत्रण की कोई ज़रूरत ही न होती, 0:05:59.776,0:06:02.315 वह तुम्हारे अपने विश्वास के अलावा[br]कुछ भी उजागर न करता, 0:06:02.315,0:06:06.835 कि तुम शरीर हो, 0:06:06.835,0:06:09.615 और अनुकूलन हो या वह परिवेश 0:06:09.615,0:06:13.945 जो इस शारीरिक अभिव्यक्ति के लिए पैदा हुआ। 0:06:13.945,0:06:18.856 [प्र. १] मुझे लगता है... जब मैं छोटा था 0:06:18.856,0:06:25.656 तब मुझे यह पता था कि जब मैं मर जाऊंगा[br]तब भी यहीं रहूँगा। 0:06:25.656,0:06:34.915 सच में मुझे ऐसा लगता है। पर पता नहीं, [br]शायद मुझे कुछ ज़्यादा ही उम्म्मीद है। 0:06:34.915,0:06:39.285 [मूजी] मुझे बताओ, [br]तुम्हें ऐसी क्या ज़्यादा उम्मीद है? 0:06:42.237,0:06:46.015 [प्र.१] शायद मुझे उम्मीद है [br]कि जब मैं उसके साथ रहता हूँ 0:06:46.015,0:06:51.824 तब इससे ज़्यादा कुछ होना चाहिए। 0:06:51.824,0:06:55.494 [मूजी] और 'यह' क्या है? [br]'इस से ज़्यादा कुछ।' 0:06:55.494,0:06:57.745 बस देखें हम क्या बात कर रहे हैं, 0:06:57.745,0:07:00.384 'इस से ज़्यादा कुछ होना चाहिए।' 0:07:00.384,0:07:02.907 तो इस वक़्त, 'यह' क्या दर्शाता है? 0:07:02.907,0:07:06.976 [प्र.१] ऐसा लगता है कि मुझे इसमें [br]ज़्यादा स्थापित होना है। 0:07:06.976,0:07:09.176 मानो कुछ है जो पकड़े हुए है ... 0:07:09.176,0:07:12.515 [मूजी] तुम्हारी सभी बातें उस पर आधारित हैं 0:07:12.515,0:07:16.305 कि वह जो स्व को पायेगा, [br]उसे कुछ होना चाहिए। 0:07:16.305,0:07:18.466 इसमें स्व के बारे में कुछ नहीं है। 0:07:18.466,0:07:22.265 यह उसके बारे में है जो अनुभव करेगा, 0:07:22.265,0:07:27.166 जैसे कोई है जो स्व का अनुभव करेगा और 0:07:27.166,0:07:30.185 सोचेगा, 'हाँ, आख़िरकार मैंने पा ही लिया!' 0:07:30.185,0:07:34.185 और अगर यह नया नया पाया गया है [br]तो यह खो भी सकता है। 0:07:34.185,0:07:38.896 अगर यह तुमने कुछ नया पाया है[br]तो हो सकता है तुम्हें लगे, 0:07:38.896,0:07:42.155 'आह! मुझे ध्यान रखना पड़ेगा [br]कि मैं इसे खो न दूँ!' 0:07:42.155,0:07:46.208 और यह सब इसलिए आता है 0:07:46.208,0:07:49.956 क्योंकि जो तुम ख़ुद को समझते हो उस 'मैं'[br]भाव में तुम्हें पक्का विश्वास है, 0:07:49.956,0:07:53.485 जो स्व को खोज रहा है। 0:07:53.485,0:07:56.216 अभी तक यह समझ में नहीं आया 0:07:56.216,0:08:00.526 कि यह 'मैं' ही व्यक्ति-भाव से छूट जायेगा, 0:08:00.526,0:08:04.525 और तुम पाओगे कि यह 'मैं' आत्मन ही है! 0:08:04.525,0:08:08.366 पर जब तक स्मृति है, आदतें हैं, 0:08:08.366,0:08:11.765 वासनाएँ है, इच्छाएँ और आसक्तियाँ हैं, 0:08:11.765,0:08:17.204 तब तक यह तुम्हारा ख़ुद को व्यक्ति[br]मानने को कायम रखेगा और मज़बूत करेगा। 0:08:17.204,0:08:20.706 और वह व्यक्ति जो परम-तत्व को खोज रहा है, 0:08:20.706,0:08:24.506 ख़ुद ही लड़खड़ा रहा है, 0:08:24.506,0:08:33.705 क्योंकि प्रबोधन या मोक्ष[br]व्यक्ति के लिए नहीं होता, 0:08:33.705,0:08:37.834 वह व्यक्ति से छूट कर होता है! 0:08:37.834,0:08:41.444 यह अजीब बात लगती है, [br]क्योंकि हमारा विश्वास है, 0:08:41.444,0:08:44.134 'मैंने खोज की है और मैं बेहतर हो गया हूँ, 0:08:44.134,0:08:46.383 मैं ज़्यादा देर तक ध्यान में बैठ पाता हूँ। 0:08:46.383,0:08:49.976 मैं देख रहा हूँ कि मैं पहले से[br]ज़्यादा शांत हूँ। 0:08:49.976,0:08:52.215 मैं जीवन में ज़्यादा शांत रहने लगा हूँ, 0:08:52.215,0:08:56.585 पर अभी भी मुझे वह 'बड़ी वाली' चीज़ पानी है।[br]जो कुछ कुछ ऐसा है, 0:08:56.585,0:09:00.835 'हाँ! चैतन्य में मज़बूती से स्थापित होना 0:09:00.835,0:09:05.255 ताकि आगे कोई ग़लतियाँ न हों, [br]आगे और कष्ट न हों।' 0:09:05.255,0:09:09.456 तो अभी भी ऐसी इच्छा है कि यह व्यक्ति 0:09:09.456,0:09:13.824 सबसे ऊँचा ईनाम पा ले 0:09:13.824,0:09:16.964 ताकि इसे और कष्ट न उठाने पड़ें। 0:09:16.964,0:09:21.986 यह बहुत छोटी सी बात है पर[br]वास्तव में यह ऐसा नहीं है। 0:09:21.986,0:09:27.964 इस निमंत्रण की ख़ूबसूरती यह है [br]कि अंत में, 0:09:27.964,0:09:30.806 जब तुम निमंत्रण को सुन चुके, 0:09:30.806,0:09:34.255 या किताब पढ़ कर रख चुके,[br]तब मैं पूछता हूँ, तुम कौन हो? 0:09:34.255,0:09:37.106 इस निमंत्रण के अंत में क्या रह जाता है? 0:09:37.106,0:09:40.945 क्या बचा है वहाँ? 0:09:40.945,0:09:44.325 [मूजी] एक अच्छे अनुभव वाला व्यक्ति? [br][प्र. १] नहीं। 0:09:44.325,0:09:47.015 पर हो सकता है, अभी भी लगता है कि, 0:09:47.015,0:09:51.174 'वाह, यह बहुत बढ़िया था! [br]क्या हम इसे दोबारा कर सकते हैं?' 0:09:51.174,0:09:54.535 लेकिन, यदि ईमानदारी से तुमने[br]इसका अनुसरण किया है, 0:09:54.535,0:10:01.955 तो मुझे उम्मीद है कि तुम यह देख पाओगे [br]कि तुम्हें यह तो मालुम है कि तुम हो, 0:10:01.955,0:10:05.805 लेकिन उसके इर्द-गिर्द कोई परिभाषा नहीं है, 0:10:05.805,0:10:11.784 कोई हद या सीमा नहीं है। 0:10:11.784,0:10:16.515 जबकि पहले, व्यक्ति-भाव में, 0:10:16.515,0:10:20.206 हमारे पास कई संदर्भ होते थे [br]कि मैं कौन हूँ। 0:10:20.206,0:10:22.594 तुम एक ख़ास संदर्भ में हो 0:10:22.594,0:10:26.686 और यह समझने के लिये कि तुम कौन हो,[br]तुम उस पर जाते हो। 0:10:26.686,0:10:30.087 होने के एहसास में 0:10:30.087,0:10:36.117 क्या वह सीमित तादात्म्य कायम है? 0:10:36.117,0:10:38.775 अब मैं सभी से पूछ रहा हूँ, 0:10:38.775,0:10:41.275 इस निमंत्रण के अंत में, 0:10:41.275,0:10:45.356 व्यक्ति का यह एहसास कि यह 'मैं' हूँ[br]जिसने यह किया है, 0:10:45.356,0:10:49.716 'उम्मीद है यह काम करेगा। अरे वाह![br]मैं सच में सब कुछ अर्पण कर रहा हूँ ...' 0:10:49.716,0:10:54.047 क्या इस निमंत्रण के बाद यह बचा है [br]जो कहता है, 0:10:54.047,0:10:58.335 'वाह, सच में बहुत अच्छा हुआ[br]कि मैंने यह अनुभव किया'? 0:10:58.335,0:11:03.867 सच कहो, क्या यह है जो बचा है? या ... 0:11:03.867,0:11:11.134 जो पाया है 0:11:11.134,0:11:13.903 उसकी अपरिभाषित-ता जानने के बावजूद, 0:11:13.903,0:11:18.563 इसका मतलब यह नहीं [br]कि व्यक्ति-भाव पूरी तरह से ख़त्म हो गया। 0:11:18.563,0:11:22.675 बेशक उस क्षण से,[br]वह समझने का पल है 0:11:22.675,0:11:29.756 इसलिए हो सकता है ऐसा लगे, [br]'वाह! यह अद्भुत है!' 0:11:29.756,0:11:32.366 पर व्यक्ति-भाव 0:11:32.366,0:11:36.954 उस पल में उस दृष्टि की शक्ति को [br]नहीं झेल सकता, 0:11:36.954,0:11:39.666 तो वह पीछे हट जाता है, 0:11:39.666,0:11:45.587 पर अगर वह पूरी तरह जल नहीं गया [br]तो धीरे धीरे वापस आ जाता है। 0:11:45.587,0:11:51.844 और जलने का मतलब होगा[br]कि तुम, अपने ध्यान के माध्यम से 0:11:51.844,0:11:56.107 काफी हद तक अपनी ख़ोज में रहोगे 0:11:56.107,0:12:02.278 और मन-संसार से या व्यक्ति-भाव के[br]जीवन कि अभिव्यक्ति से 0:12:02.278,0:12:09.014 तादात्म्य बनाने में ज़्यादा कोई दिलचस्पी [br]नहीं रह जाएगी। 0:12:09.014,0:12:12.705 व्यक्ति-भाव कोई गलती नहीं है, [br]वह बस एक सीमितता है। 0:12:12.705,0:12:16.847 है वह भी चेतना ही, [br]पर वह एक ऐसी सीमितता है 0:12:16.847,0:12:21.728 जिसे तुम तभी देखोगे [br]जब तुम अपनी असीमता देखने लगोगे। 0:12:21.728,0:12:24.617 तब तुम व्यक्ति-भाव की परिसीमा देख पाओगे। 0:12:24.617,0:12:27.888 और कुछ समय के लिए मन डोलेगा। 0:12:27.888,0:12:32.564 किसी न किसी तरह ध्यान [br]उस विशुद्ध समरसता की तरफ जायेगा 0:12:32.564,0:12:38.257 और तुम ख़ुद को पूरी तरह से [br]अपने स्वरुप में महसूस करोगे। 0:12:38.257,0:12:43.220 पर वह दोबारा अपनी पुरानी तादात्म्य की आदत में[br]झूल जायेगा 0:12:43.220,0:12:46.963 और फिर से तुम्हें लगेगा, [br]'हे भगवान, नहीं, मैंने नहीं पाया। 0:12:46.963,0:12:51.755 मैं तो बिलकुल खो गया हूँ। [br]हे भगवान, मैं इसमें से कैसे निकलूं?' 0:12:51.755,0:12:54.557 और वह फिर झूलेगा और तुम्हें लगेगा, 0:12:54.557,0:12:58.258 'हलिलुय! ओह, मैंने इस पर शक़ भी कैसे किया? 0:12:58.258,0:13:01.518 मैं इस पर कैसे शक़ कर सका?[br]यह तो इतना उत्तम है। उत्तम है। 0:13:01.518,0:13:04.336 ओह, मैं समझ गया, बेशक़ [br]यह कभी फीका नहीं पड़ता! 0:13:04.336,0:13:07.188 मूजी, यह फीका नहीं पड़ता, [br]यह फीका नहीं पड़ता!' 0:13:07.188,0:13:11.995 और वह फिर झूलता है, [br]'हे भगवान! यह कब ख़तम होगा?' 0:13:11.995,0:13:15.737 जब तक कि एक बिंदु पर, [br]अचानक कुछ समझ आ जाता है, 0:13:15.737,0:13:23.229 कि वे दोनों चरम[br]ऐसी जगह से दिख रहे हैं 0:13:23.229,0:13:26.948 जो खुद झूल नहीं रही। 0:13:26.948,0:13:34.078 यही इसका स्वाभाविक, तुम कह सकते हो, 0:13:34.078,0:13:37.968 विकास या परिपक्वता है। 0:13:37.968,0:13:40.898 पर इससे बस जुड़े रहना है। 0:13:40.898,0:13:44.439 तुम कुछ पाते हो, और मन आ कर कह देता है, 0:13:44.439,0:13:47.165 'इसका मैं क्या करूँ? इसका क्या फ़ायदा? 0:13:47.165,0:13:50.453 मैं कैसे यहाँ रह सकता हूँ?[br]कैसे मैं इसे खो न दूँ?' 0:13:50.453,0:13:53.518 जैसे इस पर उसका अधिकार हो। 0:13:53.518,0:13:56.873 और मन की चालाकी को पकड़ने के लिए 0:13:56.873,0:14:00.648 तुम्हें बहुत चौकन्ना रहना पड़ेगा। 0:14:00.648,0:14:05.138 पर मैं तुम्हें कह रहा हूँ [br]कि तुम अपने मन की 0:14:05.138,0:14:10.466 भ्रम पैदा करे वाली शक्ति से[br]कही ज़्यादा बड़े हो। 0:14:10.466,0:14:14.924 तुम इस मानसिक आवाज़ के बिना रह सकते हो, 0:14:14.924,0:14:18.486 पर वह तुम्हारे बिना नहीं रह सकती। 0:14:18.486,0:14:21.456 तो तुम्हें तय करना है कि बेहतर क्या है, 0:14:21.456,0:14:24.507 क्योंकि थोड़ी देर के लिये तुम देखोगे 0:14:24.507,0:14:28.178 कि यह मानसिक व्यवहार, यह अनुकूलन, 0:14:28.178,0:14:31.600 एक परजीवी की तरह है जो जीता किस पर है? 0:14:31.600,0:14:33.770 शुद्ध आत्मन पर? नहीं। 0:14:33.770,0:14:36.778 यह उस विचार पर जीता है [br]जो तुम अपने बारे में रखते हो। 0:14:36.778,0:14:40.547 हमें अभी तक पक्का विश्वास नहीं है 0:14:40.547,0:14:44.145 कि तुम केवल चैतन्य हो। 0:14:44.145,0:14:48.285 यह केवल आस्था नहीं है।[br]जब मैं दृढ विश्वास कहूं, 0:14:48.285,0:14:52.461 तो यह महज़ विश्वास से ऊपर है, यह अभी तक[br]तुम्हारी अनुभव के आधार पर पुष्टि नहीं है 0:14:52.461,0:14:55.151 कि तुम चैतन्य हो। 0:14:55.151,0:14:59.604 अभी भी लगता है कि यह आगे है[br]जिसके लिए प्रयत्न करना है। 0:14:59.604,0:15:04.173 तो जब तक यह दूरी है, [br]तुम व्यापार के लिए उपलब्ध हो 0:15:04.173,0:15:08.021 और मन बार बार आता रहेगा। 0:15:08.021,0:15:13.407 अब मुझे इसका कुछ अंदाज़ा है,[br]और मुझे लगता है यह काफ़ी अच्छा है, 0:15:13.407,0:15:16.952 क्योंकि वे भी जो कहते हैं, 0:15:16.952,0:15:20.883 "मेरा मन मेरी जान ले रहा है।[br]यह लगा रहता है! 0:15:20.883,0:15:25.794 कभी हार नहीं मानता।[br]कभी छुट्टी पर नहीं जाता ...' 0:15:25.794,0:15:31.501 मन अपना काम भली-भांति करता है। 0:15:31.501,0:15:36.910 तुम इसे कैसे हरा सकते हो?[br]यह भावना ऐसे आती है। 0:15:36.910,0:15:43.690 और मैं कहता हूँ,[br]'पहले तो, उससे लड़ो मत। उससे मत लड़ो। 0:15:43.690,0:15:50.140 मन किससे बात कर रहा है? 0:15:50.140,0:15:53.150 मन किस से बात कर रहा है? 0:15:53.150,0:15:58.742 अगर हम जीसस क्राइस्ट जैसे गुरु[br]का उदाहरण लें, 0:15:58.742,0:16:04.200 या पैग़म्बर का, या भगवान राम,[br]या भगवान कृष्ण, 0:16:04.200,0:16:06.920 तो उनसे मन कैसे बोलेगा? 0:16:06.920,0:16:11.651 हम जानते हैं,और हमने सुना है[br]कि ईसा मसीह के प्रलोभन में, 0:16:11.651,0:16:15.310 और बुद्धा का भी, एक जैसी कहानियों में, 0:16:15.310,0:16:18.862 कि कैसे शुरू में, उनका आध्यात्मिक उपदेश [br]शुरू होने से एकदम पहले, 0:16:18.862,0:16:21.781 उन्होंने मन के बहुत से प्रश्न 0:16:21.781,0:16:27.831 और आक्रमण झेले, जैसे मसीह का प्रलोभन आदि। 0:16:27.831,0:16:31.842 तुम्हें कैसे लुभाया जा सकता है [br]अगर तुम लोभित नहीं हो सकते? 0:16:31.842,0:16:35.182 तो किसी न किसी बिंदु पर, कुछ तो रहा होगा, 0:16:35.182,0:16:38.511 एक खेल, एक दृश्य जो अभी खेला जाना था 0:16:38.511,0:16:44.121 असली लीला समझने के लिए, 0:16:44.121,0:16:51.721 एक मिथ्या शत्रु, बोलने के लिए,[br]उसका वास्तव में अनुभव करने के लिए 0:16:51.721,0:16:55.380 और स्पष्ट दृष्टि से उससे लड़ने के लिए 0:16:55.380,0:17:00.730 और तुम पर उसका मनोवैज्ञानिक असर[br]ख़तम करने के लिए। 0:17:00.730,0:17:04.220 सिर्फ़ तभी उनका उपदेश शुरू हो पाया। 0:17:04.220,0:17:07.000 और वह वैसे ही रूप में आएगा, 0:17:07.000,0:17:10.050 जैसा इस शरीर को पहननेवाली चेतना को 0:17:10.050,0:17:12.380 अनुभव करने की ज़रूरत है। 0:17:12.380,0:17:16.050 कई बार कुछ लक्षण, कुछ झुकाव, 0:17:16.050,0:17:21.100 या छिपी हुई आदतें, [br]जिन्हें वासना या संस्कार कहा जाता है, 0:17:21.100,0:17:25.449 जब वे बढ़ जाते हैं 0:17:25.449,0:17:29.411 तो मानो वे अस्तित्व को बंधक बना लेते हैं। 0:17:29.411,0:17:33.889 क्या तुम समझ रहे हो मैं क्या कह रहा हूँ? 0:17:33.889,0:17:38.110 तो जब वे बढ़ते हैं, तब बहुत संभावना है[br]कि तुम व्यक्तिगत तादात्म्य जोड़ लो, 0:17:38.110,0:17:40.650 इन ताकतों की वजह से। 0:17:40.650,0:17:43.640 तो जब वे आती हैं तब मानो 0:17:43.640,0:17:47.030 तुम सबसे ज़्यादा कमज़ोर होते हो। 0:17:47.030,0:17:52.072 लेकिन कभी कभी, तुम्हारी सबसे ज़्यादा [br]कमज़ोरी के बिंदु पर, सबसे ज़्यादा कमज़ोरी, 0:17:52.072,0:17:56.850 उसके दूसरी तरफ़ तुम्हारी सबसे बड़ी ताकत है,[br]जो तुमने पहचानी नहीं है। 0:17:56.850,0:18:02.432 कभी कभी,जो भी तुम अपना समझते हो[br]तुम्हें वह सब कुछ गवांना पड़ता है 0:18:02.432,0:18:08.411 उसे पाने के लिये जो किसी का नहीं हो सकता,[br]उसे पाने के लिये। 0:18:08.411,0:18:11.771 तो यह खेल इतना जटिल चल रहा है, 0:18:11.771,0:18:16.511 यह खेल इतना विस्तृत, इतना विविध है, 0:18:16.511,0:18:21.410 और हर किसी के अपने चालीस दिन[br]चालीस रातें होते हैं। 0:18:21.410,0:18:27.000 ख़ैर, अब चालीस दिन चालीस रातें नहीं रहे, [br]किसी के पास इतना वक़्त नहीं है! 0:18:27.000,0:18:29.050 हम इतने बेसब्र हो गए हैं। 0:18:29.050,0:18:32.732 बेरोज़गार लोगों के पास भी वक़्त नहीं है, [br]इस सब के लिये। 0:18:32.732,0:18:38.690 तो चेतना ने ख़ुद को आधुनिक जीवन के लिये[br]ढाल लिया है। 0:18:38.690,0:18:43.098 यह ऐसा नहीं है जिसे तुम दूकान से खरीद सको, 0:18:43.098,0:18:46.389 लेकिन शायद यह उससे भी ज़्यादा[br]उपलब्ध लगता है 0:18:46.389,0:18:50.409 कि लोग ऑनलाइन जा कर ये चीज़ें देख सकते हैं, 0:18:50.409,0:18:53.320 और लगातार इसके साथ रह सकते हैं। 0:18:53.320,0:18:57.461 मानो तुम अपने गुरु से हर रोज़ [br]बात कर सकते हो। 0:18:57.461,0:19:00.869 जबकि पुराने समय में, शायद ऐसा नहीं था, 0:19:00.869,0:19:04.320 जैसी आज एक शिष्य की पहुँच है। 0:19:11.100,0:19:16.388 [प्र.१] यह ऐसा है जैसे [br]जब मैं तीन महीने के लिये 0:19:16.388,0:19:18.398 MSB (मूजी संघ भवन) में था, 0:19:18.398,0:19:22.901 और उस वक़्त पर मैं इसमें इतना उभरा हुआ[br]महसूस करता था। उभरा? 0:19:22.901,0:19:25.090 [मूजी] तल्लीन, शायद। 0:19:25.090,0:19:28.771 [प्र.१.] और कोई संघर्ष नहीं था, [br]कोई जलन नहीं थी। 0:19:28.771,0:19:31.291 मैं बस बहुत अच्छा महसूस कर रहा था! 0:19:31.291,0:19:35.259 ऐसा लगता था, [br]'क्या यह ज़रूरत से ज़्यादा अच्छा है?' 0:19:35.259,0:19:39.670 जैसे कोई परेशानी होनी चाहिये। पता नहीं। 0:19:39.670,0:19:41.719 फिर मैं घर वापस चला गया 0:19:41.719,0:19:45.414 और वहाँ कुछ ऐसी परिस्थितियां हुईं[br]जो बहुत उलझन भरी थीं, 0:19:45.414,0:19:48.645 पर मैं उन परिस्थितियों में भी [br]बिलकुल ठीक रहा। 0:19:48.645,0:19:54.271 मैं देख पा रहा था कि [br]व्यक्ति में मेरी दिलचस्पी बहुत ... 0:19:54.271,0:19:57.153 [मूजी] कमज़ोर? [br][प्र.१] कमज़ोर। हाँ। 0:19:57.153,0:20:01.582 [प्र.१] पर यह इतना अजीब था कि[br]कैसे इस समय में पुरानी आदतें, 0:20:01.582,0:20:05.713 पुरानी कमज़ोरियाँ उभर कर आयीं। 0:20:05.713,0:20:09.974 मैं लम्बे अरसे बाद[br]फिर से धूम्रपान करने लग गया, 0:20:09.974,0:20:14.184 सिर्फ़ इस दौरान, इस अंतराल में। 0:20:14.184,0:20:17.624 मैं देख पा रहा था जैसे, 'अरे,[br]मैं यहाँ क्या कर रहा हूँ?' 0:20:17.624,0:20:23.004 मुझे लगा कि मुझमें कुछ इतना, [br]कैसे कहा जाये ... 0:20:23.004,0:20:27.343 क्या आप मेरी मदद कर सकते हैं? [br]कोई? जर्मन? 0:20:27.343,0:20:30.143 [संघ में से आवाज़] टालना।[br][प्र.१] टाल रहा था। 0:20:30.143,0:20:34.473 और मैं इतना टीवी देखने लग गया था, [br]देर रात तक। 0:20:34.473,0:20:39.994 पर यह अच्छा था कि मैं अभी भी [br]महसूस कर पा रहा था कि वह यहीं है। 0:20:39.994,0:20:43.963 [मूजी] ऐसा अक्सर होता है, यह अच्छा है। 0:20:43.963,0:20:47.056 व्यक्तिगत पहचान को लगता है, [br]'अब मैं दूर रहा हूँ। 0:20:47.056,0:20:50.744 वाह, मैंने इस सारे आध्यात्म को सोख लिया।' 0:20:50.744,0:21:00.313 और तुम घर जाते हो [br]और वह रंग बदलने लगता है। 0:21:00.313,0:21:04.272 इसे समझें, तुम हर बार उसी जगह पर नहीं हो, 0:21:04.272,0:21:08.813 अगर तुम व्यक्ति-भाव में रहते हो, [br]तो तुम उसी जगह पर नहीं हो। 0:21:08.813,0:21:12.110 हो सकता है तुम उससे ऊँची जगह पर हो। 0:21:12.110,0:21:15.055 मैं इसके बारे में और बातें भी कह सकता हूँ। 0:21:15.055,0:21:18.104 तुम उससे ऊपर की जगह पर हो सकते हो, 0:21:18.104,0:21:20.844 पर हो सकता है [br]वह और भी ज़्यादा उलझन भरी लगे। 0:21:20.844,0:21:23.614 तुम्हें लग सकता है कि [br]तुम्हारी ज़िन्दगी तहस-नहस हो गयी, 0:21:23.614,0:21:27.154 या यह तो बहुत खराब बात है; [br]पर हो सकता है वह अच्छी बात हो। 0:21:27.154,0:21:31.304 शायद दोबारा से कुछ होने की ज़रूरत है ... 0:21:31.304,0:21:34.005 हो सकता है किसी चीज़ को तहस-नहस हो कर 0:21:34.005,0:21:36.635 दोबारा बनने की ज़रूरत हो, 0:21:36.635,0:21:40.964 या शायद दोबारा बनने की नहीं बल्कि [br]किसी और रूप में प्रकट होने की ज़रूरत हो। 0:21:40.964,0:21:48.095 तो इसे समझने के लिये [br]अपने मन पर भरोसा मत करो। 0:21:48.095,0:21:52.244 क्योंकि कभी कभी तुम सोचने लगते हो, [br]मैं तो यहाँ आने से पहले ही ठीक था। 0:21:52.244,0:21:54.803 पहली बार यहाँ कितना अच्छा था। 0:21:54.803,0:21:58.412 जब मैं वापस गया तो मानो [br]जैसे लाल सागर गुज़र गया। 0:21:58.412,0:22:00.674 सब कुछ ऐसे हो रहा था। 0:22:00.674,0:22:04.751 और फिर, वह बड़ा धमाका हो गया! 0:22:04.751,0:22:07.834 कई अलग अलग कारण हो सकते हैं। 0:22:07.834,0:22:11.683 हो सकता है तुममें एक प्रकार का[br]अहंकार आने लगे। 0:22:11.683,0:22:13.954 तुम सोचने लगो, [br]'अब तो मैं इतना ख़ास हो गया हूँ। 0:22:13.954,0:22:17.695 मैं सोचता हूँ और वैसा ही हो जाता है।' 0:22:17.695,0:22:21.023 तो पता नहीं जीवन कैसे आए, 0:22:21.023,0:22:28.323 तुम्हारे जोश पर पानी फेर दे, [br]और अधिक विनम्रता के लिये जगह बना दे, 0:22:28.323,0:22:31.232 जो तुम्हें वापस रस्ते पर ले आये। 0:22:31.232,0:22:34.434 कई चीज़ें हो सकती हैं। 0:22:34.434,0:22:39.823 हमारे मन से इसके बारे में जो तस्वीर [br]आती है उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। 0:22:39.823,0:22:44.155 कभी कभी तुम्हें बहुत खराब लगता है [br]और फिर तुम्हें याद दिलाना पड़ता है 0:22:44.155,0:22:52.585 कि तुम्हारी एक तरह की [br]मानसिक सफ़ाई हो रही है। 0:22:52.585,0:22:57.463 कुछ है जो बाहर निकाल रहा है, तुम्हें[br]लगता है, 'ओह, मैंने यह उम्मीद नहीं की थी। 0:22:57.463,0:22:59.983 मैंने सोचा था मुझे शान्ति मिलेगी। 0:22:59.983,0:23:02.992 पर मैं तो बिलकुल बिखर गया हूँ।[br]पता नहीं क्या करूँ।' 0:23:02.992,0:23:07.502 तुम्हें बहुत खराब लगता है, 'हे भगवान्।[br]शायद मैंने यहाँ आ कर गलती कर दी। 0:23:07.502,0:23:11.123 पर तुम्हारी सफ़ाई हो रही है[br]और यह सब ऊपर आ रहा है 0:23:11.123,0:23:13.404 और यह अच्छा नहीं लगता। 0:23:13.404,0:23:16.573 अगर तुम्हारे अंदर बहुत बुराई है 0:23:16.573,0:23:21.804 और तुम्हें उसे उलटी करना है, [br]तो यह अच्छा एहसास नहीं है। 0:23:21.804,0:23:24.203 पर जब वह बाहर आता है[br][उलटी करने की नक़ल करते हुए] 0:23:24.203,0:23:28.025 उलटी करने के बाद बहुत अच्छा लगता है, है न? 0:23:28.025,0:23:30.183 कभी कभी ये बातें ऊपर आ जाती हैं 0:23:30.183,0:23:33.214 और वे केवल मोंटे सहजा जैसी जगह के माहौल 0:23:33.214,0:23:37.583 और आध्यात्मिकता से सक्रिय हो जाती हैं। 0:23:37.583,0:23:41.834 वे बहुत ताकत से आती हैं और[br]तुम्हें याद दिलाना पड़ता है, 0:23:41.834,0:23:45.345 कि 'सब ठीक है। चिंता मत करो।[br]तुम पर कृपादृष्टि है। 0:23:45.345,0:23:48.964 सब ठीक है, यह बस कुछ अटकी हुई ऊर्जा[br]की डकार आ रहा है, 0:23:48.964,0:23:52.444 या कोई भ्रम हैं जो जल रहे हैं।' 0:23:52.444,0:23:56.973 और कभी कभी यह जलन[br]साधना से भी ज़्यादा होती है। 0:23:56.973,0:23:59.284 साधना मतलब आध्यात्मिक अभ्यास, 0:23:59.284,0:24:03.394 क्योंकि तुम्हारी अंतर्दशा ऐसी होती है[br]जैसे तुम आग के बीच में हो। 0:24:03.394,0:24:06.763 तुम्हारा जी मिचलाता है,[br]किसी से बात करने का मन नहीं करता, 0:24:06.763,0:24:10.964 पर तुम पर कृपादृष्टि है।[br]वह किसी तरह जल कर राख हो रहा है। 0:24:10.964,0:24:15.144 [प्र.१} पिछले साल मेरा बहुत जलन वाला रहा, 0:24:15.144,0:24:18.394 मैं दिन रात रो रहा था, 0:24:18.398,0:24:22.648 मैं वाकई जल रहा था।[br]मेरी पूरी ज़िन्दगी बदल गयी। 0:24:22.648,0:24:25.198 कुछ भी पहले जैसा नहीं रहा।[br] 0:24:25.198,0:24:28.849 पर इस समय मुझे कोई जलन नहीं महसूस हो रही,[br]और मुझे लग रहा है, 0:24:28.849,0:24:32.950 क्या मुझे उससे ज़्यादा जलना चाहिए?[br]मानो मैं कुछ ज़्यादा ही आराम से हूँ। 0:24:32.950,0:24:36.809 [मूजी] यह 'मैं' ...[br]मैं हमेशा सीधा 'मैं' पर जाता हूँ। 0:24:36.809,0:24:41.168 कौन बोल रहा है?[br]इस कहानी का संवाददाता कौन है? 0:24:41.168,0:24:44.998 क्या यह सच में चेतना के[br]हृदय में दीक्षित हुआ है? 0:24:44.998,0:24:47.268 क्या यह चेतना बोल रही है? 0:24:47.268,0:24:50.499 या क्या यह चेतना और 0:24:50.499,0:24:55.727 अचेतन व्यक्ति-भाव का मिश्रण बोल रहा है? 0:24:55.727,0:25:00.868 और हमेशा ऐसा होता है मानो व्यक्ति-भाव[br]अभी भी है, वह बच गया है। 0:25:00.868,0:25:04.817 वह बच गया है।[br]तुम्हें यहाँ आ कर बचना नहीं चाहिए! 0:25:04.817,0:25:06.917 [प्र.१] मैं बचना भी नहीं चाहता। 0:25:06.917,0:25:10.697 [मूजी] कोई यहाँ आयीं थीं और उसने मुझे[br]चिट्ठी लिखी, और मुझे एक किताब भेजी। 0:25:10.697,0:25:13.609 किताब में उसने लिखा, 0:25:13.609,0:25:17.759 'मैं इतनी किस्मत वाली हूँ कि[br]मैं अपने जीवन में कई गुरुओं के साथ रही हूँ। 0:25:17.759,0:25:19.928 मैं सात गुरुओं के साथ बैठी हूँ।' 0:25:19.928,0:25:23.318 मैंने कहा, पर तुम सात गुरुओं से[br]बच कैसे गयी? 0:25:23.318,0:25:26.578 एक भी! तुम्हें एक भी गुरु से[br]बचना नहीं चाहिए! 0:25:26.578,0:25:30.910 तो आ कर यह कहना,[br]'हाँ, मैं सात गुरुओं के साथ बैठी'। 0:25:30.910,0:25:34.199 और तुम्हें क्या हुआ?[br]क्या तुम्हारा अहम् अभी भी ज़िंदा है? 0:25:34.199,0:25:37.349 क्या हुआ?[br]क्या तुम पीछे की पंक्ति में बैठी थी? 0:25:37.349,0:25:40.449 क्या तुम शौचालय में छिपी हुईं थी?[br]तुम कहाँ थी? 0:25:40.449,0:25:47.007 क्योंकि अगर तुम तत्परता से आओ,[br]तो तुम्हारे साथ कुछ होना चाहिए! 0:25:47.007,0:25:51.408 तुम्हें बचना नहीं चाहिये।[br]'तुम' मतलब अहम् 0:25:51.408,0:25:57.129 जो दरअसल तुम्हारे सत्य स्वरुप के ऊपर[br]पहना हुआ मुखौटा है। 0:25:57.129,0:26:01.958 तुम इस मुखौटे के साथ जी रहे हो। तुम शीशे[br]में देखते हो, तो तुम्हें मुखौटा दिखाई देता है, 0:26:01.958,0:26:05.897 तुम अपने मुखौटे पर मेक-उप लगाते हो।[br]हमें अपने मुखौटे पर कितना गर्व है। 0:26:05.897,0:26:09.183 हमें यह भी नहीं पता कि वह मुखौटा है। 0:26:09.183,0:26:11.613 जब तुम्हें दिखने लगे कि यह मुखौटा है, 0:26:11.613,0:26:16.902 तो तुम उसे उतारने की कोशिश करते हो, तुम्हें[br]दिखाई देता है कि वह कितना चिपका हुआ लगता है, 0:26:16.902,0:26:22.041 फिर भी तुम्हें पता होता है,[br]कि मैं यह नहीं हूँ। 0:26:22.041,0:26:27.050 और हम इस मुखौटे को कैसे उतार सकते हैं?[br]ज़ोर-ज़बरदस्ती से नहीं। 0:26:27.050,0:26:30.421 बल्कि जो आंतरिक अनुभव तुम्हें दिया गया है 0:26:30.421,0:26:34.182 उसे याद कर के, 0:26:34.182,0:26:38.142 और उसे पहचान कर 0:26:38.142,0:26:41.171 जो आँखों से नहीं दिखाई देता। 0:26:41.171,0:26:45.642 तुम गहराई से देख पाते हो। 0:26:45.642,0:26:48.791 यह निमंत्रण सभी का मित्र है, 0:26:48.791,0:26:51.770 क्योंकि वह तुम्हें अपनी सामान्य[br]ध्यान बंटाने वाली चीज़ें 0:26:51.770,0:26:59.519 छोड़ने में, 0:26:59.519,0:27:04.142 और यह देखने में मदद करता है[br]कि उस दृष्टि में वापस आना कितना आसान है, 0:27:04.142,0:27:11.323 अस्तित्व के उस क्षेत्र में आना जिसमें [br]सभी चीज़ें और भी स्पष्ट दिखने लगतीं हैं, 0:27:11.323,0:27:15.061 जहां अदृश्य भी दिखने लगता है। 0:27:19.881,0:27:24.710 [मूजी] जब तक हम बाहरी जीवन के [br]भ्रमजाल में हैं, 0:27:24.710,0:27:27.371 जहाँ हमें अधिकतर यही लगता है कि, 0:27:27.371,0:27:30.051 'मैं यह व्यक्ति हूँ जो व्यक्ति-भाव में[br]बढ़ रहा है 0:27:30.051,0:27:35.201 और मंज़िल के क़रीब आता जा रहा है', 0:27:35.201,0:27:39.851 तब तक हममें भ्रम रहता है। 0:27:39.851,0:27:42.651 तुम्हें इस सब पर जीत पानी होगी। 0:27:42.651,0:27:45.841 और दरअसल मुझे यह ज़्यादा मुश्किल नहीं लगता। 0:27:45.841,0:27:50.537 अगर कोई मुश्किल है तो वह है [br]हमारी अपनी तादात्म्य के प्रति वफ़ादारी। 0:27:50.537,0:27:53.451 अगर तुम्हें अभी भी भूख है, 0:27:53.451,0:27:56.600 सांसारिक चीज़ों के प्रति विषयी भूख, 0:27:56.600,0:27:59.771 तो तुम आसक्तियों की ताकत की वजह से [br]उन्हें छोड़ नहीं पाओगे, 0:27:59.771,0:28:04.191 इसलिए भी कि वह उभरेंगी। 0:28:04.191,0:28:07.791 और ध्यान में, निर्देशित ध्यान,[br]या सत्संग में, 0:28:07.791,0:28:13.221 तुम्हें पता चलेगा कि कहाँ [br]वे आसक्तियां ज़्यादा कसी हुई हैं। 0:28:13.221,0:28:15.802 और इसकी इच्छा होनी चाहिये ... 0:28:15.802,0:28:18.113 चीज़ें अपने आप में नहीं ... 0:28:18.113,0:28:22.191 कोई चीज़ खुद परेशानी नहीं होती, [br]बल्कि तुम्हारा उससे रिश्ता 0:28:22.191,0:28:24.511 और तुम उसको क्या महत्त्व देते हो, [br]यह बात होती है। 0:28:24.511,0:28:29.340 क्योंकि वह महत्त्व है, कि उस चीज़ की [br]तुम्हारे लिए क्या कीमत है। 0:28:29.340,0:28:33.706 और जो मूल्य तुम उसे देते हो, वह तब उभरेगा[br]जब उसके पार जाने का समय आएगा, 0:28:33.706,0:28:36.366 और तुम उसे अपने साथ ले जाना चाहोगे। 0:28:36.366,0:28:41.096 और अगर एक विकल्प हो,' तुम अकेले आओ [br][उसके बिना] या यहीं रहो', 0:28:41.096,0:28:44.946 तो शायद तुम यहीं रह जाओगे [br]क्योंकि उन पलों में 0:28:44.946,0:28:50.267 तुम्हारी आसक्तियाँ ऐसी लगेंगी [br]मानो वे क्रिसमस का त्यौहार हों। 0:28:50.267,0:28:59.308 तुम उन्हें छोड़ना नहीं चाहोगे, 'ओह, [br]शायद मैं बाद में आ जाऊंगा'। तुम ऐसा करोगे। 0:28:59.308,0:29:01.796 मुक्ति की ओर अपना मार्ग निश्चित मत करो! 0:29:01.796,0:29:04.587 बस आ जाओ और उपस्थित रहो! 0:29:04.587,0:29:07.065 बस आ जाओ! बस पहुंचो! 0:29:07.065,0:29:10.080 तुम्हें कोई भी तरक़ीबों की [br]ज़रूरत नहीं है। 0:29:10.080,0:29:13.726 तुम्हारे पास कोई भी तरकीब न हो! [br]कोई बचाव का रास्ता मत सोचो। 0:29:13.726,0:29:16.511 बस अपने मन में इस इच्छा के साथ आओ, 0:29:16.511,0:29:20.278 'मुझमें मुक्त होने की इतनी आकांक्षा है कि, 0:29:20.278,0:29:25.656 मैं अहम्-भाव का बोझ और नहीं उठा सकता।' 0:29:25.656,0:29:28.145 क्योंकि अगर तुम खुद (अहम्) को न सह सको 0:29:28.145,0:29:32.387 तो यह भी तरक्की है! 0:29:32.387,0:29:37.128 खुद को समझना ही नहीं, बल्कि[br]एक बिंदु पर आ कर तुम खुद को सह ही न पाओ। 0:29:37.128,0:29:40.756 यह बहुत बड़ी तरक्की है, दरअसल, [br]क्योंकि इसका मतलब है 0:29:40.756,0:29:43.938 कि तुम अपने अहम् को कायम नहीं रख पा रहे, 0:29:43.938,0:29:46.828 वह तुम्हारे लिए असहनीय हो गया है। 0:29:46.828,0:29:51.425 यह भी आध्यात्मिक प्रगति का निशान है, 0:29:51.425,0:29:55.105 क्योंकि जब तक 0:29:55.105,0:30:01.505 यह हमारे अवचेतन मन में छिपा हुआ है, [br]तब तक तुम इसे पकड़ नहीं पाते, 0:30:01.505,0:30:04.295 और तुम बहुत लम्बे समय तक[br]इस भ्रम में जी सकते हो 0:30:04.295,0:30:07.297 कि तुम यह व्यक्ति हो 0:30:07.297,0:30:10.446 और अपने राजा और देश के लिए लड़ते हो ... 0:30:10.446,0:30:16.438 पर जैसे जैसे तुम अपने सत्य को पहचानने[br]और अनुभव करने लगते हो, 0:30:16.438,0:30:19.535 तुम्हारी आक्रामकता छूटने लगती है। 0:30:19.535,0:30:22.496 एक तरह की धीरज उसकी जगह ले लेती है, 0:30:22.496,0:30:26.877 एक शांति, और एक तरह का ज्ञान [br]तुम्हारे अंदर प्रकट होने लगता है, 0:30:26.877,0:30:28.902 एक तरह का विस्तार। 0:30:28.902,0:30:33.703 तुम अपने जीवन में भयभीत या [br]संकुचित महसूस नहीं रहते। 0:30:33.703,0:30:38.697 सब कुछ अधिक विस्तृत महसूस होता है। 0:30:38.697,0:30:42.486 पर आख़िरकार, विस्तार का एहसास भी 0:30:42.486,0:30:46.816 उतना ज़रूरी नहीं है,[br]क्योंकि आत्मन अनंत है। 0:30:46.816,0:30:49.878 अनंत कहाँ तक फ़ैल सकता है? 0:30:49.878,0:30:53.337 कुछ है जो इतना उपस्थित है। 0:30:53.337,0:31:00.796 तुम्हारा अस्तित्व, तुम्हारा जीवन [br]इस विस्तार में से प्रकट हो रहा है। 0:31:00.796,0:31:04.128 यह बस ... 0:31:07.678,0:31:12.738 यह मानो असंख्य पहलूओं वाला हीरा है, 0:31:12.738,0:31:17.625 पर हर एक पहलू के पीछे पूरा हीरा है। 0:31:17.625,0:31:25.156 हर जीवन मानो इस असंख्य पहलूओं वाले[br]हीरे का एक पहलू है। 0:31:25.156,0:31:27.746 कोई जीवन बस नाम-मात्र का नहीं है। 0:31:27.746,0:31:33.907 इस विशाल लीला में हर किसी की[br]अपनी भूमिका है, तुम्हारे जागने तक। 0:31:33.907,0:31:37.856 जागने के बाद भी तुम्हारी बाहरी अभिव्यक्ति[br]चलती रहेगी, 0:31:37.856,0:31:43.476 शायद पहले से ज़्यादा भी, [br]बहुत सुन्दर फल देने के लिये। 0:31:43.476,0:31:48.088 पर तुम्हें अपनी पूर्ण पहचान तक आना होगा, 0:31:48.088,0:31:53.768 द्वैतवादी पहचान तक नहीं,[br]बल्कि एक अद्वैत पहचान। 0:31:53.768,0:31:56.998 मतलब, कैसे एक चीज़ ... 0:31:56.998,0:32:00.778 यह ऐसा है जैसे,[br]एक हाथ से ताली कैसे बज सकती है? 0:32:00.778,0:32:06.647 एक चीज़ खुद को कैसे पहचान सकती है? 0:32:06.647,0:32:10.567 मैं एक उदहारण देता हूँ ... 0:32:10.567,0:32:14.105 यह उदहारण मैं बहुत समय से देता रहा हूँ। 0:32:14.105,0:32:17.656 एक तेज़ धार की छुरी, कितनी भी तेज़ हो,[br]कितनी ही चीज़ें काट सकती है, 0:32:17.656,0:32:21.386 पर ख़ुद को नहीं काट सकती। क्यों? 0:32:23.856,0:32:32.354 या आँखें जो कई रूप देख सकती हैं,[br]पर ख़ुद को नहीं देख सकतीं। 0:32:32.354,0:32:35.801 या तराज़ू जो कई चीज़ें तोल सकता है 0:32:35.801,0:32:40.186 पर ख़ुद को नहीं तोल सकता। क्यों? 0:32:40.186,0:32:42.825 क्योंकि वह ख़ुद से अलग नहीं हो सकता। 0:32:42.825,0:32:45.755 वह इतना एक है कि ख़ुद को देख नहीं सकता। 0:32:45.755,0:32:48.365 हम वैसे ही नहीं। हमारा सच्चा स्व एक ही है। 0:32:48.365,0:32:50.286 तुम अपने स्व को देख नहीं सकते। 0:32:50.286,0:32:55.213 जो भी तुम देखते हो, जो भी तुम ख़ुद को [br]मानते हो, वह सिर्फ़ कल्पना है। 0:32:55.213,0:32:57.333 वह केवल सतह है। 0:32:57.333,0:33:01.885 तुम अपने आत्मन में से देख रहे हो। 0:33:01.885,0:33:03.914 ये सभी चीज़ें, 0:33:03.914,0:33:07.644 मेरे पास हर छोटी छोटी चीज़ के लिए [br]कोई ख़ास अभ्यास नहीं है। 0:33:07.644,0:33:11.807 तुम बड़े से तालाब में बैठे हो [br]और सभी जगह से गीले हो। 0:33:11.807,0:33:16.745 ऐसा नहीं है कि एक तरफ़ का पानी तुम्हें [br]आगे से भिगोयेगा और दूसरी तरफ़ का पीछे से। 0:33:16.745,0:33:20.610 तुम उसके तालाब में बैठते हो [br]और तुम पूरे भीग जाते हो। 0:33:20.610,0:33:23.719 तो मैं ऐसे कह रहा हूँ, 0:33:23.719,0:33:29.780 कि मैं अगर तुम में से एक से भी बात कर[br]रहा हूँ, तो भी मैं सभी से कह रहा हूँ! 0:33:29.780,0:33:32.551 सत्संग में तुम्हारा आना, 0:33:32.551,0:33:36.299 अगर तुम उस तत्परता से आये हो,[br]तो वह तृप्त होगी। 0:33:36.299,0:33:38.491 होना ही है। 0:33:38.491,0:33:44.031 अगर तुम अपने तादात्म्य को बचाने की [br]कोशिश करोगे, तो वह बचा रहेगी। 0:33:47.891,0:33:51.412 पर अगर तुम इस भाव से आते हो कि, 0:33:54.062,0:33:56.842 'मैं बस एक स्पॉन्ज जैसा हूँ, 0:33:56.842,0:34:01.211 मेरा हृदय कहता है कि सब कुछ[br]छोड़ कर यह सब सोख लो', 0:34:01.211,0:34:05.710 तो ऐसे आओ। 0:34:05.710,0:34:10.130 [प्र. १] पिछले सत्संग में [br]जब आपने यह प्रश्न पूछा, 0:34:10.130,0:34:12.668 'अगर यह तुम्हारा आख़िरी दिन हो', 0:34:12.668,0:34:16.019 तब तो यह जलन बहुत तेज़ आ रही थी, 0:34:16.019,0:34:18.999 मगर बाद में यह ठंडी पड़ गयी। 0:34:18.999,0:34:21.632 [मूजी] अगर असल में [br]यह तुम्हारा आख़िरी दिन हो, 0:34:21.632,0:34:25.560 बस आख़िरी पांच मिनट बचे हो,[br]या कुछ .... 0:34:25.560,0:34:28.199 तो अगर यह तुम्हारा आख़िरी मौका हो, 0:34:28.199,0:34:31.860 अब कृपया इस प्रश्न के साथ रहो [br]जो मैं पूछने वाला हूँ, 0:34:31.860,0:34:36.020 अगर सच में ऐसा होता कि [br]बस घड़ियाँ गिनी जा रही हैं, 0:34:36.020,0:34:38.310 घड़ी चलती जा रही है, 0:34:38.310,0:34:41.690 तुम पांच मिनट में क्या कर सकते हो? 0:34:41.690,0:34:46.121 पांच मिनट में इस बारे में [br]तुम क्या कर सकते हो? 0:34:46.121,0:34:48.602 चार मिनट? 0:34:52.182,0:34:54.811 तीन मिनट? 0:34:54.811,0:34:58.619 दो मिनट? तुम दो मिनट में क्या पा सकते हो? 0:34:58.619,0:35:01.761 एक मिनट में? तीस सेकंड में?[br] 0:35:01.761,0:35:04.231 दस सेकंड में, तुम क्या पा सकते हो? 0:35:04.231,0:35:08.040 अगर तुम उसैन बोल्ट हो तो [br]शायद तुम एक और रिकॉर्ड तोड़ सकते हो। 0:35:08.040,0:35:14.908 पर वाकई क्या तुम वह पा सकते हो [br]जिसकी हम बात कर रहे हैं? 0:35:14.908,0:35:18.449 और शायद इस तरह की चुनौती बहुत[br]ताकतवर इसीलिए है, 0:35:18.449,0:35:22.880 क्योंकि तुम्हें अपना शारीरिक काम[br]छोड़ना ही पड़ता है। 0:35:22.880,0:35:27.487 तुम जो हो, वह होने के लिए[br]कोई शारीरिक काम नहीं कर सकते। 0:35:27.487,0:35:32.440 यह ऐसे नहीं चलता। 0:35:32.440,0:35:36.660 तुम्हें किस तकनीक की ज़रूरत है? किसी की नहीं। 0:35:36.660,0:35:39.340 तो मैं कहूंगा कि, वह सब छोड़ दो! 0:35:39.340,0:35:44.079 बस छोड़ दो सब कुछ,[br]क्योंकि वह तुम्हारे काम नहीं आएगा। 0:35:44.079,0:35:47.259 मान लो तुम सब कुछ छोड़ते चल सकते! 0:35:47.259,0:35:50.469 बस छोड़ दो, मतलब,[br]किसी चीज़ में शामिल मत होओ। 0:35:50.469,0:35:54.130 अपनी स्वाभाविक आत्मन की अनुभूति को[br]किसी चीज़ के साथ मिलाओ मत, 0:35:54.130,0:35:56.970 किसी देवी-देवता के साथ भी नहीं।[br]बस छोड़ दो सब कुछ! 0:35:56.970,0:35:59.840 तुम इसी समय भी यह कर सकते हो। 0:35:59.840,0:36:03.100 क्या तुम्हें सब कुछ छोड़ने में दस सेकंड भी लगेंगे? 0:36:03.100,0:36:07.790 बिलकुल खाली हो जाओ। 0:36:07.790,0:36:11.692 और इंतज़ार मत करो। पूरी तरह से खाली हो जाओ। 0:36:16.831,0:36:20.542 [मूजी] जो छोड़ रहा है, उसे भी छोड़ दो। 0:36:22.989,0:36:26.170 [मूजी] सच में, ऐसा करो! 0:36:28.161,0:36:32.419 और अब जहाँ तुम हो वहाँ से बोलो। 0:36:32.419,0:36:35.588 क्या तुम समय में हो? 0:36:40.961,0:36:44.162 नहीं। तुम्हें करना पड़ेगा! 0:36:44.162,0:36:46.499 अगर तुम अपने सभी रिश्ते, 0:36:46.499,0:36:50.612 वे भी जो तुम्हारे लिए बहुत कीमती हैं,[br]अगर अभी दस सेकंड में सभी छोड़ दो। 0:36:50.612,0:36:53.820 शायद तुम में से कुछ घर से दूर जा रहे हैं, 0:36:53.820,0:36:56.220 अगर तुम्हारे पास दस मिनट होते, 0:36:56.220,0:36:59.529 बस दस सेकंड, ठीक फ़ोन करने का भी[br]समय नहीं है कि, 0:36:59.529,0:37:03.760 'अलविदा,अलविदा, प्रिये। मैं जा रहा हूँ।'[br]क्या तुम यह सह सकते हो? 0:37:03.760,0:37:07.560 तो, सब कुछ जा रहा है।[br]तब तो सब कुछ छोड़ दो। 0:37:07.560,0:37:12.459 हर संबंध, हर इच्छा, सब कुछ। 0:37:12.459,0:37:15.939 अगर इसी पल सब कुछ छोड़ दो, 0:37:15.939,0:37:19.409 तो क्या बाकी रह गया,[br]जो छोड़ा नहीं जा सकता? 0:37:23.979,0:37:30.119 क्योंकि अगर तुम सब कुछ छोड़ दो,[br]तब भी तुम हो! 0:37:30.119,0:37:34.250 क्या तुम अपने को छोड़ सकते हो? 0:37:34.250,0:37:37.321 मैं तुम्हारे व्यक्ति-भाव या स्मृति की[br]बात नहीं कर रहा, 0:37:37.321,0:37:40.199 या तुम्हारे बीते अनुभवों की स्मृति की। 0:37:40.199,0:37:44.882 मैं अतीत की बात नहीं कर रहा,[br]उसे छोड़ दो, वैसे भी वह बीत गया! 0:37:44.882,0:37:49.218 सिर्फ़ यादों और भावनाओं की वजह से[br]तुम्हारे अंदर वह अभी भी चल रहा है। 0:37:49.218,0:37:52.681 वह बीत गया, इसी लिए वह अतीत कहलाता है।[br]वह चला गया। 0:37:52.681,0:37:55.251 तो छोड़ो, सब कुछ छोड़ दो। 0:37:57.634,0:37:59.974 और इसे कोई तकनीक मत कहो। 0:37:59.974,0:38:07.030 बस सब कुछ छोड़ दो और वहाँ से मुझे बयां करो।[br]अब यहाँ क्या है? 0:38:07.030,0:38:11.690 और क्या तुमने इसे बनाया है, जो भी रह गया, 0:38:11.690,0:38:17.838 वह तुम्हारी कोशिश से अछूता है, 0:38:17.838,0:38:21.539 जिसे भी तुम ज़िन्दगी कहते हो[br]वह उससे अछूता है। 0:38:21.539,0:38:24.308 कोशिश कर के देखो। 0:38:26.888,0:38:30.190 और क्या यह कोई कामयाबी है? [br]किसकी कामयाबी? 0:38:32.210,0:38:34.439 क्योंकि अगर तुम सब कुछ छोड़ दो, 0:38:34.439,0:38:40.279 तो जो छोड़ने में कामयाब होने वाला है,[br]वह भी छूट जाता है। 0:38:40.279,0:38:43.539 तो क्या बाकी रह गया? 0:38:46.121,0:38:49.789 मैं तुम्हारी बुद्धि से नहीं पूछ रहा। 0:38:54.879,0:39:03.950 तो, जो बाकी रहा,[br]क्या वह एक मानसिक स्थिति है? 0:39:03.950,0:39:06.608 क्या बाकी रहा?[br]क्या वह एक मानसिक स्थिति है? 0:39:06.608,0:39:10.608 [संघ] नहीं।[br][मूजी] नहीं! 0:39:10.608,0:39:14.752 क्या उसकी कोई जन्म तिथि या राशि है? 0:39:14.752,0:39:21.041 क्या उसके ग्रह हैं? 0:39:21.041,0:39:26.342 वह तुम्हारा स्व है! 0:39:32.391,0:39:34.771 यही हमारा खेल है। 0:39:34.771,0:39:38.250 यह हमारा खेल है, यह और यह और यह, 0:39:38.250,0:39:41.840 सभी चीज़ें जो तुम्हारे लिए कीमती हैं। 0:39:41.840,0:39:46.980 वे अधिकतर बीत गयीं,[br]सिर्फ़ यादों में बाकी हैं। 0:39:46.980,0:39:52.849 क्या तुम इस पल में कल का नमूना[br]वापस ला सकते हो? वह सब चला गया। 0:39:52.849,0:40:00.650 और क़िस्मत से, शुक्र है कि[br]तुम कह सकते हो कि बातें बीत जाती हैं, 0:40:00.661,0:40:07.201 तुम्हें वे हटानी नहीं पड़तीं,[br]वे ख़ुद ही बीत जाती हैं। 0:40:07.201,0:40:15.210 सब कुछ गुज़र जाता है।[br]सिवाय एक चीज़ के। 0:40:15.210,0:40:18.871 ढूंढो वह क्या है जो बीतता नहीं, 0:40:18.871,0:40:23.050 और तुम अपनी मुक्ति जीत लोगे! 0:40:25.971,0:40:31.029 उसे खोजो जो बीतता नहीं, 0:40:31.029,0:40:37.590 जो समय के असर में नहीं है। 0:40:37.590,0:40:40.768 और वह कहाँ है?[br]वह कहाँ स्थित है? 0:40:40.768,0:40:44.091 वह कहाँ है जिसकी मैं बात कर रहा हूँ? 0:40:44.091,0:40:47.659 वह ठीक ठीक कहाँ है? 0:40:47.659,0:40:51.440 तुम्हारी इसकी और उसकी सभी बातें,[br]और तुम्हारे सभी ध्यान समाधि, 0:40:51.440,0:40:59.039 केवल चेतना की रंगभूमि में हैं,[br]क्षणिक और अस्थायी। 0:40:59.039,0:41:08.020 उसे ढूंढो जो कोई कहानी नहीं रखता,[br]न कोई कहानी, न इतिहास। 0:41:08.020,0:41:11.331 तुम्हें कितनी दूर जाना होगा? 0:41:11.331,0:41:16.589 और जब तुम्हारा पहला कदम उठेगा,[br]तो तुम किस दिशा में जाओगे? 0:41:21.053,0:41:28.650 तो यह कुछ ऐसा होना चाहिए[br]जो वास्तव में तुम्हारी चेतना को कटोचे, 0:41:28.650,0:41:33.520 इतना कि, तुम्हें जा कर इस पर मनन करना पड़े, 0:41:33.520,0:41:37.359 और तुम अपना ध्यान बस इस पर लगाओ[br]और इसी के साथ रहो, 0:41:37.359,0:41:41.320 क्योंकि आज यही तुम्हारी खुश-किस्मती है! 0:41:46.580,0:41:48.999 जैसे जैसे तुम इसे खोजने लगोगे, 0:41:48.999,0:41:53.949 कुछ समय के लिए तुम्हारे अंदर किसी और[br]चीज़ के लिए जगह नहीं रहेगी। 0:41:53.949,0:41:58.330 इसमें डूबे रहो। 0:41:58.330,0:42:02.370 यह तुम्हारा द्वैतभाव सोख लेगा। 0:42:02.370,0:42:08.027 मेरे शब्दों से डरने की कोई ज़रूरत नहीं है। 0:42:08.027,0:42:11.931 और उसके बाद जब तुम स्वाभाविक[br]काम-काज करने लगोगे, 0:42:11.931,0:42:16.409 तुम पाओगे कि तुम्हारे काम मानो[br]पवन गति से हो रहे हैं, 0:42:16.409,0:42:18.879 कुछ ऐसा है ... 0:42:18.879,0:42:22.452 तुम्हारा विवेक इतना बढ़ जाएगा, 0:42:22.452,0:42:25.980 कि पहले के जो काम और विचार, 0:42:25.980,0:42:32.320 जो बस वक़्त बर्बाद कर रहे थे और मन पर[br]बोझ थे, वे ख़तम हो जायेंगे। 0:42:35.172,0:42:41.542 तुम जीवन जी रहे नहीं होगे।[br]तुम ख़ुद ही जीवन हो! 0:42:41.542,0:42:49.580 और इसका प्रवाह तुम्हारे अपने[br]अस्तित्व में दिखाई देता है। 0:42:49.580,0:42:53.352 ये बातें किसी किताब में नहीं[br]लिखी जा सकतीं। 0:42:53.352,0:42:57.700 उसकी ज़रूरत नहीं है।[br]तुम्हें कुछ भी याद रखने की ज़रूरत नहीं है, 0:42:57.700,0:43:00.890 जब तक वह इतना ही ज़रूरी न हो 0:43:00.890,0:43:05.309 कि जब तुम उसे याद करो,[br]तो सब कुछ उसमें समाया हो। 0:43:09.830,0:43:12.471 हालाँकि लगता है कि मेरा ध्यान[br]तुम पर केंद्रित है, 0:43:12.471,0:43:15.110 पर दरअसल यह बात मैं आप सबसे कर रहा हूँ। 0:43:15.110,0:43:17.870 हमें अलग से उत्तर की ज़रूरत नहीं होनी चाहिये। 0:43:17.870,0:43:22.370 मुझे नहीं लगता अब इसके लिए वक़्त बचा है।[br]पर क्या यह कीमती है या नहीं? 0:43:22.370,0:43:27.199 [संघ] हाँ।[br][प्र १] बहुत बहुत धन्यवाद। 0:43:27.199,0:43:30.208 [मूजी] हाँ, यह बहुत कीमती है, 0:43:30.208,0:43:37.059 क्योंकि हो सकता है कि कुछ समय के लिए[br]हम अपने सही स्वरूप से अनजान जी रहे हों, 0:43:37.059,0:43:41.619 और ज़्यादातर लगता है कि ऐसा इसीलिए कर[br]रहे हैं, क्योंकि हम कर सकते हैं। 0:43:41.619,0:43:45.220 क्योंकि अहंकार भी चेतना है,[br]उसका भी जीवन है, 0:43:45.220,0:43:48.081 और उसमें खटास भी है और मिठास भी, 0:43:48.081,0:43:52.299 और वह काफ़ी है यह समझने के लिये,[br]'यह बुरा नहीं है! मुझे मैं होना बहुत पसंद है।' 0:43:52.299,0:43:55.169 और तुम्हें इसका पूरा हक़ है, 0:43:55.169,0:43:59.430 आज़ाद होने की आज़ादी,[br]और बंधने की आज़ादी। यह कुछ ऐसा है। 0:43:59.430,0:44:02.470 और इसके बारे में कोई[br]आलोचना या निंदा नहीं है। 0:44:02.470,0:44:06.969 पर जैसे ही, जीवन की कृपा से, 0:44:06.969,0:44:10.040 फ़िर किसी भी रूप या तरीके[br]से ये तुम्हारे पास आये, 0:44:10.040,0:44:14.469 तुम्हारा ध्यान मुड़ जाए, और तुम्हारे अंदर[br]और गहराई में जाने की इच्छा जागे, 0:44:14.469,0:44:18.899 तो ज़िन्दगी उसे तृप्त करती है। 0:44:18.899,0:44:21.288 हो सकता है तुम्हारे भीतर से कुछ आये, 0:44:21.288,0:44:24.449 एक आदत जो किसी न किसी तरह[br]हम सब ने विरासत में ली है, 0:44:24.449,0:44:28.701 अपनी ही आज़ादी के ख़िलाफ़ काम करने की। 0:44:28.701,0:44:32.780 अंदर एक ऊर्जा है[br]जो इस मुक्ति के विरुद्ध काम कर रही है, 0:44:32.780,0:44:37.869 पर सिर्फ़ तब तक जब तक तुम[br]अपने अंदर व्यक्ति-भाव जगाये रखते हो। 0:44:37.869,0:44:42.050 जैसे ही उसकी जकड़ टूटती है, 0:44:42.050,0:44:46.919 तुम्हारे अंदर मुक्ति के[br]कोई विरोधी नहीं बचते। 0:44:46.919,0:44:51.469 वही अहम् जो खुद को बचाने की कोशिश करता है, 0:44:51.469,0:44:54.649 और जो तुम सोचते हो कि तुम बचा रहे हो, 0:44:54.649,0:44:57.159 वही चीज़ जिससे तुम चिपके[br]रहने का प्रयास कर रहे हो, 0:44:57.159,0:45:00.699 तुम्हें उसी के पार जाना है,[br]और उसी को छोड़ना है। 0:45:00.699,0:45:04.861 पर इसका एहसास हमें धीरे धीरे होता है। 0:45:04.861,0:45:08.840 और यह भी कि तुम इतने कृपा की बाहों में हो। 0:45:08.840,0:45:12.622 ऐसा मत सोचो, 'ओह, मैं और मेरी थोड़ी सी[br]शक्ति यह नहीं कर पायेंगे।' 0:45:12.622,0:45:17.000 यह सच है कि तुम और तुम्हारी थोड़ी सी शक्ति[br]यह नहीं कर सकते। [हँसी] 0:45:19.041,0:45:25.772 रूमी कहते हैं, 'जो मुझे यहाँ तक लाया है,[br]उसे ही मुझ को घर तक ले जाना पड़ेगा।' 0:45:25.772,0:45:32.320 कौन है जो तुम्हें यहाँ तक लाया? 0:45:32.320,0:45:36.620 वही कृपा तुम्हें घर बुला रही है। 0:45:36.620,0:45:42.910 और घर है कहाँ?[br]किस दिशा में है घर? 0:45:42.910,0:45:47.610 तुम और घर एक ही चीज़ हो! 0:45:47.610,0:45:51.157 तुम और घर एक ही चीज़ हो। 0:45:51.157,0:45:55.130 जब तक तुम्हें इसका एहसास नहीं होता,[br]तुम्हारा घर ईंट-पत्थर ही रहेगा। 0:45:55.130,0:45:59.190 वह एक जगह होगी। 0:45:59.190,0:46:03.891 और जीवन, ईश्वर भी,[br]हमारे सभी आधुनिक रास्ते इस्तेमाल कर रहा है 0:46:03.891,0:46:06.392 हमें महान उपमाएँ सिखाने के लिए। 0:46:06.392,0:46:08.402 जैसे एक समय था, 0:46:08.402,0:46:11.461 जब तुम्हारा पता[br]कुछ ईंट-पत्थरों का बना हुआ था, 0:46:11.461,0:46:13.610 और उसमें दरवाज़ा और खिड़कियाँ होती थीं। 0:46:13.610,0:46:18.170 अब तुम्हारा पता इंटरनेट भी हो सकता है।[br]तुम्हारा ईमेल एड्रेस हो सकता है। 0:46:18.170,0:46:22.211 कहते हैं, 'ज़रूरी नहीं पता ऐसा कुछ हो'। 0:46:22.211,0:46:25.812 तो कहाँ है तुम्हारा पता?[br]यही तुम्हारा पता है। 0:46:25.812,0:46:30.269 अगर तुम यह शरीर देख पा रहे हो,[br]तो शायद में इस में हूँ। [हँसी] 0:46:30.269,0:46:32.592 वही तुम्हारा पता है! 0:46:32.592,0:46:36.190 जब तुम नज़दीक आते हो, और फिर इसके बाद, 0:46:36.190,0:46:40.350 तुम कुछ ऐसा पाते हो[br]जिसके बारे में तुम बोल नहीं सकते। 0:46:40.350,0:46:43.670 तुम उसके बारे में बोल नहीं सकते। 0:46:43.670,0:46:49.000 और वह तुम्हें इस दुनिया में[br]अपंग नहीं बना देगा! 0:46:49.000,0:46:51.811 कभी कभी मन ही यह खेल खेलता है, 0:46:51.811,0:46:55.269 'अगर तुम इसके आगे जाओगे,[br]तो तुम सब कुछ खो दोगे। 0:46:55.269,0:46:59.871 तुम गली में भिखारी बन कर रह जाओगे।[br]कोई तुम्हें नहीं पहचानेगा। 0:46:59.871,0:47:04.240 तुम अकेले रह जाओगे, क्योंकि[br]एक बुद्ध से कौन शादी करना चाहता है ...' 0:47:04.240,0:47:07.680 और यह बहुत से लोगों को फँसा लेता है। 0:47:07.680,0:47:11.442 पर मुक्ति इस तरह से प्रतिबंधित नहीं है। 0:47:11.442,0:47:16.060 बाहरी चीज़ें हमारी विरोधी नहीं हैं। 0:47:16.060,0:47:19.761 यह पूरा जीवन अपनी अभिव्यक्ति में[br]इतना शानदार है। 0:47:19.761,0:47:23.660 वह हमारा स्वाभाविक शत्रु नहीं है। 0:47:23.660,0:47:28.092 बल्कि इसको देखने में हम बहुत ही आनंद[br]देख और प्राप्त कर सकते हैं। 0:47:28.092,0:47:33.332 शत्रु तो अंदर है, कुछ समय तक[br]वह हमारे सोचने के तरीके में है, 0:47:33.332,0:47:38.150 और मुख्यत: हमारे व्यक्तिगत तादात्म्य में। 0:47:38.150,0:47:43.420 सब कुछ इस तादात्म्य पर आ कर रुक जाता है, 0:47:46.570,0:47:50.170 जो तुम्हें केवल व्यक्ति-भाव में छोड़ देता है। 0:47:50.170,0:47:54.639 और सारा ही संसार[br]व्यक्ति-भाव के ज़हर से पीड़ित है, 0:47:54.639,0:48:00.200 बहुत ज़्यादा व्यक्ति-भाव, [br]और उपस्थित-भाव उतना नहीं। 0:48:02.700,0:48:06.899 तो, अब मुझे जाना होगा।[br]और अभी के लिए इतना काफ़ी है? 0:48:06.899,0:48:10.300 [संघ] हाँ।[br][मूजी] धन्यवाद। 0:48:10.300,0:48:14.500 [संघ से धीमी आवाज़] 0:48:14.500,0:48:17.729 [मूजी] ज़रूर! आओ, आओ। 0:48:26.796,0:48:33.854 [मूजी] ग्रेज़ी, ग्रेज़ी। (इटालियन में धन्यवाद)[br]तुम्हारा भी जन्मदिन है? 0:48:33.854,0:48:37.376 अच्छा, जन्मदिन की शुभकामनाएं! 0:48:51.747,0:48:54.148 [प्रश्नकर्ता २ इटालियन में बोलती है] 0:48:54.148,0:48:59.878 [म.] सी, बेनवेनुतो। (इटालियन में वेलकम)[br][हँसी] 0:49:03.088,0:49:06.899 कॉपीराइट © 2018 मूजी मीडिया लि.[br]सर्वाधिकार आरक्षित।[br] 0:49:06.899,0:49:10.478 इस रिकॉर्डिंग का कोई भाग [br]पुनः प्रस्तुत नहीं किया जा सकता 0:49:10.478,0:49:14.397 मूजी मीडिया लि. की[br]प्रत्यक्ष अनुमति के बिना।