1 00:00:00,000 --> 00:00:03,000 मैं एक संग्रहालय में, ६ से ८ साल के, करीब ३०० 2 00:00:03,000 --> 00:00:05,000 ,बच्चों के झुंड से बात कर रही थी, 3 00:00:05,000 --> 00:00:09,000 और मैं अपने साथ टांगों से भरा एक थैला ले कर गयी, 4 00:00:09,000 --> 00:00:11,000 जो आप यहाँ देख रहे हैं ऐसी ही टांगें, 5 00:00:11,000 --> 00:00:13,000 और मैंने उन्हें बच्चों के लिए मेज पर लगा दिया| 6 00:00:13,000 --> 00:00:17,000 और मेरे अनुभव के हिसाब से, आप जानते ही हैं, बच्चे बहुत उत्सुक होते हैं 7 00:00:17,000 --> 00:00:19,000 उन चीजों के बारे में के जो वो नहीं जानते, या नहीं समझते हैं 8 00:00:19,000 --> 00:00:21,000 या जो उनके लिए अजीबोगरीब होती हैं. 9 00:00:21,000 --> 00:00:23,000 वो इन असमानताओं से तब डरना सीखते हैं 10 00:00:23,000 --> 00:00:26,000 जब कोई बडा़ उन्हें ऐसा करना सिखाता है, 11 00:00:26,000 --> 00:00:29,000 और शायद उनकी स्वाभाविक उत्सुकता को दबाता है, 12 00:00:29,000 --> 00:00:32,000 या फिर उनके प्रश्नों पर लगाम लगा देता है 13 00:00:32,000 --> 00:00:34,000 ताकि वो अच्छे सभ्य बच्चे बन सकें 14 00:00:34,000 --> 00:00:38,000 इसलिए मैंने अंदाज़ लगाया कि बाहर लॉबी में एक पहली कक्षा की टीचर 15 00:00:38,000 --> 00:00:41,000 इन असभ्य बच्चों से कह रही होगी ,"अब चाहे तुम और कुछ भी करो, 16 00:00:41,000 --> 00:00:43,000 उसकी टांगों को मत घूरना ." 17 00:00:43,000 --> 00:00:45,000 पर वाकई, असल बात तो वही है. 18 00:00:45,000 --> 00:00:48,000 इसीलिये तो मैं वहाँ थी, मैं उन्हें देखने और खोजने के लिए ही तो बुलाना चाहती थी. 19 00:00:48,000 --> 00:00:52,000 इसलिए मैंने बडों़ के साथ सौदेबाजी की 20 00:00:52,000 --> 00:00:55,000 कि बच्चे पहले २ मिनट के लिए अकेले अन्दर आयेंगे, बिना किसी बडे़ के 21 00:00:55,000 --> 00:00:57,000 अपनेआप 22 00:00:57,000 --> 00:01:01,000 तो दरवाजा खुलता है, बच्चे टांगों भरी मेज़ पर पहुँचते हैं 23 00:01:01,000 --> 00:01:04,000 और वो दबा रहे हैं , छेड़ रहे हैं, और पैरों की उँगलियों को हिला-डुला रहे हैं, 24 00:01:04,000 --> 00:01:06,000 और दौढ़ने वाली टाँग पर अपना पूरा वजन डाल रहे हैं 25 00:01:06,000 --> 00:01:08,000 कि देखें उस पर क्या असर होता है. 26 00:01:08,000 --> 00:01:10,000 और मैंने उनसे कहा, "बच्चों, जल्दी सुनो -- 27 00:01:10,000 --> 00:01:14,000 मैं आज सुबह उठी, मैंने निर्णय किया कि आज मुझे एक घर के ऊपर छलांग लगानी है -- 28 00:01:14,000 --> 00:01:16,000 बहुत ऊंचा घर नहीं, बस २ या ३ मंजिला -- 29 00:01:16,000 --> 00:01:21,000 पर, अगर तुम किसी भी जानवर, या सुपर हीरो, या कार्टून के पात्र के बारे में सोच सको 30 00:01:21,000 --> 00:01:23,000 जो भी तुम्हारा सपना हो, इस वक़्त, 31 00:01:23,000 --> 00:01:25,000 तो तुम किस तरह की टाँगे मेरे लिए बनाओगे?" 32 00:01:25,000 --> 00:01:28,000 और तुंरत एक आवाज़ आई," कंगारू!" 33 00:01:28,000 --> 00:01:30,000 "न न न! उसे मेंढक होना चाहिए!" 34 00:01:30,000 --> 00:01:32,000 "नहीं. इसे तो गो गो गैजेट होना चाहिए!" 35 00:01:32,000 --> 00:01:34,000 "नहीं, नहीं, नहीं! उसे होना चाहिए 'अद्भुत लोग' (दी इनक्रेडिबिल्स) जैसा." 36 00:01:34,000 --> 00:01:37,000 और ऐसी ही कई चीजें़ जिन्हें मैं भी नहीं जानती थी. 37 00:01:37,000 --> 00:01:39,000 और फिर, एक ८ साल के बच्चे ने कहा, 38 00:01:39,000 --> 00:01:43,000 "अरे, पर आप उड़ना क्यों नहीं चाहेंगी?" 39 00:01:44,000 --> 00:01:47,000 और पूरा कमरा, मेरे समेत, बोल उठा, " अरे हाँ." 40 00:01:47,000 --> 00:01:49,000 (हंसी) 41 00:01:49,000 --> 00:01:52,000 और बस इसी तरह, मैं एक ऐसी औरत से, 42 00:01:52,000 --> 00:01:56,000 जिसे ये बच्चे "विकलांग" या "अक्षम" समझने के आदी होते, 43 00:01:56,000 --> 00:02:01,000 एक ऐसे व्यक्ति में बदल गयी जिसमें वो संभावना थी जो अभी उनके शरीर में नहीं आ पाई थी. 44 00:02:01,000 --> 00:02:03,000 ऐसी व्यक्ति जो उनके लिए शायद महा-सक्षम थी. 45 00:02:03,000 --> 00:02:05,000 मजेदार. 46 00:02:05,000 --> 00:02:10,000 तो आप में से कुछ लोगों ने मुझे टेड में देखा है, ११ साल पहले, 47 00:02:10,000 --> 00:02:14,000 और बहुत बातें हो रहीं हैं कि यह कांफ्रेंस कितनी असाधारण है, कायापलट कर देती है, 48 00:02:14,000 --> 00:02:18,000 श्रोता और वक्ता दोनों का ही, और मैं कोई अपवाद नहीं हूँ 49 00:02:18,000 --> 00:02:24,000 टेड से वाकई मेरी जीवन यात्रा के अगले १० वर्षों की असली शुरुआत हुई 50 00:02:24,000 --> 00:02:29,000 उस समय जो टांगें मैंने दिखाई थीं, वे कृत्रिम अंगों के क्षेत्र में अतुलनीय थीं. 51 00:02:29,000 --> 00:02:31,000 मेरे पास कार्बन के रेशों से बुनी दौड़ने वाली टांगें थीं 52 00:02:31,000 --> 00:02:33,000 जो चीते की पिछली टांगों के आधार पर बनायी गयी थीं, 53 00:02:33,000 --> 00:02:35,000 जिन्हें आपने शायद कल स्टेज पर देखा हो. 54 00:02:35,000 --> 00:02:41,000 और ये बहुत सजीव, बडी़ बारीकी से रंगी हुई सिलिकॉन की टांगें. 55 00:02:41,000 --> 00:02:45,000 तो उस समय, मेरे लिए बडा़ अच्छा मौका था 56 00:02:45,000 --> 00:02:49,000 कि मैं मेडिकल कृत्रिम अंग बनाने वाली बिरादरी के बाहर निकल कर नए विचारकों को बुलाऊँ 57 00:02:49,000 --> 00:02:53,000 ताकि वो अपने गुणों को इस विज्ञान और कला में लगा सकें 58 00:02:53,000 --> 00:02:55,000 जिससे टांगें बनायी जाती हैं. 59 00:02:55,000 --> 00:03:00,000 ताकि हम रूप, उपयोगिता और सौंदर्य को अलग अलग खानों में डालना बंद करें, 60 00:03:00,000 --> 00:03:02,000 और उन्हें अलग अलग मूल्य देना भी. 61 00:03:02,000 --> 00:03:06,000 मेरा सौभाग्य था कि कई लोगों ने मेरे इस बुलावे का जवाब दिया. 62 00:03:06,000 --> 00:03:11,000 मजेदार बात यह, कि ये यात्रा टेड कांफ्रेंस में भाग ले रही एक व्यक्ति से शुरू हुई -- 63 00:03:11,000 --> 00:03:14,000 ची पर्लमैन, उम्मीद करती हूँ आज भी वो श्रोताओं में कहीं हैं 64 00:03:14,000 --> 00:03:17,000 उस वक़्त वो ID नाम की पत्रिका की संपादक थीं 65 00:03:17,000 --> 00:03:20,000 और उन्होंने मुझ पर एक मुख्य कहानी लिखी. 66 00:03:20,000 --> 00:03:23,000 उससे एक अविश्वसनीय यात्रा की शुरुआत हुई. 67 00:03:23,000 --> 00:03:25,000 उस समय मेरे साथ बडी़ अनोखी मुलाकातें हो रही थीं; 68 00:03:25,000 --> 00:03:28,000 मैं वक्ता के रूप में कई निमंत्रण स्वीकार कर रही थी 69 00:03:28,000 --> 00:03:31,000 ताकि मैं दुनिया को उन चीते जैसी टांगों के डिजाइन के बारे में बताऊँ. 70 00:03:31,000 --> 00:03:34,000 कांफ्रेंस में मेरी बातचीत के बाद लोग मेरे पास आते थे, 71 00:03:34,000 --> 00:03:36,000 आदमी और औरतें, दोनों. 72 00:03:36,000 --> 00:03:38,000 और कुछ इस तरह का वार्तालाप शुरू हो जाता था. 73 00:03:38,000 --> 00:03:42,000 "आप जानती हैं एमी, आप बहुत आकर्षक हैं. 74 00:03:42,000 --> 00:03:44,000 आप बिलकुल विकलांग नहीं लगतीं." 75 00:03:44,000 --> 00:03:45,000 (हंसी) 76 00:03:45,000 --> 00:03:47,000 मैंने सोचा, "अच्छा, यह तो आश्चर्यजनक है, 77 00:03:47,000 --> 00:03:49,000 क्योंकि मैं तो विकलांग महसूस भी नहीं करती." 78 00:03:49,000 --> 00:03:54,000 और इस बात ने मेरी आँखें इस वार्तालाप की तरफ खोल दीं 79 00:03:54,000 --> 00:03:56,000 जो सौंदर्य की परिभाषा को खोज सके. 80 00:03:56,000 --> 00:03:59,000 एक सुन्दर महिला को कैसा दिखना चाहिए? 81 00:03:59,000 --> 00:04:01,000 एक कामुक शरीर कैसा होता है? 82 00:04:01,000 --> 00:04:03,000 और दिलचस्प बात, अपनी पहचान के दृष्टिकोण से, 83 00:04:03,000 --> 00:04:06,000 अक्षम या विकलांग होने का मतलब क्या होता है? 84 00:04:06,000 --> 00:04:09,000 मेरा मतलब है, लोगों के -- पैमेला एंडरसन के शरीर में मेरे से कहीं ज्यादा कृत्रिम अंग हैं. 85 00:04:09,000 --> 00:04:11,000 उन्हें तो कोई विकलांग नहीं कहता. 86 00:04:11,000 --> 00:04:16,000 (हंसी) 87 00:04:17,000 --> 00:04:21,000 इस तरह से यह पत्रिका, ग्राफिक डिजाइनर पीटर सेविल के हाथों से, 88 00:04:21,000 --> 00:04:26,000 फैशन डिजाइनर एलेकजेंडर मकक्वीन के पास गयी, और फिर फोटोग्राफर निक नाइट के पास, 89 00:04:26,000 --> 00:04:28,000 वो सब भी इस वार्तालाप को आगे ले जाना चाहते थे. 90 00:04:28,000 --> 00:04:31,000 तो इस तरह टेड कांफ्रेंस के ३ महीने बाद मैं हवाई जहाज में बैठी थी 91 00:04:31,000 --> 00:04:36,000 लन्दन के लिए, जहां मेरी पहली फैशन शूटिंग होने वाली थी, 92 00:04:36,000 --> 00:04:37,000 उससे यह मुखपृष्ठ निकला -- 93 00:04:37,000 --> 00:04:40,000 फैशन- सक्षम? 94 00:04:40,000 --> 00:04:44,000 उसके ३ महीने बाद मैंने एलेकजेंडर मैकक्वीन के साथ अपना पहला शो किया 95 00:04:44,000 --> 00:04:49,000 जिसमें मैंने ठोस ऐश से बनी, हाथों से तराशी हुई लकडी़ की टांगें पहनी थीं. 96 00:04:49,000 --> 00:04:52,000 किसी को पता भी नहीं चला -- सबको लगा वो लकडी़ के बूट थे. 97 00:04:52,000 --> 00:04:54,000 असल में वो यहीं मेरे पास स्टेज पर हैं: 98 00:04:55,000 --> 00:04:59,000 बेलें, बूटियाँ, वाकई बहुत खूबसूरत. 99 00:05:00,000 --> 00:05:03,000 कविता का असर होता है. 100 00:05:03,000 --> 00:05:08,000 कविता ही है जो एक साधारण और उपेक्षित वस्तु को चढा़ देती है 101 00:05:08,000 --> 00:05:10,000 कला की ऊंचाइयों तक. 102 00:05:10,000 --> 00:05:16,000 जिस चीज़ से लोग शायद डर जाते, वो उस चीज़ को बदल कर 103 00:05:16,000 --> 00:05:18,000 कुछ ऐसा बना देती है कि लोग देखें 104 00:05:18,000 --> 00:05:21,000 और देखते रह जाएँ, 105 00:05:21,000 --> 00:05:23,000 और शायद समझ भी जाएँ. 106 00:05:23,000 --> 00:05:27,000 यह मैंने खुद अपने अगले अनुभव से सीखा. 107 00:05:27,000 --> 00:05:31,000 कलाकार मैथ्यु बार्नी की अपनी फिल्म कृति, जिसका नाम है "क्रेमास्टर साईकिल" 108 00:05:31,000 --> 00:05:34,000 तब मुझे सच में इस बात का आभास हुआ -- 109 00:05:34,000 --> 00:05:36,000 कि मेरी टांगें पहनने योग्य मूर्तिकला भी हो सकती हैं. 110 00:05:36,000 --> 00:05:43,000 और इस मोड़ पर भी, मैं मानव-पन की नक़ल करने की ज़रुरत से दूर हटने लगी 111 00:05:43,000 --> 00:05:45,000 वही अकेला कलात्मक आदर्श तो नहीं है. 112 00:05:45,000 --> 00:05:49,000 और हमने वो टांगें बनायीं जिन्हें लोग प्यार से कांच की टांगें कहते हैं 113 00:05:49,000 --> 00:05:53,000 जबकि असलियत में ये पारदर्शी पॉलीयूरीथेन हैं, 114 00:05:53,000 --> 00:05:55,000 जो बोलिंग की गेंद बनाने में इस्तेमाल होता है. 115 00:05:55,000 --> 00:05:56,000 जानदार ! 116 00:05:56,000 --> 00:05:58,000 फिर हमने ये टांगें बनाईं जिनका सांचा मिट्टी से बना है 117 00:05:58,000 --> 00:06:02,000 आलू की एक पूरी जड़ इनमें उग रही है, और ऊपर चुकंदर निकल रहे हैं, 118 00:06:02,000 --> 00:06:04,000 और एक बहुत सुन्दर पीतल का अंगूठा. 119 00:06:04,000 --> 00:06:06,000 यह इसका पास से लिया गया अच्छा फोटो है. 120 00:06:06,000 --> 00:06:08,000 एक और चरित्र यह था -- आधी औरत, आधा चीता -- 121 00:06:08,000 --> 00:06:10,000 मेरी व्यायाम से भरी जि़न्दगी के लिए एक छोटा सा सम्मान. 122 00:06:10,000 --> 00:06:13,000 १४ घंटे का कृत्रिम बनाव-सिंगार 123 00:06:13,000 --> 00:06:17,000 एक ऐसा प्राणी बनने के लिए जिसके पास कृत्रिम पंजे, 124 00:06:17,000 --> 00:06:21,000 नाखून थे, और एक पूँछ जो लपक रही थी, 125 00:06:21,000 --> 00:06:23,000 छिपकली की तरह. 126 00:06:23,000 --> 00:06:24,000 (हंसी) 127 00:06:25,000 --> 00:06:29,000 और फिर एक और जोडी़ टांगें जिन पर हमने एक साथ काम किया, वो ये थीं... 128 00:06:29,000 --> 00:06:31,000 जेलीफिश की टांगों जैसी लगती हैं. 129 00:06:31,000 --> 00:06:33,000 ये भी पॉलीयूरीथेन. 130 00:06:33,000 --> 00:06:36,000 और जो अकेला काम यह टांगें कर सकती हैं, 131 00:06:36,000 --> 00:06:39,000 इस फिल्म के सन्दर्भ के परे, 132 00:06:39,000 --> 00:06:42,000 वो है इन्द्रियों को उत्तेजित करना और कल्पना को उडा़न देना. 133 00:06:42,000 --> 00:06:45,000 तो मनमौजीपन का असर भी होता है. 134 00:06:45,000 --> 00:06:51,000 आज मेरे पास १२ जोडी़ से ऊपर कृत्रिम टांगें हैं 135 00:06:51,000 --> 00:06:53,000 जो विभिन्न लोगों ने मेरे लिए बनायी हैं, 136 00:06:53,000 --> 00:06:57,000 और उनके साथ मैं अपने पैरों तले की ज़मीन से विभिन्न तरह के समझौते करती हूँ. 137 00:06:57,000 --> 00:06:59,000 और मैं अपनी लम्बाई बदल सकती हूँ -- 138 00:06:59,000 --> 00:07:01,000 मेरे पास ५ विभिन्न लम्बाईयाँ बदलने की क्षमता है. 139 00:07:01,000 --> 00:07:03,000 (हंसी) 140 00:07:03,000 --> 00:07:05,000 आज, मैं ६'१" हूँ. 141 00:07:05,000 --> 00:07:08,000 और ये टांगें मैंने एक साल से कुछ पहले ही बनवाई थीं 142 00:07:08,000 --> 00:07:10,000 इंगलैंड के डोरसेट और्थोपेडिक से 143 00:07:10,000 --> 00:07:12,000 और जब मैं उन्हें मैनहैटन अपने घर लायी 144 00:07:12,000 --> 00:07:14,000 तो पहली ही रात मैं एक बहुत बढि़या पार्टी में गयी. 145 00:07:14,000 --> 00:07:17,000 और वहां एक लड़की थी जो मुझे कई सालों से जानती है 146 00:07:17,000 --> 00:07:19,000 मेरी आम ५'८" की लम्बाई से. 147 00:07:19,000 --> 00:07:21,000 मुझे देख कर उसका मुंह खुले का खुला रह गया, 148 00:07:21,000 --> 00:07:24,000 और वो कहती ही रही,"पर तुम कितनी लम्बी हो!" 149 00:07:24,000 --> 00:07:26,000 और मैंने कहा,"जानती हूँ. मजे़ की बात है न?" 150 00:07:26,000 --> 00:07:28,000 मेरा मतलब, ये कुछ ऐसा ही है जैसे सीडी़ पर सीडी़ लगाना. 151 00:07:28,000 --> 00:07:31,000 पर मेरा दरवाजे़ के जैम के साथ अब वो खा़स नया सम्बन्ध हो गया है 152 00:07:31,000 --> 00:07:33,000 जो मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि हो पायेगा. 153 00:07:33,000 --> 00:07:36,000 और मैं उसके साथ मजे़ ले रही थी. 154 00:07:36,000 --> 00:07:38,000 और उसने मुझे देखा, 155 00:07:38,000 --> 00:07:40,000 और बोली,"पर, एमी, यह तो सही नहीं है." 156 00:07:40,000 --> 00:07:43,000 (हंसी) 157 00:07:43,000 --> 00:07:45,000 (तालियाँ) 158 00:07:45,000 --> 00:07:49,000 और अविश्वसनीय बात यह थी कि वो संजीदा थी. 159 00:07:49,000 --> 00:07:51,000 यह तो सही नहीं है कि तुम अपनी लम्बाई बदल लो, 160 00:07:51,000 --> 00:07:53,000 जब मन में आये. 161 00:07:53,000 --> 00:07:55,000 और तब मैंने जाना -- 162 00:07:55,000 --> 00:07:58,000 कि समाज के साथ का वो वार्तालाप 163 00:07:58,000 --> 00:08:00,000 अब मूलभूत रूप से बदल गया है 164 00:08:00,000 --> 00:08:02,000 पिछले १० सालों में. 165 00:08:02,000 --> 00:08:07,000 अब यह बातचीत कमी या अक्षमता को दूर करने के बारे में नहीं है. 166 00:08:07,000 --> 00:08:09,000 यह बातचीत अब वृद्धि के बारे में है. 167 00:08:09,000 --> 00:08:13,000 यह बातचीत अब संभावनाओं के बारे में है. 168 00:08:13,000 --> 00:08:18,000 एक कृत्रिम अंग अब अभाव को पूरा करने की ज़रुरत नहीं दर्शाता है. 169 00:08:18,000 --> 00:08:21,000 यह अब इस बात का प्रतीक हो सकता है कि उसे पहनने वाला 170 00:08:21,000 --> 00:08:24,000 उस हर चीज़ को रचने की शक्ति रखता है जो वो रचना चाहता है 171 00:08:24,000 --> 00:08:26,000 उस जगह पर. 172 00:08:26,000 --> 00:08:29,000 तो वो लोग जिन्हें पहले समाज विकलांग समझता था 173 00:08:29,000 --> 00:08:34,000 अब अपनी पहचान खुद बना सकने की क्षमता रखते हैं 174 00:08:34,000 --> 00:08:36,000 और अपनी पहचान को बदलते भी रह सकते हैं 175 00:08:36,000 --> 00:08:38,000 अपने शरीर की रूपरेखा को बदल कर 176 00:08:38,000 --> 00:08:41,000 और अपनी शक्ति को समझ कर. 177 00:08:41,000 --> 00:08:46,000 और मेरे लिए अभी यह बहुत जोश भरी बात है कि 178 00:08:46,000 --> 00:08:50,000 नयी प्रभावशाली तकनीक जैसे -- 179 00:08:50,000 --> 00:08:52,000 रोबोटिक्स, बियोनिक्स -- 180 00:08:52,000 --> 00:08:54,000 का मिश्रण सदियों पुरानी कविता से कर के, 181 00:08:54,000 --> 00:09:00,000 हम अपनी सामूहिक मानवता को समझने की ओर बढ़ रहे हैं. 182 00:09:00,000 --> 00:09:05,000 मैं सोचती हूँ कि यदि हम पूरी संभावना समझना चाहते हैं 183 00:09:05,000 --> 00:09:07,000 अपने समस्त मनुष्यत्व की, 184 00:09:07,000 --> 00:09:11,000 तो हमें उन मर्मभेदी शक्तियों को सराहना होगा 185 00:09:11,000 --> 00:09:14,000 और उन शानदार अक्षमताओं को भी जो हम सब में हैं. 186 00:09:14,000 --> 00:09:17,000 मुझे शेक्सपियर के शाईलौक की याद आती है: 187 00:09:17,000 --> 00:09:21,000 "अगर तुम हमें काटते हो, तो क्या हमारा खून नहीं बहता, 188 00:09:21,000 --> 00:09:24,000 और अगर तुम हमें गुदगुदाते हो, तो क्या हम हंसते नहीं?" 189 00:09:24,000 --> 00:09:27,000 यह हमारी मानवता ही तो है, 190 00:09:27,000 --> 00:09:29,000 और उसमें छुपी सारी संभावनाएं, 191 00:09:29,000 --> 00:09:32,000 जो हमें सुन्दर बनाती हैं. 192 00:09:32,000 --> 00:09:33,000 धन्यवाद. 193 00:09:33,000 --> 00:09:40,000 (तालियाँ)