1.5 डिग्री इतनी बड़ी बात क्यों है? क्योंकि हमारे पूरे ग्रह को 1.5 डिग्री सेल्सियस ज़्यादा गर्म करने के लिए बहुत अधिक गर्मी की आवश्यकता होती है। यह सारी अतिरिक्त गर्मी हिमनदों को पिघलाती है, जो समुद्र के स्तर को बढ़ाता है। अगर अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड की बर्फ की चादरें पूरी तरह से पिघल गईं, तो लाखों लोगों के घर पानी में बह जाएँगे। अतिरिक्त गर्मी मौसम को भी तीव्र बनाती है, जिससे वर्षा प्रवृत्त क्षेत्रों में और ज़्यादा बारिश होती है सूखे क्षेत्रों में और ज़्यादा सूखा पड़ता है और तूफानों का वेग बढ़ जाता है। यह 1.5 डिग्री की वृद्धि समान रूप से वितरित भी नहीं होगी। आर्कटिक की सबसे ठंडी रातें सम्भवतः10 डिग्री गर्म हो जाएँगी। मुंबई में सबसे गर्म दिन सम्भवतः पाँच डिग्री गर्म हो जाएँगे। पिछले 10,000 वर्षों में, हम भाग्यशाली रहे हैं। पृथ्वी की जलवायु स्थिर थी और हमारी सभ्यताएँ फली-फूलीं। लेकिन जैसे-जैसे हमारी जलवायु अधिक अस्थिर होती जाएगी, वैसे-वैसे हमारी अर्थव्यवस्थाएँ और हमारे समाज भी। हम सभी पीड़ित होंगे और कमजोर सबसे ज़्यादा बुरी तरह से प्रभावित होंगे अगर हमने अभी कार्य नहीं किया, तो। [COUNTDOWN जलवायु परिवर्तन पर कार्यवाही कीजिए COUNTDOWN.TED.COM पर]