1990 में, इटली की सरकार ने
उच्च इंजीनियरों को
पीसा की विख्यात झुकती मीनार को
स्थिर करने का काम सौंपा।
अपने 800 वर्ष के इतिहास में इस मीनार को
ठीक करने की कई कोशिशें की जा चुकी थीं,
परन्तु इस दल के कम्प्यूटर नमूनों ने
स्थिति की तात्कालिकता का खुलासा किया।
इन्होंने अनुमान लगाया कि अगर मीनार
5.44 डिग्री के कोण पर पहुँच गई,
तो वह गिर पड़ेगी,
और वह अभी 5.5 डिग्री के कोण पर
झुकी हुई थी।
कोई नहीं जानता था
कि मीनार आखिर अभी तक खड़ी कैसे थी
परन्तु संकट साफ़ था:
उनको उस समस्या को सुलझाना था
जिसने सदियों से इंजीनियरों को उलझा रखा था
और वह भी जल्द से जल्द।
उनकी स्थिति को समझने के लिए
यह समझना ज़रूरी है कि यह मीनार
असल में झुकनी आरम्भ कैसे हुई।
12वीं सदी में,
पीसा के धनी समुद्री गणराज्य ने
अपने गिरजाघर के चौक को
एक शानदार सीमाचिह्न में बदलने का
कार्य आरम्भ किया।
कर्मीदल ने मौजूदा गिरिजाघर को
संवारा और बड़ा किया,
और चौक में एक विशाल गुम्बददार
प्रथम जल-संस्कार की जगह भी बनाई।
1173 में, एक मुक्त खड़े घण्टा-घर का
निर्माण कार्य आरम्भ हुआ।
उस समय के इंजीनियर और वास्तुकार
अपनी कला में माहिर थे।
परन्तु इतनी इंजीनियरिंग की जानकारी
होते हुए भी
वह उस भूमि के बारे में बहुत कम जानते थे
जिस पर वह खड़े थे।
पीसा का नाम "दलदली भूमि" के लिए
प्रयोग किए जाने एक ग्रीक शब्द से बना है,
जो उस शहर की सतह के नीचे की चिकनी मिट्टी,
कीचड़, और गीली रेत का
पूरी तरह से वर्णन करता है।
प्राचीन रोम के लोग समान परिस्थितियों को
विशालकाय पत्थरों के स्तम्भों से
प्रभावहीन करते थे
जो धरती के स्थाई आधार पर टिके होते थे।
परन्तु मीनार के वास्तुकारों का मानना था
कि एक तीन मीटर की नींव
उनकी अपेक्षाकृत छोटी संरचना के लिए
पर्याप्त रहेगी।
उनके दुर्भाग्य से,
अभी पाँच वर्ष भी पूरे नहीं हुए थे,
और मीनार का दक्षिणी किनारा
धरती के अंदर धँस भी चुका था।
ऐसी खिसकती हुई नींव
आम तौर पर एक घातक दोष होता।
अगर कर्मीदल और भार बढ़ाते,
तो ऊपरी मंज़िलों का दबाव संरचना को
और नीचे धँसा देता
टेढ़े झुकाव को घातक रूप से बढ़ा देता।
पर जैसे-जैसे पीसा एक लम्बे समय के लिए
युद्ध में उतरता चला गया
निर्माणकार्य चौथी मंज़िल पर ही
लगभग एक सदी के लिए रुक गया।
इस लम्बे विराम से मिट्टी में ठहराव आ गया,
और जब 1272 में
निर्माणकार्य फिर से आरम्भ हुआ,
तब तक नींव थोड़े और अधिक
स्थायी आधार पर टिकी थी।
वास्तुकार जियोवन्नी दी सिमोन के
नेतृत्व में
कर्मीदल ने मीनार के
ज़रा से झुकाव की प्रतिपूर्ति
दक्षिणी हिस्से की अगली कुछ मंज़िलों को
ऊँचा बनाकर की।
पर अतिरिक्त पत्थरों के भार से
वह हिस्सा और भी गहरा धँस गया।
जब तक उन्होंने सातवीं मंज़िल
और घण्टे के कक्ष को पूरा किया,
तब तक झुकाव
1.6 डिग्री के कोण पर आ चुका था।
सदियों तक, इंजीनियरों ने अनेक रणनीतियों से
झुकाव को ठीक करने का प्रयास किया।
1838 में, उन्होंने धंसी हुई
नींव की जांच करने के लिए
आधार के चारों ओर
एक रास्ते की खुदाई की।
पर सहारा देने वाली रेत को हटाने से
झुकाव और भी बदतर हो गया।
1935 में, इटालियन कॉर्प्स ऑफ़ इंजीनियर्स ने
नींव को प्रबल बनाने के लिए
गारे का भराव किया।
परन्तु गारा नींव में बराबर फैला नहीं,
जिससे अचानक एक और झुकाव आ गया।
इन सारे असफल प्रयासों ने,
लगातार झुकती नींव के साथ मिल कर
मीनार को गिर पड़ने के कगार के
और पास ला खड़ा किया।
और मिट्टी की बनावट की
स्पष्ट जानकारी के अभाव में
इंजीनियर न तो मीनार जिस पर गिर पड़ेगी,
वह कोण निर्धारित कर पाए,
नही उसको गिरने से बचाने का तरीका ख़ोज पाए।
दूसरे विश्व युद्ध के बाद के कुछ वर्षों में
शोधकर्ताओं ने उन अज्ञात परिवर्तनियों को
पहचानने के परिक्षण विकसित कर लिए।
और 1970 के दशक में,
इंजीनियरों ने टेढ़ी मीनार के
गुरुत्वाकर्षण के केन्द्र की गणना कर ली।
इस जानकारी और नई कंप्यूटिंग तकनीक के साथ
इंजीनियर मिट्टी की कठोरता,
मीनार का प्रक्षेपवक्र,
और खुदाई की उस सटीक मात्रा का
नमूना बना सकते थे
जितनी मीनार को खड़े रखने के लिए आवश्यक थी।
1992 में, कर्मीदल ने विकर्ण सुरंगें खोद
मीनार के उत्तरी सिरे के नीचे से
38 घन मीटर मिट्टी निकाली।
फ़िर, उन्होंने अस्थायी रूप से संरचना का
600 टन सीसे के पिंडों से पतिसंतुलन कर
आधार पर स्टील की तारों से
लंगर डाल कर सहारा दिया।
अपने निर्माण की
छः सदियों से भी ज़्यादा के बाद,
मीनार को आख़िरकार लगभग चार डिग्री के कोण पर
सीधा कर लिया गया।
कोई नहीं चाहता था की मीनार गिर जाए,
पर सीमाचिन्ह की सबसे प्रसिद्ध रचना को
कोई खोना भी नहीं चाहता था।
आज यह मीनार 55 या 56 मीटर की
ऊँचाई पर खड़ी है
और कम से कम 300 वर्षों तक स्थिर रहेगी
तृटिपूर्णता की सुंदरता के
स्मारक के रूप में।