तो, मैं इससे शुरूआत करूँगी :
एक दो साल पहले, एक ईवैंट प्लानर ने मुझे फोन किया
क्योंकि मैं एक भाषण कार्यक्रम करने जा रही थी
तो उसने फोन किया, और कहा,
"मैं वाकई बहुत परेशानी में हूँ कि
तुम्हारे बारे में विज्ञापन के पर्चे में क्या लिखुँ ।"
और मैंने सोचा, "भई, परेशानी क्या है? "
तो उसने कहा, "भई मैंने तुम्हें भाषण देते हुए देखा है,
और मेरे ख्याल से मैं तुम्हें एक खोजकर्ता का नाम देने वाली हूँ
पर मुझे डर है कि अगर मैंने तुम्हें एक खोजकर्ता का नाम दिया तो कोई नहीं आएगा,
कयोंकि वे सोचेंगे कि तुम नीरस हो और किसी काम की नहीं हो ।"
(हंसी)
चलो ठीक है ।
फिर उसने कहा, "पर मुझे एक बात तुम्हारे भाषण में अच्छी लगी
कि तुम कहानी जैसी बातें करती हो
तो मेरे ख्याल में मैं ऐसा करती हूँ कि तुम्हें बस कहानी सुनाने वाली कहूँगी।"
और ज़ाहिर है कि मेरे पढ़ाकू, असुरक्षित मन ने
सोचा कि, "क्या ? क्या कहोगी तुम मुझे ? "
तो वो बोली, " मैं तुम्हें कहानी सुनाने वाली कहूँगी।"
तो मैंने सोचा, " हां भई परी मां क्यों नहीं ?"
(हंसी)
मैंने कहा, "मुझे इस बारे में एक घड़ी सोचने दो ज़रा।"
मैंने पूरी हिम्मत से अपने अंदर की आवाज़ सुनने की कोशिश की ।
और मैंने सोचा, मैं एक कहानी सुनाने वाली ही हूँ ।
मैं एक क्वालीटेटिव खोजकर्ता हूँ ।
मैं कहानियाँ इक्कठा करती हूँ, यही मेरा काम है।
और शायद कहानियाँ बस ऐसे आंकड़े भर हैं जिनकी आत्मा होती है।
और शायद मैं बस एक कहानी सुनाने वाली ही हूँ।
तो मैंने कहा, "क्या ख्याल है ?
तुम ऐसा क्यों नहीं कहतीं कि मैं एक खोजकर्ता-कहानी सुनाने वाली हूँ।"
तो वो हंसने लगी, " हा हा ऐसी कोई चीज़ नहीं होती।"
(हंसी)
तो, मैं एक खोजकर्ता-कहानी सुनाने वाली हूँ,
और मैं आज आपसे बात करूँगी --
हम समझ बढ़ाने के बारे में बात करेंगे --
और इसलिए मैं आपसे बात करना चाहती हूँ और कुछ कहानियाँ सुनाना चाहती हूँ
अपनी खोज के एक हिस्से के बारे में
जिसने बुनियादी तौर पर मेरी समझ को बढ़ा दिया
और वाकई मेरे जीने और प्रेम करने के तरीके को बदल दिया
और काम करने और बच्चों को पालने के तरीके को भी।
और यहाँ से मेरी कहानी शुरू होती है।
जब मैं एक कम उम्र खोजकर्ता थी, आचार्य की शिक्षा पा रही थी,
मेरे पहले वर्ष में मेरे एक खोज के प्रोफैसर थे
जिन्होंने हमसे कहा,
"ऐसा है,
कि जिसे आप माप नहीं सकते, वो चीज़ है ही नहीं।"
मैंने सोचा कि वो बस मुझसे बना रहे हैं।
मैंने सोचा, "अच्छा?" और उन्होंने जताया "बिलकुल।"
तो अब आपको समझना होगा
कि मेरे पास समाज सेवा में स्नातक, और समाज सेवा में स्नातकोत्तर की डिग्री है,
और मुझे समाज सेवा में आचार्य की उपाधि मिलने वाली थी,
तो मेरा सारा विद्यार्थी जीवन
ऐसे लोगों के बीच गुज़रा
जिनका ऐसा मानना था कि
ज़िंदगी उल्टी पुल्टी है, इससे प्यार करो।
और मेरा ऐसा मानना था, कि ज़िंदगी उल्टी पुल्टी है,
इसे संवारो, करीने से तहाओ
और इसे करीने से एक सन्दूक में बंद कर दो
(हंसी)
और बस समझ लीजिए कि मुझे मेरा रास्ता मिल गया था,
एक ऐसा काम मिल जाना जो मेरे मतलब का था--
वाकई, समाज सेवा में सबसे बड़ी कहावतों में से एक है
काम की बेआरामी में समा जाओ
और मेरा ये हाल था, बेआरामी का दरवाज़ा खटखटाओ
और इसे हटा कर सारे नंबर पाओ
ये मेरा मंत्र था।
तो इससे मैं बड़ी उत्साहित थी।
तो इसलिए मैंने सोचा, बस, यही मेरा काम है,
क्योंकि मेरी दिलचस्पी कुछ उल्टे पुल्टे विषयों में है।
पर मैं चाहती हूँ कि मैं उन्हें सीधा सादा बना सकूँ
मैं उन्हें समझना चाहती हूँ।
मैं उन चीज़ों का राज़ जानना चाहती हूँ
जो मेरे विचार में महत्वपूर्ण हैं
और उस राज़ को सबके सामने ले आना चाहती हूँ
तो मेंने जहाँ से शुरुआत की वो था संपर्क।
क्योंकि 10 सालों तक समाज सेवा करने के बाद,
आप समझ जाते हैं
कि संपर्क की वजह से ही हम यहाँ हैं ।
ये हमारे जीवन को उद्देश्य और अर्थ प्रदान करता है।
इस सबका मतलब यही है।
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप उन लोगों से बात करें
जो सामाजिक न्याय और मानसिक स्वास्थ और उत्पीड़न तथा उपेक्षा के क्षेत्र में काम करते हैं,
जिसका हमें पता है वो यही संपर्क ही है,
जुड़ा हुआ होना महसूस करने कि योग्यता, है --
न्यूरोबायोलाजिकल स्तर पर हम ऐसे ही जुड़े हैं --
यही कारण है कि हम यहाँ हैं ।
तो मैंने सोचा कि चलो मैं संपर्क से ही शुरू करती हूँ ।
आपको तो वो हालात मालूम ही हैं
जब आपकी बॉस आपके काम को परखती है,
और वो आपको उन 37 चीजों के बारे में बताती है जो आप वाकई बहुत अच्छी करते हैं,
और एक चीज़ -- सुधरने का मौका ?
(हंसी)
और आप एक ही बात सोच रहे होते हैं कि सुधार, कहे का
ज़ाहिर है कि मेरा काम भी ऐसे ही चल रहा था,
क्योंकि, जब हम लोगों से प्रेम के बारे में पूछते हैं,
तो वो हमें दिल टूटने के बारे में बताते हैं।
जब आप लोगों से किसी रिश्ते के बारे में पूछते हैं,
तो वो आपको अपने सबसे दुखदायी अनुभव बताते हैं
उन्हें शामिल नहीं किए जाने के बारे में।
और जब आप लोगों से संपर्क के बारे में पूछते हैं,
तो जो कहानियाँ उन्होने मुझे बतायीं वो संपर्क टूटने के बारे में थीं।
तो संक्षेप में -- असल में तकरीबन इस खोज को करते हुए छ्ह हफ्ते हुए थे --
मैं इस बिना नाम की चीज़ से टकरा गयी
जिसने संपर्क को बिलकुल तार तार कर दिया
इस तरह से कि जैसा मैंने ना कभी समझा था ना देखा था।
इस वजह से मैंने यह खोज बंद कर दी
और सोचा, कि मुझे ये पता लगाना है कि ये है क्या।
और ये चीज़ शर्म निकली।
और शर्म को बहुत आसानी से
संपर्क टूटने के डर के रूप में समझ सकते हैं।
क्या मुझमें कुछ ऐसा है
कि अगर दूसरे लोग इसे जान जाएंगे या देख लेंगे,
तो मैं संपर्क के काबिल नहीं रहूँगा ।
मैं आपको इस बारे में ये बता सकती हूँ :
ये पूरे संसार में मौजूद है; ये हम सब में है।
सिर्फ उन्ही लोगों को शर्म महसूस नहीं होती
जिनमे इंसानी हमदर्दी या संपर्क के लिए कोई क्षमता नहीं होती।
कोई इसके बारे में बात नहीं करना चाहता,
और जितना कम आप इसके बारे में बात करते हैं उतनी ज़्यादा ये आप में बढ़ती है।
इस शर्म का आधार क्या है,
ये कि "मैं उतनी अच्छी नहीं हूँ जितना होना चाहिए," --
इस एहसास को हम सब जानते हैं:
"मैं उतनी ब्लैंक नहीं हूँ, उतनी पतली नहीं हूँ,
उतनी अमीर नहीं हूँ, उतनी सुंदर नहीं हूँ, उतनी समझदार नहीं हूँ,
मुझे उतना बढ़ावा नहीं दिया जाता।"
जो चीज़ इसका आधार बनी
वो थी बहुत दर्दनाक अतिसंवेदनशीलता,
इसका विचार,
संपर्क को संभव बनाने के लिए,
हमें खुद को देखे जाने की इजाज़त देनी होगी,
वाकई में देखा जाना।
और आपको मालूम है कि अतिसंवेदनशीलता के बारे में मुझे क्या महसूस होता है। मुझे उससे नफरत है।
और मैंने ऐसा सोचा, यही मेरा मौका है
अपने मापदंड से इसे हारने का ।
मैं तैयार हूँ, और मैं इसका पता लगा के रहूँगी,
मैं एक साल लगाऊँगी, मैं शर्म को पूरी तरह तबाह कर दूँगी,
मैं ये समझ लूँगी कि अतिसंवेदनशीलता कैसे काम करती है,
और मैं इसे अपनी अक्ल से हरा दूँगी।
तो मैं तैयार थी, और मैं वाकई बहुत उत्साहित थी।
जैसा कि आप जानते हैं, इसका नतीजा कुछ खास अच्छा नहीं होने वाला।
(हंसी)
आप जानते हैं।
तो मैं आपको शर्म के बारे मैं बहुत कुछ बता सकती हूँ,
पर मुझे बाकी सबका समय उधार लेना पड़ेगा।
पर इसका जो निचोड़ है उसे मैं आप सबको बता बता देती हूँ --
और शायद ये उन सब चीजों में से सबसे महत्वपूर्ण है जो मैंने
इस खोज में बिताए एक दशक के दौरान सीखी हैं।
मेरा एक साल
छ्ह सालों में बादल गया।
हजारों कहानियाँ,
सैकड़ों लंबे साक्षात्कार, फोकस ग्रुप्स।
एक वक़्त ऐसा था कि जब लोग मुझे पत्रिकाओं के पृष्ठ भेजा करते थे
और मुझे अपनी कहानियाँ भेजा करते थे --
छ्ह सालों में आंकड़ों के हजारों टुकड़े।
और मुझे इसका कुछ अंदाज़ा सा हो गया था।
मुझे कुछ कुछ समझ आ गया था, कि शर्म इसे कहते हैं,
ये ऐसे काम करती है।
मैंने एक किताब लिखी,
मैंने एक सिद्धान्त प्रकाशित किया,
पर कोई चीज़ थी जो ठीक नहीं थी --
और वो चीज़ ये थी कि,
अगर मैं उन लोगों को लूँ जिनका मैंने साक्षात्कार किया
और उन्हें उन लोगों में विभाजित करूँ
जिनमें वाकई पात्रता का एक एहसास था --
उसका नतीजा यही निकलता है,
पात्रता का एक एहसास --
उनमें प्रेम और किसी का होने का एक मजबूत एहसास होता है --
और वो लोग जो इसके लिए संघर्ष करते हैं,
और वो लोग जो हमेशा सोचते रहते हैं कि क्या वो उतने अच्छे हैं कि नहीं।
सिर्फ एक ही फर्क था
जो उन लोगों को अलग करता है
जिनमें प्रेम और किसी का होने का एक मजबूत एहसास होता है
उन लोगों से जो इसके लिए वाकई संघर्ष करते हैं।
और वो फर्क ये था कि वो लोग जिनमें
प्रेम और किसी का होने का एक मजबूत एहसास था
यकीन करते थे कि वे प्रेम और किसी का होने के योग्य हैं।
यही बात है।
उन्हें यकीन है कि वे इस काबिल हैं।
और मेरे लिए, मुश्किल हिस्सा
उस एक चीज़ का जो हमें संपर्क से बाहर रखती है
है हमारा ये डर कि हम संपर्क के काबिल नहीं हैं,
ये एक ऐसी चीज़ थी जिससे, व्यक्तिगत रूप से और व्यावसायिक रूप से
मुझे महसूस हुआ कि मुझे ज़्यादा बेहतर तरीके से इसे समझने कि ज़रूरत है
तो मैंने क्या किया
कि मैंने उन सभी साक्षातकारों को लिया
जिनमें मैंने पात्रता को देखा, जिनमें मैंने लोगों को उस तरह से जीते देखा,
और बस उन पर नज़र डाली।
इन लोगों मैं कौन सी बात एक जैसी थी ?
मुझमें ऑफिस की चीजों को लेकर थोड़ा पागलपन है,
पर इस बारे में फिर कभी बात करेंगे।
तो मेरे पास एक मनीला फोंल्डर था,, और मेरे पास एक शार्पी थी।
और मैं ये सोच रही थी, कि मैं इस खोज को क्या नाम दूँगी?
और वो पहले शब्द जो मेरे दिमाग में आए
वो थे पूरे दिल से।
ये थे पूरे दिल वाले लोग, जो योग्य होने कि गहरी भावना के साथ जी रहे थे।
तो मैंने उस मनीला फोंल्डर के ऊपर लिखा,
और मैंने आंकड़ों को देखना शुरू किया ।
असल में मैंने इसे पहले किया
चार दिन के
आंकड़ों के एक बहुत गहन विशलेषण में,
जिसमें मैं वापस लौटी, इन साक्षात्कारों को निकाला, कहानियों को निकाला, घटनाओं को निकाला।
विषय क्या है? बनावट क्या है?
मेरे पति बच्चों को लेकर शहर छोड़ कर चले गए
क्योंकि मैं हमेशा गब्बर बन जाती हूँ,
जब भी कुछ लिख रही होती हूँ
और अपने खोजकर्ता के अवतार में होती हूँ
तो मैंने ये पाया।
उनमें जो चीज़ एक सी थी
वो थी करेज (साहस) की भावना ।
और मैं एक क्षण के लिए आपकी खातिर करेज और बहादुरी में फर्क करना चाहूंगी।
करेज, करेज की मूल परिभाषा
जब ये शब्द पहली बार अँग्रेजी भाषा में आया --
यह लेटिन शब्द कर से है, जिसका अर्थ है दिल --
और मूल परिभाषा
थी आप कौन हैं इसकी कहानी अपने पूरे दिल दे सुनना
तो इन लोगों के पास
बस था साहस
त्रुटिपूर्ण होने का ।
उनके पास जज़्बा था
पहले अपने आप पर और फिर दूसरों पर दया करने का,
क्योंकि, जैसा कि ज़ाहिर है, हम दूसरे लोगों के प्रति जज़्बात नहीं जता सकते
जब तक कि हम खुद से अच्छा बर्ताव नहीं करें।
और आखरी बात थी कि वे संपर्क में थे,
और -- ये मुश्किल हिस्सा था --
सच्चा होने की वजह से,
वे उस सोच को छोड़ने को तैयार थे कि उन्हें ऐसा होना चाहिए
वो होने के लिए जो वो थे,
जो आपको हूबहू करना है
संपर्क बनाने के लिए।
एक और चीज़ जो उनमें सामान्य थी
वो थी
उनहोंने पूरी तरह अपनी अतिसंवेदनशीलता को अपनाया।
उनको यकीन था
कि जिस चीज़ ने उन्हें अतिसंवेदनशील बनाया था
उसी ने उन्हें खूबसूरत बनाया था।
उन्होंने अतिसंवेदनशीलता के आरामदायक होने
के बारे में बात नहीं की,
ना ही उन्होंने इसके दर्दनाक होने के बारे में बात की --
जैसा कि मैंने इससे पहले शर्म के संबंध में हुए साक्षात्कारों में सुना था।
उन्होंने बस इसके ज़रूरी होने के बारे में बात की ।
उन्होंने इच्छा होने की बात की
"मैं तुमसे प्यार करता हूँ " कहने की सबसे पहले,
इच्छा
कुछ करने की
वहॉं जहॉं कोई गारंटी नहीं है,
इच्छा
डॉक्टर के बुलाने तक इंतज़ार के दौरान सॉंस लेते रहने की
अपने मैमोग्राम के बाद ।
वे उस रिश्ते में निवेश करने को तैयार हैं
जो हो सकता है कामयाब हो या न हो।
उन्होंने यह सोचा कि यह बुनियादी है।
मैं ज़ाती तौर पर यह सोचती थी कि ये धोखा है ।
मुझे विश्वास नहीं हुआ कि मैंने अपनी वफादारी
अनुसंधान के प्रति रखी --
अनुसंधान की परिभाषा
है नियत्रण करना और अनुमान लगाना, घटनाओं का अध्ययन करना,
स्पष्ट कारणों के लिए
नियंत्रण करना और अनुमान लगाना।
और अब मेरे मिशन
नियंत्रण करना और अनुमान लगाना
का नतीजा यह मिला था कि जीने का तरीका है अतिसंवेदनशीलता के साथ
और नियंत्रण करना और अनुमान लगाना बंद करना ।
इससे छोटी सी समस्या हो गई --
(हंसी)
-- जो बल्कि कुछ ऐसी दिखती थी ।
(हंसी)
और इसने किया।
मैं इसे ब्रेकडाउन कहती थी, और मेरी थैरेपिस्ट इसे आत्मिक जागरण कहती है।
सुनने में एक आत्मिक जागरण ब्रेकडाउन से बेहतर लगता है,
पर मैं आपको विश्वास दिलाती हूँ कि ये एक ब्रेकडाउन ही था।
और मुझे अपने आंकड़ो को परे हटाना पड़ा और जाकर अपने दिमाग का इलाज करवाना पड़ा ।
मैं आपको एक बात बता दूँ : आपको मालूम होता है कि आप कौन हैं
जब आप अपने दोस्तों से बात करते है और कहते हैं, "मुझे लगता है मुझे इलाज की ज़रूरत है"
क्या आपकी नज़र में कोई है?"
क्योंकि मेरे करीब पॉंच दोस्तों की प्रतिक्रिया थी,
"हे भगवान। मुझे तुम्हारा थैरेपिस्ट नहीं बनना है।"
(हंसी)
मुझे लगा, "मतलब क्या है इसका?"
और उनका कहना था "मैं बस कह रही हूँ, मतलब।
अपनी राय अपने पास रखना।"
मैंने कहा, "ठीक है भई।"
तो मुझे एक थैरेपिस्ट मिल गया ।
मेरी उसके साथ पहली मुलाकात थी, डायना --
मैं अपनी सूची साथ लेकर आई थी
दिल से जीने वालों के तरीके के बारे में, और मैं बैठी।
और उसने कहा,"आप कैसी हैं?"
मैंने कहा,"मैं बढ़िया हूं। मैं ठीक हूँ ।"
उसने कहा, "और क्या चल रहा है?"
और ये एक ऐसी थेरेपिस्ट है जो थैरेपिस्टों का इलाज करती है,
क्योंकि हम लोगों को इनके पास जाना पड़ता है,
क्योंकि उनका बकवास भांपने का यंत्र अच्छा होता है ।
(हंसी)
तो मैंने कहा,
"बात ऐसी है, मैं मुश्किल में हूँ ।"
तो उसने कहा, "मुश्किल क्या है ?"
तो मैंने कहा, "मेरी अतिसंवेदनशीलता के बारे में एक समस्या है।
और मैं जानती हूँ कि अतिसंवेदनशीलता मूल में है
शर्म और डर के
और योग्य बनने के हमारे संघर्ष के,
पर ऐसा लगता है कि ये जन्मभूमि है
आनंद की, सृजनात्मक्ता की,
किसी का होने के एहसास की, प्रेम की ।
और मेरे ख्याल में मैं मुश्किल में हूँ,
और मुझे कुछ मदद चाहिए। "
और मैंने कहा, "पर एक बात है,
परिवार के बारे में बात नहीं होगी,
बचपन के बारे में कोई बकवास नहीं होगी।"
(हंसी)
"मुझे बस कुछ रणनीतियों की ज़रूरत है। "
(हंसी)
(तालियाँ)
शुक्रिया।
तो उसने ऐसे किया ।
(हंसी)
और फिर मैंने कहा, "बुरा हाल है, है ना?"
तो उसने कहा, "ये न तो अच्छा है, न बुरा।"
(हंसी)
"ये जो है बस वही है ।"
और मैंने सोचा, "हे भगवान, बेड़ा गर्क होने वाला है ।"
(हंसी)
और बेड़ा गर्क हुआ, और नहीं भी हुआ ।
इसमें तकरीबन एक साल लगा ।
और आप तो जानते हैं कि ऐसे लोग होते हैं
कि, जब उन्हें पता चलता है कि अतिसंवेदनशीलता और कोमलता महत्वपूर्ण हैं,
वे हथियार डाल देते हैं और इसे मान लेते हैं ।
पहली बात: मैं ऐसी नहीं हूँ,
और दूसरी बात: मैं ऐसे लोगों से दोस्ती भी नहीं रखती ।
(हंसी)
मेरे लिए, ये साल भर चलने वाले दंगे जैसा था।
ये एक कुश्ती जैसा था ।
अतिसंवेदनशीलता ने ज़ोर लगाया, मैंने भी ज़ोर लगाया।
मैं हार गई,
पर शायद मैंने अपनी ज़िंदगी वापस जीत ली।
और फिर मैं अपनी खोज में वापस चली गई
और मैंने अगले एक दो साल
वाकई में ये समझने में बिता दिए कि वे, पूरे दिल से वाले लोग,
किन चीज़ों को चुन रहे थे,
और हम क्या कर रहे हैं
अतिसंवेदनशीलता के साथ ।
हम इसके साथ संघर्ष क्यों करते हैं ?
क्या मैं अतिसंवेदनशीलता के साथ अपने संघर्ष में अकेली हूँ ?
नहीं ।
तो मुझे ये पता चला ।
हम अतिसंवेदनशीलता को सुन्न कर देते हैं --
जब हम फोन का इंतज़ार कर रहे होते हैं ।
ये बहुत मज़े की बात थी, मैंने ट्विटर और फेसबुक पर कुछ लिखा
क्या लिखा, "आप अतिसंवेदनशीलता को कैसे परिभाषित करोगे ?"
कौन सी चीज़ आपको अतिसंवेदनशील बनाती है ?"
और डेढ़ घंटे के भीतर, मुझे 150 जवाब मिले।
क्योंकि मैं जानना चाहती थी
क्या चल रहा है ।
अपने पति से मदद मॉंगने पर मजबूर होना,
क्योंकि मेरा दिमाग खराब है, और हमारी नई नई शादी हुई है;
अपने पति से संभोग की शुरूआत करना;
अपने पति से संभोग की शुरूआत करना;
मना कर दिया जाना; किसी को घूमने चलने के लिए पूछना;
डॉक्टर के फोन का इंतज़ार करना;
नौकरी से निकाल दिया जाना, लोगों को नौकरी से निकालना --
यही वो दुनिया है जिसमें हम रहते हैं ।
हम एक अतिसंवेदनशील दुनिया में रहते हैं ।
और जिन तरीकों से हम इसका मुकाबला करते हैं उनमें से एक है
कि हम अतिसंवेदनशीलता को सुन्न कर देते हैं
और मेरे विचार में इसका प्रमाण है --
और यह इकलौता कारण नहीं है कि यह प्रमाण मौजूद है,
पर मेरे विचार में यह एक बहुत बड़ा कारण है --
हम अमेरीका के इतिहास में सबसे ज़्यादा कर्ज़ में डूबी,
मोटे लोगों की,
नशे के आदि और दवाईयॉं लेने वाले लोगों की
वयस्क पीढ़ी हैं।
समस्या ये है -- और मैंने यह अनुसंधान से सीखा है --
कि आप भावनाओं को चुन चुन कर सुन्न नहीं कर सकते ।
आप यह नहीं कह सकते, कि ये ख़राब चीज़ें हैं ।
ये अतिसंवेदनशीलता है, ये दुख है, ये शर्म है,
ये डर है, ये निराशा है,
मैं इन्हें महसूस नहीं करना चाहता ।
मैं एक दो बीयर पीता हूँ और एक आलू का परांठा खा लेता हूँ ।
(हंसी)
मैं इन्हें महसूस नहीं करना चाहता ।
और मैं जानती हूँ कि इसे हंसी को जानना कहते हैं।
मैं रोज़ी रोटी के लिए आपकी ज़िंदगियों में सेंध लगाती हूँ ।
हे भगवान।
(हंसी)
आप इन बुरे एहसासों को सुन्न नहीं कर सकते
प्रभावों को, हमारी भावनाओं को सुन्न किए बिना।
आप चुन चुन कर सुन्न नहीं कर सकते।
तो जब हम इन्हें सुन्न कर देते हैं,
हम आनंद को सुन्न कर देते हैं ।
हम आभार को सुन्न कर देते हैं,
हम खुशी को सुन्न कर देते हैं,
और फिर हमारी हालत खराब हो जाती है,
और हम उद्देश्य और अर्थ की खोज करने लगते हैं,
और फिर हमें अतिसंवेदनशीलता का एहसास होता है,
तो फिर हम एक दो बीयर पीते हैं और एक आलू का परांठा खा लेते हैं।
और यह एक खतरनाक चक्र बन जाता है ।
एक और चीज़ है जिसके बारे में मेरे हिसाब से सोचा जाना चाहिए
वो ये कि हम क्यों और कैसे सुन्न हो जाते हैं ।
और ज़रूरी नहीं है कि यह नशे की लत ही हो।
और दूसरी चीज़ें जो हम करते हैं
कि हम हर अनिश्चित चीज़ को निश्चित बना देते हैं।
धर्म आस्था और अनदेखी चीज़ों में विश्वास न रह कर
निश्चितता बन गया है ।
मैं सही हूँ, तुम ग़लत हो, चुप रहो।
बस।
बस निश्चित।
जितना अधिक हम डरते हैं, उतने अधिक हम संवेदनशील होते हैं,
उतना ही अधिक हम डरते हैं ।
आजकल राजनीति भी कुछ ऐसी ही लगती है ।
अब वार्तालाप नहीं होता ।
कोई बातचीत नहीं होती ।
बस इल्ज़ाम है ।
आप जानते हैं इल्ज़ाम की व्याख्या अनुसंधान में कैसे की जाती है ?
दर्द और बेआरामी को खत्म करने का एक तरीका ।
हम त्रुटिहीन हैं ।
अगर ऐसा कोई है जो अपनी ज़िंदगी को ऐसा बनाना चाहता है तो वो मैं हूँ,
पर इससे काम नहीं चलता ।
क्योंकि हम क्या करते हैं कि हम अपने पिछवाड़े से चर्बी निकालते हैं
और अपने गालों में डाल लेते हैं।
(हंसी)
जिसके बारे में, मुझे उम्मीद है कि एक सौ साल के बाद,
लोग इस पर नज़र डालेंगे और कहेंगे, "वाह।"
(हंसी)
और हम में कोई खराबी नहीं है, और सबसे ख़तरनाक बात,
हमारे बच्चे।
मैं आपको बताती हूँ कि हम बच्चों के बारे में क्या सोचते हैं ।
जब वो इस दुनिया में आते हैं तो पहले से ही संघर्ष के लिए तैयार होते हैं ।
और जब आप इन त्रुटिहीन छोटे बच्चों को अपने हाथों में उठाते हैं,
हमारा काम यह कहना नहीं है, "देखो तो इसे, ये बच्ची त्रुटिहीन है ।"
मेरा काम बस उसे त्रुटिहीन रखना है --
इसका ख्याल रखना है कि वो पॉंचवी कक्षा तक टैनिस की टीम में शामिल हो जाए और सातवीं तक येल में दाखिल हो जाए।"
ये हमारा काम नहीं है ।
हमारा काम है देखना और ये कहना,
"पता है? तुममें खामियॉं हैं, और तुम्हारी नियती संघर्ष करना है,
पर तुम प्यार और किसी का बनने के काबिल हो।"
ये हमारा काम है।
मुझे बच्चों की इस प्रकार पाली गई एक पीढ़ी दिखा दीजिए,
और मुझे लगता है कि हम आज देखी जाने वाली समस्याओं को खत्म कर देंगे।
हम ऐसा दिखाते हैं कि हम जो करते हैं
उसका असर लोगों पर नहीं पड़ता ।
हम ऐसा अपनी निजी ज़िंदगी में करते हैं ।
हम ऐसा कंपनियों में करते हैं --
चाहे वो कंपनी को उबारना हो, तेल का रिसाव हो,
एक याद --
हम ऐसा जताते हैं कि हम जो कर रहे हैं
उसका दूसरे लोगों पर कोई बड़ा असर नहीं होता ।
मैं कंपनियों से कहना चाहूँगी, ये हमारा पहला त्यौहार नहीं है भाई लोग।
हम बस चाहते हैं कि आप सच्चे और वास्तविक रहें
और कहें, "हमें अफसोस है ।
हम इसे ठीक कर देंगे । "
पर एक और तरीका है, और मैं आपको बता कर जा रही हूँ।
मुझे ये पता चला है:
अपने आप को दिखने देना,
गहनता से दिखने देना
अतिसंवेदनशीलता से दिखने देना;
अपने पूरे दिल से प्यार करना,
चाहे कोई भी गारंटी नहीं हो --
और यह बहुत मुश्किल है,
और एक मॉं होने के नाते मैं आपको बता सकती हूँ, यह बहुत दर्दनाक तरीके से मुश्किल है--
आभार और आनंद महसूस करना
आतंक के उन क्षणों में,
जब हम सोच रहे होते हैं, "क्या मैं तुम्हें इतना प्यार कर सकता हूँ ?"
क्या मैं इसमें इस शिद्दत से विश्वास कर सकता हूँ?
क्या मैं इस बारे में इतना क्रुद्ध हो सकता हूँ ?"
सिर्फ अपने को रोक पाना, जो हो सकता है उसे मुसीबत बनाए बगैर,
ये कह पाना, "मैं बस बहुत आभारी हूँ,
क्योंकि ऐसा महसूस करने का अर्थ है मैं ज़िंदा हूँ।"
और अंत में, जो मेरे विचार में शायद सबसे महत्वपूर्ण है,
है यकीन करना कि हम काफी हैं ।
क्योंकि जब हम किसी स्थान से काम करते हैं
हमें विश्वास है कि जो कहता है, "मैं काफी हूँ,"
फिर हम चीखना बंद कर देते हैं और सुनना शुरू कर देते हैं,
हम अपने आसपास के लोगों के प्रति और दयालू और सहृदय हो जाते हैं,
और हम अपने प्रति और अधिक दयालू और सहृदय हो जाते हैं।
बस इतना ही मुझे कहना है । शुक्रिया ।
(तालियाँ)