मैं एक संग्रहालय में, ६ से ८ साल के, करीब ३०० ,बच्चों के झुंड से बात कर रही थी, और मैं अपने साथ टांगों से भरा एक थैला ले कर गयी, जो आप यहाँ देख रहे हैं ऐसी ही टांगें, और मैंने उन्हें बच्चों के लिए मेज पर लगा दिया| और मेरे अनुभव के हिसाब से, आप जानते ही हैं, बच्चे बहुत उत्सुक होते हैं उन चीजों के बारे में के जो वो नहीं जानते, या नहीं समझते हैं या जो उनके लिए अजीबोगरीब होती हैं. वो इन असमानताओं से तब डरना सीखते हैं जब कोई बडा़ उन्हें ऐसा करना सिखाता है, और शायद उनकी स्वाभाविक उत्सुकता को दबाता है, या फिर उनके प्रश्नों पर लगाम लगा देता है ताकि वो अच्छे सभ्य बच्चे बन सकें इसलिए मैंने अंदाज़ लगाया कि बाहर लॉबी में एक पहली कक्षा की टीचर इन असभ्य बच्चों से कह रही होगी ,"अब चाहे तुम और कुछ भी करो, उसकी टांगों को मत घूरना ." पर वाकई, असल बात तो वही है. इसीलिये तो मैं वहाँ थी, मैं उन्हें देखने और खोजने के लिए ही तो बुलाना चाहती थी. इसलिए मैंने बडों़ के साथ सौदेबाजी की कि बच्चे पहले २ मिनट के लिए अकेले अन्दर आयेंगे, बिना किसी बडे़ के अपनेआप तो दरवाजा खुलता है, बच्चे टांगों भरी मेज़ पर पहुँचते हैं और वो दबा रहे हैं , छेड़ रहे हैं, और पैरों की उँगलियों को हिला-डुला रहे हैं, और दौढ़ने वाली टाँग पर अपना पूरा वजन डाल रहे हैं कि देखें उस पर क्या असर होता है. और मैंने उनसे कहा, "बच्चों, जल्दी सुनो -- मैं आज सुबह उठी, मैंने निर्णय किया कि आज मुझे एक घर के ऊपर छलांग लगानी है -- बहुत ऊंचा घर नहीं, बस २ या ३ मंजिला -- पर, अगर तुम किसी भी जानवर, या सुपर हीरो, या कार्टून के पात्र के बारे में सोच सको जो भी तुम्हारा सपना हो, इस वक़्त, तो तुम किस तरह की टाँगे मेरे लिए बनाओगे?" और तुंरत एक आवाज़ आई," कंगारू!" "न न न! उसे मेंढक होना चाहिए!" "नहीं. इसे तो गो गो गैजेट होना चाहिए!" "नहीं, नहीं, नहीं! उसे होना चाहिए 'अद्भुत लोग' (दी इनक्रेडिबिल्स) जैसा." और ऐसी ही कई चीजें़ जिन्हें मैं भी नहीं जानती थी. और फिर, एक ८ साल के बच्चे ने कहा, "अरे, पर आप उड़ना क्यों नहीं चाहेंगी?" और पूरा कमरा, मेरे समेत, बोल उठा, " अरे हाँ." (हंसी) और बस इसी तरह, मैं एक ऐसी औरत से, जिसे ये बच्चे "विकलांग" या "अक्षम" समझने के आदी होते, एक ऐसे व्यक्ति में बदल गयी जिसमें वो संभावना थी जो अभी उनके शरीर में नहीं आ पाई थी. ऐसी व्यक्ति जो उनके लिए शायद महा-सक्षम थी. मजेदार. तो आप में से कुछ लोगों ने मुझे टेड में देखा है, ११ साल पहले, और बहुत बातें हो रहीं हैं कि यह कांफ्रेंस कितनी असाधारण है, कायापलट कर देती है, श्रोता और वक्ता दोनों का ही, और मैं कोई अपवाद नहीं हूँ टेड से वाकई मेरी जीवन यात्रा के अगले १० वर्षों की असली शुरुआत हुई उस समय जो टांगें मैंने दिखाई थीं, वे कृत्रिम अंगों के क्षेत्र में अतुलनीय थीं. मेरे पास कार्बन के रेशों से बुनी दौड़ने वाली टांगें थीं जो चीते की पिछली टांगों के आधार पर बनायी गयी थीं, जिन्हें आपने शायद कल स्टेज पर देखा हो. और ये बहुत सजीव, बडी़ बारीकी से रंगी हुई सिलिकॉन की टांगें. तो उस समय, मेरे लिए बडा़ अच्छा मौका था कि मैं मेडिकल कृत्रिम अंग बनाने वाली बिरादरी के बाहर निकल कर नए विचारकों को बुलाऊँ ताकि वो अपने गुणों को इस विज्ञान और कला में लगा सकें जिससे टांगें बनायी जाती हैं. ताकि हम रूप, उपयोगिता और सौंदर्य को अलग अलग खानों में डालना बंद करें, और उन्हें अलग अलग मूल्य देना भी. मेरा सौभाग्य था कि कई लोगों ने मेरे इस बुलावे का जवाब दिया. मजेदार बात यह, कि ये यात्रा टेड कांफ्रेंस में भाग ले रही एक व्यक्ति से शुरू हुई -- ची पर्लमैन, उम्मीद करती हूँ आज भी वो श्रोताओं में कहीं हैं उस वक़्त वो ID नाम की पत्रिका की संपादक थीं और उन्होंने मुझ पर एक मुख्य कहानी लिखी. उससे एक अविश्वसनीय यात्रा की शुरुआत हुई. उस समय मेरे साथ बडी़ अनोखी मुलाकातें हो रही थीं; मैं वक्ता के रूप में कई निमंत्रण स्वीकार कर रही थी ताकि मैं दुनिया को उन चीते जैसी टांगों के डिजाइन के बारे में बताऊँ. कांफ्रेंस में मेरी बातचीत के बाद लोग मेरे पास आते थे, आदमी और औरतें, दोनों. और कुछ इस तरह का वार्तालाप शुरू हो जाता था. "आप जानती हैं एमी, आप बहुत आकर्षक हैं. आप बिलकुल विकलांग नहीं लगतीं." (हंसी) मैंने सोचा, "अच्छा, यह तो आश्चर्यजनक है, क्योंकि मैं तो विकलांग महसूस भी नहीं करती." और इस बात ने मेरी आँखें इस वार्तालाप की तरफ खोल दीं जो सौंदर्य की परिभाषा को खोज सके. एक सुन्दर महिला को कैसा दिखना चाहिए? एक कामुक शरीर कैसा होता है? और दिलचस्प बात, अपनी पहचान के दृष्टिकोण से, अक्षम या विकलांग होने का मतलब क्या होता है? मेरा मतलब है, लोगों के -- पैमेला एंडरसन के शरीर में मेरे से कहीं ज्यादा कृत्रिम अंग हैं. उन्हें तो कोई विकलांग नहीं कहता. (हंसी) इस तरह से यह पत्रिका, ग्राफिक डिजाइनर पीटर सेविल के हाथों से, फैशन डिजाइनर एलेकजेंडर मकक्वीन के पास गयी, और फिर फोटोग्राफर निक नाइट के पास, वो सब भी इस वार्तालाप को आगे ले जाना चाहते थे. तो इस तरह टेड कांफ्रेंस के ३ महीने बाद मैं हवाई जहाज में बैठी थी लन्दन के लिए, जहां मेरी पहली फैशन शूटिंग होने वाली थी, उससे यह मुखपृष्ठ निकला -- फैशन- सक्षम? उसके ३ महीने बाद मैंने एलेकजेंडर मैकक्वीन के साथ अपना पहला शो किया जिसमें मैंने ठोस ऐश से बनी, हाथों से तराशी हुई लकडी़ की टांगें पहनी थीं. किसी को पता भी नहीं चला -- सबको लगा वो लकडी़ के बूट थे. असल में वो यहीं मेरे पास स्टेज पर हैं: बेलें, बूटियाँ, वाकई बहुत खूबसूरत. कविता का असर होता है. कविता ही है जो एक साधारण और उपेक्षित वस्तु को चढा़ देती है कला की ऊंचाइयों तक. जिस चीज़ से लोग शायद डर जाते, वो उस चीज़ को बदल कर कुछ ऐसा बना देती है कि लोग देखें और देखते रह जाएँ, और शायद समझ भी जाएँ. यह मैंने खुद अपने अगले अनुभव से सीखा. कलाकार मैथ्यु बार्नी की अपनी फिल्म कृति, जिसका नाम है "क्रेमास्टर साईकिल" तब मुझे सच में इस बात का आभास हुआ -- कि मेरी टांगें पहनने योग्य मूर्तिकला भी हो सकती हैं. और इस मोड़ पर भी, मैं मानव-पन की नक़ल करने की ज़रुरत से दूर हटने लगी वही अकेला कलात्मक आदर्श तो नहीं है. और हमने वो टांगें बनायीं जिन्हें लोग प्यार से कांच की टांगें कहते हैं जबकि असलियत में ये पारदर्शी पॉलीयूरीथेन हैं, जो बोलिंग की गेंद बनाने में इस्तेमाल होता है. जानदार ! फिर हमने ये टांगें बनाईं जिनका सांचा मिट्टी से बना है आलू की एक पूरी जड़ इनमें उग रही है, और ऊपर चुकंदर निकल रहे हैं, और एक बहुत सुन्दर पीतल का अंगूठा. यह इसका पास से लिया गया अच्छा फोटो है. एक और चरित्र यह था -- आधी औरत, आधा चीता -- मेरी व्यायाम से भरी जि़न्दगी के लिए एक छोटा सा सम्मान. १४ घंटे का कृत्रिम बनाव-सिंगार एक ऐसा प्राणी बनने के लिए जिसके पास कृत्रिम पंजे, नाखून थे, और एक पूँछ जो लपक रही थी, छिपकली की तरह. (हंसी) और फिर एक और जोडी़ टांगें जिन पर हमने एक साथ काम किया, वो ये थीं... जेलीफिश की टांगों जैसी लगती हैं. ये भी पॉलीयूरीथेन. और जो अकेला काम यह टांगें कर सकती हैं, इस फिल्म के सन्दर्भ के परे, वो है इन्द्रियों को उत्तेजित करना और कल्पना को उडा़न देना. तो मनमौजीपन का असर भी होता है. आज मेरे पास १२ जोडी़ से ऊपर कृत्रिम टांगें हैं जो विभिन्न लोगों ने मेरे लिए बनायी हैं, और उनके साथ मैं अपने पैरों तले की ज़मीन से विभिन्न तरह के समझौते करती हूँ. और मैं अपनी लम्बाई बदल सकती हूँ -- मेरे पास ५ विभिन्न लम्बाईयाँ बदलने की क्षमता है. (हंसी) आज, मैं ६'१" हूँ. और ये टांगें मैंने एक साल से कुछ पहले ही बनवाई थीं इंगलैंड के डोरसेट और्थोपेडिक से और जब मैं उन्हें मैनहैटन अपने घर लायी तो पहली ही रात मैं एक बहुत बढि़या पार्टी में गयी. और वहां एक लड़की थी जो मुझे कई सालों से जानती है मेरी आम ५'८" की लम्बाई से. मुझे देख कर उसका मुंह खुले का खुला रह गया, और वो कहती ही रही,"पर तुम कितनी लम्बी हो!" और मैंने कहा,"जानती हूँ. मजे़ की बात है न?" मेरा मतलब, ये कुछ ऐसा ही है जैसे सीडी़ पर सीडी़ लगाना. पर मेरा दरवाजे़ के जैम के साथ अब वो खा़स नया सम्बन्ध हो गया है जो मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि हो पायेगा. और मैं उसके साथ मजे़ ले रही थी. और उसने मुझे देखा, और बोली,"पर, एमी, यह तो सही नहीं है." (हंसी) (तालियाँ) और अविश्वसनीय बात यह थी कि वो संजीदा थी. यह तो सही नहीं है कि तुम अपनी लम्बाई बदल लो, जब मन में आये. और तब मैंने जाना -- कि समाज के साथ का वो वार्तालाप अब मूलभूत रूप से बदल गया है पिछले १० सालों में. अब यह बातचीत कमी या अक्षमता को दूर करने के बारे में नहीं है. यह बातचीत अब वृद्धि के बारे में है. यह बातचीत अब संभावनाओं के बारे में है. एक कृत्रिम अंग अब अभाव को पूरा करने की ज़रुरत नहीं दर्शाता है. यह अब इस बात का प्रतीक हो सकता है कि उसे पहनने वाला उस हर चीज़ को रचने की शक्ति रखता है जो वो रचना चाहता है उस जगह पर. तो वो लोग जिन्हें पहले समाज विकलांग समझता था अब अपनी पहचान खुद बना सकने की क्षमता रखते हैं और अपनी पहचान को बदलते भी रह सकते हैं अपने शरीर की रूपरेखा को बदल कर और अपनी शक्ति को समझ कर. और मेरे लिए अभी यह बहुत जोश भरी बात है कि नयी प्रभावशाली तकनीक जैसे -- रोबोटिक्स, बियोनिक्स -- का मिश्रण सदियों पुरानी कविता से कर के, हम अपनी सामूहिक मानवता को समझने की ओर बढ़ रहे हैं. मैं सोचती हूँ कि यदि हम पूरी संभावना समझना चाहते हैं अपने समस्त मनुष्यत्व की, तो हमें उन मर्मभेदी शक्तियों को सराहना होगा और उन शानदार अक्षमताओं को भी जो हम सब में हैं. मुझे शेक्सपियर के शाईलौक की याद आती है: "अगर तुम हमें काटते हो, तो क्या हमारा खून नहीं बहता, और अगर तुम हमें गुदगुदाते हो, तो क्या हम हंसते नहीं?" यह हमारी मानवता ही तो है, और उसमें छुपी सारी संभावनाएं, जो हमें सुन्दर बनाती हैं. धन्यवाद. (तालियाँ)