शायद आपमें से कई लोग दो विक्रेताओं (सेल्समेन) की कहानी जानते हैं
जो १९०० सदी में अफ्रीका गए.
उन्हें वहाँ संभावनाओं की तलाश में भेजा गया था
जूते बेचने की.
और उन्होंने वापस मैनचेस्टर तार भेजे.
और उनमें से एक ने लिखा: "हालत निराशाजनक है. विराम."
ये लोग जूते नहीं पहनते."
और दूसरे ने लिखा: "शानदार मौका.
इनके पास अब तक जूते नहीं हैं."
(हंसी)
अब शास्त्रीय संगीत की दुनिया में भी कुछ ऐसी ही परिस्थिति है,
क्योंकि यहाँ कुछ लोग हैं जो सोचते हैं
कि शास्त्रीय संगीत का अंत हो रहा है.
और कुछ हम जैसे लोग हैं जो सोचते हैं कि अभी तो बहुत कुछ होना बाकी है.
और बजाए इसके कि मैं आंकड़ों व नयी धाराओं में जाऊं
और आपको बताऊँ कि कितने सारे ऑर्केस्ट्रा बंद हो रहे हैं,
और कितनी रिकॉर्ड कंपनियों का अंत हो रहा है,
मैंने सोचा कि हमें आज रात एक प्रयोग करना चाहिए -- एक प्रयोग.
असलियत में तो यह सच्चा प्रयोग नहीं है क्योंकि मैं इसका परिणाम जानता हूँ.
पर है यह प्रयोग की तरह ही. अब, इससे पहले कि --
(हंसी)
- इससे पहले कि हम शुरू करें, मुझे दो चीज़ें करनी हैं.
एक, मैं आपको याद दिलाना चाहता हूँ कि एक सात-साल का बच्चा
कैसा सुनाई देता है जब वो पियानो बजाता है.
शायद यह बच्चा आप के घर में भी हो.
वो कुछ इस तरह से बजाता है.
(पियानो)
देख रहा हूँ कि आपमें से कुछ लोग इस बच्चे को पहचानते हैं.
अब, अगर ये एक साल अभ्यास करता है और सीखता है, तो आठ साल का हो गया
और अब इस तरह से बजाता है.
(पियानो)
फिर वो एक और साल अभ्यास करता है और सीखता है; अब वो नौ साल का है.
(पियानो)
फिर वो एक और साल तैय्यारी करता है और सीखता है; अब वो दस का हो गया.
(पियानो)
इस समय पर अक्सर बच्चे ये सब छोड़ देते हैं.
(हंसी)
(तालियाँ)
अब, अगर आपने इंतज़ार किया होता, अगर एक साल और इंतज़ार किया होता,
तो आप ये सुन पाते:
(पियानो)
अब, वास्तव में जो हुआ, वो वैसा नहीं है जैसा आप शायद सोच रहे हैं,
कि ये बच्चा अचानक जोश से भर गया, जुड़ गया,
भागीदार बन गया, उसे नया टीचर मिल गया, परिपक्वता आ गयी, या जो भी कहिये.
असलियत में ये हुआ कि गतियाँ कम हो गयीं.
खुद देखिये, जब वो पहली बार बजा रहा था
तो हर स्वर पर एक गति थी, एक स्पंदन था.
(पियानो)
और अगली बार हर दूसरे स्वर पर एक स्पंदन था.
(पियानो)
आप मेरे सर के हिलने से यह देख सकते हैं.
(हंसी)
नौ-साल का बच्चा, नौ-साल का बच्चा
हर चार स्वरों पर एक स्पंदन डालता था.
(पियानो)
और दस-साल का बच्चा हर आठ स्वरों पर.
(पियानो)
और ग्यारह-साल वाला, पूरी लाइन में सिर्फ एक स्पंदन डालता है.
(पियानो)
जानता हूँ -- पर यह नहीं जानता कि हम इस मुद्रा में कैसे पहुंचे.
(हंसी)
मैंने तो नहीं कहा था कि मैं अपने कंधे को हिलाऊँगा, अपने शरीर को हिलाऊँगा.
नहीं, पर संगीत ने मुझे हिला दिया,
और यही कारण है कि मैं इसको एक-कूल्हे का वादन (बजाना) कहता हूँ.
(पियानो)
अब कूल्हा कोई भी हो सकता है.
(पियानो)
जानते हैं, एक बार एक सज्जन मेरे एक प्रदर्शन को देख रहे थे
जब मैं एक युवा पियानोवादक के साथ काम कर रहा था.
वे ओहायो की किसी कंपनी के अध्यक्ष थे.
और मैं इस युवा पियानोवादक के साथ काम कर रहा था
और मैंने कहा, "तुम्हारे साथ परेशानी यह है कि तुम दो-कूल्हे के कलाकार हो.
तुम्हें तो एक-कूल्हे का वादक होना चाहिए."
और जब वो बजा रहा था, तो मैंने उसके शरीर को इस तरह घुमाया.
और अचानक संगीत बदल गया. ऊंचे स्थान पर पहुँच गया.
श्रोताओं ने जब इस फर्क को महसूस किया तो वो धक् से रह गए.
और फिर उन सज्जन ने मुझे एक चिट्ठी लिखी.
उन्होंने कहा, " मैं बहुत प्रभावित हुआ.
मैंने वापस जा कर अपनी कंपनी पूरी तरह से बदल डाली
एक-कूल्हे वाली कंपनी में."
(हंसी)
अब जो दूसरी चीज़ जो मैं करना चाहता हूँ, वो है आपको आपके ही बारे में बताना.
मेरे ख़याल से यहाँ कोई १६०० लोग हैं.
मेरा अंदाज़ है कि आप में से करीब ४५ लोग
शास्त्रीय संगीत के बारे में एकदम दीवाने हैं.
आप शास्त्रीय संगीत से बेहद प्यार करते हैं. आपका रेडियो हमेशा शास्त्रीय स्टेशन पर ही लगा रहता है.
आपकी कार में उसके सीडी भरे रहते हैं, और आप संगीत के कार्यक्रमों में जाते हैं.
और आपके बच्चे कई तरह के साज़ बजाते हैं.
आप शास्त्रीय संगीत के बिना अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते.
यह पहला समूह है; काफी छोटा समूह है.
फिर एक और समूह है, बड़ा समूह.
ये वो लोग हैं जो शास्त्रीय संगीत को बर्दाश्त कर लेते हैं.
(हंसी)
जानते हैं न, आप लम्बे दिन के बाद घर आते हैं
और आप वाइन के एक गिलास के साथ आराम से अपने पैर ऊपर कर के बैठते हैं.
अब नेपथ्य में थोड़ा सा विवाल्डी कोई नुक्सान नहीं पहुँचाता.
(हंसी)
यह है दूसरा समूह.
अब नंबर आता है तीसरे समूह का.
ये वो लोग हैं जो कभी शास्त्रीय संगीत नहीं सुनते.
वो आपकी दुनिया का हिस्सा है ही नहीं.
आप शायद कभी उसे एयरपोर्ट पर झेले गए बासी धुंए की तरह सुन लें, मगर --
(हंसी)
-- और शायद आईडा से लिया गया थोड़ा सा संगीत कानों में पड़ा हो
जब आप हॉल में आ रहे थे. पर अन्यथा आप कभी उसे नहीं सुनते हैं.
यह सबसे बड़ा समूह है इन सब में.
और फिर एक बहुत छोटा समूह है.
ये वो लोग हैं जो सोचते हैं कि उन्हें सुर की पहचान ही नहीं है.
बहुत सारे लोग सोचते हैं कि उन्हें सुर की पहचान नहीं है.
मैं अक्सर सुनता हूँ, "मेरे पति को सुर समझ नहीं आते."
(हंसी)
असलियत में आप सुर-हीन हो ही नहीं सकते. कोई भी सुर-रहित नहीं होता.
अगर आप सुर-रहित होते, तो आप कार के गियर भी नहीं बदल पाते
उन पुराने तरह की कारों पर जिन में हाथ से गियर बदलते हैं.
आप कोई फ़र्क नहीं बता पाते
टैकसस में रहने वाले और रोम में रहने वाले व्यक्तियों के बीच में.
और टेलिफोन. टेलिफोन. अगर आपकी माँ का फोन आता है
उस निकम्मे फोन पर, वो आपको फोन करती हैं और कहती हैं, "हलो,"
तो आप न केवल यह जान जाते हैं कि कौन है, बल्कि यह भी जान जाते हैं कि वो किस मूड में हैं.
आपका कान बहुत शानदार है. हरेक व्यक्ति का कान बहुत शानदार है.
कोई भी सुर-हीन नहीं होता.
पर मैं आपसे एक बात कहूँगा. कोई तुक ही नहीं है कि मैं बोलता जाऊं
उस इतनी बड़ी खाई के बारे में, जिसके एक तरफ वो लोग हैं
जो शास्त्रीय संगीत के प्रति प्रेम और लगाव रखते हैं,
और दूसरी तरफ वो जिनका उस के साथ कोई रिश्ता ही नहीं है.
क्योंकि वे सुर-रहित लोग, वे तो यहाँ हैं ही नहीं.
पर इन तीन समूहों के बीच, वाकई में बहुत बड़ी खाई है.
तो मैं तब तक आगे नहीं बढ़ने वाला, जब तक यहाँ पर उपस्थित हर व्यक्ति,
नीचे भी और पूरे ऐस्पें में, और जो कोई भी इसे देख रहा हो,
वो हरेक व्यक्ति शास्त्रीय संगीत को समझने और उससे प्यार न करने लगे.
तो अब हम यही करने वाले हैं.
अब, क्या आपने ध्यान दिया कि मेरे दिमाग में रत्ती भर भी संदेह नहीं है
कि यह संभव हो पायेगा, अगर आप मेरे चेहरे को देखें, है न?
एक सफल नेता का ख़ास गुण यही है कि वो संदेह न करे,
एक मिनट के लिए भी नहीं कि जिन लोगों का वो नेतृत्व कर रहा है,
उनमें उसके सपने साकार करने की क्षमता नहीं है.
ज़रा कल्पना कीजिये अगर मार्टिन लूथर किंग ने कहा होता, " मेरे पास एक सपना है.
पर हाँ, मुझे पक्का नहीं पता कि ये सब उसे पूरा कर पायेंगे."
(हंसी)
अच्छा. तो अब मैं शोपैं की एक रचना ले रहा हूँ.
यह शोपैं की एक बेहद सुन्दर संगीतात्मक भूमिका है. आप में से कुछ इसे जानते होंगे.
(संगीत)
आप जानते हैं कि मेरे हिसाब से अभी इस कमरे में क्या हुआ?
जब मैंने बजाना शुरू किया, तो आपने सोचा, "कितना सुन्दर संगीत है."
(संगीत)
"मुझे नहीं लगता हमें उसी जगह वापस जाना चाहिए
अगली गर्मी की छुट्टियों में."
(हंसी)
मजेदार है न? कितनी मजेदार बात है कि यह विचार कैसे
हमारे दिमाग में तैरते रहते हैं.
और वाकई --
(तालियाँ)
-- और वाकई, अगर रचना बहुत लम्बी है और आपका दिन भी लम्बा रहा हो,
तो आप शायद झपकी भी ले सकते हैं.
फिर आपका साथी आपको कोहनी मार कर
कहेगा, "उठो! यह संस्कृति है!"!" और फिर आप को और भी बुरा लगेगा.
पर क्या आपने कभी यह सोचा है कि आपको अगर झपकी आती है
शास्त्रीय संगीत में, तो उसका कारण आप नहीं हैं, बल्कि हम हैं?
जब मैं बजा रहा था तो क्या किसी ने सोचा,
"ये इतने स्पंदन क्यों लगा रहे हैं?"
अगर मैं अपना सर इस तरह हिलाता तो आप ज़रूर ऐसा सोचते.
(संगीत)
और अपने बाकी जीवन में, हर बार जब आप शास्त्रीय संगीत सुनें
तो आप हमेशा जान पायेंगे कि ये स्पंदन कब आ रहे हैं.
तो चलिए देखते हैं कि यहाँ वाकई क्या हो रहा है.
यह है बी का सुर. यह भी है बी. अगला सुर है सी.
और सी का काम है बी को उदास बनाना. और वो बनाता है, है न?
(हंसी)
संगीतकार यह जानते हैं. अगर उन्हें उदास संगीत चाहिए हो
तो वो बस यह दो सुर बजाते हैं.
(संगीत)
असलियत में यह अकेला बी है, चार दुखी स्वरों के साथ.
(हंसी)
अब, यह नीचे जाता है ए तक. अब जी तक, और फिर एफ़ तक.
तो अब हमारे पास हैं बी, ए, जी, एफ़. और अगर हमारे पास हों बी, ए, जी, एफ़,
तो हम क्या अपेक्षा कर सकते हैं? ओह, यह शायद अचानक हो गया.
चलो फिर देखते हैं. वाह, यह तो है टेड का समूहगान.
(हंसी)
और आपने देखा कोई भी सुर-हीन नहीं है, देखा? कोई भी नहीं.
आप जानते हैं, बांगलादेश के हर गाँव में
और चीन के हर मोहल्ले में . सब जानते हैं:
डा, डा, डा, डा -- डा. हर व्यक्ति जानता है कि उस ई के स्वर की कौन राह देख रहा है.
अब शौपें नहीं चाहते थे कि ई वहाँ तक पहुंचे,
क्योंकि फिर क्या हो जाता? सब समाप्त हो जाता, हैमलेट की तरह.
आपको ध्यान है हैमलेट? पहला ऐक्ट, तीसरा सीन:
जब उसे पता चलता है कि उसके चाचा ने उसके पिता को मार डाला.
आपको ध्यान होगा कि वो अपने चाचा के पास बार बार जाता है
और मारने वाला होता है. और फिर वो पीछे हट जाता है
और फिर उनके पास जाता है और मारने वाला ही होता है.
और सारे आलोचक, जो सब वहाँ पीछे की लाइन में बैठे हैं,
उनको तो अपनी राय देनी ही होती है, तो वो कहते हैं, " हैमलेट टालमटोल करता है."
(हंसी)
या फिर वो कहते हैं, " हैमलेट में ईडीपस कॉम्प्लेक्स है."
नहीं, वरना नाटक समाप्त हो जाता, मूर्ख.
इसीलिए तो शेक्सपियर ने वो सब कुछ हैमलेट में डाला.
आप जानते हैं, ओफीलिया का पागल होना और वो सब नाटक में नाटक,
और योरिक की खोपड़ी, और वो सब कब्र खोदने वाले.
वो सब उन्होनें डाला लम्बा खींचने के लिए -- ऐक्ट ५ में उसके मरने तक.
बिलकुल यही शोपैं के साथ है. वो ई तक करीब करीब पहुँचने ही वाले हैं,
और फिर उनके दिमाग में आता है, "अरे, चलो वापस जा कर दुबारा शुरू करते हैं."
तो वो फिर से उसे करते हैं.
फिर वो जोश में आ जाते हैं -- यह जोशीलापन है,
इस के बारे में आपको चिंता नहीं करनी चाहिए.
अब वो तीव्र एफ़ पर पहुँचते हैं और अंत में ई पर उतर आते हैं,
पर यह गलत सुर है. क्योंकि जिस सुर की वो तलाश कर रहे हैं
वह ये है, और इसकी जगह वो बजाते हैं ..
अब, हम लोग इसे कहते हैं भ्रमकारी आरोह-अवरोह, क्योंकि यह हमें भ्रम में डालता है.
मैं हमेशा अपने छात्रों से कहता हूँ, "अगर तुम्हारे पास भ्रमकारी आरोह-अवरोह है,
तो अपनी भंवें चढ़ाना मत भूलना, फिर सब समझ जायेंगे."
(हंसी)
(तालियाँ)
बराबर. तो वो ई तक आते हैं, पर यह गलत सुर है.
अब वो फिर ई लगाते हैं. यह स्वर काम नहीं करता.
एक बार फिर वो ई लगाते हैं. यह स्वर काम नहीं करता.
अब वो फिर ई लगाते हैं, और वह काम नहीं करता.
और फिर अंत में....
आगे की कतार में एक सज्जन थे जो बोले, "हम्म्म."
यह वही भाव है जो वो तब दिखाते हैं जब घर पहुँचते हैं
एक लम्बे दिन के बाद, जब वो कार की चाबी बंद कर के कहते हैं,
"भई वाह, मैं घर आ गया हूँ." क्योंकि हम सब पहचानते हैं कि घर कहाँ है.
तो यह वो रचना है जो बाहर से आ कर घर पहुँचती है.
और अब मैं इसे बिना रुके लगातार बजाऊँगा
और आप इसे ध्यान से सुनेंगे -- बी, सी, बी, सी, बी, सी, बी --
नीचे ए तक, नीचे जी तक, नीचे एफ़ तक.
रचना करीब करीब ई तक जाती है, मगर तब तो नाटक ख़त्म हो जाएगा.
वो वापस ऊपर बी तक जाते हैं. बहुत जोश में आते हैं. तीव्र एफ़ तक जाते हैं. ई तक जाते हैं.
वह गलत स्वर है. वह गलत स्वर है. वह गलत स्वर है.
और अंत में ई पर जाते हैं, और रचना घर आ जाती है.
और जो आप देखने वाले हैं वो एक-कूल्हे का वादन है.
(हंसी)
क्योंकि मेरे लिए, बी को ई से जोड़ने के लिए,
मुझे रास्ते के हर स्वर के बारे में सोचना बंद करना पड़ता है
और सोचना होता है उस लम्बी, लम्बी रेखा के बारे में जो बी से ई तक जाती है.
आप जानते हैं, हम अभी हाल में दक्षिण अफ्रीका में थे, और आप दक्षिण अफ्रीका नहीं जा सकते
मंडेला के २७ साल के कारावास के बारे में सोचे बिना.
वो किस विषय में सोचा करते होंगे? खाना?
नहीं, वो तो दक्षिण अफ्रीका के लिए अपने सपने के बारे में सोचते थे
देश के और मानवजाति के सपने के बारे में. इसीने तो उन्हें संभाला --
यह सपने के बारे में है; यह लम्बी रेखा के बारे में है.
उस चिड़िया की तरह जो खेतों के ऊपर उड़ती है
और नीचे की चाहरदीवारी की परवाह नहीं करती, है न सही?
तो अब आप पूरी तरह उस रेखा के पीछे चलेंगे जो बी से ई तक जाती है.
और मेरा एक अंतिम अनुरोध है, इस से पहले कि मैं यह रचना शुरू से अंत तक बिना रुके बजाऊँ.
क्या आप किसी ऐसे व्यक्ति को याद करेंगे जो आपका अतिप्रिय हो, और अब आपके साथ नहीं है?
एक परमप्रिय नानी, कोई प्रेमी,
आपके जीवन में कोई ऐसा व्यक्ति जिसे आप पूरे दिल से प्यार करते हैं,
पर वो व्यक्ति अब आपके साथ नहीं है.
उस व्यक्ति को अपने मन में लाइए, और इस के साथ ही
बी से ई तक की रेखा के पीछे पूरे रास्ते चलिए,
और आपको वो सब सुनाई दे जाएगा जो शोपैं कहना चाहते थे.
(संगीत)
(तालियाँ)
अब आपको अचरज हो रहा होगा,
अचरज हो रहा होगा कि मैं ताली क्यों बजा रहा हूँ.
तो मैंने बौस्टन के एक स्कूल में ये सब किया
करीब ७० सातवीं-कक्षा वालों के साथ -- १२ साल के बच्चे.
और मैंने बिलकुल वही किया जो आपके साथ किया है, और उन्हें बताया
और समझाया और सारा कुछ किया.
और अंत में वो पागलों की तरह तालियाँ बजाने लगे. वो तालियाँ बजा रहे थे.
मैं ताली बजा रहा था. वो बजा रहे थे.
आखिर मैंने कहा, "मैं क्यों ताली बजा रहा हूँ?"
और एक छोटे बच्चे ने कहा, "क्योंकि हम सुन रहे हैं."
(हंसी)
आप खुद सोचिये. १६०० लोग, व्यस्त लोग,
तरह तरह के कामों में लगे हुए लोग.
शौपैं की एक रचना को सुनें, समझें और दिल में उतारें, उस से जुड़ जाएँ.
अब ये हुई न कोई बात.
अब मुझे विश्वास है कि हरेक व्यक्ति ने उसे सुना,
समझा, उससे जुड़ा, प्रभावित हुआ. हालांकि मैं पक्के तौर से तो नहीं कह सकता.
पर मैं इतना कह सकता हूँ जो मेरे साथ हुआ.
मैं १० साल पहले के दंगों के समय आयरलैंड में था,
और मैं कुछ कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट बच्चों के साथ काम कर रहा था
झगड़ों के समाधान के बारे में. और मैंने यह उनके साथ किया.
जोखिम का काम था क्योंकि वे सड़कों पर रहने वाले बच्चे थे.
और उनमें से एक मेरे पास अगली सुबह आया और बोला,
"आप जानते हैं, मैंने अपनी ज़िन्दगी में कभी शास्त्रीय संगीत नहीं सुना,
पर जब आपने वो शौपिंग वाला टुकड़ा बजाया ..."
(हंसी)
उसने कहा, "मेरे भाई को पिछले साल गोली लगी थी और मैं उसके लिए नहीं रोया.
पर कल रात जब आप वोह टुकड़ा बजा रहे थे,
तो मैं उसके बारे में सोच रहा था.
और मुझे अपनी आँखों से आंसू बहते महसूस हुए.
और आप जानते हैं, अपने भाई के लिए रोने से मुझे बहुत अच्छा लगा."
तो मैंने उसी पल में निश्चय कर लिया
कि शास्त्रीय संगीत सब के लिए है. सब के लिए.
अब यह मैं कैसे चलाता -- क्योंकि आप जानते हैं,
मेरा व्यवसाय, संगीत का व्यवसाय इसे इस तरह नहीं देखता है.
वो कहते हैं कि केवल ३ प्रतिशत जनसँख्या शास्त्रीय संगीत पसंद करती है.
अगर हम इसे ४ प्रतिशत तक ले आयें तो हमारी सारी परेशानियां दूर हो जायेंगी.
मैं कहता हूँ, "आप कैसे चलेंगे? कैसे बात करेंगे? कैसे रहेंगे
अगर आप सोचें कि केवल ३ प्रतिशत जनसँख्या शास्त्रीय संगीत पसंद करती है?
अगर हम इसे ४ प्रतिशत तक ले आयें. आप कैसे चलेंगे?
कैसे बात करेंगे? कैसे रहेंगे
अगर आप सोचें कि हर व्यक्ति शास्त्रीय संगीत पसंद करता है --
बस उन्हें अभी तक यह पता नहीं चला है."
(हंसी)
देखा, ये दोनों एकदम अलग-अलग दुनियाएं हैं.
अब मुझे एक अदभुत अनुभव हुआ. मैं ४५ साल का था,
मैं २० साल से संगीत निर्देशक था, और अचानक मुझे एक अनुभूति हुई.
एक ऑर्केस्ट्रा का निर्देशक कोई आवाज़ नहीं करता.
मेरी तस्वीर सीडी के ऊपर लगती है --
(हंसी)
-- पर निर्देशक कोई आवाज़ नहीं करता.
वो अपनी शक्ति के लिए दूसरे लोगों को शक्तिशाली बनाने की अपनी क्षमता पर निर्भर होता है.
और इस बात ने मेरी दुनिया बदल दी. यह वाकई कायापलट करने वाली बात थी.
मेरे ऑर्केस्ट्रा के लोग मेरे पास आ कर बोले,
"बेन, क्या हुआ?" यह हुआ था.
मैंने यह जाना कि मेरा असली काम था लोगों में छुपी संभावनाएं जगाना.
और हाँ, मैं जानना चाहता था कि मैं यह कर भी पा रहा हूँ कि नहीं.
आपको पता है कि कैसे मालूम होता है? आप उनकी आँखों में देखते हैं.
अगर उनकी आँखें चमक रही हों, तो आपको पता चल जाता है कि आप सही काम कर रहे हैं.
देखिये, इस बन्दे की आँखों से आप पूरे गाँव में उजाला कर सकते हैं.
(हंसी)
ठीक. तो अगर आँखें चमक रही हैं, तो आप काम सही कर रहे हैं.
अगर आँखें नहीं चमक रही हैं, तो आप एक सवाल पूछ सकते हैं.
और वो सवाल यह है:
मैं क्या होता जा रहा हूँ कि मेरे खिलाड़ियों की आँखें चमक नहीं रहीं?
यह सवाल हम अपने बच्चों के साथ भी कर सकते हैं.
मैं क्या होता जा रहा हूँ कि मेरे बच्चों की आँखें चमक नहीं रहीं?
वो बिलकुल ही अलग दुनिया है.
अब, हम सब इस जादुई, ऊंचाइयों-से-भरे हफ्ते को समाप्त करने वाले हैं,
और वापस असली दुनिया में जा रहे हैं.
और इसलिए मैं कहूँगा, हमारे लिए उचित है यह प्रश्न पूछना:
हम क्या होते जा रहे हैं, जब हम वापस असली दुनिया में जा रहे हैं?
और आप जानते हैं, मेरे पास सफलता की क्या परिभाषा है.
मेरे लिए यह बहुत सरल है. सफलता पैसे और यश और शक्ति के बारे में नहीं है.
यह इस बारे में है कि मैं कितनी चमकती आँखें अपने चारों ओर देखता हूँ.
तो अब मेरे दिमाग में बस एक अंतिम विचार यह है कि
जो हम बोलते हैं उससे वाकई फ़र्क पड़ता है.
जो शब्द हमारे मुंह से निकलते हैं.
यह मैंने एक औरत से सीखा जो आउशविट्ज़ (जर्मन कैम्प) से बच कर निकली थी.
उन दुर्लभ लोगों में से एक जो वहाँ से बच निकले.
वो आउशविट्ज़ तब गयी थी जब वो १५ साल की थी,
और उसका भाई ८ साल का था, और उनके माँ-बाप खो चुके थे.
और उसने मुझे यह बताया, उसने कहा,
"हम आउशविट्ज़ जाने वाली ट्रेन में थे और मैंने नीचे देखा
और देखा कि मेरे भाई के पैरों में जूते नहीं थे.
और मैंने कहा, "तुम इतने बेवक़ूफ़ क्यों हो, क्या अपनी चीज़ें भी नहीं संभाल सकते
भगवान् के लिए?" -- जैसे एक बड़ी बहिन
अक्सर अपने छोटे भाई से बोलती है.
दुर्भाग्यवश, वो अंतिम शब्द थे जो उसने कभी भी उससे कहे
क्योंकि वो फिर कभी उसे नहीं दिखा. वो नहीं बच पाया.
और इसीलिए जब वो आउशविट्ज़ से बाहर आयी, तो उसने एक कसम खाई.
यह उसीने मुझे बताया. उसने कहा, " मैं आउशविट्ज़ से बाहर आ कर ज़िंदगी की ओर निकली
और मैंने एक कसम खाई. और वो कसम थी, मैं कभी भी ऐसा कुछ नहीं कहूंगी
जो मेरे मुंह से निकले आख़िरी शब्द की कसौटी पर पूरा न उतरे."
तो, क्या हम ऐसा कर सकते हैं? और शायद हम अपने आपको गलत साबित कर दें
और दूसरों को भी. पर यह एक संभावना तो है जिसको हम सच कर सकते हैं. धन्यवाद.
(तालियाँ)
चमकती आँखें, चमकती आँखें.
धन्यवाद, धन्यवाद.
(संगीत)