मुझे याद है जब मैंने पहली बार लोगों को नशे का इंजेक्शन लेते हुए देखा था. मैं वैंकुवर में HIV रोकथाम की एक खोजी परियोजना के निर्देशक के रूप में, शहर के बदनाम इलाके "डाउनटाउन ईस्ट साइड" में आया था. मैंने देखा था, पोर्टलैंड होटल की लॉबी में, जहाँ शहर के गरीबों को कमरे दिए गए थे, वो लोग जिनको घर में टिकाना, मुश्किल होता है. सीढ़ियों पर बैठी उस लड़की को मैं कभी भूल नहीं पाउँगा जो बार बार सुई से खुद को दाग रही थी और चिल्ला रही थी, "मुझे नस नहीं मिल रही" और उसका खून दीवार पर फैला हुआ था. इस हताश करने वाली अवस्था में, नशे के इस्तेमाल, गरीबी, हिंसा, HIV का बढ़ते दर के बीच, वैंकुवर में 1997 में जन स्वास्थ्य संकट घोषित किया गया. इससे नुकसान घटनेवाली सेवाओं के लिए रास्ते खुले, जैसे, इंजेक्शन की सुई बांटना, मेथाडोन को उपलब्ध कराना, और संचालित इंजेक्शन स्थल की शुरुवात करना. ये सब नशे को कम नुकसानदायक बनाते हैं. किन्तु आज, 20 साल बाद भी, हानि घटाना, एक उग्र धारणा समझी जाती है. कई जगह, एक साफ़ इंजेक्शन अपने पास रखना गैरकानूनी है. नशेड़ियों का गिरफ्तार किया जाना संभव है, किन्तु उनको मेथाडोन उपचार मिलना संभव नहीं. हाल ही में, संचालित इंजेक्शन स्थल स्थापित करने के प्रस्तावों को, सीएटल, बाल्टिमोर और न्यू यॉर्क में भारी विरोध का सामना करना पड़ा: विरोध, जो नशे की लत की हमारी जानकारी के खिलाफ है. ऐसा क्यूँ है? हम क्यूँ इस विचार पर अटके हुए हैं कि नशे की लत के खिलाफ एकमात्र उपाय, नशे के सामान का इस्तेमाल रोकना है? क्यूँ हम सैंकड़ों लोगों की कहानियों को, और वैज्ञानिक सबूतों को नज़र अंदाज़ करते हैं, जो दर्शाता है कि हानि घटाना कारगर है? आलोचकों का कहना है कि हानि घटाना, लोगों को नशे के सामान का इस्तेमाल करने से नहीं रोकता है. यही तो पूरी बात का केंद्र है. हर तरह के आपराधिक और सामजिक प्रतिबंधों के बावजूद लोग नशा करते हैं और मरते भी हैं. आलोचक कहते हैं कि हम उपचार और सुधार पर ध्यान नहीं देकर लोगों को उपेक्षित करते हैं., जबकि, ये बिलकुल विपरीत है. उन्हें उनके हाल पर नहीं छोड़ रहे हम जानते हैं कि सुधार होने के लिए हमें उनको जीवित रखना होगा. साफ़ सुई और सुरक्षित इंजेक्शन स्थल उपलब्ध कराना, उपचार और सुधार की दिशा में पहला कदम है. आलोचक कहते हैं कि हानि घटाने के तरीके युवाओं को, नशेड़ियों के बारे में गलत सन्देश पहुचाते हैं. जबकि, यह नशेडी ही हमारे युवा हैं. हानि घटाने के तरीकों से एक ही सन्देश जाता है कि, नशा नुकसानकारक है, लेकिन हमें लत में फंसे लोगों के साथ खड़ा होना है. सुई प्राप्ति केंद्र, नशे के इस्तेमाल का विज्ञापन नहीं है. ना ही मेथाडोन क्लिनिक या संचालित इंजेक्शन स्थल. वहां आप केवल बीमार और पीड़ित लोगों को देखते हैं, जो किसी भी प्रकार से नशे का समर्थन नहीं कहा जा सकता. उदहारण के तौर पर, संचालित इंजेक्शन स्थल. ये सबसे ज्यादा गलत समझा जाने वाला उपाय है. लोगों को इंजेक्शन लेने की साफ़ जगह, नयी सुइयां और अपनों की उपस्थिति मुहैया कराना, कहीं ज्यादा बेहतर है, किसी अँधेरी गली में, पुलिस से बचते हुए, इस्तेमाल की हुई सुई को दोबारा इस्तेमाल करने से. यह सबके लिए अच्छा है. पहला संचालित इंजेक्शन स्थल वेंकुवर में कैरोल स्ट्रीट पर था, एक छोटा कमरा, कुछ कुर्सियां और साफ़ सुइयों का एक डिब्बा. पुलिस उसपर अक्सर ताला ठोक देती थी, पर वह वापस खुल जाता था, अक्सर एक लोहे के डंडे से. मैं किसी शाम वहां जाता, और इंजेक्शन लेते हुए लोगों को चिकित्सीय सेवा प्रदान करता. मैं उस स्थल को चलाने वाले और इस्तेमाल करनेवाले लोगों की जिम्मेदारी और संवेदना से प्रभावित होता. कोई धारणा नहीं, न तकलीफ, न डर, लेकिन एक अभूतपूर्व संवाद. मैंने जाना कि, मानसिक आघात, दर्द और दिमागी रोगों के बावजूद, हर कोई यही सोचता कि स्थिति में सुधार होगा. ज्यादातर यकीन रखते थे कि, किसी दिन, वे नशे को त्याग देंगे. वह कमरा, उत्तरी अमेरिका का पहला सरकारी मान्यता प्राप्त, संचालित इंजेक्शन स्थल था, जो इंसाइट कहलाता था. यह सितम्बर 2003 में 3 साल के लिए अनुसंधान केंद्र की तरह खोला गया था. सरकार उसे अध्ययन के समाप्त होते ही बंद करने पर आमादा थी. 8 साल बाद, इंसाइट को बंद करने की लड़ाई कनाडा के सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची. इसमें कनाडा सरकार के खिलाफ, लम्बे समय से नशा करने वाले दो व्यक्ति थे, जिनको इंसाइट के फायदे अच्छी तरह से पता थे: डीन विल्सन और शेली टोमिक. कोर्ट की जूरी ने 9-0 से इंसाइट को चालू रखने का फैसला लिया. न्यायाधीशों ने सरकार को तीखा जवाब दिया - "इंसाइट की सेवाओं से इन लोगों को वंचित रखने से, इंजेक्शन से नशा लेने वाले लोगों में बीमारी और मृत्यु की बढ़ोतरी, नशे का सामान रखने के विषय पर एक समान रवैये से कनाडा को होने वाले फायदे के अनुपात में बहुत बड़ी है." यह नुकसान घटानेवाले उपचार के लिए आशापूर्ण पल था. सुप्रीम कोर्ट के इस कड़े सन्देश के बावजूद, कुछ समय पहले तक, कनाडा में नया केंद्र खोलना असंभव था. दिसम्बर 2016 में एक रोचक घटना सामने आई, जब अधिक मात्रा में सेवन की समस्या से जूझ रहे ब्रिटिश कोलंबिया ने इंसाइट जैसे कई केंद्र खोलने की अनुमति दी. केंद्र सरकार की अनुमति प्रक्रिया को नज़रंदाज़ करते हुए, कुछ समाजसेवी संस्थाओं ने 22 ऐसे "गैरकानूनी" निगरानी मी इंजेक्शन केंद्र स्थापित किये. रातोंरात, हजारों लोग, निगरानी में, नशे के सामान का इस्तेमाल कर पा रहे थे. सैंकडों ओवरडोज़ के मरीजों को मरने से बचाया जा सका. INSITE में पिछले 14 सालों से ये हो रहा है: 75,000 व्यक्तियों ने गैरकानूनी नशे का इंजेक्शन करीब 35 लाख बार इस्तेमाल किया, लेकिन एक व्यक्ति भी नहीं मरा. इंसाइट में आज तक कोई मृत्यु नहीं हुई है. यह सत्य है. हमारे पास वैज्ञानिक सबूत हैं, और सुई-केंद्र, मेथाडोन और संचालित इंजेक्शन केन्द्रों के सफल उदहारण हैं. ये तरीके व्यावहारिक हैं, और सहानुभूति दर्शाते हैं, जिनसे स्वास्थ्य में सुधार और लोगों में संपर्क बढ़ता है, और दुःख, पीड़ा और मौत कम होती है. लेकिन क्यूँ इन नुकसान घटानेवाले तरीकों का उपयोग नहीं बढ़ा? क्यूँ हम अब भी नशे को क़ानून व्यवस्था का मसला समझते हैं? नशे और नशेड़ियों के प्रति हमारी घृणा बहुत गहरी है. मीडिया में तस्वीरों और लेखों की वर्षा, हमें नशे के वीभत्स प्रभाव दिखलाती है. हमने कुछ प्रजातियों को पूर्णतः कलंकित कर दिया है. नशे का सामान बेचनेवालों के खिलाफ सशत्र जंग का हम गुणगान करते हैं. और हम नशेड़ियों को रखने के लिए ज्यादा जेलों को बनाने पर चिंतित नहीं हैं. लाखों लोग कैद, हिंसा और गरीबी के निराशामयी चक्र में फंसे हुए है, जो नशा सम्बंधी कानून की देन है, न कि नशे के सामान से. मैं लोगों को कैसे समझाऊँ कि नशा करने वालों को देखभाल और मदद के साथ साथ, अपनी जिंदगी जीने की आज़ादी चाहिए, जबकि हम सिर्फ़ बंदूकें, हथकडियों और जेल की तस्वीरें ही देख रहे हैं. एक बात समझ लें: अपराधीकरण से, कलंक संस्थागत हो जाता है. नशे के सामान को गैरकानूनी करने से उनका इस्तेमाल नहीं रुकता है. नशे के बारे में गलत धारणाएं हमें अपना दृष्टिकोण बदलने से रोक रही हैं. हमें ये विश्वास दिलाया गया है कि नशेडी गैर जिम्मेदार लोग हैं जो नशे में लीन रहना चाहते है, और अपनी व्यक्तिगत हार से, अपराध और गरीबी के चक्र में घिर जाते है, अपनी नौकरी, परिवार और अंततः अपनी जिंदगी खो देते हैं. असल में, हर नशेडी की एक कहानी है, बचपन के कटु अनुभव, यौन-उत्पीडन, मानसिक बीमारी या कोई व्यक्तिगत शोक. नशे का इस्तेमाल दर्द को भूलने के लिए होता है. इतने कटु अनुभवों वाले लोगों से व्यवहार करने के लिए ये सब समझना जरुरी है. नशे से सम्बंधित हमारी नीतियाँ इसे सामाजिक न्याय का विषय समझती हैं. मीडिया माइकल जैक्सन और प्रिंस की मृत्यु पर ध्यान देती है, जो ओवरडोज़ से हुई थी, जबकि ज्यादा कष्ट उन लोगों को होता है, जो हाशिये पर रहने वाले गरीब हैं. वे वोट नहीं कर सकते और अक्सर अकेले होते हैं. ये समाज से फेंकने लायक लोग समझे जाते हैं. स्वास्थ्य केन्द्रों में भी नशा करना अत्यंत कलंकित समझा जाता है. और नशेडी वहां जाने से कतराते हैं. वे जानते हैं कि, अगर इन केन्द्रों में गए, या अस्पताल में भरती हुए तो उनसे नीचतापूर्ण बर्ताव किया जायेगा. और नशे तक उनकी पहुँच, फिर चाहे वो हेरोइन, कोकेन या क्रिस्टल हो, बंद हो जाएगी. और तो और, उनको हजारों सवाल किये जायेंगे जो उनके नुकसान और शर्मिंदगी को बेपर्दा कर देंगे. "किस चीज़ से नशा करते हो?" "कितने दिनों से सड़क पर रह रहे हो?" "तुम्हारे बच्चे कहाँ हैं?" "आखिरी बार जेल कब गए थे?" "तुम क्यूँ नशा करना बंद नहीं करते?" नशे के खिलाफ हमारी चिकित्सा पद्धति, पूर्णतः उलटी है. पता नहीं क्यूँ, हमने निश्चित कर लिया कि, नशे से दूरी ही, इसे ठीक करने का सबसे सही तरीका है. अगर किस्मत अच्छी है, तो आप किसी नशामुक्ति योजना में भरती हो जायेंगे. अगर आपके राज्य में सुबोक्सोने या मेथोडोने पर पाबन्दी नहीं है, तो इनके माध्यम से आपका इलाज होगा. लेकिन नशेड़ियों को वो नहीं मिलता जो उनको जीवित रहने के लिए चाहिए: ओपिओइड दवाएं जो डॉक्टर के लिखने पर ही मिलती हैं. नशे से दूरी रखने से इलाज की शुरुवात करना, डायबिटीक को चीनी छोड़ने को कहने जैसा है, या कि दमे के मरीज को मैराथन दौड़ने के लिए कहना, या डिप्रेशन के मरीज को खुश रहने के लिए कहना. किसी भी बीमारी को ठीक करने के लिए हम सबसे कठिन उपाय से शुरुवात नहीं करते. फिर हमें ये कैसे लगता है कि ये नशामुक्ति के लिए कारगर होगा? गैर-इरादातन, नशीली वस्तुओं का अधिक मात्रा में सेवन नई बात नहीं है, लेकिन अभी का संकट बेहद गहरा है. रोग रोकथाम केंद्र के अनुसार, 64,000 अमेरिकियों की मृत्यु इस वजह से हुई, जो दुर्घटनाओं और हत्या से ज्यादा है. उत्तरी अमेरिका में, नशे से होने वाली मृत्यु, 20 से 50 साल के लोगों में , मौत का सबसे बड़ा कारण है. विश्वास नहीं होता. हम यहाँ कैसे पहुँच गए? और अब क्यूँ? ओपिओइड को लेकर तूफानी स्थिति बनी हुई है. ओक्सिकोंटिन, परकोसेट और डाइलौडिड जैसी दवाएं कई दशकों से हर प्रकार के दर्द के लिए दी जाती रही हैं. 20 लाख अमेरिकी रोज़ ओपिओइड लेते हैं, और 6 करोड़ लोगों को कम से कम एक बार यह दवाई दी गई है. इन दवाओं के इतने बड़े अनुपात में इस्तेमाल होने से, लोगों में स्वयं उपचार की प्रवृत्ति कई गुना बढ़ी है. जब इन दवाइयों के चिकित्सक द्वारा दिए जाने पर रोक लगी, तो दुकानों में इनका मिलना बहुत कठिन हो गया. इसका सीधा असर ये हुआ कि दवाई के ओवरडोज़ की समस्या बढ़ गयी. जिन लोगों को इन दवाइयों की आदत हो गयी थी, लेकिन उनका मिलना मुश्किल हो गया था, वे हेरोइन लेने लगे. साथ ही, अवैध बाज़ार में, दुखद रूप से कृत्रिम दवाइयां, जैसे फेंटानिल, आसानी से मिलने लगी. ये सस्ती हैं, शक्तिशाली हैं, पर इन्हें सही मात्रा में लेना बेहद मुश्किल है. ये लोगों को जहर देने जैसा है. सोचिये क्या हो, अगर ये किसी प्रकार की जहर सम्बन्धी महामारी बन जाए? क्या होगा अगर हजारों लोग, जहरीला मांस खाकर, या कॉफ़ी पीकर या बच्चे फार्मूला दूध पीकर मरने लगें? हम इसे भयंकर आपातकाल समझकर कदम उठाते. तुरंत सुरक्षित विकल्प मुहैया कराते. कानूनों में बदलाव लाते, और पीड़ितों और उनके परिवारों की मदद करते. लेकिन नशीले पदार्थों के ओवरडोज़ की महामारी के लिए हमने कुछ नहीं किया. हम नशे और नशा पीड़ितों का दानवीकरण कर रहे हैं और कानून व्यवस्था लागू करने पर सारे संसाधन खर्च कर रहे हैं. अब यहाँ से आगे की राह क्या है? पहला, हमें नुकसान घटानेवाले उपचार तंत्र को अपनाना होगा, धन लगाना होगा, और देशभर में प्रसारित करना होगा. वैंकुवर में, इस उपचार तंत्र को देखभाल और उपचार सेवाओं के केंद्र में है. नुकसान घटानेवाले तंत्र के बिना, ओवरडोज़ से होने वाली मौतें कहीं ज्यादा होती. और यह उपचार पाकर आज सैंकड़ों लोग जीवित हैं मैं उन्हें व्यक्तिगत रूप से जानता हूँ. किन्तु यह तंत्र केवल एक शुरुवात है. अगर हमें नशे के संकट पर गहरा असर करना है, तो हमें इस से सम्बंधित कानूनों, आपराधिकरण और सज़ा पर गहन विचार करना होगा. हमें नशे की समस्या को जन-स्वास्थ्य की समस्या के रूप में समझना होगा, और सामाजिक और स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से उपाय खोजने होंगे. हमारे पास इसका मॉडल तैयार है. 2001 में, पुर्तगाल इसी समस्या से जूझ रहा था. बहुत सारे लोग नशा करते थे, अपराध दर बहुत ऊंची थी, और ओवरडोज़ की महामारी फैली हुई थी. उन्होंने दुनिया के नजरिये को छोड़ कर, नशीले पदार्थ रखने पर से रोक हटा दी. जो पैसा कानून व्यवस्था लागू करने पर खर्च होता वह स्वास्थ्य और नशामुक्ति कार्यक्रमों पर खर्च किया गया. और परिणाम दिखे. नशीले पदार्थों का इस्तेमाल तेजी से घटा. ओवरडोज़ की समस्या न के बराबर हुई. ज्यादा से ज्यादा लोग इलाज करवाने लगे. और लोगों ने अपनी ज़िन्दगी सही रास्ते पर लायी. हम पाबंदी, सज़ा और पूर्वाग्रह के रास्ते पर इतनी दूर आ गए हैं, कि हम पीड़ा की प्रति उदासीन हो गए हैं, और समाज के सबसे असुरक्षित लोगों पर आघात कर रहे हैं. इस साल और ज्यादा लोग नशे के अवैध व्यापार में कैद होंगे. हजारों बच्चों को पता चलेगा की उनके पिता या माता, नशा करने के लिए जेल भेजे गए. और कई सारे माता-पिताओं को बताया जायेगा कि उनकी बेटी या बेटा, ओवरडोज़ से मृत्यु के शिकार हुए. ये ऐसा नहीं होना चाहिए. धन्यवाद. (तालियाँ)