♪ [संगीत] ♪
[अलेक्स] सम्पूर्ण विश्व के किराएदारों में
किराया नियंत्रण लोकप्रिय है
क्योंकि उससे किराये में कमी होती है और
उसके दुष्परिणाम कम ही हैं।
हालांकि, दीर्घ काल में, विस्तृत किराया नियंत्रण
पूरे शहरों को मिट्टी में मिला सकता है।
आज आप इसे देख सकते हैं, मुंबई, भारत में।
कराया नियंत्रण के सभी पूर्वानुमान
मुंबई में देखे जा सकते हैं।
किराये के मकानों की कमी है।
किराये के लिए बहुत ही कम,
नए मकान बनाए जा रहे हैं,
और पुराने किराये के मकानों की कीमतें
मिट्टी में मिल रही हैं और गिर ही रही हैं।
500 से 600 रुपये महीने के किराये,
शायद $10 प्रति माह पर,
मकानमालिक करों तक का भुगतान नहीं कर सकते,
मरम्मत और रखरखाव तो छोड़ ही दीजिये।
मुंबई में किराया नियंत्रण 1949 में
प्रारम्भ हुआ
जबकि किरायों को 1940 के स्तर पर
स्थिर कर दिया गया था।
और, आश्चर्य यह है कि तब से
किराये शायद ही बढ़े हैं
ज़बरदस्त मुद्रास्फीति तथा
बढ़ते हुये शहरीकरण के बावजूद।
और सीखने के लिए मैंने आईडीएफ़सी संस्थान की
वैदेही टंडेल,
रूबेन अब्राहम और क्षितिज बत्रा
से बातें कीं... जो कि मुंबई का
एक विचार समूह है
जो शहरी आधारभूत संरचना संबंधी
मामलों पर काम करते हैं।
[अलेक्स] उन्होंने किरायों को
1940 के स्तर पर स्थिर कर दिया?
[क्षितिज] कर दिया।
हम कहानियाँ सुनते हैं
जहां परिवार दे रहे हैं
कुछ सौ रुपये किराये के लिए
उस फ्लैट के जिसकी कीमत
अन्यथा लाख रुपये महीने तो होती ही।
तुम्हें बताना होगा
कि लाख क्या होता है।
माफ़ करना। उसका अर्थ है 100,000 रुपये।
वाह! तो वे दे रहे हैं 100, 200
या 300 रुपये महीना
किसी चीज़ के लिए
जिसकी कीमत है 100,000 रुपये?
हाँ। ऐसे परिस्थितियों में,
बहुत से परिवार हैं
जो अच्छी तरह से सम्पन्न हैं।
मगर वे जमाने से
इन कराया नियंत्रित फ़्लैटों में हैं
और लंबे समय से वहाँ रह रहे हैं।
वे बड़ी संपत्तियाँ हैं।
कुछ एक तो बहुत बड़े, विशाल अपार्टमेंट हैं।
भारात में, किराएदारों के अधिकार,
बहुत ही मजबूत हैं,
और न्यायिक व्यवस्था, बहुत ही धीमी।
इस इमारत के मालिक...
जो कि लंबे समय से
किराया नियंत्रण के अधीन है...
ने बहुत समय इसे किराएदारों से
खाली कराने का प्रयास किया।
दरअसल, इस इमारत का मालिक
एक मुक़दमा लड़ रहा है
जिसे उसके दादा ने
50 साल पहले दायर किया था।
यह मालिकों की ओर से
एक उल्लेखनीय सूचना है।
ज़रा देखिये।
"इस इमारत के कुछ भाग
खंडहर जैसे हाल में हैं,
जो गिर सकते हैं,
और किसी भी रहने वाले या पास से
गुजरने वाले व्यक्ति के लिए ख़तरनाक हैं।"
यह ढह रही है।
इसका ध्वंस शुरू हो चुका है।
अब, एक तो यह धमकी है किराएदारों को
निकालने के प्रयास के लिए।
मगर यह बहुत विश्वसनीय खतरा भी है।
[समाचार वाचक] भारत में
एक और घातक इमारत गिरी।
शुक्रवार की भोर में मुंबई में
एक पाँच मंज़िला अपार्टमेंट इमारत गिर पड़ी
जबकि लोग गहरी नींद में सो रहे थे।
अभी तक यह पता नहीं चल पाया है
कि कितने लोग मलबे के नीचे दबे हुये हैं।
राहतकर्मी बचे लोगों की खोज में
पूरे दिन खुदाई करते रहे हैं।
[वैदेही] दरअसल मौजूदा इमारतों के
रखरखाव के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं है
और आप उन इमारतों की
बुरी हालत देख सकते हैं
जो किराया नियंत्रणाधीन हैं।
तो, प्रशासन को एक निर्धारित इमारत नीति
बनानी पड़ी
जो एक तरह से इन इमारतों की देखभाल करती है
और इनके रखरखाव का ख़र्च उठाती है।
निर्धारन मतलब एक विशेष कर?
हाँ, मरम्मत और रखरखाव
इन अति ध्वस्त और
ख़तरनाक किराया नियंत्रणाधीन इमारतों के।
तो, क्या प्रशासन वास्तव में इस कर राशि का
उपयोग करता है
इनको ठीक कराने में?
दरअसल, मुझे पता नहीं है।
[अलेक्स] मुंबई में किराया नियंत्रण की
एक और समस्या है।
किराया नियंत्रण के कारण मकान मालिक
मकान खाली रखने को प्रोत्साहित होते हैं
बजाय उनको किराये पर दे कर
यह खतरा उठाने के कि
उन्हें ऐसा किरायेदार मिल जाएगा
जिससे वे खाली नहीं करा सकेंगे
अगली आधी शताब्दी तक।
इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि 15%
मकान मुंबई में खाली पड़े हैं।
[क्षितिज] मेरे विचार से 2011 में...
एक प्रशासनिक सर्वेक्षण में...
करीब एक करोड़ दस लाख मकान
भारत के शहरी क्षेत्रों में खाली थे,
जो कि एक बड़ी संख्या है,
इस परिस्थिति में कि उनके ही अनुमानानुसार
करीब एक करोड़ अस्सी लाख मकानों की कमी है।
[अलेक्स] स्पष्ट है कि
किराया नियंत्रण के अंत से
ऐसी अनेक समस्याएँ समाप्त हो जाएंगी।
मगर क्या कोई और तरीके हैं जिनसे
वहन योग्य मकान बाज़ार में उपलब्ध हो सकें?
क्या सरकार ग़रीबों के लिए
और अधिक मकान बना सकती है?
[रूबेन] मैं इसी विषय पर काम कर रहा हूँ
पिछले करीब नौ सालों से और अब कहने लगा हूँ
"वहन योग्य मकानों" के स्थान पर
"मकानों का वहन। "
जो भी मकान बिक्री के लिए आएंगे
उनको ले लिया जाएगा
अमीरों या जिनके पास भी साधन होंगे
उनके द्वारा।
तो, इसलिए, मैं तो कहूँगा कि अब तो
सारा ध्यान लगाना होगा
केवल मकानों की आपूर्ति की ओर।
क्योंकि यदि आपूर्ति नहीं बढ़ाई जाएगी,
अमीर उन पर कब्ज़ा करते ही रहेंगे।
आप ऐसे अनेक दृष्टांत
मुंबई में ही देख सकते हैं
अगर आप शहरी योजनाओं को देखेंगे,
और आप इन योजनाओं को देखिये
वहन करने योग्य घरों की,
जहां चार एक-बेडरूम वाले अपार्टमेंट
प्रभावी रूप से एक चार-बेड रूम वाला
अपार्टमेंट बन जाते हैं।
तो एक तरह से, आप ग़रीबों से छीन कर
अमीरों के लिए ऐशगाह बना रहे हैं।
जब भी बाज़ार में दो दाम होंगे,
कम दाम अधिक दाम वाले को बिक जाएगा,
या कोई ऐसा बाज़ार संचालक होगा
जो रास्ता ढूंढ लेगा
सस्ते दाम पर लेने का
क्योंकि बाज़ार में उच्च दाम
वास्तव में उपलब्ध होगा।
यूं तो, झोपड़ पट्टी ग़रीबी लगती है,
जबकि दरअसल वह एक
अचल संपत्ति संबंधी समस्या है
क्योंकि मकानों की कीमतें आसमान छू रही हैं
और मुंबई जैसे शहर के आय स्तर
उसके समकक्ष नहीं हैं।
तो, झोपड़ पट्टी वास्तव में अकेली उपलब्ध
मकान संसाधन हैं।
सही है, उपलब्ध मकान और मज़ाक यह है,
कि किराये के लिए बस यही उपलब्ध है।
जब एक बार इस तरह की नीति लागू हो जाती है,
तब इसका संगठित विरोध नहीं हो सकता।
अगर आप किराये बढ़ाने का प्रयास करते हैं,
तो राजनीतिक प्रतिघात मिलेगा।
तो, लोग कहेंगे कि मुंबई में पहले ही
किराये इतने अधिक हैं,
आप किराया नियंत्रण में
किराये क्यों बढ़ाएँगे?
यह एक नीति है जो न केवल उनको
प्रभावित करती है जो वहाँ रह रहे हैं
बल्कि उन्हें भी जो वहाँ नहीं रह सकते।
वे लोग जो वहाँ रहते तो नहीं
मगर रहना चाहते हैं।
सही है।
उनके पास क्रियान्वयन के लिए
राजनीतिक आधार नहीं होता है।
बिलकुल। सही बात है।
वाह।
[अलेक्स] किराया नियंत्रण
एकमात्र समस्या नहीं है।
अनुमोदन प्रक्रिया
मुंबई में नए मकान बनाने के लिए भी,
बहुत विस्तृत है।
कुछ तो है कि, बिल्डरों पर
अनेक अपेक्षाओं का बंधन है,
केवल सुरक्षा मामलों संबंधी नहीं,
बल्कि इमारत की ऊंचाई,
कमरों का आमाप, यहाँ तक कि
पार्किंग आवश्यकताएँ
उन अपार्टमेंट्स के निर्माण के लिए भी जहां
निवासियों के पास सामान्यतः कार होती नहीं।
एकमात्र सबसे बड़ी समस्या अनुमोदन की है।
अनुमोदन प्रक्रिया...
यहाँ यूरोप और अमरीका से भी अधिक लंबी है?
कहीं लंबी। आज, भारत में पूंजी का मूल्य
अधिक नहीं तो भी करीब 15% है।
और 15% पर, यदि अनुमोदन प्रक्रिया में
24 महीने लगते हैं,
आश्चर्य मत करना यदि में केवल
आलीशान घर ही बना सकूँ।
मैं उससे सस्ता कुछ बना ही नहीं सकता
और कारण तो साधारण गणितीय है।
यह बस ऐसे ही काम करता है।
जब तक पूंजी का मूल्य इतना अधिक रहेगा
व अनुमोदन प्रक्रिया इतनी लंबी रहेगी
आपको आलीशान मकान ही मिलेंगे।
कंपनियाँ जिन्होंने
इस स्पष्ट उद्देश्य से शुरुआत की
कि वे वहाँ योग्य घर बनाएँगी...
बड़ी बड़े निवेश प्राप्त किए
निजी निवेशकों से 700,000 रुपये के
घर बनाने के लिए...
आज पचास लाख रुपयों के घर बना रही हैं
क्योंकि अनुमोदन प्रक्रिया ने
उनके साथ यह कर दिया है।
यह उन सब नियंत्रणों का प्रभावी नतीजा है
जिन्हें अच्छी नीयत से लागू किया गया था,
मगर ज़ाहिर है... आपने सुना होगा
नर्क का रास्ता
सदा अच्छाइयों से ही निकलता है।
यह उसका प्रत्यक्ष उदाहरण है।
आप अर्थशास्त्र में
निपुणता प्राप्ति की राह पर हैं।
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