आईये एक काळपनिक प्रयोग के वारे में सोचें।
कळपना कीजिए की यह भविष्य में ई० ४००० है।
संस्कृति जैसी की हम जानते हैं
मौजूद नहीं हैं।
कोई किताबें,
न इलेक्ट्रॉनिक उपकरण,
न Facebook या Twitter
अंग्रेजी भाषा और वर्णमाला का सभी ज्ञान
खो गया है।
अब कल्पना कीजिए की पुरातत्त्ववेत्ता
हमारे एक शहर के खंडहर में खुदाई कर रहे हैं।
वे क्या ढूंढ़ सकते हैं?
शायद प्लास्टिक के आयताकार टुकड़े
और उन पर अकिंत कुछ चिह्न।
शायद धातु के गोल टुकड़े,
शायद कुछ बेलनाकार बर्तन
और उन पर अंकित कुछ चिन्ह।
शायद एक पुरातत्त्ववेत्ता एक पल में प्रसिद्ध हो जाता है
क्योंकि उसने
उत्तरी अमेरिका की पहाड़ियों में
बहुत बड़े आकार के वहीं चिह्न ढूंढ़ निकाले हैं।
अब स्वयं से पूछें
ऐसे चिह्न हमें
ई० ४००० साल आगे की सभ्यता के बारे में हमें क्या बता सकते हैं?
यह कोई काल्पनिक सवाल नहीं है।
वास्तव में, इसी तरह के सवाल हमारे सामने आते हैं
जब हम सिंधु घाटी सभ्यता को समझने की कोशिश करते है,
जो ४००० साल पहले अस्तित्व में थी,
सिंधु घाटी सभ्यता
बेहतर जानी जाने वाली मिस्र और मेसोपोटामिया सभ्यताओं के साथ समकालीन थी,
लेकिन यह इन दो सभ्यताओं से कहीं बड़ी थी।
यह लगभग
दस लाख वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैली थी,
जहाँ वर्तमान में पाकिस्तान,
पश्चिमोत्तर भारत,
अफगानिस्तान और ईरान के कुछ हिस्सें हैं।
यह देखते हुए कि यह एक ऐसी विशाल सभ्यता थी,
हम शक्तिशाली शासकों,
और उनको महिमामयी करते विशाल स्मारकों को खोजने की उम्मीद कर सकते हैं।
लेकिन
पुरातत्त्ववेत्तों को एसा कुछ नहीं मिला है।
उन्होंने इस तरह की इन छोटी वस्तुओं की ही पाया है।
यहाँ इन वस्तुओं में से एक का उदाहरण है।
स्पष्ट है कि यह एक प्रतिकृति है।
लेकिन यह व्यक्ति कौन है?
एक राजा? एक देवता?
एक पुजारी?
या शायद एक साधारण व्यक्ति,
अाप और मुझे जैसा?
हम नहीं जानते।
लेकिन सिंधु लोग कुछ कलाकृतियां जिन पर कुछ लिखा है, भी पीछे छोड़ गये हैं।
प्लास्टिक के टुकड़े नहीं,
लेकिन पत्थर की मोहरें, तांबे की पटियाँ,
मिट्टी के बर्तन. और, हैरान करने वाला,
एक बड़ा बोर्ड,
जो एक शहर के फाटक के पास दफन था।
हम नहीं जानते कि इस पर हॉलीवुड लिखा है,
या फिर बात के लिए बॉलीवुड।
हम ये भी नहीं जानते
कि इन वस्तुओं का क्या अर्थ है।
क्योंकि सिंधु लिपि पढ़ी नहीं जा सकी है।
हम नहीं जानते कि इन प्रतीकों क्या का मतलब है।
ये प्रतीक अधिकतर मुहरों पर पाए जाते हैं।
तो अाप वहाँ एक ऐसी वस्तु देखें।
स वर्गाकार वस्तु पर इकसिंगें की तरह का जानवर है।
यह कला का एक शानदार नमूना है।
तो आपको यह कितना बड़ा लगता है?
शायद इतना बड़ा है?
हो सकता है कि इतना?
मैं आपको दिखाता हूँ।
यहाँ एक ऐसी मुहर की एक प्रतिकृति है।
यह आकार में केवल एक इंच लंबी व चौड़ी है -
बहुत छोटी।
तो इनका क्या इस्तेमाल होता था?
हम जानते हैं कि ये मिट्टी के टैगो के मुद्रांकन के लिए इस्तेमाल किये जाते थे
जो माल के गट्ठों, जिनको एक जगह से दूसरे को भेजा जाता था, पर लगे होते थे।
एक पैकिंग रसीद जैसा जो आप अपने FedEx बक्से पर पाते है?
ये पैकिंग रसीद बनाने के लिए इस्तेमाल किये जाते थे।
आप शायद जानना चाहेंगें कि इन वस्तुओं
पर क्या लिखा है।
शायद यह प्रेषक का नाम
या माल के बारे में कुछ जानकारी है
जो एक स्थान से दूसरे करने के लिए भेजा जा रहा था - हम नहीं जानते।
इस प्रशन का उत्तर देने के लिए हमें यह लिपि समझने की जरूरत है।
इस लिपि का गूढ़ रहस्य जानना
सिर्फ एक बौद्धिक पहेली नहीं है;
वास्तव में यह सवाल
गहराई से जुङ गया है
दक्षिण एशिया की राजनीति व सांस्कृतिक इतिहास के साथ।
असल में, यह लिपि एक प्रकार से युद्ध का मैदान बन गयी है
तीन अलग अलग समूहों के बीच।
सबसे पहले, उन लोगों का समूह है
जो दृढ़ता से विश्वास करते हैं कि
सिंधु लिपि
एक भाषा का प्रतिनिधित्व नहीं करती हैं।
इन लोगों का मानना है
यह प्रतीक चिह्न यातायात संकेत चिह्नों के समान हैं
या फिर उनके जो ढालों पर मिलते हैं।
दूसरे समूह के लोग
मानते हैं कि सिंधु लिपि एक भारतीय - यूरोपीय भाषा का प्रतिनिधित्व करती है।
यदि आप वर्तमान भारत के नक्शे को देखें,
तो आप देखेंगे कि उत्तर भारत में बोली जाने वाली अधिकतर भाषाएें
भारत - यूरोपीय भाषा परिवार की है।
तो कुछ लोगों मानते हैं कि सिंधु लिपि
एक प्राचीन भारत - यूरोपीय भाषा जैसे संस्कृत, का प्रतिनिधित्व करती है।
एक अौर समूह है
जिसके लोग मानते हैं कि सिंधु लोग
वर्तमान दक्षिण भारत में रहने वाले लोगों के पूर्वजों थे।
इन लोगों का मानना है कि सिंधु लिपि
एक प्राचीन भाषा है
द्रविड़ भाषा परिवार की,
और वर्तमान दक्षिण भारत की अधिकांश भाषाएें द्रविड़ भाषा परिवार की है।
इस सिद्धांत के समर्थक
उत्तर में स्थित द्रविड़ भाषित एक छोटे क्षेत्र,
जो अफगानिस्तान के निकट है, की अोर संकेत करते हैं
वे कहते हैं कि शायद अतीत में,
पूरे भारत में द्रविड़ परिवार की भाषाएें प्रचलित थी
और यह बताता है कि
शायद सिंधु सभ्यता भी द्रविड़ थी।
इन अवधारणाऔं में से कौन सी सच है?
हमें नहीं पता, लेकिन शायद अगर आप सिंधु लिपि समझले,
तब आप इस सवाल का जवाब देने में सक्षम होगें।
लेकिन लिपि का गूढ़ रहस्य एक बहुत ही चुनौतीपूर्ण काम है।
सबसे पहले, यहाँ कोई कुंजी नहीं है।
मेरा मतलब एक अनुवादक सॉफ्टवेयर से नहीं है;
मेरा मतलब एक प्राचीन पुरावशेष से है
जिसमें एक ही वाक्य
एक ज्ञात व अज्ञात भाषा में लिखा हो।
हमारे पास इस तरह का पुरावशेष नहीं है।
और इसके अलावा, हम भी नहीं जानते कि वे क्या भाषा बोलते थे।
और मामले बदतर बनाने के लिए,
हमारे पास बहुत कम वाक्य हैं।
जैसा मैंने आपको दिखाया है, और ये आमतौर पर इन मुहरों पर पाये जाते हैं
जो बहुत बहुत छोटी हैं।
और इसलिए इन दुर्जेय बाधाओं को देखते हुए,
यह आश्चर्य और चिंता होती है
कि क्या हम कभी सिंधु लिपि समझने में सक्षम होगें
अपने शेष भाषण में,
मैं आपको बताना चाहूँगा कि कैसे मैंने चिंता करना बंद किया
और सिंधु लिपि समझने की चुनौती को प्यार करना सीखा।
मैं तब से सिंधु लिपि की ओर आकर्षित था
जब से मैंने एक माध्यमिक विद्यालय की पाठ्यपुस्तक में इसके बारे में पढ़ा।
और मैं क्यों इतना आकर्षित हो गया था?
यह प्राचीन दुनिया की अंतिम महत्वपूर्ण लिपि है जो समझी नहीं गयी है।
मैं जीविका पथ बढते हुए एक कम्प्यूटेशनल न्यूरोसाइंटिस्ट बन गया,
दैिनक कार्य में
अब मैं मस्तिष्क के कंप्यूटर मॉडल बनाता हूँ
और समझने का पर्यतन करता हूँ कि कैसे मस्तिष्क भविष्यवाणियों करता है,
कैसे मस्तिष्क निर्णय करता है,
कैसे मस्तिष्क सीखता है।
परन्तु 2007 में, सिंधु लिपि फिर से मेरे रास्ते में आई।
जब मैं भारत में था,
और मुझे अद्भुत अवसर मिला
कुछ भारतीय वैज्ञानिकों से मिलने का
जो कंप्यूटर मॉडल के उपयोग से इस लिपि का विश्लेषण कर रहे थे।
और तब मुझे एहसास हुआ कि
वहाँ मेरे लिए एक अवसर था इन वैज्ञानिकों के साथ सहयोग करने का,
और इसलिए मैंने उस अवसर नहीं गवाँया।
और अब मैं कुछ परिणामों का वर्णन करना चाहता हूँ जो हमें मिले हैं।
या बेहतर ये होगा कि हम इन परिणामों को ईक्ठ्ठे खोजें।
क्या आप तैयार हैं?
एक लिपि को समझने के लिए पहला कार्य जो आपको करना है
वह ये कि लेखन की दिशा का अनुमान लगाने की कोशिश करनी है।
यहाँ दो वाक्य हैं जिन पर कुछ चिन्ह हैं।
क्या आप मुझे बता सकते हैं
कि लेखन की दिशा बाएँ से दाएँ है या दाएँ से बाएँ?
मैं आपको कछ समय देता हूँ.
ठीक है। दाएँ से बाएँ, कितने? ठीक है।
ठीक है। बाएँ से दाएँ?
ओह, यह लगभग 50/50 है। ठीक है।
जवाब है:
अगर आप दोनों मुहरें के बाएं ओर देखें,
तब आप पाएगें कि वहाँ के चिन्ह बहुत सटे हुए हैं,
और ऐसा लगता है कि 4,000 साल पहले
जब लिपिक दाईं से बाईं ओर लिख रहा था,
स्थान कम रह गया था।
सलिए उसे चिन्हों को सटाना पङा।
एक चिन्ह ऊपर के वाक्य के नीचे भी है।
इससे यह पता चलता है कि लेखन की दिशा
शायद दाएँ से बाएँ थी।
यह प्राथमिक ज्ञान हैं कि
दिशात्मकता भाषाई लिपियों का एक बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू है।
और सिंधु लिपि में भी
अब यह विशेष गुण है।
भाषाओं के कौन से अन्य गुण इस लिपि में है?
भाषाओं में पैटर्न होते हैं।
यदि मैं आपको एक वर्ण Q दूँ
और आपसे पूछूँ कि अगला वर्ण क्या होगा?
आप में से अधिकांश कहेगें U, जो सही है।
अब अगर मैं आप से ओर एक वर्ण की भविष्यवाणी करने को कहूँ,
आपको क्या लगता है क्या होगा?
अब वहाँ कई संभावनाऐं हैं। E हो सकता है, I हो सकता है। A भी हो सकता है।
लेकिन निश्चित रूप से B, C या D नहीं होगा, है ना?
सिंधु लिपि भी इस तरह के पैटर्न को दर्शाती है।
बहुत से वाक्य इस हीरे के आकार के चिन्ह के साथ शुरू होते हैं।
और इस चिन्ह के बाद
यह उद्धरण जैसा निशान है।
और यह बहुत कुछ एक Q और U के उदाहरण जैसा है।
इस चिन्ह के बाद
इन मछली की तरह के चिन्ह और कुछ अन्य चिन्ह आ सकते हैं,
लेकिन ये दूसरे चिन्ह कभी नहीं।
और इसके अलावा, वहाँ कुछ और चिन्ह है
जो वाक्य या पृष्ठ के अंत में आते हैं,
जैसे कि यह जग जैसा चिन्ह।
यह चिन्ह वास्तव में इस
लिपि में सबसे अधिक प्रयोग हुआ है.
इस तरह के पैटर्न को देखते हुए, हमने यह विचार किया।
हमने कंप्यूटर के उपयोग से
इन पैटर्नो को जानने की योजना बनाई,
और इसलिए हमने मौजूदा वाक्यों को कंप्यूटर में फीड किया।
और कंप्यूटर में एक सांख्यिकीय मॉडल बनाया
जो बताता है कि कैसे ये चिन्ह एक वाक्य में एक साथ होते हैं
और कौन से एक दूसरे के बाद मे आते हैं।
कंप्यूटर मॉडल को देखते हुए,
हम प्रश्न पूछ कर मॉडल का परीक्षण कर सकते हैं।
तो हमने जानबूझकर कुछ चिन्हों को मिटा दिया,
और मॉडल को मिटे हुए चिन्हों को ढूँढने को कहा।
यहाँ कुछ उदाहरण हैं।
आप सोचेगें
कि यह शायद सबसे प्राचीन खेल है
भाग्य चक्र का।
हमने पाया कि
कंप्यूटर 75 प्रतिशत सफल रहा
सही चिन्ह ढूँढने में।
बाकी मामलों में,
आमतौर पर दूसरा या तीसरा सबसे अच्छा पूर्वानुमान सही जवाब था।
व्यावहारिक उपयोग भी है
इस विशेष प्रक्रिया का।
बहुत से वाक्य व पृष्ठ क्षतिग्रस्त हैं
यहाँ एक ऐसे ही वाक्य का एक उदाहरण है
और हम अब कंप्यूटर मॉडल का उपयोग कर सकते हैं
इस वाक्य को पूरा करने के लिए।
यहाँ एक प्रतीक को कंप्यूटर से पूरा करने का उदाहरण है.
और यह वास्तव में उपयोगी हो सकता है इस लिपि को समझने में
अगर हम और अधिक डेटा उत्पन्न करके उसका विश्लेषण करें तो।
अब यहाँ एक अन्य विश्लेषण आप कंप्यूटर मॉडल के साथ कर सकते हैं।
तो एक बंदर की कल्पना कीजिए
टाईपिंग करते हुए।
यह बंदर कुछ इस तरह का अक्षरों का अनियमित क्रम अंकित करेगा।
अक्षरों के इस तरह के अनियमित क्रम को
एक बहुत उच्च एन्ट्रापी का क्रम कहा जाता है।
एन्ट्रापी एक भौतिकी और सूचना विज्ञान का शब्द है।
लेकिन सिर्फ कल्पना कीजिये कि यह एक अनियमित क्रम है।
आप में से कितनो ने कभी कुंजीपटल पर कॉफी गिराई है?
और आपको अटकी हुई कुंजीयों की समस्या का सामना करना पड़ा हो -
जिससे एक ही चिन्ह बार बार दोहराया जा रहा है।
यह एक बहुत कम एन्ट्रापी का क्रम है
क्योंकि इसमे कोई बदलाव नहीं है।
दूसरी तरफ भाषा, की एन्ट्रापी एक मध्यवर्ती स्तर पर है;
यह न तो बहुत नियमित है,
और न ही अनियमित।
सिंधु लिपि का क्या?
यह ग्राफ बहुत से अनुक्रमों की एन्ट्रापी दृशित करता है।
बहुत शीर्ष पर अनियमित अनुक्रम हैं,
जो बेतरतीब पङे अक्षर हैं --
और दिलचस्प बात है कि
हम मानव जीनोम के डीएनए और वाद्य संगीत अनुक्रम भी इस ग्राफ में पाते हैं।
ये दोनों बहुत, बहुत लचीले हैं,
जिसके कारण आप उन्हें बहुत उच्च श्रेणी में पाते हैं।
ग्राफ के निचले भाग में,
आप एक बहुत नियमित अनुक्रम, इसमे सभी अक्षर A हैं,
इसमे एक कंप्यूटर प्रोग्राम भी है,
जो फोरट्रान भाषा में है,
जो वास्तव में कड़े नियमों का अनुसरण करता है।
भाषाई लिपियाँ
बीच की श्रेणी में आती हैं।
अब सिंधु लिपि के बारे में क्या?
हमने पाया है कि सिंधु लिपि
वास्तव में भाषाई लिपियों की सीमा के भीतर ही है।
जब यह परिणाम प्रकाशित किया गया था,
तब यह बेहद विवादास्पद था।
कुछ लोगों ने हल्ला मचाया,
ये वह लोग हैं जो मानते हैं
कि सिंधु लिपि भाषा का प्रतिनिधित्व नहीं करती है।
मुझे नफरत भरे ई-मेल भी मिलने शुरू हो गए।
मेरे छात्रों ने कहा
कि मुझे गंभीरता से कुछ संरक्षण प्राप्त करने पर विचार करना चाहिए।
किसने सोचा होगा
कि सिंधु लिपि के गूढ़ रहस्य को समझना एक खतरनाक पेशा हो सकता है?
यह परिणाम वास्तव में क्या दिखाता है?
यह दिखाता है कि सिंधु लिपि
में भाषाओं का एक महत्वपूर्ण गुण है।
तो जैसे एक पुरानी कहावत है,
यदि एक भाषाई लिपि की तरह लग रही है
और यह एक भाषाई लिपि की तरह काम करती है,
तो शायद यह एक भाषाई लिपि है।
क्या अन्य प्रमाण हैं
कि यह लिपि वास्तव में भाषा को सांकेतिक शब्दों में बदल सकती है?
भाषाई लिपियां वास्तव में एक से अधिक भाषाओं को सांकेतिक शब्दों में बदल सकती हैं।
तो उदाहरण के लिए, यहाँ एक ही वाक्य अंग्रेजी में लिखा है
और फिर वही वाक्य डच भाषा मे लिखा है
दोनों मे एक ही वर्णमाला उपयोग की गयी है।
यदि आप डच नहीं जानते हैं और आप केवल अंग्रेजी जानते हैं
और मैं आप को डच में कुछ शब्द दूँ,
आप मुझे बताओगे कि इन शब्दों में
कुछ बहुत ही असामान्य पैटर्न हैं।
कुछ बातें सही नहीं हैं,
और आप कहेंगे कि शायद ये अंग्रेजी शब्द नहीं हैं।
ऐसी ही बात सिंधु लिपि के मामले में है।
कंप्यूटर को कई वाक्य मिले है --
उनमें से दो यहाँ दिखाए गऐ हैं -
जिनमें बहुत ही असामान्य पैटर्न हैं
उदाहरण के लिए प्रथम वाक्य मेंः
इस जग जैसे चिन्ह का दोहरीकरण किया है।
यह चिन्ह सबसे अधिक मिलता है
सिंधु लिपि में,
और यह केवल इस वाक्य में
इसका दोहरीकरण किया गया है।
ऐसा क्यों है?
हमने फिर विशलेषण किया और देखा कि ये विषेश वाक्य कहाँ मिले थे,
और यह पता चला कि वे पाए गए थे
सिंधु घाटी से बहुत दूर।
वे वर्तमान इराक और ईरान में मिले थे।
और वे वहाँ क्यों मिले?
मैने आपको नहीं बताया है कि
सिंधु लोग बहुत, बहुत उद्यमी थे।
वे सूदूर जगहों के लोगों के साथ व्यापार करते थे।
और इसलिए यहाँ, वे समुद्र के रास्ते
मेसोपोटामिया, वर्तमान इराक की यात्रा कर रहे थे।
और यहाँ लगता है कि
सिंधु व्यापारी,
इस लिपि का उपयोग एक विदेशी भाषा लिखने में कर रहे थे।
यह हमारे अंग्रेजी और डच के उदाहरण की तरह है।
और यही वजह है कि हमें ये अजीब पैटर्न मिले हैं
जो उन पैटर्नो से बहुत अलग हैं
जो सिंधु घाटी में पाए गऐ हैं।
इससे यह पता चलता है कि एक ही लिपि, सिंधु लिपि,
विभिन्न भाषाओं को लिखने के लिए इस्तेमाल की जा सकती है।
इन परिणामो से हम अभी तक यही निष्कर्ष निकालते है
कि सिंधु लिपि शायद एक भाषा का प्रतिनिधित्व करती है।
यदि यह एक भाषा का प्रतिनिधित्व करती है,
तो हम इन चिन्हों को कैसे पढ़ें?
यह हमारी अगली बड़ी चुनौती है।
तो आप ध्यान दे कि अधिकांश चिन्ह
मिलते जुलते हैं मनुष्यों, कीड़ों,
मछलियों और पक्षियों से।
अधिकांश प्राचीन लिपियाँ
रिबास सिद्धांत का उपयोग करती हैं,
जिसके अनुसार शब्दों को चित्रों द्वारा लिखा जाता है।
उदाहरण के रूप में, यहाँ एक शब्द है।
क्या आप इसे चित्रों द्वारा लिख सकते हैं?
मैं आप को कुछ समय देता हूँ।
समझे?
ठीक है।
यह मेरा समाधान है।
आप मधुमक्खी (bee - बी) के तस्वीर के पीछे एक पत्ती (leaf- लीफ) की एक तस्वीर रखें -
और यह शब्द है "belief - बीलीफ" ठीक है।
इसके दूसरे अन्य समाधान भी हो सकते हैं.
सिंधु लिपि के मामले में,
समस्या उल्टी है।
आपको इन चित्रों की आवाज़ का अनुमान लगाना है
इस पूरे अनुक्रम को समझने के लिए।
तो यह सिर्फ एक पहेली की तरह है
बस यह सभी पहेलियों की माँ है,
और दांव बहुत ऊंचे लगे हैं यदि आप इसे हल कर सकें.
मेरे सहकर्मियों, इरावतम महादेवन और असको परपोला
ने इस विशेष समस्या को हल करने में कुछ प्रगति की है।
मैं आपको परपोला के काम का एक त्वरित उदाहरण देना चाहूँगा।
यहाँ एक बहुत छोटा वाक्य है।
समें सात ऊर्ध्वाधर रेखाओं के पीछे एक मछली का चिन्ह है।
और मैं आपको बता दूँ कि इन मुहरों का प्रयोग
मिट्टी के टैगो के मुद्रांकन के लिए होता था
जो माल के गठ्ठों पर लगे होते थे,
तो यह काफी संभावना है कि कुछ टैगो पर
व्यापारियों के नाम अंकित हैं।
यह पहले से पता है कि भारत में
एक लंबी परंपरा है कि
नाम कुंडली
और जन्म के समय मौजूद तारामंडलों के आधार पर रखे जाते हैं
द्रविड़ भाषाओं में,
मछली को "मीन" भी कहते हैं
जो सितारे के लिए प्रयुक्त शब्द की तरह उच्चारित होता है।
और इसलिए सात सितारों
का अर्थ हुआ "ईलूमीन"
जो द्रविड़ शब्द है
सप्तऋषि नक्षत्र के लिए।
इसी तरह, एक छह सितारों का अनुक्रम है,
जिसका अनुवाद होगा "ईरूमीन"
जिसका प्राचीन द्रविड़ भाषा मे अर्थ है
प्लीएडेस तारामंडल।
और अंत में, एक और संरचना है
जिसमें मछली के शीर्ष पर एक छत जैसा चिन्ह है।
इसका अनुवाद "मेयमीन" हो सकता है
जो शनि ग्रह के लिए प्राचीन द्रविड़ नाम है।
तो यह बहुत रोमांचक था।
ऐसा लगता है जैसे हम कुछ प्रगति कर रहे हैं।
लेकिन इससे क्या यह साबित होता है
इन मुहरों पर द्रविड़ भाषा में
ग्रहों और तारामंडलों के नाम अंकित हैं?
अभी तक तो नहीं।
वास्तव में कोई तरीका नहीं है
इन विशेष अनुवादों को मानित करने का
लेकिन अगर और भी एसे अनुवाद समझ बनाना शुरू कर दें,
और लम्बें अनुक्रम
भी सही प्रतीत हों,
तब हमें पता चलेगा कि हम ठीक रास्ते पर हैं।
व्रतमान में
हम TED जैसे शब्द
मिस्र की हाईरोगलाइफीकस और कीलाकार लिपि में लिख सकते हैं,
क्योंकि इन दोनों को समझ लिया गया था
१९ वीं सदी में।
इन दोनों लिपियों के स्पष्टीकरण से
इन सभ्यताओं से सीधे बात करना संभव हुआ।
मायन सभ्यता
से हमारी बातचीत 20 वीं सदी में शुरू हुई,
लेकिन सिंधु सभ्यता अभी तक चुप है।
हमें क्यों परवाह करनी चाहिए?
सिंधु सभ्यता
सिर्फ दक्षिण भारतीयों या उत्तर भारतीयों
या पाकिस्तानियों की नहीं है;
यह हम सभी की है।
ये हमारे पूर्वजों हैं -
आपके और मेरे।
वे खामोश हैं
इतिहास के एक दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना के कारण।
यदि हम यह लिपि समझले,
हम उनसे बात करने में फिर से सक्षम होगें।
वे हमें क्या बताएगें?
हम उनके बारे में क्या जानेगें? हमारे अपने बारे में?
मैं यह खोजने के लिए बेसब्र हूँ।
धन्यवाद।
(सरहाना व हर्षध्वनि)